अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ईरानियन फिल्मकार माजिद मजीदी की सबसे बड़ी खासियत है कि वह अपनी फिल्मों मे परिवार व रिश्तों को ही अहमियत देते आए हैं. उनका मानना है कि यदि परिवार अच्छे व संस्कारी होंगे, तो समाज अपने आप अच्छा हो जाएगा. 1997 में फिल्म ‘‘चिल्ड्रेंस आफ हैवेन’’ ने माजिद मजीदी को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था. उसके बाद उन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अब पहली बार वह अपने वतन ईरान से इतर भारत में आकर भारतीय कलाकारों व तकनीशियन के साथ हिंदी भाषा की फिल्म ‘‘बियौंड द क्लाउड्स’का लेखन व निर्देशन किया है. मजेदार बात यह है कि माजिद मजीदी की मातृभाषा पर्सियन है और उन्हे हिंदी या अंग्रेजी भी नहीं आती. इसके बावजूद भारत के प्रति लगाव ने उन्हे हिंदी फिल्म ‘बियौंड द क्लाउड्स’ बनाने के लिए मजबूर कर दिया.

1959 में तेहरान मे जन्में माजिद मजीदी ने तेहरान के ‘इंस्टीट्यूट औफ ड्रमैटिक आर्ट्स’’ से शिक्षा लेने के बाद करियर की शुरूआत थिएटर से की थी. 1980 से माजिद मजीदी ने स्वयं की लिखी हुई कहानियों पर लघु व फीचर फिल्मों का निर्माण व निर्देशन करना शुरू कर दिया. माजिद मजीदी ने ईरान में ही 1981 में लघु फिल्म ‘एक्प्लोजन’ बनाई थी. 1992 में पहली फीचर फिल्म‘‘बदुक’’ बनाई. फिर 1997 में उन्होने ‘चिल्ड्रेंस औफ हैवन’ बनाई, जिसे ‘औस्कर अवार्ड’ के लिए ‘‘फौरेन फिल्म कैटेगरी’’ में नोमीनेट किया गया था. और इस फिल्म ने रातों रात मजीद को विश्व स्तर का निर्देशक बना दिया.

आठ अप्रैल, रविवार को मुंबई के लोअर परेल इलाके के ‘टेरडेन कार्निवल सिनेमास’ में ‘इनलाइटेन फिल्म सोसायटी’ के तत्वाधान में माजिद मजीदी की फिल्म ‘चिल्ड्रेन औफ हैवेन’ का प्रर्दशन किया गया, जहां माजिद मजीदी के साथ ही बौलीवुड की कई हस्तियां मौजूद थी. इस अवसर पर शबाना आजमी ने माजिद मजीदी को ‘इनलाइटेन अवार्ड 2018’ से सम्मानित किया.

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