अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी ने जब अपनी पहली हिंदुस्तानी फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ बनाने के लिए कलाकारों का चयन करना शुरू किया, फिल्म की हीरोईन कौन होगी, इस पर लंबे समय तक रहस्य बना रहा. क्योंकि माजिद मजीदी के संग हर अभिनेत्री काम करने को लालायित थी. दीपिका पादुकोण व कंगना रनौत से लेकर कई बड़ी बड़ी अदाकाराओं ने इस फिल्म के लिए लुक टेस्ट दिया था. पर अंततः यह फिल्म मिली मालविका मोहनन को. कन्नूर, केरला में जन्मी, मगर मुंबई में पली बढ़ी मालविका मोहनन के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि रही.

मजेदार बात यह है कि मालविका मोहनन के पिता यू के मोहनन बौलीवुड के मशहूर कैमरामैन हैं. इसके बावजूद मालविका मोहनन ने अभिनेत्री बनने की बात कभी नहीं सोची थी. पर 2013 में अचानक ममूटी ने उन्हें अपने बेटे व मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार दुलकेर सलमान के साथ मलयालम फिल्म ‘‘पट्टम पोले’’ से अभिनेत्री बना दिया. इस फिल्म क प्रदर्शित होने के बाद मालविका मोहनन ने अभिनय में ही करियर बनाने का निर्णय कर लिया. उसके बाद उन्होंने चार मलयालम फिल्में की, मगर वह मलयालम की बजाय हिंदी फिल्में करना चाहती थीं. क्योंकि उनकी परवरिश मुंबई मे हुई थी और उन्हें हिंदी बहुत अच्छी आती है. इसी वजह से वह इन दिनों काफी उत्साहित हैं कि उनके करियर की पहली हिंदी फिल्म 20 अप्रैल को सिनेमाघरों में पहुंच रही है.

आपके पिता सिनेमा से जुडे़ हुए हैं, इसलिए आपने भी सिनेमा से जुड़ने का निर्णय लिया?

ऐसा नहीं है. हकीकत में फिल्मों से जुड़ने या अभिनय को करियर बनाने का मेरा कोई ईरादा नहीं था. मैंने तो कभी स्कूल कौलेज में भी किसी नाटक में अभिनय नहीं किया था. मैंने कभी कोई थिएटर नहीं किया. मेरा शौक तो एथलिट में था. मैं स्कूल के दिनों में स्प्रिंटर थी यानी कि दौड़ती थी. उसके बाद जब मैं कौलेज पहुंची, तो वहां एथलीट ग्रुप मिला नहीं. इसलिए वहां एथलीट से मेरी दूरी बन गयी. मुझे कभी कभी अफसोस होता है कि मैंने एथलीट को आगे क्यों नहीं बढ़ाया, जबकि दौड़ में मेरी टाइमिंग बहुत अच्छी थी. मैंने 100 और 200 मीटर में बहुत अच्छी टाइमिंग का रिकौर्ड बनाया था. वैसे भी कौलेज पहुंचने के बाद जिंदगी बदल जाती है. हम कौलेज की पढ़ाई व कोचिंग क्लास में इस कदर व्यस्त हो जाते हैं कि एथलीट की ट्रेनिंग या कोई और ट्रेनिंग लेने के बारे में सोचते ही नहीं हैं. मैं आज सोचती हूं कि यदि उस वक्त कौलेज में एथलीट का अच्छा ग्रुप होता या किसी ने मुझे सही सलाह दी होती, तो शायद एथलीट के क्षेत्र में मैं कुछ बेहतर कर रही होती. मेरे कहने का अर्थ यह है कि मेरी तकदीर ने मुझे अभिनेत्री बना दिया.

तो फिर अभिनय की शुरुआत कैसे हुई?

