कुछ दिनों पहले चर्चा में आई केरल की एक मासिक पत्रिका के कवर पेज पर एक महिला अपने बच्चे को स्तनपान कराते हुए नजर आती है, जिसमें ना वह अपने स्तन को आंचल से ढकी है ना ही पीठ पीछे करके बैठी है. अपना स्तन दिखाने में शर्म आने के बजाय उसके चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कुराहट है. इसका उद्देश्य था सार्वजनिक जगहों पर स्तनपान कराने में महिलाओं को होने वाली दुविधा से सम्बंधित चर्चा कराना. पत्रिका में उससे सम्बंधित लेख भी थे. चर्चा तो हुई... लेकिन फिजूल के विषय पर. मासिक पत्रिका हो या कहीं और, कभी कोई स्त्री के इस तरह से अपने शरीर का प्रदर्शन करना भारत जैसे रुढ़िवादी देश में पचाना मुश्किल है, क्योंकि ‘न्यूड’ यानी नग्न शब्द का उच्चारण मात्र से ही बहुत लोगों के मन में अश्लील भावना आ जाती है, लेकिन अश्लीलता के अलावा नग्नता का एक दूसरा पहलू भी है, जिसे कला कहते हैं. यह कला जिसे दिखती है वो कलाकार होता है. नग्नता में छुपी कला को सही मायने में बताने में रवि जाधव निर्देशित फिल्म ‘न्यूड’ एक बेहद ही अनोखी कलाकृति के रूप में सफल साबित होती है.

फिल्म में पति की निष्क्रियता और उसके विवाहेत्तर संबंधों से तंग आ चुकी यमुना (कल्याणी मुले) एक दिन गांव छोड़कर बेटे लहान्या (मदन देवधर) के साथ मुंबई में अपनी मौसी चंद्राक्का (छाया कदम) के पास आती है. चंद्राक्का एक बिंदास और निडर औरत है. वह यमुना को भी अपने जैसा ढीठ बनाती है. लेकिन वो क्या काम करती है किसी को भी नहीं बताती है. यमुना यहां-वहां काम ढूंढती है, क्योंकि वह चंद्राक्का पर बोझ नहीं बनना चाहती है. जब कहीं काम नहीं मिलता है तो चंद्राक्का का पीछा करते हुए उसके काम का पता लगाने का प्रयास करती है. इस दौरान जो पता चलता है वह उसके लिए बहुत ही धक्कादायक और शर्मिंदगी भरा होता है. सर जे.जे. कला कौलेज में चंद्राक्का निर्वस्त्र बैठी हुई होती है और कुछ पुरुष उसका चित्र बना रहे होते हैं. घर आने पर यमुना चंद्राक्का से इस बारे में पूछती है, जब उसे पता चलता है कि घर चलाने के लिए यह काम करने में चंद्राक्का को बिलकुल शर्म नहीं आती है. साथ ही पैसे भी अच्छे मिलते है. चंद्राक्का लहान्या की पढ़ाई लिखाई के लिए यमुना को भी यही काम करने की सलाह देती है. लहान्या के लिए यमुना अपने मन पर पत्थर रखकर इस काम के लिए तैयार होती है. लेकिन इस सच से लहान्या और समाज को दूर रखती है. कौलेज में वह स्वयं को साफ सफाई का काम करते हुए दिखाती है. बेटे को एक बड़ा चित्रकार बनाने के लिए कौलेज में घंटों निर्वस्त्र बैठती है लेकिन कौलेज के बाहर भी विद्यार्थियों के लिए पर पोज देने जाती है. इस पुरे समय में जयराम (ओम भुतकर) नाम का एक विद्यार्थी हमेशा उसके साथ रहता है. वह उसका बहुत अपनेपन से ख्याल रखता है. बेटे की पढाई के लिए निर्वस्त्र होकर कला की सेवा करने वाली इस मां के आंचल में अंत में जो आता है उसे देखकर आंखों में आसूं आ जाएंगे.

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