crime story in hindi
crime story in hindi
राहुल ने घेरे में से गेंद उठाने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहा और फिर हताशा में रोने लगा. उसे रोते देख मां भाग कर आईं और उसे उठा कर गले से लगा लिया. फिर कहा कि लगातार कोशिश करते रहो. जरूर गेंद उठाने में कामयाब होगे. उन्होंने राहुल को उन दिनों की भी याद दिलाई जब वह अपना नाम तक नहीं लिख पाता था. यह उस के ही प्रयासों का नतीजा था कि वह अपना नाम लिखने में कामयाब रहा.
इस तरह का प्रोत्साहन और सकारात्मकता एक बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए अहम है. बच्चे की अपने और दुनिया के प्रति धारणा कम उम्र में ही विकसित होती है. एक बच्चा कैसे सोचता है, वह क्या देखता है, वह क्या सुनता है, वह अपने आसपास के हालात पर कैसे प्रतिक्रिया देता है आदि बातें उस की पूरी छवि का निर्माण करती हैं. यदि एक बच्चे में चिंता, तनाव, असंतोष और भय की भावना आने लगती है, तो वह चिड़चिड़ा रहने लगता है. उस का आत्मविश्वास भी कमजोर हो जाता है.
कई शोध अध्ययनों से पता चला है कि बड़ी संख्या में बच्चे कम उम्र में ही तनाव और चिंता का शिकार हो जाते हैं. बचपन के नकारात्मक अनुभवों के चलते उन की सेहत पर जीवन भर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है.
बच्चे के तनाव और चिंता ग्रस्त होने की कई वजहें हो सकती हैं, जिन में किसी मुश्किल कार्य को करने के दौरान विपरीत स्थितियों का सामना करना भी शामिल है. बच्चा जब अपने स्कूल और ट्यूशन का काम समझने या पूरा करने में नाकाम रहता है तब भी उस में तनाव पैदा होने लगता है. वह प्रदर्शन करने व बेहतर बनने में खुद को असफल पाता है, क्योंकि उस की तुलना में उस के साथियों के लिए ऐसा करना आसान होता है. इस से वह आत्मविश्वास खोने लगता है.
बच्चे के कमजोर आत्मविश्वास को उस की शर्म या चुप्पी से समझा जा सकता है. ऐसे में मातापिता को ऐसे संकेतों को पहचानने की जरूरत होती है. ऐसी रणनीतियां अपनानी होती हैं, जिन से बच्चे को अपनी समस्याओं का सामना करने में मदद मिले और उस का आत्मविश्वास बढ़े. मातापिता की भूमिका यह सुनिश्चित करने के लिहाज से भी अहम है कि घर का माहौल दोस्ताना रहे ताकि बच्चा सुरक्षित महसूस करे और उसे बिना डांट के डर के अपनी बात को खुल कर रखने का मौका मिले.
1. संवाद कायम करें:
बच्चे में अपने परिवार के सदस्यों के साथ जुड़ाव और संवाद के साथ बचपन से ही सामाजिक कौशल विकसित होने लगते हैं. इसलिए बच्चे के साथ प्रभावी संवाद स्थापित करें. सहयोगी, सहज और स्नेहशील बनें. इस से संबंध विकसित करने में मदद मिलेगी और बच्चे में खुल कर बोलने का आत्मविश्वास बढ़ेगा.
2. अपनी पसंद चुनने का मौका दें:
अपनी पसंद चुनने, विकल्प और हालात पेश करने में बच्चे की मदद करने में अभिभावकों की भूमिका खासी अहम है, लेकिन अपनी पसंद उसे खुद चुनने दें. यह आत्मविश्वास विकसित करने का सब से अच्छा तरीका है, क्योंकि इस से फैसले लेने और ऐसी पसंद के बारे में समझने में वह ज्यादा सक्षम होता है, जिस से उसे खुशी मिल सकती है.
3. तारीफ और पुरस्कार:
अपने बच्चे को बताएं कि आप उसे प्यार करते हैं. मातापिता को बच्चे को बताना चाहिए कि हर कोई अपनेआप में खास है और हरेक की अपनी विशेष क्षमता और प्रतिभा होती है. बच्चे के लिए सकारात्मक यादों का निर्माण करें और छोटेछोटे संकेतों के माध्यम से उस की सफलता की तारीफ करें. प्रोत्साहित करने के लिए स्टिकर, कुकी या छोटी वस्तुओं के माध्यम से उन्हें पुरस्कृत करें. उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में डांटने से परहेज करें. बच्चे को अगली बार अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करें.
4. तुलना कभी न करें:
अपने बच्चे की क्षमताओं की तुलना दूसरे बच्चों के साथ कभी नहीं करनी चाहिए. सभी बच्चों के मन के भाव अलगअलग होते हैं. बच्चे की उस के साथियों से तुलना से उस में हीनभावना पैदा होती है. तुलना से बच्चे में प्रतिद्वंद्विता की भावना पैदा होती है, जिस के चलते उस में ईर्ष्या हो सकती है और यह बच्चे की सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
5. काम करने के प्रति दृढ़ होना:
बच्चा जब किसी दिए गए काम को पूरा करता है तो उसे अपने भीतर आत्मविश्वास महसूस होता है. उसे प्रोत्साहन मिलता है. उदाहरण के लिए जब विवेक ने अपने जूतों के फीते बांधने की कोशिश तो वह लगातार नाकाम हो रहा था. वह निराश होने लगा. ऐसे में उस के मातापिता
ने उसे कोशिश जारी रखने और हार न मानने का सुझाव दिया कि वह जरूर कामयाब होगा और वह सच में कामयाब रहा. बच्चे को इस तरह के उदाहरण देने की जरूरत होती है, जिन से उसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिले.
6. शिक्षकों से बात करें:
मातापिता के लिए अपने बच्चे का अपने साथियों और शिक्षकों के प्रति व्यवहार को समझना काफी अहम है, जिस से उन्हें बच्चे के सामाजिक जीवन को समझने में मदद मिले. यह जानना भी जरूरी है कि उन का बच्चा बाहरी वातावरण में कैसा व्यवहार कर रहा है, जैसे यदि वह घर पर अश्वस्त है, तो क्या वह ऐसा स्कूल में भी करने में सक्षम है?
