आखिर एक औरत ही क्यों कभी मातापिता के लिए, तो कभी पतिबच्चों के लिए ऐडजस्ट करती रहे? आशा के साथ भी यही होता आ रहा था. एक दिन उस ने खुद को बदलने का फैसला कर लिया…

किचन में चाय बनाती हुई आशा की फटी कुरती से झांकती उस की बांह देख अनिल को याद आया कि उस ने उस से कुछ पैसे मांगे थे अपने वास्ते कपड़े खरीदने के लिए और अनिल ने कहा था कि हां ठीक है ले लेना मगर वह भूल गया. काम की व्यस्तता के कारण उसे याद ही नहीं रहा और आशा यह सोच कर चुप लगा गई कि शायद अभी अनिल के पास पैसे नहीं होंगे. कोई बात नहीं अगले महीने ले लेगी. लेकिन अनिल को तो अगले महीने भी याद नहीं रहा कि आशा को पैसे देने हैं. आशा ने भी फिर पैसे इसलिए नहीं मांगे कि जब होगा खुद ही दे देगा.

‘ओह,’ एक गहरी सांस लेते हुए अनिल खुद में ही बुदबुदाया, ‘आमदनी अठ्ठनी और खर्च रुपया. यहां कमाई से ज्यादा तो खर्चे हैं घर के. तनख्वाह आते ही ऐसे उड़ जाती है जैसे पतंग. चलो, आज बैंक से थोड़े पैसे निकाल कर आशा को दे दूंगा,’ सोच में मग्न अनिल को यह भी ध्यान नहीं रहा कि आशा चाय रख गई है.

‘‘चाय ठंडी हो रही है, पी लो,’’ आशा ने टोका तो अनिल अचकचा कर उधर देखने लगा. ‘‘पता है न अगले महीने से अमन बेटे की बोर्ड की परीक्षा शुरू होने वाली है? लेकिन तुम चिंता मत करो, उस की तैयारी अच्छी चल रही है. अच्छा, मैं नाश्ता तैयार कर देती हूं तब तक तुम स्नान कर लो,’’ बोल कर आशा जाने ही लगी कि उसे एक जरूरी बात याद आया गया और पलट कर फिर बोली, ‘‘अरे सुनो, मांजी की दवा खत्म हो गई है. औफिस से आते वक्त लेते आना. अच्छा, तुम रहने देना. मु?ो आज बाजार जाना ही है तो मैं ही ले आऊंगी.’’

 

‘‘हां, तुम्हीं ले आना दवा क्योंकि हो सकता है कि आज मु?ो औफिस से आने में देर हो जाए,’’ अपनी चाय खत्म करते हुए अनिल बोला और सोचने लगा कि उसे अपने लिए तो कभी समय ही नहीं मिल पाता है. सुबह खापी कर जल्दी औफिस भागो और रात में थकेहारे घर पहुंचो, खाओ और सो जाओ. जिंदगी तो जैसे मशीन बन कर रह गई है. वैसे आज तो औफिस में उतना ज्यादा काम नहीं है. लेकिन मु?ो तो आज अपनी कलीग शलिनी के बेटे के जन्मदिन पर जाना है, इसलिए घर आने में लेट तो हो ही जाएगा. लेकिन यह बात मैं ने आशा को इसलिए नहीं बताई कि बेकार में हजार सवाल करेगी और कहेगी, खुद तो मजे करते हो और मु?ो कहीं ले कर नहीं जाते.

 

‘‘यह लो, अब मुंगेरी लाल की तरह क्या सोचने लगे? यही सोच रहे हों न कि तुम अपनी बीवी को समय नहीं दे पाते,’’ आशा हंसी, ‘‘इसलिए कहती हूं 2-4 दिन की छुट्टी ले कर कहीं घूमने चलते हैं. लेकिन तुम्हें तो अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती. जब देखो कामकामकाम की रट लगाए रहते हो.’’

आशा की बात पर अनिल ने उसे गौर से देखा और सोचने लगा कि यहां तो सब को अपनी पड़ी है. मां अलग तीर्थयात्रा की रट लगाए हुई है, अमन को जब देखो पैसे चाहिए होते और आशा को उस से हरदम यही शिकायत रहती है कि वह उसे कहीं घुमाने ले कर नहीं जाता. तो क्या घूमनेफिरने में पैसे खर्च नहीं होते? कहां से आएंगे पैसे? लेकिन इसे यह बात कहां सम?ा में आती है. अपने मन में सोच अनिल तिलमिला उठा.

‘‘बोलो न क्या सोच रहे हो?’’ आशा ने अनिल को धीरे से धक्का देते हुए पूछा. ‘‘नहीं सोच नहीं रहा हूं बल्कि देख रहा हूं कि न तो घर में बीवी खुश है और न औफिस में बौस. मैं ही पागल हूं जो पूरे दिन पागलों की तरह मेहनत करता रहता हूं,’’ मुंह बनाते हुए बोल कर अनिल बाथरूम में घुस गया.

