Monsoon Health Tips : मौनसून के आते ही लोग इस मौसम का आनंद लेने के लिए घर से निकल पड़ते हैं. वैसे तो बारिश के मौसम का आनंद सब से बढ़ कर होता है लेकिन इस मौसम में बाहर घूमते हुए वहां पर मिलने वाले तलेभूने व्यंजन भी हम खा लेते हैं, जिस का परिणाम बाद में भुगतना पड़ता है.

दिखते हैं लजीज

इस बारे में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी हौस्पिटल हैड गैस्ट्रोऐंटरोलौजी डा. सुभाष अगल कहते हैं कि असल में बारिश के मौसम में स्ट्रीट फूड को अवौइड करना चाहिए ताकि आप बीमारी से बच सकें. वैसे तो देखने में स्ट्रीट फूड लजीज होते हैं लेकिन कितना समय पहले और कैसे बने हैं, इस का पता हमें नहीं होता. इस के अलावा मौनसून में स्ट्रीट फूड खाने से पहले कुछ सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए क्योंकि ये खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से रिस्क भरे हो सकते हैं खासकर बारिश में खुले में रखे खाद्यपदार्थों में बैक्टीरिया और वायरस पनप सकते हैं, जिस से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए इस बात पर ध्यान देना जरूरी होता है.

कौंटैमिनेटेड वाटर है खास वजह

डाक्टर सुभाष कहते हैं कि बारिश के सीजन में स्ट्रीट फूड खाने से सब से अधिक कौमन प्रौब्लम फूड पौइजनिंग और गैस्ट्रोऐंटेराइटिस की अधिक होती है क्योंकि बरसात में पानी अधिक ‘कौंटेमिनेटेड’ यानी दूषित होता है जो अधिकतर वाटर सप्लाइ के पाइप में ब्रेक डाउन होने की वजह से ड्रेन या गंदा पानी अच्छे साफ पानी में मिलने से होता है. इस में बहुत सारे बैक्टीरिया उस में चले जाते हैं. फिर उस पानी से बने खाने में बैक्टीरियल या वायरल इन्फैक्शन होने के चांसेज अधिक हो जाते हैं, इस में फूड पौइजनिंग और गैस्ट्रोऐंटेराइटिस अधिकतर होता है, जिस में उलटियां और लूज मोशन होने लगते हैं. कभीकभी इतनी अधिक उलटियां या दस्त होते हैं कि रोगी कमजोर महसूस करने लगता है. इस के अलावा पेट दर्द और बुखार भी हो सकता है.

फूड पौइजनिंग 2 तरह की हो सकती है, मसलन: जिस व्यंजन को आप ने खाया हो, उस में पहले से ही बैक्टीरिया प्री फौर्म्ड टौक्सिक हो यानी पहले से ही उस में ईकोलाई बैक्टीरिया का फौर्मेशन हो चुका हो, इस का असर जल्दी दिखता है. अगर बैक्टीरिया बाद में फौर्म हुआ है तो उस का असर थोड़ी देर से होता है लेकिन दोनों के लक्षण एकजैसे होते हैं:

लक्षण: पेट दर्द, उलटियां, डिहाइड्रेशन, ब्लड प्रैशर का कम हो जाना, कमजोरी आ जाना, यूरिन कम या बंद हो जाना आदि हैं.

इस के अलावा एक खास किस्म का बैक्टीरिया भी मौनसून में पनपता है, जिस से हैजा होता है. इस बैक्टीरिया को विब्रियो कोलरा कहा जाता है, इस से रोगी को बहुत जल्दी डिहाइड्रेशन होने लगता है, ब्लड प्रैशर जल्दी गिरने लगता है और व्यक्ति को 15 से 20 बार तक दस्त होते हैं. पेट दर्द तेज होता है, बुखार साधारणत: नहीं होता. इस अवस्था में अधिक डिहाइड्रेशन होने पर किडनी खराब होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. जब ऐसा हो तो कोलरा का टैस्ट कराना चाहिए, यह अधिकतर एपीडमिक होता है क्योंकि जिन्होंने उस बैक्टीरिया युक्त खाने को खाया है, उन सभी को हैजा हो सकता है. अगर किसी को कोलरा हुआ है तो संबंधित परिवार वालों को तुरंत सूचना देने की आवश्यकता होती है ताकि वे एक बड़ा स्टैप इस दिशा में ले सकें और लोगों को बीमारी से बचा सकें.

तीसरी बड़ी बीमारी इन दिनों टाइफाइड का होता है, यह तीसरे प्रकार की बैक्टीरिया होता है, जिसे साल्मोनेला ऐंटरिका सेरोवर टाइफी कहते हैं. यह बैक्टीरिया शरीर पर देर से प्रभाव डालता है, मसलन, अगर आपने अभी कोई फूड खाया या गंदा पानी पीया तो कल कुछ नहीं होगा, जबकि फूड पौइजनिंग 1 या 2 दिन में हो जाता है लेकिन टाइफाइड 10 से 15 दिनों के बाद अटैक करता है, इस में हाई फीवर होता है. यह भी मौनसून में ही अधिक कौमन है.

कुछ जरूरी सुझाव

डॉक्टर सुभाष कहते हैं कि मौनसून में अगर आप को बाहर के खाने की इच्छा हो तो सब से पहले आप फ्रैश व्यंजन को खाने की कोशिश करें.

पका हुआ भोजन खाएं. कच्ची चीज कोई न खाएं, जैसे सलाद, चटनी, सौस आदि को पकाया नहीं जाता. इस से वे चीजें स्टरलाइज नहीं हो पातीं, जबकि कुकिंग प्रोसैस में वायरस और कई सारे बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं.

हमेशा अपने साथ बोतल का उबला पानी रखें. बाहर का पानी न पीएं.

वैज या नौनवैज का नहीं पड़ता कोई असर जैसाकि लोग अधिकतर समझते है कि वैज फूड सेफ है, नौनवैज फूड नहीं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं. मौनसून में हर फूड जो अच्छी तरह से पका हुआ हो, सेहत के लिए सही होता है. कच्ची चीज हमेशा इस मौसम में खाना सही नहीं होता. नौनवैज खाने के बाद बीमार होने की खास वजह उस कच्चे पदार्थ के सोर्स को देखना जरूरी होता है जो कम हायइजिनिक होने की वजह से व्यक्ति बीमार पड़ सकता है.

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