महिलाओं की खूबसूरती में उन के सुडौल स्तन चार चांद लगा देते हैं. एक दशक पूर्व तक एक महिला को उस के प्राकृतिक स्तनों के साथ ही जीना होता था, फिर चाहे वे छोटे हों या बड़े. मगर अब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि बड़े स्तनों को छोटा और छोटे स्तनों को आसानी से बड़ा करवाया जा सकता है.

कामसूत्र और भारतीय सौंदर्यशास्त्र के अनुसार महिलाओं के बड़े और सुडौल स्तन उन की खूबसूरती को बढ़ा कर आत्मविश्वास को दोगुना कर देते हैं. कुछ वर्षों पूर्व तक फिल्म जगत की अभिनेत्रियां ही अपने सौंदर्य को बरकरार रखने के लिए अपने छोटे स्तनों की सर्जरी करवा कर बड़ा करवाया करती थीं क्योंकि उन दिनों यह प्रक्रिया काफी कीमती हुआ करती थी परंतु आज नईनई तकनीकें आ गई हैं जिस से यह सर्जरी आम इंसान की पहुंच में भी हो गई है. इसीलिए आजकल स्तनों के आकार को बढ़ाना काफी कौमन हो गया है.

आजकल महिलाएं अपने स्तनों का मनचाहा आकार देने के लिए ब्रैस्ट सर्जरी कराने लगी हैं. ‘डाक्टर करिश्मा ऐस्थैटिक्स’ की संचालिका डाक्टर करिश्मा स्तनों का आकार बढ़ाने की सर्जरी के बारे में बताती हैं कि ब्रैस्ट सर्जरी मुख्यत: 2 प्रकार की होती है- औग्मैंटेशन सर्जरी जो छोटे स्तनों का आकार बढ़ाने के लिए की जाती है और दूसरी ब्रैस्ट रिडक्शन सर्जरी जो बड़े स्तनों को छोटा करने के लिए की जाती है.

ब्रैस्ट रिडक्शन सर्जरी अकसर प्राकृतिक रूप से बढ़े हुए स्तनों को छोटा करने के लिए तब की जाती है जब बढ़े हुए स्तन बैठने, सोने और चलने में परेशानी पैदा करने लगते हैं. आमतौर पर महिलाएं स्तनों को सुडौल आकार देने और बढ़ाने के लिए ब्रैस्ट सर्जरी कराती हैं और इस प्रक्रिया को ब्रैस्ट औग्मैंटेशन/ब्रैस्ट मैमोप्लास्टी/ब्रैस्ट इंप्लांटेशन कहा जाता है. एक महिला की ब्रैस्ट में औग्मैंटेशन 3 प्रकार से किया जाता है-

सिलिकौन ब्रैस्ट इंप्लांट

सिलिकान जैल से ब्रैस्ट का औग्मैंटेशन करना पूरे विश्व में सर्वाधिक प्रचलित तरीका है. इस प्रक्रिया में ब्रैस्ट का साइज बढ़ाने के लिए सिलिकौन जैल का उपयोग किया जाता है. सिलिकौन जैल मूलत: सिलिकौन, औक्सीजन और कार्बन हाइड्रोजन जैसे तत्त्वों से बना होता है आजकल भांतिभांति के आकार और शेप के सिलिकौन जैल उपलब्ध हैं जिन का इस प्रक्रिया के दौरान प्रयोग किया जाता है.

ब्रैस्ट का जितना आकार बढ़ाना है उस के अनुसार एक शैल होता है जिसे सिलिकौन जैल से भरा जाता है और फिर सर्जरी कर के इसे स्तन में इंप्लांट कर दिया जाता है. आमतौर पर इस में जोखिम काफी कम होता है,   झुर्रियां भी कम आती है परंतु जैल के फट जाने पर दोबारा सर्जरी कराने की आवश्यकता होती है परंतु इस प्रकार की घटनाएं बहुत कम होती हैं.

फैट ट्रांसफर

इस सर्जरी में शरीर के फैट वाले हिस्से पेट, नितंब या जांघ जैसे स्थान से फैट को निकाल कर ब्रैस्ट पर इंजैक्ट कर दिया जाता है परंतु इस प्रक्रिया के लिए सर्जरी कराने वाली महिला के शरीर में पर्याप्त फैट पैकेट्स होना आवश्यक होता जहां से फैट को निकाला जा सके. इस प्रक्रिया में सर्जरी के निशान तो काफी कम आते हैं परंतु इस से स्तनों के आकार को एक निश्चित सीमा तक ही बढ़ाया जा सकता है. इन 2 तरीकों के अलावा ब्रैस्ट का साइज बढ़ाने के लिए इंजैक्शन और क्रीमें भी उपलब्ध हैं परंतु वे उतनी कारगर नहीं होतीं.

