अपनों से बनाएं मजबूत इमोशनल तालमेल

कल मैं अपने औफिस की रिटायर्ड सहकर्मी अनामिका के घर गई तो बड़ी व्यस्त और कहीं जाने की तैयारी में दिखीं. ड्राइंगरूम में रखे लगेज को देख कर मैं ने पूछा,  ‘‘बड़ी व्यस्त दिख रही हैं, कहीं जाने की तैयारी है, दीदी?’’

‘‘हां, कल हम दोनों बड़े बेटे बब्बू के पास जा रहे हैं. परसों उस का जन्मदिन है न,’’ वे खुशी से बोलीं.

‘‘क्या सब के जन्मदिन पर जाते हैं आप दोनों, रांची से पुणे की दूरी तो बहुत है?’’

‘‘हां, कोशिश तो यही रहती है कि जीवन के प्रत्येक खास दिन पर हमसब साथ हों. आनेजाने से हमारा शरीर तो ऐक्टिव रहता ही है, बच्चों और पोतेपोती का हम से जुड़ाव व लगाव बना रहता है. वे अपने दादादादी को पहचानते हैं और उन की चिंता करते हैं. बच्चों को तो इतनी छुट्टियां नहीं मिल पातीं और हम फ्री हैं, तो हम ही चले जाते हैं. मिलना चाहिए सब को, फिर चाहे कोई भी आए या जाए वे या हम लोग. दूरी का क्या है, बच्चे पहले ही फ्लाइट से रिजर्वेशन करवा देते हैं. कोई परेशानी नहीं होती,’’ अनामिका मुसकराती हुई बोलीं.

भावनात्मक लगाव की कमी

बच्चों के पास उन का जाने का उत्साह देखते ही बन रहा था. जीवन एक सतत प्रक्रिया है जिस में विवाह, बच्चे, उन का बड़ा होना और फिर उन का एक स्वतंत्र व पृथक व्यक्तित्व और अस्तित्व का होना एक प्राकृतिक जीवनचक्र है. जो आज हमारे बच्चे कर रहे हैं वही कल हम ने भी तो किया था. हम सब के जीवन में यह दौर आता ही है जब बच्चे अपना एक अलग नीड़ बना लेते हैं और मातापिता अकेले हो जाते हैं. आज ग्लोबलाइजेशन और मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी लगने के कारण मातापिता से दूर जाना उन की विवशता भी है और आवश्यकता भी.

जो लोग इस नैसर्गिक परिवर्तन को जीवन की सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया मान कर बच्चों के साथ खुद को ऐडजस्ट कर के चलते हैं उन के लिए कहीं कोई समस्या नहीं होती. परंतु जो लोग अपने अहंकार और कठोर स्वभाव के कारण स्वयं को परिवर्तित ही नहीं करना चाहते उन के लिए यह दौर अनेक समस्याओं का जनक बन जाता है. वे बच्चों से उतनी अच्छी बौंडिंग ही नहीं कर पाते कि वे बच्चों के साथ और बच्चे उन के साथ सहजता से एकसाथ रह सकें. परिणामस्वरूप, वे सदैव हैरानपरेशान से अपने बच्चों और नई पीढ़ी को दोष देते ही नजर आते हैं.

ओमप्रकाश की 5 संतानें हैं. 4 बेटियां और एक बेटा होने के बावजूद 8 वर्ष पूर्व बेटे की शादी होने के बाद से वे दोनों अकेले ही रहना पसंद करते हैं. बच्चों के यहां गए उन्हें सालों हो जाते हैं. बच्चों के पास जा कर उन्हें वह आजादी नहीं मिलती जो उन्हें अकेले रहने में मिलती है. यदि यदाकदा जाते भी हैं तो उन का वहां मन ही नहीं लगता क्योंकि प्रथम तो पारस्परिक मेलमिलाप के अभाव में अपनत्व ही जन्म नहीं ले पाता. दूसरे, वहां वे स्वयं को बंधनयुक्त महसूस करते हैं. जैसेतैसे 4-6 दिन काट कर वापस आ जाते हैं.

वहीं दूसरी ओर, कांता और रमाकांत हैं जिन के दोनों बेटेबहू सर्विस में हैं. मुंबई और इंदौर में उन्हें कोई फर्क ही महसूस नहीं होता. जब भी वे इंदौर स्थित अपने निवास पर आते हैं, 8-10 दिनों में ही बेटेबहू उन्हें अपने पास बुलाने के लिए फोन करने लगते हैं. साल में कम से कम एक बार वे सब एकसाथ किसी पर्यटन स्थल पर घूमने जाते हैं. वे अपने साथसाथ बहू के मातापिता को भी ले जाते हैं जिस से बहू भी अपने मातापिता की ओर से आश्वस्त रहती है.

वास्तव में देखा जाए तो बच्चों की खुशी ही मातापिता की खुशी होती है. बच्चों और आप की सोच में फर्क होना तो स्वाभाविक है परंतु बच्चों से कुछ पूछना, उन्हें तरजीह देना, उन के अनुसार थोड़ा सा ढल जाना, या उन की पसंद के अनुसार काम करने में क्या बुराई है? रमा कभी सलवारसूट नहीं पहनती थी पर जब मुंबई में उस की बहू ने सूट ला कर दिया तो उस ने बड़ी खुशी से सूट पहनना शुरू कर दिया. साथ ही, बर्गर, पिज्जा, चायनीज, कौंटीनैंटल जैसे आधुनिक भोजन खाना भी सीख लिया जिन के उस ने कभी नाम तक नहीं सुने थे. यह सब इसलिए ताकि बच्चों को उस के कारण किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और बाहर जा कर भी वे कंफर्टेबल महसूस करें.

परस्पर समझ की बात

श्रीमती घुले और उन के पति साल के 8 महीने अपने बेटों के पास रहते हैं. उन के बच्चे उन्हें आने ही नहीं देते. वे कहती हैं कि आज की पीढ़ी हम से अधिक जागरूक और बुद्घिमान है. तो उन के अनुसार थोड़ा सा ढलने में क्या परेशानी है. श्रीमती घुले बताती हैं कि जब पोता हुआ तो उन्होंने बहू के अनुसार ही उस की देखभाल की क्योंकि हमारे जमाने की अपेक्षा अब बहुत आधुनिक हो गया है और उसे मेरी अपेक्षा बहू अधिक अच्छी तरह समझती है.

सर्विस और विवाह हो जाने के बाद बच्चों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है और वे इसे अपने तरीके से जीना चाहते हैं. कई बार बच्चे वही कार्य कर रहे होते हैं जो आप को लेशमात्र भी पसंद नहीं. ऐसे में आप को सोचना होगा कि वे अब बच्चे नहीं रहे जो हर बात आप से पूछ कर करेंगे. वे आप को आज भी उतना ही पूछें और आप के अनुसार आज भी चलें, इस के लिए आप को स्वयं समझदारी से कोशिशें करनी होंगी.

रीमा की मां ने जब उसे 5 साडि़यां दिलाई तो उस ने दुकानदार से अपनी सास को दिखा कर फाइनल करने की बात कही. जब उस की सास ने साडि़यां देखीं तो बोलीं, ‘‘मुझे क्या दिखाना, तेरी पसंद ही मेरी पसंद है.’’

वे कहती हैं, ‘‘मेरी बहू ने इतने मन से खरीदी हैं, मैं क्यों उस के मन को मारूं. उस की पसंद ही मेरी पसंद है.’’

सास की जरा सी समझदारी से बहू भी खुश और सास का मान भी रह गया.

आप बच्चों का सहारा बनें, न कि मुसीबत. आप का व्यवहार बच्चों के प्रति ऐसा हो कि वे सदैव आप को अपने पास बुलाने के लिए लालायित रहें, न कि आप के आने की बात सुन कर अपना सिर पकड़ कर बैठ जाएं. आप की और उन की भावनात्मक बौंडिंग इतनी मजबूत हो कि आप के बिना वे स्वयं को अपूर्ण अनुभव करें. इस के लिए आप को कोई बहुत अधिक परिश्रम नहीं करना है, उन पर विश्वास रखना है और उन्हें जताना है कि आप के लिए वे कितना महत्त्व रखते हैं. यह भी कि पहले की ही भांति आज भी आप की दुनिया उन के आसपास की घूमती है.

बच्चों को अपना बनाएं

बच्चों के दुख, तकलीफ और विवशताओं को समझें. उन के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ आदि पर उन के पास जाएं. इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें उपहार दें. गरिमा की सास को जैसे ही पता चला कि उन की बहू गर्भवती है, वे तुरंत बहू के पास आ गई. उस का ध्यान रखने के साथसाथ उस का मनपसंद, स्वादिष्ठ और पौष्टिक भोजन खिलातीं. गरिमा कहती है, ‘‘इतना ध्यान तो मेरी मां ने कभी नहीं रखा जितना कि मेरी सास रखती हैं.’’ आप के द्वारा की गई छोटीछोटी बातें बच्चों को खुश कर देती हैं.