उधर आशा सोचने लगी कि ये अनिल भी अजीब ही इंसान हैं. जरा मजाक भी करो तो गुस्सा हो जाते हैं. खैर, वह भी कुछ न बोल कर किचन में चली गई. वैसे आशा भी सम?ाती थी कि अनिल अपनी जगह सही हैं. आखिर, पूरा दिन परिवार के लिए ही तो खटते रहते हैं. जिंदगी में इंसान को थोड़ाबहुत एडजस्ट करना आना चाहिए.

अनिल को भी इस बात का बुरा लगा कि उस ने आशा से गलत तरीके से बात की. लेकिन वह भी क्या करे? क्या उस का मन नहीं करता अपने परिवार के साथ समय बिताने का? आशा ने उस से कहा था इस संडे वह उस के साथ बाजार चलेगी. अपने लिए कुछ कपड़े खरीदने. लेकिन इस संडे भी उसे औफिस जाना पड़ गया, तो क्या करे वह? ‘‘आशा, नाश्ता बन गया तो दो भाई वरना रहने दो मैं बाहर ही कुछ खा लूंगा,’’ अपनी शर्ट के बटन लगाते हुए अनिल बोला तो आशा झट से नाश्ता लगाने लगी. उस ने अनिल का लंचबौक्स टेबल पर रखते हुए बस इतना ही कहा, ‘‘कुछ पैसे देते जाना क्योंकि बाजार से सामान लाने जाना है.’’ ‘‘हां, ठीक है,’’ कह कर अनिल जल्दीजल्दी नाश्ता करने लगा.

‘जब देखो राजधानी ऐक्स्प्रैस पर सवार रहते हैं’ आशा मन ही मन बुदबुदाई, ‘सुबह उठाओ तो उठेंगे नहीं, 2 मिनट 2 मिनट कर के 2 घंटे लगा देंगे और मु?ो कहते हैं मैं देर करवा देती हूं. फिर बोली, ‘‘अच्छा, सुनो, औफिस पहुंच कर एक फोन कर देना.’’ आशा की बात पर अनिल को हंसी आ गई.

‘‘हंस क्यों रहे हो? शुक्र मनाओ कि मैं तुम्हारी इतनी चिंता करती हूं वरना औरों की बीवियों को देखो… लेकिन तुम से तो जरा यह भी नहीं होता कि बैठ कर बीवी से प्यार की दो बातें ही कर लें. जब देखो ?िड़कते रहते हो या काम का रोना रोते रहते हो.’’

आशा की बात पर अनिल ने कुछ बोलना चाहा पर तभी आशा ने कहा, ‘‘कुछ बोलने की जरूरत नहीं, जाओ अब, बाय,’’ और दरवाजा लगा लिया और सोचने लगी कि वह भी सम?ा रही है कि अनिल को किसी बात की चिंता खाए जा रही है. यही कि इस साल अमन का 10वीं कक्षा का बोर्ड ऐग्जाम है और वह उसे समय नहीं दे पा रहा है. तो मैं ने कब उस से इस बात की शिकायत की है बल्कि मैं तो खुद अमन को पढ़ाती भी हूं और पूरे घर का भी खयाल रखती हूं, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों बातबात पर चिढ़ते रहते हैं ये. कोई भी बात बोलो उलटा ही जवाब देते हैं. बेकार में अपना बीपी तो बढ़ाते ही हैं, मेरा भी हाई कर देते हैं. वैसे किसी ने सही कहा कि काम भले मत करो पर काम की चिंता जरूर करो अनिल यही तो करते हैं. घरबाहर का सारा काम करती हूं मैं और दिखावा करते हैं ये. ऐसा जताते हैं जैसे पूरे संसार का बो?ा इन्होंने ही उठाया हुआ है. मु?ो तो लगता है इस घर में मेरी किसी को पड़ी ही नहीं है. अनिल हैं कि जब देखो काम का ही रोना रोते रहते हैं और मेरी सास को अपनी सोसायटी की सहेलियों से ही फुरसत नहीं है. मेरा बेटा अमन तभी ‘मांमां’ करता मेरा पास आता है जब उसे भूख लगती या पैसों की जरूरत पड़ती है.

अनिल सरकारी बैंक में नौकरी करता है. उस की कमाई इतनी तो है कि वह अपने परिवार का खर्चा चला सके. लेकिन दिनप्रतिदिन बढ़ती महंगाई को ले कर वह चिंचित रहता है कि आगे सब कैसे चलेगा. अगले साल अमन को किसी अच्छी कोचिंग में भी डालना पड़ेगा तो इतने पैसे कहां से आएंगे? इस बात की भी उसे चिंता हो रही है. ऊपर से अनिल की मां की दवा डाक्टर पर भी अलग खर्चा होता है हर महीने. इसी कारण से वह खिन्न रहता है और उस का सारी भड़ास आशा पर निकलती है. लेकिन इस में आशा की क्या गलती है?

