Bollywood Films : बौलीवुड फिल्मों के लगातार फ्लौप होने की वजह से आज कुछ सिनेमाहौल या तो बंद हो चुके हैं या बंद होने के कगार पर हैं. ऐसे में आज फिल्म मेकर्स भी डरे हुए हैं और वे उसे हौल में नहीं, बल्कि ओटीटी पर रिलीज करना सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

पिछले दिनों ऐसी ही हालात अभिनेता राजकुमार राव की कौमेडी फिल्म ‘भूलचूक माफ’ के साथ देखने को मिला. फिल्म मेकर ने इसे ओटीटी पर रिलीज का प्लान बनाया और पीवीआर सिनेमाज ने मेकर्स पर ₹60 करोड़ का मुकदमा दायर कर दिया, क्योंकि फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज नहीं किया गया था. कोर्ट ने इस की ओटीटी रिलीज पर रोक लगा दी और अंत में यह फिल्म हौल में रिलीज हुई और दर्शकों ने इसे पसंद किया.

ओटीटी पर वैराइटी अधिक

असल में आज ओटीटी पर दर्शकों को अच्छी कंटैंट वाली फिल्में देखने को मिल जाती हैं और वे अपने तय समय में घर बैठे एक अच्छी कहानी को देख सकते हैं. ऐसे में, उन्हें थिएटर जाना पसंद नहीं होता. वे अपनीअपनी पसंद की फिल्में और वैबसीरीज के अलावा रिएलिटी शोज और शौर्ट फिल्म्स का आनंद भी घर बैठे ही ले सकते हैं.

आज ओटीटी पर मनोरंजन के लिए बड़ी लाइब्रेरी है. इस के अलावा ओटीटी पर कोई रोकटोक नहीं है कि आप केवल और केवल बौलीवुड की ही फिल्में या वैबसीरीज ही देखें. यहां आप को इंटरनैशनल से ले कर देशी और साउथ का मसाला फिल्म भी देखने को मिल जाता है.

ग्रामीण परिवेश अधिक पौपुलर

आजकल एक ट्रैंड दर्शकों के बीच काफी पौपुलर हो रहा है, जिस में उन्हें देहाती या ग्रामीण परिवेश पर बनी ओटीटी फिल्में अधिक पसंद आ रही हैं, क्योंकि ओटीटी पर कुछ फिल्में इतनी उबाऊ होती हैं कि 1 एपिसोड देखने का बाद ही दिमाग खराब हो जाता है.

वहीं ‘पंचायत’ और ‘ग्राम चिकित्सालय’ जैसी सुपरहिट सीरीज दर्शकों के सामने पेश करने वाले निर्माता हर बार नया और मजेदार कंटैंट थाली में परोसते हैं, जो हर किसी को पसंद आता है. इन वैबसीरीज और फिल्मों की वजह से सिनेमाघरों में अब लोग कम और ओटीटी पर अपना मनोरंजन करना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. यही वजह है कि अब कई धमाकेदार वैबसीरीज के साथ फिल्में भी ओटीटी पर रिलीज होने लग गई हैं.

स्ट्रौंग कहानी, लोकल कलाकारों का पिछले कुछ सालों में शानदार प्रदर्शन रहा है. कम बजट में बनी इन वैबसीरीज के पहले सीजन से ही ओटीटी प्लेटफौर्म पर धमाका कर दिया था. कम बजट और नई स्टार कास्ट के साथ बनाई गई इन फिल्मों के रिलीज के बाद पूरी कास्ट मशहूर भी हो जाती है. इस का मुख्य कारण इस की स्ट्रौंग कहानियां और स्क्रिप्ट हैं, जिस से इसे बनाने वाले कम बजट में अच्छे कलाकारों के साथ गांव के परिवेश को दिखाते हुए पूरी फिल्म बना जाते हैं, जिस का सैटिस्फैक्शन निर्माता, निर्देशक से ले कर कलाकारों तक को हो जाता है, क्योंकि ओटीटी की सीमा निश्चित नहीं होती.

इतना ही नहीं इन फिल्मों को बनाते वक्त निर्माता निर्देशक मुख्य कलाकारों के अलावा सपोर्टिंग आर्टिस्ट भी उस गांव के कुछ लोकल लोगों को हायर कर लेते हैं, जिस से कम दाम में उन्हें लोकल लोग मिलते हैं और ऐसे स्थानीय लोगों को एक अच्छा काम कुछ दिनों के लिए मिल जाता है और वे खुशीखुशी इसे करने के लिए राजी भी हो जाते हैं.

इधर निर्देशक को एक ओरिजिनल गांव का वातावरण मिल जाता है. इन सीरीजों में प्यार, पैसा, सपने, धोखा सबकुछ एकसाथ देखने को मिलता है, जिस से अधिकतर दर्शक रिलेट कर पाते है.