इस से मातापिता को यह समझने में मदद मिलती है कि क्या बच्चे को कुछ सीखने में समस्या आ रही है या उस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. बच्चे के शिक्षकों और दोस्तों से बात करें ताकि उस की दिलचस्पी जानने में मदद मिले.
7. काल्पनिक खेल का इस्तेमाल करें:
काल्पनिक खेलों के माध्यम से बच्चे आसपास के लोगों और वस्तुओं से काल्पनिक हालात तैयार करते हैं और उस में अपनी भूमिका निभाते हैं. ऐसे खेलों से उन्हें बड़ा सोचने में मदद मिलती है और वे जैसा बनना चाहते हैं, जैसी दुनिया चाहते हैं, उस के बारे में पता चलता है. ऐसे खेलों में भाग लेने से मातापिता को बच्चे की कल्पनाओं में झांकने और उन्हें आत्मविश्वासपूर्वक प्रेरित करने का मौका मिलता है.
सब से अहम बात यह है कि बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए संबंधों में भरोसा होना चाहिए. अपने बच्चे से प्यार करें, एक मजबूत संबंध का निर्माण करें और उसे विकसित करें. बच्चे को मालूम होना चाहिए कि जब भी उस का आत्मविश्वास कम होगा, आप उस की मदद करने के लिए मौजूद हैं.
बच्चे के साथ भरोसेमंद और सहज संबंध विकसित करें ताकि जब भी उसे कोई समस्या हो तो वह आप के पास आए. इस से बच्चा आप की बात को सुनेगा और आप की सलाह का सम्मान करेगा. प्रमाण दे कर उसे अपनी राय विकसित करने में मदद करें. उस का आत्मविश्वास और समझ का दायरा बढ़ेगा. इस से उसे अपने साथियों के सामने अपनी बात रखने, उन की बातों को सुनने और दूसरों की राय को सम्मान देने में मदद मिलेगी. उस के लिए विभिन्न लोगों के बीच एक पहचान और आवाज हासिल करने के लिहाज से यह अहम है.
– ऋचा शुक्ला, सीसेम वर्कशौप इंडिया
वजन घटाने और स्लिमट्रिम बने रहने के लिए न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी इन दिनों तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं. दुनिया भर के पोषण विशेषज्ञ एवं डाइटिशियन इस के लिए तरहतरह के डाइट फौर्मूलों का प्रयोग कर रहे हैं. यहां हम आप को कुछ ऐसी ही डाइट्स के बारे में बता रहे हैं.
अल्कलाइन डाइट
अल्कलाइन डाइट में वेट लौस प्रोग्राम के तहत मुख्य रूप से क्षारीय प्रकृति के भोज्यपदार्थ खाने पर जोर दिया जाता है. इस से बौडी का पीएच बैलेंस 7.35 से 7.45 के बीच बरकरार रखने की कोशिश की जाती है.
फायदे: अल्कलाइन डाइट के पैरोकारों का कहना है कि इस से न सिर्फ वजन घटाने में मदद मिलती है, बल्कि आर्थ्राइटिस, डायबिटीज और कैंसर सरीखी कई बीमारियों में भी राहत मिलती है. इतना ही नहीं यह डाइट ऐजिंग की प्रक्रिया को धीमा रखने में मददगार होती है.
थ्योरी क्या है: अल्कलाइन डाइट के समर्थकों के मुताबिक हमारा रक्त कुछ हद तक क्षारीय प्रकृति का होता है, जिस का पीएच लैवल 7.35 से 7.45 के बीच होता है. हमारी डाइट भी इसी पीएच लैवल को मैंटेन करने वाली होनी चाहिए. अम्ल उत्पादक भोजन जैसे अनाज, मछली, मांस, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि खाने से यह संतुलन गड़बड़ा जाता है जिस से जरूरी खनिज जैसे पोटैशियम, मैग्नीशियम, सोडियम आदि का नुकसान हो जाता है. इस असंतुलन से शरीर में बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है और वजन बढ़ने लगता है. इसलिए जरूरी है कि 70% अल्कलाइन फूड खाया जाए और 30% ऐसिड फूड.
सैकंड ओपिनियन: ब्रिटिश डाईटेटिक ऐसोसिएशन के रिक मिलर कहते हैं, ‘‘अल्कलाइन डाइट का सिद्धांत है कि खास भोज्यपदार्थ खाने से शरीर का पीएच बैलेंस मैंटेन रहेगा, लेकिन सही यह है कि शरीर अपना पीएच बैलेंस मैंटेन रखने के लिए डाइट पर निर्भर नहीं है.’’
माना कि अल्कलाइन डाइट से कैल्सियम, किडनी स्टोन, औस्टियोपोरोसिस एवं ऐजिंग की समस्याओं में काफी राहत मिलती है, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ऐसिड प्रोड्यूसिंग डाइट क्रोनिक बीमारी की वजह है.
मोनो मील डाइट
इस के तहत सुबह या शाम के भोजन में सिर्फ एक खाद्यसामग्री (वह भी फल या सब्जी) रहती है. हमारे प्रचलित भोजन की तरह इस में दालचावल या रोटीसब्जी का तालमेल नहीं रहता. जब कोई मोनो मील पर अमल कर रहा हो, तो वह लंच में सिर्फ केले और डिनर में सिर्फ गाजर या सेब ही खाएगा, दूसरी कोई भी खाद्यसामग्री नहीं. इस डाइट को कोई हफ्ता भर तो कोई 6 महीने तक भी आजमाता है.
फायदे: इस डाइट को अपनाना बेहद आसान है. इस में किसी प्रकार की कृत्रिम खाद्यसामग्री का इस्तेमाल न होने की वजह से इसे हैल्दी भी माना जाता है. एक ही प्रकार का भोजन और वह भी कुदरती होने की वजह से शरीर की पाचन प्रणाली को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती.
नुकसान: भोजन में महीने भर से ज्यादा समय तक सिर्फ एक फल या सब्जी पर निर्भर रहना सेहत पर प्रतिकूल असर डाल सकता है. इस से शरीर में ऊर्जा का स्तर भी गिरने लगता है.
ग्लूटेन फ्री डाइट
डाइट की दुनिया में इन दिनों एक ताजा ट्रैंड आया है- ग्लूटेन फ्री डाइट का. इस के पक्षधर अपनी थाली से गेहूं से बने उत्पाद दूर रखते हैं. उन के मुताबिक गेहूंरहित भोजन उन्हें कई बीमारियां से बचाने के साथसाथ उन का ऐनर्जी लैवल भी इंपू्रव करता है.
