फिल्म इंडस्ट्री में 12 साल बिता चुकी अभिनेत्री विद्या बालन अपने बेहतरीन अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका फिल्मी सफर काफी अच्छा रहा. इतना ही नहीं, उन्होंने कई फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाकर यह सिद्ध कर दिया कि हिंदी सिनेमा केवल अभिनेता के दम पर ही नहीं चलती, बल्कि अभिनेत्रियां भी फिल्मों को सफल बना सकती हैं, जिसमें उनकी फिल्म ‘परिणीता’, ‘कहानी’, ‘द डर्टी पिक्चर’, ‘भूल भुलैया’ आदि है.

इन फिल्मों में उनके अभिनय को सभी ने सराहा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी फिल्में ‘बौबी जासूस’, ‘कहानी 2’, ‘बेगम जान’ आदि कई फिल्में बौक्स औफिस पर सफल होने में असमर्थ रही. विद्या इसे लेकर अधिक चिंता नहीं करती और इसे एक खराब दौर मानती हैं, जो समय के साथ निकल जायेगा. विद्या केवल अभिनय ही नहीं, सामाजिक कार्य में भी रूचि रखती हैं, जिसे करना वह अपना फर्ज मानती हैं. हंसमुख और स्पष्टभाषी विद्या से बात करना रोचक था, पेश है अंश.

‘तुम्हारी सुलू’ फिल्म में काम करने की वजह क्या थी?

इस फिल्म की कहानी अब तक की मेरी फिल्मों से अलग है. इसमें एक साधारण महिला कैसे अपने सपनों को पूरा करती है, उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. इसमें मैंने रेडियो जौकी की भूमिका निभाई है.

घर-परिवार सम्भालने वाली महिलाओं में ये धारणा होती है कि वे कामकाजी महिलाओं की तुलना में कमतर हैं, आप इस बात से कितनी सहमत हैं?

मेरी जब शादी हुई थी, तो सभी ने मुझसे पूछा था कि मैं परिवार के साथ काम को कैसे सम्भालती हूं. ये सही है कि कुछ महिलाओं के पास आप्शन नहीं होता है कि वे परिवार के साथ काम करें, क्योंकि ऐसा करने के लिए अच्छी सपोर्ट सिस्टम होना जरूरी होता है. मुझे घर का कोई काम करना नहीं पड़ता. ऐसे में मैं भले ही घर से दूर रहूं, लेकिन घर पर कहां क्या हो रहा है, उसकी पूरी जानकारी रखती हूं.

मुझे याद आता है जब मैं चौथी कक्षा में थी, तो मेरी एक अध्यापिका ने कही थी कि मेरी मां हर रोज खाना पकाकर, खिलाकर मुझे स्कूल भेजती है और मेरे पिता बिना चिंता के औफिस जाते हैं. ऐसे में मुझे मां को थैंक्स कहना चाहिए. मैंने जब मां को थैंक्स कही तो वह चकित हो गयी थी. मैं मध्यम वर्गीय परिवार से हूं, जहां मैंने देखा है कि मां हमेशा हमारे बारे में सेचती थी. पैसे की अहमियत, किसी से प्यार करना, किसी से हमदर्दी रखना ये सब मैंने अपनी मां से सीखा है. जिन लोगों ने पहले हमारे घर पर काम किया हो या अभी कर रहे हैं उनके बारे में मां आज भी सोचती हैं, उनकी मदद करती है.

मेरे हिसाब से कोई भी महिला अगर परिवार के साथ काम काजी है, तो पति का साथ पूरी तरह से उसे मिलनी चाहिए. तभी उसे काम करने में अच्छा लगेगा.

आपकी पिछली कुछ फिल्में सफल नहीं रही, इस बारे में क्या कहना चाहती हैं?

ये बताना बहुत मुश्किल होता है कि फिल्म चली क्यों नहीं. मैं हर फिल्म में अपनी पूरी कमिटमेंट देती हूं. कई बार कहानी अच्छी होने पर और बड़ी कलाकार को लेकर निर्देशक ढीले पड़ जाते हैं. उन्हें लगता है कि सफल एक्ट्रेस है, तो फिल्म चलेगी ही, जबकि ऐसा नहीं होता. इसके अलावा कहानी जो कही जाती है वह दर्शकों तक सही तरह से पहुंच नहीं पाती और फिल्म ‘हिट’ नहीं हो पाती, लेकिन मैं इससे मायूस नहीं होती.

आप हमेशा हंसमुख स्वभाव की दिखती हैं, क्या कभी किसी बात से गुस्सा आया?

मैं मुस्कुराना पसंद करती हूं. गुस्सा नहीं आता और निराश नहीं होती. मुझे लगता है कि कोई भी बात इतनी बड़ी नहीं हो सकती, जितना लोग सोचते हैं. अगर कोई मुश्किल घड़ी आती भी है तो वह कुछ दिनों बाद अपने आप ही निकल जाती है.

सिद्दार्थ के साथ आपकी जिंदगी कैसी चल रही है? क्या परिवार बढ़ाने की कोई इच्छा है?

सिद्दार्थ के साथ मेरी जिंदगी अच्छी चल रही है. एक छत के नीचे कैसे दो लोग रहते हैं, वह समझ में आया है. अभी हम दोनों और हमारे परिवार इस जिंदगी से खुश हैं. अभी परिवार के बारे में सोचा नहीं है.

आप हमेशा अलग-अलग साड़ियों में दिखती हैं, क्या आप को साड़ियां ही अधिक पसंद है?

साड़ियों की इतनी वैरायटी हमारे देश में है कि मैं कितना भी पहनूं, नयी-नयी साड़ियां मुझे मिलती ही जाएगी. असल में मुझे हर जगह गिफ्ट में साड़ियां ही मिलती है. कांजीवरम की साड़ियां मुझे खास पसंद है.

सामाजिक कार्य की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ?

मुझे सामाजिक कार्य करना हमेशा से पसंद है, फिर चाहे खुले में शौच न करने के बारे कहना, लड़कियों की शिक्षा पूरी करने के बारे में जागरूकता फैलाना, ऐसे किसी भी विषय पर मुझे बात करना पसंद है. ये मुझे अपने परिवार से ही मिला है, जहां हर किसी का ध्यान रखना बचपन से मैंने सीखा है.  

क्या कोई सपना रह गया है, जिसे आप पूरा करना चाहती हैं?

मैंने बचपन से ही अभिनेत्री बनना चाहा और वह सपना पूरा हो गया है, अब कोई मलाल नहीं है.

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