75 वर्ष की आज़ादी को लेकर क्या कहते है हमारे Celebs, जानें यहां

भारत इस साल 75 वें स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, आजादी के 7 दशक बाद भी क्या देश के नागरिकों को कुछ कहने की आजादी है या नहीं ? वे मानते है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी हम पूरी तरह विकसित और आज़ाद नहीं है, इसकी वजह हमारी माइंडसेट है,जिसे पढ़े-लिखे लोग भी नहीं बदल पाते, इसे बदलना बहुत जरुरी है, आइये जाने क्या कहना चाहते है सेलेब्स ?

अली गोनी

aly-goni

अभिनेता अली गोनी कहते है कि देश की आज़ादी बिना किसी से पूछे अपने हिसाब से चल रही है. मेरा मनपसंद फ्रीडम फाइटर भगत सिंह है, उन्होंने देश के आज़ादी की खातिर बहुत कम उम्र में खुद को बलिदान दिया है, जिसे हमें हमेशा याद रखने की जरुरत है. फिल्म ‘वीर ज़ारा’ का गाना ‘ऐसा देश है मेरा….’मेरा पसंदीदा देशभक्ति सॉंग है.

मृणाल जैन

mrinal

बंदिनी फेम अभिनेता मृणाल जैनका कहना है कि आजादी मेरे लिए एक भारतीय होना है. इसमें मुझे किसी को ये नहीं पूछना चाहिए कि मैं मारवाड़ी, पंजाबी, मराठी या मद्रासी हूँ. मेरा पसंदीदा फ्रीडम फाइटर महात्मा गाँधी और भगत सिंह है. उन्होंने देश के लिए खुद को कुर्बान किया है और उनकी इस बलिदान को देश के हर नागरिक को याद रखना है. मेरा मनपसंद देशभक्त गीत फिल्म ‘कर्मा’ का गीत ‘मेरा कर्मा तू….’ है.

कुलविंदर बक्शीश

kulwin

अभिनेता कुलदीप बख्शीश कहते है कि आज़ादी का ये पर्व उन सभी लोगों की मुझे याद दिलाता है, जिन्होंने इसे पाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है. मैं ऐसे फ्रीडम फाइटर को सैल्यूट करता हूँ. आज़ादी मेरे लिए अपने हिसाब से देश में बिना किसी डर के रहना और स्वतंत्र रूप से श्वास लेना है. ये सभी के लिए लागू होना चाहिए. मेरा पसंदीदा फ्रीडम फाइटर सुभाषचंद्र बोस है.

निवेदिता बासु

nivedita

निवेदिता बासु कहती है कि हजारों की संख्या में लोगों ने अपने जान की आहुति इस आजादी के लिए दिया है. उसे कभी भुलाया नहीं जाना चाहिए. ‘आई लव माय इंडिया…..’फिल्म ‘परदेस’ का गीत मुझे बहुत पसंद है. इस गाने को सुनते ही मुझे बहुत अच्छा अनुभव होता है. हम सभी देशवासियों को ये शपथ लेना है कि देश की किसी समस्या को मिलकर सामना करें और देश में शांति और सद्भावना को बनाए रखने में सहयोग दें.

विजयेन्द्र कुमेरिया

vijendra

अभिनेता विजयेन्द्र कुमेरिया कहते है कि हम सभी आज़ादी के 75 साल मना रहे है, लेकिन अभी भी विकास के क्षेत्र में काम बहुत कम है, मसलन स्वास्थ्य के देखभाल की अच्छी व्यवस्था, गरीबी कम होना, गांव की आर्थिक व्यवस्था, साफ-सफाई आदि पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. जब हम स्पीच की आज़ादी को देखते है, तो कभी हम अपनी बात रख सकते है तो कभी नहीं. इसमें सोशल मीडिया ही है, जिसमे किसी बात की सच्चाई जाने बिना लोग अपनी विचारों को रखते है और यहाँ किसी को भी ट्रोल भी किया जा सकता है. फ्रीडम ऑफ़ स्पीच का अर्थ ये नहीं कि आप किसी को भी कुछ कह सकते है.

मोहित मल्होत्रा

mohit

स्पिटविला 2 फेम मोहित मल्होत्रा कहते है कि 7 दशक बीतने के बाद भी हम सभी को उतनी आज़ादी नहीं है, जो हमें मिलनी चाहिए थी. राजनीतिक दबाव और मीडिया की वजह से फ्रीडम ऑफ़ स्पीच नहीं है. समाज के रूप में हमें अधिक खुले विचार रखने की आवश्यकता है, जजमेंटल होना नहीं. मेरा विश्वास है कि हम सभी को चाहे वह कलाकार, लेखक, सिंगर्स आदि जो भी हो उन्हें खुद की बात कहते रहना चाहिए.

अविनाश मुख़र्जी

avinash

7 दशकों के बाद क्या देश के नागरिक आजाद हो चुके है? पूछते है बालिका वधु फेम जग्या यानि अविनाश मुखर्जी. बोलने की आज़ादी के अलावा हमारे कई फंडामेंटल राईट भी है, जो हम सभी को अपने अनुसार जीने की आज़ादी देता है. कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ हमें विकास की जरुरत है. मेरे हिसाब से भारत आजाद है, लेकिन यहाँ के नागरिक नहीं, क्योंकि इसके उदाहरण कई है, जैसे लिंगवाद, जातिवाद, लैंगिक असमानता आदि में सुधार होना जरुरी है. जब तक ये नहीं होगा, तब तक देश पूरी तरह से आज़ाद नहीं कहलायेगा. लोगों को खुद बदलने की चाह न हो, तो सिस्टम में कुछ भी बदलाव करना संभव नहीं.

दहशत- भाग 3: क्या सामने आया चोरी का सच

शुंभ जब खाली बरतन उठा रहा था तो फोन की घंटी बजने पर प्रीति बैडरूम में चली गई. गौरव से पकौड़ों की तारीफ सुनने पर शुंभ ने सकुचाए स्वर में कहा, ‘‘थैंक यू सर, डरतेडरते बनाए थे बहुत दिनों के बाद, किचन का काम करने की आदत छूट गई है.’’

‘‘क्यों, मैडम खाना नहीं बनवातीं?’’

‘‘जब कभी पार्टी हो तभी. और आज तो अरसे बाद पार्टी हुई है.’’

‘‘मैडम बहुत बिजी रहने लगी हैं?’’

‘‘वे तो हमेशा से ही हैं मगर अब सब सहेलियां दोस्त शादी कर के अपनीअपनी घरगृहस्थी में मगन हो गए हैं. किसी को दूसरों के घर आनेजाने की फुरसत ही नहीं है. पहले तो बगैर पार्टी के भी बहुत आनाजाना रहता था पर अब कोई बुलाने पर भी नहीं आता,’’ शुंभ के स्वर की व्यथा गौरव को बहुत गहरी लगी, ‘‘आजकल तो काम के बाद टीवी देख कर ही समय गुजारती हैं.’’ तभी प्रीति आ गई, ‘‘माफ करिएगा, आप को इंतजार करना पड़ा. लंदन से मम्मीपापा का फोन था. सो, बीच में रखना ठीक नहीं समझा.’’

‘‘आप के मम्मीपापा लंदन में हैं?’’

‘‘जी हां, मेरी डाक्टर बहन के पास. छुटकी अकेली है, सो ज्यादातर उसी के पास रहते हैं.’’