ईगो को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं

हम आज तक किसी के सामने नहीं झुके तो अब इस उम्र में क्यों झुकें? हमें किसी की भी जरूरत नहीं है. हम अपने को नहीं बदल सकते. उन्हें जो करना हो, सो करें. ऐसी बातें कह कर बच्चों का दिल न दुखाएं. उन के सामने अपने ईगो को न रखें और न ही किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाएं.

न दें छोटी छोटी बातों को तूल

बहू आप की पसंद की हो या बेटे की, अब वह आप के परिवार की एक सम्मानित सदस्य है. इसलिए कभी भी छोटीछोटी बातों को तूल न दें. आज की लड़कियां जींस, टौप, शौर्ट्स, स्कर्ट जैसे आधुनिक वस्त्र पहनना पसंद करती हैं. आप का दायित्व है कि अपनी बहू के पहनावे पर कोई प्रतिबंध न लगाएं. वह जो पहनना चाहती है, पहनने दें. ताकि आप के रहने से वह किसी भी प्रकार का बंधन महसूस न करे. किसी भी मनचाही बात के न होने पर तुरंत सब के सामने प्रतिक्रिया देने के स्थान पर अकेले में बड़े ही प्यार और अपनेपन से समझाएं ताकि आप जो कहना चाह रही हैं, बहू उसे उसी रूप में समझ सके. बहू को इतना प्यार और अपनत्व दें कि वह खुद को कभी पराया न समझे और उसे मायके की अपेक्षा ससुराल में रहना अधिक भाए. बहू को बेटी समझें ही नहीं, उसे बेटी बना कर रखें.

न करें अनावश्यक टोकाटाकी 

बच्चों के पास जा कर अनावश्यक टोकाटाकी न करें. उन के लिए नित नई समस्याएं खड़ी करने के स्थान पर उन का सहारा बनें. उन्हें इतना प्यार और अपनापन दें कि वे स्वयं आप के पास खिंचे चले आएं. उन्हें यह विश्वास हो कि कुछ भी और कैसी भी परिस्थिति हो, आप का संबल उन्हें अकेला नहीं होने देगा. आप ध्यान रखें, बच्चों की भी अपनी जिंदगी हैं और उन्हें इसी जिंदगी में जीना है.

न करें भेदभाव

कई मातापिता बच्चों में ही भेद करना प्रारंभ कर देते हैं. 2 बच्चों में से एक के पास अधिक रहेंगे, दूसरे के पास कम. इस से बच्चों में आपस में ही प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है. आप अपने सब बच्चों के पास जाएं और सब को भरपूर प्यार व अपनत्व दें, ताकि किसी को शिकायत का मौका न मिले. हां, किसी बच्चे को आप के सहारे की आवश्यकता है तो अवश्य उस के काम आएं. इस से बच्चों में भी परस्पर जुड़ाव होता है.

बच्चों को परस्पर जोड़ें

बच्चों का विवाह करने के साथ ही मातापिता का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं हो जाता. अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो जाने के बाद सभी बच्चे अपने परिवार के साथ अलगअलग रहने लगते हैं. अब उन्हें आपस में जोड़ने और परस्पर भरपूर प्यार बनाए रखने के लिए आप को मजबूत कड़ी की तरह कार्य करना होगा. नवीन साहब के 3 बेटों में से 2 विदेश में और एक दिल्ली में रहते हैं. जब भी उन के बेटे विदेश से आते हैं तो वे सब एक ही स्थान पर एकत्र हो जाते हैं. यही नहीं, सभी आपस में बात कर के एक ही समय पर आना सुनिश्चित भी करते हैं. वर्ष में कम से कम एक बार वे सब परिवार सहित एकसाथ होते ही हैं. इस से सभी में परस्पर प्यार और सौहार्द्र की भावना बनी रहती है. वरना, कुछ परिवारों में तो भाइयों के बच्चे एकदूसरे को पहचानते तक नहीं.

हीमोग्लोबिन की कमी को ऐसे करें पूरा

क्या आप आपके शरीर में हीमोग्लोबिन की पर्याप्त और सही मात्रा के बारे में जानते हैं. पुरुषों में हीमोग्लोबिन की सही मात्रा 14 से 17 ग्राम/100 मिली. रक्त होती है, वहीं स्त्रियों में ये मात्रा 13 से 15 ग्राम/100 मिली. रक्त होती है. शिशुओं के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा लगभग 14 से 20 ग्राम/100 मिली. रक्त होनी चाहिए.

यहां हम आपको एक बहुत ही साधारण सी बात बता देना चाहते हैं कि दिन में एक सेब अवश्य खाकर आप आपके शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर को सामान्य बनाए रख सकते हैं. इसके अलावा इन बातों का ध्यान रख कर भी आप अपने शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होने से रोक सकते हैं.

स्वास्थ्यवर्ध्क गुणों से भरपूर लीची, रक्त कोशिकाओं के निर्माण और पाचन-प्रक्रिया में सहायक होती है. लीची में बीटा कैरोटीन, राइबोफ्लेबिन, नियासिन और फोलेट जैसे विटामिन बी उचित मात्रा में पाया जाता है. इसमें मौजूद विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आवश्यक है.

शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने के लिए चुकंदर सबसे अच्छा खाद्य प्रदार्थ है. चुकंदर पोषक तत्वों की खान है. इसमें आयरन, फोलिक एसिड, फाइबर, और पोटेशियम ये सभी सही मात्रा में पाया जाता है. ये शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि करता है.

इनके अलावा अनार हीमोग्लोबिन बढ़ाने में बहुत लाभकारी होता है. अनार में आयरन और कैल्शियम के साथ-साथ प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर जैसे तत्व होता हैं, जिनसे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है.

गुड़ का सेवन करना भी एक बेहद उत्तम तरीका है. गुड़ में आयरन फोलेट और कई विटामिन बी शामिल हैं जो हीमोग्लोबिन स्तर को बढ़ाने के लिए और लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मददगार होते हैं.

शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को रोकने के लिए नियमित व्यायाम करना चाहिए. जब आप व्यायाम करते हैं तब आपका शरीर खुद-ब-खुद हीमोग्लोबिन पैदा करता है.

हम आपको बता देना चाहते हैं कि कॉफ़ी, चाय, कोला, वाइन, बियर, ओवर-द-काउंटर एंटाएसिड, कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ और डेयरी उत्पाद या कैल्शियम सप्लीमेंट्स वाली चीजें शरीर में आयरन सोखने की क्षमता को कम देते हैं. इसीलिए अगर आपका हीमोग्लोबिन स्तर कम हो गया है तो है तो आपको इन खाद्य प्रदार्थों के सेवन से बचना चाहिए.

विटामिन सी की कमी हो जाने के कारण भी हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है. जब शरीर में विटामिन सी की कमी होती है तो इस कारण आपका शरीर सही मात्रा में आयरन को सोख नहीं पाता. इसीलिए विटामिन सी से भरपूर खाद्य प्रदार्थों के सेवन से आप हीमोग्लोबिन का स्तर सही कर सकते हैं.

15 अगस्त स्पेशल: छुट्टी- बलवंत सिंह ने क्या कहा था

पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.

‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों  यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.

कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’

‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी ’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.

‘‘कैसी मुश्किल ’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है.  हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.

‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है ’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब… ’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.

‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.

‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझा जाए.

‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी

पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’

‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे  कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है  अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.

‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘ओए बलवंत…’’

‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.

गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.

‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न ’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.

‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.

‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.

‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया ’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.

‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.

‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.

उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया.

बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.

‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया ’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.

‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के

3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’

‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.

‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.

‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’

‘‘क्या… ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’

‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे ’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’

‘‘साहबजी, एक बात बोलूं ’’

‘‘बोलो…’’

‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.

‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.

मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा

15 अगस्त स्पेशल: जवाबी हमला- क्या है सेना की असल भूमिका

लाइन औफ कंट्रोल के पास राजपूताना राइफल का हैडक्वार्टर. रैजिमैंट के सारे अफसर मीटिंगरूम में  थे. कमांडिंग अफसर कर्नल अमरीक सिंह समेत सभी के चेहरों पर आक्रोश और गुस्सा था. कुछ देर कर्नल साहब चुप रहे, फिर बोले, स्वर में अत्यंत तीखापन था, ‘‘आप सब जानते हैं, दुश्मन ने हमारे 2 जवानों के साथ क्या किया. एक का गला काट दिया, दूसरे का गला काट कर अपने साथ ले गए.’’

