Youth Future Planning: युवा किताबें छोड़ मोबाइल पकड़े हुए हैं और आर्ट ऐंड डिजाइन की जगह बेतुकी रील्स बना रहे हैं. युवा निर्भय और बेशर्म हो अपना निजी जीवन इन रील्स में एक चटपटी मूवी की तरह दुनिया को दिखा रहे हैं. ये रील्स बनाने की प्रतिस्पर्धा मे यों लगे हैं जैसे आगे निकलने वाला देश का नया प्रैसिडैंट बनेगा.

एक आम व्यक्ति का जीवन लगभग 80 वर्ष का होता है और इन्हीं 80 वर्षों में 5 साल का एक ऐसा पड़ाव आता है जो बहुत महत्त्वपूर्ण होता है और वह पड़ाव है 16 से 20 की उम्र का. ये 5 साल खास व कीमती इसलिए हैं क्योंकि इन्हीं 5 सालों में किसी भी विद्यार्थी के पूरे जीवन की रूपरेखा तैयार होती है. इन 5 सालों में स्कूल व कालेज में चुने गए विषयों का गहन अध्ययन कर सफलता हासिल करनी होती है. यहां अगर वह अपने लक्ष्य से भटक गया तो उस का खमियाजा पूरे 65 वर्ष उठाना पड़ सकता है.

भविष्य की नींव इन्हीं 5 सालों में रखी जाती है. हमें भविष्य में क्या करना है, कैसे करना है और उस कार्य में कैसे सफल हों उस की रणनीति तैयार करनी होती है. ये 5 साल न केवल शैक्षणिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि कैरियर बनने के लिए भी. हायर स्टडी, स्कौलरशिप, मशहूर यूनिवर्सिटी में एडमिशन, प्रतियोगी परीक्षाओं, टौप एमएनसी की जौब इन सभी तक पहुंचने की सीढ़ी यहीं से शुरू होती है.

रूट टू प्रोग्रैस: स्कूल के वे 2 अंतिम वर्ष अर्थात 11वीं और 12वीं कक्षा आगे की पढ़ाई का मार्ग तैयार करती हैं. अगर इन 2 वर्षों मे खासकर अंतिम वर्ष में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने में असफल रहा तो विशेष कालेज और यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाने की रेस से बाहर निकल जाएगा. इसलिए अति आवश्यक है कि वह अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिऊर् अपनी पढ़ाई पर दे.

स्कौलरशिप बूस्टर: कुछ बच्चे कठिन परिश्रम कर स्कौलरशिप प्राप्त करते हैं. यह एक तरह का इनाम है जो किसी विद्यार्थी को हार्ड वर्क से मिलता है. यह केवल उसे वित्तीय सहायता नहीं देता है बल्कि उस का उत्साह, उस का कौन्फिडैंस भी बूस्ट करता है. साथ ही जब इस तरह का इनाम आप के प्रोफाइल व रिज्यूम में लिखा जाता है तो आप की काबिलीयत भी दिखती है जो आगे के कंपीटिशन या इंटरव्यू में एक अच्छा इंप्रैशन जमाती है.

अर्निंग ऐंड डैवलपमैंट: अगर इन 5 सालों में पूरा परिश्रम करें तो उस का फल एक अच्छी अर्निंग के रूप में मिल सकता है. कोई भी बड़ी कंपनी उन्हीं कैंडीडेट्स को हायर करती है जिन्होंने ऊंच अंक की डिगरी प्राप्त कर अपनी काबिलीयत दिखाई हो. एक बड़ी कंपनी में नौकरी केवल ज्यादा कमाई का साधन नहीं होती बल्कि अपनी खुद की योग्यता को निखारने और विस्तार करने का माध्यम भी होती है.