‘‘अकेली तो आप भी हैं,’’ गौरव के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा. ‘‘यहां और वहां के अकेलेपन में बहुत फर्क है. वैसे यहां भी अब लोग स्वयं में ही व्यस्त रहने लगे हैं. एक कप गरम चाय और चलेगी?’’

‘‘जी नहीं, अब चलूंगा. पकौड़े बहुत खा लिए हैं, सो एफ-1 में बताना भी है कि मैं आज रात को खाना नहीं खाऊंगा. डा. राघव के यहां हम कुछ दोस्त एक नौकर से खाना बनवाते हैं.’’

‘‘खाने के बहाने दोस्तों से गपशप भी हो जाती होगी.’’

‘‘जी हां, और दोस्तों को भी बुलाते रहते हैं. एक रोज आप को भी बुलाऊंगा.’’ इस से पहले कि वह खुद को रोकता, शब्द उस के मुंह से निकल चुके थे लेकिन प्रीति ने बुरा मानने के बजाय सहज भाव से कहा, ‘‘जरूर, मुझे इंतजार रहेगा उस रोज का.’’

‘‘ठीक है, मिलते हैं फिर,’’ कह कर गौरव ने विदा ली. राघव के घर जाने से पहले गौरव ने कालोनी के 2-3 चक्कर लगाए, वह कुछ सोच रहा था और उसे अपनी सोच सही लग रही थी. अगले सप्ताहांत डा. गौरव ने प्रीति को डिनर पर बुलाया. वह इस शर्त पर आना मान गई कि वह 9 बजे के बाद आएगी. गौरव ने कहा कि वे लोग भी 8 बजे के बाद ही घर पहुंचते हैं. लेकिन साढ़े 8 बजे के करीब एफ-1 में हादसा हो गया. बहुत जोर से कुछ गिरने और कांच टूटने की सी आवाज आई. ठंड के बावजूद कई लोग डिनर के बाद टहलने निकले हुए थे. एफ-1 में रहने वाला डा. राघव तभी आया था और अपनी गाड़ी लौक कर रहा था. उस के हाथ से चाबी छूटतेछूटते बची.

‘‘यह क्या हुआ, चौकीदार?’’ उस ने घबराए स्वर में पूछा.

‘‘जो भी हुआ है फर्स्ट फ्लोर पर ही हुआ है साहब, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सिर पर ही कुछ गिरा है,’’ चौकीदार ने सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘तुम्हारे सिर पर तो डा. राघव का फ्लैट है,’’ किसी ने कहा, ‘‘चल कर देखिए डाक्टर साहब.’’

‘‘आप लोग भी चलिए न,’’ डा. राघव ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘राजू तो घर में होगा साहब.’’

‘‘शायद नहीं, उसे खाना लाने बाजार जाना था,’’ राघव ने सीढि़यां चढ़ते हुए कहा. तभी न जाने कहां से गौरव आ गया, ‘‘क्या हुआ यार, सुना है प्रीति चावला वाला अदृश्य मानुष अपने घर में घुस आया है.’’

राघव ने डरतेडरते  ताला खोला, कमरे में अंधेरा था, ‘‘चौकीदार, टौर्च मिलेगी?’’ ‘‘डर मत यार, मैं अंदर जा कर लाइट जलाता हूं,’’ गौरव ने आगे बढ़ कर लाइट जलाई. उस के पीछे और सब भी कमरे में आ गए. कमरे में ज्यादा सामान नहीं था. डाइनिंगटेबल के पास रखा साइडबोर्ड जमीन पर औंधा पड़ा था और उस में रखे चीनी व कांच के समान के टुकड़े दूरदूर तक फर्श पर बिखरे हुए थे. ‘‘इतना भारी साइडबोर्ड अपने से तो गिर नहीं सकता. जरूर कोई इस से अंधेरे में टकराया है, कमरों में देखो, जरूर कोई छिपा हुआ होगा.’’

‘‘कमरे तो सब बाहर से बंद हैं मित्तल साहब, परदों के पीछे या किचन में होगा,’’ राघव ने कहा.

‘‘वह भाग चुका है राघव, बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है. उस से कूद कर भाग गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘लेकिन कूदता हुआ नजर तो आता, बहुत लोग टहल रहे हैं कंपाउंड में.’’

‘‘मेन रोड पर, यहां हैज के पीछे अंधेरे में कौन आता है या इधर देखता भी है,’’ गौरव बोला.

‘‘लेकिन गौरव, सुबह मैं सब के बाद गया था. और मैं ने जाने से पहले बालकनी का दरवाजा भी बंद किया था,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैं थोड़ी देर पहले आया था राघव, कुछ क्रिस्टल ग्लास टम्बलर ले कर. उन्हें राजू से धुलवा कर साइडबोर्ड में सजाने और राजू को बाजार भेजने के बाद मैं बालकनी में आ कर खड़ा हो गया था. फिर कपड़े बदलने जाने की जल्दी में मैं बगैर बालकनी बंद किए मेनगेट बंद कर के अपने घर जा रहा था कि आधे रास्ते में ही शोर सुन कर वापस आ गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘आप के पास भी यहां की चाबी है?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘आटोमैटिक लौक को बंद करने के लिए चाबी की जरूरत नहीं होती…’’ इस से पहले कि गौरव अपनी बात पूरी कर पाता, घबराई और उस से भी ज्यादा हड़बड़ाई सी प्रीति आ गई.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘जो सुना वह देख भी लीजिए,’’ गौरव ने हंसते हुए फर्श पर बिखरे कांच की ओर इशारा किया.

‘‘ओह नो, मेरे यहां तो खैर कुछ नुकसान नहीं हुआ था लेकिन…’’

‘‘इस में से कुछ तो बहुत महंगा और बिलकुल नया सामान था जो गौरव ने आज ही खरीदा था और कुछ देर पहले शोकेस में सजाया था,’’ राघव ने प्रीति की बात काटी. ‘‘क्या बात है डा. गौरव, नई क्रौकरी की खरीदारी, बाहर से खाना मंगवाना कोई खास दावतवावत है?’’ एक प्रश्न उछला.

‘‘इन फालतू सवालों के बजाय हम मुद्दे की यानी चोरी की बात क्यों नहीं करते मित्तल साहब?’’ किसी ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘उस की बात क्या करेंगे?’’ गौरव ने कंधे उचकाए, ‘‘बालकनी का दरवाजा खुला छोड़ कर जाने की लापरवाही मैं मान ही रहा हूं, चौकीदार ने मेनगेट तभी बंद करवा दिया था, अब चोर कहां भाग कर गया, यह तो सोसायटी के कर्ताधर्ता ही सोचेंगे. हमें तो यह सोचना है कि रात के खाने का क्या करें, किचन में जाने का रास्ता तो कांच से अटा पड़ा है.’’ ‘‘फिक्र मत कर यार, राजू कुछ खाना बना गया है और कुछ ले कर आता ही होगा. आ कर टूटा हुआ कांच हटा देगा,’’ राघव ने कहा फिर सब की ओर देख कर बोला, ‘‘माफ करिएगा, आप को बैठने को नहीं कह सकते क्योंकि इतनी कुरसियां ही नहीं हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम चलते हैं,’’ कह कर सब चलने लगे और उन के साथ ही प्रीति भी, गौरव उसे रोकने के बजाय उस के साथ ही चल दिया.

‘‘आप कहां चल दिए डा. गौरव, बगैर खाना खाए?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘घर कपड़े बदलने, मैं अस्पताल के कपड़ों में खाना नहीं खाता.’’