ईश्वर की मर्जी यही थी. मेरे पिता के संबंध बौलीवुड के साथ साथ दक्षिण भारत के कई कलाकारों से हैं. मैं खुद ममूटी व मोहनलाल की फिल्में देखते हुए बड़ी हुई हूं. एक दिन जब हम लोग ममूटी जी के साथ बैठे हुए थे, तो चर्चा चली कि ममूटी जी अपने बेटे दुलकेर सलमान के साथ फिल्म में लांच करने के लिए एक नयी अभिनेत्री की तलाश कर रहे हैं. अचानक उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें अभिनय करना चाहिए. फिर उन्होंने मेरा फोन नंबर फिल्म के निर्देशक को दिया. फिल्म के निर्देशक ने मुझसे बात की. मेरे लिए यह बहुत बड़ा अवसर था. मलयालम सिनेमा में ममूटी बहुत महान कलाकार हैं और उस वक्त तक उनके बेटे दुलकेर सलमान भी सुपर स्टार बन चुके थे. उनके साथ बड़े बजट की रोमांटिक फिल्म ‘‘पुलतम पोले’’ करने का अवसर मुझे मिला था. मैं भी इंकार नहीं कर पायी थी. मेरी पहली फिल्म ‘‘पुलतम पोले’’ की शूटिंग पूरी हुई, उस वक्त मेरी उम्र बीस साल की रही होगी. तो मैंने अपने आप से सवाल किया कि आखिर मुझे जिंदगी में करना क्या है? और मुझे जवाब मिला कि अब अभिनय को ही करियर बनाना चाहिए.

मलयालम में आपने कुल कितनी फिल्में की होंगी?

मैंने मलयालम में चार फिल्में की हैं, जिनमें से दो फिल्में तो बहुत छोटे बजट की हैं. एक फिल्म में मैंने बहुत छोटा सा किरदार निभाया, क्योंकि मुझे ममूटी जी के साथ काम करना था. मैं मोहनलाल सर के साथ भी काम करना चाहती हूं. पर अभी तक मुझे मौका नही मिला.

ममूटी के साथ काम करने के अनुभव क्या रहे? आपने उनसे क्या सीखा?

ममूटी इतने बड़े लिजेंड्री कलाकार हैं कि मेरी समझ में नही आता कि मैं कहां से शुरू करूं. वह अपने आप में अभिनय के स्कूल हैं. हम मुंबई में जरूर रहते आए हैं, पर हम लोग ममूटी और मोहनलाल की फिल्में जरूर देखते थे. ममूटी और मोहनलाल को मैं परदे पर देखते हुए ही बड़ी हुई हूं. उनके साथ कुछ समय बिताने के मकसद से ही उनकी फिल्म स्वीकार की. मैंने 10-15 दिन शूटिंग की थी. लेकिन ममूटी सर के साथ मेरे ज्यादा सीन नहीं थे.

लेकिन मैंने दुलकेर सलमान के साथ काम करके बहुत कुछ सीखा मैं आपको एक वाकिया बताना चाहूंगी. हम लोग शूटिंग के दौरान ही मेकअप रूम में खाना खा रहे थे. पता चला कि दुलकेर सलमान के तमाम प्रशंसक उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए बाहर खड़े हैं. केरला में दुलकेर का बहुत बड़ा क्रेज है. बडे फैन फौलोवर हैं. उनकी कोई बराबरी नहीं है. खाना खाते खाते अचानक दुलकेर ने खाना बीच में छोड़ दिया, हाथ धोए और बाहर जाकर अपने प्रशंसकों के साथ फोटो खिंचवायी, उसके बाद फिर आकर खाना खाया. मैंने उनसे कहा कि आप खाना खाने के बाद भी तो फोटो खिंचवाने जा सकते थे? इस पर उन्होंने कहा, ‘मैं आज स्टार हूं, पर मैं इसे ग्रांटेड नहीं ले सकता. मैं आज जो कुछ भी हूं, वह इन्हीं प्रशंसको की वजह से हूं. जो बाहर खड़े होकर मेरे खाना खाने का इंतजार कर रहे थे, मैं उन्हें इंतजार कैसे करवाता?’ तो यह एटीट्यूड है दुलकेर जी का. वह अभी भी जमीन पर हैं. उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है.

माजीद मजीदी की फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ किस तरह मिली?

