विनीता राहुरिकर (भोपाल, मध्यप्रदेश)

प्यारी मां,

सस्नेह प्रणाम, कई बार हम सामने बैठकर अपनी भावनाओं को इतना खुलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं जितना उन्हें पत्र में लिख कर कर पाते हैं. इसलिए इस स्मार्टफोन के जमाने में भी मैं तुम्हें पत्र लिख रही हूं. बचपन से ही देखती आई हूं तुम पति की सच्ची संगिनी, घर की कर्तव्यशील बहू, बच्चों की स्नेहशील ममतामयी मां और इन सबसे ऊपर एक कर्मठ व्यक्तित्व की स्वामिनी हो.

नहीं खोई अपनी पहचान...

ढेर सारे रिश्तो की भीड़ में उम्र भर से तुम न जाने कितनी ही भूमिकाओं का निर्वाह बहुत आत्मीयता और अपनेपन, लगन से करती रही हो. लेकिन तुम्हारा सबसे अच्छा गुण जिसने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है वह है अपनी सारी व्यवस्थाओं, व्यस्तताओं और सभी भूमिकाओं को पूरी जिम्मेदारी से निभाने के पश्चात भी अपने अंदर के व्यक्ति को, अपने अंदर की स्त्री को भी पूरा मान-सम्मान देना. तभी तो तुम घर-परिवार, सास-ससुर, पति, बच्चों, नाते-रिश्तेदारों के पूरे कर्तव्य हंसते हुए पूरे मन से निभा पाई क्योंकि तुम्हारे अंदर की स्त्री अपने आप में संतुष्ट थी, सुखी थी.

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हमेशा कुछ नया सीखने की चाह...

तुममें पढ़ने और कुछ न कुछ नया सीखते रहने की सतत लगन है. कई औरतें अपने आप के लिए समय न मिल पाने के क्षोभ और क्रोध में अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभा पाती. वह अपना सम्मान भी नहीं रख पाती और उस हीनताबोध और कुंठा में दूसरों का अपमान करते हुए भी मैंने उन्हें देखा है. वही मैंने देखा कि तुमने हमेशा अपने व्यक्तित्व में एक गरिमामयी संतुलन बनाए रखा.

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