‘‘खाना खाने का मूड रहा है अब?’’ प्रीति ने धीरे से पूछा.

‘‘एक डाक्टर होने के नाते मूड के लिए न तो खुद खाना छोड़ता हूं और न किसी को छोड़ने देता हूं,’’ गौरव मुसकराया, ‘‘आप भी चेंज कर लीजिए, फिर वापस आते हैं एफ-1 में.’’

दहशत- भाग 1: क्या सामने आया चोरी का सच

जनवरी की सर्द रात के सन्नाटे को ‘बचाओबचाओ’ की चीखों ने और भी भयावह बना दिया था. लिहाफकंबल की गरमाहट छोड़ कर ठंडी हवा के थपेड़ों की परवा किए बगैर लोग खिड़कियां खोल कर पूछ रहे थे, ‘चौकीदार, क्या हुआ? यह चीख किस की थी?’ अभिजात्य वर्ग की ‘स्वप्न कुंज’ कालोनी में 5 मंजिला, 10 इमारतें बनी थीं, उन की वास्तुशिल्प कुछ ऐसी थी कि हरेक बिल्ंिडग में जरा सी जोर की आवाज होने से पूरी कालोनी गूंज जाती थी. हरेक बिल्ंिडग में 20 फ्लैट थे. प्रत्येक बिल्ंिडग में 24 घंटे शिफ्ट में एक चौकीदार रहता था और रात को पूरी कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार अलग से थे. रात को मेनगेट भी बंद कर दिया जाता था. इतनी सुरक्षा के बावजूद एक औरत की चीख ने लोगों को दहला दिया था.

‘‘चीख की आवाज सी-6 से आई थी साहब,’’ एक चौकीदार ने कहा, ‘‘तब मैं सी बिल्ंिडग के नीचे से गुजर रहा था.’’

‘‘वह तीसरे माले पर रहने वाली प्रीति मैडम की आवाज थी साहब, मैं उन की आवाज पहचानता हूं,’’ दूसरे चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन सी-6 में तो अंधेरा है,’’ एक खिड़की से आवाज आई.

‘‘ओय ढक्कन, वह बत्ती जला कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाएगी,’’ किसी की फब्ती पर सब ठहाके लगाने लगे.

‘‘सब यहीं चोंचें लड़ाते रहेंगे या कोई प्रीति की खोजखबर भी लेगा?’’ एक महिला ने कड़े स्वर में कहा.

‘‘प्रीति मैडम अकेली रहती हैं, आप साथ चलें तो ठीक रहेगा मैडम,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘सी-5 की नेहा वर्मा को ले जाओ.’’

‘‘अपने ‘स्वप्न कुंज’ में रहने वाले सभी अपने से हैं, सो सब लोग तुरंत सपत्नीक सी-6 में पहुंचिए,’’ सोसायटी के प्रैसिडैंट भूषणजी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सभी तो नहीं, लेकिन बहुत से दंपती पहुंच गए. शायद इसलिए कि प्रीति को ले कर सभी के दिल में जिज्ञासा थी. किसी फैशन पत्रिका के पन्नों से निकली मौडल सी दिखने वाली प्रीति 25-30 वर्ष की आयु में ही किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थी. कंपनी से गाड़ी और 3 बैडरूम का फ्लैट मिला हुआ था. पहले तो हर सप्ताहांत उस के फ्लैट पर पार्टी हुआ करती थी मगर इस वर्ष तो नववर्ष के आसपास भी कोई दावत नहीं हुई थी. कालोनी में चंद लोगों से ही उस की दुआसलाम थी. सी-6 के पास पहुंच कर सभी स्तब्ध रह गए, फ्लैट के दरवाजे में से पतली सी खून की धार बह रही थी. लगातार घंटी बजाने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था.

‘‘साथ में दरवाजा भी खटखटाओ,’’ सुनते ही चौकीदार और एकदो और लोगों ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया लेकिन दरवाजा अंदर से बंद नहीं था इसलिए आसानी से खुल गया. अंदर अंधेरा और सन्नाटा था.

‘‘अंदर जाने से पहले फोन की घंटी बजाओ.’’

‘‘नंबर है किसी के पास?’’

‘‘सोसायटी के औफिस में होगा, पुलिस को बुलाने से पहले…’’ तभी अंदर से अलसाए स्वर में आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘चौकीदार चुन्नीलाल. बाहर आइए मैडम.’’ लाइट जलते ही फिर चीख की आवाज आई, ‘‘ओह नो.’’ नाइट गाउन पहने बौखलाई सी प्रीति खड़ी थी. बगैर मेकअप और अस्तव्यस्त बालों के बावजूद वह आकर्षक लग रही थी.

‘‘आप सब यहां?’’  प्रीति ने उनींदे स्वर में पूछा, ‘‘और इस कमरे का सामान किस ने उलटापलटा है?’’

‘‘यह खून किस का है, तुम ठीक तो हो न प्रीति?’’ नेहा वर्मा ने पूछा. खून देख कर प्रीति फिर चीख उठी, ‘‘ओह नो. यह कहां से आया?’’

‘‘लेकिन इस से पहले आप क्यों चीखी थीं मैडम?’’ चुन्नीलाल ने अधीरता से पूछा.

‘‘घंटी और बोलने की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में आ कर बत्ती जलाई तो यह गड़बड़ देख कर…’’

‘‘उस से पहले मैडम, आप की ‘बचाओबचाओ’ की आवाज पर तो हम यहां आए हैं,’’ चुन्नीलाल ने बात काटी.

‘‘मैं ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाई थी?’’ प्रीति चौंक पड़ी, ‘‘आप बाहर क्यों खड़े हैं, अंदर आइए और बताइए कि बात क्या है?’’ सब अंदर आ गए और भूषणजी से सब सुन कर प्रीति बुरी तरह डर गई. ‘‘आज मैं बहुत देर से आई थी और इतना थक गई थी कि सीधे बैडरूम में जा कर सो गई और अब घंटी की आवाज पर उठी हूं.’’

‘‘फिर यहां यह ताजा खून कहां से आया और सोफे वगैरा किस ने उलटे?’’ चौकीदार चुन्नीलाल ने कहा, ‘‘लगता है चोर अभी भी कहीं दुबका हुआ है, चलिए, तलाश करते हैं.’’ सभी लोग तत्परता से परदों के पीछे और कमरों में ढूंढ़ने लगे. महिलाएं सुरुचिपूर्ण सजे घर को निहार रही थीं. प्रीति संयत होने की कोशिश करते हुए भी उत्तेजित और डरी हुई लग रही थी. कहीं कोई नहीं मिला. एक बैडरूम बाहर से बंद था. ‘‘हो सकता है जब हम लोग अंदर आए तो परदे के पीछे छिपा चोर भी भीड़ में शामिल हो कर बाहर भाग गया हो क्योंकि सभी अंदर आ गए थे. दरवाजे के बाहर और नीचे गेट पर तो कोई था ही नहीं,’’ एक चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन भाग कर कहां जाएगा, मेनगेट तो बंद होगा न,’’ प्रीति बोली, ‘‘लेकिन अंदर कैसे आया? क्योंकि मेरा डिनर बाहर था सो नौकरानी को शाम को खाना बनाने आना नहीं था इसलिए वह चाबी ले कर नहीं गई. चाबी सामने दीवार पर टंगी है और मैं नौकरानी के जाने के बाद औफिस गई थी, इसलिए ताला मैं ने स्वयं लगाया था.’’ ‘‘तो फिर यह उलटपलट और खून? इस का क्या राज है?’’ प्रीति के फ्लैट के ऊपर रहने वाले डा. गौरव ने गहरी नजरों से प्रीति को देखा. प्रीति उन नजरों की ताब न सह सकी. उस ने असहाय भाव से सब की ओर देखा. सभी असमंजस की स्थिति में खड़े थे.

