आजादी पर भारी शादी

‘‘बदलते समय के साथ न केवल लोगों की लाइफस्टाइल में बदलाव आया है, बल्कि उन की सोच और सामाजिक तौरतरीके भी बदले हैं. यह सही है कि आजकल लड़कियां अपने कैरियर और आजादी को प्राथमिकता दे रही हैं, लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि शादी के लिए अब लड़कों की लड़कियों से उम्मीदें भी बढ़ गई हैं. मैट्रो सिटी में रहनसहन के स्तर को संतुलित बनाए रखने के लिए लड़के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियों को ही प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में लड़कियां अपने सुरक्षित भविष्य के लिए शादी करने में समय ले रही हैं. मुझे इस में कोई बुराई नहीं नजर आती. हां, शादी टालने की एक सीमा जरूर होनी चाहिए क्योंकि इस को जरूरत से ज्यादा टालने के विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं.’’

सोनल, ऐसोसिएट एचआर

‘‘यह हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है, जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को गहरा व मजबूत बनाती है.’’

28 साल की तान्या न सिर्फ गुड लुकिंग है बल्कि एक अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर पोजिशन पर कार्यरत भी है. लेकिन अभी भी तान्या सिंगल है. शादी की बात आते ही तान्या उसे टाल जाती है.

हिना का भी हाल कुछ ऐसा ही है. हिना मौडलिंग करती है, ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी है और दिखने में काफी स्टाइलिश है. हिना से शादी करने को न जाने कितने लड़के बेताब हैं, लेकिन हिना अब तक कई प्रपोजल्स रिजैक्ट कर चुकी है. रिजैक्शन के पीछे वजह सिर्फ यही है कि हिना को लगता है कि भले ही उस का पार्टनर उसे शादी के बाद काम करने भी दे, लेकिन उस की आजादी तो कहीं न कहीं उस से छिन ही जाएगी. बस, यही वजह है कि हिना पेरैंट्स के कहने पर लड़कों से मिलती जरूर है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ाती.

यह कहानी सिर्फ तान्या और हिना की ही नहीं, बल्कि आज हमारे समाज की उन ढेर सारी लड़कियों की है, जो अपनी पढ़ाईलिखाई कर सिर्फ अपनी जौब और कैरियर को प्रिफरैंस देती है. इन के लिए शादी प्रिफरैंस लिस्ट में तो दूर की बात, ये तो शादी के नाम से ही कतराती हैं.

बदल गए हैं जिंदगी के माने

अगर हम यह कहें कि अब समाज में लड़कियों की जिंदगी के माने पूरी तरह बदल चुके हैं, तो शायद यह भी गलत नहीं होगा. लड़कियां शादी कर चूल्हाचौका संभालने की सोच से बाहर निकल कर अपने कैरियर और समाज की सोच को एक नई दिशा दे रही हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि बदलते जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाली ये पीढ़ी वाकई सही है या इस सफलता में छिपा है डिपै्रशन और फ्रस्ट्रेशन भी.

हाल ही में कई बड़े शहरों में एक सर्वे के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया. बड़े शहरों की पढ़ीलिखी लड़कियां अच्छी पढ़ाई कर प्रोफैशनली बाजी जरूर मार रही हैं, लेकिन उन की व्यक्तिगत जिंदगी उन्हें इतना परेशान कर रही है कि उस के चलते कई लड़कियां डिप्रैशन की शिकार हैं.

दिल्ली में पढ़ीलिखी गुड लुकिंग 36 साल की प्रीति मल्टी नैशनल कंपनी में सीनियर लीगल ऐडवाइजर है. देखने में खूबसूरत व स्टाइलिश और कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी प्रीति अभी भी सिंगल है. शादी के लिए उस के पास ढेर सारे प्रपोजल्स तो हैं मगर साथ ही कन्फ्यूजन भी कि शादी करे तो किस से? जो लड़का प्रीति को पसंद आता है उसे प्रीति को प्रोफाइल मैचिंग नहीं लगता और जिसे प्रीति पसंद आती है उस से प्रीति आगे बात बढ़ाना ही नहीं चाहती.

ऐसा सिर्फ प्रीति के साथ ही नहीं बल्कि न जाने कितनी लड़कियों के साथ होता है, जो कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी सही उम्र में शादी नहीं कर पातीं क्योंकि शादी के लिए उन की कुछ शर्तें भी होती हैं. आमतौर पर सभी शर्तों को पूरा करने यानी उन की कसौटी पर खरा उतरने के नाम से ही लड़के कन्नी काटने लगते हैं और अच्छी पढ़ीलिखी बड़े शहरों की लड़कियों के बजाय छोटे कसबे या गांव की कम पढ़ीलिखी लड़कियों को ही चुनना ज्यादा पसंद करते हैं.

ये बात थोड़ी चौंकाने वाली जरूर है लेकिन यही हकीकत है कि कम से कम 50% बड़े शहरों की लड़कियां अपनी आजादी को खोने के डर से अब शादी को तवज्जो नहीं देतीं.

35 वर्षीय दीप्ति एक नैशनल न्यूज चैनल में एक अच्छी पोस्ट पर काम करती हैं और सिंगल हैं. शादी से जुड़े सवाल पर तपाक से कहती हैं, ‘‘अच्छी है न जिंदगी क्योंकि कोई रोकटोक नहीं है. अपने तरीके से अपनी लाइफ ऐंजौय कर रही हूं. अपने पेरैंट्स का खयाल रखती हूं. अपना घर, गाड़ी सब कुछ है, तो ऐसे में शादी कर कई हजार बंदिशों में बंध रिस्क क्यों लिया जाए?’’

असल में ऐसी सोच सिर्फ दीप्ति की ही नहीं बल्कि शहरों में पलीबढ़ी 60% लड़कियों की है. या तो ये शादी करना नहीं चाहतीं या फिर अगर शादी करती भी हैं तो अपनी शर्तों पर. ऐसे में जाहिर सी बात है कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज के लड़कों के माथे पर सिकुड़न पड़ना तय है.

कशमकश में उलझी हैं सफल महिलाएं

अजीब सी कशमकश में उलझी ऐसी सफल महिलाएं उम्र के इस पड़ाव पर आने के बावजूद भी शादी करने का फैसला सही उम्र में नहीं ले पातीं. जब तक हो सके अकेले ही रहना चाहती हैं, जिस की एक सीधी सी वजह यह है कि अब लड़कियां शादी जैसे बंधन में बंधने के लिए अपनी जिंदगी में न तो कोई बदलाव लाना चाहती हैं और न ही कोई समझौता करना चाहती हैं. जिस की सब से बड़ी वजह यही है कि अब लड़कियां अपनी आजादी नहीं खोना चाहतीं.

लेकिन इन का यही फैसला कहीं न कहीं इन के लिए एक वक्त के बाद मुश्किलें भी खड़ी कर देता है. एक वक्त के बाद सिंगल रहना अखरने भी लगता है. जिंदगी के सफर में तनहाई काटने को दौड़ती है. उस वक्त जरूरत महसूस होती है एक ऐसे साथी की जो हमसफर बन कर आप के साथ जिंदगी के सुखदुख साथ बांट सके.

अब सोचने वाली बात यह है कि लड़कियों की यह सोच वाकई समाज के माने बदल समाज को एक सही दिशा में जा रही है या फिर इस सोच के कल कई दुष्प्रभाव समाज पर पड़ सकते हैं?

सालता भी है अकेलापन

अगर देखा जाए तो लड़कियों का शादी जैसे मुद्दे पर खुद फैसला लेना सही है, लेकिन अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की चाहत में इस खूबसूरत पड़ाव से कतराना भी समझदारी नहीं, क्योंकि कुछ वक्त के बाद इंसान को अकेलापन सताने लगता है और अकेलेपन से बचना वाकई बड़ा मुश्किल है.

एक जमाने की मशहूर अदाकारा परवीन बौबी को ही ले लीजिए. उन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. एक वक्त था जब परवीन के पास ढेरों प्रपोजल्स थे. न जाने कितने नौजवान उन से शादी करने को बेताब थे. मगर उस वक्त सफलता के नशे में चूर परवीन बौबी सारे प्रपोजल्स टालती गईं. शादी की बात को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में उन का यही फैसला उन के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ. उन की जिंदगी के अंतिम दिनों में उन का अकेलापन ही उन की मौत का कारण बना.

एक जमाने में लाखोंकरोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस खूबसूरत अदाकारा की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस ने खुद को अपनी तनहाई के साथ घर की चारदीवारी में कैद कर लिया. परवीन पर अकेलापन ऐसा हावी हुआ कि वे न सिर्फ डिप्रैशन में चली गईं बल्कि उन का मानसिक संतुलन तक बिगड़ गया. यहां तक कि उन्होंने लोगों से मिलनाजुलना तक बंद कर दिया और फिर एक दिन वही हुआ, जब करोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस अदाकारा ने अंतिम सांस ली, इन के पास कोई नहीं था. यहां तक कि इन की मौत का पता भी कई दिनों के बाद इन के पड़ोसियों को दरवाजे पर लटकी दूध की थैलियों और दरवाजे के पास पड़े अखबार के बंडलों से चला. फिर जांचपड़ताल के बाद घर के अंदर उन की लाश मिली तब जा कर पता चला कि लाखोंकरोड़ों दिलों की चहेती परवीन बौबी इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं.

ऐसा सिर्फ परवीन बौबी के साथ ही नहीं हुआ. इस के और भी ढेर सारे उदाहरण आप को मिल जाएंगे. हकीकत में यह अकेलापन ऐसी बीमारी है, जो बाद में डिप्रैशन का रूप ले लेती है आगे चल कर जिंदगी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसलिए बेहतर है कि जिंदगी को गंभीरता से लें.

क्या करें क्या न करें

शादी का बंधन इतना नाजुक नहीं होता कि उसे जब चाहे तोड़ लो और जब मन करे जोड़ लो. निश्चित तौर पर काफी सोचनेसमझने के बाद ही यह फैसला लेना सही होता है. और अगर आप अपने हिसाब से जीवनसाथी चुनना चाहती हैं तो इस में भी हरज कुछ नहीं, लेकिन ध्यान रखें कि आप जरूरत से ज्यादा चूजी भी न हो जाएं क्योंकि यह इकलौती वजह ही ढेरों प्रपोजल रिजैक्ट करने के लिए काफी होती है.

