काजोल व रिद्धिसेन के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘हेलीकोप्टर ईला’’ के प्रदर्शन की तारीखे क्यों बार बार बदलती रहीं, इसकी वजहें फिल्म देखकर समझ में आ गयी. फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जिसके लिए दर्शक अपनी मेहनत की कमाई को इस फिल्म की टिकट खरीदने में खर्च करेगा. उत्कृष्ट फिल्मकार प्रदीप सरकार की यह फिल्म कहीं न कहीं सफलतम फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ की याद दिलाती है. फर्क इतना है कि ‘निल बटे सन्नाटा’ में एक घरों में काम करने वाली सिंगल मां और उसकी बेटी के साथ उस तरह का परिवार था. जबकि ‘हेलीकोप्टर ईला’ में उच्चवर्ग की सिंगल मां व बेटा है. ‘निल बटे सन्नाटा’ में मां व बेटी के संघर्षों, सपनों व जीवन में आगे बढ़ने के जद्दोजहद की कहानी को खूबसूरती से पेश किया गया था. मगर फिल्म ‘हेलीकोप्टर ईला’ एक भी क्षण दर्शकों को बांधकर नहीं रखती.

आनंद गांधी के मशहूर गुजराती भाषा के नाटक ‘‘बेटा कागड़ो’’ पर आधारित फिल्म ‘‘हेलीकोप्टर ईला’’ की कहानी एक सिंगल मदर ईला (काजोल) की कहानी है, जिसने अपने संगीत व गायन के करियर को महज अपने बेटे विवान (रिद्धि सेन) की परवरिश के लिए त्याग दिया. अब ईला हर दम विवान के पीछे पड़ी रहती है. यहां तक कि कभी भी बिना सूचना के वह विवान के कमरे में भी पहुंच जाती है.

विवान की अपनी कोई स्वतंत्र जिंदगी ही नहीं है. मां की हरकतों से परेशान होकर विवान अपनी मां को आगे की पढ़ाई करने की सलाह देता है. ईला तुरंत विवान के ही कौलेज में एडमिशन लेकर उसका पीछा करने लगती है. इतना ही नहीं ईला भी विवान की ही कक्षा में बैठकर पढ़ती है. वह किससे बात करे, किससे नहीं, यह सलाह भी देती रहती है. बीच बीच में कहानी अतीत में जाती रहती है, जिससे यह पता चलता है कि ईला अपने बेटे विवान को लेकर इतना असुरक्षित क्यों है. मां बेटे के बीच झगड़े के साथ ही कहानी में कई मोड़ आते हैं. कौलेज में नाटक की शिक्षक लिसा मरीन (नेहा धूपिया), ईला को समझाती है. तब ईला पुनः संगीत का कांसर्ट करती है. जिसके चलते मां बेटे के बीच विवाद खत्म होते हैं.

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