‘‘सोफे और कुरसीमेजों को क्यों उलटा?’’ एक युवती ने कहा, ‘‘प्रीतिजी इन के नीचे तो कीमती सामान या दस्तावेज रखने से रहीं.’’

‘‘एक बैडरूम पर ताला है न, और अकसर लोग चाबी आजूबाजू में छिपा देते हैं, सो चाबी की तलाश में यह सब गिराया है और खून तो लगता है जैसे किसी को गुमराह करने के लिए ड्रौपर से डाला गया है…’’

‘‘तुम तो एकदम जासूस की तरह बोल रहे हो चुन्नीलाल,’’ किसी ने बात काटी.

‘‘पुलिस का सेवानिवृत्त सिपाही हूं, साहब लोगों के साथ अकसर तहकीकात पर जाता था.’’

‘‘तभी जो कह रहा है, सही है,’’ प्रीति के फ्लैट के नीचे रहने वाली नेहा वर्मा बोलीं, ‘‘अपने यहां की छतें इतनी पतली हैं कि कोई तेज कदमों से भी चले तो पता चल जाता है. फिर इतने भारी सामान के उलटनेपलटने का पता हमें कैसे नहीं चला?’’

‘‘आप सारा दिन घर में ही थीं क्या?’’ डा. गौरव ने पूछा.

‘‘सुबह कुछ घंटे पढ़ाने गई थी, 2 बजे के बाद से तो घर में ही थी.’’ ‘‘और यह उलटपलट तो प्रीतिजी के घर लौटने के बाद ही हुई है. अगर पहले हुई होती तो क्या लौटने पर उन्हें नजर नहीं आती?’’ वर्माजी ने जोड़ा, ‘‘मैं ड्राइंगरूम में बैठ कर औफिस का काम कर रहा था. मैं ने प्रीतिजी के घर में आने की आवाज सुनी थी. उस के बाद जब तक मैं काम करता रहा तब तक तो ऊपर से कोई आवाज नहीं आई.’’

‘‘आप ने कब तक काम किया?’’

‘‘यही कोई 11 बजे तक. उस के बाद मैं सो गया और फिर ‘बचाओबचाओ’ की आवाज से ही आंख खुली.’’ ‘‘उलटपलट तो मेरे आने से पहले भी हो सकती है,’’ प्रीति कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘क्योंकि देर से आने पर यानी जब किचन से कुछ लेना न हो तो मैं बगैर ड्राइंगरूम की लाइट जलाए सीधे बैडरूम में चली जाती हूं. यहां कुछ न मिलने पर शायद इस इंतजार में रुका होगा कि मेरे आने के बाद स्टील कबर्ड खुलेगा तब कुछ हाथ लग जाए.’’ ‘‘खून का राज तो खुल गया मैडम,’’ चुन्नीलाल ने ड्राइंगरूम के दरवाजे के पीछे झांकते हुए कहा, ‘‘यह देखिए, यह चटनी की शीशी टेबल से गिर कर लुढ़कती हुई दरवाजे से टकरा कर टूटी है…’’

शादी-भाग 3: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.

मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’

‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.

सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’

‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.

‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’

मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.

नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’

सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’

खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’

‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’

‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’

पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’

सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’

‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.

चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.

‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.

‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’

‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’

तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’

सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’

‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’

तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’

यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’

‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’

‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’

‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.

काला अतीत- भाग 3: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

इधर मेरे घर न पहुंचने पर मांपापादादी परेशान हो उठे. पापा को इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं मेरे साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ या मुझे कुछ हो तो नहीं गया. मोहन से पूछने पर उस ने कहा कि उसे नहीं पता सुमन कहां है और वह तो सुमन से कई दिनों से मिला भी नहीं है. मेरी सारी सहेलियों से भी पूछा जा कर, लेकिन सब का यही कहना था कि सुमन यहां नहीं आई है. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि दोपहर की निकली रात के 10 बजे तक मैं कहां रह गई.

थकहार कर पापा पुलिस के पास जा ही रहे थे कि दरवाजे पर फटेहाल में मुझे देख सब की चीख निकल पड़ी. कुछ पूछते उस से पहले ही मैं बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ी. सब समझ चुके थे कि उन की बेटी के साथ कुछ गलत हुआ है, पर किस ने किया नहीं पता. होश आने पर जब मैं ने बताया कि मोहन ने मेरा बलात्कार किया तो सब सकते में आ गए क्योंकि वे सब मोहन को मेरा रक्षक समझते थे जो भक्षक निकला.

गुस्से के मारे पापा की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

मां की आंखों से तो आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. दादी भी माथा पीटते हुए बस रोए जा रही थीं. पापा पुलिस में मोहन के खिलाफ केस करने जा ही रहे थे कि दादी ने उन का हाथ पकड़ लिया और बोलीं कि इस से उन की बेटी की भी बदनामी होगी. फिर कौन करेगा सुमन से शादी? क्या उम्र भर बेटी को बैठा कर रख पाएंगे वे?

दादी के कहने पर पापा के कदम भले ही रुक गए पर उन का गुस्सा शांत नहीं हुआ. दुनिया का कोई भी बाप अपनी बेटी को दर्द से कराहते नहीं देख सकता और फिर पापा की तो मुझ में जान बसती थी. मुझे चोट लग जाती कभी तो पापा के मुंह से आह निकल पड़ती थी. पापा का तो मन कर रहा था गुंडे हायर कर उस मोहन की 1-1 हड्डी तुड़वा दें, जीवनभर के लिए उसे लंगड़ा बन दें.

इस हादसे ने मुझे डिप्रैशन में ला दिया. मेरा पढ़ाईलिखाई से मन हट गया. मेरा जो सपना था आईएएस बनने का वह भी कहीं खो गया.

मेरे साथसाथ घर के बाकी लोग भी तनाव के सैलाब में डूबने लगे. मेरी हालत देख पापा मुझे समझाने की कोशिश करते कि सबकुछ भूल कर मैं अपने सपने के बारे में सोचूं. लेकिन अब मेरा कोई सपना नहीं था. यहां तक कि किताबों से भी मुझे चिड़ होने लगी थी. इसी बीच दादी भी गुजर गईं तो मैं और टूट गई. मैं दादी के बहुत करीब थी. उन का जाना मेरे लिए दूसरा सदमा था. जीवन एकदम खालीखाली सा लगने लगा. दुनिया बेरंग लगने लगी मुझे. मन करता मर जाऊं या कहीं भाग जाऊं, इतनी दूर कि कोई मुझे ढूंढ़ न पाए. घर में हरदम चहकते रहने वाली मैं मुरझा सी गई थी. वही दृश्य मेरी आंखों के सामने नाचने लगता और मैं बिलख कर रो पड़ती. मुझे तो अपने शरीर से भी नफरत होने लगी थी. लगता कि अपने शरीर को ही नोच डालूं या तेल छिड़क कर इस में आग लगा दूं.