‘‘हां साहबजी, इस का जवाब दिया जाना चाहिए,’’ सूबेदार मेजर सुमेर सिंह गुस्से और आक्रोश के कारण आगे और कुछ बोल नहीं पाए.

‘‘हां, सूबेदार मेजर साहब, जवाब दिया जाना चाहिए, जवाब देना होगा. दुश्मनदेश को प्यार और शब्दों की भाषा समझ नहीं आती है. जो वह कर सकता है, उसे हम और भी अच्छे ढंग से कर सकते हैं. जान का बदला जान और सिर का बदला सिर,’’ सैकंड इन कमांड लैफ्टिनैंट कर्नल दीपक कुमार ने कहा.

‘‘हां सर, जान का बदला जान, सिर का बदला सिर. दुश्मन शायद यही भाषा समझता है. कैसी हैरानी है, सर, एक आतंकवादी मारा जाता है तो सारे मानवाधिकार वाले, एनजीओ और सरकार तक सेना के खिलाफ बोलने लगते हैं. जवानों के गले काटे जा रहे हैं, वे शहीद हो रहे हैं. कोई मानवाधिकार वाला नहीं बोलता.

‘‘पत्थरबाज हमारे जवानों को थप्पड़ मारते हैं. हाथ में राइफल और गोलियां होते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाते क्योंकि उन को कुछ न करने का आदेश होता है. उन को आत्मरक्षा में भी गोली चलाने का हुक्म नहीं होता. क्यों? तब ये मानवाधिकार वाले कहां मर जाते हैं? कहां मर जाते हैं एनजीओ वाले और सरकार? और एक अफसर किसी पत्थरबाज को जीप के आगे बांध कर 10 सिविलियन को बचा ले जाता है तो उस के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘बस सर, हमें जवाब देना है. हमें आदेश चाहिए.’’

‘‘हां, साहबजी, अंजाम चाहे जो भी हो, हमें जवाब देना होगा,’’ तकरीबन सभी ने एकसाथ कहा.

‘‘ठीक है, हम जवाब जरूर देंगे, चाहे इस की गूंज हमें दिल्ली और इसलामाबाद तक सुनाई दे. पर, हमारी सेना ऐसी अमानवीयता के लिए मशहूर नहीं है. हमारी सेना अनुशासनप्रियता और आदेशों पर कार्यवाही के लिए विश्वभर में जानी जाती है. अपनी जानों की बाजी लगा कर भी हम ने सेना की इस परंपरा का पालन किया है, परंतु दुश्मन सेना इसे हमारी कमजोरी समझे, यह हमें बरदाश्त नहीं है. इस के लिए हमें उन के छोटे हमले का इंतजार करना होगा. तभी हमें उस का जवाब देना है और ऐसा समय बहुत जल्दी आएगा क्योंकि वह हमेशा ऐसा ही करता रहा है,’’ कर्नल साहब ने सब के चेहरों को बड़े गौर से देखा, फिर आगे कहा, ‘‘योजना इस प्रकार रहेगी, हमारी 2 प्लाटूनें जाएंगी. भयानक बर्फबारी की रात में चुपचाप जाएंगी और कार्यवाही को अंजाम देंगी. कार्यवाही इतनी चुपचाप और जबरदस्त होनी चाहिए कि दुश्मन को कुछ भी सोचने का मौका न मिले. उन्होंने हमारे 2 जवानों का गला काटा है, हम उन के 20 जवानों का गला काट कर आएंगे. एक जवान के बदले 10 जवानों का गला. ध्यान रहे, अपनी किसी भी कैजुअलिटी को वहां छोड़ कर नहीं आएंगे. अटैक सुबह मुंहअंधेरे होगा. मैं खुद लीड करूंगा.’’

‘‘नहीं सर, लीड मैं करूंगा, कार्यवाही आप की योजनानुसार होगी,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा.

कर्नल साहब ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘ठीक है, तैयारी शुरू करो. मैं ब्रिगेड कमांडर साहब से मिल कर आता हूं.’’ सभी चले गए.

थोड़ी देर बाद कर्नल साहब ब्रिगेडियर सतनाम सिंह साहब के सामने थे. वे सिख रैजिमैंट से हैं. उन की बहादुरी का एक लंबा इतिहास है. वे धीरगंभीर थे हमेशा की तरह. उन्होंने कर्नल साहब को बैठने का इशारा किया. थोड़ी देर वे गहरी नजरों से देखते रहे, फिर कहा, ‘‘मुझे दुख है…’’

‘‘हां सर, दुख तो मुझे भी है पर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं जवानों के आक्रोश और गुस्से को कैसे सहन करूं. मैं उन 2 जवानों के मांबाप को, उन की पत्नी और बच्चों को क्या जवाब दूं जो पाकिस्तान की दरिंदगी का शिकार हुए हैं. वे अपने बेटे, पति और बाप के दर्शन तो करेंगे पर बिना सिर के. वे जीवनभर इसे भूल नहीं पाएंगे. जीवनभर इसी गम में डूबे रहेंगे और जब वे अपनी दुखी नजरों से मुझे देखेंगे तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगा. मैं उन को क्या जवाब दूंगा, मैं यही समझ नहीं पा रहा हूं. वे मुझे कायर ही समझेंगे.’’

‘‘कर्नल अमरीक सिंह, संभालो अपनेआप को. हमें जवाब देना होगा. हमारी ब्रिगेड और तुम्हारी रैजिमैंट उन की कुरबानी को वैस्ट नहीं होने देगी. दुश्मन को उन की इस कायरतापूर्ण कार्यवाही का जवाब देना है, उन के परिवारों को जवाब अपनेआप मिल जाएगा. जाओ, दुश्मन को ऐसा जवाब दो कि वह फिर ऐसा करने का दुस्साहस न कर सके. मुझ से जो मदद चाहिए मैं देने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘राइट सर, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मैं जानता था, आप ऐसा ही कहेंगे.’’ कर्नल साहब अपने ब्रिगेड कमांडर साहब की सहमति पा कर जोश से भर उठे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे केवल आप की सहमति और आदेश चाहिए था, शेष मेरी रैजिमैंट के जवान करेंगे.’’ फिर उन्होंने दुश्मन पर होने वाली सारी कार्यवाही की योजना बताई. सब सुन कर कमांडर साहब ने कहा, ‘‘ध्यान रहे, कैजुअलिटी कम से कम हो. अगर होती है तो वहां कोई छूटनी नहीं चाहिए.’’

‘‘यस सर. पर सर, गुत्थमगुत्था की लड़ाई में कैजुअलिटी की कोई गारंटी नहीं होती. हां, यह गारंटी अवश्य है कैजुअलिटी वहां नहीं छूटेगी.’’

‘‘ओके फाइन, गो अहैड. गिव मी रिपोर्ट आफ्टर कंपलीशन. बेस्ट औफ लक कर्नल.’’

‘‘थैक्स सर.’’ कर्नल साहब थैंक्स कह कर उन के कमरे से बाहर आ गए. और उसी रात राजपूताना राइफल को अवसर मिला. दुश्मन की ओर से गोली आई और कर्नल अमरीक सिंह के जवानों ने तुरंत कार्यवाही की. दूसरे रोज कर्नल साहब ने अपने कमांडर को रिपोर्ट दी, ‘‘सर, टास्क कंपलीटिड. नो कैजुअलिटी. सर, दुश्मन के कम से कम 20 जवानों के सिर उसी प्रकार काट दिए गए थे जिस प्रकार उन्होंने हमारे 2 जवानों के काटे थे. हां, हम उन के सिरों को अपने साथ ले कर नहीं आए जैसे उन्होंने किया था. हम लड़ाई में भी अमानवीयता की हद पार नहीं करते.’’

‘‘गुड जौब कर्नल, भरतीय सेना और पाकिस्तान की सेना में यही अंतर है कि हम दुश्मनी भी मानवता के साथ निभाते हैं. इस का रिऐक्शन हमें बहुत जल्दी सुनने को मिलेगा, न केवल राजनीतिक स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी. शायद कुछ आर्मी कमांडर भी यह कह कर इस का विरोध करें कि पाकिस्तान और हम में क्या अंतर है. पर चिंता मत करो, हमें यह मानना ही नहीं है कि यह हम ने किया है. जैसे पाकिस्तान नहीं मानता. उन्हीं की बात हम उन के मुंह पर मारेंगे कि यह आप के अंदर की लड़ाई है. आप के किसी टैररिस्ट गु्रप का काम है, हमारा नहीं. ध्यान रहे, हमें इसी बात पर कायम रहना है.’’

‘‘यस सर. मैं आप की बात समझ गया हूं, सर. ऐसा ही होगा,’’ कर्नल साहब ने जवाब दिया.