ग्लूटेन फ्री डाइट के पैरोकारों का मानना है कि ग्लूटेन पोषक तत्त्वों के शरीर में अवशोषण की प्रक्रिया में बाधक होता है. आजकल कई लोग सैलिएक डिजीज से परेशान हैं. यह ग्लूटेन की वजह से होने वाला औटोइम्यून डिसऔर्डर है, जिस की वजह से डायरिया, वजन घटने और औस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
जेन डाइट
वेट मैनेजमैंट और गुड हैल्थ के लिए आप ने कई तरह की डाइट्स का नाम सुना होगा, लेकिन जापानी सिद्धांत काइजेन पर आधारित जेन डाइट के बारे में नहीं जानते होंगे. काइजेन का अर्थ है, इंप्रूवमैंट. यह वेट लौस प्लान लाइफस्टाइल की लौंग टर्म ओवरहौलिंग है, जिस में आप अपना भोजन बहुत समझदारी से चुनते और खाते हैं.
अपनी खानपान की आदतों में महत्त्वपूर्ण और स्थायी बदलाव ला कर जैसे, चीनी, प्रोसैस्ड फूड और तैलीय भोजन के त्याग या न्यूनतम सेवन से आप न सिर्फ अपना वजन घटाने में कामयाब हो सकते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवन की नीव भी डाल सकते हैं.
शरीर का आदर करें: जेन डाइट में धीरेधीरे अपने भोजन को आनंदपूर्वक खाने की सलाह दी जाती है. आप को प्रेरित किया जाता है कि आप क्या खा रहे हैं उसे देखें, अच्छी नींद लें और आराम भी करें.
धीमी मगर प्रभावशाली: अपनी हैल्थ इंपू्रव करने की चाहत रखने वालों के लिए यह डाइट काफी प्रभावशाली है. इसे अपनाने से वेट लौस स्थायी होता है, लेकिन इस की गति धीमी होती है.
कई दक्षिण भारतीय व्यंजन ऐसे हैं जिन्हें आप बहुत आसानी से घर पर भी बना सकती हैं. दक्षिण भारतीय व्यंजन बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी काफी पसंद आते हैं. मिनी सोया डोसा एक ऐसी ही डिश है, जिसे आप घर पर ट्राई कर सकती हैं.
सामग्री
1 कप सोया मिल्क
1 कटी हुई हरी मिर्च
आधा कप बारीक कटा प्याज
नमक स्वादानुसार
एक-चौथाई कप आटा
1 चम्मच बारीक कटी धनिया
एक-चौथाई चम्मच बेकिंग सोडा
डेढ़ चमम्च रिफाइंड तेल
विधि
सेया मिल्क, आटा, हरी मिर्च, प्याज, बेकिंग पाउडर, नमक और थोड़ा पानी मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार कर लीजिए.
एक नॉन-स्टिक तवे पर थोड़ा सा तेल लेकर अच्छी तरह फैला लें.
नॉन स्टिक पैन में दो बड़े चम्मच इस घोल को डालें और अच्छी तरह फैलाएं.
जब एक ओर यह पक जाए और पैन से छूटने लगे तो दूसरी ओर पलट दें. दूसरी ओर भी अच्छी तरह पका लें. इसे पसंदीदा चटनी के साथ सर्व करें.
ठीक इसी जगह पर 29 जुलाई, 2021 को भी बादल फटा था, लेकिन तब न कोई मरा था, न कोई भगदड़ मची थी और न ही न्यूज चैनल वालों ने मजमा लगाया था. लेकिन बीती 8 जुलाई को जो कहर इसी जगह पर बादल ने बरपाया तो नजारा बेहद बदला हुआ और दहला देने वाला था. मीडिया वाले वहां टूटे पड़ रहे थे. चारों तरफ दहशत थी, मौतें थीं, रुदनकं्रदन था और भुखमरी के से हालात बन रहे थे. सेना के हजारों जवान अपनी जान जोखिम में डाल कर अमरनाथ तीर्थ यात्रियों की जिंदगी बचाने में जुटे थे और देशभर के आम लोग जीवन की क्षणभंगुरता की चर्चा करते आदत के मुताबिक टिप्स दे रहे थे कि इतनी भीड़ वहां नहीं लगने देनी चाहिए थी.
इस हादसे जिस में 20 के लगभग लोग मरे 50 से ज्यादा घायल हुए और 40 से भी ज्यादा लापता हुए का जिम्मेदार भगवान को मानने में धार्मिक आस्था और पूर्वाग्रह आड़े आ रहे थे, इसलिए ठीकरा बड़ी बेशर्मी से श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के सिर फोड़ दिया गया कि उस की लापरवाही से यह हादसा हुआ.
मगर किसी ने यह नहीं कहा कि असल गलती तो लोगों की थी जो दुर्गम पहाड़ पर इकट्ठा हुए. क्या इन्होंने मौसम विभाग की बारबार दी गई चेतावनी नहीं सुनी थी कि इस वक्त वहां जाना एक तरह से आत्महत्या करने जैसा काम है? अगर बोर्ड यात्रा रोकता तो यकीन माने देशभर के हिंदू हल्ला मचाते कि देखो हमारी पवित्र यात्रा मौसम का बहाना ले कर रोकने की साजिश रची जा रही है.
30 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू हुई थी तो हर साल की तरह 2 आशंकाएं खासतौर से जताई जा रही थीं. पहली- आतंकी हमले की और दूसरी खराब मौसम की. पहली आशंका से आश्वस्त करने के लिए तो सरकार ने सुरक्षा के लिए
1 लाख से भी ज्यादा जवान तैनात कर दिए थे, लेकिन खराब मौसम की बाबत वह कुछ करने में असमर्थ थी, इसलिए भक्तों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था. कोरोना के कहर के 2 साल बाद हो रही इस यात्रा को ले कर लोगों में जबरजस्त जोश था, जिस के चलते लाखों लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया था.