मेरी हालत देख पापा मुझे उस माहौल से दूर ले आए. उन्होंने अपना तबादला दिल्ली करवा लिया और एक कालेज में मेरा एडमिशन करवा दिया ताकि पढ़नेलिखने में मेरा मन लगा रहे. लेकिन मुझ से ठीक से पढ़ाईलिखाई नहीं हो पा रही थी.

वही बातें, वही दृश्य मेरी आंखों के सामने नाचने लगता और मैं फूटफूट कर रोने लगती. मेरी हालत देख कर पापा मुझे साइकेट्रिस्ट के पास ले गए. इलाज से फर्क पड़ा भी, लेकिन अब मैं आईएएस नहीं बनना चाहती थी, कुछ भी नहीं बनना चाहती थी. लेकिन क्या करना चाहती थी यह भी पता नहीं था. ग्रैजुएशन के बाद पापा के जोर देने पर एमबीए में एडमिशन ले लिया क्योंकि अगर मैं बिजी न रहती तो शायद खुद को खत्म कर लेती और मेरे बाद मेरे मांपापा का क्या होगा, यह सोच कर मैं खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करती. एमबीए के बाद दिल्ली की ही एक कंपनी में मेरी जौब लग गई. वहीं मेरी मुलाकात देवेन से हुई थी.

देवेन फ्लूट बहुत बढि़या बजाते थे. जब भी वह फ्लूट बजाते मैं उन की ओर खिंची चली आती थी. वे बातें भी बहुत बढि़या करते थे. उन का सौम्य, मितभाषी स्वभाव मेरे लिए रामबाण का काम करने लगा. उन के साथ रहते मैं नैगेटिव से पौजिटिव की ओर जाने लगी. मुझे अब दुनिया की हर चीज अच्छी लगने लगी. हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो चुकी थी कि हम साथ औफिस जानेआने लगे थे. हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई हमें पता ही नहीं चला.

एक रोज भी एकदूसरे को न देखना हमें बेचैन कर जाता था. फिर भी हम एकदूसरे से अपने मन की बात कहने से झिझक रहे थे.

याद है मुझे. वह 14 फरवरी का दिन था. देवेन ने मुझे कौफीहाउस में मिलने बुलाया था. लेकिन नहीं पता था कि उस ने मेरे लिए सरप्राइज पार्टी रखी है. सब के सामने घुटने के बल बैठ कर गुलाब दे कर उस ने मुझे प्रपोज करते हुए कहा था, ‘विल यू मैरी मी?’ और मैं ने हंसते हुए ‘हां’ बोल कर वह गुलाब स्वीकार कर लिया था. वहां बैठे सारे लोग तालियां बजाने लगे तो मैं शर्म के मारे लाल हो गई.

मेरी तरह देवेन भी अपने मांपापा के एकलौती संतान थे और उन के लिए भी अपने बेटे की खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं था. लेकिन मैं ने सोच लिया था कि मैं देवेन को किसी अंधेरे में नहीं रखूंगी. उसे अपने काले अतीत के बारे में सबकुछ सचसच बता दूंगी. लेकिन मां ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया. मैं ने कहा भी कि देवेन वैसे बिलकुल नहीं हैं. बहुत ही खुले विचारों वाले इंसान हैं. वे तो खुद बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के पक्षधर हैं.

उस पर मां बोली थीं कि हां, वे मानती हैं कि देवेन में एक अच्छे पति बनने के सारे गुण हैं और वे इंसान भी सुलझे हुए हैं, लेकिन एक पति चाहे कितना भी अच्छा और सुलझा हुआ इंसान क्यों न हो, पर वह यह बात कतई बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की पत्नी का बलात्कार हो चुका है. किसी और ने उस के शरीर को छुआ है.

अगर मुझे देवेन के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजारनी है तो मुझे अपने काले अतीत को हमेशा के लिए दफन करना ही होगा. मुझे अपनी दोस्त रचना की याद आ गई और लगा शायद, मां सही कह रही हैं.

देवेन के फ्लूट की आवाज ने मेरा ध्यान भंग किया तो मैं अपने अतीत से बाहर निकल आई. देवेन ने इशारों से कहा कि मैं भी उन के साथ आ कर खेलूं. न चाहते हुए भी मैं उन के खेल में शामिल हो गई. बच्चे काफी थक चुके थे. आते ही सो गए. मैं देवेन के सीने पर सिर रख यहांवहां की बातें करने लगी और वे उसी तरह मेरे बालों को सहलाते रहे. फिर पता नहीं कब मेरी आंखें लग गईं. सुबह जब देवेन ने बैड टी ले कर मुझे जगाया, तो मेरी नींद खुली. सुबह की चाय देवेन ही बनाते हैं. बच्चों को स्कूल भेज कर हम भी अपनेअपने औफिस के लिए निकल गए. इसी तरह हसतेमुसकराते हमारे जीवन के और कई साल निकल गए. अब तो बच्चे भी बड़े हो चुके थे. अतुल्य इस बार बोर्ड परीक्षा में बैठने वाला था और मिक्की 9वीं कक्षा पास कर 10वीं कक्षा में जाने वाली थी.

बच्चों के एग्जाम के बाद हमने दार्जिलिंग घूमने का प्रोग्राम बनाया और सोचा उधर से आते समय मांपापा से भी मिल लूंगी. पहले वे खुद हम से मिलने आ जाते थे या हम ही उन से मिल आते थे, मगर बच्चों की पढ़ाई, छुट्टी की कमी के कारण जल्दीजल्दी जाना नहीं हो पाता है अब. फोन पर ही बातें हो पाती हैं हमारी. मांपापा दोनों बीपी शुगर के पेशैंट हैं तो ज्यादा ट्रेवलिंग नहीं हो पाती उन से.

मुझे तो छुट्टी की कोई समस्या नहीं है, मगर देवेन की छुट्टी पास होगी या नहीं, इस बात की शंका थी. बच्चे कितने खुश हैं दार्जिलिंग घूमने को ले कर. लेकिन कहीं छुट्टी न मिलने से मजा किरकिरा न हो जाए. बच्चों का तो मूड ही औफ हो जाएगा.

मैं अपनी ही सोच में डूबी थी कि देवेन ने हिलाते हुए कहा, ‘‘छुट्टी सैंक्शन हो गई, चलने की तैयारी कर लो अब.’’

सुन कर मैं खुशी से झूम उठी कि मांपापा से कितने दिनों बाद मिलना होगा. रिटायरमैंट के बाद मांपापा फिर से गोरखपुर शिफ्ट हो गए थे क्योंकि वहां भी घर जगह-जमीन है.

REVIEW: निराश करती Aamir Khan की फिल्म Lal Singh Chaddha

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः आमिर खान प्रोडक्शंस और वायकाम 18

निर्देशकः अद्वैत चंदन

लेखकः अतुल कुलकर्णी

कलाकारः आमिर खान, करीना कपूर खान, नागा चैतन्य,  मोना,  मानव विज,  आर्या शर्मा, मेहमान कलाकार शाहरुख खान व अन्य.