‘शीतल, मेरी सहेली, कई दिनों से मुझे एक 9वीं कक्षा की एक बच्ची को ट्यूशन पढ़ाने को बोल रही है. लेकिन अनिल से बिना पूछे मैं ‘हां’ नहीं करना चाहती. चलो न, आज शाम जब वे औफिस से घर आएंगे तो मैं उन से ट्यूशन पढ़ाने के बारे में बात कर लूंगी’ अपने मन में सोच आशा रात के खाने की तैयारी में लग गई. औफिस से आने पर आशा ने जब अनिल से ट्यूशन पढ़ाने वाली बात कही तो वह यह कह कर बात को टाल गया कि अभी वह बहुत थका हुआ है, सुबह बात करेगा. लेकिन सुबह भी वह यह बोल कर औफिस निकल गया कि शाम को बात करेगा. अनिल का व्यवहार कभीकभी आशा की सम?ा से बाहर हो जाता था. कभी तो वह एकदम सुल?ा हुआ पति लगता उसे और कभी एकदम खड़ूस. मतलब कह नहीं सकते कि ऊंट कब किस करवट बैठेगा. कब वह किस बात पर आशा पर भड़क जाएगा और कब प्यार से बात करेगा, नहीं पता होता था आशा को. इसलिए वह अनिल से संभल कर बात करती.

आशा का कहना था कि भले कपड़ेलत्ते मत दो बहुत घुमानेफिराने भी मत ले कर जाओ लेकिन कम से कम ढंग से तो बात करो मु?ा से. लेकिन अनिल तो बस अपने मतलब से मतलब रखता आशा से. आशा भले ही दिनभर घर में खटती रहे पर वाहवाही तो अनिल की होती क्योंकि वह कमा कर चार पैसे घर में जो लाता. घर की बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच आशा यह भी भूल चुकी थी कि उस की भी कुछ

जरूरतें और सपने हैं. उसे भी अपने लिए थोड़ा वक्त चाहिए. कभीकभी तो आईने में अपना चेहरा देखे उसे कई दिन बीत जाते. सुबह उठते ही अपने बालों को मुट्ठी में लपेट कर एक जूड़ा बनाती और काम में लग जाती. वह तो यह भी भूल चुकी थी कि शादी के पहले वह एक स्वतंत्र युवती हुआ करती थी और अपने फैसले खुद लिया करती थी. उसे तो यह चेतना भी नहीं रही कि घरपरिवार की व्यस्ताओं के बीच उस के जीवन के कई वसंत यों ही बीत गए. अपनी शादी के इन 16 सालों में याद नहीं उसे कि अनिल उसे कहीं घुमाने ले कर गया हो या कोई उस के पसंद का उपहार ही खरीद कर दिया हो.

नहीं-नहीं, वह कोई शिकायत नहीं कर रही, बस बता रही है. वैसे यह बात तो वह भी मानती है कि उस में गजब की सहनशक्ति है खासकर के शादी के बाद जिंदगी में समंजस्य बैठाना उस ने खूब अच्छी तरह सीख लिया है क्योंकि यही सुखी गृहस्थ जीवन का मूलमंत्र बताया गया है. शादी के पहले आशा एक हाई स्कूल में टीचर थी लेकिन शादी के बाद उसे जौब छोड़नी पड़ी क्योंकि अनिल ऐसा चाहता था. अनिल का कहना था कि अगर वह जौब करेगी, तो घर कौन संभालेगा? लेकिन आज जब अमन बड़ा हो चुका है तो क्यों वह बच्चों को ट्यूशन नहीं पढ़ा सकती है? लेकिन अनिल इस के लिए भी तैयार नहीं है. आखिर चाहता क्या है वह आशा को सम?ा ही नहीं आता.

बात दरअसल यह है कि मर्द आज भी औरतों को बेडि़यों में बांध कर रखना चाहता है. उसे पसंद ही नहीं औरत उस से आगे बढ़े. पुरुष को तो अपने आगे हाथ फैलाने वाली, डांट खाने वाली, उस की सेवा करने वाली और एक आवाज पर तुरंत हाजिर हो जाने वाली पत्नी ज्यादा अच्छी लगती है. समाज की भी यही सोच है संस्कारी तो वही औरतें होती हैं, जो घरपरिवार को ठीक से संभाल सकें, न कि वे जो बाहर जा कर नौकरी करती हैं और पराए पुरुषों के साथ हंसतीबतियाती हैं. लेकिन असल बात तो यह है कि यह समाज औरतों को चारदीवारी में बंद कर के रखना चाहता है. खैर, शीतल बारबार मैसेज कर आशा से रिक्वैस्ट कर रही थी कि वह उस बच्ची यानी चिया को ट्यूशन पढ़ा दे तो बड़ी मेहरबानी होगी. शीतल ने बताया था उसे कि चिया की मां नहीं है. 2020 में कोरोना में वह चल बसी. फिर चिया के पापा ने दूसरी शादी नहीं की क्योंकि अपनी बेटी को वे सौतेली मां नहीं देना चाहते थे. अब चिया की दादी ही उस की देखभाल करती है. चिया के पापा एक बहुत बड़े सरकारी अफसर हैं. इसलिए उन्हें अपनी बेटी को पढ़ाने का समय नहीं मिल पाता है. चिया का अगले साथ 10वीं कक्षा का बोर्ड का ऐग्जाम है और उस के पापा इस बात को ले कर परेशान हैं कि अगर उस की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई तो कहीं फेल न हो जाए.

