आउटसाइडर होते हुए भी अपनी एक अलग पहचान बनाने में समर्थ होने वाले अभिनेता और मॉडल सिद्धार्थ मल्होत्रा दिल्ली के है. कई फिल्मों में काम करने के बावजूद उन्हें हर फिल्म की रिलीज पर आज भी एक टेस्ट देना पड़ता है और ये प्रेशर हमेशा इस कमतर हीरो यानि सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ रहता है. फिल्म चली, तो अगली फिल्म में काम आसानी से मिलती है, फिल्म नहीं चली, तो अगली फिल्म के लिए इन्जार करना पड़ता है, लेकिन सिद्धार्थ इसे एक सबक खुद को  सुधारने का मानते है. सिद्धार्थकी फिल्म ‘शेरशाह’ अमेजन प्राइम विडियो पर रिलीज हो चुकीहै, जिसमें उन्होंने कैप्टेन विक्रम बत्रा की भूमिका निभाई है. उनके अभिनय को काफी तारीफे मिल रही है और वे बेहद खुश है. उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर इस फिल्म को रिलीज कर उन सैनिकों को श्रद्धांजलि दी है,जो सीमा पर लड़ते हुए शहीद हो जाते है और देश के नागरिकों को किसी भी विपत्ति से सुरक्षित रखते है. सिद्धार्थ,एक सैनिक के रूप में इस कठिन परिस्थिति का अनुभव किया है. उनसे बात हुई , पेश है खास अंश

सवाल-सेना की इस भूमिका के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी?

इससे पहले मैंने सेना की जो भूमिका निभाई है, उससे ये काफी अलग है. फिल्म अय्यारी में मैंने आर्मी में राजनीति को दर्शाया था, लेकिन ये फिल्म कैप्टेन विक्रम बत्रा पर बनी बायोपिक है. उन्होंने कारगिल युद्ध, वर्ष 1999 मेंबहादुरी से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे. वे एक बहुत ही बहादुर सैनिक थे. इसके अलावा वे एक अच्छे दिल इंसान भी थे, जो भी उनसे थोड़ी देर के लिए मिलता था, हमेशा उन्हें याद रखते थे. इसे करने के लिए मुझे इंडियन सोल्जर की तकनिकी पहलूओं को समझना पड़ा. ये एक कठिन भूमिका थी, क्योंकि वे अब दुनिया में नहीं है और मुझे उनकी भूमिका निभानी है, इसलिए उनके परिवार वाले आहत न हो, इसका ध्यानरखना पड़ा. मैं जब उनके परिवार और उनके जुड़वाँ भाई विशाल बत्रा से मिला, तो पाया कि उनके लिए ये कोई कमर्शियल कहानी नहीं है. ये उनके घर की कहानी है, जो एक बेटे, भाई और प्रेमी की है. इसलिए एक इमोशनल प्रेशर था और अच्छा लगा कि उनके परिवार वालों को भी ये फिल्म पसंद आई है.

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सवाल-आपने पहली बार बायोपिक में काम किया, इससे आपने क्या ग्रहण किया?

ये एक बहुत ही उम्दा चरित्र है और उसे करने का मौका मिला, मैं गर्वित हूँ,क्योंकि उन्होंने केवल 24 साल की उम्र में शहीद हुए थे. इसके अलावा ये फिल्म केवल कैप्टेन विक्रम बत्रा के लिए ही नहीं, उन सभी सैनिको के लिए भी श्रध्दांजलि है, जिन्होंने सरहद पर लड़ते-लड़ते शहीद हुए. सैनिकों के अंदर साहस, जज्बा और देश की मिट्टी के प्रति प्रेम को देखकर मुझे भी अपने देश के प्रति गर्व महसूस हुआ.

सवाल-इस फिल्म को करते हुए अनुभव क्या थे?कितना चैलेंजिंग था?

मुझे इसे करने के लिए काफी चीजे अडॉप्ट करनी पड़ी, क्योंकि मैं उनसे काफी अलग हूँ. मुझे याद आता है कि जब मैं 12-14 हज़ार फीट पर शूटिंग कर रहा था, जो एक चोटी पर थी, जहाँ पूरी बटालियन में से कोई भी मिशन के बाद आहत नहीं हुआ था. मैं बहुत हैरान था, क्योंकि इतनी ऊँची चोटी पर थका हुआ इन्सान अपने सीनियर को ‘दिल मांगे मोर’ कैसे कह सकता है. उस समय डर उनसे काफी दूर था. मैं कैप्टेन बत्रा की हर मोमेंट को शूट कर उनका फैन बन चुका हूँ. डर हमेशा किसी भी काम को करने से रोकता है, जबकि कैप्टेन विक्रम बत्रा ने डर से आगे बढ़कर एक अच्छी सीख सबको दी है.

पूरी टीम कारगिल में करीब 45 दिन तक रही, इस दौरान शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दिया. सारे लोग जो आर्मी की भूमिका निभा रहे थे, वे भी साथ में थे, साथ में जिम करते थे. अंत में जब मैंने कैप्टेन विक्रम बत्रा शहीद हो रहे थे, वह भूमिका बहुत चैलेंजिंग थी. कारगिल में शूट करना आसान नहीं होता, वहां हवा तेज होती है, ऑक्सीजन कम होता है. फिल्म में हमें रिटेक मिलता है, जबकि ऐसी लड़ाइयों में नहीं मिलता. मैं अबसे पूरा जीवन इंडियन आर्मी की फैन बन चुका हूँ.

सवाल-कैप्टेन विक्रम बत्रा की लव स्टोरी को पर्दे पर लाने में कितनी मेहनत लगी?

बहुत ही मुश्किल था, क्योंकि डिम्पल चीमा और विक्रम बत्रा की लव स्टोरी बहुत प्यारी थी. डिम्पल को लगता है कि उनके प्यार के भरोसे वह पूरी जिंदगी सिंगल बिता लेंगी. उन्होंने शादी नहीं की, वह पहलू बहुत ही प्यारा, इन्नोसेंट पार्ट विक्रम बत्रा की जिंदगी का है. जिसे दिखाना आसान नहीं था, क्योंकि ये आम फिल्मों की प्रेम कहानी नहीं है. डिंपल और विक्रम की प्रेम कहानी सबके लिए बहुत ही प्रेरणादायक और क्लासिक है.

सवाल-15 अगस्त को हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, क्योंकि उस दिन देश आजाद हुआ था, ऐसे में आपके लिए आज़ादी का क्या है और आप खुद को कितना आज़ाद मानते है?

मेरे लिए ये 15 अगस्त कुछ अधिक स्पेशल है, क्योंकि इस 15 अगस्त को पूरी दुनिया को कैप्टेन विक्रम बत्रा की कहानी और बलिदान को देखें, ऐसे वीरों के लिए देशवासियों का सम्मान बढे. आज़ादी जिसे हम सब इतनी बड़ी डेमोक्रेटिक देश में एन्जॉय कर रहे है, वह 74 सालों से ऐसे ही सैनिकों के द्वारा सुरक्षित हो पाया है. ये सही है कि इस आज़ाद देश में इतने सारे भिन्न-भिन्न समुदाय के बीच में हर कोई संतुष्ट नहीं रह सकता, कुछ न कुछ समस्याएं आती रहती है, लेकिन ये सही है किबाहरी देशों में आवाज उठाना संभव नहीं होता. मुझे गर्व इस बात से है कि इतने सालों बाद भी आर्म्ड फोर्सेज बहादुरी के साथ अपनी ड्यूटी निभा रहे है. मेरा रेस्पेक्ट उनके लिए 100 गुना है. सभी देशवासियों के लिए मेरा सन्देश है कि वे इस बहुमूल्य आजादी को बचाएँ रखें और इसे खूब एन्जॉय करें.

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