लंबा कद, साफ रंग, लहराते बाल, चेहरे पर आत्मविश्वास और मन में कुछ करने का जज्बा, ये हैं 48 वर्षीय राष्ट्रीय फिल्म निर्माता विभा बख्शी. 2015 में इन्हें अपनी डौक्यूमैंट्री फिल्म ‘डौटर्स औफ मदर इंडिया’ के लिए सामाजिक मुद्दों पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है. इन की इस फिल्म को 11 भाषाओं में डब किया गया. अब वे अपनी नई फिल्म ‘सनराइज’ ले कर आई हैं.

हरियाणा जैसे राज्य में जहां स्त्रियों के साथ भेदभाव और  खाप पंचायतों का दबदबा बहुत आम है विभा बख्शी ने वहां के साधारण पुरुषों द्वारा जैंडर इक्वैलिटी हेतु की गई असाधारण फाइट को अपनी फिल्म का विषय बनाया है.

इस विषय पर फिल्म बनाने का खयाल कैसे आया?

मेरी पहली फिल्म ‘डौटर औफ मदर इंडिया’ रेप और जैंडर वायलैंस पर आधारित फिल्म थी. यह फिल्म बहुत सफल हुई. लोगों ने इसे एक मूवमैंट के तौर पर लिया. तभी मैं ने महसूस किया कि इस इशू को और भी आगे ले जाना चाहिए.

आप ने फिल्म के लिए हरियाणा की पृष्ठभूमि ही क्यों चुनी?

हम ने हरियाणा की पृष्ठभूमि चुनी, क्योंकि यह इलाका भारत में सब से ज्यादा डिस्टर्बिंग है. यहां इतनी भ्रूण हत्याएं होती हैं कि लड़कियों की कमी हो गई है. सब से ज्यादा गैंग रेप भी यहीं होते हैं. मैं यह दिखाना चाहती थी कि यदि हरियाणा से इतने हीरो निकल सकते हैं तो पूरे देश में ऐसे कितने हीरो मौजूद होंगे.

इस फिल्म में रियल कैरेक्टर्स हैं. पहला एक ऐसा किसान है जिस ने एक गैंग रेप विक्टिम के साथ अरैंज मैरिज की. दूसरा एक सरपंच जिस की 2 लड़कियां हैं और वह सिर्फ अपनी बेटियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर बेटी के लिए समाज की सोच बदलना चाहता है. तीसरा कैरेक्टर है हरियाणा के सब से बड़े खाप लीडर का.

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