किसी भी रिश्ते को पनपने से पहले ही अपनी शर्तों में न बांध दें. किसी भी रिश्ते की बौंडिंग मजबूत होने में वक्त लगता है, तो आप भी अपने रिश्ते को वक्त दें. सामने वाले इंसान को पहले समझने की कोशिश करें.

परफैक्शन में नहीं हकीकत में विश्वास करें. यह कोई प्रोफैशनल टास्क नहीं है, जिस में आप को या आप के हमसफर को परफैक्शन के मापदंड पर खरा उतरना है. यह फिल्मी दुनिया नहीं बल्कि हकीकत है. हकीकत पर भरोसा करें. चांद सब से खूबसूरत होता है, लेकिन उस में भी दाग है. वही कहानी इंसानों की भी है. इसलिए परफैक्शन में जाने के बजाय प्रैक्टिकल हो कर सोचें.

फैसले का सही वक्त क्या हो

सही उम्र में सही फैसला लेना भी जरूरी होता है. कैरियर के साथसाथ पर्सनल लाइफ पर भी ध्यान दें. यदि आप ने समय से अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी कर के मनचाहा मुकाम हासिल कर लिया है तो शादी का फैसला बेवजह टालने में समझदारी नहीं है.

ऐटिट्यूड में नहीं बौंडिंग में यकीन करना सीखें. हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को और गहरा और मजबूत बनाती है.

पहले से किसी इंसान या उस के प्रोफैशन को ले कर उस के प्रति अपने मन में कोई धारणा न बना लें. प्यार और विश्वास से एक नए रिश्ते की शुरुआत करें.

कई बार लड़कियां जब शादी के लिए किसी से मिलती हैं, तो वे उस लड़के की अपने ड्रीम बौय या फिर अपने आदर्श इंसान से तुलना शुरू कर देती हैं जो सही नहीं है, हर इंसान का व्यक्तित्व, व्यवहार और खूबियां अलगअलग होती हैं. इसलिए जब भी आप किसी से मिलें तो बेवजह उस की किसी और से तुलना न शुरू कर दें.

जैसे जीवनसाथी की कल्पना आप ने अपने लिए की है वैसा ही आप को मिले, यह थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में बेहतर यही होगा कि समझदारी के साथ जीवनसाथी का चुनाव करें और यह विश्वास रखें कि शादी के बाद भी आपसी समझ से रिश्ते को बेहतर बनाया जा सकता है. अकेला रह कर आप क्षणिक सुख तो पा सकती हैं पर सारी जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए एक हमकदम का साथ जरूरी होता है.

इस बात पर यकीन करें कि एक खूबसूरत जिंदगी एक अच्छे हमसफर के साथ आप का इंतजार कर रही है. बस जरूरत है तो सिर्फ पहल करने और गंभीरता से सोचने की. तो देर किस बात की, शुरुआत कीजिए और कदम बढ़ाइए इस खूबसूरत जिंदगी की तरफ.

13 Tips: चुटकी भर नमक से चमकाएं घर

‘बिन नमक खाना न होई…’, ऐसी कोई कहावत नहीं है. पर हकीकत में कुछ ऐसा ही है. नमक के बिना खाना असंभव लगता है. पता नहीं कुछ लोग उपवास कैसे रख लेते हैं. खैर, आज यहां धर्म पर शास्त्रार्थ नहीं, पर नमक की उपयोगिता पर बात हो रही है.

नमक के फायदों के बारे में कभी सोचा है ? अब आप कहेंगी, हां नमक के बिना खाना बेस्वाद लगता है. पर खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ ही नमक के और भी कई फायदे हैं. नमक से ही प्राचीन मिस्र के लोग ‘ममी’ बनाते थे. हमारे देश में आज भी बहुत से लोग नमक से ही अपने दांत साफ करते हैं. रसोई के अलावा भी नमक घर के कई हिस्सों में काम आ सकता है. आइए जानते हैं, नमक के अलग-अलग उपयोगों के बारे में…

1. आसानी से तोड़ें अखरोट

अखरोट के छिलके तोड़ने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है. बाजार में तो टूटे हुए अखरोट मिलते हैं, पर इनमें मिलावट होने का भी खतरा होता है. दरवाजे से या वॉलनट कटर से अखरोट तोड़ने पर भी चोट लगने का खतरा है. पर नमक से ये काम आसान हो जाता है. अगर आप अखरोटों को नमक के पानी में भिगो के रखेंगी तो इन्हें तोड़ना आसान हो जाएगा और अखरोट भी नहीं टूटेंगे और आपको साबूत अखरोट मिलेंगे.

2. फलों को भूरे होने से बचाए

अगर फलों को ज्यादा देर तक काट कर छोड़ दिया जाए तो फल भूरे होने लगते हैं, खासकर सेब. फलों को काटकर नमक के पानी में भिगोकर रखने से यह भूरे नहीं होंगे. कटे फलों को नमक के पानी में कुछ देर के लिए छोड़ दे. कुछ देर बाद नमक के पानी से निकालकर ताजे पानी से धो लें.

3. चॉपिंग बोर्ड से हटाए बदबू

चॉपिंग बोर्ड पर आप क्या कुछ नहीं काटती. मछली से लेकर चिकन तक. बोर्ड पर क्या कुछ नहीं गुजरता! बदबू का तो कहना ही क्या? चॉपिंग बोर्ड की बदबू भी नमक से आसानी से छुड़ाई जा सकती है. आधे नींबू पर नमक लगाकर चॉपिंग बोर्ड पर रगड़ें. हल्के गर्म पानी से धो लें. चॉपिंग बोर्ड की बदबू चली जाएगी.

4. तांबे के बरतन चमकाएं

तांबे के बरतनों में रखे खाने को खाना या पानी को पीना स्वास्थय के लिए बहुत फायदेमंद होता है. बरतनों पर नमक रगड़ें. साबुन का पानी डालें और एक नर्म सुखे कपड़े से रगडें. इससे बरतनों की खोई चमक लौट आएगी.

5. वाइन के दाग छुड़ाएं

अगर आप भी मह का शौक रखती हैं और आपके घर पर भी अकसर दावतें होती हैं, तो इस समस्या से आपको भी अकसर जूझना पड़ता होगा. अगर किसी दावत में ऐसी घटना घटे, तो आप तुरंत ही वाइन लगे कपड़े को नमक के पानी में कुछ देर के लिए भिगोकर रख दें. साफ पानी से धो लें. अगर दाग न निकले तो इस तरीके को दोबारा दोहराए. नमक आपके महगे कार्पेट से भी वाइन के दाग छुड़ा सकता है.

6. चींटियों को रखे दूर

चींटियां आफत का दूसरा नाम है. बचपन में सुनते थे कि चींटी सिर्फ मीठी चीजें खाती हैं. पर बड़े होते होते हकीकत से सामना हो ही गया. चींटियां कुछ भी नहीं छोड़ती. पर चींटियों को नमक से आसानी से भगाया जा सकता है. 1:4 के रेशियो में एक स्प्रे बोतल में नमक और पानी मिला लें. अब जहां चींटियां दिखें वहां स्प्रे कर दें. चींटियां भाग जाएंगी.

7. घर पर बनाएं बच्चों के लिए रंग

बच्चों को पेंटिंग का कितना ज्यादा शौक होता है. पर बच्चे पेंट को कई बार मुंह में भी लगा लेते हैं. बाजार के पेंट में बहुत सारे हानिकारक केमिकल्स होते हैं. पर आप घर पर ही पेंट बना सकती हैं. एक बाउल में 1 कप आटा और 1 कप नमक मिलाएं. अब इसमें 1 कप पानी मिलाएं और कुछ बूंदें फूड कलर की डालें. आपका होममेड पेंट तैयार है.

8. इस्त्री की सफाई

अगर इस्त्री पुरानी हो गई है, तो उसमें जंग लग ही जाता है. अगर जंग न भी लगे तो जले कपड़े के टुकड़े चिपके रहते हैं. पर नमक से इस्त्री की आसानी से सफाई की जा सकती है. नमक से इस्त्री को रगड़ें. इस्त्री साफ हो जाएगी.

9. माइक्रोवेव अवन

माइक्रोवेव अवन में कैक या पेस्ट्री बनाने में जितना मजा आता है उतना ही खाने में आता है. पर अवन की सफाई उतनी ही मुश्किल लगती है. नमक से आप आसानी से अवन की सफाई कर सकती हैं. अवन को सक्रब करने से पहले उस पर नमक छिड़क दें. नमक से दाग आसानी से निकल आते हैं.

10. इंक के दाग तुरंत छुड़ाए

स्याही के दाग को निकालना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. पर नमक से यह काम आसान हो जाएगा. स्याही के दाग पर नमक और नींबू रगड़ें. स्याही के दाग आसानी छुट जाएंगे.

11. सिंक और ड्रेन पाइप की बदबू को करें दूर

सिंक और ड्रेन पाइप की बदबू हमेशा परेशानी का सबब बनती है. पर जब नमक है तो चिंता की कोई बात नहीं. एक भगोने में पानी और एक कप नमक गर्म करें. इस पानी को सिंक और ड्रेन पाइप में डाल दें, थोड़े देर बाद बदबू दूर हो जाएगी.

12. तेल को कढ़ाई से छिटकने से रोके

मछली या मटन बनाने में कई बार तेल कढ़ाई से छिटक जाती है, खासतौर पर मछली बनाते वक्त. पर नमक से इसे रोका जाता है. कढ़ाई में तेल गर्म होने के बाद उसमें जरा सा नमक डाल दें. इससे जब आप मछली डालेंगे, तब तेल आप पर नहीं पड़ेगा.

13. जूतों की बदबू दूर करें

पसीने से जुतों से बदबू आने लगती है. यह दुर्गंध आपके पसीने और चमड़े से मिलकर बनती है. पर नमक जूतों की बदबू भी आसानी से भगाता है. आप नमक से भरे क्लोथ बैग्स रखकर या जूतों में नमक डालकर जूतों की बदबू दूर कर सकते हैं. अगर आप नमक डाल रहे हैं तो जूतों को झाड़ना न भूलें.

नमक के इन अनोखे प्रयोगों को जरूर आजमाएं और अपनी रोजाना जिन्दगी आसान बनाएं.

