नैनीताल के पास एक छोटा सा क़स्बा किच्छा है, वहां से निकल कर इंजिनीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद अभिनेता सौरभ गोयल मुंबई आये और काफी संघर्ष के बाद उन्हें छोटे-छोटे काम विज्ञापनों,टीवी शो और फिल्मों में मिलने लगे. दिल्ली पढाई करते हुए उन्होंने बैरीजोन एक्टिंग स्कूल और मुंबई में व्हिसलिंग वुड्स में ट्रेनिंग ली थी. करीब 10 साल की मेहनत के बाद उन्हें फीचर फिल्म ‘छोरी’ में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला और चर्चा में आये. फिल्म में उनके अभिनय की आलोचकों ने काफी प्रशंसा की और आगे उन्हें इसका फायदा मिल रहा है. ये फिल्म उनके जर्नी की माइलस्टोन साबित हुई है,हालाँकि अभी भी वे संघर्ष रत है, लेकिन धीरज की कमी उनमे नहीं है. वे हर बार एक अलग और चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाना चाहते है. उनसे बात करना रोचक था, पेश है, कुछ अंश.

सवाल बिना गॉडफादर के इंडस्ट्री में काम मिलना कितना कठिन था?

जवाब - मेरी कोई जान-पहचान नहीं है, यहाँ तक पहुँचने में मुझे 10 साल लग गए है. संघर्ष अभी भी जारी है, काम का संघर्ष रहता है, क्योंकि बाहर से आकर फिल्म हिट होने पर भी नया काम मिलने में समय लगता है. परिवारवाद से संपर्क रखने वालों को थोडा अधिक काम अवश्य मिलता है. नए कलाकार को आगे आने में समय लगता है, लेकिन एक या दो शो हिट होने पर उन्हें भी काम मिलता है. मेरे मेहनत का फल मुझे मिलने लगा है. बाहर से आने वालों के लिए संघर्ष अवश्य होता है. इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों को आज भी अच्छा नहीं माना जाता. लोग अपने बेटे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते है, आर्ट के क्षेत्र को तवज्जों नहीं दी जाती, लेकिन मेरे पेरेंट्स ने मुझे पढाई पूरी कर इस फील्ड में आने की सलाह दी. मुम्बई एक महंगा शहर है और इतने सालों से मैं यहाँ रह रहा हूँ. कहावत है कि यहाँ काम करना आसान है, लेकिन काम ढूँढना बहुत मुश्किल है. असल में काम ढूंढने की प्रोसेस बहुत कठिन है.

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