ओरिजिनल कहानी गांव की

आज के समय में ‘पंचायत’ और ‘ग्राम चिकित्सालय’ दोनों ही लोकप्रिय हिंदी वैबसीरीज हैं, जो ग्रामीण परिवेश से जुड़ी हैं. पंचायत वैबसीरीज एक राजनीतिक ड्रामा है, जो एक युवा इंजीनियर के गांव में पंचायत चुनाव और प्रशासन में शामिल होने की कहानी है. कहानी में ग्रामीण राजनीति, भ्रष्टाचार और लोगों के बीच की असमानता को दिखाने की कोशिश की गई है. कहानी हास्य और संवेदना के मिश्रण के साथ ग्रामीण जीवन और लोगों के बीच के संबंधों को एक अनोखे तरीके से दर्शाती है.

वैबसीरीज ‘ग्राम चिकित्सालय’ एक कौमेडी ड्रामा है, जो एक डाक्टर के ग्रामीण अस्पताल में काम करने और लोगों की मदद करने की कहानी है. इस में भारत के उस गांव की कहानी दिखाता है, जहां अभी भी स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं, जहां एक झोलाछाप डाक्टर लोगों का इलाज करता है. उस पर गांव का हर एक आदमी आंख मूंद कर भरोषा करता है. वह इलाज गूगल और अपने अनुमान के सहारे करता है, लेकिन जब वहां एक पढ़ालिखा सही डाक्टर आता है, तो कोई भी उसे सहयोग नहीं करता.

यह कहानी भी गांव की उस स्थिति को दिखाती है, जो आज एआई आने के बाद भी देश में मौजूद है, इसलिए इसे दर्शक काफी पसंद भी कर रहे हैं.

परिवार को कर रहे हैं मिस

यहां इतना कहना सही होगा कि आज के दर्शकों को बड़ी बजट की लार्जर देन लाइफ फिल्में रास नहीं आ रही हैं और वे ग्रामीण परिवेश पर बनी इन फिल्मों को देखना अधिक पसंद कर रहे हैं. इस बारे में निर्माता निर्देशक गुड्डू धनोवा कहते हैं कि यह कंटैंट है, जिसे मैं ने भी देखा है. ‘पंचायत’ वैबसीरीज मुझे बहुत पसंद आई है. सिंपल सी कहानी, साधारण कलाकार, कोई ऐक्शन नहीं। सभी ने अच्छा काम किया है. जब तक मैं ने उसे पूरा देखा नहीं, उसे देखना बंद नहीं किया। इस तरह की चीजें अब सिनेमाहौल के अंदर नहीं आ रहा है.

आज देशी परिवार को दर्शक मिस कर रहे हैं. पब्लिक को अच्छा कंटैंट चाहिए. एक ने अगर किसी फिल्म को देख कर अच्छा कहा, तो सभी उसे देखते हैं और सभी को ऐसी कहानियां पसंद आ रही हैं. आज कंटैंट की मात्रा बहुत अधिक है और लोगों को घर बैठे बहुत सारी चीजें देखने को मिल रही हैं, जिस में उन की चौइस शामिल है. इसलिए लार्जर देन लाइफ फिल्म को देखने दर्शक तब जाएंगे, जब उस का कंटैंट एकदम अलग हो और इतना पैसा खर्च कर हौल तक वे तभी जाना पसंद करेंगे.

वैबसीरीज क्रिमिनल जस्टिस

‘बिहाइंड द क्लोज्ड डोर’ के लेखक अपूर्वा असरानी कहते हैं कि ग्रामीण परिवेश की कहानियां रूट से जुड़ी हुई होती हैं, जिस से आज के दर्शक खुद को रिलेट कर पाते हैं, जबकि विदेशी कहनियों से वे खुद को जोङ नहीं पाते, इसलिए उन फिल्मों को दर्शक नकार देते हैं. खुद की कहानी में दर्शक को सचाई दिखती है. आज की जैनरेशन रिएलिटी में रहना अधिक पसंद करती है और सच्ची, घरगृहस्थी की कहानी उन्हें अधिक इंटरटेन करती है. इसलिए हकीकत से जुड़ी सारी फिल्में और वैबसीरीज आज सफल हो रही हैं.

इसलिए फिल्मों की कहानियां सच्ची हों, दर्शक उन्हें खुद से रिलेट महसूस करेंगे, तभी उन्हें न केवल ओटीटी पर, सिनेमाघरों में भी दर्शक देखना पसंद करेंगे। फिल्म मेकर को भी खास ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि आज के दर्शक जागरूक हैं और उन्हें हकीकत से दूर कुछ भी दिखा कर सिनेमाघरों तक लाना आज संभव नहीं.

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