राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म मिर्जिया में एक पंक्ति है-‘‘एक नदी थी, दो किनारे थामे बैठी थी, कोई किनारा छोड़ नहीं सकती थी.’’ फिल्म खत्म होने के बाद अहसास होता है कि शायद लेखक ने यह पंक्ति फिल्म की नायिका सैयामी खेर के लिए लिखी हैं, जिन्होंने इस फिल्म में सुचित्रा उर्फ सुचि तथा साहिबां का किरदार निभाया है. यह एक कटु सत्य है. फिल्म ‘मिर्जिया’ में अपने अभिनय से सैयामी खेर ना सिर्फ प्रभावित करती हैं, बल्कि उनमें स्टार बनने के गुण भी साफ नजर आते हैं. इसके बाद अनुज चौधरी लोगों के जेहन में बस जाते हैं. भव्य स्तर पर बनायी गयी यह फिल्म उन लोगों को ज्यादा पसंद आएगी, जो कि कला, खूबसूरती, फोटोग्राफी आदि के शौकीन हैं. अन्यथा फिल्म की गति धीमी है. गुलजार लिखित पटकथा का उलझाव ऐसा है कि दर्शक सोचने लगता है कि फिल्म कब खत्म होगी.

फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की कहानी दो स्तर पर चलती है. एक कहानी लोक कथा शैली में सदियों पुरानी प्रेम कथा ‘मिर्जा साहिबां’ की है. जब जब परदे पर ‘मिर्जा साहिबां’ की कहानी आती है, तब तब गाने आ जाते हैं. मिर्जा और साहिबां के किरदारों को क्रमश हर्षवर्धन कपूर और सैयामी खेर ने निभाया है. पर इसमें संवाद नहीं हैं. दूसरी कहानी राजस्थान में मिर्जा साहिबां की कथा के गूंज के रूप में चलती है. यह कहानी शुरू होती है लोहारों की गलियों से. यह कहानी है उदयपुर के गोवर्धन स्कूल में पढ़ रहे मोनीष (हर्षवर्धन कपूर) और सुचित्रा उर्फ सुचि (सैयामी खेर) की. दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं. मोनीष के पिता (ओमपुरी) लोहार हैं. जबकि सुचि के पिता (आर्ट मलिक) पुलिस इंस्पेक्टर हैं. मोनीष की रूचि पढ़ाई में कम है. एक दिन वह स्कूल में होमवर्क करके नही ले जाता है. सुचि उसे अपनी नोटबुक दे देती है. शिक्षक पहले खुश होते हैं पर वह लिखावट देखकर समझ जाते हैं कि यह नोटबुक सुचि की है. सुचि को सजा मिलती है, सुचि अपने प्यार के लिए दर्द सह जाती है. पर मोनीष, सुचि के पिता की बंदूक चुराकर दूसरे दिन सुबह स्कूल के शिक्षक को गोली मार देता है. पकड़ा जाता है और सजा के तौर पर उसे बालसुधारगृह भेज दिया जाता है, जहां से कुछ समय बाद वह भाग जाता है.

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