15 अगस्त स्पेशल: किस पायदान पर 76 सालों की स्वतंत्रता के बाद कानून

15 अगस्त 1947, पूरे देश द्वारा मनाया जाने वाला एक दिन और एक संघर्ष के अंत का प्रतीक नहीं था, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था, कानून व्यवस्था, गरीबी का उन्मूलन, आदिके पुनर्निर्माण की शुरुआत थी. इस वर्ष एक स्वतंत्र राष्ट्र होने के 75 गौरवशाली वर्षों को पूरा कर रहे हैं.वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता उसके आर्थिक इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था. अंग्रेजों द्वारा किए गए विभिन्न हमलों और डीमोनिटाईजेशन के कारण, देश बुरी तरह से गरीब और आर्थिक रूप से ध्वस्त हो गया था. ऐसे में आजाद देश कई समस्याओं से गुजर रहा था, क्या अभी भी उन समस्याओं से देश के नागरिक निजात पा चुके है? क्या कानून व्यवस्था आज भी सर्वोपरि है? आइये जानें,मुंबई हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस विद्यासागर कनाडे से हुई बातचीत के कुछ खास अंश.

विश्वास बनाए रखना है कानून पर

इस बारें में मुंबई हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस विद्यासागर कनाडे कहते है कि 75 सालों बाद भी ये गनीमत है कि देश की जनता का विश्वास कानून से हटा नहीं है. मसलन अयोध्या का केस कई सालों तक पड़ा रहा. हाई कोर्ट के जजमेंट के समय पूरे देश में कर्फ्यू लगा था, शिक्षा संस्थान बंद थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ. न तो सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हुई और न ही तोड़-फोड़ हुई. दोनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी. लोगों को इतना विश्वास कानून तंत्र पर था कि कुछ समस्या नहीं आई और एक बीच का रास्ता निकाला गया. आज भी किसी प्रकार के न्याय के परिणाम में देर होती है, तारीख पर तारीख पड़ते रहते है. समय पर न्याय नहीं मिलता, लेकिन मुझे लगता है कि न्याय तंत्र में कुछ सुधार लाना जरुरी है. ताकि जनता का विश्वास जारी रहे. इसमें सबसे पहले अपॉइंटमेंट में देर होती है, जो केंद्र सरकार और गठबंधन साथ में करती है.

जज दोषी नहीं

इसके आगे वे कहते है कि न्याय में देरी की वजह केवल जज को देना उचित नहीं. वकील को किसी केस को तैयार करने में लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमे तर्क, लोगों की बातें आदि में समय लगता है. आर्गुमेंट को अगर एक से दो घंटे का समय दिया जाय, तो बार काउंसिल धरने पर जाती है. वैसा अमेरिका और इंग्लैंड में नहीं है, कितना भी बड़ा केस हो एक से दो घंटे का समय आर्गुमेंट के लिए दिया जाता है, महीने-महीने बहस चलती है और एक अंतिम निर्णय तक पहुंचा जा सकता है, जो जल्दी भी होती है.

दूसरी अहम बात है कॉस्ट अधिक हो जाता है, क्योंकि पहले लोग PIL का पास करते है. इसमें अगर कोई दावा दाखिल नहीं हुआ फिर भी डिफेन्स करते है, क्योंकि उन्हें अधिक मूल्य नहीं देना पड़ता. ब्रिटेन और अमेरिका में जितना कॉस्ट है पूरा एक साथ देना पड़ता है. उसमे सुधार लाने की जरुरत है, ताकि विशेषाधिकार मुकदमा (प्रिविलेज लिटिगेशन) कम हो जाय. इससे पेंडिंग पड़े फाइल की संख्या कम हो जायेगी, क्योंकि आज भी बिना किसी न्याय के सालों साल फ़ाइलें पड़ी रहती है. जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में लोग आपस में सेटल कर लेते है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि केस न जीतने पर उनके लिए ये महंगा साबित होगा. इस प्रोसेस को प्री लिटिगेशन सेटलमेंट कहा जाता है. ये होने पर पेंडिंग की समस्या कम हो जाएगी. करीब 60 प्रतिशत लिटिगेशन सरकार की होती है, जिसमे भूमि अधिग्रहण, अवार्ड देने के बाद रेफ़रेंस आदि सुप्रीमकोर्ट तक चलता रहता है. इनकम टैक्स की प्रक्रियां में राज्य सरकार की करीब 70 प्रतिशत लिटिगेशन के केसेज होती है, उन्हें लिटिगेटिंग नेचर को कम करना जरुरी है.

काम है चुनौतीपूर्ण

जज बनने के बाद खास काम के बारें में पूछने पर जस्टिस कनाडे कहते है कि मैं 16 साल जज था, उस दौरान मैंने 34,000 केसेज को अंजाम तक पहुँचाया था. स्पेशल टाटा स्कैम में मैंने 2000 मैटर्स को मैंने बाहर निकला. लोगों को लगता है कि जज अपना काम निष्ठा से नहीं कर रहे है. जबकि कई पोस्ट जजों के खाली पड़े है. 4 जज का काम एक जज अब कर रहा है. यहाँ 8 बजे तक कोर्ट चलते है. जो काम जज करता है, उससे पहले वकील के रूप में वह जितना कमा पाता है, उसके हिसाब से बहुत कम वेतन है. न्याय का यह काम एक तरीके का त्याग है, लेकिन वे इमानदारी से काम करते है. इसके अलावा जज हमेशा सही न्याय करता है, लेकिन भ्रष्टाचार के जो आरोप जज को लगते है, उसे इग्नोर करना पड़ता है, क्योंकि अगर व्यक्ति केस जित जाता है, तो जज का न्याय उसे ठीक लगता है, अगर हार जाता है, तो जज भ्रष्टाचारी कहा जाता है. बिक गया है, ये इमेज वकीलों के समूह तैयार करते है, लेकिन मेरी नजर में काम ईमानदारी से ही होता है.

आम आदमी के लिए कानून

आम जनता में कानून की कम जानकारी के बारें में उनका कहना है कि CPC में दिए गए बातों को कड़ाई से पालन करना चाहिए, ताकि न्याय पाने में देर न हो. महिलाओं को कानून की जानकारी कम होने की वजह उनका किसी विषय पर जागरूक न होना है. आजकल किसी भी जानकारी को इन्टरनेट के जरिये जाना जा सकता है. ये सही है, साधारण इंसान कानून कम जानते है, इसके लिए विदेशों की तरह कानून की सीरीज बननी चाहिए. खासकर शिक्षा में इसे सरल भाषा में किताबों में लिखी गई हो और सरकार की तरफ से सारे कानून को संक्षेप में स्थानीय भाषा में लिखकर किसी कमिटी के द्वारा पब्लिश कर इसे आम इंसान को देने से उसका फायदा उन्हें मिलेगा, क्योंकि ब्रिटिश चले जाने के बाद आज भी सभी काम अंग्रेजी में किया जाता है, जो गलत है. इसके अलावा किसी भी लॉ कमिशन को लाने के बाद लेजिस्लेचर को सलाह देते है. साधारण लोगों के लिए भारत सरकार को लेखकों की एक समूह बनाना जरुरी है, जिसमे एक्सपर्ट वकील भी शामिल हो और जो स्टैंडर्ड टेक्स्ट बना सकें,जिसमे सरल भाषा में इंडियन पीनल कोड,सीआरपीसी,बेल बांड के प्रोविजन आदि को संक्षिप्त में लिखकर देना चाहिए, ताकि आम नागरिक को समझने में आसानी हो. इसे सेक्शन वाइज न देकर चैप्टर वाइज कॉमन इंसान को देना चाहिये.

हुए कई अलग अनुभव

कार्यकाल में अपने अनुभव के बारें में जस्टिस कनाडे कहते है कि एक ग्रैंड मदर जो दूसरी पत्नी थी और उसकी दूसरेपति की भी मृत्यु हो गई, उनके सौतेले पोते-पोती थे, जबकि सौतेले बेटी का इस बूढी महिला के साथ प्रॉपर्टी को लेकर डिस्प्यूट चल रहा था. बेटी ने स्टेप मदर को जेल में और उनके पोती पोते को चाइल्ड होम में डाला. मैंने बच्चों को कोर्ट में लाने की आदेश दिया, दादी भीकोर्ट में लायी गयी और मैंने तुरंत दादी को पोते पोती से मिलवाया. इसके अलावा एक केस में एक विधवा का लड़का स्कूल जाता था, लेकिन उस महिला के पास बच्चे को पढ़ाने का पैसा नहीं था. मैंने इंस्टिट्यूशन को बुलाकार उनकी समस्या जानी और बच्चे को फ्री में शिक्षा देने की बात कही थी, उन्होंने नहीं माना और मैंने खुद उसे पढ़ने की बात सोची थी, पर इंस्टिट्यूशन ने उसकी फीस माफ़ कर दिया. ऐसे निर्णय देने के बाद खुद को संतुष्टि मिलती है.

सम्हाले नागरिक देश को

75वीं देश की आज़ादी को मना रहे देश की नागरिकों के लिए जस्टिस कनाडे का सन्देश है कि देश के लिए ही काम कीजिये, बाकी सब बेकार है. सभी नगरिक को देश को अहमियत देना है, ताकि भारत भी विकसित देशों की लिस्ट में शामिल हो सकें.

दिल के लिए खतरनाक है ज्यादा कैल्शियम

हमारे शरीर में हर तत्व की अपनी एक मात्रा होती है चाहे फिर वह विटामिन की हो या फिर कैल्शियम, फास्फोरस या फिर अन्य रसायनिक तत्वों की. इसी तरह कैल्शियम की अधिक मात्रा लेने से आपको कई बीमारी अपनी चपेट में ले सकती है. एक अध्ययन में के अनुसार अगर धमनियों में प्लेक (धमनियों का जाम होना) का कारण बन सकता है, जिससे हृदय को नुकसान पहुंचने का खतरा है. इस निष्कर्ष का उद्देश्य हालांकि आपको कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ लेने से रोकना नहीं है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के आहार दिल के लिए फायदेमंद भी हैं.

मैरिलैंड के जान हॉपकिंस विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन बाल्टीमोर में सहायक प्रोफेसर इरिन मिचोस ने कहा, “हमारा अध्ययन बताता है कि शरीर में पूरक खुराक के रूप में अतिरिक्त कैल्शियम का सेवन दिल और नाड़ी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.”

अध्ययन के निष्कर्ष पत्रिका ‘जर्नल ऑफ दी अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन’ में प्रकाशित हुए हैं. यह विश्लेषण अमेरिका में 2,700 लोगों पर 10 सालों तक किए गए अध्ययन के बाद आया है.

