एक रिपोर्ट के मुताबिक, जो पुरुष घर के कामों में सहयोग करते हैं, वे अन्य पुरुषों की तुलना में ज्यादा खुश रहते हैं. यह रिपोर्ट उन मर्दों के लिए खुशखबरी भरी है, जो घरेलू काम करने को अपनी तौहीन समझते हैं. ऐसे पुरुष यह मानते हैं कि घरेलू काम सिर्फ औरतों को ही करना चाहिए.

शुरू से ही एक औरत न सिर्फ घर का, बल्कि बाहर का कामकाज भी करती आ रही है. वह दोनों भूमिकाएं बखूबी निभाती है. एक समय था जब वह घर से निकल कर खेत भी जाती थी. पशुओं को चराना, नहलाना, बोझा ढोना, लकडि़यां इकट्ठा करना और फिर घर आ कर गृहस्थी के कामों में जुट जाना. बच्चों को दूध पिलाना, खाना बनाना व परोसना सहित घर के तमाम काम उस के ही सिर पर थे. पुरुष केवल तब तक ही हाथपैर चलाता था जब तक घर से बाहर होता था. घर की चौखट के भीतर आते ही वह पानी पी कर गिलास भी स्वयं नहीं रखता था. घर में उस का काम केवल आराम करना व पत्नी को गर्भवती बनाना मात्र ही था.

आज भी यों तो अधिकांश घरों में इसी परंपरा का पालन होता आ रहा है, मगर बदलते जमाने में जब नई जैनरेशन के पति यह देख रहे हैं कि पत्नियां घर से बाहर निकल कर घर की आर्थिक स्थिति में सहयोग दे रही है, तो वे घर के कामकाज में हाथ बटाने लगे हैं. यह एक अच्छी शुरुआत है.

औरत नहीं मशीन

ऐसा देखा गया है कि पतिपत्नी अथवा सासबहू के बीच होने वाले ज्यादातर कलह घरेलू कामों को ले कर ही होते हैं. यह तो अच्छा है कि किचन व अन्य इलैक्ट्रौनिक होम ऐप्लायंसेज की वजह से महिलाओं के लिए काम करना थोड़ा सुलभ हुआ है. इस से उन के काम कुछ जल्दी निबट जाते हैं.

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