स्टैबिलिटी ऐंड रिलायबिलिटी: युवा इन 5 सालों का सही उपयोग करें तो आने वाले कल में उन का जीवन स्टैबल तो बनेगा ही साथ में एक स्टैबिलिटी भी आ जाती है. अच्छे अंकों से डिगरी प्राप्त कर किसी कंपनी को जौइन करेंगे तो वे आर्थिक रूप से इंडिपैंडैंट ऐंड कौन्फिडैंट बनेगे. अपनी यह सफलता देख उन का खुद पर विश्वास भी बढ़ेगा, साथ ही उन का परिवार भी उन पर विश्वास करेगा कि वे भौतिक और आ्रिथक रूप से उन का सहारा बनने में सक्षम हैं.

पर्सनल ग्रोथ: केवल शैक्षणिक योग्यता एवं कैरियर के लिहाज से ही नहीं मानसिक और व्यक्तिगत रूप से भी यह समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस समय किसी भी विद्यार्थी का मनमस्तिष्क दुनिया के उतारचढ़ाव, उस की तेज दौड़ से, उस के बदलाव से मानसिक व भावनात्मक रूप से जुड़ता है और खुद को भी इस दुनिया में चली आ रही रेस के लिए तैयार करने की कोशिश करता है.

आपातकालीन परेशानियों से बचाव: अगर युवा इन 5 सालों में मेहनत कर अपने जीवन में स्टैबिलिटी ऐंड रिलायबिलिटीज पता हैं तो भविष्य में आने वाली आपातकालीन परेशानियों जैसे कोई गंभीर बीमारी का खर्चा, आकस्मिक पारिवारिक खर्चा या किसी अन्य आर्थिक विपत्ति का सामना करने की हिम्मत रखता है.

मगर इन 5 सालों का सही उपयोग करना इतना भी आसान नहीं होता बल्कि ये साल अब बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं और इस के पीछे का कारण है भटकाव और इस भटकाव के कई कारण हैं जैसे:

अनिश्चितता: बहुत से युवाओं को यह पता नहीं होता कि उन्हें अपना कैरियर किस फील्ड में बनाना है. आगे पढ़ाई में विषय क्या लेना है. या तो वे एक विकल्प का चयन नहीं कर पाते या उन्हें सारे ही विकल्प पसंद होते हैं या कोई भी नहीं.कभी तो अपना चयन किया विषय ही उन्हें बेकार या कठिन लगने लगता है. अपने विषयों के प्रति अनिश्चतता उन्हें अपना लक्ष्य निर्धारित करने से रोकती है.

कूल दिखने की होड़: हमारे युवा कूल दिखने की होड़ में गलत रास्ते पर निकल पड़े हैं. उन्हें लगता है सिगरेट की डिबिया खत्म करने से या शराब पीने की रेस में आगे निकलने से वे कूल दिख रहे हैं और लोगों को इंप्रैस कर रहे हैं जबकि सत्य यही है कि सिगरेट उन के फेफड़ों को जला रही है और शराब उन का लिवर व किडनियां सड़ा रही है. लेकिन यह बात उन्हें तब तक समझ नहीं आती जब तक वे स्वयं इस घात को देख नहीं लेते.

रिलेशनशिप हाई स्टेटस: कूल दिखने की होड़ के साथ एक और होड़ चली आ रही है और वह है रिलेशनशिप की. युवाओं को लगता कि किसी के साथ प्रेम संबंध में होना उन का स्टेटस अपने फ्रैंड सर्कल मे ऊंचा उठा देगा. यह होड़ युवा लड़कियों में अब अधिक हो गई है जिस उम्र में उन्हें प्रेम शब्द का वास्तविक अर्थ भी नहीं पता होता उस उम्र में वे भ्रमित प्रेम संबंधों में पड़ कर अपना भविष्य खराब कर रहे होते हैं.