अध्ययन के लिए चुने गए प्रतिभागियों की उम्र 45 से 84 साल के बीच थी. इसमें करीब 51 प्रतिशत महिलाएं थीं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि जो प्रतिभागी भोजन में कैल्श्यिम की अधिकतम मात्रा प्रतिदिन करीब 1,022 मिलीग्राम लेते थे, उनमें 10 सालों के अध्ययन के दौरान हृदय रोग होने का जोखिम सामने नहीं आया.

लेकिन कैल्शियम को पूरक खुराक के रूप में सेवन करने वाले प्रतिभागियों के कोरोनरी धमनी में इन 10 वर्षो के दौरान 22 फीसदी तक प्लेक जमने का खतरा देखा गया. यह 10 सालों में शून्य से तेजी से बढ़ा. इससे दिल के रोग होने का संकेत मिलता है.

नॉर्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के चेपल हिल्स ग्लिनिंग्स स्कूल के सह लेखक जान एंडरसन ने कहा, “इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भोजन के रूप में लिया गया कैल्शियम तथा पूरक खुराक के तौैर पर लिया गया कैल्शियम किस प्रकार हृदय को प्रभावित करता है.”

15 अगस्त स्पेशल: फैमिली के लिए बनाएं पिंडी चना मसाला

फेस्टिव सीजन में अगर आप मीठा बनाने की बजाय नई रेसिपी बनाना चाहते हैं तो इस स्वतंत्रता दिवस पर पिंडी चना मसाला की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

1 कप काबुली चने उबले हुए,

2 बड़ी इलायची, 2-3 लौंग,

1 छोटा टुकड़ा दालचीनी स्टिक,

2-3 छोटी इलायची,

1 बड़ा चम्मच घी या तेल,

1 बड़ा चम्मच अनारदाना,

1 बड़ा चम्मच जीरा,

2 हरीमिर्चें लंबाई में कटी हुई,

2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर,

1 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर,

11/2 छोटे चम्मच लालमिर्च पाउडर,

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला,

2 इंच टुकड़ा अदरक का लंबाई में कटा हुआ,

1 प्याज कटा हुआ,

1 टमाटर कटा हुआ,

थोड़े से नीबू के टुकड़े,

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई.

विधि

पैन को गरम कर जीरा और अनारदाने को बिना तेल के भूनें. ठंडा होने पर इसे पीस लें. फिर एक गहरे बरतन में तेल या घी गरम कर बड़ी इलायची, छोटी इलायची, दालचीनी व लौंग को भूनें. अब हरीमिर्च डाल कर उबले काबुली चने, धनियापत्ती, गरममसाला, धनिया पाउडर, अमचूर, लालमिर्च व नमक डाल कर अच्छी तरह मिलाएं, काबुली चनों को अच्छी तरह मैश करें. फिर उन में 1/2 कप पानी मिला कर धीमी आंच पर 10-15 मिनट पकाएं. पकने पर अदरक, प्याज व नीबू से सजा कर सर्व करें.

दहशत- भाग 4: क्या सामने आया चोरी का सच

कुछ देर के बाद गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘एक प्रौब्लम हो गई है प्रीतिजी, खाना तो सब तैयार है लेकिन उसे परोसेंगे किस में? आप बुरा न मानें तो खाना यहीं मंगवा लूं मगर मेरे पास भी बरतन नहीं हैं, आप के यहां ही आना पड़ेगा.’’

‘‘तो आइए न डा. राघव और दूसरे मेहमानों से भी मेरी ओर से आने का आग्रह कीजिए.’’ ‘‘दूसरे मेहमान हमारे सीनियर डाक्टर थे, सो उन्हें असलियत बता कर राघव ने माफी मांग ली है. जो डाक्टर राघव के साथ रहते हैं उन दोनों की आज नाइट शिफ्ट है. सो, बस राघव ही आएगा. माफ करिएगा, मेहमान के बजाय आप को मेजबान बना रहा हूं.’’

‘‘माई प्लैजर डाक्टर, डू कम प्लीज.’’ कुछ देर के बाद गौरव और राघव राजू के साथ खाने का सामान उठाए हुए आ गए.

‘‘राजू को रोक लें, खाना गरम कर के सर्व कर देगा?’’

‘‘हां, फिर खुद भी खा लेगा. चलो, राजू तुम्हें बता दूं कि कहां क्या रखा है.’’ राजू को सब समझा कर प्रीति भुने पिस्ते और काजू ले कर आई, ‘‘जब तक राजू सूप गरम कर के लाता है तब तक इस से टाइमपास करते हैं.’’ ‘‘गुड आइडिया,’’ राघव ने पिस्ते उठाते हुए कहा, ‘‘वैसे आप दोनों ने इस कालोनी के लोगों को कई रोज के लिए टाइमपास का जरिया दे दिया.’’ लेकिन हंसने के बजाय प्रीति ने गंभीरता से कहा, ‘‘टाइमपास से ज्यादा बात फिक्र करने की है. आज जो हुआ है उस से तो लग रहा है कि चोर कालोनी में ही रहता है.’’ ‘‘वह तो आप के साथ हुए हादसे से ही पता चल गया था,’’ गौरव ने गौर से उस की ओर देखा. वह सहमी हुई सी लग रही थी.

‘‘आज भी उस ने यह हरकत की और मौका लगते ही फिर कर सकता है,’’ राघव बोला.

‘‘यानी हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा. शुंभ से कहती हूं कोई फुलटाइम नौकरानी तलाश करे मेरे लिए जो रात में भी मेरे यहां रहे,’’ प्रीति ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा, इस से आप का अकेलापन भी दूर होगा,’’ गौरव ने प्रीति के मनोभाव पढ़ने की कोशिश की, ‘‘थकेहारे काम से खाली घर में लौटने पर थकान और बढ़ जाती है.’’

‘‘यू कैन से दैट अगेन,’’ प्रीति ने उसांस ले कर कहा.

‘‘अकेलेपन से परेशानी है तो अकेलापन दूर करने का स्थायी प्रबंध क्यों नहीं करते आप दोनों…’’

‘‘क्यों, आप को अकेलेपन से परेशानी नहीं है?’’ प्रीति ने राघव की बात काटी.

‘‘होनी शुरू हो गई थी तभी तो मधु से उस की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही शादी कर ली. वह लखनऊ में एमडी कर रही है, चंद महीनों में पूरी कर के यहां आएगी.’’

‘‘और तब राघव के घर में चलने वाला हमारा मैस बंद हो जाएगा,’’ गौरव ने कहा.

‘‘तो अपने घर में चला लीजिएगा, आप के 2 साथी और भी तो हैं.’’ इस से पहले कि गौरव प्रीति के सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता, राजू सूप ले कर आ गया और विषय बदल गया.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ राघव ने चलने से पहले कहा, ‘‘मधु की मुलाकात करवाऊंगा आप से.’’

‘‘जरूर, उन की वैलकम पार्टी यहीं रख लेंगे, क्यों गौरव?’’

‘‘दैट्स एन आइडिया,’’ गौरव फड़क कर बोला. प्रीति के मुंह से अपना नाम सुन कर वह अभिभूत हो गया था. किसी भी तरह इस अनौपचारिकता को आगे बढ़ाना होगा. उसे राघव पर भी गुस्सा आया. क्यों उस ने राजू से टेबल और किचन साफ करवा दिया वरना इसी बहाने प्रीति की मदद करने को वह कुछ देर और रुक जाता. अब तो खैर जाना ही पड़ेगा मगर जल्दी ही कोई और मौका ढूंढ़ना होगा. और मौका अगले रोज ही मिल गया. सोसायटी के क्लबहाउस में शाम को इमरजैंसी मीटिंग रखी गई थी जिस में प्रत्येक फ्लैट से एक सदस्य का आना अनिवार्य था. गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘जिन हादसों से घबरा कर मीटिंग रखी गई है उन के शिकार तो हम दोनों ही हैं तो हमारा जाना तो जरूरी है. आप चल रही हैं?’’

‘‘जी हां, और आप?’’

‘‘मैं भी चल रहा हूं. इकट्ठे ही चलते हैं.’’ गौरव ने सोचा तो था कि इकट्ठे ही बैठेंगे मगर लिफ्ट में वर्मा दंपती भी मिल गए, प्रीति श्रीमती वर्मा के साथ चलते हुए उन्हीं के साथ ही अन्य महिलाओं के पास बैठ गई. प्रीति से तो किसी ने कुछ नहीं पूछा लेकिन गौरव की स्वयं की लापरवाही मानने पर भूषणजी ने कहा कि ऐसी गलती किसी से भी हो सकती है, सो बेहतर होगा कि पहले माले की सभी बालकनियों में ऊपर तक ग्रिल लगवा दी जाए और हरेक बिल्डिंग के गेट पर सीसीटीवी कैमरा. अधिकांश लोगों ने तो प्रस्ताव का अनुमोदन किया और कुछ ने महंगाई के बहाने अतिरिक्त खर्च का विरोध किया मगर सुरक्षा का कोई दूसरा विकल्प न होने से प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया और मीटिंग खत्म. गौरव ने सुना, कुछ महिलाएं प्रीति से कह रही थीं, ‘‘चोर के बहाने उस रोज आप के यहां बढि़या पकौड़े खाने को मिल गए.’’

‘‘पकौड़ों की दावत तो आप को जब चाहे दे सकती हूं.’’ ‘‘मगर उस से पहले आप को हमारे यहां आना पड़ेगा,’’ किसी ने कहा. ‘‘बुध को मेरे यहां किटी पार्टी है न, उस में प्रीति को बुला लेते हैं,’’ श्रीमती वर्मा बोलीं, ‘‘हमारी खातिर एक रोज छुट्टी कर लेना प्रीति.’’

‘‘आप पार्टी का समय बता दीजिए, मैं आ जाऊंगी और पार्टी खत्म होने पर फिर औफिस चली जाऊंगी,’’ प्रीति हंसी.

‘‘ऐसी बात है तो आप हमारी किटी जौइन कर लीजिए न. महीने में 1 बार कुछ घंटों का बंक मारना तो चलता है.’’ ‘‘देखते हैं,’’ प्रीति ने वर्मा दंपती के साथ चलते हुए कहा. कुछ दूर जा कर वर्मा दंपती एक और बिल्ंिडग में चले गए और गौरव लपक कर प्रीति के साथ आ गया.

‘‘आप डा. राघव के साथ नहीं गए?’’

‘‘उस के साथ जा कर क्या करता? वह तो अभी मधु से चैट करेगा. खाना तो हम लोग 9 बजे के बाद खाते हैं.’’

‘‘अभी घर जा कर क्या करेंगे?’’

