Career Planning: मांबाप चाहे इंसान के हों या पशुपक्षी के, वे अपने बच्चों को हमेशा सुरक्षित देखना चाहते हैं. मगर कुछ समय बाद यही बच्चे अपने घोंसले से बाहर निकल कर पंख फैलाते हुए खुले आसमान में उड़ जाते हैं क्योंकि यही दुनिया का दस्तूर है.
जब एक मां 9 महीने अपने बच्चे को कोख में रखती है, अपने खून से सींच कर उसे बड़ा करती है तो उस बच्चे के लिए हर मां ज्यादा प्रोटैक्टिव हो जाती है. उस की सांसें, उस की धड़कनें बच्चों में समा जाती हैं. उस के बाद बच्चा भले ही कितना भी बड़ा हो जाए वह मांबाप के लिए हमेशा छोटा ही रहता है.
प्यार और सुरक्षा
मगर बच्चों के लिए ज्यादा प्यार और सुरक्षा की भावना उस वक्त चिंता का विषय बन जाती है, जब वही बच्चे अपने मांबाप की सोच से अलग कुछ नया करने की राह पर निकलते हैं जबकि मांबाप अपने बच्चों को बड़े होने के बाद भी ऐसे प्रोफेशन में डालना चाहते हैं जहां उन का भविष्य सुरक्षित हो. जैसे लगभग हर मां अपनी बेटी को टीचर के जौब में या सरकारी नौकरियों में देखना चाहती है क्योंकि उन के हिसाब से यही नौकरियां उन की बेटियों का भविष्य सुरक्षित कर सकती हैं.
कोई भी मांबाप नहीं चाहते कि उन का बच्चा कोई रिस्क ले या नौकरी और पैसा कमाने के चक्कर में मांबाप की नजरों से दूर हो कर दूसरे शहरों में जा कर नौकरी करे. ऐसे में मांबाप बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के चक्कर में बच्चों को नई राह चुनने से रोकते हैं, जहां पर सफलता के चांसेस बहुत कम होते हैं, फिर चाहे वह ग्लैमर फील्ड में ऐक्टिंग हो, मौडलिंग हो या कोई और काम या फिर स्पोर्ट्स फील्ड में खिलाड़ी ही क्यों न बनना हो, हर बच्चे का सपना आसमान को छूने का होता है. नाम, शोहरत, पैसा कमाने का होता है. मगर आमतौर पर मांबाप अपने बच्चों को डाक्टर और इंजीनियर बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं.
बच्चों के सपने और ख्वाहिश
ऐसे में जो बच्चे अपने सपनों का गला घोंट कर मांबाप के कहे अनुसार नौकरी कर लेते हैं वे कुएं का मेंढक बन कर रह जाते हैं और एक ही दायरे में कैद हो जाते हैं और जो बच्चे मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर अपनी अलग राह चुनते हैं वे लोगों के लिए अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ जाते हैं, एक अलग पहचान बना लेते हैं.
इस के लिए कई बार उन्हें भले ही लंबा या मुश्किल सफर तय करना पड़ता है लेकिन साथ में उन को यह सुकून जरूर होता है कि भले ही कामयाबी मिली या नाकामयाबी कम से कम कोशिश तो की. मन में यह मलाल नहीं रहता कि काश, मैं ने अपना सपना पूरा किया होता.
यों जिंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ता है. वास्कोडिगामा ने अगर कोशिश नहीं की होती तो वह भारत की खोज कैसे करता. इसी तरह अगर कोलंबस ने सोचा न होता कि समुद्र के दूसरे किनारे क्या है तो वह कभी अमेरिका की खोज नहीं कर पाता.
सोच सही है मगर
मतलब यह कि जो इंसान जोखिम उठा कर अपनी राह पकड़ते हैं वही दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाते हैं और नई खोज कर पाते हैं. मांबाप की सोच अपनी जगह सही है, लेकिन कई बार अपना सपना पूरा करने के लिए मांबाप के खिलाफ जा कर भी कदम उठाने पड़ते हैं. उन की यह कोशिश अगर 20 से 25 उम्र के बीच में होती है तभी वह राजनीति, स्पोर्ट्स और ग्लैमर वर्ल्ड में अपनी खास जगह बना पाते हैं क्योंकि अगर वे कम उम्र में अपने कैरियर की शुरुआत करते हैं तब कहीं 7 या 8 साल में जा कर अपनी मंजिल पाते हैं.
