कबीर की तरह ही पंजाबी सूफी काव्य के पुरोधा बाबा बुल्ले शाह ने अपने समय में हर किस्म की धार्मिक कट्टरता पर तीखे व्यंग्य किए हैं. उन की पंजाबी रचनाएं अपने अलंकारों और जादुई लय से सदियों से पंजाब के लोगों में अलख जगाती रही हैं. बाबा बुल्ले शाह ने बहुत बहादुरी के साथ अपने समय के हाकिमों के जुल्मों और धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध आवाज उठाई.

पंजाब की फिजां में गूंजते उस पुरातन काव्य का जब दिल्ली की गायिका रश्मि अग्रवाल ने हिंदी अनुवाद कर संगीतबद्ध किया और अपनी मधुर आवाज में प्रस्तुत किया तो श्रोताओं ने उन्हें सिरआंखों पर बैठा लिया. सूफियाना गायिकी के क्षेत्र में रश्मि का गायनकौशल वाकई गजब का है. गायिकी के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान रच रहीं रश्मि न तो किसी संगीत घराने से ताल्लुक रखती हैं और न ही उन के घर में किसी को गीतसंगीत से कोई विशेष लगाव रहा, लेकिन रश्मि को बचपन से ही संगीत से मोह हो गया.

संगीत के सफर की शुरुआत

रश्मि बताती हैं कि 12वीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान एक दिन कक्षा में एक टीचर ने उन के मधुर कंठ से निकली कुछ स्वरलहरियां सुनीं तो सलाह दी कि वे संगीत को ही एक विषय के रूप में ले कर आगे की पढ़ाई करें.

रश्मि को बात भा गई और फिर यहीं से उन की गायिकी को दिशा मिली. संगीत शिक्षिका कमला बोस की छत्रछाया में संगीत का सफर शुरू हुआ. फिर वे मशहूर गायिका शांति हीरानंद की शिष्या भी बनीं. गजल, ठुमरी और दादरा के साथसाथ रश्मि का झुकाव सूफी संगीत की ओर भी हुआ तो सूफियाना कलाम उन के दिल को छू गया.

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