रमा की शादी को कई 8 साल गए थे, पर उसे कोई बच्चा नहीं हो रहा था. बच्चे के लिए इलाज कराने रमा अपने पति के साथ डाक्टर के पास गई. कुछ दिन दवा खाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रमा और उस के पति ने डाक्टर का इलाज बंद कर दिया. इस के 7 माह बाद ही रमा के पेट में बच्चा आ गया. उसे लगा कि बच्चा तो उसे बिना कोई दवा खाए आया है. जिस तरह बच्चा पेट में आया है उस तरह उस का प्रसव भी हो जाएगा, उस ने सोचा.

यहीं पर रमा से गलती हो गई. उसे कोई तकलीफ नहीं हुई तो वह किसी भी तरह की जांच कराने के लिए डाक्टर के पास नहीं गई. जब प्रसव का समय करीब आ गया और बच्चा नहीं हो पा रहा था तब रमा को पेट में बहुत दर्द होने लगा. तब रमा घबरा कर पति के साथ अस्पताल गई.

अस्पताल पहुंचते पहुंचते उस की हालत बहुत बिगड़ गई. बड़ी मुश्किल से औपरेशन कर के डाक्टरों ने रमा को तो बचा लिया, लेकिन उस के जुड़वां बच्चों को नहीं बचा पाए. रमा और उस का पति अब पछता रहे हैं कि अगर समयसमय पर जांच कराते रहते और प्रसव के समय अस्पताल चले जाते तो बच्चों को बचाया जा सकता था.

टैंशन नहीं सावधानी बरतें

दरअसल, बच्चा पेट में आने पर डाक्टर से जांच जरूर करानी चाहिए. प्रसव अस्पताल या किसी जानकार की देखरेख में ही होना चाहिए. अगर पेट में जुड़वां बच्चे पल रहे हों तो और ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.

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