‘‘चैनल सर्फिंग, जब तक कुछ दिलचस्प न मिल जाए. आप क्या करेंगी?’’

‘‘वही जो आप करेंगे. उस से पहले आप को कौफी पिला देती हूं.’’

‘‘जरूर,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘चोर के बहाने आप की तो कालोनी में जानपहचान हो गई, किटी पार्टी में जाने से और भी हो जाएगी,’’ गौरव ने कौफी पीते हुए प्रीति की ओर देखा, ‘‘खाली समय आसानी से कट जाया करेगा.’’ प्रीति के अप्रतिभ चेहरे से लगा जैसे चोरी करती रगेंहाथों पकड़ी गई हो. ‘‘उन महिलाओं का जो खाली समय होगा तब मुझे फुरसत नहीं होगी और जब मैं खाली हूंगी तो वे अपने घरपरिवार में व्यस्त होंगी,’’ प्रीति ने एक गहरी सांस खींची, ‘‘वैसे जानपहचान तो आप से भी हो गई है.’’ ‘‘और मेरे पास तो शाम को खाली वक्त भी होता है. अस्पताल से 7 बजे छुट्टी मिल जाती है. कई बार घर आ कर 9 बजे तक टाइम गुजारना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कभी फोन कर सकता हूं?’’ गौरव ने मौका लपका.

‘‘औफिस से जल्दी निकलने पर अकसर मैं मैडिटेशन सैंटर चली जाती हूं. सो, हो सकता है तब आप को मेरा मोबाइल बंद मिले.’’

‘‘अपने घर में सन्नाटा कम है क्या जो शांति की तलाश में मैडिटेशन सैंटर जाती हैं?’’ गौरव हंसा.

‘‘अपने पास जो होता है उस की कद्र कौन करता है?’’ प्रीति भी हंसने लगी.

‘‘यह तो है, पहले बंधन और रिश्तों से बचने के लिए अपनों को नकारते हैं और फिर भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं.’’

‘‘सही कहा आप ने, अपनों की भीड़ तो चौराहों से अपनी राह चली जाती और आप तनहा खड़े रह जाते हैं खुद की बनाई बंद गली में.’’ ‘बंद ही नहीं, अंधेरी गली में जिस की घुटन से घबरा कर आप ने खुद सामान को गिरा कर एक काल्पनिक चोर का निर्माण किया था और दहशत का माहौल बना दिया था जिस की सचाई जानने को मैं ने अपनी और राघव की क्रौकरी तोड़ी, पहली मंजिल से कूदने का रिस्क लिया. भले ही इस सब से कालोनी वालों का आजकल के माहौल के किए उपयुक्त सुरक्षा मिल गई और आप को थोड़ी बहुत दोस्ती,’  गौरव ने कहना चाहा मगर यह सोच कर चुप रहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. कोशिश तो यही रहेगी कि ये सब बगैर बताए ही प्रीति के करीब आ कर उस की और अपनी जिंदगी से अकेलेपन की वीरानगी और दहशत हमेशा के लिए दूर कर दें.

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 3: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘यह सब मैं नहीं पचा पाया. मैं अपने देश में, अपनों के बीच शांति से और सम्मानपूर्वक जीना चाहता था. मेरी पत्नी भी यही चाहती थी. इसलिए हम वापस आ गए. मेरी पढ़ाई और तजरबे के कारण यहां आते ही अच्छी नौकरी मिल गई.

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि हमारे देश में अमेरिका के प्रति इतना मोह क्यों है. हर कोई आंख बंद कर के अमेरिका

जाने को तैयार रहता है. यहां के लोग भोलीभाली लड़कियों को शादी के नाम पर वहां भेज कर अंधे कुएं में ढकेल देते हैं.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं नहीं कहता कि सभी के साथ बुरा ही होता है पर जिस के साथ ऐसा होता है, उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाती है न. आजकल हमारे देश में भी अच्छी नौकरियों या दूल्हों की कमी नहीं है,’’ नरेंद्र के जीजाजी बोले.

मनोहर, दीदी और जीजाजी को इतना भा गया कि वे उसे घर का ही सदस्य मानने लगे. वह भी नरेंद्र के साथसाथ शादी के कामों में इस तरह जुट गया जैसे शादी उसी के घर की हो.

शादी में अब केवल 2 दिन बाकी रह गए थे. घर मेहमान और सामान से भरा था. रात के 11 बज रहे थे. कुछ लोगों को छोड़ कर बाकी सब जिसे जहां जगह मिली, वहीं नींद में लुढ़के पडे़ थे. नरेंद्र भी बहुत थक गया था. थोड़ी देर आराम करने के लिए जगह ढूंढ़ रहा था. इतने में अर्चना उस के पास आई. उस के हाथ में एक लिफाफा था.

‘‘नरेंद्र, मैं कुछ ढूंढ़ रही थी तो मुझे दूल्हे की फोटो मिल गई. तुम इसे अपने पास रख लो. परसों लड़के वालों को लेने तुम्हें ही स्टेशन जाना होगा. तुम्हारे साथ मेरे देवरजी भी जाएंगे मगर उन्होंने भी लड़के वालों को नहीं देखा. इसलिए तुम्हें फोटो दे रही हूं. संभाल कर रखो. बरात को लिवा लाने में मदद मिलेगी.’’

अर्चना के हाथ से नरेंद्र ने फोटो ले ली. जैसे ही उस की नजर फोटो पर पड़ी उस के मन में फिर वही भावना जगी- कहीं देखा है इसे. पर कहां? दूर से भाईबहन को बतियाते देख विभा भी वहां आ गई.

‘‘सुनो, इस लिफाफे में दूल्हे की फोटो है. अपने पर्स में संभाल कर रख लो. परसों मुझे दे देना. बरात को लाने मुझे ही जाना है.’’

विभा ने लिफाफे में से फोटो निकाली, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’’

नरेंद्र उछल पड़ा. उस की थकावट और नींद जाने कहां उड़ गई, ‘‘मगर यह बात तुम डंके की चोट पर कैसे कह रही हो? आखिर तुम ने भी तो उसे केवल एक बार शादी में ही देखा था.’’

‘‘आप मर्द लोग शादी में ताश खेलते हो, सुंदरसुंदर भाभियों पर लाइन मारते हो या राजनीति की चर्चाएं करते हों. शादी में दूल्हा या दुलहन बदल जाए तो भी तुम्हें पता नहीं चलता.’’

‘‘तो क्या तुम औरतों की तरह साजशृंगार कर के अदाएं बिखेरते चलें? खैर, छोड़ो असली बात तो बताओ.’’

‘‘शादी के अलबम दिखाने के लिए गेटटुगेदर के बहाने सिमरन भाभी ने सारी महिलाओं को बुलाया था. यह और बात है कि हमें झक मार कर 2 घंटे बैठ कर वीडियो भी देखना पड़ा. इतनी देर तक देखते रहने के बाद भला हम दूल्हे को कैसे भूल सकते हैं. मैं ही नहीं, सारी महिलाएं इसे पहचान लेंगी.’’

‘मगर अब करें क्या? यही तो सोचना है. शादी तो हमें हर हाल में रोकनी है’, नरेंद्र और विभा इसी चिंता के कारण रातभर सो नहीं पाए.

महिंदर भी नरेंद्र के अन्य मित्रों की तरह अपनी नौकरी पर निर्भर मध्यवर्ग का व्यक्ति था. बहुत सीधासादा और ईमानदार. उस ने अपनी जमापूंजी सब लगा कर अपनी लड़की की शादी इस लड़के से तय की थी कि लड़का सुंदर है, अच्छी नौकरी है. सब से बड़ी बात है लड़का अमेरिकावासी है. यह तो ‘बिन मांगे मोर’ था. उन लोगों ने सपनों में भी इस की कल्पना नहीं की थी. उन्होंने सोचा कि लड़की सुखी रहेगी. दूसरी बेटी के विवाह में वह हाथ भी बंटाएगी.

मगर यह आदमी शादी के बाद ऐसे गायब हुआ कि आज ही उस के बारे में पता चला जब उस की फोटो मिली.

महिंदर की बेटी लवली बेचारी आज भी इस की राह देख रही है. यहांवहां से तरहतरह की बातें सुन कर महिंदर को कुछकुछ अंदाजा हो गया है मगर घर में इस बात की चर्चा करने से डरता है. अब क्या किया जाए?

महिंदर की बात तो बाद में आती है. इस समय 2 दिन बाद होने वाली शादी को कैसे रोका जाए? वह कुछ कहे तो क्या दीदी और जीजाजी उस का विश्वास करेंगे? हमारे समाज में शादी टूटना बहुत बुरी बात है. नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपनी भांजी की जिंदगी बरबाद होते नहीं देख सकता था.

पौ फटते ही नरेंद्र बिना किसी से कुछ कहेसुने विभा से फोटो ले कर निकल गया. 11 बजे तक वह महिंदर के घर में था. अब तक महिंदर के घर में सब को पता चल चुका था कि वे लोग ठगे गए थे. अब नरेंद्र की भांजी की घटना सुन कर उन का खून खौल उठा. उस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं.

महिंदर को साथ ले कर नरेंद्र सारा दिन दौड़धूप करता रहा. शाम को महिंदर  को साथ ले कर टैक्सी से भोपाल के लिए निकल पड़ा. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. दीदी और जीजाजी नरेंद्र पर बहुत बिगड़े. पर नरेंद्र और महिंदरजी के मुख से सारी बात सुन कर उन के पांव तले की जमीन खिसक गई. रात आधी हो गई थी. घर मेहमानों से भरा था. क्या करें क्या न करें. वे सब अंदर सामान वाले कमरे में जागते रहे.

सुबह 10 बजे की गाड़ी से बरात आने वाली थी. पर सुबह होते ही जैसे कोहराम मच गया. अखबार में नाम और बड़ीबड़ी तसवीरों के साथ अमेरिकी दूल्हे की सारी कहानी छपी थी. शादी का जो सुमधुर कोलाहल था वह भयानक नीरवता में बदल गया जिस में मेहमानों की खुसुरफुसुर स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी.

