‘‘सिटीलाइट्स’’, ‘‘शाहिद’’ और ‘‘अलीगढ़’’ जैसी विचारवान, संजीदा फिल्मों के सर्जक हंसल मेहता इस बार फिल्म ‘‘सिमरन’’ लेकर आए हैं, मगर ‘सिमरन’ देखकर कहीं से भी यह आभास नहीं होता कि इसके सर्जक हंसल मेहता हैं. यूं तो कहा जाता रहा है कि यह किसी सत्य कथा से प्रेरित फिल्म है, मगर फिल्म ‘‘सिमरन’’ में सब कुछ अति बनावटी, अस्वाभाविक और बेसिर पैर की कहानी है. फिल्म में जितना कमजोर अमरीकन पुलिस को दिखाया गया है, उतना हमने कभी सुना ही नहीं. फिल्म में प्रफुल पटेल (कंगना रानौट) के लिए अमरीका में बैंक में चोरी करना बच्चों के खेल की तरह है और अमरीकन पुलिस उसका बाल भी बांका नहीं कर पाती.
फिल्म की कहानी गुजराती व बिंदास किस्म की महिला प्रफुल पटेल (कंगना रानौट) के इर्द गिर्द घूमती है, जो कि अमरीका में अपने माता पिता के साथ रहती है. उसकी शादी होती है, पर वह टिकती नहीं. उसका तलाक हो जाता है. माता पिता से भी उसकी नहीं बनती है और वह अमरीका में अपना मकान लेना चाहती है. वह एक होटल में हाउस कीपर के रूप में काम करती है.
एक दिन वह अपनी सहेली के साथ लास वेगास जाती है. वहां कैसिनो में जुआ खेलती है. वह पहली बार जीतती है, उसके बाद वह अपना सारा पैसा हार जाती है. फिर कैसिनो के मालिक व अन्य लोगों से कर्ज लेकर जुआ खेलती है और यह धन भी वह हार जाती है. अब वह पचास हजार डालर का उधार चुकाने के लिए लूटपाट व चोरी करना शुरू करती है. फिर एक बैंक में लिपस्टिक से कागज पर यह लिखकर बैंक लूटती है कि उसके पास बम है. यह सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं लेता. इस बीच उसके घर वाले एक लड़के से उसका रिश्ता भी करवाना चाहते हैं. तो वहीं वह सिमरन के नाम से एक बैंक में कर्ज लेने जाती है. फिर उधार देने वाले की सलाह पर वह बैंक में चारी करने जाती है. फिर पुलिस उसके पीछे पड़ जाती है. दस माह की सजा होती है, पर अच्छे चाल चलन के चलते जल्दी जेल से छूट जाती है.
प्लाट रोमांचक है, मगर घटनाक्रम पूरी तरह से हास्य से भरे हुए हैं. इंटरवल से पहले कहानी उम्मीद जगाती है, मगर धीरे धीरे पूरी कहानी भटकती जाती है. इंटरवल के बाद तो सब कुछ बनावटी हो जाता है. फिल्म का क्लायमेक्स तो अतिहास्यास्पद है. फिल्म देखते समय दिमाग में सवाल उठता है कि क्या अमरीका में बैंकों के अंदर सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं होता. क्या अमरीकी पुलिस, भारतीय पुलिस से भी ज्यादा कमजोर है? फिल्म में कुछ दृश्य जबरन ठूंसे गए हैं. बेसिर पैर की इस रोमांचक फिल्म का पार्श्व संगीत भी घटिया है. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावहीन है. फिल्म के ज्यदातर संवाद अंग्रेजी भाषा में हैं, इसलिए सिंगल थिएटर के दर्शक तो इस फिल्म से खुद को दूर ही रखना चाहेंगे, जबकि मल्टीप्लैक्स का दर्शक फिल्म देखना चाहेगा, पर मल्टीप्लैक्स का दर्शक भी कितना साथ देगा, यह कहना मुश्किल है. कम से कम भारतीय लड़कियां तो सिमरन उर्फ प्रफुल पटेल के साथ रिलेट नहीं कर पाएंगी.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो कंगना रानौट ने बेहतरीन परफार्मेंस दी है, मगर उनके अभिनय का फिल्म की कहानी व पटकथा आदि से कोई संबंध नहीं बन पाता. फिल्म में प्रफुल पटेल के पति बनने के लिए उनके प्रेमी की तरह आगे पीछे मंडरा रहे सोहम शाह ने बहुत ही स्तरहीन अभिनय किया है.
दो घंटे चार मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘सिमरन’’ का निर्माण भूषण कुमार, किशन कुमार, शैलेश आर सिंह और अमित अग्रवाल ने किया है. निर्देशक हंसल मेहता, संगीतकार सचिन जिगर तथा कलाकार हैं- कंगना रानौत, मार्क जस्टिस, सोहम शाह, इशा तिवारी पांडे, हितेन कुमार, अनीशा जोशी व अन्य.