‘‘अरे यार सायमी,आज फ्राइडे है. शाम को मूवी देखने चलें? आज प्रिंसिपल मैडम की  झाड़ खा कर मेरा मूड बेहद खराब हो रहा है. थोड़ा चिल करना चाहती हूं. टिकट बुक करवा लूं क्या?’’ कियारा ने अपनी फ्रैंड सायमी से कहा.

‘‘नहीं यार. आज शाम को तो मूवी बिलकुल नहीं जा पाऊंगी. शाम को अपने कजिंस के साथ मूवी देखने उन्हीं के पास जा रही हूं.’’

‘‘क्या तेरी कजिंस तु झ से इतने क्लोज हैं कि तू एक पूरी शाम उन के साथ बिताएगी? तू भी न वास्तव में विचित्र है. मौजमस्ती के लिए आउटिंग्स पर फ्रैंड्स के साथ जाया जाता है या परिवार के साथ.’’

‘‘अरे भई, मेरे ये डिस्टैंट कजिंस मेरे फ्रैंड्स ही हैं. मेरा कजिन मेरी जिंदगी का सब से फ्रैंडली और स्ट्रौंग सपोर्ट सिस्टम है. उन्हीं की वजह से मैं इस अनजान शहर में अकेले रहते हुए लाइफ के हर उतारचढ़ाव को बड़ी आसानी से फेस कर रही हूं. तू इमैजिन नहीं कर सकती, जिंदगी के हर मोड़ पर वे मेरा कितना साथ देते हैं. तू तो अभी इस स्कूल में नईनई आई है. कोई भी तो ऐसा नहीं है जिस से मन की बातें शेयर कर के जी हलका कर सकूं. हम 3 डिस्टैंट कजिंस हैं. बचपन से साथ पलेबढ़े हैं. तीनों इसी शहर में हैं. इन फैक्ट मु झे नए शहर में अकेले आने की परमिशन मिली तो वह भी मेरे इन कजिंस की वजह से ही.’’

निर्भरता खटकने लगी

‘‘मेरा परिवार बेहद रूढि़वादी और परंपरावादी है. हम जयपुर के पास खैरथल नाम के एक कसबे में संयुक्त परिवार में रहते हैं. हमारे घर के कर्ताधर्ता मेरे ताऊजी हैं. पापा का बिजनैस कोई खास नहीं चलता. उस से तो बस हम 5 सदस्यों के परिवार की दालरोटी ही बेहद मुश्किल से चल पाती है. बड़े खर्चों के लिए हमें ताऊजी का मुंह देखना पड़ता है.

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