डॉक्टर विपुल गुप्ता, निदेशक, न्युरोइंटरवेंशन, आर्टमिस अस्पताल, गुरूग्राम

जब से दुनिया कोविड महामारी के घेरे में फंसी है कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसी के साथ लोगों के बीच स्क्रीन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ गया है जो खुद में एक नई महामारी की तरह है. वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार चार में से एक व्यक्ति जीवन में कभी न कभी स्ट्रोक अटैक का शिकार अवश्य बनता है. आज स्ट्रोक का खतरा जितना बुजुर्गों में है उतना ही युवा आबादी में भी है.

पहले स्ट्रोक अधिक उम्र (60 से अधिक उम्र) के लोगों की बीमारी हुआ करती थी लेकिन पिछले कुछ सालों में युवा आबादी में स्ट्रोक अटैक के कई मामले देखने को मिले हैं. एक हालिया अध्ध्यन के अनुसार हालांकि पिछले कुछ सालों में स्ट्रोक के मामले कम हुए हैं, लेकिन कम उम्र (25-45 साल) के लोगों में स्ट्रोक के मामले बढ़ते नज़र आए हैं. अमेरिका व अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में स्ट्रोक से ग्रस्त युवा आबादी की संख्या दुगनी है.

स्ट्रोक बीमारी और विकलांगता का सब से आम और प्रमुख कारण माना जाता है. अनुमान के अनुसार विश्व स्तर पर प्रति 40 सेकेंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक से ग्रस्त पाया जाता है और प्रति 4 मिनट में एक व्यक्ति स्ट्रोक के कारण मर जाता है. दरअसल स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है. वहीं अब स्ट्रोक को भी इस के साथ जोड़ दिया गया है.

स्क्रीन का जितना ज्यादा इस्तेमाल, स्ट्रोक का उतना ज्यादा खतरा

अमेरिका के हालिया अध्ययन के अनुसार, डिजिटल स्क्रीन के इस्तेमाल का समय हमारे जीवनकाल पर सीधा असर डालता है. एक घंटा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल हमारी जिंदगी से 22 मिनट कम कर देता है. स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर का कारण बन सकता है.

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