हिंदी फिल्ममेकर्स के लिए बिहार और वहां की राजनीति हमेशा से एक पसंदीदा विषय रहा है. बिहार पर यूं तो कई फिल्में बनी हैं, मगर चंद फिल्में सच्चाई और हालातों के इतने करीब लगती हैं कि आपके दिल को छू जाती हैं. चलिए आपको बताते हैं बिहार पर बनी सात सबसे अच्छी फिल्मों के बारे में जिन्होंने नैशनल फिल्म अवॉर्ड में भी अपना झंडा गाड़ दिया.

तीसरी कसम

बासु भट्टाचार्य की 1966 में आयी तीसरी कसम बिहार के ग्रामीण जीवन को बहुत साफ और सीधे तरीके से दिखाती है. फिल्म हिंदी के उपन्यासकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की शॉर्ट स्टोरी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित है. फिल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान का शानदार अभिनय देखने को मिलता है. फिल्म में बैल गाड़ी चलाने वाले राजकपूर को नौटंकी में नाचने वाली वहीदा रहमान से प्यार हो जाता है. इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नैशनल फिल्म अवॉर्ड से नवाजा गया था.

दामूल

प्रकाश झा की 1985 में आयी दामूल गया के रहने वाले शैवाल की कालसूत्र कहानी पर आधारित है. फिल्म में अनु कूपर, दीप्ति नवल और श्रीला मजूमदार का शानदार अभिनय देखने को मिलता है. फिल्म बंधुआ मजदूर की कहानी कहती है जो अपनी मौत तक अपने मालिक का काम करने के लिए मजबूर है. 1984 के बिहार को दिखाती इस फिल्म में जाती की राजनीति और निचली जाती के उत्पीड़न को मार्किक तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म में बिहार से बड़ी मात्रा में होने वाले माइग्रेशन के मुद्दे को भी जोरदार ढंग से दिखाया गया है. प्रकाश झा की इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.

शूल

अगर आप मनोज बाजपेयी के फैन हैं तो ये फिल्म आपने जरूर देखी होगी. 1999 में आयी इस फिल्म को ई. निवास ने डायरेक्ट किया था. राम गोपाल वर्मा फिल्म के लेखक और प्रोड्यूस थे. फिल्म में बिहार की राजनीति के अपराधीकरण को शानदार तरीके से दिखाया गया. मनोज बाजपेयी ने एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाया था. फिल्म के विलेन बने सैयाजी शिंदे जब भी स्क्रीन पर आते हैं छा जाते हैं. इस फिल्म के बारे में एक खास बात यह भी है कि इस फिल्म के क्लाइमेक्स की शूटिंग हैदराबाद के विधान सभा भवन में की गई. इस फिल्म को हिंदी में बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है.

गंगाजल

2003 में आयी निर्देशक प्रकाश झा की गंगाजल बिहार में पुलिस और अपराध की मिलीभगत और गंदी राजनीति को बेहतरीन तरीके से दिखाती है. फिल्म में अजय देवगन ने एक ईमानदार और गंभीर एसपी का किरदार शानदार तरीके से निभाया है. भागलपुर में कैदियों की आंख फोड़ने की सच्ची घटना से प्रेरित इस फिल्म में अजय के अलावा मुकेश तिवारी, मोहन जोशी, यशपाल शर्मा और अखिलेंद्र मिश्रा जैसे कई अभिनेताओं का शानदार अभिनय देखने को मिलता है. गंगाजल को सामाजिक मुद्दे पर बनी बेस्ट फिल्म के नैशनल फिल्म अवॉर्ड से नवाजा गया था.

अपहरण

2005 में आयी प्रकाश की अपहरण में अजय देवगन और नाना पाटेकर की शानदार केमिस्ट्री देखने को मिलती है. नाना पाटेकर जहां एक बाहुबली विधायक के किरदार में हैं तो वहीं अजय देवगन एक बेरोजगार युवक का किरदार निभाया जो देखते ही देखते अपहरण की दुनिया का सरताज बन जाता है.

फिल्म में बिहार में बड़े पैमाने पर होने वाली अपहरण की घटनाओं और राजनेताओं से उनके संबंध को जोरदार तरीके से दिखाया गया है. एक आदर्शवादी पिता के विचारधाराओं के बीच जूझते बेरोजगार बेटे का किरदार अजय ने शानदार तरीके से निभाया है. हमेशा की तरह नाना पाटेकर का अभिनय दमदार है. फिल्म को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.

अंतरद्वंद

2010 में आयी अंतरद्वंद, बिहार में होने वाली दूल्हों की किडनैपिंग पर बनी एक शानदार फिल्म है. हालांकि फिल्म को कमर्शियल सक्सेस बहुत ज्यादा नहीं मिली लेकिन एक खास दर्शक वर्ग ने इस फिल्म को जमकर सराहा. इस फिल्म का निर्देशन सुशील राजपाल ने किया और राज सिंह चौधरी व स्वाति सेन ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं. इसके अलावा फिल्म में विनय पाठक और अखिलेंद्र मिश्रा की दमदार एक्टिंग देखने को मिलती है. इस फिल्म को सामाजिक मुद्दे पर बनी फिल्म का नैशनल फिल्म अवॉर्ड मिला.

गैंग्स ऑफ वासेपुर

गैग्स ऑफ वासेपुर शायद झारखंड (तत्कालीन बिहार) पर बनी सबसे चर्चित फिल्मों में से एक है. अनुराग कश्यप का शानदार निर्देशन और मनोज बाजपेयी और नवाजुद्दीन सिद्दकी के बेमिसाल अभिनय वाली इस फिल्म को उसके डायलॉग के लिए लोग खूब याद करते हैं. झारखंड (तत्कालीन बिहार) के धनबाद में फैले कोल माफिया के इर्द-गिर्द घूमती ये फिल्म दो परिवारों की खानदानी दुश्मनी को शानदार तरीके से दिखाती है. फिल्म के पहले भाग में जहां मनोज बाजपेयी और तिग्मांशु धूलिया छाए हुए हैं तो वहीं दूसरा पार्ट नवाजुद्दीन सिद्दीकी के नाम है. फिल्म की जान हैं इस फिल्म के सपोर्टिंग कलाकार जो आपको ऐसा सिनेमा दिखाते हैं जिसे भारत में इससे पहले नहीं देखा गया था. इस फिल्म को बेस्ट ऑडियोग्राफी (पहले पार्ट के लिए) का नैशनल फिल्म अवॉर्ड और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड से नवाजा गया.

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