Modern Handloom: एक समय हैंडलूम का मतलब सिर्फ साडि़यां और दुपट्टे हुआ करते थे. लेकिन आज की फैशन इंडस्ट्री ने हैंडलूम को एक नया रंग, नया रूप और नई पहचान दे दी है. अब यह केवल परंपरा नहीं बल्कि ट्रेंड बन चुका है और वह भी ग्लोबल ट्रेंड. आजकल युवा हों या उम्रदराज, जहां स्टाइल और ऐलिगैंस को जोड़ कर देखा जाए वहां आप को स्टाइल में हैंडलूम का तड़का जरूर देखने को मिलेगा. आजकल लड़कियां फ्लोरल प्रिंट्स से ज्यादा जयपुरी स्टैंप पैंट और बांधनी प्रिंट को पहन कर ज्यादा कौन्फिडैंट फील करती हैं.

ब्रोकेड फैब्रिक का इस्तेमाल

अब ब्रोकेड के जंपसूट्स और कोटपैंट सैट काफी ट्रेंड में हैं. खादी को पहले जहां धोती तक सीमित रखा जाता था वहीं अब उस कौटन की मिनी ड्रैस, हैंडलूम कोआर्ड सैट्स, जैकेटपैंट औफिस वियर और यहां तक कि कैजुअल स्ट्रीट स्टाइल तक में मौडर्न हैंडलूम की ?ालक दिखती है. डिजाइनर्स ने इसे केवल साडि़यों या शालों तक सीमित न रख कर वर्सेटाइल फैशन ऐलिमैंट बना दिया है जो वैस्टर्न और इंडियन दोनों सिलुएट्स में खूबसूरती से फिट होता है.

तो आइए जानते हैं कैसे अब हैंडलूम टाइम टेकिंग कपड़ा न रह कर पहले से अधिक किफायती हो गया है और हमारे देश के हर स्टेट में कौन सा हैंडलूम सदियों से फैमस है उसे अब नई पहचान दी जा रही है.

हैंडलूम की रफ्तार अब मशीनों के साथ

पहले एक बुनकर को एक जटिल डिजाइन वाली साड़ी या कपड़ा तैयार करने में कई दिन, कभीकभी महीने भी लग जाते थे लेकिन आज टैक्नोलौजी की मदद से वही डिजाइनें कुछ घंटों में तैयार हो जाती हैं, जिन में कुछ ट्रैडिशनल और कुछ मौडर्न टैक्नोलौजी इस्तेमाल की जाती है जैसे सेमी औटोमैटेड करघे, जैक्वार्ड और डौबी तकनीक.

जैक्वार्ड वीविंग में हर धागा अलगअलग कंट्रोल किया जा सकता है. इस की मदद से बहुत मुश्किल और डिटेल्ड पैटर्न बनाए जाते हैं जैसे फूल, पत्तियां, जालीदार डिजाइन, जानवर आदि. इस का इस्तेमाल भी आसान है. करघे यानी लूम पर एक जैक्वार्ड अटैचमैंट जोड़ा जाता है जो हर धागे को इंडिविजुअली उठा या गिरा कर बदल सकता है.

पहले यह मैन्युअल पंच कार्ड से चलता था, अब डिजिटल जैक्वार्ड भी है. इस तकनीक से बनारसी ब्रोकेड साड़ी, कांजीवरम सिल्क, जरी वाले भारी फैब्रिक बनाए जाते हैं. थोड़ी डिटेल्ड होने के चलते यह प्रोसैस थोड़ा टाइम टेकिंग जरूर है लेकिन इस में बहुत ही बारीक डिजाइनें बनाइ जाती हैं और इस मशीन से एकसाथ हजारों धागों को इस साथ कंट्रोल किया जा सकता है.