इस घटना को कोई 20-22 वर्ष गुजर गए हैं. अब विभा नहीं कहती ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’ क्योंकि इस लंबे अंतराल में उस के जीवन में बहुत से उतारचढ़ाव आए. जमापूंजी इकट््ठी करने के बाद भी पैसे कम पड़े तो मकान को गिरवी रख कर पप्पू यानी सुशांत को विदेश भेजा गया. वहां उस की पढ़ाई समाप्त हुई और अच्छी सी नौकरी भी लग गई. जाने से पहले पप्पू ने जो कहा था, वे शब्द आज भी विभा के कानों में गूंज रहे थे. उस ने नम आंखों से दोनों के चरण छूते हुए कहा था, ‘मां, बाबूजी, आप ने अपनी जिंदगीभर की जमापूंजी मुझ पर दांव लगा दी, मैं यह बात कभी नहीं भूलूंगा. मैं आप लोगों का सपना अवश्य पूरा करूंगा. खूब परिश्रम करूंगा और  पढ़ाई पूरी होते ही अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी. मैं अपना मकान छुड़वा लूंगा और हम सब मिल कर सुखचैन से रहेंगे.’’

सुशांत के जाने के बाद 3 वर्षों में ही नरेंद्र इतना बीमार पड़ा कि वह बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. नई नौकरी का वास्ता दे कर सुशांत आ नहीं पाया. विभा कहां जाती. उस ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ले ली. अब वह पेड़ के उस सूखे, पीले पत्ते की तरह है जो किसी भी क्षण पेड़ की टहनी से अलग हो कर धूल में मिल सकता है और अपना अस्तित्व खो सकता है. फिर भी उसे इंतजार है…

सूखे और झुर्रियों वाले चेहरे पर धंसी हुई निस्तेज आंखें कहीं दूर शून्य में फंसी हुई हैं. उसे इंतजार है अपने बेटे का. उस के सूखे होंठ बुदबुदा रहे हैं,‘जाने पप्पू कब आएगा…

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 2: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘खैर मानिए कि लड़की यहीं पर है. हमारे रिश्तेदारों में भी ऐसी ही घटना हो गई थी. रिश्तेदार एक छोटे से गांव के रहने वाले और रूढि़वादी हैं. उन की लड़की ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है. गांव से ही मिडिल पास है. अंगरेजी तो बिलकुल नहीं आती. जब उसे अमेरिका में रहने वाला लड़का ब्याह कर ले गया तो सारे रिश्तेदार अचंभित थे. जवान लड़कियां उस से ईर्ष्या करतीं. वह लड़की जब अमेरिका पहुंची तो उस ने देखा कि उस का पति और उस की अमेरिकन पत्नी सुबहसुबह नौकरी के लिए निकल जाते. उन्हें केवल एक पूर्णकालीन नौकरानी की जरूरत थी जो उन की, उन के घर की और उन के बच्चे की देखभाल कर सके. ऐसे में दहेज दे  कर भी अगर ऐसी कोई लड़की मिल रही थी तो लड़के की तो मुंहमांगी मुराद पूरी हो रही थी. ऐसी जिंदगी से तंग आ कर लड़की ने जब भारत वापस लौटना चाहा तो पहले तो किसी ने ध्यान न दिया, बाद में रोजरोज उस के कहने पर दोनों मिल कर उस की पिटाई करने लगे. न वहां उस की खोजखबर लेने वाला था न कोई उस की मदद करने वाला.’’

‘‘रेखाजी, आएदिन अखबारों में विज्ञापन छपते हैं, आप देखती ही होंगीं, ‘उच्च शिक्षा प्राप्त करने या नौकरी के लिए आस्ट्रेलिया, कनाडा या और कहीं जाने के लिए आप हम से मिलिए. हम आप के पासपोर्ट, वीजा आदि का इंतजाम करवा देंगे.’ बाद में पता चलता है कि वहां जा कर या तो कोई सड़कछाप काम करना पड़ता है या तरहतरह की ठोकरें खानी पड़ती हैं, नौकरी मिलना तो दूर की बात है, वापस आने के पैसे भी नहीं होते. कितने लोग गलत कामों में फंस जाते हैं,’’ लतिका ने कहा जो इन महिलाओं में ज्यादा समझदार थी.

‘‘ठीक कहा आप ने लतिकाजी, कई बार तो ये एजेंट लोग पैसे लेने के बाद यहीं के यहीं गायब हो जाते हैं कि विदेश जाने का सपना धरा का धरा रह जाता है,’’ एक अन्य ने जोड़ा.

विभा का सिर चकराने लगा. क्या ये सब बातें सच हैं या विदेश जाने वाले लोगों के प्रति जलन के मारे ऐसी बातें फैलाई जाती हैं.

‘‘विभाजी, आप यहां क्या कर रही हैं. सब लोग खाना शुरू भी कर चुके हैं. कहां खो गई हैं आप? चलिए, मैं ले चलती हूं,’’ मिसेज मोहन ने उन का हाथ थाम कर उठाते हुए कहा.

घर वापस आतेआते रात के 11 बज रहे थे. आते ही मां ने नरेंद्र से कहा, ‘‘बेटा, भोपाल से अर्चना का फोन आया था. उस की बेटी पिंकी की शादी तय हो गई है. अक्तूबर में शादी होगी. तारीख पक्की होते ही फिर बताएगी.’’

‘‘अच्छा मां, यह तो बड़ी अच्छी बात है. आज तो बहुत देर हो गई है. कल मैं दीदी से बात करता हूं,’’ नरेंद्र ने कहा.

घर में सब बहुत खुश थे खासकर नरेंद्र. उस की बहन अर्चना कई महीनों से अपनी बेटी के लिए एक अच्छे वर की तलाश में थी. अर्चना ने किसी से कहा तो नहीं था पर सभी लोग जानते थे कि वह हमेशा से विदेश में बसने वाले दामाद की तलाश में थी. पिंकी की पढ़ाई तो 2 साल पहले ही पूरी हो गई थी मगर दीदी की तलाश आज रंग लाई थी. उस ने जरूर अपनी पसंद का ही दामाद ढूंढ़ा होगा.

अगले दिन फोन से बात करने पर उस का अंदाजा सही निकला. यह जान कर सब खुश हुए. दीदी ने बताया कि लड़का अमेरिका के टैक्सास में रहता है.

दीदी चाहती थीं कि सब लोग शादी की तैयारियों में मदद करने के लिए कम से कम 10 दिन पहले भोपाल पहुंच जाएं. उन के अलावा दूसरा कौन था मदद करने वाला. सही भी था. अर्चना के बाद मांबाबूजी ने बहुत इंतजार करने के बाद सोच लिया था कि अब उन की कोई संतान नहीं होगी. उन्हें एक बेटा भी चाहिए था, निराशा तो हुई मगर क्या कर सकते थे. उन्होंने अपने मन को समझा लिया था. ऐसे में अर्चना के जन्म के 11 वर्ष के बाद नरेंद्र का जन्म हुआ था. नरेंद्र को अर्चना ने इतना प्यार दिया कि उस को मां और बाबूजी से ज्यादा अर्चना से लगाव था. वह अपनी दीदी की हर बात मानता था. वह उस से दीदी जैसे प्यार करता था, दोस्त जैसा अपनापन देता था और मां जैसा सम्मान करता था.

दफ्तर में 10 दिन छुट्टी ले कर नरेंद्र परिवार के साथ भोपाल जा पहुंचा. दीदी और जीजाजी बहुत खुश हुए. वे जानते थे कि अब नरेंद्र आ गया है तो वह सब संभाल लेगा. नरेंद्र भी तुरंत अपनी भांजी की शादी के कामों में जुट गया.

अगले दिन जब विभा और अर्चना बाजार गई हुई थीं तब अचानक नरेंद्र को खयाल आया कि उस ने तो अपनी भांजी के होने वाले दूल्हे को देखा ही न था. यह बात जब उस ने अपने जीजाजी से कही तो तुरंत उन्होंने कहा, ‘‘अरे, अभी तक अर्चना ने तुम्हें फोटो नहीं दिखाई? रुको, मैं ले कर आता हूं.’’

जब नरेंद्र ने लड़के की तसवीर देखी तो उसे लगा चेहरा तो बहुत जानापहचाना लग रहा है. लेकिन बहुत याद करने पर भी उसे याद नहीं आया कि उसे कहां देखा है? फिर वह शादी के कामों में उलझ कर इस बात को भूल गया.

शाम को नरेंद्र से मिलने मनोहर आया. वह उस का बचपन का दोस्त था. दोनों इंदौर में प्राथमिक कक्षाओं से ले कर महाविद्यालय तक साथसाथ पढ़े थे. फिर वह अमेरिका चला गया. उस के बाद जैसे दोनों का संबंधविच्छेद ही हो गया. उस की खबर न पा कर मित्रों की टोली यही सोचती रही कि वहां जा कर वह बहुत बड़ा आदमी बन गया होगा. पैसों के ढेर पर बैठे उसे इंदौर के ये साधारण मित्र याद नहीं आते होंगे. आज उस से मिलने के बाद नरेंद्र को असलियत का पता चला तो उस की आंखें नम हो गईं.

मनोहर अमेरिका में मिलने वाले वजीफे के भरोसे अमेरिका चला गया और एमएस में दाखिला ले लिया. उसे 6 महीनों तक वजीफा मिला भी. फिर वजीफा मिलना बंद हो गया. बाकी की पढ़ाई पूरी करने के लिए उसे तरहतरह के पापड़ बेलने पडे़. उसे कई ऐसे काम करने पडे़ जो यहां रहते हुए भारतवासी सोच भी नहीं सकते. उसी दौरान उसे कई भयंकर अनुभव हुए. वहां के प्रवासी भारतीयों ने उस की मदद न की होती तो शायद उसे पढ़ाई छोड़ कर वापस आने के लिए पैसे न होने के कारण भीख तक मांगनी पड़ती.

मनोहर ने बताया कि यहां भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है. वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है. कुछ हद तक कुछ लोगों के विषय में यह सही हो सकता है लेकिन वहां ऐसे भी लोग हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

मनोहर ने उसे बताया कि लुधियाना का रहने वाला एक लड़का भारत आ कर यहां गांव की सीधीसादी, अनपढ़ लड़की से शादी कर के अमेरिका ले गया. यहां सब खुश थे कि अनपढ़ गंवार हो कर भी लड़की को अमेरिका जाने का मौका मिल गया. वहां उस बेचारी का क्या हाल हुआ, क्या कोई जानता है?