दूसरे रोज बिग्रेड कमांडर साहब ने फोन कर के बताया, ‘‘वही हुआ, जो मैं ने कल कहा था. मुझे, आप को और डिव कमांडर को कमांड हैक्वार्टर में बुलाया गया है. हम वहां कमांडरों का मूड देख कर बात करेंगे.’’

‘‘राइट सर. हमें कब चलना होगा?’’

‘‘अब से 15 मिनट बाद. हैलिकौप्टर तैयार है, आप आ जाएं.’’

‘‘मैं आ रहा हूं, सर,’’ कर्नल साहब ने जवाब में कहा.

जब हम हैलिकौप्टर में बैठ रहे थे तो हमें सूचना मिली कि हमें जीओसी, जनरल औफिसर कमांडिंग लैफ्टिनैंट जनरल साहब के साथ दिल्ली सेनामुख्यालय में बुलाया गया है. हम ने एकदूसरे की ओर देखा. आंखों ही आंखों में अपनी बात पर दृढ़ रहने की दृढ़ता व्यक्त की.

कुछ समय बाद हम कमांड हैडक्वार्टर में थे. सूचना देने पर लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने हमें तुरंत अंदर बुलाया. वहां डीएमओ, डायरैक्टर मिलिटरी औपरेशन भी मौजूद थे. हमें देखते ही लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने कहा, ‘‘बिग्रेडियर साहब, गुड जौब. कर्नल साहब,

वैरी गुड.’’

हम दोनों भौचक्के रह गए. चाहे यह औपरेशन टौप सीके्रट था. किसी को हवा भी नहीं लगने दी गई थी तो भी कमांड हैडक्वार्टर में बैठे टौप औफिसर को पता चल गया था. यह मिलिटरी इंटैलिजैंस का कमाल था या जीओसी साहब और डीएमओ साहब का केवल अनुमान मात्र था, हम इसे बिलकुल समझ नहीं पाए. मन के भीतर यह शंका भी कुलबुला रही थी कि कहीं हमें बहकाने के लिए कोई जाल तो नहीं बुना जा रहा. हमें चुप देख कर जीओसी साहब ने आगे कहा, ‘‘चाहे इस अटैक के लिए आप दोनों इनकार करेंगे. हमें इनकार ही करना है. हमें किसी स्तर पर इस अटैक को मानना नहीं है पर मैं जानता हूं जिस सफाई से इस अटैक को अंजाम दिया गया है, वह हमारे ही बहादुर जवान कर सकते हैं. क्यों?’’

जीओसी साहब ने जब हमारी आंखों में आंखें डाल कर ‘क्यों,’ कहा तो हम उन की आंखों की निर्मलता को समझ गए.

‘‘जवानों के आक्रोश, गुस्से और मोरल सपोर्ट के लिए यह अटैक आवश्यक था, सर. दुश्मन हमें कमजोर न समझे, इसलिए भी. चाहे इस का अंजाम कुछ भी होता,’’ कर्नल अमरीक सिंह ने कहा.

‘‘और मैं जानता हूं, आप बिग्रेडियर सतनाम सिंह की मरजी के बिना इस अटैक को अंजाम नहीं दे सकते थे,’’ डीएमओ साहब ने कहा.

‘‘यस, सर.’’

‘‘गुड.’’

जीओसी साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘हमें सेनामुख्यालय में आर्मी चीफ ने बुलाया है. आप के डिव कमांडर भी आते होंगे. हम फर्स्ट लाइट में फ्लाई करेंगे. मैं नहीं जानता आर्मी चीफ इस के प्रति क्या देंगे. बधाई भी दे सकते हैं और नहीं भी. वे स्वयं एक मार्शल कौम से हैं, इस प्रकार की दरिंदगी बरदाश्त नहीं कर सकते. इसलिए आशा बधाई की है. आप सब जाएं. सुबह की तैयारी करें. डीएमओ साहब, हमारी मूवमैंट टौप सीक्रेट होनी चाहिए.’’

‘‘राइट सर,’’ कह कर हम बाहर आ गए. सुबह जब हैलिकौप्टर ने उड़ान भरी तो हम सब के चेहरों पर किसी प्रकार का तनाव नहीं था. हम सब बड़े हलके मूड में बातें कर रहे थे. कोई 2 घंटे बाद हमारे हैलिकौप्टर ने दिल्ली हवाई अड्डे पर लैंड किया. 2 कारों में सेनामुख्यालय पहुंचे. लंच का समय था. पहले हम से लंच करने के लिए कहा गया. बताया गया 3 बजे आर्मी चीफ के साथ हमारी मुलाकात तय है. 3 बजे हम आर्मी चीफ के समक्ष बैठे थे. इस मीटिंग में डीजीएमओ, डायरैक्टर जनरल मिलटरी औपरेशन उपस्थित थे.

चीफ साहब ने सभी के चेहरों को गहरी नजरों से देखा. शायद वे हमारे सपाट चेहरों से कुछ भी अनुमान नहीं लगा पाए. फिर कहा, ‘‘आप सब जानते हैं, मैं ने आप सब को यहां क्यों बुलाया है. आज सारे अखबार, टीवी चैनल, सरकार, सरहद पार की सरकार उन सिरकटे 20 पाकिस्तानी जवानों की बातें कर रहे हैं जो रात की कार्यवाही में मारे गए हैं.

‘‘मैं जानता हूं, कोई इसे माने या न माने पर यह कार्य हमारे जवानों का ही है. पर, हम इसे कभी नहीं मानेंगे कि यह हम ने किया है. मैं उस रैजिमैंट के कमांडिंग अफसर और जवानों को बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने यह कार्यवाही इतनी सफाई से की.

‘‘मैं उस बिग्रेड कमांडर साहब को भी बधाई देना चाहता हूं जिस ने इस बहादुरीपूर्ण कार्य के लिए आदेश दिया. हम पाकिस्तान को यह संदेश दे पाने में समर्थ हुए हैं कि आप अगर हमारे एक जवान का गला काटेंगे तो हम आप के 10 जवानों का गला काटेंगे. राजनीतिक स्तर पर सरकारें आपस में क्या करती हैं, हमें इस से कोई मतलब नहीं है. हम सरहदों पर उन्हीं के आदेशों का पालन करते हैं, करते रहेंगे अर्थात हमारी सेना एलओसी पार नहीं करेगी, लेकिन चुपचाप जवाबी हमला करती रहेगी, जैसे कल किया गया है.

‘‘आप सब को मेरा यही आदेश है यदि वे एक मारते हैं तो आप 10 मारेंगे,’’ जनरल साहब थोड़ी देर के लिए रुके, फिर कहा, ‘‘डीजीएमओ, मैं आप को खा जाऊंगा यदि इस कमरे की मीटिंग की कोई भी बात बाहर गई.’’

‘‘राइट सर. मैं समझता हूं, सर.’’

‘‘गुड. आप सब अपनी ड्यूटी पर जाएं. मैं आज रात को प्रैस कौन्फ्रैंस करने जा रहा हूं. मैं जानता हूं, उस में मुझे क्या कहना है. आप सब भी जान जाएंगे.’’

रात को हम सब टीवी के सामने बैठ कर आर्मी चीफ की प्रैस कौन्फैं्रस सुन और देख रहे थे.

‘‘सर, कल रात जो सरहद पार 20 पाकिस्तानी जवानों के सिर कलम किए गए, यह हमारी सेना की कार्यवाही तो नहीं?’’

‘‘यह प्रश्न सरहद पार की सरकार और सेना से पूछा जाना चाहिए. मैं आप को बता दूं, हमारी सेना बिना आदेश के ऐसी कोई कार्यवाही नहीं करती. ऐसा नहीं कर सकती.’’

‘‘सर, यह आप से इसलिए पूछा जा रहा है कि 2 दिनों पहले 2 जवानों के सिर कलम कर दिए गए थे. सो, इस कार्यवाही को हमारी सेना का जवाबी हमला समझा जा रहा है. क्या यह सही नहीं है?’’

‘‘देखिए, हमारी सेना बहुत ही अनुशासनप्रिय है. बिना आदेश के वह किसी भी कार्यवाही को अंजाम नहीं दे सकती, न ही देगी.’’

‘‘क्या इसे सेना की कमजोरी समझी जाए कि अपने जवानों को मरते देख कर भी जवाबी कार्यवाही नहीं कर सकती या नहीं करती?’’

‘‘भारतीय सेना क्या कर सकती है, यह सारी दुनिया जानती है. वर्ष 1965, 1971 और कारगिल की लड़ाई में आप सब भी जान चुके हैं. हम इस का जवाब जरूर देंगे परंतु अपने समय, स्थान निश्चित कर के.’’