नो टाइम मैनेजमैंट: टाइम इसे युवा अनेक नामों से जानते होंगे लेकिन इस का सदुपयोग तो बिलकुल नहीं. पूरा जीवन सिर्फ समय के सही उपयोग पर टिका है. मगर आज के युवा इस पर ध्यान नहीं देते हैं. न तो उन्हें समय पर पढ़ाई करने का होश है, न खाना खाने का, न सोने का और न ही किसी अन्य कार्य को सही समय पर करने का. उन के लिए टाइम का मतलब है डेटिंग टाइम, चैटिंग टाइम, हैंग आउट टाइम और ब्रेक टाइम. ब्रेक भी पढ़ाई से. पढ़ाई को तो टाइम दिया जाता ही नहीं. व्यर्थ के कामों के लिए उन का शेड्यूल बना रहता है. लेकिन अपने भविष्य की योजना और उस पर परिश्रम के लिए उन्हें समय मिलता ही नहीं.

रील्स किंग: पहले रील्स शब्द म्यूजिक, थिएटर, कैमरा के लिए बोलासुना जाता था, मगर अब यह किसी की पर्सनैलिटी, उस के लाइफस्टाइल से जुड़ चुका है. युवा किताबें छोड़ मोबाइल पकड़े हुए हैं और आर्ट ऐंड डिजाइन की जगह बेतुकी रील्स बना रहे हैं. युवा निर्भय और बेशर्म हो अपना निजी जीवन इन रील्स में एक चटपटी मूवी की तरह दुनिया को दिखा रहे हैं. ये रील्स बनाने की प्रतिस्पर्धा मे यों लगे हैं जैसे आगे निकलने वाला देश का नया प्रैसिडैंट बनेगा.

मांबाप के पैसे का कचरा: बच्चों को मातापिता बचपन से बचत कैसी करनी है सिखाते आ रहे हैं लेकिन बहुत कम है जो इस सीख से कुछ सीख पाए. 16-20 साल की उम्र मे इन्हें बचत का मंत्र अपना लेना चाहिए. इस उम्र में पैसे का मूल्य जान गए तो पूरा जीवन आर्थिक परेशानियों से बच सकता है. लेकिन बचत मंत्र छोड़ ये खर्चा धुन अपनाए हुए हैं. अपनी पौकेट मनी तो ये फुजूल की चीजों पर खत्म करते ही हैं, साथ मातापिता की पूंजी को भी उड़ा रहे होते हैं. इन्हें लगता है इन का परिवार धन कमा ही सिर्फ इसलिए रहा हैं कि ये अपने शौक पूरे कर सकें. इन्हें यह कैसे समझएं कि धन कमाने और बचत करने से बढ़ता है न कि अंधाधुंध खर्च करने से. इन्हें यह भी याद रखना चाहिए की हमेशा के लिए न तो मातापिता का धन रहेगा और न ही कमाने के लिए मातापिता.

बीमारियों को न्योता: इन का लाइफस्टाइल इतना दूषित हो चुका है कि लाइफ कितनी लंबी और स्वस्थ्य होगी इस की शंका बन गई है. जहां हम 80 वर्ष जीवनआयु की बात कर रहे हैं इन के 40-60 वर्ष पूरे न होने का भय भी है. इन का खानापान बहुत अनहाईजीनिक हो चुका. पोषण मिले ऐसा भोजन तो इन्हें भाता ही नहीं. रैडी टू ईट, जंकफूड, स्ट्रीट फूड और क्वीन के नाम पर बहुत मात्र में केवल अनहैल्दी फूड ही खाया जा रहा है जो इन्हें कम उम्र मे ही फैटी लिवर, डायबिटीज, ओबीसीटी, पीसीओडी, डाइजेशन प्रौब्लम जैसी तकलीफें दे कर न सिर्फ शरीर बीमार कर रहा है बल्कि इन का भविष्य भी.

मानसिक कैद: इस उम्र में कल्पनाओं को नई उड़ान मिलती है. उस उम्र में युवा कूल बनने के चक्कर में प्रेम प्रसंगों, नशे की लत में फंस खुद के लिए कई मानसिक पीड़ा पैदा कर लेते हैं. जिस समय इस का मस्तिष्क सृजनात्मक कार्यों व कलाओं में व्यस्त होना चाहिए, उस समय ये डिप्रैशन, ऐंग्जाइटी, लोअर कौन्फिडैंस, सैल्फ इनसिक्यूरिटी से घिर रहे हैं.