हिंदी फिल्मों में अभिनय करने के मकसद से मैं कास्टिंग डायरेक्टर्स से मिल रही थी. औडीशन दे रही थी. जिन कास्टिंग  डायरेक्टर से मैं मिली, वह सभी मुझे पसंद कर रहे थे. सभी चाहते थे कि मुझे फिल्म मिल जाए. लेकिन आप भी जानते हैं कि बौलीवुड में फिल्में मिलने के लिए सही समय होना चाहिए. एक दिन मैं दोस्तों के साथ रात्रि भोज कर रही थी, तभी रात के करीबन 11 बजे हनी त्रेहान का मेरे पास फोन आया. मैं उनके नाम से परिचित थी, पर कभी मिली नहीं थी. उन्होंने तुरंत फोटो भेजने के लिए कहा……

उन्होंने मुझे किरदार के बारे में बताया. मुझसे कहा कि मैं अपने हिसाब से इस किरदार को इटरप्रिटेड करूं. मैं खुद तय करूं कि यह लड़की किस तरह के कपड़े पहनेगी, वह बालो की स्टाइल किस तरह की रखेगी और फिर उसी लुक में अपनी तस्वीर खींच कर भेजूं. मैंने फोटो भेजी. तुरंत फोन आया कि मजीदी सर मिलना चाहते हैं, फिर मजीदी सर ने अपने सामने फोटोशूट करवाया.

जब आपको पता था कि दीपिका पादुकोण व कंगना रनौत भी फिल्म का हिस्सा बनना चाहती हैं. तो आपके मन में क्या चल रहा था?

देखिए, मैं तो पहली बार हिंदी फिल्म करने वाली थी. तो मेरे लिए खुशी की बात थी कि ऐसी फिल्म के लिए कोशिश कर रही हूं, जिसके लिए इतने दिग्गज कलाकार कतार में हैं. ऐसे में यदि फिल्म नहीं भी मिलेगी, तो दुःख नहीं होना था. जब मुझे यह फिल्म मिली, तब मैंने सिर्फ इतना सोचा कि मुझे इतने बड़े निर्देशक के साथ काम करना ही था. मैं तो फिल्म मिलने के बाद बहुत खुश हुई थी.

तो क्या पहली हिंदी फिल्म मिल रही थी. इसलिए आपने बिना कुछ सोचे बियांड द क्लाउड्सके लिए हामी भर दी?

इस फिल्म को करने की एक नहीं कई वजहें रहीं. पहली वजह तो यह रही कि मुझे पहली हिंदी फिल्म मिल रही थी. दूसरी वजह थी कि मुझे मजीदी जी जैसे निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिल रहा था. तीसरी वजह यह रही कि मैं ऐसी फिल्म के साथ जुड़ रही थी, जिस फिल्म के साथ विशाल भारद्वाज, ए आर रहमान जैसे दिग्गज जुड़े हुए थे. चौथी वजह फिल्म की कहानी व मेरा किरदार रहा. माजीद मजीदी के साथ काम करने का मौका मिलना जीवन में एक बार ही हो सकता है. यह अवसर बार बार नही आ सकता. क्योंकि वह हर बार भारत आकर फिल्म बनाए, यह भी जरूरी नही था. यह टिपिकल बौलीवुड फिल्म भी नही है. मैं तो इसे एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म मानती हूं. मेरे लिए यह ‘वन इन ए लाइफ टाइम’ मौका रहा. बहुत ही स्ट्रांग किरदार है.

फिल्म बियांड द क्लाउड्स’’के किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

मैंने तारा का किरदार निभाया है. जो कि अनाथ लड़की है. उसका छोटा भाई अमीर है. दोनों अपनी दुनिया में व्यस्त हैं. भाई अमीर जुगाड़ करता रहता है. वह उम्र के ऐसे दौर पर है, जहां उसका मकसद जल्दी से जल्दी ज्यादा धन कमाना है. तारा आत्मनिर्भर है. पैसा कमाती है, काम करती है. किराए के घर में रहती है. यह पूरी तरह से मानवीय फिल्म है. फिर भाई बहन के रिश्ते की बात की गयी है. दोनों की अपनी अपनी यात्रा है. उनके सामने जो समस्याएं आती हैं, उनसे वह किस तरह से निपटते हैं, उसकी कहानी है.

भाई बहन के रिश्ते के अलावा भी कोई बात इस फिल्म में कही गयी है?

भाई बहन का रिश्ता तो फिल्म की कहानी की रीढ़ की हड्डी है. हम दोनों का दुनिया में एक दूसरे के अलावा कोई नही है. पर जब हम भाई बहन अलग हो जाते हैं, तो कैसे हम दूसरे परिवार के साथ जुड़ते है. कई बार ऐसी स्थिति होती है जब हम सोचते ही नही हैं कि किसी अन्य परिवार के साथ जुड़ सकते हैं. हम सोचते ही नही हैं कि हम किसी ऐसे परिवार के साथ जुड़ सकते हैं, जिसके साथ हमारा खून का रिश्ता ना हो. संजीदगी के साथ साथ कम्पेनियन की बात की गयी है. छोटी छोटी खुशियों की बात की गयी है.