‘‘क्या हमारी सरकार ऐसी किसी कार्यवाही में अड़चन नहीं डालती? क्या अपनेआप सेना तुरंत जवाबी कार्यवाही नहीं कर सकती?’’

‘‘अपने पहले प्रश्न का उत्तर आप को सरकार से पूछना चाहिए. दूसरे प्रश्न के उत्तर के लिए मैं आप को बता दूं, सेना को किसी भी कार्यवाही के लिए योजना बनानी पड़ती है, उस के लिए समय चाहिए होता है. आप को बहुत जल्दी इस का जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सर, क्या ये गीदड़ भभकियां नहीं हैं. जैसे पहले होता रहा है, हम ये करेंगे, वो करेंगे, बहुत शोर मचता है पर होता कुछ नहीं. क्या पाकिस्तान हमारी इस कमजोरी को जान नहीं गया है. तभी वह कभी आतंकवादी भेजता है, कभी 26/11 करवाता है?’’

प्रश्न बड़े तीखे थे. टीवी देख रहे कर्नल अमरीक सिंह सोच रहे थे, देखें जनरल साहब इस का क्या उत्तर देते हैं. उन्होंने बड़ी समझदारी से उत्तर दिए.

‘‘मुझे नहीं पता ये गीदड़ भभकियां हैं या नहीं, यह आप सरकार से पूछें. मैं आप को बता दूं, आज तक भारतीय सेना के किसी जनरल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के ऐसी बातें नहीं कहीं. केवल आप प्रतीक्षा करें और देखें. हम पाकिस्तान को जवाब जरूर देंगे.’’

कर्नल अमरीक सिंह सोच रहे थे, जनरल साहब ने बहुत समझदारी से सारी बातें सरकार पर डाल दी थीं पर अभी भी अनेक प्रश्न हैं जिन के उत्तर मिलने बाकी हैं. क्यों हम पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी माकूल कार्यवाही नहीं कर पाए कि वह ऐसी कार्यवाहियां करने की हिम्मत न करे? क्यों हम आज तक अपने देश में हो रही घुसपैठ को रोक नहीं पाए? क्यों पाकिस्तान 26/11 जैसे हमले करने में सफल हो रहा है?

हम कहां कमजोर पड़ रहे हैं? क्यों हम इन कमजोरियों को दूर नहीं कर पाते? इस के लिए सेना कहां दोषी है? और इस दोष को क्यों सेना दूर नहीं कर पाती? क्या इस में सरकार बाधक है? अगर है, तो सेना इस का विरोध क्यों नहीं करती? और अगर करती है तो क्यों इस का आज तक हल नहीं मिला? मैं जानता हूं, इन प्रश्नों के उत्तर शायद किसी सैनिक अधिकारी और जवान के पास नहीं हैं. अगर हैं, तो कोई क्यों इसे खुल कर नहीं कहना चाहता. क्यों…आखिर क्यों?

15 अगस्त स्पेशल: फैमिली के लिए बनाएं पनीर कटलेट

कटलेट का नाम लेते हा मुंह में पानी आ जाता है. आपने आलू का कटलेट तो खाया ही होगा, लेकिन इस बार मानसून और फेस्टिव सीजन में खाइए पनीर का कटलेट. इस रेसिपी के साथ लीजिए मानसून का मजा.

सामग्री

1. 300 ग्राम पिसा हुआ पनीर

2. तीन ब्रेड स्‍लाइस

3. डेढ चम्मच अदरक-लहसुन पेस्‍ट

4. दो-तीन हरी मिर्च

5. एक कटी हुई प्‍याज

6. एक चम्मच हल्‍दी पाउडर

7. डेढ़ चम्‍मच चाट मसाला

8. एक चम्‍मच मिर्च पाउडर

9. तीन चम्‍मच पुदीना पत्‍ती

10. एक कप ब्रेड का चूरा

11. दो चम्मच मैदा

12. स्‍वादानुसार नमक

13. तेल- तलने के लिए

14. पानी आवश्यकतानुसार

ऐसे बनाएं

सबसे पहले एक बाउल में थोड़े से मैदे में पानी डाल कर रख लें, साथ ही दूसरे ओर एक प्लेट में ब्रेड का चूरा रख लें. अब बनातें है कटलेट.

– सबसे पहले ब्रेड के स्‍लाइस को एक मिनट के लिए पानी में डालकर निकाल लें और एक बाउल में पनीर डालें और उसमें गीली ब्रेड, अदरक-लहसुन पेस्‍ट, प्‍याज, हरी मिर्च, हल्‍दी, चाट मसाला, नमक और पुदीने की पत्‍ती को डालकर अच्छी तरह मिलाए.

– जब यह मिश्रण मिल जाए तब इसकी कटलेट के आकार का शेप दीजिए. इसके बाद पहले से मिले रखें मैदा में इसे डिप करा कर इसे ब्रेड का चूरा में लपेटिए.

– अब एक कढ़ाई में तेल गर्म करें. गर्म हो जाने के बाद कटलेट को डालकर डीप फ्राई करें. फ्राई होने के बाद इसे निकाल लें. अब इन्हें आप गरमा-गरम सर्व करें.

शादी-भाग 2: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

मुसकराती हुई सुकन्या ने कहा, ‘‘सारे अलग शादियों में नहीं, बल्कि राहुल की शादी में जा रहे हैं.’’

‘‘दिल खोल कर न्योता दिया है नंदकिशोरजी ने.’’

‘‘दिल की मत पूछो, फार्म हाउस में शादी का सारा खर्च वधू पक्ष का होगा, इसलिए पूरी सोसाइटी को निमंत्रण दे दिया वरना अपने घर तो उन की पत्नी ने किसी को भी नहीं बुलाया. एक नंबर के कंजूस हैं दोनों पतिपत्नी. हम तो उसे किटी पार्टी का मेंबर बनाने को राजी नहीं होते हैं. जबरदस्ती हर साल किसी न किसी बहाने मेंबर बन जाती है.’’

‘‘इतनी नाराजगी भी अच्छी नहीं कि मेकअप ही खराब हो जाए,’’ सुरेश ने कार स्टार्ट करते हुए कहा.

‘‘कितनी देर लगेगी फार्म हाउस पहुंचने में?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘यह तो टै्रफिक पर निर्भर है, कितना समय लगेगा, 1 घंटा भी लग सकता है, डेढ़ भी और 2 भी.’’

‘‘मैं एफएम रेडियो पर टै्रफिक का हाल जानती हूं,’’ कह कर सुकन्या ने रेडियो चालू किया.

तभी रेडियो जौकी यानी कि उद्घोषिका ने शहर में 10 हजार शादियों का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि आज हर दिल्लीवासी किसी न किसी शादी में जा रहा है और चारों तरफ शादियों की धूम है. यह सुन कर सुरेश ने सुकन्या से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि आज शहर में 10 हजार शादियां होंगी?’’

‘‘आप तो ऐसे पूछ रहे हो, जैसे मैं कोई पंडित हूं और शादियों का मुहूर्त मैं ने ही निकाला है.’’

‘‘एक बात जरूर है कि आज शादियां अधिक हैं, लेकिन कितनी, पता नहीं. हां, एक बात पर मैं अडिग हूं कि 10 हजार नहीं होंगी. 2-3 हजार को 10 हजार बनाने में लोगों को कोई अधिक समय नहीं लगता. बात का बतंगड़ बनाने में फालतू आदमी माहिर होते हैं.’’

तभी रेडियो टनाटन ने टै्रफिक का हाल सुनाना शुरू किया, ‘यदि आप वहां जा रहे हैं तो अपना रूट बदल लें,’ यह सुन कर सुरेश ने कहा, ‘‘रेडियो स्टेशन पर बैठ कर कहना आसान है कि रूट बदल लें, लेकिन जाएं तो कहां से, दिल्ली की हर दूसरी सड़क पर टै्रफिक होता है. हर रोज सुबहशाम 2 घंटे की ड्राइविंग हो जाती है. आराम से चलते चलो, सब्र और संयम के साथ.’’

बातों ही बातों में कार की रफ्तार धीमी हो गई और आगे वाली कार के चालक ने कार से अपनी गरदन बाहर निकाली और बोला, ‘‘भाई साहब, कार थोड़ी पीछे करना, वापस मोड़नी है, आगे टै्रफिक जाम है, एफ एम रेडियो भी यही कह रहा है.’’

उस को देखते ही कई स्कूटर और बाइक वाले पलट कर चलने लगे. कार वालों ने भी कारें वापस मोड़नी शुरू कर दीं. यह देख कर सुकन्या ने कहा, ‘‘आप क्या देख रहे हो, जब सब वापस मुड़ रहे हैं तो आप भी इन के साथ मुड़ जाइए.’’