फेक इंडिपैंडैंट: अकसर युवा इंडिपैंडैंस का गलत मतलब निकाल लेते हैं. उन्हें लगता है इंडिपैंडैंट होना सिर्फ अपनी मरजी का करना, परिवार की बातों को अनसुना करना और सामाजिक मूल्यों व नियमों को तोड़ना है. इस तरह का आचरण कर ये खुद को इंडिपैंडैंस बोलते हैं जबकि सचाई इस के विपरीत है. पहले तो ये हर रूप से अपने परिवार पर डिपैंडैंट होते हैं दूसरा अगर ये अपने किसी कार्य व व्यवहार के कारण किसी मुश्किल में आ गए तो उस का जिम्मा भी अपनों या दूसरों पर डाल देते हैं कि उन्होंने समय पर उन्हें क्यों नहीं समझया या रोका. यह पीढ़ी अपनी गलतियों का न बीड़ा उठाना चाहती है और न ही उस से सीख ले कर सुधरना.

खोखले रोल मौडल: युवा अवस्था में कोई रोल मौडल होना आम बात है. बहुत युवा अपने रोल मौडल से प्रभावित हो, प्रेरणा ले स्वयं को सफल बनाते हैं लेकिन ये तब जब प्रेरणा लेने वाला दृढ़ निश्चय वाला हो और प्रेरणा देने वाला योग्य व सफल. परंतु आज युवाओं के रोल मौडल खोखले विचार और चरित्र वाले होते हैं. आज रोल मौडल वे हैं जो सोशल मीडिया पर बिना तर्क की बातों का लैक्चर दिए जा रहे हैं, शरीर या पैसे का दिखावा कर रहे हों या आर्ट, पैशन और फ्रीडम के नाम पर किसी भी तरह की गंदगी दिखा व फैला रहे हों.

खानाबदोश बनने का ट्रेंड: बहुत से युवा फिल्मों को देख या सोशल मीडिया पर ट्रैवलिंग इन्फ्लुएंसर को देख इतने प्रभावित होते है कि स्वंय भी एक बैग उठा जीवन के सफर पर निकल पड़ते हैं. इन्हें लगता दुनिया में यों ही घूमते रहना ही जीवन है. ये यह भूल जाते हैं कि इन का जीवन न कोई मूवी है न ये कोई ऐक्टर, जिन्हें किसी जंगल या जटिल माहौल में पूरी सुखसुविधा के साथ सरवाइवल औफ द फिटैस्ट की सिर्फ ऐक्टिंग करनी होती है.

बड़ों को नाकाबिल समझना: युवाओं को अपने बड़ेबुजुर्ग ओल्ड फैशंड सामान की तरह लगते है और उन की बात और सलाह बेबुनियाद या मूर्खतापूर्ण. उन के लिए उन का अपना जीवनअनुभव ही काफी है दुनिया के उतारचढ़ाव समझने के लिए. इन्हें यह पता ही नहीं कि जिसे वे जीवन का अनुभव समझ रहे हैं वह केवल जीवन का एक छोटा सा समय है. जो ज्ञान उन्हें उन लोगों से मिल सकता है जो किसी ने जीवन के 60 वर्षों में अर्जित किया है, उस ज्ञान को वे सिर्फ कुछ समय में हुए व्यवहारों के आगे नकार देते हैं, साथ ही अगर वे देखते हैं कि उन के मातापिता आम जीवन जी रहे हैं, किसी बड़ी पूंजी, बड़ी पोस्ट या समाज के बड़े ठेकेदारों में से एक नहीं तो वे नाकाबिल हैं. इन के अनुसार जो अपने जीवन मे अमीर न बन सके, उन्हें अपने बच्चों को किसी भी तरह की सलाह या ज्ञान नहीं देना चाहिए. Youth Future Planning

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