मजीदी सर को हिंदी व अंग्रेजी दोनों नहीं आती. ऐसे में उनके निर्देशन में अभिनय करना कैसे संभव हुआ?

शुरुआत में बहुत कंफ्यूजन था. सेट पर अनुवादक था. मगर आप भी समझते हैं कि जब कोई वाक्य अनुवाद किया जाता है, तो उसका मूल रस बदल जाता है. उसकी संजीदगी व भावनाओं में फर्क आ ही जाता है. अहसास उभर कर नहीं आता. खैर, कुछ दिनों के बाद हम एक दूसरे की बातों को समझने लगे थे. मैंने मजीदी सर के इशारों को समझना शुरू कर दिया था. जब सीन खत्म होने पर मजीदी सर ‘कट’ बोलते थे, तो मैं उनका चेहरा देखती थी और चेहरा देखकर समझ जाती थी कि उन्हें सीन पसंद आया या नहीं. कई बार वह ‘वाह वाह’ करके हमारा हौसला भी बढ़ाते थे. मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि आप फिल्म देखकर महसूस करेंगे कि हिंदी भाषा न जानते हुए भी उन्होंने ऐसी फिल्म बनायी है कि हिंदी के प्रकांड पंडित भी नहीं बना सकते. हर कलाकार की परफार्मेंस जबरदस्त है.

आपको माजीद मजीदी की कौन सी बात पसंद है?

अनुशासित तरीके से काम करना बहुत पसंद आया. सेट पर टाइम पास करना उन्हें पसंद नहीं. सेट पर मोबाइल रखना उन्हें पसंद नहीं. मैं तो उनके वर्क कल्चर से प्रभावित हूं. वैसे वह फनलविंग इंसान हैं, पर सेट पर नहीं. बहुत विन्रम हैं. रिश्ते को बहुत अहमियत देते हैं. भारत में हम लोग गरीब और गरीबी को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. लेकिन सड़क पर किसी गरीब बच्चे को देखकर मजीदी सर का दिल पसीजता था. वह उस बच्चे से मिलते थे, उससे बातें करते थे. बहुत संजीदा इंसान हैं.

 

आपको उनकी कौन सी फिल्म पसंद है?

यूं तो मैंने उनकी सभी फिल्में देखी हैं. पर मुझे उनकी फिल्म ‘चिल्ड्रेन आफ हैवन’’ बहुत पसंद है. इस फिल्म की कहानी ही नहीं हर सीन बहुत लाजवाब है.

आपके अपने अनुभव क्या रहें?

-बहुत अच्छे अनुभव रहे.

इशान खट्टर के साथ काम करना कैसा रहा?

सच कहूं तो मैं उनके सामने बहुत नर्वस थी. उनकी यह पहली फिल्म थी, फिर भी वह बहुत ही ज्यादा आत्मविश्वास से भरे हुए थे और बहुत बेहतरीन काम कर रहे थे. शायद इसकी एक वजह यह भी रही कि मुझे तैयारी करने का मौका नही मिला. जिस दिन मेरा चयन हुआ उसके पांचवे दिन से मैंने शूटिंग करना शुरू कर दिया था. जबकि इशान का चयन शूटिंग शुरू होने के कई माह पहले ही हो गया था.

आप एथलीट रह चुकी हैं. उसका फायदा अभिनय करते समय मिलता है?

काफी मिलता है. एथलीट में हम सीखते हैं कि जीत हार होती रहती है. एथलीट में हम हारने के बाद निराश नहीं होते हैं, बल्कि अगली बार जीतने के लिए दोगुनी मेहनत से तैयारी करते हैं. हारने पर हम डिप्रेस होकर बैठते नहीं हैं. वहां दो खिलाड़ियों के बीच जलन नहीं होता, हां, प्रतिस्पर्धा जरूर होती है.

इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में किस तरह का रिस्पांस मिला?

हमारी फिल्म चार इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जा चुकी है. लंदन फिल्म फेस्टिवल में फिल्म का प्रीमियर हुआ था. टर्किश इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इशान को बेस्ट कलाकार का अवार्ड मिला. हर फेस्टिवल में बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. सभी ने हमारी परफार्मेस की तारीफ की. फिल्म ने लोगों के दिलों को छुआ. फिल्म काफी संजीदा है, जिसके चलते मैंने तमाम दर्शकों की आंखों से आंसुओं को बहते हुए देखा.

