हाई सोसायटी में भी तलाक लेना अब आम बात हो गई है. ऐसी महिलाएं जो अपने कार्यक्षेत्र में उच्च पदों पर पहुंच चुकी हैं, आर्थिक रूप से काफी सक्षम हैं, वे पारिवारिक बंधनों से मुक्त हो कर आजाद हवा में सांस लेने के लिए उतावली हैं. जहां पैसा है, पावर है वहां तलाक जल्दी और आसानी से मिल जाता है, मगर निम्न और मध्यवर्गीय तबके में तलाक लेना एक मुश्किल, लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है.

यह लंबी, तनावपूर्ण और खर्चीली काररवाई पुरुषों पर उतना असर नहीं डालती, जितना स्त्रियों पर बुरा प्रभाव छोड़ती है. तलाक दिलाने का माध्यम बनने वाले वकील का खर्च, तमाम तरह के कानूनी दस्तावेज, बारबार अदालत में पड़ने वाली तारीखें, काउंसलिंग सैशन, घर और बच्चों के छूट जाने का डर स्त्री को बुरी तरह तोड़ देता है.

तारीख पर तारीख

कम पढ़ीलिखी और आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को वकीलों की फौज खूब बेवकूफ बनाती है. वकील के हत्थे चढ़ने के बाद शुरू हो जाता है अदालत में तारीख पर तारीख मिलने का सिलसिला. ज्यादातर पारिवारिक कोर्ट्स में वकील आपस में दोस्त होते हैं. वहां पतिपत्नी तलाक के लिए जिन्हें अपना वकील चुनते हैं, वे आपस में मिल जाते हैं और फिर दोनों पार्टियों से अच्छीखासी धनउगाही करते हैं.

वकीलों की कोशिश यही होती है कि केस लंबा खिंचे ताकि हर पेशी पर उन्हें फीस मिलती रहे. वहीं दस्तावेज तैयार करने के लिए भी वे अपने क्लाइंट से अच्छी धनराशि वसूलते हैं. कम पढ़ीलिखी, कानून की कम जानकार और सीधीसादी औरतें कभीकभी तो ऐसे वकीलों के चक्कर में फंस कर अपना सबकुछ गंवा बैठती हैं.

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