अजय जायसवाल के वेब पोर्टल ‘‘डब्लू डब्लू डब्लू अपेक्षा फिल्मस डौट कौम’’ पर प्रसारित हो रही लेखक व निर्देशक दिनेश दुबे की वेब सीरीज ‘‘प्रौब्लम नो प्रौब्लम’’ में अभिनय कर रही उपासना सिंह काफी उत्साहित हैं. इस वेब सीरीज मे उनके मिसेस मिश्रा के किरदार को काफी पसंद किया जा रहा है. उनका मानना है कि ‘‘प्रौब्लम नो प्रौब्लम’’ की सफलता से उन्होंने साबित कर दिखाया कि अच्छी बातें करके भी लोगों को हंसाने के साथ स्वस्थ मनोरंजन परोसा जा सकता है.

उपासना सिंह को उन लोगों से शिकायत है, जो कि फिल्म, टीवी सीरियल या वेब सीरीज में गंदगी परोस रहे हैं. जब हमने उपासना सिंह से कहा कि आप सेंसर बोर्ड की पक्षधर हैं. लेकिन मनोरंजन की दुनिया से जुड़े तमाम लोग सेंसरशिप के खिलाफ हैं. तो उपासना सिंह ने कहा- ‘‘देखिए, मैंने तो सदैव पारिवारिक फिल्में व सीरियल ही की हैं. मैं चाहती हूं कि मेरा काम पूरा परिवार एक साथ बैठकर बिना किसी झिझक के देखे. मैं पूरी तरह से सेंसरशिप के पक्ष में हूं. मेरी राय में सेंसरशिप होनी चाहिए. जो लोग सेंसरशिप के खिलाफ हैं, वह लोगों को, समाज को, देश को गलत राह पर ले जाना चाहते हैं. पिछले कुछ समय से जिस तरह की फिल्में बन रही हैं, उन्हें देखकर मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर हम लोगों को क्या बताना चाहते हैं? क्या सिखाना चाहते हैं और हम वास्तव में खुद कहां ले जाना चाहते हैं? लोग मुझे पुराने ख्यालात की मानते हैं. लेकिन मैं अपने जीवन मूल्यों व पारिवारिक मूल्यों को बदल नहीं सकती. मैं उन सभी चीजों को बुरा मानती हूं, जिन्हें हम अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर ना देख सकें.’’

वह आगे कहती हैं- ‘‘ मेरा मानना है कि सभी फिल्में, टीवी कार्यक्रम व वेबसीरीज पारिवारिक व साफ सुथरे होने चाहिए. मैंने तो इस बात को बार बार साबित किया है कि पारिवारिक चीज ही लोग सर्वाधिक पसंद करते हैं. हमने ‘कौमेडी नाइट विथ कपिल’ कार्यक्रम में भी यह बात साबित करके दिखायी है कि लोग स्वस्थ और हल्का फुल्का हास्य मनोरंजन देखना चाहते हैं ना कि अश्लीलता.

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देखिए,राजश्री प्रोडक्शन, ताराचंद बड़जात्या से लेकर सूरज बड़जात्या तक ने फिल्मों में कभी अश्लीलता नहीं परोसी और उनकी सभी फिल्में सफल रही है. साफ सुथरी चीजों से लोगों का मनोरंजन किया जाना सही है. यदि आप लोगों को सिर्फ अश्लीलता परोसेंगे और फिर कहेंगे कि लोगों का अश्लीलता व नंगापन पसंद है, तो यह गलत बात है. हमारे फिल्मकार अश्लीलता परोसते हुए लोगों की रूचि बिगाड़ रहे हैं. मेरी सोच यह है कि हम जिस संस्कृति से हैं, उसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए. देखिए,हमारी भारतीय संस्कृति ऐसी है कि विदेशों से आकर लोग जुड़ना चाहते हैं. इसका पालन करना चाहते है.’’

फिल्मों में आ रही विकृति की तरफ इशारा करते हुए उपासना सिंह आगे कहती हैं-‘‘यह कितनी गलत बात है कि हम फिल्मों में अब पिता को भी तू करके बुला रहे हैं. क्या हम फिल्मों में यह देखना चाहते हैं कि एक लड़की अपनी मां से कहे कि, ‘मेरा ब्वौयफ्रेंड घर में साथ में रहेगा’ या बेटा अपने पिता के सामने दारू व सिगरेट पिए. मैं इन सब चीजों को गलत मानती हूं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर आप कुछ भी गंदा परोसे गलत है. मैं तो इसकी हिमायती नहीं हो सकती. अश्लीलता परोसना बहुत ही गलत हैं. मैं तो इसके खिलाफ हूं. मैं चाहती हूं कि सेंसर बोर्ड को कड़ाई से काम करना चाहिए.’’

वह धाराप्रवाह बोलते हुए कहती है- ‘‘मैं हर फिल्मकार से सवाल करना चाहती हूं कि आखिर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या सिखा रहे हैं. क्या जो कुछ हम फिल्मों में दिखा रहे हैं, क्या वैसा हम अपनी बेटी व बेटे को करते देखना चाहते हैं? यदि नहीं तो हम उसे दूसरों को करने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे है. इसलिए इस तरह की चीजों को परोसने वालों का विरोध करना पड़ेगा. मीडिया व सेंसर बोर्ड ऐसी चीजों को रोक सकता है.’’

जब हमने उपासना सिंह से पूछा कि फिल्मों में जिस तरह का समाज नजर आ रहा है. वैसा समाज हमारे यहां है? इस पर उपासना सिंह ने कहा- ‘‘नहीं है. पर हम फिल्मों में उस तरह की चीजें दिखाकर वैसा समाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि गलत है. देखिए,फिल्मों में हीरोइन जिस तरह के कपडे़ पहनती है, वह कुछ मिनटों के लिए होती है. पर हमारे देश की लड़कियां उसी तरह के कपड़े पहने लगी है. यह गलत हो रहा है. फिल्मों की वजह से ही अब लड़कियां शौर्ट नहीं बल्कि मिनी शार्ट पहनकर झगड़ती हैं कि यदि उन्होंने छोटे कपड़े पहन लिया, तो क्या हो गया?  मुझे तो लड़कियों के शौर्ट उससे भी उपर नजर आते हैं और मुझे इससे बहुत दुःख होता है. मैं जब घर से बाहर निकलती हूं और लड़कियों को इस तरह के कपड़े पहने देखती हूं, तो बहुत तकलीफ होती है. मैं देखती हूं कि लड़की बाइक पर बैठी होती हैं और अर्धनग्न नजर आती है. मैं कई बार उन्हें टोक देती हूं. अफसोस यह है कि तमाम लड़कियां घर से कुछ कपड़े पहनकर निकलती हैं और बाहर कुछ और पहने नजर आती हैं. हर किसी को इसके खिलाफ खड़े होना चाहिए.’’

वह कहती हैं- ‘‘यह सोच गलत है कि दूसरे की लड़की अर्धनग्न जैसे कपड़े पहने, पर मेरे घर की लड़कियां ना पहने. सिनेमा की ही वजह से लड़के भी लड़कियों की तरह कपड़े पहनने लगे हैं. कानों में बालियां पहनने लगे हैं. चोटी रखने लगे हैं. मैं इन सारी चीजों की पक्षधर कभी नहीं हो सकती. मुझे कभी कभी लगता है कि सिनेमा में इस तरह की सोच रखने वाले लोग विकृत मानसिकता के शिकार हैं.’’

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