बर्फ से लदी पर्वत चोटियों से सटे हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से निकलती छोटी-छोटी नदियां, जिनकी सतह पर मौजूद सफेद पत्थरों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो अविरल धारा पर उभरते सफेद मोती जैसे प्रतिबिंब को देख ऐसा लगता है कि कहीं यह किसी चित्रकार की कल्पना तो नहीं. भारत-तिब्बत सीमा पर बसा चितकुल (छितकुल) गांव ऐसी ही एक जगह है. इसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है. यह समुद्र तल से करीब 3450 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित बास्पा घाटी का अंतिम और ऊंचा गांव है.

बास्पा नदी के दाहिने तट पर स्थित इस गांव में स्थानीय देवी माथी के तीन मंदिर बने हुए हैं. इस गांव को किन्नौर जिले का क्राउन भी कहा जाता है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह गांव प्रकृति की अद्भुत सुंदरता को खुद में समेटे है.

हाटू मंदिर

घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर करीब 50 किलोमीटर चलने के बाद शिवालिक पर्वत श्रेणी से घिरे 2710 मीटर की ऊंचाई पर बसा है नारकंडा. नारकंडा भी लोकप्रिय हिल स्टेशन है. नारकंडा से 5 किलोमीटर दूर देवदार के पेड़ों से घिरे 3400 मीटर की ऊंचाई पर हाटू पीक है. यहां लकड़ी से बना हाटू माता का मंदिर है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मंदिर रावण की पत्नी मंदोदरी का है.

खतरनाक सड़कें

नारकंडा से रामपुर, सराहन, वांगटू, करच्छम, सांगला से होते हुए दुनिया की कुछ सबसे खतरनाक सड़कों हैं, इन्हें ड्राइविंग के लिए एक चुनौती माना जाता है. रक्छम रक्छम पहाड़ की ऊंचाइयों पर बसा खूबसूरत गांव है. बर्फ से लदी पर्वत चोटियों के बीच बसे छितकुल से 10 किलोमीटर पहले करीब 3050 मीटर की ऊंचाई पर यह गांव है. यहां से हरे-भरे घास के मैदानों से होते हुए छोटी-छोटी जल धाराएं निकलती हैं, जो आगे चलकर बास्पा नदी में समा जाती हैं.

ट्रैकर्स के लिए अद्भुत जगह

जो लोग एडवेंचर यानी ट्रैकिंग के शौकीन हैं, वे रक्छम से छितकुल के बीच 10 किलोमीटर की लंबी ट्रैकिंग कर सकते हैं. जो लोग इससे भी ज्यादा ट्रैकिंग करने का साहस रखते हैं, वे रक्छम से 12 किलोमीटर का ट्रैक कर रक्छम कांडा तक जा सकते हैं. यहां नदियों के उद्गम स्थल भी दिखाई देंगे.

दर्शनीय स्थल

सांगला वैली के कामरू गांव में करीब 2600 मीटर की ऊंचाई पर कामरू फोर्ट 15वीं शताब्दी में बना था. इसी के प्रांगण में कामाख्या देवी का मंदिर है. लकड़ी का बना यह फोर्ट लकड़ी पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए विख्यात है. यहां पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर पैदल चलना पड़ता है. यहीं से किन्नर कैलाश को भी देखा जा सकता है. यहां से आप रिकांगपियो, पूह विलेज, नाको, काजा होते हुए स्पीति वैली जा सकते हैं.

कब जाएं

छितकुल आने के लिए सही समय अप्रैल से मध्य जून और अगस्त से अक्टूबर तक माना जाता है. लेकिन याद रहे, चाहे चिलचिलाती गर्मी का ही मौसम क्यों न हो अपने साथ गर्म कपड़े हमेशा रखें, क्योंकि यहां बारिश के छींटे भी दिसंबर और जनवरी की कड़कड़ाती सर्दी का अहसास कराने के लिए काफी है.

कैसे पहुंचें

शिमला से किन्नौर के लिए बसें मिल जाती हैं. नजदीक का हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन शिमला में ही है. नेशनल हाईवे 22 पर शिमला से रिकांगपिओ तक का सफर लगभग 10 घंटे का है. आप रिकांगपिओ या फिर रक्छम से छितकुल के लिए बस या फिर किराये की गाड़ी भी ले सकते हैं.

कहां ठहरें

छितकुल में ठहरने और खाने-पीने की उचित व्यवस्था है. यहां आपको आधुनिक सुख-सुविधाओं वाले होटल मिल जाएंगे.

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