सुरेश ने कार नहीं मोड़ी बल्कि मुड़ी कारों की जगह धीरेधीरे कार आगे बढ़ानी शुरू की.

‘‘यह आप क्या कर रहे हो, टै्रफिक जाम में फंस जाएंगे,’’ सुकन्या ने सुरेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं होगा, यह तो रोज की कहानी है. जो कारें वापस मुड़ रही हैं, वे सब आगे पहुंच कर दूसरी लेन को भी जाम करेंगी.’’ धीरेधीरे सुरेश कार को अपनी लेन में रख कर आगे बढ़ाता रहा. चौराहे पर एक टेंपो खराब खड़ा था, जिस कारण टै्रफिक का बुरा हाल था.

‘‘यहां तो काफी बुरा हाल है, देर न हो जाए,’’ सुकन्या थोड़ी परेशान हो गई.

‘‘कुछ नहीं होगा, 10 मिनट जरूर लग सकते हैं. यहां संयम की आवश्यकता है.’’

बातोंबातों में 10 मिनट में चौराहे को पार कर लिया और कार ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी. थोड़ीथोड़ी दूरी पर कभी कोई बरात मिलती, तो कार की रफ्तार कम हो जाती तो कहीं बीच सड़क पर बस वाले बस रोक कर सवारियों को उतारने, चढ़ाने का काम करते मिले.

फार्म हाउस आ गया. बरात अभी बाहर सड़क पर नाच रही थी. बरातियों ने अंदर जाना शुरू कर दिया, सोसाइटी निवासी पहले ही पहुंच गए थे और चाट के स्टाल पर मशगूल थे.

‘‘लगता है, हम ही देर से पहुंचे हैं, सोसाइटी के लोग तो हमारे साथ चले थे, लेकिन पहले आ गए,’’ सुरेश ने चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए सुकन्या से कहा.

‘‘इतनी धीरे कार चलाते हो, जल्दी कैसे पहुंच सकते थे,’’ इतना कह कर सुकन्या बोली, ‘‘हाय मिसेज वर्मा, आज तो बहुत जंच रही हो.’’

‘‘अरे, कहां, तुम्हारे आगे तो आज सब फीके हैं,’’ मिसेज गुप्ता बोलीं, ‘‘देखो तो कितना खूबसूरत नेकलेस है, छोटा जरूर है लेकिन डिजाइन लाजवाब है. हीरे कितने चमक रहे हैं, जरूर महंगा होगा.’’

‘‘पहले कभी देखा नहीं, कहां से लिया? देखो तो, साथ के मैचिंग टाप्स भी लाजवाब हैं,’’ एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लग गई, साथ ही सभी सोसाइटी की महिलाओं ने सुकन्या को घेर लिया और वह मंदमंद मुसकाती हुई एक कुरसी पर बैठ गई. सुरेश एक तरफ कोने में अलग कुरसी पर अकेले बैठे थे, तभी रस्तोगी ने कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘क्या यार, सुरेश…यहां छिप कर चुपके से महिलाआें की बातों में कान अड़ाए बैठे हो. उठो, उधर मर्दों की महफिल लगी है. सब इंतजाम है, आ जाओ…’’

सुरेश कुरसी छोड़ते हुए कहने लगे, ‘‘रस्तोगी, मैं पीता नहीं हूं, तुझे पता है, क्या करूंगा महफिल में जा कर.’’

‘‘आओ तो सही, गपशप ही सही, मैं कौन सा रोज पीने वाला हूं. जलजीरा, सौफ्ट ड्रिंक्स सबकुछ है,’’ कह कर रस्तोगी ने सुरेश का हाथ पकड़ कर खींचा और दोनों महफिल में शरीक हो गए, जहां जाम के बीच में ठहाके लग रहे थे.

‘‘यार, नंदकिशोर ने हाथ लंबा मारा है, सबकुछ लड़की पक्ष वाले कर रहे हैं. फार्म आउस में शादी, पीने का, खाने का इंतजाम तो देखो,’’ अग्रवाल ने कहा.

‘‘अंदर की बात बताता हूं, सब प्यारमुहब्बत का मामला है,’’ साहनी बोला.

‘‘अमा यार, पहेलियां बुझाना छोड़ कर जरा खुल कर बताओ,’’ गुप्ता ने पूछा.

‘‘राहुल और यह लड़की कालिज में एकसाथ पढ़ते थे, वहीं प्यार हो गया. जब लड़कालड़की राजी तो क्या करेगा काजी, थकहार कर लड़की के बाप को मानना पड़ा,’’ साहनी चटकारे ले कर प्यार के किस्से सुनाने लगा. फिर मुड़ कर सुरेश से कहने लगा, ‘‘अरे, आप तो मंदमंद मुसकरा रहे हैं, क्या बात है, कुछ तो फरमाइए.’’

‘‘मैं यह सोच रहा हूं कि क्या जरूरत है, शादियों में फुजूल का पैसा लगाने की, इसी शादी को देख लो, फार्म हाउस का किराया, साजसजावट, खानेपीने का खर्चा, लेनदेन, गहने और न जाने क्याक्या खर्च होता है,’’ सुरेश ने दार्शनिक भाव से कहा.

‘‘यार, जिस के पास जितना धन होता है, शादी में खर्च करता है. इस में फुजूलखर्ची की क्या बात है. आखिर धन को संचित ही इसीलिए करते हैं,’’ अग्रवाल ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा.

‘‘नहीं, धन का संचय शादियों के लिए नहीं, बल्कि कठिन समय के लिए भी किया जाता है…’’

सुरेश की बात बीच में काटते हुए गुप्ता बोला, ‘‘देख, लड़की वालों के पास धन की कोई कमी नहीं है. समंदर में से दोचार लोटे निकल जाएंगे, तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा.’’

‘‘यह सोच गलत है. यह तो पैसे की बरबादी है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सारा मूड खराब कर दिया,’’ साहनी ने बात को समाप्त करते हुए कहा, ‘‘यहां हम जश्न मना रहे हैं, स्वामीजी ने प्रवचन शुरू कर दिए. बाईगौड रस्तोगी, जहां से इसे लाया था, वहीं छोड़ आ.’’

सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.

‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’

सुकन्या मुसकरा दी.

‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’

उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

शादी-भाग 1: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

‘‘सुनो, आप को याद है न कि आज शाम को राहुल की शादी में जाना है. टाइम से घर आ जाना. फार्म हाउस में शादी है. वहां पहुंचने में कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा,’’ सुकन्या ने सुरेश को नाश्ते की टेबल पर बैठते ही कहा.

‘‘मैं तो भूल ही गया था, अच्छा हुआ जो तुम ने याद दिला दिया,’’ सुरेश ने आलू का परांठा तोड़ते हुए कहा.

‘‘आजकल आप बातों को भूलने बहुत लगे हैं, क्या बात है?’’ सुकन्या ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा.

‘‘आफिस में काम बहुत ज्यादा हो गया है और कंपनी वाले कम स्टाफ से काम चलाना चाहते हैं. दम मारने की फुरसत नहीं होती है. अच्छा सुनो, एक काम करना, 5 बजे मुझे फोन करना. मैं समय से आ जाऊंगा.’’

‘‘क्या कहते हो, 5 बजे,’’ सुकन्या ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आफिस से घर आने में ही तुम्हें 1 घंटा लग जाता है. फिर तैयार हो कर शादी में जाना है. आप आज आफिस से जल्दी निकलना. 5 बजे तक घर आ जाना.’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगा,’’ सुरेश ने आफिस जाने के लिए ब्रीफकेस उठाते हुए कहा.

आफिस पहुंच कर सुरेश हैरान रह गया कि स्टाफ की उपस्थिति नाममात्र की थी. आफिस में हर किसी को शादी में जाना था. आधा स्टाफ छुट्टी पर था और बाकी स्टाफ हाफ डे कर के लंच के बाद छुट्टी करने की सोच रहा था. पूरे आफिस में कोई काम नहीं कर रहा था. हर किसी की जबान पर बस यही चर्चा थी कि आज शादियों का जबरदस्त मुहूर्त है, जिस की शादी का मुहूर्त नहीं निकल रहा है उस की शादी बिना मुहूर्त के आज हो सकती है. इसलिए आज शहर में 10 हजार शादियां हैं.

सुरेश अपनी कुरसी पर बैठ कर फाइलें देख रहा था तभी मैनेजर वर्मा उस के सामने कुरसी खींच कर बैठ गए और गला साफ कर के बोले, ‘‘आज तो गजब का मुहूर्त है, सुना है कि आज शहर में 10 हजार शादियां हैं, हर कोई छुट्टी मांग रहा है, लंच के बाद तो पूरा आफिस लगभग खाली हो जाएगा. छुट्टी तो घोषित कर नहीं सकते सुरेशजी, लेकिन मजबूरी है, किसी को रोक भी नहीं सकते. आप को भी किसी शादी में जाना होगा.’’