किस उम्र की महिलाएं करवा सकती हैं

ब्रैस्ट का साइज बढ़ाने के लिए मरीज की उम्र कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए क्योंकि इस उम्र तक एक लडकी की ब्रैस्ट संपूर्ण रूप से विकसित हो चुकी होती है. मगर सिलिकौन ब्रैस्ट इंप्लांट के लिए किसी भी महिला की उम्र 22 साल होनी चाहिए. आजकल महिलाएं अपना परिवार पूरा करने के बाद अपनी ब्रैस्ट की सर्जरी कराना पसंद करती हैं ताकि स्तनपान के बाद भी उन के स्तनों का सौंदर्य बरकरार रहे.

वास्तव में देख जाए तो इस प्रकार की सर्जरी के लिए उम्र की अपेक्षा महिला का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना अधिक आवश्यक होता है.

कितना आता है खर्च

ब्रैस्ट औग्मैंटेशन प्रक्रिया का औसत खर्च 1 लाख 20 हजार से ले कर 2 लाख तक हो सकता है क्योंकि अलगअलग मैडिकल सैंटर की सुविधा, आवास, डाक्टर और ऐनेस्थीसिया की फीस अलगअलग हो सकती है.

कितना लगता है समय

यदि ब्रैस्ट के साइज को बढ़ाने के लिए सिलिकौन जैल इंप्लांट किया जा रहा है तो यह प्रक्रिया मात्र 30-45 मिनट में पूरी हो जाती है क्योंकि इस प्रक्रिया में महिला की बगल में एक चीरा लगा कर सिलिकौन मोल्ड को इंप्लांट कर दिया जाता है परंतु यदि फैट इंप्लांट किया जाता है तो यह प्रक्रिया 1 से 2 घंटे का समय ले लेती है क्योंकि इस में 2 बार सर्जरी की जाती है एक शरीर के फैट निकाले जाने वाले स्थान की और दूसरी ब्रैस्ट की जहां फैट को इंप्लांट किया जा रहा है.

क्या हैं साइड इफैक्ट्स

ब्रैस्ट का आकार बढ़ाना यों तो एक सामान्य सर्जरी की भांति ही होता है और आमतौर पर इस का कोई साइड इफैक्ट नहीं होता. सर्जरी के कुछ समय बाद तक हलकाफुलका दर्द, निप्पल की सैंसिटिविटी में फर्क महसूस होना, चुभन या जलन होना सर्जरी के सामान्य लक्षण होते हैं परंतु कई बार कुछ केसेज में सर्जरी के 48 घंटे के दौरान ही ब्रैस्ट में ब्लड की क्लोटिंग जिसे मैडिकल की भाषा में ‘हेमाटोमा’ और फ्लूइड का रिसना जिसे सेरोमा कहा जाता है प्रारंभ हो सकता है. इसलिए इस प्रकार की सर्जरी हमेशा ऐसे कुशल डाक्टर की निगरानी में करवानी चाहिए ताकि सर्जरी के लास्ट मिनट तक किसी भी स्थिति को संभाला जा सके.

निप्पल सर्जरी कब की जाती है

आमतौर पर ब्रैस्ट का साइज बढ़वाते समय निप्पल की सर्जरी नहीं की जाती है परंतु कई बार अत्यधिक चोट लगने या ब्रैस्ट कैंसर होने पर जब स्तन को उस के स्थान से काटना पड़ता है तब निप्पल की सर्जरी की जाती है. लिंग परिवर्तन के दौरान भी निप्पल सर्जरी की जाती है.

निप्पल सर्जरी की प्रक्रिया काफी कठिन और टाइम टेकिंग होती है क्योंकि निप्पल के अंदर बहुत सारी दुग्धग्रंथियां होती हैं और निप्पल सर्जरी के दौरान निप्पल के साथसाथ उन समस्त दुग्धग्रंथियों को भी निकालना पड़ता है. निप्पल की त्वचा का गहरा रंग प्राप्त करने के लिए स्किन ग्राफ्टिंग अर्थात त्वचा प्रत्यारोपण और टिशू फ्लेपिंग भी करनी पड़ती है ताकि स्तन का स्वाभाविक रंग पाया जा सके. इसीलिए सामान्य ब्रैस्ट औग्मैंटेशन की अपेक्षा निप्पल की सर्जरी की कीमत काफी अधिक हो जाती है.

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