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘वहां उस लड़के की पहली पत्नी थी जो विदेशी थी. दोनों उस लड़की के सामने ही खुल कर रासलीलाएं करते थे. उन की भाषा अलग, रहनसहन अलग. इस के साथ किसी भी प्रकार का संबंध तो दूर खानेपीने या किसी भी जरूरत के बारे में न पूछते. कामवाली बाई से भी बदतर हालत थी. पति से पूछने पर गालीगलौज और मारपीट. वह वापस आना चाहती थी, वे लोग उस के लिए भी तैयार नहीं हुए. वे उसे किसी से मिलने नहीं देते थे, न कहीं जाने देते थे. एकदो बार उस लड़की ने घर से भागने की कोशिश की तो पकड़ कर वापस ले गए और इतनी पिटाई की कि लड़की ने बिस्तर पकड़ लिया. पता नहीं, बाद में उस ने कब और कैसे खुदकुशी कर ली. बेचारी की कहानी का और क्या अंत हो सकता था? यह सब मुझे वहां के एक मित्र ने बताया.’’

वह चुप हो गया. उस अनजान लड़की के लिए शायद दिल भर आया था. कुछ रुक कर फिर बोला, ‘‘कितनी भी मेहनत करो, आप को अमेरिका में दूसरे नंबर पर ही रहना होगा. स्वाभाविक है कि प्रथम स्थान तो वहां के नागरिकों का होगा. कुछ लोग परिस्थितियों से समझौता कर के, नित्य संघर्ष का सामना करते हुए वहां रह भी गए तो बच्चे जब बडे़ होने लगते हैं तो फिर से तनाव का सामना करना पड़ता है. बच्चे उस माहौल में पलतेबढ़ते हैं, इसलिए उन की संस्कृति ही सीखते हैं. उन की सोच ही अलग हो जाती है. मांबाप को यह सब ठीक लगे और सब की एक राय हो तो ठीक है वरना फिर से संघर्ष. 60 साल के बेटे को भी मांबाप यहां कुछ भी कह देते हैं, डांट देते हैं, अपमानित कर देते हैं पर बेटा कुछ नहीं कहता. पर वहां 12 साल के बच्चे को भी कुछ कहा जाए तो वह बंदूक निकाल कर गोली दाग देगा. ऐसी घटनाएं लोकविदित हैं. ऐसी कई समस्याएं हैं जिन की ओर से लोग जानबूझ कर आंख मूंद लेते हैं.

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 1: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है, वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है लेकिन वास्तव में वहां ऐसे लोग भी हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

नरेंद्र के हाथ में फोटो देखते ही विभा ने कहा, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’

‘‘सुनो, कल तुम्हें बताना भूल

गया था. आज शाम को 7 बजे मोहनजी के यहां पार्टी है. तुम तैयार रहना. हम साढे़ 6 बजे तक घर से निकल जाएंगे,’’ दफ्तर से नरेंद्र का फोन था.

‘‘क्यों, किस खुशी में पार्टी दे रहे हैं वे लोग?’’ विभा ने पूछा.

‘‘मोहनजी का बड़ा लड़का रघुवीर इस महीने के अंत तक अमेरिका चला जाएगा. तुम्हें याद होगा, हम उन की बेटी की शादी में भी गए थे. उस की शादी अमेरिका में बसे एक लड़के से हुई थी न. बस, अब उसी की मदद से रघु भी अमेरिका जा रहा है.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. भाईबहन दोनों एक ही जगह रहें तो एकदूसरे का सहारा रहेगा.’’

‘‘हां और उन दोनों के अमेरिका जाने की खुशी में आज की पार्टी दी जा रही है. तुम देर न करना. और सुनो, मां और पप्पू का खाना बना लेना,’’ कहते ही नरेंद्र ने फोन रख दिया.

विभा सोच में पड़ गई, कहते हैं कि अभी भी अमेरिका में भारतीयों की भरमार है. केवल कंप्यूटर क्षेत्र में दोतिहाई लोग भारतीय हैं. डाक्टर, इंजीनियर, नर्स, व्यापारी पता नहीं कुल कितने होंगे. पता नहीं पप्पू के बडे़ होतेहोते अमेरिका की क्या हालत होगी. भारतीयों की तादाद अधिक हो जाने से कहीं आगे चल कर और भारतीयों को वहां आने से रोक न दिया जाए. जाने पप्पू कब बड़ा होगा? काश, अमेरिका वाले यहां के लोगों को और कम उम्र में यानी स्कूल में पढ़ते वक्त ही वहां आने दें. फिर तो उन का भविष्य ही सुधर जाएगा. वरना यहां रखा ही क्या है.

उसे याद आया कि उस की ममेरी बहन की लड़की 11वीं पास कर के ही अमेरिका चली गई थी. कल्चरल एक्सचैंज या जाने क्या? 11वीं के बाद उस का 1 साल बिगड़ा तो क्या हुआ? पढ़ाई तो बाद में होती रहेगी, सारी जिंदगी पड़ी है. अमेरिका जाने का मौका कहां बारबार आता है. जाने यह पप्पू भी कब बड़ा होगा?

विभा और नरेंद्र जब मोहनजी के यहां पहुंचे तब उन लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया. वे प्रवेशद्वार पर ही बेटे रघुवीर के साथ खड़े गुलाब के फूलों से सब का स्वागत कर रहे थे. खुशी से उन के चेहरे दमक रहे थे. पार्टी एक शानदार होटल में रखी गई थी. लौन मेहमानों से भरा था. फौआरों और रंगबिरंगे बल्बों से सजा लौन बड़ा खुशनुमा वातावरण पैदा कर रहा था. विभा और नरेंद्र भी भीड़ में शामिल हो गए. मोहनजी ने अपने दफ्तर वालों, दोस्तों, पत्नी के मायके के लोगों, बेटे के दोस्तों को यानी कि बहुत सारे लोगों को इस पार्टी में आमंत्रित किया था.

‘‘हाय नरेंद्र, लुकिंग वैरी स्मार्ट. लगता है तुम्हारा सूट विदेशी है,’’ सामने भूपेंद्र और उन की पत्नी खड़े थे.

‘‘नहीं यार, भूपू. यह तो सौ प्रतिशत देशी है. हमारे सारे रिश्तेदार बड़े देशभक्त हैं जो यहीं पड़े हैं,’’ नरेंद्र ने हंस कर कहा.

भूपेंद्र ने तुरंत पैंतरा बदला, ‘‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, है कि नहीं भाभी? मुझे तो यहीं भाता है. अच्छा छोडि़ए, बहुत दिनों से आप हमारे यहां नहीं आए. भई क्या बात है, हम से कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली. क्यों विभाजी, आप को वक्त नहीं मिल रहा है या भाईसाहब टीवी से चिपक जाते हैं?’’ भूपू की पत्नी अपनी ही बात पर ठहाका मार कर हंसते हुए बोली.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आएंगे हम लोग. आप लोग भी कभी समय निकाल कर आइए,’’ विभा ने कहा.

‘‘ओह, श्योरश्योर. अच्छा, फिर मिलते हैं. सब लोगों को एक बार हाय, हैलो कर लें,’’ कह कर पतिपत्नी दूसरी ओर बढ़ गए.

‘‘जरूरी था उन लोगों से कहना कि हम ही यहां ऐसे बेवकूफ  हैं जिन का कोई भी रिश्तेदार विदेश में नहीं है,’’ विभा ने होंठ भींचे ही पति को झिड़का.

‘‘हाय विभा, अभी आई है क्या?’’ किसी की बड़ी जोशीली चीख जैसी आवाज सुनाई दी. साथ ही किसी महिला ने उसे अपनी बांहों में भर कर गालों पर चूम लिया. वह घुटनों के ऊपर तक की चुस्त स्कर्ट और बिना बांहों की व लो नैक वाली टौप पहने हुए थी. विभा अचकचा गई. यह पहले तो कभी इतनी गर्मजोशी से नहीं मिली थी. मूड न होने पर तो एकदम सामने पड़ जाने के बावजूद ऐसे आंख फेर कर निकल जाती थी जैसे देखा ही न हो. विभा के मुंह से केवल ‘हाय सिट्टी’ निकला. वैसे तो मांबाप का दिया नाम सीता था मगर उसे सिट्टी कहलाना ही पसंद था. 2 मिनट बाद विभा ने देखा कि वह उसी गर्मजोशी से किसी दूसरी स्त्री से मिल रही थी. ऐसे लोग अपने हंगामे के जरिए भीड़ को आकर्षित करते हैं. कुछ देर बाद सब लोग वहां करीने से रखी हुई कुरसियों पर बैठ गए. पुरुष झुंड में खड़े हो कर बातें कर रहे थे. सभी के हाथों में अपनीअपनी पसंद के ड्रिंक थे. वरदीधारी लड़केलड़कियां सजधज कर महिलाओं को ठंडे पेय के गिलास सर्व कर रहे थे.

विभा सरला और मेनका के बीच में बैठी थी. थोड़ी देर रोजमर्रा की बातें हुईं, फिर सरला ने पूछा, ‘‘मेनका, सुना है आप की बेटी ने इंजीनियरिंग पूरी कर ली है. आगे का क्या सोचा है? शादीवादी या नौकरी?’’

‘‘अरे काहे की शादी और काहे की नौकरी? मेरी मन्नू ने टोफेल (टैस्ट औफ इंगलिश ऐज फौरेन लैंग्वेज) क्लियर कर लिया है. जीआईई की तैयारी कर रही है. फिलहाल उस का एक ही सपना है अमेरिका जाना,’’ मेनका ने बड़े गर्व से कहा.

‘‘आज के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं. हमारे जैसे भोंदू नहीं हैं. वे जानते हैं कि उन के जीवन का मकसद क्या है और कैसे उसे हासिल किया जाए. मेरी बेटी टीना को ही ले लीजिए. उस ने कालेज में दाखिला लेते ही हमें बता दिया था कि उस के लिए अमेरिका का लड़का ही चुना जाए क्योंकि उस के सपनों की दुनिया अमेरिका है जहां वह पति के जरिए पहुंचना चाहती है,’’ सरला ने बीच में ही कहना शुरू कर दिया.

‘‘उस की ग्रेजुएशन पूरी हो गई?’’ विभा ने पूछ लिया.

‘‘ग्रेजुएशन क्या पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर ली. लड़के के लिए पेपर में इश्तिहार दे दिया है. 2-3 मैरिज ब्यूरो में भी पैसे भर दिए हैं. साथ में दोस्तों और रिश्तेदारों को भी बता दिया है कि टीना के लिए अमेरिकी दूल्हा ही चाहिए.’’

