‘जनम’, ‘मदहोश’, ‘गुलाम’, ‘राज’, ‘आवारा पागल दीवाना’,  ‘फुटपाथ’, ‘एतबार’, ‘जुर्म’, ‘हंटेड थ्री डी’ व ‘1921’सहित लगभग 36 फिल्मों का निर्देशन कर चुके विक्रम भट्ट सिनेमा जगत में अक्सर नए नए प्रयोग करते रहे हैं. अब वह एक नया प्रयोग करते हुए वच्र्युअल प्रोडक्शन तकनीक की पहली फिल्म ‘‘ जुदा हो के भी’’ लेकर आए हैं. अक्षय ओबेराय, एंद्रिता रे व मेहेरझान मझदा के अभिनय से सजी फिल्म 15 जुलाई को सिनेमाघरों में पहॅुच रही है. .

प्रस्तुत है विक्रम भट्ट से एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

अपने अब तक के कैरियर में आपने सिनेमा में कई प्रयोग किए हैं. अब आप भारत की पहली वच्र्युअल फिल्म ‘‘जुदा हो के भी ’’लेकर आ रहे हैं. इस वच्र्युअल फार्मेट का ख्याल कैसे आया?

-वच्र्युअल फार्मेट कोविड काल के लॉक डाउन की देन है. जब लॉक डाउन हुआ, तो सब कुछ बंद हो गया. फिल्मों की शूटिंग भी एकदम बंद हो गयी. जैसे ही लॉक डाउन में थोड़ी सी ढील मिली, तब भी काफी मुश्किलें थीं. क्यांेकि कई तरह की बंदिशे थीं. आप डांसर का उपयोग नही कर सकते. रात में शूटिंग नही कर सकते. . वगैरह वगैरह. . . तो यह चिंता की बात थी. सब कुछ थोड़ा सा सामान्य हुआ कि तभी कोविड की दूसरी लहर आ गयी. सब कुछ अनिश्चितता की स्थिति थी. कोई कह रहा था कि कोविड के हालात अगले तीन वर्ष तक रहेंगंे. . कोई छह साल तक रहने का दावा कर रहा था. कोई कह रहा था कि यह तो कई वर्षों तक चलेगा. तो मैं और मेरे बॉस यानी कि महेश भट्ट साहब सोचने पर मजबूर हो गए कि यदि यही हालात रहेंगे, तो हम फिल्में कैसे बनाएंगे. तभी हमें वच्र्युअल फार्मेट के बारे में पता चला. इसमें हम अपनी मर्जी से अपनी दुनिया बना सकते हैं.  इसकी दुनिया भी हमारी रोजमर्रा की दुनिया जैसी ही लगती है. लेकिन उस दुनिया में आप अपने किरदारों@ कलाकारों को रखकर फिल्म बना सकते हैं. तो मुझे यह बहुत रोचक लगा. लेकिन इसके लिए मुझे काफी सीखना पड़ा. पहले मैने बेसिक कोर्स किया. फिर मैने लाइटिंग का कोर्स किया. फिर आर्किटेक्चर का कोर्स किया. फिर हमने इस फार्मेट को थोड़ा थोड़ा वेब सीरीज में उपयोग करके देखा कि हम इस तकनीक पर फिल्म बना सकते हैं अथवा नहीं. . . . वेब सीरीज में हमें मन माफिक परिणाम मिले. तब हमने सोचा कि अब हम पूरी फिल्म को ही ‘वच्र्युअल फार्मेट’ पर बनाएंगे. उसी का परिणाम है मेरी नई फिल्म ‘‘जुदा हो के भी’’.

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