निर्माता: प्रकाश झा प्रोडक्शन

लेखक व निर्देशक: प्रकाश झा

कलाकार: आदिल हुसैन, प्रियंका बोस, शुभम झा, संजय सुरी, सीमा सिंह व अन्य.

ओटीटी प्लेटफॉर्म: जी 5

अवधि: एक घंटा 42 मिनट

रेटिंग: साढ़े तीन स्टार

इस फिल्म में प्रकाश झा ने शिक्षा पद्धति पर कुठाराघात करने और  प्रतिदिन महंगी होती शिक्षा के साथ-साथ समाज के तथाकथित समाज सुधारकों पर भी कटाक्ष किया है.

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कहानी:

सत्य घटनाक्रम पर आधारित यह कहानी बिहार के एक रिक्शा चालक बच्चू पासवान (आदिल हुसैन) की है, जो कि रांची की अंबेडकर नगर बस्ती में रहता है. और रांची के अंग्रेजी भाषा स्कूल “सफायर इंटरनेशनल” के बच्चों को अपने रिक्शे में बैठाकर स्कूल छोड़ने  और शाम को उनके घर पहुंचाने का काम करता है. उसका अपना बेटा बुलबुल( शुभम झा )सरकारी स्कूल में हिंदी माध्यम में पड़ता है. जबकि उसकी पत्नी राधिका( प्रियंका बोस) एक स्टील बरतन की फैक्ट्री में बफिंग का काम करती है .सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती. अक्सर शिक्षक गायब रहते हैं .अपने बेटे बुलबुल को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए बच्चू पासवान “सफायर इंटरनेशनल स्कूल” की प्रिंसिपल( सीमा सिंह) से बात करके प्रवेश दिलाता है .बुलबुल की प्रवेश परीक्षा में बुलबुल की मेधावी प्रतिभा से स्कूल के शिक्षक प्रभावित होते हैं. स्कूल की लंबी चौड़ी फीस, ट्यूशन फीस और स्कूल की पोशाक आदि के खर्च को महज रिक्शा चलाकर पूरा करना बच्चू के लिए मुश्किल हो जाता है . इसलिए वह छोटी-मोटी चोरियां करने लगता है.

एक दिन चोरी करते हुए बच्चू पासवान पकड़ा जाता है. पर वह अपने बेटे बुलबुल की जिंदगी को संवारने के लिए पुलिस के सामने जुबान नहीं खोलता है. अपना नाम तक नहीं बताता है .मामला रांची के एसएसपी कैलाश आनंद (संजय सुरी) तक पहुंचता है. एसएसपी को बच्चू की जेब से बुलबुल के बारे में पता चलता है. वह बुलबुल के स्कूल में जाकर बुलबुल के बारे में जानकारी लेकर  परेशान हो जाते हैं. क्योंकि स्कूल की प्रिंसिपल बताती हैं कि बुलबुल स्कूल का मेधावी छात्र है और उसके पिता बच्चू एक रिक्शा चालक हैं. अब एसएसपी, बुलबुल की मदद करने का सोचते हैं .वह अंबेडकर नगर बस्ती में जाकर बुलबुल व उसके साथियों को पढ़ाना शुरू करते हैं. यह बात स्थानीय विधायक को पसंद नहीं आती है. इस बीच बुलबुल के पिता बच्चू को 3 साल की सजा हो जाती है. 10वीं की बोर्ड परीक्षा से पहले प्रीलियम में बुलबुल टाप करता है. एक चोर का बेटा पढ़ने में इतना तेज हो यह बात स्कूल के दूसरे बच्चों के माता-पिता को पसंद नहीं आता है. यह प्रभावशाली लोग मंत्री जी से बात कर  एसएसपी का तबादला करवा देते हैं. उसके बाद सभी माता-पिता स्कूल के मैनेजमेंट पर दबाव बनाते हैं कि वह बुलबुल को बोर्ड की परीक्षा न देने दे . पर बुलबुल ब परीक्षा देता है और स्कूल का नाम रोशन करता है.

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लेखन व निर्देशन:

फिल्म में एक संवाद है-” औकात से ज्यादा सपने दिखा दिया..”यह संवाद बहुत कुछ कह जाता है.जी हां! हिंदी भाषी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा जब नौवी कक्षा में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पहुंचता है ,तो उसे अपने सह पाठियो के व्यवहार के अलावा क्या-क्या झेलना पड़ता है, इसका इस फिल्म में  फिल्मकार ने एकदम सटीक चित्रण किया है.

इस फिल्म में फिल्मकार ने देश के एक विशाल तबके को अपनी क्षमता का एहसास करने से रोकने के लिए समाज के प्रभावशाली तबके द्वारा  तमाम तरह के सामाजिक व्यवस्था आर्थिक अड़चन पैदा करता है, इसका एक यथार्थ चित्रण किया है.तेज गति से भागती हुई साधारण कहानी ना सिर्फ दर्शकों को बांध कर रखती हैं, बल्कि निर्देशक जिस बात को कहना चाहते हैं, वह बात लोगों के दिलों तक पहुंच जाती है .समाज में अमीर व गरीब के बीच की खाई का असर किस तरह से लोगों के जीवन, स्वास्थ्य व शिक्षा पर पड़ता है ,इस पर भी कुठाराघात किया गया है.समान शिक्षा का सपना किस तरह टूट रहा है, इस पर कटाक्ष करती है. यह फिल्म इस पर भी बात करती है कि आर्थिक व सामाजिक अड़चनों के चलते किस तरह निकले तबके के गरीब बच्चे प्रतिभाशाली होने के बावजूद सही शिक्षा पाने से वंचित रह जाते हैं.

फिल्म के निर्देशक प्रकाश झा बिहार से भली भांति परिचित हैं. इसी वजह से उन्होंने रांची शहर और अंबेडकर नगर  बस्ती की बारीकियों और वहां की वेशभूषा व भाषा का भी इस फिल्म में सफल चित्रण किया है.

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अभिनय:

आदिल हुसैन की अभिनय क्षमता पर कभी कोई शक नहीं किया जा सकता. उन्होंने एक दलित रिक्शा चालक बच्चू पासवान के किरदार को न सिर्फ अपने अभिनय से संवारा ,बल्कि उन्होंने इस किरदार को पूरी संजीदगी के साथ जिया है. एक पिता किस तरह अपने बेटे को बेहतर इंसान बनाने के लिए संघर्ष करता है, उस संघर्ष को आदिल हुसैन ने अपने अभिनय से जीवंतता  प्रदान की है .आदिल हुसैन का पूरा साथ दिया है उनकी पत्नी के किरदार में प्रियंका बोस ने. प्रियंका ने भी  शानदार अभिनय किया है. जबकि बाल कलाकार शुभम झा ने  कमाल का अभिनय किया है. यह उसकी पहली फिल्म है, पर वह एक मझा हुआ कलाकार के रूप में उभरता है. संजय सूरी, सीमा सिंह व अन्य कलाकारों ने भी ठीक-ठाक अभिनय किया है.

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