मुंबई के एक सोसाइटी में रहने वाली 60 वर्षीय संध्या और 70 वर्षीय सुबोध के बेटी और बेटे विदेश में रहते है, दोनों अकेले रहते है. संध्या घर पर कोचिंग क्लास चलाती है और सुबोध बाहर के काम काज निपटाते है, मसलन बैंक में जाना, मार्केटिंग करना आदि, लेकिन लॉक डाउन ने दोनों की जिंदगी में जो भी रफ़्तार थी उस पर ब्रेक लगा दी है. आज संध्या आज सुबह से परेशान थी, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. अपने आप को असहाय और मजबूर समझ रही थी. आखिर करें तो क्या करें? लॉक डाउन के चलते वह किसी से न तो मिल नहीं पाती है और न ही कोचिंग क्लास चला पाती है. सोसाइटी में भी घूमना मना है, क्योंकि सोसाइटी ने पूरी तरह से लॉक डाउन किया हुआ है, किसी को भी सोसाइटी से बाहर जाने और आने से मना है, ऐसे में वे घर में कैद है और इस लॉक डाउन के ख़त्म होने का इंतज़ार कर रहे है. ये केवल मुंबई में ही नहीं हर बड़े शहर में वयस्कों की यही कहानी है. जहाँ वयस्क अकेले एक कमरे या दो कमरे के अपार्टमेंट में रहने के लिए मजबूर है और उनके बच्चें विदेश में काम कर रहे है. खासकर मुंबई की भागती जिंदगी, जहाँ की रात भी सोती नहीं है. अब पूरा शहर सुनसान पड़ा है. कोविड 19 ने पूरे शहर को शांत कर दिया है. इस बीमारी में सोशल डिस्टेंस जरुरी है और इसे मुंबई वासी इसे पालन कर भी कर रहे है, लेकिन वयस्कों को इससे मुश्किलें आ रही है, कम जगह और फ्लैट में रहने के साथ-साथ खाने-पीने की सामानों की आपूर्ति करना, घर की साफ़ सफाई आदि सबकुछ करना उनके लिए भारी पड़ रहा है.

इस बारें में मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी कहते है कि ये सही है कि सीनियर सिटिज़न को इस लॉक डाउन में बाहर निकलना मना है और उन्हें समस्या आ रही है, लेकिन कर्फ्यू बाहर है, अंदर नहीं, सोशल डिस्टेंस जरुरी है, मेंटल डिस्टेंस नहीं. कुछ टिप्स निम्न है,

  • कमरे की खिड़की से नीले आकाश को देखना,
  • घर के अंदर वाक करना,
  • जोक्स जो दोस्तों के साथ करते थे उसे वीडियो कॉल पर करना,
  • जिंदगी को बंद नहीं चालू रखना,
  • जो शौक आपको है, उसे बनाये रखना,जिसमें किताब पढना, लिखना.

ये भी पढ़ें- Ex से भी हो सकती दोस्ती

  • बच्चे अगर बाहर है तो वीडियो कालिंग कर उनके साथ समय बिताना,
  • अगर जरुरत है, तो किसी की सलाह लेने से न कतराना,
  • पुरानी बातों की चर्चा करना,
  • अकेले न बैठना,
  • नींद पूरी करना और समय पर संतुलित आहार लेना.
  • इसके अलावा दवाइयों का सेवन नियमित करना, उदासी आने पर शुरू से ही फॅमिली डॉक्टर की सलाह लेना आदि इससे आप अपने आप में तरोताजा महसूस करेंगे और ये लॉक डाउन आपके लिए भारी नहीं लगेगा.

ये सही है कि कोरोना के रोज के बढ़ते आंकड़ों की वजह से वयस्कों को उदासी अधिक घेर रही है और वे डर रहे है कि कही उन्हें ये बीमारी उन्हें न घेर ले. हर न्यूज़ चैनल में भी कोरोना से सम्बंधित डराने वाले आंकड़े ही दिखाए जा रहे है, ऐसे में डॉक्टर हरीश आगे कहते है कि 24 घंटे कोरोना के बारें में बात न करें और दिन में केवल एक बार न्यूज़ देखें. जिंदगी को आनंदमय तरीके से बिताने की कोशिश करें, डर को सबके साथ बांटे.

ये भी पढ़ें- सहेलियां जब बन जाएं बेड़ियां

काउंसलर राशीदा कपाडिया  जो अभी खाना खुद बना रही है और ब्लॉग लिख रही है. इस बारें में कहती है कि जब वयस्क अकेले रहते है तो उन्हें इस बात का डर हमेशा लगा रहता है कि उनका शरीर ख़राब होने या कुछ समस्या आने पर उनकी देखभाल कैसे होगी, ऐसी परिस्थिति में सोसायटी के कुछ लोग या वोलेंटिएर्स को उनकी नियमित खोज खबर रखने की जरुरत है. इसके अलावा इन लोगों के बच्चे दूर रहने की वजह से उनकी चिंता भी सताती रहती है. वे इस हालात में किसी से मिल नहीं पाते और अपनी बात शेयर नहीं कर पाते, ऐसे में बच्चों को दूर से ही उनकी हिम्मत को बनाएं रखने के लिए नियमित कॉल कर उनकी हौसलाअफजाई करने की जरुरत है. मैडिटेशन और हल्का फुल्का व्यायाम करने से आपको अच्छा लगेगा. इसके अलावा तकनीक की कुछ जानकारी होने पर आप मोबाइल पर काफी समय बिता सकते है, जिसमें, संगीत सुनना , फिल्में देखना और कोई गेम खेलना आदि कर सकते है. अपनी आवाज में गाने गाकर अपने दोस्तों को भेजकर उन्हें ख़ुशी दे सकते है. घर का काम अभी सब कर रहे है ऐसे में समय निकलना अधिक मुश्किल नहीं होता. इन सबसे लाइफ थोड़ी आसान भी हो जाती है और आपको अपनी जिंदगी कैद नहीं लगेगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...