भीड़ और हादसा
अमरनाथ गुफा से 2 किलोमीटर दूर काली माता स्थान के पास हादसे के दिन शाम जब 5 बजे के लगभग बादल फटा तब वहां 25 टैंटों में करीब 15 हजार लोग मौजूद थे. पानी बेकाबू हो कर बहा और टैंट सिटी के कई टैंटों को बहा ले गया, साथ में कुछ भक्त भी लकड़ी की तरह बहे. ये टैंट महानगरों की ?ाग्गियों की तरह एकदूसरे से सटे हुए थे जिन के आसपास लगे 3 लंगर भी वह गए.
तबाही का तांडव घंटों चला. घुप्प अंधेरे में कैद यात्री अपने भगवान को याद करते रह गए क्योंकि करंट फैलने के डर से बिजली भी काट दी गई थी.
इस मिनी प्रलय का कहर इतना था कि चट्टानें तो चट्टानें मिट्टी भी निकल कर बहने लगी थी. एक संकरी जगह में हजारों लोगों का होना जानमाल के बड़े नुकसान की वजह बना.
पिछले साल जब बदल फटा था तो एक आदमी भी नहीं मरा था क्योंकि वहां कोई था ही नहीं. साफ है भीड़ थी इसलिए हादसा हुआ जिसे कुदरती कहने के बजाय मानवीय कहना ज्यादा बेहतर है. भीड़ क्यों थी इस सवाल के कोई खास माने नहीं हैं. माने इस बात के हैं भीड़ न होती तो किसी का कुछ नहीं बिगड़ता.
जिद की भारी कीमत
देशभर में हल्ला मचा, अलर्ट घोषित कर दिया गया, लेकिन यात्रा हैरत की बात है रद्द नहीं की गई बल्कि मौसम साफ होने तक स्थगित कर दी गई और 3 दिन बाद फिर शुरू कर दी गई जबकि मौसम के मिजाज में कोई तबदीली नहीं आई थी. शुरू होने के बाद खराब मौसम के चलते यह यात्रा कई बार रोकी गई थी, लेकिन भीड़ को इस से कोई सरोकार ही नहीं था.
उसे तो बस पवित्र गुफा तक किसी भी हाल में, किसी भी कीमत पर पहुंचना था. इस जिद की भारी कीमत कुछ लोगों ने जान दे कर चुकाई, लेकिन यात्रियों को अक्ल फिर भी नहीं आई.
महंगी पड़ी यात्रा
4 दिन बाद कुछ लोगों को अक्ल आई जब टैंट का किराया डेढ़ सौ रुपए से बढ़ा कर 6 हजार रुपए कर दिया गया. 20 रुपए कीमत वाली पानी की बोतल 100 रुपए में भी मुश्किल से मिली. लंगरों में राशनपानी खत्म हो गया तो मैगी और बिस्कुट के दाम भी 50 गुना बढ़ गए, जिन के पास पैसा खत्म हो चला था उन्होंने परिचितों और रिश्तेदारों से ट्रांसफर कराया.
मध्य प्रदेश के एक तीर्थ यात्री सचिन वारुडे बताते हैं कि मेरा परिवार गुफा से 200 मीटर दूर था. बादलों की गड़गड़ाहट से हम सब घबरा उठे थे. वहां के टैंट और लोग तेजी से बह रहे थे हरकोई भयभीत और लाचार था. बादल छंटने पर सचिन अपने बूढ़े मांबाप और ससुर को ले कर पंचतरणी की तरफ भागा तब तक इन तीनों की सांस फूल चुकी थी.
लूट सको तो लूट
दुश्वारियां यहीं खत्म नहीं हुई. पंचतरणी जाने के लिए उन्होंने जब घोड़े बालों से बात की तो उन्होंने 6 हजार रुपए मांगे जबकि तयशुदा किराया डेढ़ हजार रुपए है. इस तरह 3 घोड़ों के उन्हें 18 हजार रुपए देने पड़े. जिस यात्रा के लिए उन का बजट 20-25 हजार रुपए का था वह 50 हजार रुपए पार कर गया था.
साथ के तीनों बुजुर्गों की तबीयत भी बिगड़ गई थी और खानेपीने का भी कोई ठिकाना नहीं था. यह यात्रा उन्हें ढाई गुना से भी ज्यादा महंगी पड़ी और ब्याज में परेशानियां भुगतीं सो अलग. अब सचिन ने पहाड़ों की यात्रा से तोबा कर ली है.
चार धाम यात्रा भी अछूती नहीं
बात अकेले अमरनाथ यात्रा की नहीं बल्कि हिंदुओं की सब से अहम चार धाम यात्रा की भी है, जिस के लिए देशभर के करीब 22 लाख लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. यह यात्रा और भी ज्यादा दुर्गम और खतरनाक मानी जाती है. इस के बाद भी लोग यहां भी मधुमक्खियों की तरह उमड़ रहे थे.
लोग यहां बादल फटने से कम स्वास्थ कारणों से ज्यादा मरे. शुरुआती 23 दिनों में ही करीब 100 लोग अपनी जान गंवा चुके थे.
मृतकों की लगातार बढ़ रही संख्या से हरकोई चिंतित था, लेकिन उन्हें बचाने का उपाय किसी के पास नहीं था. यह कहने की भी हिम्मत कोई नहीं कर पाया कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को यहां नहीं आना चाहिए खासतौर से बीमार और बुजुर्गों को तो यहां आने की सोचनी भी नहीं चाहिए. हालत तो यह थी कि उत्तराखंड की स्वास्थ्य महानिदेशक शैलजा भट्ट को यह कहना पड़ा कि हम तीर्थयात्रियों की मौतें रोकने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं जिन में से अधिकतर बुजुर्ग हैं.
कोई घोषित शोध तो चार धाम के यात्रियों की मौतों पर नहीं हुआ, लेकिन सिक्स सिग्मा हैल्थ केयर के मुखिया प्रदीप भारद्वाज के मुताबिक जिन वजहों के चलते मौतें हुईं उन में प्रमुख कारण अनुकूल तंत्र की अनुपस्थिति, तीर्थयात्रियों की कमजोर इम्यूनिटी और अनिश्चित मौसम है. असल में पहाड़ों के मौसम का अपना अलग मिजाज होता है जहां कभी तेज धूप निकल आती है तो कभी अचानक बारिश होने या फिर ठंड पड़ने लगती है. अभ्यस्त न होने से इस बदलाब को यात्री यानी बाहरी लोग बरदाश्त नहीं कर पाते. चार धाम के पहाड़ पर स्थित मंदिर 1200 फुट की ऊंचाई तक है जहां चढ़ने के लोग ट्रेंड नहीं होते. वहां जलवायु भी एकदम बदलती है और ठंड भी कड़ाके की पड़ती है.
