ज्यादातर लोग सर्जरी और हॉस्पिटलाइजेशन जैसे बड़े मेडिकल खर्च के लिए ही बजट बनाते हैं और छोटे खर्चों को नजरअंदाज कर देते हैं. हम हर महीने दवाओं और खासतौर पर डायबिटीज और हाइपर टेंशन जैसी बीमारियों के इलाज पर होने वाले खर्च पर गौर नहीं करते. एक स्टडी के मुताबिक, औसत भारतीय हेल्थकेयर कॉस्ट का 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ दवाओं पर खर्च करते हैं.

ऑल्टरनेटिव्स

जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड या पेटेंटे दवाओं जैसी होती हैं और इनका वैसा ही असर होता है, लेकिन कीमत काफी कम होती है. जेनेरिक दवाओं के मामले में भारत की दुनिया भर में पहचान है. ऑल्टरनेटिव ब्रांड्स से दवाओं पर खर्च 50 से 70 फीसदी तक कम कर सकते हैं. मिसाल के तौर पर, कॉलेस्ट्रॉल कम करने की दवाई एज्टो का दाम 10 टैबलेट्स की एक स्ट्रिप के लिए 53 रुपये है, जबकि ओजोवैस (जिसमें वही एक्टिव इंग्रेडिएंट है) जिसकी कोई ब्रांडेड आइडेंटिटी नहीं है, उसकी कीमत 7 टैबलेट्स की स्ट्रिप के लिए 19 रुपये है.

एक और ऑप्शन अन्य सॉल्ट्स वाली मेडिसिन का है, जो उसी फार्माकोलॉजिकल क्लास में आती हैं. ये सस्ती हो सकती हैं. मसलन, एटोर्वेस्टेटिन और रोसुवेस्टेटिन एक ही फार्माकोलॉजिकल क्लास में आती हैं, जो कार्डियोवस्कुलर डिजीज को रोकने के लिए हैं. हालांकि, एटोर्वेस्टेटिन प्राइस कंट्रोल के तहत है, जबकि रोसुवैस्टेटिन इसके दायरे में नहीं आती.

ऑनलाइन पोर्टल से कंपेरिजन

ऑनलाइन फार्मेसी पोर्टल्स आमतौर पर पड़ोस की केमिस्ट शॉप के मुकाबले कम दाम पर दवा बेचती हैं, क्योंकि वे कंपनियों से थोक में दवाएं खरीदती हैं. उन्हें स्टोर खोलने जैसे महंगे खर्च का भी सामना नहीं करना पड़ता. दूसरी ओर, मेडिकल स्टोर्स आमतौर पर 10 फीसदी और कुछ मामलों में 15 फीसदी का ही डिस्काउंट देते हैं.

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