अवधिः दो घंटे 45 मिनट

बौलीवुड के फिल्मकारों के पास मौलिक कहानियां व मौलिक कहानी लेखकों का घोर अभाव है. इसी के चलते अब हर कोई विदेशी या दक्षिण की फिल्मों को ही हिंदी में बनाने पर उतारू हैं. पर यह सभी नकल भी ठीक से नही कर पा रहे हैं. इसमंे आमिर खान भी पीछे नहीं है. आमिर खान की ग्यारह अगस्त को सिनेमाघरों में पहुंची फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ मौलिक फिल्म नही है,  बल्कि 1994 में प्रदर्शित अमरीकन  फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’’ का भारतीय करण है, जो कि मंदबुद्धि फारेस्ट नामक एक इंसान की बचपन से पिता बनने तक की एंडवेंचरस कहानी है. इसका भारतीय करण करते समय भारतीय संदर्भ जोड़ने के अलावा लाल सिंह को दयालु दिखाने के चक्कर में काफी गड़बड़ा गयी है. मूल फिल्म से लाल सिंह चड्ढा की कहानी काफी विपरीत है. मूल फिल्म के अनुसार लाल सिंह की मां अपने बेटे के लिए कोई सौदा नही करती. बल्कि भारतीय संवेदनाओ के अनुसार कहानी आगे बढ़ती है. मगर मूल कहानी के विपरीत लाल सिंह चड्ढा युद्ध के मैदान से पाकिस्तानी आतंकवादी को बचाकर भारतीय सेना के ही अस्पताल मे इलाज करवाने के बाद उसे अपना बिजनेस पार्टनर भी बनाता है? कुछ समय बाद उसे पाकिस्तान जाने की इजाजत दे देता है.  इसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है? तो क्या आमिर खान का मानना है कि मुंबई पर आतंकवादी हमला करने वाले कसाब को भी फांसी देने की बजाय उसे भी सुधारने का अवसर देना चाहिए था?

कहानीः

यह कहानी पठानकोट से ट्रेन में बैठे लाल सिंह चड्ढा (आमिर खान)  से शुरू होती है, जो कि अपने बचपन से कहानी सुनाना शुरू करती है. लाल सिंह के बचपन की कहानी के साथ ही देश में घट रही घटनाएं भी सामने आती रहती हैं. यह कहानी पठानकोट के गांव में जन्में लालसिंह चड्ढा की है. जिसके परनाना के पिता, परनाना और नाना सेना में थे और यह तीनों युद्ध के मैदान से कभी जीवित नहीं लौटे. वह अपने नाना के ही घर में अपनी मां (मोना सिंह) के साथ रह रहे हैं. लाल सिंह ठीक से चल नही पाते हैं. डाक्टरों ने उनके पैर में लोहे की राड बांधकर सहारा दे रखा है. लाल सिंह का आई क्यू लेवल काफी कम है, इसलिए उसे काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. स्कूल का पादरी प्रिंसिपल मंदबुद्धि होने के चलते लाल सिंह को मंद बुद्धि स्कूल में पढ़ाने की बात उसकी मां से कहते हैं. पर लाल सिंह की मां के जिद के आगे वह झुक जाता है. स्कूल में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. सभी उसे बेवकूफ समझते हैं. स्कूल में लाल सिंह को रूपा डिसूजा नामक दोस्त मिलती है. बचपन में ही लाल सिंह अपनी मां के साथ दिल्ली जाते हैं और जब वह प्रधानमंत्री आवास के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिचवा रहे होते हैं, तभी पीछे से गोलियों की आवाज आती है और पता चलता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी है. सिख विरोधी दंगे शुरू हो जाते हैं. बेटे को दंगाइयों से बचाने के लिए लाल सिंह की मां उसके बाल काट देती है, जिससे वह सरदार नजर न आए.

स्कूल दिनों में ही एक मौका ऐसा आता है, जब कुछ लड़कों से बचने के लिए भागते भागते लाल सिंह के पैर को जकड़कर रखने वाली लोहे की राड टूट जाती हैं और लाल सिंह अपने पैरों पर दौड़ने लगते हैं.

लाल सिंह चड्ढा और रूपा डिसूजा की जिंदगी तब बदलने लगती है, जब दोनों कालेज पहुंचते हैं. तेज दौड़ने के चलते लाल सिंह को कालेज की दौड़ टीम का हिस्सा बना लिया जाता है. उधर अति महत्वाकांक्षी और अमीर बनने का ख्वाब देखने वाली रूपा (करीना कूपर खान) एक अमीर लड़के हरी के साथ रोमांस करना शुरू करती है. जबकि लाल सिंह भी रूपा से प्यार करता है. वह अपने नाना या परनाना की तरह सेना में नहीं जाना चाहता. लाल सिंह कहता है कि मैं किसी को मारना नहीं चाहता. पर एक दिन वह हरी को थप्पड़ मार देता है, जिससे नाराज होकर हरी, रूपा से संबंध खत्म कर देता है.

अपने भविष्य को लेकर द्विविधा से ग्र्रस्त लाल सिंह सेना में भर्ती हो जाता है. सेना में सह सैनिक बाला (नागा चैतन्य ) से उसकी दोस्ती होती है. बाला उसके साथ सेना से रिटायरमेंट के भागीदारी में व्यापार शुरू करने की योजना बनाता है. कारगिल में छह आतंकवादियों के छिपे होने की खबर मिलने पर सेना की एक टुकड़ी को भेजा जाता है, जिसमें लाल सिंह और बाला भी है. पर वहां मामला उलटा पड़ जाता है. क्योंकि वहां छह से कई गुना ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक आतंकवादी भारी गोला बारूद के साथ मौजूद होते हैं. भारतीय सेना की टुकड़ी उनके हमलों से घबराकर पीछे लौटने लगती है. पीछे लौटते हुए लाल सिंह बसे तेज दौड़कर नीचे उतरता है. अचानक उसे बाला की याद आती है. वह बाला को लेने फिर से वापस पहाड़ी की तरफ भागता है. बीच में उसे एक घायल सैनिक मिलता है. उसे वह उठाकर नीचे सुरक्षित पहुंचाकर फिर बाला के लिए जाता है. ऐसा करते करते वह पाकिस्तानी सैनिक आतंकवादी के मुखिया मोहम्मद (मालव विज ), जो बुरी तरह से घायल है और बाला को भी वापस लेकर आता है. बाला की मौत हो जाती है. पर मोहम्मद का भारतीय सेना के अस्पताल में इलाज होता है. जिसे बाद में लाल सिह अपना बिजनेस मार्टनर बना लेता है. उधर वह रूपा को भूला नही है. मगर रूपा गलत राह पर चल पड़ी है. एक दिन मोहम्मद वापस पाकिस्तान लौट जाता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंत में मालूम चलता है कि लाल सिंह चड्ढा,  असल में सिर्फ और सिर्फ भाग सकता था.  जब वो भाग रहा था,  उस बीच उसने अपना जीवन जिया.  न केवल अपना जीवन जिया, बल्कि और न जाने कितनों को जीना सिखाया.  और वो,  ये सब कुछ,  बेहद निर्मोही ढंग से कर रहा था.