विभा अपने ही विचारों में खोई कभी मेनका और कभी सरला की ओर देख रही थी और मन ही मन सोच रही थी, ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’

‘‘अरे विभाजी, सब लोग मौजमस्ती कर रहे हैं और आप बैठीबैठी क्या सोच रही हैं? यही न कि ‘एक दिन पप्पू बड़ा हो जाएगा तो मैं उसे अपनी नजरों से कदापि दूर नहीं भेजूंगी. पता नहीं, ये लोग अपनी औलाद को इतनी दूर भेज कर कैसे चैन से जी पाते हैं.’ ठीक कह रहा हूं न. मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं,’’ ये मिस्टर दिवाकर थे.

‘आप खाक जानते हैं’, उस ने मन में सोचा पर कुछ न बोली. केवल हकला कर रह गई, ‘‘जी…जी…’’

उस ने सोचा कैसा उजड्ड आदमी है. लोग किस रफ्तार से दौडे़ जा रहे हैं और यह…? इस के विचार कितने दकियानूसी हैं. उस समय वह भूल गई कि इंसान चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, उस की प्यार और अपनेपन की प्यास कभी नहीं मिटती. वह उठी और औरतों के दूसरे झुंड में जा मिली.

वहां एक औरत धीमी आवाज में कह रही थी, ‘‘आजकल तो लोगों पर एक पागलपन सा सवार है जिस के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. हमारे पड़ोसी लालजी ने अपने बेटे को इंजीनियरिंग के बाद अमेरिका भेजा था. वे कोई बहुत धनी नहीं थे. मध्यवर्गीय ही कह लो. वहां जा कर उस की अच्छी सी नौकरी लग गई. वहां की जिंदगी उसे इतनी भा गई कि एक गोरी मेम से शादी कर के वहीं बस गया. मगर वह कायर था इसलिए शादी की बात घर में नहीं बताई. जब भी वह भारत आता उस के मांबाप उस से शादी के लिए कहते. इस तरह 5-6 साल गुजर गए. पिछली बार जब वह भारत आया तो मांबाप ने एक अच्छी सी लड़की ढूंढ़ ली. उस ने भी बिना एतराज के उस से शादी कर ली. बहुत जल्दी उसे अमेरिका ले जाने का वादा कर के वह लौट गया. 2 साल से वह लड़की यहीं पर है और अपने पति के बुलावे का इंतजार कर रही है. अभी हाल ही में लालजी को अमेरिका से आए किसी दोस्त ने बताया कि वहां उस लड़के की मृत्यु हो गई है. मृत्यु का कारण किसी को पता नहीं है. मांबाप तो रो ही रहे हैं, साथ में वह 20-21 वर्ष की लड़की भी रोतेरोते पागल सी हो गई है,’’ तभी दूसरी ने कहा.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 4

तब तक नीरजा चाय बना लाई और मैं उस का सिर अपने कंधे पर टिका कर उसे सांत्वना देने लगी. अब तक हम उस की प्रेम कहानी को मजाक समझ कर हंस कर टाल देते थे पर आज अचानक लगा कि संगीता तो सचमुच गंभीर है. बात अब पृथ्वीराज के मातापिता तक पहुंच चुकी थी.

‘‘मैं तो कहती हूं कि इस प्रेमकथा को यहीं समाप्त कर दो. इसी में हम सब की भलाई है,’’ अंतत: मौन नीरजा ने तोड़ा.

‘‘क्या कह रही हो तुम? संगीता की तो जान बसती है पृथ्वीराज में,’’ सपना ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘हां, पर इस के चक्कर में इस के प्रेमी की जान भी जा सकती थी… फिर क्या होता इस की जान का?’’ नीरजा की बात कड़वी जरूर थी पर थी सच.

‘‘मैं अपने फैसले स्वयं ले सकती हूं. कृपया मुझे अकेला छोड़ दो,’’ संगीता ने आंसू पोंछ लिए. अब संगीता पढ़ाई में कुछ इस तरह जुट गई कि उसे दीनदुनिया का होश ही नहीं रहा. न पहले की तरह हंसतीबोलती न हमें हंसाती.

गनीमत है कि पृथ्वीराज को अधिक चोट नहीं आई थी. फिर भी उसे कालेज आने में 6 सप्ताह लग गए.

‘‘अब तेरे पृथ्वीराज की भविष्य की क्या योजना है?’’ एक दिन सपना ने संगीता से पूछ ही लिया.

‘‘हम ने इस विषय पर बहुत बात की. पृथ्वी तो फिर से घुड़सवारी शुरू करना चाहता है पर मैं ने ही मना कर दिया,’’ संगीता गंभीरता से बोली.

‘‘पर तेरा संयोगिता वाला स्वप्न?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘मैं अपने स्वप्न के लिए पृथ्वीराज को खोने का खतरा तो नहीं उठा सकती न. वैसे भी यह 21वीं सदी है. अब सपनों के राजकुमार घोड़े पर नहीं, बाइक पर आते हैं,’’ संगीता हंसी.

संगीता की हंसी में न जाने कैसी उदासी थी कि हम सब भी उदास हो गए पर कुछ कह कर हम उसे और उदास नहीं करना चाहते थे. संगीता अपनी पुस्तकों में डूब गई पर हम चाह कर भी अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे.

‘‘बेचारी संगीता, न जाने उस की खुशियों को कैसे ग्रहण लग गया,’’ सपना अचानक भावुक हो उठी.

‘‘क्या कह रही हो. संगीता की नादानी तो पृथ्वीराज को भी ले डूबी. बड़ी संयोगिता बनने चली थी. ऐतिहासिक चरित्र… मुझे तो पृथ्वीराज पर तरस आता है. संगीता प्रेम में कुएं में कूदने को कहती तो क्या कूद जाता वह?’’ नीरजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. प्रैक्टिकल, प्रोजैक्ट और थ्यौरी की तैयारी के बीच हम संगीता की प्रेम कहानी को लगभग भूल चुके थे. अंतिम पेपर के बाद हम बसस्टैंड पर खड़े अपनी सखियों से विदा ले रहे थे. भविष्य के सपनों में डूबे सब के मन में अजीब सी उदासी थी. हमारी कुछ सहपाठिनें तो इस अवसर पर अपने आंसू रोक नहीं पा रही थीं. फूटफूट कर रो रही थीं. तभी वहां अजीब सा शोर उभरा. घोड़े की टापें सुनाई दीं. इस से पहले कि हम कुछ समझ पाते घोड़ा हमारी आंखों से ओझल हो गया.

‘पृथ्वीराज… पृथ्वीराज…’’ नीरजा चीखी पर हमारी समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या है? पृथ्वीराज संगीता को उठा ले गया. देखा नहीं? घोड़े पर आया था. नीरजा अब भी कांप रही थी,’’ हमारा डर के मारे बुरा हाल था. हम घर पहुंचे तो हांफ रहे थे. मैं तो मम्मी को देखते ही रोते हुए उन से लिपट गई. सिसकियां थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

मम्मी ने हमें समझाबुझा कर शांत किया. पर जब हम ने सिसकियों के बीच टूटेफूटे शब्दों में उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने सिर थाम लिया.

‘‘इतनी बड़ी बात छिपा ली तुम सब ने? मेरा सिर तो सदा के लिए झुका दिया तुम ने… और वह संगीता… कितना नाज था मुझे उस पर. उस ने एक बार भी अपने मातापिता के संबंध में नहीं सोचा कि उन पर क्या बीतेगी. क्या करूं अब?’’

‘‘करना क्या है? पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ वरना संगीता का पता कैसे चलेगा?’’ मैं बोली.

‘‘पता है. तुम सब की होशियारी देख ली मैं ने. लड़की का मामला है, बहुत सोचसमझ कर कदम उठाना पड़ता है. पहले तो संगीता के मातापिता को सूचित करना पड़ेगा. पता नहीं बेचारों पर क्या बीतेगी. फिर जैसा वे कहेंगे वैसा ही करेंगे.’’ पर पुलिसकचहरी तक पहुंचने की नौबत नहीं आई. संगीता के मातापिता के पहुंचने से पहले ही संगीता का फोन आ गया था. इस बार दोनों को घोड़े से गिर कर चोट आई थी और दोनों ही नर्सिंगहोम में भरती थे. अब तो प्रेम कहानी ने बेहद जटिल रूप धारण कर लिया था. दोनों पक्षों के दर्जनों संबंधी आ जुटे थे और अपनाअपना पक्ष ले कर दूसरे पक्ष को दोषी ठहराने में जुटे थे. बीचबीच में हम तीनों को भी जी भर कर कोसा जाता कि हम ने सारी बात को तब तक छिपाए रखा जब तक पानी सिर से नहीं गुजर गया. हम मूर्ति बन सारी लानतें सह रह थे. अचानक एक दिन चमत्कार हो गया. न जाने कैसे दोनों पक्ष इस निर्णय पर पहुंच गए कि पृथ्वीराज और संगीता को खुला छोड़ना खतरे से खाली नहीं. अत: दोनों का विवाह ही एकमात्र समाधान है. दोनों बहुत गिड़गिड़ाए. पृथ्वीराज ने तो यहां तक कहा कि अपने पैरों पर खड़े हुए बिना वह विवाह मंडप में पैर भी नहीं रखेगा पर किसी ने दोनों की एक न सुनी और चट मंगनी पट विवाह की घोषणा कर दी. विवाह के अवसर पर पृथ्वीराज और संगीता ने लंगड़ाते हुए विवाह की रस्में पूरी कीं. स्वागत भोज के अवसर पर सपना से नहीं रहा गया. बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बड़े छिपेरुस्तम निकले? पैर तुड़वा लिए पर संगीता का सपना पूरा कर के ही माने.’’

‘‘यह राज की बात है किसी से कहना मत.’’

‘‘राज की बात? मैं कुछ समझी नहीं,’’ सपना बोली.

‘‘हम अपने घर वालों से विवाह की अनुमति लेने जाते तो जाति के नाम पर न जाने कितनी हायतोबा मचाते. अब देखो उन्होंने स्वयं हमें घेर कर विवाह करवा दिया,’’ पृथ्वीराज अपने विशेष अंदाज में मुसकराया. संगीता की आंखों में भी शरारत भरी मुसकान थी.

‘‘संगीता, सचमुच तुम इस खुशी की हकदार हो,’’ पहली बार नीरजा ने संगीता की प्रशंसा की. उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

हम उस का दर्द भलीभांति समझते थे. उस का मित्र अंकुश कब का उसे छोड़ कर किसी और के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रहा था. पर आज का दिन तो केवल संगीता के नाम था और हम सब कुछ भूल कर उस के विवाह का जश्न मना रहे थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें