कुछ लोगों को अपनी पुरानी वस्तुएं सहेज कर रखने की आदत होती है. ऊपर से वस्तु खानदानी हो तो उससे एक अलग तरह की भावना जुड़ जाती है. ऐसे में यदि किसी ने उस वस्तु को छिन लिया तो उससे जान से भी ज्यादा प्यार करने वाला व्यक्ति व्यथित हो जाता है. ऐसा ही होता है प्रकाश कुंटे द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सायकल’ के नायक केशव के साथ...

फिल्म की कहानी केशव (हृषिकेश जोशी) और उसकी ‘सायकल’ के इर्द-गिर्द घुमती है. दरअसल, केशव के दादा एक ज्योतिषी थे. उन्होंने अपनी ज्योतिष विद्या के साथ केशव को एक सायकल विरासत में सौंपी थी. केशव उस सायकल को किसी को भी हाथ लगाने नहीं देता है. जहां भी जाता है, साथ लेकर जाता है. हर किसी की मदद करना केशव का स्वभाव होता है. इसलिए आसपास के गांवों में केशव और उसकी ‘सायकल’ की जोड़ी काफी चर्चित रहती है. लेकिन एक दिन सायकल चोरी हो जाती है और केशव निराश हो जाता है. गज्या (प्रियदर्शन जाधव) और मंग्या (भाऊ कदम) नाम के दो चोरों को गांववाले सायकल चलाते हुए देखते हैं और पहचान जाते हैं कि वह सायकल केशव की है. लेकिन उन्हें आश्चर्य होता है कि केशव ने अपनी सायकल इन्हें कैसे दी. गज्या और मंग्या गांववालों को अपनी पहचान केशव के चचेरे भाई के तौर पर बताते हैं. इसलिए केशव को चाहने वाले लोग उनका आदर सत्कार करते हैं और रहने के लिए जगह देते हैं. यह देखकर दोनों के मन में अपराध भावना जाग जाती है कि दूसरे के पुण्य पर उन्हें आदर मिल रहा है. इसी दौरान उनके चोरी किये गए समान से भगवान की मूर्ति खो जाती है, जिससे उन्हें लगता है कि भगवान उनसे नाराज हो गए हैं और सजा दे रहे हैं. इस विचार के साथ वे सायकल वापस करने का निर्णय लेते हैं. सायकल के साथ एक पत्र भी देते है जिसमें दोनों ने सायकल के साथ अपना अनुभव लिखा होता है. केशव को उसकी सायकल मिल जाती है, लेकिन तब तक वह समझ गया रहता है कि एक निर्जीव वस्तु से इतना लगाव होना ठीक बात नहीं है और यही फिल्म का सन्देश है.

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