फिल्म की कहानी मुंबई के एक मध्यमवर्गीय चालनुमा बहुमंजिली इमारत में रह रही फ्लोरी मैंडोसा (रेणुका शहाणे) से शुरू होती है, जो कि अपनी खोली (मकान) बेचना चाहती हैं. उनके इस मकान को खरीदने के लिए सुदीप शर्मा (पुलकित सम्राट) आते हैं. मकान की कीमत 20 लाख रूपए है, मगर फ्लोरी अपने इस मकान को अस्सी लाख में बेचना चाहती हैं, पर सुदीप इस मकान को खरीदने के लिए बेताब हैं, क्योंकि उसे रेलवे स्टेशन के करीब वाले मकान की तलाश है. वैसे सुदीप इस तरह के मध्यमवर्गीय इलाके के लिए उपयुक्त नहीं है. तो दूसरी तरफ इस इमारत में रही वर्षा (मसुमेह मखीजा) और शंकर वर्मा (शर्मन जोशी) की प्रेम कहानी चलती रहती है, पर इन दोनों के नौकरी, माता पिता की अनुमति के आदर्श में बंधे होने के कारण वर्षा की शादी सुदीप शर्मा से हो चुकी होती है. वर्षा दुःखद व हिंसायुक्त जिंदगी जीती रहती है. इसी इमारत में रह रहे रिजवान (दधि पांडे) के बेटे सुहेल (अंकित राठी) और मालिनी (आएशा अहमद) की प्रेम कहानी है. इन तीनों कहानियों के दर्दनाक पलों में रंग भरने का प्रयास करती सूत्रधार लीला (रिचा चड्ढा) नजर आती हैं, जो कि अपरंपरागत विधवा है.

कथानक के स्तर पर यह फिल्म काफी सामान्य है. तीनों कहानियों के बीच मध्यमवर्गीय परिवेश के अलावा कोई समानता नहीं है. इनके बीच एकमात्र समानता यही है कि इन तीनों कहानियों के पात्र एक दूसरे के पड़ोसी हैं. यूं तो लेखक व निर्देशक ने फिल्म में इंसानी जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों व गमों को बिना नाटकीयता के पिरोया है, मगर तमाम दृश्य अविश्वसनीय व कपोल कल्पित नजर आते हैं. कमजोर पटकथा के चलते फिल्म काफी घिसटते घिसटते अपनी मंजिल तक पहुंचती है. तीनों कहानियों को सलीके से कहा जाता, तो फिल्म बेहतर बन सकती थी. टुकड़ों में इसके कुछ दृश्य अच्छे लगते हैं, मगर पूरी फिल्म निराश करती है. इसमें काफी एडिट करने की जरुरत थी. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता.

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