दम तोड़ना आम बात
केदारनाथ के रास्ते में ज्यादातर मौतें हायपोथर्मिया से हुईं जोकि अत्यधिक ठंड के चलते होता है. इस के बाद हार्टअटैक या कार्डियक अरेस्ट से ज्यादा लोग पहाड़ों पर दम तोड़ते हैं- हवा का कम दबाव अल्ट्रावायलेट किरणें और औक्सीजन की कमी से भी लोग या तो मर जाते हैं या फिर बीमार पड़ जाते हैं. डायबिटीज और ब्लडप्रेशर के मरीजों के सिर पर भी मौत मंडराती रहती है. चार धाम यात्रा में हर साल सैकड़ों लोगों का दम तोडना आम बात है.
औफ सीजन पहाड़ों का रोमांच किसी सुबूत का मुहताज नहीं जहां लोग खुली हवा, सुकून और एकांत में आराम करने ज्यादा जाते हैं, लेकिन इस के लिए इंतजार तीर्थ यात्राओं के सीजन का करते हैं जिस में लैंड स्लाइडिंग, तेज बारिश और हवाएं, आसमानी बिजली गिरने और बादल फटने का खतरा बना ही रहता है. एक खास वक्त में जाने से भीड़ बड़ती है और हादसे के अलावा बीमारियों से भी मौतें होती हैं.
अमरनाथ और चार धाम की यात्रा करने वाले सरकारी शैड्यूल और धार्मिक मुहूर्तों के गुलाम हो कर रह जाते हैं. वे चाह कर भी आराम नहीं कर पाते जबकि पहाड़ों की यात्रा रुकरुक कर की जाए तो तमाम तरह के जोखिम कम हो जाते हैं और यात्रा का पूरा लुत्फ भी उठाया जा सकता है.
टूट रहा मिथक
सबक दूसरे पहाड़ी स्थलों कुल्लू, मनाली, शिमला, कश्मीर और नैनीताल से लिया जा सकता है. इन जगहों पर गरमियों में ही जाने का मिथक भी अब टूट रहा है. बारिश के 2-3 महीने छोड़ सैलानी सालभर खासतौर से ठंड के दिनों में इन जगहों पर बड़ी संख्या से जाने लगे हैं.
भीड़भाड़ से बचने के अलावा औफ सीजन पहाड़ी यात्रा के और भी फायदे हैं मसलन, ठहरने के लिए होटल सस्ते मिल जाते हैं, खानापीना भी किफायती दाम में मिल जाता है और अवागमन के साधनों का किराया भी कम हो जाता है. मंदिर और दूसरे दर्शनीय स्थल भी खाली पड़े रहते हैं.
दिल्ली से अकसर बद्रीनाथ केदारनाथ जाने वाले कश्मीरी गेट के एक युवा टैक्सी ड्राइवर परमवीर सिंह के मुताबिक तीर्थ यात्रा के सीजन में टैक्सियों का किराया भीड़ के मुताबिक 5 रुपए से 10 रुपए प्रति किलोमीटर तक बढ़ जाता है. अगर कोई दिल्ली से बद्रीनाथ जाने के लिए टैक्सी लेता है तो उसे एक तरफ के लगभग 5 हजार रुपए तक ज्यादा चुकाने पड़ते हैं. यही हाल होटलों और धर्मशालाओं का होता है जिन का किराया सीजन में दोगुना, चारगुना तक हो जाता है.
बात अकेले पैसे की नहीं है बल्कि बेशकीमती जिंदगी की भी है जो सलामत रहे तो एक बार और उस से भी ज्यादा पहाड़ी यात्राएं की जा सकती हैं. चार धाम और अमरनाथ में जान गंवाने वालों का न तो पुण्य कमाने का मकसद पूरा हुआ और न ही वे पहाड़ों का आनंद ले सके.
उन के घर वाले भी मुद्दत तक दुखी रहेंगे सो अलग और मुमकिन है उस घड़ी को कोस रहे हों जब जोखिम भरी यात्रा के फैसले में उन्होंने अपनी सहमति दी थी.
इन बातों पर ध्यान दें
– मौसम विभाग की भविष्यवाणी सुन कर ही यात्रा तय करें. अमरनाथ यात्रियों ने इस
की अनदेखी की थी जिस की सजा भी उन्होंने भुगती.
– दिल की, अस्थमा की, शुगर की या ब्लडप्रैशर या फिर कोई दूसरी गंभीर बीमारी हो तो पहाड़ों की यात्रा से बचें और जाएं तो अपने डाक्टर से सलाह ले कर ही जाएं बीमारी की दवा समुचित मात्रा में ले जाएं.
– तीर्थ यात्रा के दौरान पहाड़ों के बेस कैंप में मैडिकल चैकअप करवाएं. अगर डाक्टर यात्रा करने से मना करें तो रिस्क न लें.
– पर्याप्त ऊनी व गरम कपड़ों के अलावा स्कार्फ, दस्ताने और मफलर भी साथ रखें. चार धाम यात्रा में कई यात्रियों ने कम कपडे़ ले जाने की गलती की थी.
– मोबाइल फोन की बैटरी फुल रखें और चार्जिंग के लिए सोलर बेटरी ले जाएं ताकि बाहरी दुनिया और अपनों से संपर्क बना रहे.
– लगातार यात्रा न करें. एक दिन आराम कर दूसरे दिन की यात्रा शुरू करें. चढ़ाई ज्यादा हो तो बजाय जोश के होश से काम लें. जब थक जाएं तो रुक कर आराम करें.
– पहाड़ों की ठंड का सामना करने के लिए पानी पीते रहना जरूरी है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी साथ रखें.
– इस के बाद भी स्वास्थ संबंधी कोई परेशानी महसूस हो तो तुरंत यात्रा रोक दें और सुरक्षित स्थान पर लौट कर डाक्टर से संपर्क करें.
– सब से अहम बात भीड़ का हिस्सा बनने से बचें. किसी भी आपदा से बचने के लिए भीड़ के पीछे होने के बजाय सुरक्षित ठिकाना ढूंढ़ कर वहीं रुक जाएं. पहाड़ों की जोखिम भरी यात्राओं से बचाने में भगवान और सरकार दोनों कुछ नहीं कर सकते, इसलिए अपना ध्यान और खयाल खुद ही रखें.