लेखन व निर्देशनः

पौने तीन घंटे लंबी अवधि की फिल्म अति धीमी चाल से लाल सिंह चड्ढा की भटकती हुई कहानी है. दर्शक जिस तरह से मूल फिल्म ‘‘फौरेस्ट गंप’’ के साथ जुड़ता है, उस तरह ‘लाल सिंह चड्ढा’ के संग नही जुड़ पाता. आगे बढ़ती रहती है. यह फीचर फिल्म कम डाक्यूमेंट्री वाली फिल्म है. लाल सिंह चड्ढा के जीवन व रूपा के साथ उनकी प्रेम कहानी के साथ बीच बीच में आपातकाल हटाने,  सिख विरोधी दंगों, भारत को विश्व कप क्रिकेट में मिली पहली जीत, औपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, उनके अंतिम संस्कार में सुबकते राजीव गांधी, सिख विरोधी दंगे, मंडल कमंडल,  आडवाणी की रथ यात्रा, बाबरी विध्वंस, मुंबई बम धमाके, अबू सलेम और मोनिका बेदी की कथित प्रेम कहानी से लेकर वाराणसी के घाटों पर लिखा नारा-‘अबकी बार मोदी सरकार’ सहित देश में पिछले पचास वर्षों के दौरान घटित सभी ऐतिहासिक घटनाक्रम भी आते रहते हैं. मगर 2002 के गुजरात दंगों का कहीं कोई जिक्र नही आता? क्या यह इतिहास के साथ छेड़छाड़ नही है? इस हिसाब से यह फिल्म कुछ घटनाक्रमों का ऐतिहासिक दस्तावेज जरुर है.

मगर कहानी व पटकथा के स्तर पर अतुल कुलकर्णी ने एक अजेंडे के तहत ही पूरी फिल्म लिखी है. लेखक व निर्देशक ने फिल्म में सिख दंगों का चित्रण किया है, जिसमें आठ नौ वर्ष का बालक अपनी मां के साथ फंस गया है. हालात ऐसे हैं कि लाल सिंह को बचाने के लिए उसकी मां पास में पड़े कांच के टुकड़े से उसके बाल काट देती है, जिससे वह सरदार न लगे. मगर लेखक व निर्देशक यह नही दिखा पाए कि इस घटनाक्रम का अबोध बालक लाल सिंह के मनमस्तिष्क पर किस तरह का मनोवैज्ञानिक असर पड़ा?लाल सिंह की संगत और लाल सिंह के घर में रहते हुए लाल सिंह के साथ सोेने के बावजूद रूपा क्यों गलत राह पकड़ती है, इसे स्पष्ट नहीं किया गया. पूरी फिल्म में जब भी दंगे होते हैं, तो इस सच को स्वीकार करने की बनिस्बत ‘मलेरिया’ नाम दिया गया है. इतिहास के सच को दिखाते हुए इस तरह का डर क्यों? यदि डर है तो फिल्म न बनाएं. करीना के किरदार यानी कि रूपा के किरदार को मोनिका बेदी के रूप में चित्रित करना क्यो जरुरी समझा गया. अबू सलेम फिल्म नही बनाता था. एक सैनिक अपनी दयालुता वश किसी दुश्मन देश के सैनिक या आतंकवादी को उठा लाए, तो करूा भारतीय सेना  उस सैनिक का इतिहास भूगोल आदि की बिना जांच किए सैनिक अस्पताल में उसका इलाज करने के साथ ही उसे टेलीफोन बूथ चलाने की इजाजत देगा? उसके बाद वह वापस पाकिस्तान किस पासपोर्ट पर गया? इस पर भारतीय फिल्म सेंसर की अनदेखी समझ से परे है?क्योंकि यह दृश्य तो भारतीय सेना और पासपोर्ट जारी करने वाले विदेश मंत्रालय पर भी सवाल उठाता है?क्या इसे सिनेमाई स्वतंत्रता मानकर नजरंदाज किया जाना चाहिए? लेखक व निर्देशक ने ऐसा क्यों किया,  इसके पीछे उनकी क्या सोच रही है? यह तो वह जाने. पर मूल फिल्म ‘फौरेस्ट गम’ में अमरीकी सैनिक,  वियतनाम युद्ध में वियतनामी नही अमरीकी सैनिक को ही उठाकर लाता है और उसी के साथ भागीदारी में व्यापार भी करता है. इतना ही नही पठानकोट, पंजाब के गांव के बालक को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन स्कूल व पादरी दिखाकर धर्म को बेचने की जरुरत क्यों पड़ी?

निर्देशक के तौर पर फिल्म में अद्वैत चंदन का नाम जरुर हे, मगर फिल्मू के अपरोक्ष रूप से निर्देशक आमिर खान ही हैं. फिल्म के निर्माता भी वह स्वयं हैं.

फिल्म का गीत संगीत भी आकर्षित नहीं करता.

अभिनयः

आमिर खान को परफैक्शनिट कलाकार माना जाता है. वह बेहतरीन कलाकार हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है. मगर लाल सिंह चड्ढा के किरदार को निभाते हुए आमिर खान ने वही सब किया है, जो वह इससे पहले ‘थ्री इडिएट’ या ‘पीके’ में कर चुके हैं. वही आंखों को चैड़ा करना,  गर्दन को टेढ़ा करना,  गला साफ करना,  पैंट को ऊंचा उठाना आदि. . बल्कि कई दृश्यों में तो ‘ओवर एक्टिंग’ करते नजर आते हैं. काली निराशा से आशावाद की ओर बढ़ने वाले दुश्मन देश के सैनिक मोहम्मद के किरदार में मानव विज अपनी छाप छोड़ जाते हैं. बाला के किरदार में नागा चैतन्य का किरदार छोटा है, मगर मनोरंजन के क्षण लाते हैं. रूपा के किरदार में करीना कपूर खान भी दर्शकों को आकर्षित करती हैं.

GHKKPM: जेल जाने के बाद पाखी को होगा गलती पर पछतावा, क्या माफ करेगी सई!

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में जल्द ही 8 साल का लीप आने वाला है, जिसके चलते मेकर्स शो के लेटेस्ट ट्रैक को दिलचस्प बनाने में लगे हुए हैं. जहां हाल ही में पाखी के जल जाने से चौह्वाण परिवार परेशान था तो वहीं अब सई के गायब होने की खबर से फैंस परेशान हो गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

विराट हुआ सस्पेंड

अब तक आपने देखा कि हरीश और डीआईजी सर, विराट को बुलाते हैं और सरोगेसी मामले में लापरवाही बरतने और कानून का पालन ना करने पर विराट को सस्पेंड कर देते हैं. वहीं घर जाकर जब विराट चौह्वाण परिवार को सस्पेंड होने की खबर सुनाता है तो भवानी, सई को इन सब का दोषी मानती है और उसे पाखी के खिलाफ केस वापस लेने के लिए कहती है.

पाखी को होगा पछतावा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sairat (@ghum_hai_kisi_k_pyaar_me)

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी जेल में अपने गुनाहों को याद करके पछताएगी और सई से माफी मांगने की सोचेगी. वहीं पाखी की मां वैशाली उससे जेल में मिलने आएगी. हालांकि पाखी अपनी इस हालत के लिए खुद को जिम्मेदार मानेगी. लेकिन उसकी मां भरोसा नहीं करेगी और उससे नाटक बंद करने के लिए कहेगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sairat (@ghum_hai_kisi_k_pyaar_me)

पाखी को जेल से निकालेगी भवानी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ayeshu_4ever (@ayeshu_4ever)

इसके अलावा, भवानी, ओमी को पाखी की बेल कराने के लिए एक वकील करने के लिए कहेगी. हालांकि सई, भवानी के इस फैसले से निराश होगी. इसी के चलते सई, भवानी को धमकी देगी कि अगर कोई इस मामले में पाखी का समर्थन करने की कोशिश करेगी तो वह विनायक के साथ इस घर को छोड़ देगी और कभी वापस नहीं आएगी. भवानी साई की धमकी को गंभीरता से नहीं लेगी और ओमी से कहेगी कि जैसा वह कहती है वैसा करे. भवानी के फैसले से नाराज होने पर मामला इतना बढ़ जाएगा कि सई अचानक घर छोड़कर चली जाएगी. इसी के चलते पता चलेगा कि सई, जिस बस में घर से निकली थी उस बस का एक्सीडेंट हो गया है.

