आज के युग में अपनी आमदनी का उचित हिसाबकिताब रखना भी आवश्यक हो गया है, क्योंकि आजकल हमारी आमदनी में हमारे अतिरिक्त हमारी सरकार का भी हिस्सा होता है, जिसे हमें आयकर के नाम से अदा करना होता है. अगर आप ने अपनी आय का उचित हिसाब नहीं रखा, तो अपने लगने वाले कर से अधिक कर भी देना पड़ सकता है.

जो व्यक्ति, भागीदारी फर्में, निजी एवं सार्वजनिक कंपनियां आदि किसी व्यापार अथवा पेशे में संलग्न रहती हैं, वे तो अपना हिसाबकिताब रखती ही हैं और अगर उन की सालाना बिक्री 31.3.2011 को समाप्त होने वाले वर्ष में क्व60 लाख से अधिक होती है, तो न केवल उन्हें उचित हिसाबकिताब रखना होता है, बल्कि आयकर की धारा 44 एबी में उन के हिसाबकिताब का औडिट भी किसी चार्टर्ड अकाउंटैंट से कराना आवश्यक है.

अगर आमदनी ब्याज के बजाय आयकर की धारा 194 जे में बताए गए किसी पेशे जैसे वकालत, डाक्टरी, इंजीनियरिंग, अकाउंटैंसी आदि से आय होती है, तो आय की सीमाक्व15 लाख से अधिक होते ही उन्हें भी अपने हिसाबकिताब का औडिट कराना आवश्यक है.

अब हम बात करते हैं उन व्यक्तियों की जिन की आय न तो व्यापार से होती है और न ही किसी पेशे से. दूसरे शब्दों में जिन की आमदनी का जरीया व्यापार या पेशा न हो कर वेतन, किराए, ब्याज, कैपिटल गेन (शेयरों में निवेश से होने वाला मुनाफा) अथवा किसी अन्य स्रोत से होती हैं, तो ऐसे व्यक्तियों के लिए हिसाबकिताब रखने की कोई कानूनी बंदिश तो यद्यपि नहीं है, फिर भी उन की संपूर्ण आय पर उचित कर लगे इस के लिए थोड़ाबहुत हिसाबकिताब किसी डायरी में अवश्य रखना चाहिए ताकि संपूर्ण आय की गणना के साथसाथ उचित कर का भी आकलन हो सके.

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