पिछले साल जब बदल फटा था तो एक आदमी भी नहीं मरा था क्योंकि वहां कोई था ही नहीं. साफ है भीड़ थी इसलिए हादसा हुआ जिसे कुदरती कहने के बजाय मानवीय कहना ज्यादा बेहतर है. भीड़ क्यों थी इस सवाल के कोई खास माने नहीं हैं. माने इस बात के हैं भीड़ न होती तो किसी का कुछ नहीं बिगड़ता.
फ्रिज सबसे महत्वपूर्ण किचन वर्किंग ऐप्लायेंस है. अगर फ्रिज किसी कारण खराब हो जाए तो किचन की बहुत सी चीजों पर भी खराब होने का खतरा मंडराने लगता है. पर फ्रिज में चीजें प्रिजर्व करना जीतना आसान है, फ्रिज की साफ सफाई उतनी ही मुश्किल. फ्रिज के लेटेस्ट मौडल्स में ऐसे फिचर्स आते हैं जिससे खाना लंबे वक्त तक फ्रेश रहता है और ऐसे फ्रिज को साफ करना भी आसान होता है.
जिस तरह घर की बाकी चीजों को साफ करना जरूरी है उसी तरह फ्रिज को भी सफाई भी जरूरी है. लंबे समय तक फ्रिज की सफाई नहीं करने से उसमें से बदबू आने लगती है. फ्रिज में रखी चीजें भी जल्दी खराब होने लगती हैं. इसलिए थोड़े थोड़े समय पर फ्रिच की सफाई करना बहुत जरूरी है.
ये टिप्स अपनाकर आप आसानी से फ्रिज की सफाई कर सकती हैं-
1. फ्रिज करें खाली
सबसे पहले फ्रिज के मेन स्वीच बंद करें और उसके प्लग को निकाल लें. इसके बाद फ्रिज को खाली करें. फ्रिज में रखी सारी चीजों को बाहर निकालें. फ्रिज में रखी बेकार चीजों को बाहर फेंके. जो बोतल और शीशयां इस्तेमाल करने लायक हैं उन्हें साफ करें. फ्रिज को बंद न करें और उसके डोर्स को खुला छोड़ दें. इससे फ्रिज की बदबू कम होगी.
2. फ्रिज को करें डी-फ्रॉस्ट
फ्रिज को खाली करने के बाद फ्रिज को डी-फ्रॉस्ट करना भी जरूरी है. फ्रिज के बेस पर एक मोटा पेपर बिछा दें. ताकि जब बर्फ पिघलकर आए तो पेपर उसे सोख ले.
3. साफ करें फ्रिज का इंटीरियर
फ्रिज के अंदर नैचुरल क्लिनर से स्प्रे करें. इसके बाद एक सुखे कपड़े से फ्रिज को अच्छे से पोंछे.
4. शेल्फ, ड्रॉर और डीवाइडेर को धोएं
गुनगुने पानी में शेल्फ, ड्रॉर और डीवाइडेर को धो डालें. डिटर्जैंट के घोल और ब्रश से इनकी सफाई करें.
5. अंत में साफ करे फ्रिज का बाहरी हिस्सा
सबसे अंत में फ्रिज का बाहरी हिस्सा साफ करे. नैचुरल क्लिनर से स्प्रे करें और सुखे कपड़े से पोंछे.
तेज धूप, जरूरत से ज्यादा पसीना, धूलमिट्टी और प्रदूषण की वजह से सिर में संक्रमण की समस्या बढ़ जाती है. वहीं बदलते मौसम में इससे त्वचा के साथसाथ बालों की सेहत भी प्रभावित होती है. इस मौसम में न सिर्फ बाल बेजान हो जाते हैं, रूसी की परेशानी होने के साथसाथ झड़ने भी लगते हैं. बहुत पसीना आता है और त्वचा की नमी बढ़ जाती है. इस से बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं.
बदलते मौसम में बालों की समस्याओं को दूर करने के खास उपाय बता रही हैं मेकअप ऐक्सपर्ट आशमीन मुंजाल:
बालों की समस्या के मुख्य 2 कारण देखे गए हैं- आनुवंशिक और खानपान.
आनुवंशिक समस्या: बाल झड़ने की समस्या के कई कारण हैं. सब से आम है ऐंड्रोजेनिक अलोपेसिया या मेल पैटर्न अथवा फीमेल पैटर्न बाल्डनैस. आमतौर पर यह आनुवंशिक समस्या है. अन्य किस्म की समस्याएं अस्थाई होती हैं, पर यह त्वचा के संक्रमण, तनाव और अधिक दवा लेने का दुष्प्रभाव हो सकता है.
खानपान: बालों की सेहत के लिए उचित खानपान की जरूरत होती है. अंकुरित अनाज प्रोटीन से भरपूर होता है. इसे अपने भोजन में जरूर शामिल करें. यह शरीर के साथसाथ बालों को भी पोषण देता है.
अन्य कारण: खाने में अधिक मीठा लेना. हानिकारक रसायनयुक्त शैंपू और कंडीशनर का प्रयोग करना. वैसे कंघी करते समय 45 से 60 बालों का गिरना आम बात है. इन की जगह नए बाल उग आते हैं. लेकिन हर दिन औसत 60 से अधिक बाल गिरने लगें तो चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है.
खास उपाय: बालों की समस्याओं को दूर करने के कुछ खास उपाय ये हैं:
बालों की साफसफाई: गरमी के मौसम में पसीने के कारण सिर की त्वचा तैलीय हो जाती है और रूसी की समस्या घेर लेती है. बाल रूखे से हो जाते हैं. अत: माइल्ड शैंपू या बेबी शैंपू का इस्तेमाल करें. बालों को रोज धोएं ताकि उन में गंदगी न रहे.
दोमुंहे बालों का उपचार: गरमी का मौसम शुरू होते ही बालों की ट्रिमिंग कराएं ताकि दोमुंहे और डैमेज हो चुके बाल निकल जाएं.
रूखेपन का इलाज: अतिरिक्त रूखेपन से बचाव के लिए मौइश्चराइजिंग शैंपू का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है. शैंपू के बाद मौइश्चराइजिंग कंडीशनर लगाना न भूलें. इस के बाद भी अगर बाल फ्रिजी दिखते हों तो आप ऐंटीफ्रिज औयल अथवा सीरम की कुछ बूंदें इस्तेमाल कर सकती हैं.