विदाई- भाग 3: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते.

नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते.

‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’

वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता.

एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया.

उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा.

‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’

कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए.

‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं.

आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती.

अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे.

‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही.

‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा.

‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी.

कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’

जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया.

कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी.

विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.

मेरे नाखून जैसे ही बढ़ते हैं वे टूट जाते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मुझे लंबे व खूबसूरत नाखून पसंद है, मगर मेरे नाखून जैसे ही बढ़ते हैं वे टूट जाते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब-

नेल्स को बड़ा करने के लिए खाने में प्रोटीन, बायोटिन की मात्रा बढ़ाएं. अंडा,चिकन, नट्स, डेयरी प्रोडक्ट, हरी सब्जियां, दालें, मशरूम जैसी चीजें अपने खाने में शामिल करें. रोज क्यूटिकल्स को किसी अच्छी क्यूटिकल क्रीम या हलके गरम औलिव औयल से मसाज कर के पुश करें.

इस से नैल्स लंबे भी होंगे और मजबूत भी. उन्हें हमेशा शेप कर के रखें ताकि वे टूटें नहीं. नेलपौलिश लगा कर रखना भी नेल की उम्र को बढ़ाता है. अगर आप को नेलपौलिश लगाना पसंद नहीं है तो पारदर्शी नेलपौलिश लगा सकती हैं.

नेल्स को कभी भी बाइट न करें. जल्दी नेल्स को बढ़ाने और उन्हें मजबूत बनाने के लिए प्रौमिनैंट नेल ऐक्सटैंशन करवा लीजिए. इस से नेल्स लंबे भी लगेंगे और मजबूत भी बनेंगे.

ये भी पढ़ें-

आजकल बड़े और लंबे नाखूनों का चलन है. ये रंग-बिरंगे, अलग-अलग आकार और विभिन्न सलीके से तराशे हुए नाखून, आपकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं. ये आपके हाथों की खूबसूरती बढ़ाने के साथ, आपके व्यक्तित्व में भी एक निखार लेकर आते हैं.

आपकी इस सुंदरता को बरकरार रखने के लिये ये जरूरी है कि आप अपने नाखूनों को अच्छे तरीके से काटें और उन्हें साफ रखें. कुछ युवतियों के नाखून जरुरत से ज्यादा मुलायम हो जाते हैं, इस कारण किसी भी तरह की चोट लग जाने से या जरा साभी मुड़ने पर भी वो टूट सकते हैं.

आज हम आपको कुछ उपायों को बताने जा रहे हैं. इन सारे उपायों को ध्यान में रखकर आप अपने  नाखूनों की सुंदरता को और निखार सकते हैं और ज्यादा आकर्षक बना सकते हैं..

पूरू खबर पढ़ने के लिए- कुछ ऐसे करें नाखूनों की देखभाल

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आईब्रो से चेहरे को दें नया लुक

चेहरे को आकर्षक बनाने में आईब्रोज की मुख्य भूमिका होती है. अगर आईब्रोज की सही तरीके से ग्रूमिंग न हो या उन का शेप सही न हो, तो चेहरे की सुंदरता कम हो जाती है.

वैसे हर इनसान की आईब्रोज आमतौर पर उस के चेहरे की बनावट के अनुसार होती हैं. जैसे किसी की मोटी तो किसी की पतली आईब्रोज की शेप ठीक कराने के लिए अधिकतर महिलाएं पार्लर जाती हैं. पर वहां सही शेप न बनने पर सिर्फ चेहरा ही नहीं चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, इसलिए हमेशा अच्छे ब्यूटीपार्लर में ही जा कर आईब्रोज की ग्रूमिंग करानी चाहिए.

पहले हीरोइनें पतली आईब्रोज रखा करती थीं, इसलिए उस का ट्रैंड चला. अभी बुशी आईब्रोज का फैशन पिछले कुछ सालों से चल रहा है. मेकअप में आईब्रोज का सही आकार आप की उम्र को 5 साल तक कम कर सकता है और आईब्रोज को वैसे तो आर्क शेप में होनी चाहिए पर वह शेप भी हर महिला के चेहरे के अनुसार अलग अलग रखा जाता है.

जैसे अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन का चेहरा बहुत शार्प है, इसलिए उन पर पारंपरिक हाई आईब्रोज वाला आर्क शेप अच्छा लगता है, तो अभिनेत्री काजोल की आईब्रोज जुड़ी हुई हैं पर वे उन की आंखों की खूबसूरती बढ़ाती हैं.

कुल मिला कर बात यही है कि चेहरे के अनुरूप सही तरीके से ग्रूमिंग की गई आईब्रोज हर किसी के फीचर को उभारती हैं और नया लुक देती हैं. फिर चाहे वे रानी मुखर्जी हों, कैटरीना या दीपिका. सब की आईब्रोज उन के चेहरे को सुंदर बनाती हैं.

आइए जानते हैं कि किस चेहरे पर कैसी आईब्रोज फबती हैं

ओवल चेहरे पर उभरी हुई आईब्रोज अच्छी लगती हैं. बौलीवुड अभिनेत्रियां आमतौर पर इसी तरह की आईब्रोज बनवाती हैं. ऐसी आईब्रोज का अंतिम हिस्सा कान की तरफ नीचे मुड़ना चाहिए.

गोल चेहरा हो तो ऊंची आईब्रोज बनवाएं. बीच में ज्यादा उभार हो.

वर्गाकार चेहरे पर भी आईब्रोज ऊंची रखनी चाहिए और उन का ऐंगल शार्प होना चाहिए.

चौकोर चेहरे पर आईब्रोज चौड़ी रखें. इस के अलावा हलकी गोलाई ऐसे चेहरे पर अच्छी लगती है.

हार्ट शेप चेहरा होने पर राउंड शेप में आईब्रोज बनवाएं. कर्व बेहद हलका दें. इस से चेहरे की खूबसूरती बढ़ेगी.

आईब्रोज को अधिक नुकीला न बनवाएं. आईब्रोज हमेशा आंखों से थोड़ी लंबी होनी चाहिए. अगर नाक बड़ी और चौड़ी है, तो दोनों आईब्रोज के बीच अधिक दूरी नहीं रखनी चाहिए. दोनों आईब्रोज के बीच की दूरी दोनों आंखों के बीच की दूरी के बराबर होनी चाहिए.

सही आईब्रोज से चेहरे पर चमक आती है. 30 से 40 साल तक की उम्र में आईब्रोज अच्छी रहती हैं, लेकिन 50-60 की उम्र में त्वचा ढीली हो जाती है तो आईब्रोज कम होने लगती हैं. ऐसे में ब्लैक या डार्क ब्राउन आईशैडो या आईब्रो पैंसिल का प्रयोग करना चाहिए.

कभी ना करें ये गलतियां

सही रंग की आईब्रोज न बनाना. आईब्रोज हेयर कलर के अनुरूप होनी चाहिए. अधिक गाढ़ा या हलका रंग ठीक नहीं होता.

नैचुरल आर्क को बनाए न रखना.

सही तरह से आईब्रो पैंसिल का प्रयोग न करना.

आईब्रोज अधिक पतली कर लेना.

दोनों आईब्रोज को समान रूप से न बनाना.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें