पांच वर्ष जेल की सजा काट चुके अभिनेता संजय दत्त ऐसे जीते जागते कलाकार हैं, जिनकी जिंदगी पर फिल्म बनने जा रही है. वह नए जोश के साथ अपने अभिनय करियर की शुरूआत फिल्म ‘भूमि’ से कर रहे हैं. उमंग कुमार के निर्देशन में बनी फिल्म ‘भूमि’ आगामी 22 सितंबर को प्रदर्शित होगी.
पांच वर्ष की सजा काट कर वापस आने के बाद कई फिल्मों के साथ आपके जुड़ने की खबरें थी. पर उनमें से आपने ‘भूमि’ को ही क्यों चुना?
मैं कई पटकथाएं पढ़ रहा था. जब तक कोई कहानी व पटकथा पसंद नहीं आयी, मैंने किसी फिल्म के लिए हां नहीं कहा था. मुझे ‘भूमि’ की कहानी, पटकथा, कांसेप्ट और मेरा किरदार पसंद आया, इसलिए मैंने सबसे पहले यही फिल्म स्वीकार की.
फिल्म ‘भूमि’ में आपको क्या खास पसंद आया?
यह फिल्म जमीन से जुड़ी हुई है. आगरा जैसे छोटे शहर की पृष्ठभूमि में यह पिता पुत्री के रिश्ते की कहानी है. इसके अलावा इसमें बदले की भी कहानी है. इसके अलावा फिल्म के निर्देशक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता उमंग कुमार हैं. इस फिल्म में महिला सशक्तिकरण की बात की गयी है. मेरी राय में इस तरह की फिल्में ज्यादा बननी चाहिए.
चर्चाएं हैं कि ‘भूमि’ की कहानी कुछ समय पहले प्रदर्शित फिल्म ‘मातृ’ और ‘मौम’ से मिलती जुलती है?
सब्जेक्ट शायद वही हो. फिल्म ‘भूमि’ में हमने जिस समस्या पर बात की, वह शायद वही हो, मगर हमारी फिल्म ‘भूमि’ बहुत अलग है. ट्रीटमेंट, कहानी वगैरह सब कुछ बहुत अलग है.
समाज व देश में आए बदलाव के साथ ही अब पिता पुत्री के रिश्ते में भी कुछ बदलाव आ गए हैं. अब संस्कारी युवा पीढ़ी नहीं रही. क्या इस पर आपकी फिल्म कुछ कहती है?
मैं इस बात से सहमत नही हूं. आप जो बात कर रहे हैं, वह मुंबई व दिल्ली जैसे बड़े शहरों में नजर आता है. पर असली भारत दिल्ली या मुंबई नहीं है. आप उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब चले जाएं, वहां पर रिश्ते क्या होते हैं, यह बेहतर ढंग से समझ में आएगा. आप मुंबई से कुछ दूर चले जाएं, तो महाराष्ट्र में भी असली रिश्ते, संस्कार, संस्कारी युवा पीढ़ी मिलेगी. कहीं भी भारतीय संस्कार या पारिवारिक मूल्य नहीं बदले हैं. आपको मुंबई या दिल्ली में एक आध परिवार अलग सा मिल जाए, तो उसका यह मायने नहीं है कि हमारे संस्कार खत्म हो गए या हम पारिवारिक मूल्यों व रिश्तों की अहमियत भूल गए हैं. हकीकत यह है कि हम महानगरों में रहते हुए सच से थोड़ा दूर हो जाते हैं. पर मैंने पहले ही कहा कि हमारी फिल्म ‘भूमि’ जमीन से जुड़ी फिल्म है.
क्या आपने ‘भूमि’ में अभिनय करने से पहले किसी छोटे शहर जाकर वहां रिश्तों व संस्कारों को समझने का प्रयास किया?
इसकी जरुरत नहीं पड़ी. मेरे माता पिता ने जिन संस्कारों व जीवन मूल्यों के साथ मुझे पाला, उन संस्कारों से मैं जुड़ा हुआ हूं. मैं अपनी बेटी व बेटों को भी उन्हीं संस्कारों के साथ परवरिश दे रहा हूं. मेरे घर में बेटे व बेटी में कोई फर्क नहीं है. उन्हीं संस्कारों को लेकर मैंने यह फिल्म की है. इसलिए इस फिल्म में जो रिश्ता या जो संस्कार नजर आने वाले हैं, वह मुझे अनूठे नहीं लगे. इस फिल्म में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की बात की गयी है. यदि लड़की पैदा हो गयी तो कोई अपराध नहीं हुआ. वह तो देवी है. लड़की अपने घर की लक्ष्मी है, यही मुझे सिखाया गया है. मैं हर शख्स से कहना चाहता हूं कि बेटी बहुत खूबसूरत चीज होती है.
फिल्म ‘भूमि’ का आपके जेल में बिताए दिनों से भी कोई संबंध है?
जेल में मैं हमेशा रेप के जुर्म में सजा काट रहे कैदियों से दूरी बनाकर रखता था. मुझे ऐसे लोगों से सख्त नफरत है. जेल में ही एक दिन एक हवलदार ने मुझसे पते की बात कही थी. उसने कहा था, ‘हर पुरुष काली व दुर्गा की उपासना करता है. यह देवियां नारी हैं. इसके बावजूद कुछ पुरुष औरतों के संग ऐसा कुकर्म करते हैं.’’ उसकी बातें सुनकर मुझे एहसास हुआ कि यही तो मेरी सोच है. मेरी समझ में नहीं आता कि इस तरह का कृत्य करने वाला पुरुष यह कैसे भूल जाता है कि उसके घर में भी मां, बहन, बेटी हैं.
मैं हर नारी की बड़ी इज्जत करता हूं. मुझे जन्म देने वाली मां भी एक नारी थी, जिसके चलते आज मेरा अस्तित्व है. मेरी बहनें, पत्नी, बेटी मेरे हर सुख दुःख की साथी हैं.
लड़कियों के साथ हो रहे बलात्कार को लेकर आप क्या सोचते हैं?
यह बहुत दुःखद होता है. इसकी जितनी निंदा की जाए उतना कम है. हर किसी को इस कृत्य की निंदा करनी चाहिए. जो किसी औरत या लड़की पर हाथ उठाता है, उसे पीटता है या उसे किसी भी रूप में क्षति पहुंचाता है, वह सब बहुत ही घृणित अपराध है. मुझे रेप करने वाले लोग बिलकुल पसंद नहीं है. मुझे लगता है कि इस तरह के कुकृत्य को रोकने के लिए अदालतों को तेज गति से मुकदमें की सुनवाई कर कठिन से कठिन सजा देनी चाहिए. इसके अलावा इंसान की सोच बदलने की भी जरुरत है.
आपकी जिंदगी पर बन रही बायोपिक फिल्म में आपकी दखलंदाजी है या नहीं?
कोई दखलंदाजी नहीं कर रहा हूं.
आपके जीवन की कहानी वाली फिल्म इस फिल्म से युवा पीढ़ी को क्या संदेश मिलेगा?
इस फिल्म से सबसे बड़ा संदेश यह मिलेगा कि अपने माता पिता की बात सुनो और उनकी सलाह पर अमल करो. गलतियां ना करें. ड्रग्स, शराब आदि नशे से दूर रहें.
किसी भी अपराध में जेल जाने पर इंसान पूरी तरह से टूट जाता है. पर पांच वर्ष की सजा काटने के बाद आपने अपने आपको नए सिरे से काम में रमाया यह कैसे संभव हुआ?
सबसे बड़ा सहारा तो मुझे मेरे प्रशंसकों ने दिया. मुझे याद है कि मेरे कुछ फैंस कई दूर दराज शहरों से जेल में मुझे प्रसाद और मेरे जीवन के लिए शुभकामनाएं देने आया करते थे. उनकी एक ही इच्छा रहती थी कि मैं जल्द से जल्द नए सिरे से अच्छी फिल्मों में अभिनय करना शुरू करुं. इसके अलावा मेरे परिवार के हर सदस्य ने मेरी बहुत मदद की, जिसकी वजह से मैं आज फिर से पूरी उर्जा के साथ काम कर रहा हूं. सबसे बड़ी बात यह रही कि फिल्म इंडस्ट्री ने मुझे खुले हाथों स्वीकार किया. इंडस्ट्री के हर शख्स ने मेरा हौसला बढ़ाया.
जब आपको निराशा ने घेरा या डिप्रेशन में गए, तब उससे उबरेन का मार्ग क्या रहा?
मैंने योगा किया. मेडीटेशन किया.
आपको अपने पापा की कौन सी बात आज भी याद है, जो आपको प्रेरणा देती है?
मेरे पिता की एक ही सीख मुझे याद है. वह मुझसे कहते थे कि, ‘तुम चाहे जो काम करो, पर सबसे पहले एक अच्छे इंसान बनो.’ उनकी इसी सीख ने मेरे अंरद नयी उर्जा, नए उत्साह का संचार किया है. अब मैं अपने बच्चों को भी यही सीख दे रहा हूं.
 
             
             
             
           
                 
  
           
        



 
                
                
                
                
                
                
               