‘‘वर्माजी, आप तो जबरदस्त ज्ञानी हैं, आप को कैसे मालूम कि मुझे भी आज शादी में जाना है,’’ सुरेश ने फाइल बंद कर के एक तरफ रख दी और वर्माजी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला.

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है, आज तो हर आदमी, बच्चे से ले कर बूढ़े तक सभी बराती बनेंगे. आखिर 10 हजार शादियां जो हैं,’’ वर्माजी ने उंगली में कार की चाबी घुमाते हुए कहा, ‘‘आखिर मैं भी तो आज एक बराती हूं.’’

‘‘वर्माजी, एक बात समझ में नहीं आ रही कि क्या वाकई में पूरे स्टाफ को शादी में जाना है या फिर 10 हजार शादियों की खबर सुन कर आफिस से छुट्टी का एक बहाना मिल गया है,’’ सुरेश ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘लगता है कि आप को आज किसी शादी का न्योता नहीं मिला है, घर पर भाभीजी के साथ कैंडल लाइट डिनर करने का इरादा है. तभी इस तरीके की बातें कर रहे हो, वरना घर जल्दी जाने की सोच रहे होते सुरेश बाबू,’’ वर्माजी ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘नहीं, वर्माजी, ऐसी बात नहीं है. शादी का न्योता तो है, लेकिन जाने का मन नहीं है, पत्नी चलने को कह रही है. लगता है जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों भई…भाभीजी के मायके में शादी है,’’ वर्माजी ने आंख मारते हुए कहा.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, वर्माजी. पड़ोसी की शादी में जाना है. ऊपर वाले फ्लैट में नंदकिशोरजी रहते हैं, उन के बेटे राहुल की शादी है. मन इसलिए नहीं कर रहा कि बहुत दूर फार्म हाउस में शादी है. पहले तो 1 घंटा घर पहुंचने में लगेगा, फिर घर से कम से कम 1 घंटा फार्म हाउस पहुंचने में लगेगा. थक जाऊंगा. यदि आप कल की छुट्टी दे दें तो शादी में चला जाऊंगा.’’

‘‘अरे, सुरेश बाबू, आप डरते बहुत हैं. आज शादी में जाइए, कल की कल देखेंगे,’’ कह कर वर्माजी चले गए.

मुझे डरपोक कहता है, खुद जल्दी जाने के चक्कर में मेरे कंधे पर बंदूक रख कर चलाना चाहता है, सुरेश मन ही मन बुदबुदाया और काम में व्यस्त हो गया.

शाम को ठीक 5 बजे सुकन्या ने फोन कर के सुरेश को शादी में जाने की याद दिलाई कि सोसाइटी में लगभग सभी को नंदकिशोरजी ने शादी का न्योता दिया है और सभी शादी में जाएंगे. तभी चपरासी ने कहा, ‘‘साबजी, पूरा आफिस खाली हो गया है, मुझे भी शादी में जाना है, आप कितनी देर तक बैठेंगे?’’

चपरासी की बात सुन कर सुरेश ने काम बंद किया और धीमे से मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने भी शादी में जाना है, आफिस बंद कर दो.’’

सुरेश ने कार स्टार्ट की, रास्ते में सोचने लगा कि दिल्ली एक महानगर है और 1 करोड़ से ऊपर की आबादी है, लेकिन एक दिन में 10 हजार शादियां कहां हो सकती हैं. घोड़ी, बैंड, हलवाई, वेटर, बसों के साथ होटल, पार्क, गलीमहल्ले आदि का इंतजाम मुश्किल लगता है. रास्ते में टै्रफिक भी कोई ज्यादा नहीं है, आम दिनों की तरह भीड़भाड़ है. आफिस से घर की 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में 1 से सवा घंटा लग जाता है और लगभग आधी दिल्ली का सफर हो जाता है. अगर पूरी दिल्ली में 10 हजार शादियां हैं तो आधी दिल्ली में 5 हजार तो अवश्य होनी चाहिए. लेकिन लगता है लोगों को बढ़ाचढ़ा कर बातें करने की आदत है और ऊपर से टीवी चैनल वाले खबरें इस तरह से पेश करते हैं कि लोगों को विश्वास हो जाता है. यही सब सोचतेसोचते सुरेश घर पहुंच गया.

घर पर सुकन्या ने फौरन चाय के साथ समोसे परोसते हुए कहा, ‘‘टाइम से तैयार हो जाओ, सोसाइटी से सभी शादी में जा रहे हैं, जिन को नंदकिशोरजी ने न्योता दिया है.’’

‘‘बच्चे भी चलेंगे?’’

‘‘बच्चे अब बड़े हो गए हैं, हमारे साथ कहां जाएंगे.’’

‘‘हमारा जाना क्या जरूरी है?’’

‘‘जाना बहुत जरूरी है, एक तो वह ऊपर वाले फ्लैट में रहते हैं और फिर श्रीमती नंदकिशोरजी तो हमारी किटी पार्टी की मेंबर हैं. जो नहीं जाएगा, कच्चा चबा जाएंगी.’’

‘‘इतना डरती क्यों हो उस से? वह ऊपर वाले फ्लैट में जरूर रहते हैं, लेकिन साल 6 महीने में एकदो बार ही दुआ सलाम होती है, जाने न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ सुरेश ने चाय की चुस्कियों के बीच कहा.

‘‘डरे मेरी जूती…शादी में जाने की तमन्ना सिर्फ इसलिए है कि वह घर में बातें बड़ीबड़ी करती है, जैसे कोई अरबपति की बीवी हो. हम सोसाइटी की औरतें तो उस की शानशौकत का जायजा लेने जा रही हैं. किटी पार्टी का हर सदस्य शादी की हर गतिविधि और बारीक से बारीक पहलू पर नजर रखेगा. इसलिए जाना जरूरी है, चाहे कितना ही आंधीतूफान आ जाए.’’

सुकन्या की इस बात को उन की बेटी रोहिणी ने काटा, ‘‘पापा, आप को मालूम नहीं है, जेम्स बांड 007 की पूरी टीम साडि़यां पहन कर जासूसी करने में लग गई है. इन के वार से कोई नहीं बच सकता है…’’

सुकन्या ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों के खाने का क्या हिसाब रहेगा. मुझे कम से कम बेफिक्री तो हो.’’

‘‘क्या मम्मा, अब हम बच्चे नहीं हैं, भाई पिज्जा और बर्गर ले कर आएगा. हमारा डिनर का मीनू तो छोटा सा है, आप का तो लंबाचौड़ा होगा,’’ कह कर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या मां, यह साड़ी पहनोगी…नहींनहीं, शादी में पहनने की साड़ी मैं सिलेक्ट करती हूं,’’ कहतेकहते रोहिणी ने एक साड़ी निकाली और मां के ऊपर लपेट कर बोली, ‘‘पापा, इधर देख कर बताओ कि मां कैसी लग रही हैं.’’

‘‘एक बात तो माननी पड़ेगी कि बेटी मां से अधिक सयानी हो गई है, श्रीमतीजी आज गश खा कर गिर जाएंगी.’’

तभी रोहन पिज्जा और बर्गर ले कर आ गया, ‘‘अरे, आज तो कमाल हो गया. मां तो दुलहन लग रही हैं. पूरी बरात में अलग से नजर आएंगी.’’

बच्चों की बातें सुन कर सुकन्या गर्व से फूल गई और तैयार होने लगी. तैयार हो कर सुरेश और सुकन्या जैसे ही कार में बैठने के लिए सोसाइटी के कंपाउंड में आए, सुरेश हैरानी के साथ बोल पड़े, ‘‘लगता है कि आज पूरी सोसाइटी शादी में जा रही है, सारे चमकधमक रहे हैं. वर्मा, शर्मा, रस्तोगी, साहनी, भसीन, गुप्ता, अग्रवाल सभी अपनी कारें निकाल रहे हैं, आज तो सोसाइटी कारविहीन हो जाएगी.’’

विदाई- भाग 2: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.

कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’

नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया.

कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया.

उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे.

भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ.

हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था.

अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई.

‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं.

अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में  रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए.

नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता.

उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था.

इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया.

उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती.

एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’

‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई.

‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’

‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’

‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए.

नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना.

उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया.

‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा.

नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया.

उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती.

‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा.

‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया.

नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा.

‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं.

‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं.

कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा.

हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता.