वीविंग की दूसरी तकनीक है डाबी

ये थोड़े छोटे और रिपीटेड पैटर्न जैसे जिओमैट्रिक और सिंपल मोटिफ्स के लिए होती है. इस में डौबी मैकेनिज्म को करघे पर सैट कर के कुछ खास धागों को उठायागिराया जाता है, जिस से सिंपल डिजाइनें बनती हैं जैसे चैक्स, डायमंड्स, डौट्स, जिगजैग आदि. इस तकनीक से खादी कुरता फैब्रिक, लिनन या कौटन जैकेट मैटीरियल बनाया जाता है. कुछ ओडिशा की परंपरागत इकत और संबलपुरी डिजाइनों में भी डौबी का प्रयोग होता है.

डिजिटल डिजाइन टूल्स के आने से बुनाई न केवल आसान हुई है बल्कि इस का उत्पादन और कमर्शियल स्कोप भी बढ़ा है. इस ने न केवल हमारी विरासत को नया जीवन दिया है बल्कि यह बुनकरों और डिजाइनर्स दोनों के लिए आमदनी और रोजगार का नया जरीया भी बन गया है.

परंपरा से ट्रेंड तक की कहानी

भारतीय हैंडलूम की गिनती दुनिया की सब से पुरानी और समृद्ध कला परंपराओं में होती है. यह सिर्फ एक कपड़ा बुनने की प्रक्रिया नहीं बल्कि संस्कृति, शिल्प, धैर्य और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है. सदियों से बुनकर अपने करघों पर सिर्फ धागों को नहीं बल्कि कहानियों, परंपराओं और भावनाओं को भी बुनते आए हैं. बहुत से बुनकरों ने तो साडि़यों पर महाभारत और रामायण तक ऊकेर दी है. कहीं बुनाई में सोने, चांदी का संगम देखने को मिलता है. लेकिन टाइम के साथ बढ़ती टैक्सटाइल की डिमांड में हथकरघा कहीं पीछे छूट गया था. लेकिन अब मौडर्न हैंडलूम के रूप में पारंपरिक हथकरघा को एक नया जीवन मिल रहा है.

भारत की फेमस हैंडलूम का जिक्र करें तो राज्यवार यह जानना जरूरी है कि कौन से राज्य में कौन से हैंडलूम प्रचलित हैं और उन का अब कैसे नए सिरे से इस्तेमाल किया जा रहा है.

उत्तर प्रदेश: बनारसी ब्रोकेड

बनारसी साडि़यों में जरी का बारीक काम, मुगलकालीन डिजाइन और सोनेचांदी के धागों का इस्तेमाल होता था. ट्रैडिशनल तरीके से बनाई जाने वाली एक भारी बनारसी साड़ी बुनने में 15 से 30 दिन तक लग सकते हैं. आज इसी ब्रोकेड फैब्रिक से जंपसूट, जैकेट्स और कोआर्ड सैट्स तैयार किए जा रहे हैं. युवा अपनी मां के वार्डरोब में रखी सालों पुरानी साडि़यों को भी रियूज कर उन्हें नया जीवनदान दे रहे हैं ताकि वे कपड़े सिर्फ अलमारियों की भीड़ न बन कर पार्टी की जान बन सकें.

पश्चिम बंगाल: जामदानी और तांत

जामदानी की बुनाई इतनी मुश्किल होती है कि हर डिजाइन को धागों के बीच अलग से इंसर्ट करना पड़ता है. इस में महीन कौटन इस्तेमाल होता है और एक साड़ी बनाने में 20 से 60 दिन तक लग सकते हैं. लेकिन अब इस का प्रोडक्शन नई तकनीक के इस्तेमाल से कुछ आसान हुआ है. आज इस कपड़े से टेपरड ड्रैसेस और कैप स्टाइल कुरतियां बनती हैं, साथ ही इस के बने काफतान भी लोग काफी पसंद कर रहे हैं.