धूप से बचाव: सूर्य की तेज पैराबैगनी किरणें बालों को जलाती ही नहीं, बल्कि उन की प्राकृतिक रक्षा परत को भी प्रभावित करती हैं. अत: जब भी घर से बाहर निकलें बालों को ढक लें. इस के लिए स्कार्फ, स्टोल या हैट का इस्तेमाल करें. इस के साथ ही ऐसे कंडीशनर का इस्तेमाल करें, जिस में सनस्क्रीन भी हो. यह बालों को सुरक्षा प्रदान करता है.
पोषण का रखें खयाल: गरमी के मौसम में बालों को पोषण देने के लिए तेल लगाना न भूलें. कुनकुने जैतून या नारियल तेल की मालिश सिर धोने से पहले नियमित करें. इस के लिए उंगलियों के सिरों को तेल में डुबोएं और हलके हाथों से सिर की मालिश करें. इस से सिर की तेल ग्रंथियां सक्रिय होंगी और ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा. तेल को बालों में कम से कम 2 घंटे जरूर लगाए रखें. तेल और शैंपू की मात्रा हमेशा कम रखें. ज्यादा शैंपू का प्रयोग बालों की प्राकृतिक नमी खो देता है.
हौट आयरन व ब्लो ड्रायर का प्रयोग कम करें: मौसम कोई भी हो बालों पर हौट आयरन व ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल कम से कम करें. ब्लो ड्रायर से निकलने वाली हवा बालों के फौलिकल्स को नुकसान पहुंचा सकती है.
बालों को नुकसान से बचाने के लिए हमेशा हीट लो रखें.
स्वीमिंग के दौरान रखें ध्यान: स्वीमिंग से पहले शौवर कैप पहनें अथवा कंडीशनर लगाएं. इस से आप के बालों को पूल के क्लोरीन जैसे कैमिकल से सुरक्षा मिलेगी. स्वीमिंग पूल से बाहर निकलने के तुरंत बाद साफ पानी से नहाएं.
‘‘चिली सौस में सिरका होता है न इसलिए यह सूखी नहीं और ताजे खून सी लग रही है,’’ प्रीति बोली, ‘‘मगर टेबल क्यों गिराई, इस के नीचे क्या छिपा हो सकता था?’’
‘‘यह तो पुलिस ही चोर से पूछ कर बता सकती है,’’ किसी के यह कहने पर प्रीति सिहर उठी.
‘‘पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत है? कोई सामान चोरी तो हुआ नहीं है.’’
‘‘और चोर तो हम में से कोई यानी इसी कालोनी का बाश्ंिदा है,’’ वर्माजी बोले, ‘‘पुलिस को बुलाने का मतलब है खुद को परेशान करना यानी पुलिस के उलटेसीधे सवालों के चक्कर में फंसना और बेकार में उन की खातिरदारी करना क्योंकि चोर तो उन के हाथ लगने से रहा.’’
‘‘वर्माजी का कहना ठीक है. हमें आपस में ही तय करना है कि सुरक्षा के लिए और क्या करें,’’ तनेजाजी ने कहा ‘‘घर तो अच्छी तरह से देख लिया है, कोई छिपा हुआ तो नहीं है.’’
‘‘यानी अब कोई खतरा नहीं है,’’ प्रीति ने जम्हाई रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तो फिर क्यों न अभी सब घर जा कर आराम करें, कल छुट्टी है, फुरसत से इस बारे में बात करेंगे.’’ ‘‘हां, यही ठीक रहेगा. शायद इतमीनान से सोचने पर प्रीति को याद आ जाए कि वह नींद में चिल्लाई क्यों थी. लेकिन तुम्हें अकेले डर तो नहीं लगेगा प्रीति? कहो तो मैं यहां सो जाऊं या तुम हमारे यहां चलो,’’ नेहा वर्मा ने कहा.
‘‘धन्यवाद, मिसेज वर्मा, जब घर में कोई है ही नहीं तो डर कैसा?’’ प्रीति हंसी.
‘‘तो ठीक है, कल मीटिंग रखते हैं…’’
‘‘भूषण साहब, मीटिंग क्यों न मौका-ए-वारदात यानी मेरे घर पर रखी जाए?’’ प्रीति ने बात काटी, ‘‘इसी बहाने मुझे आप सब को इतनी ठंड में जगाने के एवज में चाय पिलाने का मौका भी मिल जाएगा.’’
‘‘प्रीतिजी ठीक कह रही हैं. भूषण साहब, मीटिंग तो मौका-ए-वारदात पर ही होनी चाहिए. इस हौल में 25-30 लोग आसानी से आ सकते हैं.’’
‘‘कमेटी के सदस्य इस से कम ही हैं. लेकिन डा. गौरव, आप और वर्मा दंपती पड़ोसी होने के नाते जरूर आइएगा,’’ भूषणजी ने कहा, ‘‘तो कल फिर यहीं मिलते हैं, 4 बजे कमेटी जो तय करेगी उसे फिर संडे को जनरल बौडी मीटिंग में सर्वसम्मति से पास करवा लेंगे.’’ प्रीति या दूसरों को लिहाफ में घुसते ही नींद आई या नहीं, लेकिन डा. गौरव सो नहीं सके. न तो भूतप्रेत का सवाल था, न ही किसी और के प्रीति के फ्लैट में घुसने का. तो फिर ये सब क्या है? गौरव को न तो पड़ोस में दखलंदाजी का शौक था और न ही फुरसत लेकिन उसे मामला दिलचस्प लग रहा था. इस बारे में अधिक जानकारी प्रीति से जानपहचान बढ़ा कर ही मिल सकती थी जो मीटिंग में जाने से नहीं, अकेले में मिलने से बढ़ सकती थी और तभी मामले की गहराई में जाया जा सकता था. उस ने सोचा कि बेहतर होगा कि 6 बजे के बाद जाए ताकि तब तक मीटिंग खत्म हो चुकी हो और अगर प्रीति आग्रह कर के रोकेगी तो ठीक, वरना सौरी कह कर वापस आ जाएगा. उस के घंटी बजाने पर गले में एप्रैन बांधे नौकर ने दरवाजा खोला.
‘‘प्रीतिजी हैं?’’
