हमारे यहां सेटेलाइट चैनलों की शुरुआत जीटीवी के साथ 1992 में हुई थी. यानी कि सेटेलाइट चैनलों के प्रादुर्भाव को 25 वर्ष हो चुके हैं. जबकि मशहूर कवि व हास्य व्यंगकार अशोक चक्रधर के छोटे भाई अरविंद बब्बल 1986 से टीवी इंडस्ट्री में कार्यरत हैं. उन्होंने दिल्ली में लेख टंडन के साथ सीरियल ‘‘दिल दरिया’’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए करियर शुरू किया था. उसके बाद वह 1998 तक दिल्ली में ही रहते हुए टीवी के लिए कार्यक्रम, टेली फिल्में व डाक्यूमेंट्री आदि बनाते रहे. उन्होंने अपने भाई अषोक चक्रधर के साथ भी काफी काम किया. फिर 1998 में मुंबई आ गए. मुंबई में उन्होंने हर बड़े टीवी निर्माता के लिए सीरियल निर्देशित किए. जब मशहूर फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने टीवी में कदम रखा, तो उन्होने अपने पहले सीरियल ‘‘सरस्वतीचंद्र’’ के निर्देशन की जिम्मेदारी अरविंद बब्बल को ही सौंपी. अरविंद बब्बल अब तक ‘महाकुंभ’, ‘शोभा सोमनाथ की’’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘अफसर बिटिया’, ‘आवाज’ और ‘यहां मैं घर घर खेली’ सहित 25 लंबे सीरियलों का निर्देशन कर चुके हैं. उन्होंने टीवी में आ रहे बदलाव को बहुत नजदीक से देखा व अनुभव किया है. इसलिए हमने उनसे टीवी सीरियलों की कहानी को रबर की तरह खींचे जाने के मसले पर लंबी बातचीत की.

आप तीस सालों से टीवी इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं और काफी बदलाव देखा है. फिलहाल टीवी इंडस्ट्री में किस बात की बड़ी कमी नजर आ रही है?

- टीवी पर फिलहाल कंटेट यानी कि अच्छी कहानियों की कमी नजर आती है. क्योंकि चैनल बढ़ गए हैं. कार्यक्रमों के प्रसारण का समय बढ़ता जा रहा है. उस हिसाब से लेखक नहीं जुड़ पा रहे हैं. टीवी में अच्छे लेखकों की बहुत जरूरत है. ऐसे लेखक चाहिएं, जो समय पर काम कर सकें. हमारे यहां टीवी लेखकों को लिखने के लिए बहुत कम समय मिलता है. इसलिए हमें ऐसे लेखक चाहिएं, जो कम समय में बेहतरीन लेखन कर सकें.

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