Family Relationships: रोनित और नेहा 2 साल पहले शादी के पवित्र बंधन में बंधे थे. इस रिश्ते से न केवल वे दोनों खुश थे, बल्कि उन के परिवारजन भी प्रसन्न थे. कारण यह था कि वे एकदूसरे को तो पसंद करते ही थे, साथ ही दोनों परिवारों के अन्य सदस्य भी एकदूसरे का सम्मान करते थे. विशेषकर, अपनीअपनी सासूमां के साथ उन का अच्छा तालमेल था. आदर और सम्मान के साथसाथ उन में हंसीमजाक भी होता था.
दरअसल, जिस रिश्ते में अपनापन और दोस्ती का भाव होता है, वहां घर में प्रेम और सामंजस्य अपनेआप बढ़ जाता है. इन में सब से महत्त्वपूर्ण रिश्ता उभर कर सामने आता है, पत्नी और पति की मां का.
सास है, हिटलर नहीं
अकसर कुछ लड़कियां पति की मां का नाम सुनते ही माथा पकड़ लेती हैं, क्योंकि उन के मन में सास की छवि हिटलर जैसी बनी होती है. लेकिन यह उचित नहीं है. पति की मां को जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानना चाहिए. उन्हें सम्मान देना और उन की राय का आदर करना रिश्ते की नींव को मजबूत करता है. यह रिश्ता बहू को ससुराल में भी मायके जैसी सहजता का अनुभव कराता है. बातचीत में विनम्रता और अपनापन होगा तो यह रिश्ता गहरी दोस्ती जैसा बन जाएगा.
जरूरी है कि समयसमय पर उन की सेहत, पसंद और अनुभवों के बारे में उन से बात करें. इस से उन्हें महसूस होगा कि आप उन्हें दिल से मानते हैं. घर के छोटेछोटे कामों में उन की मदद करना या किसी नए कार्य में उन की राय लेना, त्योहारों और पारिवारिक अवसरों पर उन के साथ समय बिताना, ये सब रिश्ते में मिठास घोलते हैं.
ऐसे बनाएं दोस्त
यदि उन्हें किसी चीज (जैसे भोजन, संगीत या पार्टी) में विशेष रुचि है, तो उस में दिलचस्पी दिखाने से आप जल्दी जुड़ सकती हैं. कभीकभी उन के साथ शौपिंग पर जाना और इसे पर्सनल डेट का नाम देना भी रिश्ते को और गहरा बना देता है.
छोटेछोटे कदम रिश्ते को गहराई देते हैं. यह भी सच है कि हर रिश्ता हमेशा सहज और प्रेमपूर्ण नहीं रहता. कभीकभी टकराव भी आ सकता है. लेकिन विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और सम्मान बनाए रखना चाहिए. इस से रिश्ते में कड़वाहट नहीं आती और रिश्ता औपचारिकता से ऊपर उठ कर दोस्ती और परिवार का मजबूत बंधन बन जाता है.
अब यदि बात पत्नी की मां यानि अपनी सास की करें, तो उन्हें भी मां की तरह सम्मान और अपनापन देना चाहिए. भारतीय संस्कृति में दामाद को बेटे का दरजा दिया जाता है. अकसर परिवार के कार्यों में दामाद की राय ली जाती है, जिस से उसे घर का हिस्सा होने का अनुभव होता है. ऐसे में दामाद का भी कर्तव्य है कि वह बेटे की तरह जिम्मेदारी निभाए. उन से सलाह लेना, उन की बात ध्यान से सुनना और उन की पसंदनापसंद का खयाल रखना रिश्ते को मजबूत बनाता है. समयसमय पर उन की सेहत और आराम के बारे में पूछना, उन से बातचीत करना उन्हें अपनापन महसूस कराता है.
कभीकभी उन्हें सरप्राइज देना भी रिश्ते में मिठास घोलता है. उन के साथ बैठ कर हंसीमजाक करना, पुराने किस्से सुनना या किसी पारिवारिक यात्रा पर उन्हें साथ ले जाना, यह सब उन्हें यह एहसास कराता है कि वे केवल ससुराल का हिस्सा नहीं बल्कि बेटे के समान रिश्ते में हैं.
ध्यान रखने योग्य बातें