तमिलनाडु: कांजीवरम सिल्क

कांजीवरम साड़ी को साडि़यों की रानी कहा जाता है. मोटी रेशमी जरी वाली इस बुनाई में साड़ी के बौर्डर और पल्लू अलग बुन कर जोड़े जाते हैं. पारंपरिक तरीके से इस की वीविंग में एक से डेढ़ महीना लग सकता है. अब इस के मोटिफ्स से क्लच बैग्स, ब्लेजर और इंडोवैस्टर्न गाउन भी बन रहे हैं.

तेलंगाना: पोचमपल्ली इकत

इकत एक खास बुनाई तकनीक है, जिस में पहले धागे को रंग कर फिर बुनाई की जाती है. इस में सिंक्रनाइज डिजाइन का मिलान बहुत मुश्किल होता है, इसलिए इसे मैथेमैटिक्स औफ थ्रैड भी कहा जाता है. अब पोचमपल्ली इकत से फ्लोई ड्रैस, पैंट और कुरता सैट बनते हैं जो हर वर्ग में काफी पौपुलर हैं.

ओडिशा: संबलपुरी और पासापल्ली इकत

संबलपुरी इकत की बुनाई में मुश्किल जिओमैट्रिक डिजाइनें बनाई जाती हैं. एक ड्रैस मैटेरियल तैयार करने में 2-3 सप्ताह लगते हैं. अब इस के ब्लौक पैटर्न का इस्तेमाल स्कर्ट और जैकेट जैसे आउटफिट्स बनाने में भी किया जा रहा है.

राजस्थान और गुजरात: बंधेज और पटोला

बंधेज यानी टाईडाई और पटोला बुनाई दोनों ही काफी पुरानी कारीगरी हैं. पटोला डबल इकत में आता है जो सब से कठिन बुनाई में गिना जाता है. पटोला की एक साड़ी में 5 महीने तक का समय लग सकता है. साडि़यों के अलावा अब इस से दुपट्टे, काफतान और कैप्सूल ड्रैसेज तैयार की जा रही हैं. जो काफी ऐलिगैंट लगती हैं.

हैंडलूम की मौडर्न वापसी

मौडर्न हैंडलूम की खासीयत यही है कि यह परंपरा को तोड़ता नहीं बल्कि उसे आज के फैशन में ढाल देता है. ब्रोकेड के जंपसूट, इकत की मिनी ड्रैसेज, खादी कौटन का औफिस वियर जैकेटपैंट, जामदानी की मैक्सी ड्रैस या संबलपुरी की ऐथनिक स्कर्ट्स, ये सब दिखाते हैं कि कैसे हैंडलूम अब सिर्फ शोपीस नहीं बल्कि डेली वियर फैशन का हिस्सा बन गया है.

टैक्नोलौजी और ट्रैडिशन की भागीदारी

फिलहाल हैंडलूम डिजाइनर सिर्फ हाथों से नहीं, कंप्यूटर डिजाइन सौफ्टवेयर से भी डिजाइनें बनाते हैं. सीएडी यानी कंप्यूटर ऐडेड डिजाइन टूल से डिजाइन तैयार कर जैक्वार्ड या डाबी करघों में ट्रांसलेट किया जाता है. इस से कपड़ा बुनने से पहले उस की डिजाइन को तैयार करने में काफी समय की बचत होती है, साथ ही इस से न सिर्फ प्रोडक्शन टाइम में बचत हुई बल्कि बुनकरों को नई डिजाइन में काम करने का मौका भी मिला है. इस से प्रोडक्शन भी बढ़ा है.

मौडर्न हैंडलूम सिर्फ फैशन ट्रेंड नहीं, इस में हम अपनी विरासत को सम्मान भी देते हैं, कारीगर को रोजगार मिलता है और फैशन को स्टैबिलिटी मिलती है. हैंडलूम पहनना सिर्फ स्टाइलिश होना ही नहीं, समझदारी और सामाजिक जिम्मेदारी भी है क्योंकि इस से हमारी लोकल इकौनोमी भी स्ट्रौंग होती है.  Modern Handloom

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