लंदन फिल्म फेस्टिवल में जब हमारी फिल्म दिखायी गयी, तो वहां ज्यादातर गैर भारतीय दर्शक थे. एक महिला हम लोगों से मिलने आयी, उसकी आंखें लाल थीं, जिससे यह आभास हो रहा था कि फिल्म देखते हुए वह रो चुकी हैं. उसने फिल्म और कलाकारों की परफार्मेस की तारीफ में काफी कुछ कहा. अंत में उसने मुझसे ही पूछा कि, ‘वह अभिनेत्री कहां हैं? जिसने तारा का किरदार निभाया है. ’जब निर्देशक ने मेरी तरफ इशारा किया. तो वह भौंचक्की सी रह गयी. उसे लग रहा था कि मैं फिल्म की क्रूर टीम की सदस्य हूं, अभिनेत्री नहीं. मेरे लिए यह बहुत बड़ा कम्पलीमेंट है.

फिल्म के किस दृष्य को करने में ज्यादा तकलीफ हुई?

फिल्म में एक दृष्य है, जहां मुझे गुस्से में दुःखी व असहाय भी दिखाना था. भाई के लिए जो प्यार है, वह भी उसमें आना था. पुरानी यादों में खोना भी था यानी कि उस एक सीन में कई सारे टोन थे, जिसे परदे पर निभाना मेरे लिए बहुत मुश्किल हुआ.

कुछ देर पहले आपने मैथड एक्टिंग की बात की? क्या इमोशनल और संजीदा दृष्यों को निभाने में मैथड एक्टिंग सहायक होती है?

सच कहूं तो मैथड एक्टिंग करना मेरे लिए ज्यादा आसान होता है. नेच्युरल एक्टिंग में उतना सहज नहीं हूं. हमें जो अलग अलग इमोशन परदे पर निभाने होते हैं, वह मेरे लिए कठिन होते हैं. हर सीन के पहले मैं कम से कम आधे घंटे तक अपने किरदार में खो जाती थी. क्योंकि किरदार को जो कुछ अहसास कराना है, हो सकता है कि उसे हमने अपनी जिंदगी में कभी अहसास ही ना किया हो. ऐसे में मैथड एक्टिंग का ही सहारा लेना पड़ता है. मसलन, मैं कभी जेल में रही ही नहीं और तारा को जेल में रहना पड़ता है. पर अब हमें इस दृष्य को इस तरह से निभाना था कि वह दर्शकों को कंविंसिंग नजर आए. हर इंसान के पास कुछ न कुछ इमोशनल बैक होता है, जिसका उपयोग कर हम कभी भी रो सकते हैं. उस इमोशन को हम किसी दूसरी सिच्युएशन में भी उपयोग कर सकते हैं.

आपके पिता ने फिल्म देखकर क्या कहा?

लंदन में फिल्म के प्रीमियर के वक्त मेरा पूरा परिवार मौजूद था. पर मेरे पिता बहुत कम बोलते हैं. उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा अच्छा काम किया है.

 

अब किस तरह की फिल्में करना चाहेंगी?

हर तरह की फिल्में करनी हैं. बशर्ते कि वह मुझे उत्साहित करें. मुझे हर निर्देशक के साथ काम करना हैं. इम्तियाज अली, विशाल भारद्वाज, मणिरत्नम, संजय लीला भंसाली जैसे उन निर्देशको के साथ मुझे काम करना है, जो कलाकार के अंदर की परफार्मेस को निकालते हैं. हर निर्देशक की फिल्म अलग होती है. इम्तियाज अली की फिल्म अलग होती है, तो विशाल भारद्वाज की फिल्म अलग होती है. सभी के जानर अलग हैं. और कलाकार के तौर पर हमें अलग अलग जानर में काम करना चाहिए. मुझे दोहराव पसंद नहीं है. एक बार नाच गाना कर लिया, तो दोबारा कुछ नहीं हो सकता. किसी भी कलाकार को स्टीरियो टाइप नहीं होना चाहिए. हालीवुड के कलाकार हर तरह के किरदार निभाते हैं. मैं तो कौमेडी, एक्शन, ड्रामा सब करना चाहूंगी.

