कोरोना,तुम मेरे देश को जानते नहीं? हम तुम्हें गोबर से भी भगा सकते हैं. तुम ने यहां आ कर एक हाउसवाइफ के साथ अन्याय किया है. जब तुम्हारे डर का शोर मेरे बेटे के स्कूल में मचा तब मैं फेशियल करवा रही थी.

पति अमित टूर पर थे. मेरा मोबाइल बजा. वैसे तो मैं न उठाती, पर स्कूल का नाम देख कर उठाना ही पड़ा. मैसेज था अपने बच्चे को ले जाओ. ऐसा धक्का लगा न उस समय तुम्हें बहुत कोसा मैं ने. उस के बाद हमारी किट्टी पार्टी भी थी. टिशू पेपर से मुंह पोंछ कर मैं बंटी को लेने उस के स्कूल पहुंची. ऊपर से बुरी खबर. स्कूल ही बंद हो गए. बंटी को जानते नहीं हो न? इस की छुट्टियां मतलब मैं तलवार की नोक पर चलती हूं, कठपुतली की तरह नाचती हूं.

अमित जब बाहर से गुनगुनाते हुए घर में घुसते हैं इस का मतलब होता है मैं अलर्ट हो जाऊं, कुछ ऐसा हुआ जो अमित को तो पसंद है, पर मुझ पर भारी पड़ेगा. वही हुआ. तुम्हें यह लिखते हुए फिर मेरी आंखें भर आई हैं कि अमित के पूरे औफिस को अगले 3 महीनों के लिए वर्क फ्रौम होम का और्डर मिल गया. वर्क फ्रौम होम का मतलब किसी हाउसवाइफ से पूछो.

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तो वर्क फ्रौम होम शुरू हो गया. मतलब अमित अब आराम से उठेंगे, उन के चायनाश्ते का टाइम अब तय नहीं होगा. मतलब मेरा मौर्निंग वाक अब गया तेल लेने… बंटी और अमित अब पूरा दिन रिलैक्स करेंगे कि पूछो मत. बंटी के स्कूल तो शायद कुद दिनों बाद खुल भी जाएंगे, पर अमित? 3 महीने? घर पर? वर्क फ्रौम होम? लैपटौप खुला रहेगा, रमाबाई की सफाई पर छींटाकशी होती रहेगी, मेरे अच्छेभले रूटीन पर कमैंट्स होते रहेंगे. बीचबीच में चाय बनाने के लिए कहा जाएगा, बाजार का कोई काम कहने पर ‘घर में तो काम करना मुश्किल हो जाता है,’ डायलौग है ही.

अमित कितने खुश हैं. अब मैं भीड़ से बचने के लिए वीकैंड पर मूवी देखने के लिए भी नहीं कहूंगी. ट्रेन, फ्लाइट की भीड़ से भी बचना है. यह भी तो नहीं कि अमित अगर घर पर हैं तो कुछ ऐक्स्ट्रा रोमांस, मुहब्बत जैसी कोई चीज हो रही है… अब तो साबुन, टिशू पेपर, सैनेटाइजर की ही बातें हैं न… कितनी बार हाथ धोती हूं, हाथों की स्किन ड्राई हो गई है…

और यह मेड भी तो कम नहीं. पता है कल रमाबाई क्या कह रही थी? कह रही

थी, ‘‘दीदी, मेरा पति कह रहा है, कोरोना कहीं तुम्हें मार न दे… रमा सब लोग वर्क फ्रौम होम ले रहे हैं… तुम भी 10 दिन की छुट्टी ले लो.’’

मैं ने घूरा तो भोली बन कर बोली, ‘‘दीदी क्या करें, आप लोगों की चिंता है… हम ही कहीं से न ले आएं यह कोरोना का इन्फैक्शन.’’

मैं अलर्ट हुई. जितना मीठा बोल सकती थी, उतना मीठा बोली, ‘‘नहीं रमा, तुम चिंता न करो… जो होगा देखा जाएगा… तुम आती रहना. बस आ कर हाथ अच्छी तरह धो लिया करो,’’ मन ही मन सोचा कि अमित और बंटी की छुट्टियां और कहीं यह भी गायब हो गई तो कोरोना के बच्चे, तुम्हें मेरे 7 पुश्ते भी माफ नहीं करेंगे.

बंटी और अमित की फरमाइशों पर नाचतेनाचते ही न मर जाऊं कहीं… हाय, ये दोनों कितने खुश हैं… उफ, अमित की आवाज आई है… बापबेटे का मन शाम की चाय के साथ पकौड़ों का हो आया है… वर्क फ्रौम होम है न, तो अब औफिस की कैंटीन की चटरपटर की आदत तो मुझे ही झेलनी है न… छोड़ो, मुझे कोरोना की बात ही नहीं करनी.

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