दरअसल, वे अपनी बेटी चिया को बाहर किसी कोचिंग या ट्यूशन क्लासेस में नहीं भेजना चाहते हैं. सोच रहे कि कोई अच्छी महिला टीचर मिल जाए, जो उन के घर में ही आ कर चिया को पढ़ा जाए तो बहुत अच्छा होगा. इस के लिए वे कितना भी पैसा देने को तैयार हैं. शीतल को चिया के लिए आशा से अच्छी कोई दूसरी टीचर नजर नहीं आई, इसलिए वह बारबार रिक्वैस्ट कर रही थी वह चिया को पढ़ाए. मगर आशा अनिल से पूछे बिना हां नहीं कहना चाहती थी.

आशा ने अनिल से जब चिया को पढ़ाने की बात कही और बताया कि उसे उस के घर पर जा कर ही पढ़ाना है तो अनिल मान तो गया लेकिन कहने लगा कि वह देख ले क्योंकि मां से घर का कोई काम होगा नहीं. अमन का वैसे भी अगले महीने बोर्ड ऐग्जाम है, तो उसे किसी काम में उल?ाना सही नहीं होगा और उसे तो कहां समय मिल पाता है जो वह कुछ सोचे ‘‘अरे, तुम इन सब बातों की चिंता क्यों करते हो. मैं सब संभाल लूंगी न और वैसे भी 2 घंटे ही तो पढ़ाना है उस बच्ची को,’’ आशा ने अनिल के मन की उल?ान को सुल?ाते हुए कहा, ‘‘मैं सोच रही हूं दोपहर में ही पढ़ाया करूंगी उसे क्योंकि दोपहर मैं वैसे भी सो कर ही बिताती हूं, तो नहीं सोऊंगी और क्या. ठीक है न?’’ आशा की बात पर अनिल ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर कहा, ‘‘ठीक है, जो तुम्हें ठीक लगे.’’ ‘‘हां, तो फिर ठीक है. मैं शीतल को बोल देती हूं.’’

अनिल के पूछने पर कि कितने पैसे दे रहे ट्यूशन पढ़ाने के? आशा बोली, ‘‘अभी पैसों की कोई बात नहीं की है.’’ 15 साल की चिया इतनी प्यारी बच्ची थी कि तुरंत ही उस ने आशा का मन मोह लिया. पढ़ने में वैसे तो वह ठीकठाक ही थी. लेकिन उसका मैथ और अंगरेजी बहुत कमजोर था. इसलिए तो उस के पापा चाहते थे कि कोई मैथअंगरेजी का टीचर मिल जाए तो अच्छा रहेगा. आशा को दुख हुआ जान कर कि उस की मां नहीं है. 2020 में कोरोना में जब उस की मां गुजर गई, तो चिया बहुत उदास रहने लगी थी. इस कारण वह अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे पाई और 1 साल पीछे रह गई वरना तो वह इसी साल 10वीं कक्षा का बोर्ड का ऐग्जाम देती. खैर, अब जो हो चुका उसे वापस तो नहीं लाया जा सकता. लेकिन आशा ने सोच लिया कि वह चिया को अच्छे से पढ़ाएगी ताकि उस का मैथ और अंगरेजी अच्छी हो जाए.

 

अनिल को औफिस भेज कर, फिर घर के सारे काम निबटा कर आशा चिया को पढ़ाने उस के घर चली जाती. यही रोज का नियम बन चुका था. उसे चिया को पढ़ाते 1 महीने से ऊपर हो चुका था. आशा के पास एक स्कूटी थी उसी से वह चिया को पढ़ाने जाती थी. उधर चिया भी बड़ी बेसब्री से अपनी टीचर आशा का इंतजार कर रही होती और जैसे ही आशा को देखती, चहक कर कहती, ‘‘मैम, आ गईं आप? देखो, आप ने जो मु?ो मैथ्स की वर्कशीट दी थी, मैं ने सारे बना लिए. सही है की नहीं, आप चैक कर लो, तब तक मैं आप के लिए पानी ले कर आती हूं.’’

‘‘नहीं चिया, पानी रहने दो. तुम इधर आ कर बैठो,’’ आशा उसे अपने पास बैठाते हुए सम?ाती कि मैथ को बस ठीक से सम?ाना होता है, ‘‘देखो, अगर तुम से सवाल हल नहीं हो रहा हो तो इसे गेम की तरह सम?ा कर सौल्ब करने की कोशिश करो. तब बाकी विषयों की तरह तुम्हें मैथ भी आसान लगने लगेगा,’’ आशा उसे इतने प्यार से सम?ाती कि चिया को अपनी मां याद आ जाती.

 

वह जब आशा से हिंदी में बात करती तो आशा मुसकराते हुए कहती कि अब यही बात वह अंगरेजी में बोल कर सुनाए. ऐसे धीरेधीरे कर चिया की मैथ और अंगरेजी में पकड़ अच्छी होने लगी. पहले के मुकाबले अब क्लास में उस के अच्छे नंबर आने लगे. चिया की प्रोग्रैस रिपोर्ट देख कर उस के पापा आनंद काफी खुश हुए और बोले कि अब आगे भी आशा ही उसे पढ़ाया करेगी.