आपने विदेशी फिल्में भी देखी हैं. तो आपको भारतीय व विदेशी फिल्मों में कलाकार के दृष्टिकोण से क्या फर्क नजर आता है?

कलाकार के दृष्टिकोण से जब मैं देखती हूं, तो मुझे लगता है कि विदेशी फिल्मों में अभिनय बहुत नेच्युरल होता है. वहां नाटकीयता बहुत कम होती है. जबकि भारतीय फिल्मों में ओवर ड्रामा होता है. कलाकारों के अभिनय में भी अति नाटकीयता होती है. पर धीरे धीरे अब भारतीय फिल्मों में भी बदलाव आ रहा है.

कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?

कर रही हूं, पर शूटिंग शुरू हो तब मैं बात करूंगी.

सोशल मीडिया पर कितना व्यस्त हैं?

सोशल मीडिया पर बहुत कम हूं. सोशल मीडिया पर अपने कमेंट लिखना बहुत बोर लगता है. इंटाग्राम में फोटो वगैरह डालती रहती हूं. मुझे समझ में नहीं आता कि हम पूरे दिन अपनी राय क्यों देते रहें?

क्या पढ़ना पसंद है?

मैं फिक्शन बहुत पढ़ती हूं. मुझे अरूंधती राय को पढ़ना बहुत पसंद हैं. मैं उनके लेखन से काफी प्रभावित हूं. मुझे उनका व्यक्तित्व भी पसंद है.

लिखने की इच्छा नहीं होती है?

नहीं! मुझे लगता है कि लिखना आसान नहीं हैं. मेरी राय में लिखना भी टैलेंट है. चुनौतीपूर्ण है. आप इस बात को ग्रांटेड नहीं ले सकते कि कोई कुछ भी लिख सकता है. पर भविष्य में मैं लिखना शुरू कर दूं, तो कह नहीं सकती. पर मुझे डाक्यूमेंट्री बनाना पसंद है.

तब तो आपने कुछ डाक्यूमेंट्री बनायी होंगी?

हां! मैंने फिल्म इक्यूपमेंट/उपकरण यानी कि कैमरा व एडीटिंग मशीन आदि के बदलते स्वरूप पर एक डाक्यूमेंट्री बनायी है. मसलन, पहले के जमाने में किस तरह के कैमरे से फिल्मों की शूटिंग होती थी. पहले एडीटिंग कैसे होती थी? कैंची से रील कट होती थी. तो पुराने जमाने के फिल्म इक्यूपमेंट के फायदे व नुकसान क्या थे? अब जब आधुनिक उपकरण आ गए हैं, तो उसके फायदे नुकसान क्या हैं? इस पर मैंने डाक्यूमेंट्री बनायी है. कौलेज में पढ़ाई के दौरान मैंने इस पर रिसर्च करके डाक्यूमेंट्री बनायी. मैं पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट भी गयी थी. इसी रिसर्च के लिए वहां हमें कई इक्वीपमेंट मिलें. कुछ लोगों से मैंने बात भी की.

आपके लिए रोमांस क्या मायने रखता है?

मेरा मानना हैं कि यह सब केमिस्ट्री पर निर्भर करता है. किसी एक को त्याग नहीं करना चाहिए. बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए. दोनों में समझदारी होनी चाहिए. दोनो को त्याग करना चाहिए.

गैर फिल्मी परिवार की जो लड़कियां बौलीवुड से जुड़ना चाहती हैं, उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगीं?

मैं कहना चाहूंगी कि वह इसे टाइम पास प्रोफेशन मानकर ना आए. वह अभिनय की ट्रेनिंग लेकर आए. यह सोच कर आएं कि उन्हें मेहनत करनी है और टिके रहना है. यह क्षेत्र शारीरिक व मानसिक दोनों ही तरह से बहुत कठिन है, तो आपको हर समस्या का सामना करने की तैयारी के साथ आना चाहिए.

आपकी पहली मलयालम फिल्म के हीरो दुलकेर सलमान भी बौलीवुड से जुड़े हैं?

यह महज एक संजोग है कि जब मैंने हिंदी सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया है, तो दुलकेर भी हिंदी सिनेमा में आ रहे हैं. वह मेरे पसंदीदा सह कलाकार हैं.

VIDEO : टेलर स्विफ्ट मेकअप लुक

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