‘पिशाचिनी’ में फैंस का दिल जीत रही हैं नायरा M बनर्जी, जानें उनके करियर की खास बातें

एक्टिंग का शौक था, लेकिन ये प्रोफेशन बनेगा पता नहीं था, क्योंकि परिवार में कोई भी इस फील्ड से नहीं है और यहाँ तक पहुंचना नामुमकिन था, कहती है हंसती हुई चुलबुली, खूबसूरत नायरा M बनर्जी. उन्होंने पहले अपना काम दक्षिण की फिल्मों से शुरू किया और धीरे-धीरे हिंदी टीवी जगत में आ गयी. उन्हें यहाँ तक पहुँचने में काफी संघर्ष करने पड़े, जो आसान नहीं था, कितनी बार रोई, खुद को सांत्वना दी, लेकिन आज सफल है.साउथ में काम करके उन्हें प्रोफेशनलिज्म के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला और उन्हें बतौर अभिनेत्री विकसित होने में काफी मदद भी की.

नायरा ने कॉलेज के दिनों से ही मॉडलिंग करना शुरू कर दिया था. उनका असली नाम नायरा बनर्जी है. साउथ के सुपरहिट हीरोज के साथ काम करने के दौरान ही वहां के निर्माताओं को उनका नाम थोड़ा देसी सा लगा और उन्होंने उनका नाम मधुरिमा रख दिया. नायरा उनके लिए थोड़ा एलियन नाम था, लेकिनयह नाम नायरा को कभी जमा नहीं. जैसे ही उन्हें हिंदी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में काम करने का मौका मिला, उन्होंने फिर से अपना नाम नायरा कर लिया, जिस नाम से उन्हें मुंबई के सारे लोग परिचित है.

कलर्स टीवी की फिक्शन ड्रामा शो पिशाचिनी में मुख्य भूमिका रानी/पिशाचिनी की निभा रही है, उन्होंने अपने जीवन की सभी पहलूओं पर बात की, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल- अभिनय में आने की बात सोची थी या एक इत्तफाक था?

जवाब – मेरी कोई प्रेरणा नहीं थी, मेरा कोई गॉडफादर इंडस्ट्री में नहीं है, मैं मुंबई में लॉ की पढाई कर रही थी. बंगाली होने की वजह से मैं कई स्थानों पर परफोर्मेंस करती थी. डांस करना, गीत गाना, परफोर्मेंस करना आदि सब मैं अपने हिसाब से कर रही थी. इन कार्यक्रम में कई सेलेब्स अपने मैनेजर के साथ आते थे, उन्होंने मेरे चेहरे को देखकर अभिनय के लिए बुलाया और मुझे साउथ की फिल्म का ऑफर मिला, मैंने पहले मना कर दिया, क्योंकि इंडस्ट्री की कोई जानकारी मुझे नहीं थी, लेकिन उन्होंने मेरे घर आकर सारी बातें मेरे पेरेंट्स को बताई, सबको काम के बारें में समझाया.तब मेरी माँ मेरे साथ ट्रेवल करती थी और इस तरह से पहली फिल्म की. वही से मेरे पिक्चर्स चारों तरफ फैले और मैं पोपुलर हो गई. इसके बाद काम मिलना शुरू हो गया है. मेरे पिता ट्रान्सफरेबल जॉब में होने की वजह से हमारा मुंबई में आना हुआ, जिससे अभिनय क्षेत्र में जाना संभव हुआ.

 

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सवाल – कितने संघर्ष करने पड़े?

जवाब – कई बार फिल्मों के लिए शॉर्टलिस्ट होने के बाद किसी स्टार किड के चलते मेरा नाम हटा दिया गया, लेकिन, मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है. पहले मुझे बुरा लगता था लेकिन अब मुझे अपनी मेहनत और काबिलियत का भरोसा है और जहां दमदार किरदार होते हैं, वहां मुझे मौका अवश्य मिलता है.

सवाल – साउथ की जर्नी से आप कितनी खुश है?

जवाब – मैं 10 साल से इस इंडस्ट्री में हूं, लेकिन तब मेरी पढाई प्रायोरिटी थी. पढाई ख़त्म करने के बाद मैं पूरी तरह से इंडस्ट्री में उतर पाई और नयी-नयी कहानियों को एक्स्प्लोर कर पा रही हूं. मौका भी मिल रहा है. अभी मैं इस शो को मन लगाकर कर अभिनय कर रही हूं, ताकि दर्शक मुझ पिशाचिनी को प्यार और घृणा दोनों ही करने लगे. ये अभिनय बहुत ही चुनौतीपूर्ण है, लेकिन मुझे अपनी अदाओं को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए मेहनत  करनी पड़ती है.

सवाल –इस शो में अभिनय करने की खास वजह क्या है?

जवाब – मैं मुख्य भूमिका निभा रही हूं, लेकिन एक राजपूत परिवार को टारगेट मैं क्यों कर रही हूं, इसके पीछे एक बड़ा कारण क्या है? ऐसे कई मजेदार पहलूओं को लेकर ये शो आगे बढ रही है.

 

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सवाल – इसमें किस तरह की कॉस्टयूम आपको पहननी पड़ी?

जवाब – इसमें कई तरह के कॉस्टयूम है, क्योंकि मैं हज़ारों साल पुरानी हूं. उस समय के कॉस्टयूम और जब मैं आज की नारी बनती हूं, तो आज के पोशाक पहनती हूं. ये एक ड्रामा है और मैं अपनी शक्ति की वजह से कोई भी रूप ले सकती हूं.

सवाल – आप भूत-प्रेत पर विश्वास करती है?

जवाब – मुझे कोई विश्वास नहीं होता, लेकिन कई साल पहले मैं अचानक शांत हो गयी थी, मुझे भूख नहीं लगना, किसी से बात न करना आदि हो गया था, जो धीरे-धीरे कम हुई. मैं मानती हूं कि हमारे आसपास पोजिटिव और निगेटिव शक्तियां होती है, जिसे व्यक्ति खुद महसूस करता है.

सवाल – हिंदी फिल्मों में कब आ रही है?

जवाब – कुछ स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है, उम्मीद है आगे कुछ अच्छा होगा.

सवाल – क्या महिलाओं के लिए कोई मेसेज देना चाहती है?

जवाब – महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाए, काम की कोई उम्र नहीं होती. ये लाइफ आपकी गिफ्ट है, इसमें जितना सीख सकते है,उतना सीखिए.

सवाल –आज़ादी की 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश में किस तरह का बदलाव चाहती है?

जवाब – इन्फ्रास्ट्रक्चर में बदलाव की बहुत जरुरत है. कानून की दिशा में कई सुधार करने की जरुरत है.

वनराज को जेल भेजने से रोकेगी बा, Anupama से मांगेगी भीख

सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में इन दिनों नए ट्विस्ट आ रहे हैं. खबरें हैं कि जहां शो में नए शख्स की एंट्री होने वाली है तो वहीं अनुज की हालत का जिम्मेदार वनराज जेल जाते हुए दिखने वाला है. हालांकि अभी तक शो से जुड़ी कोई औफिशियल अपडेट या प्रोमो सामने नहीं आया है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड का अपडेट आ गया है, जिसमें बा अपने बेटे को जेल न भेजने के लिए अनुपमा के सामने हाथ जोड़ती दिख रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Update)…

अंकुश को सलाह देता है अधिक

 

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अब तक आपने देखा कि पूरा परिवार वनराज और अनुज के लिए परेशान होता है. वहीं काव्या से सच जानने की अनुपमा कोशिश करती है. लेकिन वह कहती है कि उसने दोनों को पहाड़ी की चोटी पर बात करते हुए देखा था पर गिरते हुए नहीं देखा. दूसरी तरफ अंकुश से अधिक कारोबार संभालने की बात कहता दिखता है.

 

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हादसे को याद करेगा वनराज

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज बेहोशी में हादसे को याद करेगा. जहां पर वह अनुज को गुस्से में गाड़ी पहाड़ी पर ले जाएगा और वहां पर वनराज कहेगा कि अनुज ने उससे परिवार को छीना है. उसकी वजह से वह त्योहार के दिन परिवार के बिना था. हालांकि अनुज उसकी बातों का करारा जवाब देता है. वहीं वह याद करता है कि बातों बातों में वनराज को अनुज पर गुस्सा आता है और वह उसे धक्का दे देता है.

अनुपमा को सच बताएगा वनराज

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि जहां अनुज की ब्रेन सर्जरी होगी तो वहीं वनराज को होश आएगा और वह अनुपमा से मिलकर कबूल करेगा कि उसने अनुज को चट्टान से धक्का दिया था. वहीं ये बात समर सुन लेगा और बा को पता चलेगा, जिसके बाद वह लीला इमोशनल होकर अनुपमा को वनराज को गिरफ्तार न करने के लिए ब्लैकमेल करती दिखेगी.

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