चिया की दादी भी अपनी पोती की पढ़ाई और उसे चहकते हुए देख कर बहुत खुश होतीं. अपनी मां के चले जाने से चिया काफी उदास रहने लगी थी. पढ़ाई से भी उस का मन उचटने लगा था. हर दम वह चिड़चिड़ी सी रहती. न तो किसी से ठीक से बात करती न खातीपीती ही थी. लेकिन शुक्र है कि आशा ने एक मां की तरह आ कर उसे संभाल लिया. वह उसे सिर्फ पढ़ाती ही नहीं बल्कि बाहरी ज्ञान भी देती. आशा को इतने अच्छे से पढ़ाते देख कर आनंद को बहुत खुशी होती कि चिया को एक अच्छी ट्यूटर मिल गई.

आशा के मना करने के बावजूद आनंद उस के लिए चाय बना लाता और हंसते हुए कहता कि एक बार पी कर देखे, वह चाय बहुत अच्छी बनाता है और उस की बात पर आशा हंस पड़ती. आशा जब अनिल से चिया और उस के पापा की बात करती और कहती कि वे बड़े ही अच्छे लोग हैं तो अनिल तुनक कर कहता कि वह सिर्फ चिया को पढ़ाने से मतलब रखे. वे लोग अच्छे हैं बुरे हैं, इससे उसे क्या लेनादेना? इसी तरह चिया को पढ़ाते हुए आशा को 6 महीने हो गए.

चिया चाहती थी कि आशा कल उसे पढ़ाने न आए, ‘‘क्यों, कल क्यों नहीं पढ़ना है तुम्हें? कहीं जा रही हो?’’ आशा ने पूछा तो सकुचाते हुए चिया बोली कि नहीं, कहीं जाना तो नहीं है. लेकिन कल उस का जन्मदिन है, तो इसलिए नहीं पढ़ना.

‘‘ओह, तो कल मेरी प्यारी चिया का बर्थडे है?’’ चिया के गाल पर एक प्यारा सा चुंबन देते हुए एक बच्ची की तरह इठलाती हुई आशा बोली, ‘‘कल मेरा भी जन्मदिन है.’’ ‘‘क्या, सच में मैम?’’ चिया तो उछल ही पड़ी कि कल उस की मैम का भी बर्थडे है. चिल्ला कर वह अपनी दादी और पापा को बुला लाई और कहने लगी कि कल उस की मैम का भी बर्थडे, तो कितना अच्छा है न. कहने लगी कि क्यों न उस की मैम और वह, दोनों साथ में अपना बर्थडे, सैलिब्रेट करें?

उस की बात पर उस के पापा और दादी दोनों खुश हो कर बोले, ‘‘हां, यह तो बहुत ही बढि़या आइडिया है. ‘‘अरे नहीं,’’ आशा एकदम से बोल पड़ी, ‘‘चिया, तुम अपना बर्थडे पापादादी के साथ सैलिब्रेट करो. मैं परसो आती हूं तुम्हें पढ़ाने ओके न?’’  बोल कर वह जाने ही लगी कि पीछे से आनंद की आवाज ने उसे रोक लिया.

वह कहने लगा, ‘‘चिया की खुशी की खातिर वह अपना बर्थडे इस के साथ सैलिब्रेट नहीं कर सकती? ‘‘नहीं, मैं कैसे. मेरा मतलब है कि मुझे घर में काम…’’ आशा को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले मगर चिया अपनी मैम का दुपट्टा पकड़ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज… प्लीज हां कह दो.’’

 

मजबूरन आशा को हां कहना पड़ा क्योंकि वह चिया का दिल नहीं दुखा सकती थी. आशा यह सोच कर मुसकरा उठी कि चलो, अच्छा है, उसे अनिल से पर्मिशन नहीं लेगी पड़ेगी पार्टी में जाने के लिए क्योंकि वह तो 10 दिनों की ट्रेनिंग के लिए गुरुग्राम गया हुआ है. उस की सास भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ तीरथ यात्रा पर गई हुई हैं और अमन को तो वैसे भी अपनी पढ़ाई और दोस्तों के अलावा किसी बात से कोई मतलब नहीं रहता. तो वह आराम से पार्टी ऐंजौय कर सकेगी वरना अनिल यहां होता तो तुरंत कहता कि क्या जरूरत है यह पार्टीवार्टी में जाने की? अनिल इतना बोरिंग इंसान है न कि क्या कहें. खुद तो खुश रहना आता नहीं उसे, दूसरों को भी खुश नहीं देखता.

सच कहें तो आशा को अब अनिल से ज्यादा आनंद का साथ भाने लगा था. उन के साथ टाइम स्पैंड करना उसे पौजिटिविटी देता था. इसलिए जब कभी वह उसे फिल्म देखने या पिकनिक वगैरह पर जाने के लिए आग्रह करता तो वह न नहीं बोलती और उन के साथ चल पड़ती थी. लेकिन अनिल को वह इस बारे में कुछ नहीं बताती क्योंकि बेकार में बखेड़ा करता. वैसे भी पति से थोड़ा ?ाठ बोल देने में कोई हरज नहीं है. इस से रिश्ते भी सही रहते हैं और जिंदगी के मजे भी लिए जा सकते हैं.

वैसे आशा और आनंद के बीच कोई ऐसीवैसी बात नहीं थी. बस दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता था और कुछ नहीं. मगर अनिल कहां यह बात सम?ा पाएगा. वह तो यही कहेगा कि अच्छा, तो अब चिया के साथ उस के पापा भी  तुम्हें अच्छे लगने लगे? कोई चक्करवक्कर तो नहीं तुम दोनों के बीच? छि:, अनिल की सोच भी न कितनी गंदी है. वैसे सारे मर्द एकजैसे होते हैं. अपनी पत्नी को चाहे वह कितना ही प्यार क्यों न करते हों पर पत्नी के मुंह से किसी गैरमर्द की तारीफ सुन ही नहीं सकते कभी. ईर्ष्या जो होने लगती है उन्हें. लेकिन खुद गैरऔरतों के साथ ठहाके लगा सकते हैं, उन से देर रात तक बात कर सकते हैं क्योंकि वे मर्द जो ठहरे. उन के लिए सब जायज है.

 

अभी पिछले महीने जब आशा का फोन पानी में गिर गया तो जब वह उसे दुकानदार के पास रिपेयर कराने ले कर गई तो दुकानदार कहने लगा कि पानी में गिर जाने के चलते फोन पूरी तरह से डैमेज हो चुका है. अब इतनी जल्दी नया फोन कहां से लाती वह और फोन के बिना काम भी नहीं चल सकता. इसलिए घर में जो पुराना बटन वाला फोन पड़ा था उसे ही यूज करने लगी. जब चिया को फोन पानी में गिर जाने वाली बात पता चली तो वह तुरंत अपने पापा से कह कर आशा के लिए नया फोन खरीदवा लाई.

 

मगर वह उन से इतना महंगा फोन कैसे ले सकती थी. मगर फिर वही… चिया की जिद के आगे वह हार गई. लेकिन कैसेकैसे उसे अपना फोन अनिल से छिपा कर रखना पड़ा वही जानती है. फिर बाद में तो यही कहा उस ने कि अपने ट्यूशन के पैसे से उस ने यह फोन खरीदा है. आनंद जब औफिशियल टूर पर विदेश जाता, तब वह सब के साथसाथ आशा के लिए कुछ न कुछ वहां से उपहार ले कर आता था. लेकिन आशा के लिए वह उपहार मुसीबत बन जाता था क्योंकि अनिल से उसे छिपा कर जो रखना पड़ता था नहीं तो वह तुरंत सम?ा जाता कि यह आनंद ने उसे दिया है और फिर उस का ट्यूशन पढ़ाना बंद करा देता.

शुरू में तो आशा को ऐसा सब करते गिल्टी महसूस होती थी लेकिन अब नहीं होती. अनिल जब उस से उपहार के बारे में पूछता है तो ठसक से कह देती है, अपने पैसे से खरीदा. वैसे अनिल भी उस से कौन सा सब सच ही बोलता है? और इंसान की अपनी भी कोई पर्सनल लाइफ होती है कि नहीं? शादी के इतने सालों में आशा को याद नहीं कि कभी उस ने अपनी पत्नी को कोई ढंग की चीज दिलाई हो या कभी उस ने आशा का जन्मदिन मनाया हो. उपहार वगैरह तो दूर की बात, अनिल ने कभी उसे एक बार हैप्पी बर्थ डे भी विश नहीं किया होगा. लेकिन मजाक में इतना जरूर कह देता कि यह तुम्हारा असली वाला जन्मदिन है या यह भी नकली है और जोर से ठहाका लगा कर हंस देता, तो आशा को बहुत बुरा लगता. क्या वह कभी उन से ऐसा बोली बल्कि उस के बर्थडे पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती आई है.

चिया का बर्थडे शहर के बहुत बड़े होटल में रखा गया था. वैसे आनंद ने अनिल को भी बर्थडे, पार्टी में इन्वाइट किया था, लेकिन वह तो ट्रेनिंग के लिए गुरुग्राम गया हुआ था. लेकिन आशा को सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह चिया को क्या गिफ्ट दे. अब कपड़े देना सही नहीं होगा क्योंकि वह ब्रैंडेड कपड़े पहनती है और वह उतने महंगे कपड़े उसे नहीं दे सकती. फिर क्या गिफ्ट दे सम?ा नहीं आ रहा था उसे. फिर लगा, क्यों न उसे एक बड़ा सा टैडी गिफ्ट कर दे. वैसे भी उसे टैडीबियर बहुत पसंद है. सो एक बड़ा सा पिंक टेडी बियर, जो ढाई हजार तक में आया, आशा ने चिया के लिए पैक करवा लिया.

 

चूंकि पार्टी रात में थी तो आनंद बोला कि वह खुद आशा को लेने आएगा. वैसे भी उसे इतनी रात को स्कूटी से आते डर लगता तो ठीक है आशा ने सोचा. लेकिन आनंद गाड़ी को होटल में न ले जा कर एक मौल के

 

सामने रोक दी और उसे अंदर चलने का इशारा किया. आशा उस के पीछेपीछे मौल की तरफ बढ़ गई लेकिन दिमाग सोच रहा था कि आनंद उसे यहां मौल में ले कर क्यों आया है? ‘हो सकता है चिया के लिए कुछ सरप्राइज गिफ्ट खरीदना हो’ आशा ने सोचा. लेकिन आनंद उसे बीबा के शोरूम में ले गया और उस के लिए एक बहुत ही सुंदर और काफी ऐक्सपैनसिव ड्रैस पसंद कर बोला कि वह ट्रायल रूम में जा कर चेंज कर आए.

‘‘लेकिन आनंदजी, यह मैं कैसे? नहीं मु?ो यह नहीं…’’ आशा बोल ही रही थी कि आनंद ने आंखों के इशारे से कहा कि सब देख रहे हैं. सो प्लीज और वह ट्रायलरूम की तरफ बढ़ गई. जब बाहर निकली तो यलो कलर के उस सूट में आनंद उसे अपलक निहारता रह गया. रास्तेभर वह इसी ऊहापोह में रही कि यह गलत है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए. एक गैरपुरुष से इतना महंगा गिफ्ट नहीं ले सकती वह. हां, माना कि आनंद का साथ उसे कुछ घंटों के लिए राहत और आराम का माहौल देता है. मगर यह सब ठीक नहीं है और अनिल से क्या कहेगी जब वह इस सूट के बारे में पूछेगा तब? ऐसे कई सवाल उसे परेशान करने लगे. लेकिन आशा का दिल बोला कि इस में गलत क्या है? और उपहार तो कोई भी किसी को दे सकता है, इस में महंगा और सस्ता क्या? वह भी तो चिया के लिए टैडी बियर ले कर आई है कि नहीं? परंतु आशा अपने दिल की बात भी नकार रही थी.

आशा की मनोस्थिति पढ़ते हुए आनंद कहने लगा, ‘‘यह चिया की जिद थी कि मैं आप को मौल ले जा कर एक बढि़या सा सूट खरीदवाऊं. उस ने यह भी कहा कि आप के गोरे रंग पर पीला सूट बहुत अच्छा लगेगा. वैसे चिया सही बोल रही थी. पीला रंग आप पर बहुत सूट करता है,’’ बोल कर आनंद ने एक भरपूर नजरों से जब आशा को देखा तो वह शरमा गई और खिड़की से बाहर ?ांकने लगी.

 

चिया के साथ आशा ने भी केक काटा वह भी जीवन में पहली बार. पार्टी में खूब मस्ती और गाना, डांस हुआ. रात के करीब 12 बजे पार्टी खत्म हुई. चिया इतनी थक चुकी थी कि वह गाड़ी में ही सो गई. लेकिन आशा अब अपने घर जाना चाहती थी. लेकिन चिया ने उस का हाथ इतनी जोर से पकड़ा हुआ था कि आशा को छुड़ाते नहीं बन रहा था. आनंद कहने लगा कि वैसे भी रात के 2 बज चुके हैं तो वह सुबह आशा को उस के घर छोड़ देगा.

 

आशा चिया के पास ही लेट गई. लेकिन उसे नींद ही नहीं आ रही थी. मन में एक डर लग रहा था कि कहीं वह कुछ गलत तो नहीं कर रही? अनिल से ?ाठ बोल कर कुछ गलत तो नहीं कर रही? उस की आंखें खुली देख कर आनंद 2 कप कौफी बना लाया और हंसते हुए बोला कि उसे भी नींद नहीं आ रही है, तो क्यों न दोनों साथ में कौफी पीते हुए गप्पें मारें. आनंद को अपने इतने बड़े ओहदे का जरा भी घमंड नहीं था. उसे देख कर कोई कह ही नहीं सकता था कि उस के अंडर में हजारों आदमी काम करते हैं और वह अपने औफिस में बौस है.

 

‘‘क्या हुआ, कौफी अच्छी नहीं बनी?’’ आशा को अनमना सा कौफी शिप करते देख आनंद बोला.

 

‘‘नहीं, कौफी तो बहुत ही अच्छी बनी है लेकिन… मैं कौफी पीती नहीं.’’

 

‘‘अरे, तो…तो मैं आप के लिए चाय बना लाता हूं न,’’ बोल कर आनंद उठने ही लगा कि आशा ने उस का हाथ पकड़ लिया कि नहीं रहने दीजिए. आनंद बताने लगा कि अपनी पत्नी के लिए सुबह की चाय वही बनाया करत था. आनंद की आंखों में अपनी पत्नी के लिए इतना प्यार देख कर आशा सोचने लगी कि एक आनंद हैं जो आज भी अपनी पत्नी से इतना प्यार करते हैं और एक अनिल है जिसे उस की कोई फिक्र ही नहीं है. उन की पत्नी के बारे में पूछने पर भावुक होते हुए आनंद कहने लगा कि वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था. लेकिन पता नहीं क्यों वह उसे छोड़ कर चली गई. लेकिन अब वह अपनी पत्नी की यादों के सहारे जीने की कोशिश कर रहा है. आशा भी अपने बारे में आनंद को बताने लगी तो अनायास ही उस की आंखों में आंसू आ गए. उस की आंखों में आंसू देख जब आनंद ने प्यार से उस का हाथ सहलाया तो वह उस के सीने से लग फफक पड़ी. उस एक पल में दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं और जो नहीं होना चाहिए वह सब हो गया उन के बीच.

 

सुबह आनंद ने आशा को उस के घर ड्रौप कर दिया. लेकिन पूरा रास्ते उन के बीच कोई बात नहीं हुई. चिया को गले में टौंसिल का दर्द उठ गया था इसलिए आशा उसे 2 दिन पढ़ाने नहीं गई. पर उस रात वाली बात उस के जेहन से निकल ही नहीं पा रही थी. बारबार मन में यही खयाल आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ?

 

ऐसा नहीं होना चाहिए था? मन में एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी कि वह अनिल के साथ धोखा कर रही है. यह गलत है. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए.

 

तीसरे दिन सुबहसुबह ही आनंद ने फोन कर के आशा को बताया कि चिया को बहुत तेज बुखार है. सुन कर वह जितनी जल्दी हो सके, स्कूटी से उन के घर पहुंच गई. डाक्टर ने बताया कि चिया को वायरल फीवर हुआ है. चिया की दादी अपने बड़े बेटे के पास इंदौर गई हुई थी वरना आशा को उस के पास रुकने की जरूरत नहीं पड़ती. डाक्टर के बताए अनुसार वह चिया को समयसमय पर दवाई, जूस वगैरह दे रही थी और थोड़ेथोड़े वक्त पर उस का बुखार भी चैक कर रही थी.

 

आशा को यों चुप देख कर आनंद कहने लगा कि उस रात जो कुछ भी हुआ उन के बीच, उस में गलती किसी की भी नहीं थी. बस हो गया और वे उसे रोक नहीं पाए. इसलिए आशा खुद में गिल्ट महसूस न करे. आनंद ने जिस अपनेपन से आशा का कंधा थपथपया, वह अंदर तक सिहर उठी और उस से लिपट गई. आज फिर दोनों सारी सीमाएं तोड़ कर उसी रौ में बहते चले गए और फिर ऐसा बारबार होने लगा.आशा अपने मन में यह सोच कर मुसकरा उठी कि आनंद का साथ है तो अब उसे कोई गम नहीं है. चिया का बुखार अब उतरने लगा था मगर सर्दीखांसी अब भी उसे जकड़े हुए थी.

 

चिया के 9वीं कक्षा के पेपर अच्छे गए. लेकिन अब आशा को सम?ा नहीं आ रहा था

 

कि वह क्या बहाना बनाकर आनंद से मिलने

 

जाए क्योंकि अनिल तुरंत कहेगा कि चिया का ऐग्जाम तो खत्म हो गया न? फिर क्यों जा रही हो? वैसे अनिल को जब जिस से जहां मिलने जाना होता है, मिलता ही है. लेकिन आशा पर ही आंखें गड़ाए रहता है कि वह कहां और क्यों जाती है. अनिल जब देर रात औफिस से घर आता है तो क्या आशा उस से सवाल करती है उस ने इतनी देर कहां लगा दी और उस के साथ कौन थी? तो फिर उस से ही इतने सवालजवाब क्यों?

उस दिन अलमारी में वही सूट देख कर जो आनंद ने उसे उस के जन्मदिन पर गिफ्ट किया था, अनिल ने चौंक कर पूछा कि यह किस की ड्रैस है तो आशा को ?ाठ बोलना पड़ा कि यह शीतल की ड्रैस है. उस ने ड्राईवाश के लिए दी थी, लेकिन गलती से उस के आ गया. ऐसी कितनी ही बातें हैं जो उसे अनिल से छिपानी पड़ता हैं.

अनेक विचारों से जूझने के बादआखिरकार आशा ने सोच लिया कि वह आनंद से मिलती रहेगी. हां, मानती है कि जो वह कर रही है वह एक शादीशुदा औरत को शोभा नहीं देता है. लेकिन क्या यही सब एक शादीशुदा पुरुष को शोभा देता है? और क्या सहीगलत का सारा ठेका औरतों ने ही ले रखा है? मर्द छुट्टे सांड की तरह जहां जिस के साथ मन आए, जा सकता है? औरत नहीं? अगर वह अनिल की पर्सनल लाइफ में दखल नहीं देती तो उसका भी कोई हक नहीं बनता उस से कोई सवाल करने का.

आखिर एक औरत ही क्यों कभी मांबाप की इज्जत की खातिर, तो कभी पतिबच्चों के लिए एडजस्ट करती रहे? क्या एक औरत को खुद के लिए खुश रहने का हक नहीं है और क्या फर्क पड़ता है कि वह खुशी उस से किस से मिल रही है? अपने मन में सोच आशा ने आनंद को फोन किया कि वह उन से मिलने आ रही है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...