यदि आप मानते हैं कि नारी की प्रगतिशीलता के मायने ड्रग्स का सेवन करना, खुलेआम शराब व सिगरेट पीना, अपने पति को गंदी गंदी गालियां देना, खुलेआम सेक्स व आर्गज्म पर बेबाक बातें करना है, तो फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ आपके लिए है, अन्यथा कहानी के नाम पर यह फिल्म शून्य है.
जी हां! रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ तमाम सामाजिक मान्यताओं व सोच को तोड़ने वाली बोल्ड फिल्म होते हुए भी विचलित करती है. पूरी फिल्म एकता कपूर की कंपनी ‘बालाजी टेलीफिल्मस’ मार्का सीरियल व कई तरह के विज्ञापनों का मुरब्बा है. फिल्मकार शशांक घोष ने अपनी इस फिल्म में नारी पात्रों के मार्फत विवाह को मूर्खता, दोस्ती को जीवन उद्धारक, शराब को पानी का पर्याय, यौन संबंध को स्वास्थ्यवर्धक,सिगरेट को तनाव भगाने का आसान उपाय, बदनामी को अति आवश्यक और फैशन को हर समय की जरुरत बताया है.
फिल्म की कहानी के केंद्र में दिल्ली में रह रही हाई स्कूल के दिनों की चार सहेलियां कालिंदी पुरी (करीना कपूर), अवनी शर्मा (सोनम कपूर), साक्षी सोनी (स्वरा भास्कर) और मीरा सूद (शिखा तलसानिया) हैं. इनकी सूत्रधार कालिंदी पुरी है. फिल्म शुरू होती है हाई स्कूल की परीक्षा के समापन का जश्न मनाते हुए, इन लड़कियों की हरकतों यानी कि इनके बियर्ड प्वाइंट पर पहुंचने पर इनके एटीट्यूड का अहसास होता है. फिर कहानी दस साल बाद शुरू होती है.
अवनी शर्मा फैमिली कोर्ट में मेट्रोमोनियल एडवोकेट हैं और अपनी मां (नीना गुप्ता) के साथ रहती है. दिल से काफी रोमांटिक है, उसे स्कूल के दिनों से ही शादी कर बच्चे पैदा करने की इच्छा रही है. इसी के चलते वह अर्जुन, निर्मल, भंडारी सहित कई युवकों के संपर्क में आती रहती है, मगर उसे सही जीवन साथी नहीं मिलता, जबकि उसकी मां भी उसके लिए लड़का तलाश रही है. अवनी को सच्चे प्यार की तलाश है.
कालिंदी बिखरे हुए माता पिता की अकेली औलाद है. वह ‘कमिटमेंट फोबिया’ की शिकार है. वह रिषभ मल्होत्रा (सुमित व्यास) के संग आस्ट्रेलिया में दो वर्ष से भी अधिक समय से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है, मगर अपने माता पिता के वैवाहिक जीवन के झगड़ों की गवाह रही कालिंदी को शादी व रिश्तों से डर लगता है. पर वक्त के साथ बहते हुए वह रिषभ मल्होत्रा के संग शादी के लिए हामी भर देती है. उसकी शादी दिल्ली में पंजाबी रीतिरिवाजों के संग होनी है, जिसमें उसकी अन्य तीनों सहेलियां भी शामिल होती हैं, पर रिश्ते निभाते निभाते वह रिषभ से बीच में हीशादी न करने का फैसला ले लेती है. पर अंत में एक ऐसा मोड़ आता है कि वह रिषभ के साथ शादी के बंधन में बंध जाती है.
मीरा सूद एक युवा विद्रोही है, जिसने अपने बड़े पापा के विरोध के बावजूद एक अमरीकन से शादी की है, उसका एक कबीर नामक बेटा है, परशादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं है. वहीं साक्षी सोनी एक अति अमीर औरत है, वह विनीत से शादी कर लंदन रहने लगती है, पर सेक्स संतुष्टि के लिए ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ में यकीन करने वाली साक्षी सोनी जल्दी ही विनीत से तलाक लेकर वापस अपने करोड़पति माता पिता के पास रहने आ गयी है. अब वह दिन भर क्लब व ड्रग्स आदि मे डूबी रहती है. बात बात पर गंदी गंदी गालियां बकना उसकी आदत का हिस्सा है. यह चारों सहेलियां भावनात्मक रूप से काफी जटिल स्वभाव की हैं. इन चारों अति आधुनिक व स्वतंत्र सहेलियों की जिंदगी, पुरुष, सेक्स, प्यार, शादी, दिल टूटने सहित औरतों से जुड़े हर मुद्दे पर अपनी एकदम अलग सोच व राय है. इनके अंदर इतना गट्स है कि यह सभी अपनी सोच के साथ ही जिंदगी जीती हैं. यह शादी से पहले सेक्स पर भी बातें करती हैं. इन्हे किसी का कोई डर नही है.
भारतीय सिनेमा जगत में स्वतंत्र व आधुनिक नारी के इस रूप व इस तरह की हरकतों वाली फिल्म अब तक नहीं बनी है. इस तरह ‘वीरे दी वेडिंग’सिने जगत में एक नए अध्याय की शुरुआत है. यह चारों नारी पात्र अपनी सफलता, अपनी असफलता व अपने हर कदम को अपने लिए एक सम्मानजनक तमगा समझती हैं. यह सभी अपनी गलतियों के साथ निरंतर आगे बढ़ती रहती हैं. भारतीय परिवेश व भारतीय सोच के तहत इन्हें पवित्र परिभाषित नहीं किया जा सकता. जब वासना व प्यार की बात आती है, तो यह चारों लड़कियां भारतीय सामाजिक मूल्यों व सोच के तहत असहनीय मानी जाएंगी.
यूं तो कहानी व कहानी के मोड़ जीवन को बदलने वाले या चौंकाने वाले नहीं हैं. अपनी अपनी जिंदगी से जूझना व दिल के टूटने के कथानक पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं, पर पहली बार इस कथानक पर नारी पात्रों के साथ फिल्म बनायी गयी है. मगर लेखक व निर्देशक किसी भी किरदार को गहराई के साथ पेश नहीं कर पाए. पटकथा लेखक बुरी तरह से असफल हुए हैं. सभी पात्र काफी सतही व उथले छोर से हैं. परिणामतः दर्शक इन किरदारों की यात्रा का सहभागी नहीं बन पाता. इनके साथ जुड़ नहीं पाता.
चारों सहेलियों की गप्पबाजी के चलते फिल्म एक ही जगह ठहरी हुई सी लगती है. फिल्म पर निर्देशक शशांक घोष की कोई पकड़ नजर नहीं आती. फिल्म बार बार एकता कपूर मार्का टीवी सीरियल की याद दिलाती रहती है. फिल्म कई जगह आपको विचलित करती है. युवा पीढ़ी खासकर टीनएजर उम्र के दर्शकों को अहसास हो सकता है कि फिल्म उनके मन की बात करती है. प्यार व शादी को लेकर यह फिल्म उत्साहित नहीं करती.जिन्होंने विदेशी सीरियल ‘सेक्स एंड द सिटी’ या ‘‘ब्राइड्समैड’’ देखा है, उन्हे यह फिल्म इनका अति घटिया रूपांतरण नजर आएगी.
फिल्म में बेवजह कालिंदी के पिता (अंजुम राजाबली) व उनकी दूसरी पत्नी परोमिता (एकावली खन्ना) तथा कालिंदी के समलैंगिक चाचा (विवेक मुश्रान) की कहानी को बेवजह जोड़ा गया है, यह फिल्म की कहानी को अवरूद्ध ही करते हैं. फिल्म को संवारने की बजाय तहस नहस करने मेंपार्श्वसंगीत की अहम भूमिका है. फिल्म की एडीटिंग भी काफी गड़बड़ है.
शादी के नाम से डरी हुई महिला कालिंदी पुरी के किरदार में करीना कपूर ने काफी बेहतर अभिनय किया है. स्वरा भास्कर ने काफी स्वाभाविक अभिनय किया है. अवनी शर्मा के किरदार में एक बार फिर सोनम कपूर ने साबित कर दिखाया कि कलाकार के तौर पर वह निरंतर विकास कर रही हैं. मगर परदे पर इन चारों की दोस्ती बनावटी नजर आती है.
दो घंटे पांच मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ का निर्माण अनिल कपूर, रिया कपूर, निखिल द्विवेदी और एकता कपूर ने किया है. फिल्म के लेखकद्वय निधि मेहरा व मेहुल सूरी, निर्देशक शशांक घोष, संगीतकार विशाल मिश्रा, शाश्वत सचदेव, करण, पार्श्वसंगीतकार अर्जित दत्ता,कैमरामैन सुधाकर रेड्डी यकांती व कलाकार हैं- सोनम कपूर, करीना कपूर, स्वरा भास्कर, शिखा टलसानिया, सुमित व्यास, विश्वास किनी, आएशारजा, विवेक मुश्रान, मनोज पाहवा, नीना गुप्ता, गेवी चहल, शीबा चड्ढा, अलका कौशल व अन्य.