महिला वर्ल्ड कप जीतने वाली महिला क्रिकेट टीम ने कई सालों तक प्रैक्टिस की. अगर उस दौरान उन के मांबाप अपने बच्चों को सपोर्ट नहीं करते तो क्रिकेट में कभी भी मिताली राज, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, गावस्कर नहीं बन पाते. न ही बौक्सिंग में मेरी कौम या टैनिस में सानिया मिर्जा सफलता अर्जित कर अपनी जगह बना पातीं क्योंकि सफल क्रिकेटर मिताली राज बनने के लिए या सचिन तेंदुलकर बनने के लिए कई सारे बैट और बौल बिकते हैं, लेकिन जीतते वही हैं जिन में जीतने का जनून और जज्बा होता है.
डिलिवरी बौय बनना या अकाउंटेंट बनना आसान होता है, लेकिन शेफ या सीए बनना उतना ही मुश्किल होता है.
जरूरी है इमोशनल सपोर्ट
इसी तरह मुंबई में हर दिन हजारों, लाखों लोग ऐक्टर बनने की ख्वाहिश ले कर मुंबई में कदम रखते हैं, लेकिन सुपरस्टार वही बनता है जिस में कुछ कर दिखाने का जनून होता है. लेकिन अपने इस मुश्किल भरे सफर में अगर उन को मांबाप का साथ मिल जाता है तो यह मुश्किल सफर आसान हो जाता है लेकिन वहीं अगर अपनी जिंदगी जीने और अपनी नई राह चुनने में मांबाप की दुत्कार, मार या विरोध मिलता है तो कई बार मंजिल तो मिलती है, लेकिन सफर कांटों भरा हो जाता है.
अपनी राह खुद बनाई
बौलीवुड में कई ऐसे कलाकार हैं जो आज सफलता की चरम सीमा पर हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें अपने घर वालों का सपोर्ट नहीं मिला.
मल्लिका शेरावत, कंगना रनौत ने अपने घर वालों के खिलाफ जा कर न सिर्फ सफलता हासिल की, बल्कि एक मुकाम भी हासिल किया. वहीं राजीव वर्मा जो एक जानेमाने ऐक्टर हैं, अपने पिता के विरोध की वजह से ऐक्टर बनने के बावजूद डिप्रैशन में चले गए.
रवि किशन जो बौलीवुड और भोजपुरी के जानेमन ऐक्टर हैं, उन को अपने पिता की मार से बचते हुए चुपचाप मुंबई भागना पड़ा क्योंकि रवि किशन के पिता अपने बेटे के अभिनय क्षेत्र में जाने के सख्त खिलाफ थे.
बौलीवुड में कई ऐसे ऐक्टर हैं जो आज बहुत सफल हैं लेकिन उन्हें अपने मांबाप की जिद के चलते कैरियर बनाने में मानसिक या आर्थिक सपोर्ट नहीं मिला और उन को अपने सपने पूरे करने के लिए घर से भागना पड़ा.
इस से यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर कोई बच्चा अपने मांबाप के खिलाफ जा कर कुछ नया करने की ख्वाहिश रखते हैं तो मांबाप को उन का सपोर्ट करना चाहिए क्योंकि कई बार हमारे खुद के बच्चों में ऐसी प्रतिभा छिपी होती है जिस का हमें खुद ही ज्ञान नहीं होता. इस प्रतिभा का पता हमें उस वक्त चलता है जब हमारे खुद के बच्चे हम से विद्रोह कर समाज में अपना नाम कमाते हैं और उन के नाम से ही कई बार मांबाप को भी पहचान मिलती है,
फिर चाहे क्रिकेटर विराट कोहली, सचिन तेंदुलकर हों या सलमान, शाहरूख और माधुरी दीक्षित ही क्यों न, इन सभी मशहूर हस्तियों के मांबाप अपने बच्चों के नाम से पहचाने जाते हैं और मांबाप को भी उन पर गर्व है.
इसलिए अगर आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, तो एक बार उन पर भरोसा कर के जरूर देखें. आप का थोड़ा सा साथ और बच्चों पर विश्वास उन्हीं बच्चों को सफलता की चरम सीमा तक ले जाएगा.
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