"हाय कैसी हो पूजा," प्रभात पूजा के पास आ कर बैठता हुआ बोला.

"गुड. आप बताओ, " पूजा ने भी पहचानी हुई नजरों से देखते हुए जवाब दिया.

"याद है न पिछली दफा हम रोहित की बर्थडे पार्टी में मिले थे, " प्रभात ने याद दिलाने की कोशिश की.

"हां याद है मुझे. आप विहान के दोस्त हो न? "

" हां. "

"मेरा नाम याद रह गया आप को ?" पूजा ने शरारत से कहा.

"बिलकुल. दरअसल उस पार्टी में मिला तो बहुतों से से था मगर याद केवल आप रहीं," प्रभात ने अपने दिल की बात कही
.
"अच्छा पर ऐसा क्यों ? "हंस कर पूजा ने पूछा.

"कुछ तो है आप में जो दूसरों में नहीं. शायद यह आप की बोलती हुई सी आँखें या फिर आप की यह मुसकान जो बस दिल पर असर करती है. "

"रियली? यानी मेरी मुसकान ने पहली ही बार में इतना असर कर दिया," पूजा प्रभात की आंखों में देखती हुई बोली.

"ऑफकोर्स, तभी तो महफ़िल में मेरी नजरें बस आप को ढूंढ रही थीं. "

"बहुत दिलचस्प हैं आप. हमारी काफी जमेगी पर अभी निकलना होगा मुझे. दरअसल मेरा भाई नीचे वेट कर रहा है. फिर मिलेंगे, " पूजा उठने लगी तो प्रभात ने अपना कार्ड देते हुए कहा, "श्योर. यह है मेरा नंबर कभी भी फ़ोन कर सकती हैं. "

"जरूर. थैंक्स. बाय. "

फ्लर्टिंग का यह एक छोटा सा उदाहरण है. प्रभात ने एक मामूली सी मुलाक़ात को दोस्ती में बदलने की पूरी कोशिश की थी और कामयाब भी हुआ.

जिंदगी बहुत खूबसूरत है मगर कई बार हम सही अर्थों में इस जिंदगी का आनंद नहीं ले पाते. कभी ऑफिस और घर की जिम्मेदारियां, कभी बीमारी हारी, कभी बोरियत भरी एकसार सी नीरस जिंदगी और कभी अकेलापन यानी किसी ऐसे साथी का अभाव जो बिल्कुल अपने जैसा हो और जो आप की रंगहीन जिंदगी में रंग भर जाए.

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