‘‘जी, सर, आइए,’’ वह सम्मानपूर्वक से बोला. प्रीति डाइनिंग टेबल के पास खड़ी थी. उसे देखते ही चहकी ‘‘ओह, डा. गौरव, आइएआइए.’’
‘‘सौरी, मुझे आने में देर हो गई. मीटिंग तो लगता है खत्म हो गई, मैं चलता हूं.’’
‘‘मीटिंग में क्या हुआ, नहीं सुनना चाहेंगे?’’
‘‘जी, बताइए?’’
‘‘इत्मीनान से बैठ कर चाय पीते हुए सुनने वाली बातें हैं.’’
‘‘बैठ जाता हूं मगर चायपानी के लिए परेशान मत होइए.’’
‘‘शुंभ, हम लोगों का चायनाश्ता यहीं दे जाओ,’’ प्रीति ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘मेरी परेशानी खत्म. आज सुबह जब मैं ने फ्रिज खेला तो उस में से काफी फल, जैम और ब्रैड वगैरा गायब थे.’’
‘‘यानी वह काफी देर रहा आप के फ्लैट में?’’ ‘‘जी हां, सुबह मेरी नौकरानी जब नीचे प्रैस वाली को कपड़े देने जाती है तो दरवाजा खुला ही छोड़ जाती है, उसी समय कोई घुस आया होगा और परदे के पीछे छिप गया होगा. इत्तफाक से आज नौकरानी के वापस आने से पहले ही मैं तैयार हो गई थी. सो, ताला लगा कर नीचे चली गई और बेचारा चोर अंदर ही बंद हो गया.’’
‘‘फिर आराम से खातापीता रहा,’’ गौरव हंसा, ‘‘सुरक्षा बढ़ाने की बात हुई?’’
‘‘हां, प्रत्येक बिल्ंिडग में विजिटर्स को रजिस्टर में साइन करना होगा. सब का यही मानना है कि उस रोज कालोनी से ही कोई मेरे घर में आया था, रात को वह जो भी चाहता था उस का वह मंसूबा तो मैं ने अनजाने में चिल्ला कर सत्यानाश कर ही दिया और आप सब के आने पर वह परदे के पीछे से निकल कर भीड़ में शामिल हो गया. खैर, सिक्योरिटी को ले कर तो सभी चिंतित हैं और फिलहाल विजिटर्स बुक रखना सही कदम है. मगर सब से मजेदार थी छींटाकशी. नीलिमाजी का कहना था कि लोगों को अपने घरेलू नौकरों पर नजर रखनी चाहिए और उन की हरकतों की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए. उन के खयाल से किसी का घरेलू नौकर ही मेरे घर में घुसा था. शनिवार को बहुत से नौकरों की छुट्टी रहती है. इस पर ऊषाजी ने कहा कि घरेलू नौकर तो छुट्टी के रोज नींद पूरी करते हैं, लेकिन अमीर लोगों के जवान होते बच्चों को दूसरों के घरों में घुसने की बीमारी होती है, उन पर खास नजर रखनी चाहिए.
इस पर इतनी कांयकांय मची कि पूछिए मत.’’ प्रीति को खिलखिलाते देख कर गौरव को बहुत अच्छा लगा और वह भी हंस पड़ा, ‘‘आप के यहां आने से पहले एक बार गाडि़यों में से स्टीरियो और पैट्रोल चोरी होने लगा था. तब रात को कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार नहीं थे. चोर बड़ी सफाई से गाडि़यों के ताले खोलता था. एक रात कुत्ते की तबीयत खराब होने पर ऊषाजी और उन के पति कुत्ते को कारपार्किंग के पास टहला रहे थे कि अचानक अपनी गाड़ी के पास चोर को देख कर कुत्ता भौंकने लगा. ऊषाजी के पति ने लपक कर उसे पकड़ लिया. वह कालोनी में ही रहने वाले आहूजा का बेटा दिलीप था. उस के हाथ में पेचकस भी था. उस ने अपनी सफाई में कहा कि अपनी गाड़ी से निकलते समय उस के हाथ से छिटक कर पेचकस दूर जा गिरा था और अब टौर्च ले कर वह उसे ढूंढ़ने आया था. यह पूछने पर कि आधी रात को क्यों, उस ने जवाब में कहा कि जब वे आधी रात को अपना कुत्ता घुमा सकते हैं तो वह अपना स्क्रूड्राइवर क्यों नहीं ढूंढ़ सकता. खैर, ऊषाजी ने जो देखा था वह मीटिंग में बता दिया. तब श्रीमती आहूजा ने कारपार्किंग के पास कुत्तों के घुमाने पर रोक लगवानी चाही थी.’’
शुंभ कई तरह के गरम पकौड़े ले कर आया. गौरव को पकौड़े बहुत पसंद आए.
‘‘शुंभ ने बनाए हैं, ही इज एन एक्सेलैंट कुक.’’
‘‘आप ही के पास काम करता है?’’
‘‘मेरा ड्राइवर है और लोकल गार्जियन भी. कई साल से मम्मीपापा के पास खाना पकाता था. फिर मैं ने ड्राइविंग सिखवा कर अपनी कंपनी में लगवा दिया. जब भी जरूरत पड़ती है तो खाना भी बना देता है.’’
दार्जिलिंग घूमघूम कर हम इतने थक चुके थे कि मां का घर जन्नत से कम नहीं लग रहा था. सही कहते हैं, भले ही आप फाइवस्टार होटल में रह लो, पर घर जैसा सुख कहीं नहीं मिलता. मां कहने लगीं कि यहीं पास में ही एक नया मौल खुला है तो जा कर घूम आओ. लेकिन बच्चे जाने से मना करने लगे कि उन्हें नानानानी के साथ ही रहना है तो आप दोनों जाओ.
सच में, बड़ा ही भव्य मौल था. फूड कोर्ट और सिनेमाहौल भी था यहां. मैं कब से ‘गंगूबाई’ फिल्म देखने की सोच रही थी. आज मौका मिला तो टिकट ले कर हम दोनों हौल में घुस गए. सोचा, आई हूं, तो मांपापा और बच्चों के लिए थोड़ीबहुत खरीदारी भी कर लेती हूं. अपने लिए भी 2-4 कौटन की कुरती खरीदनी थीं मुझे. गरमी में कौटन के कपड़े आरामदायक होते हैं. सो मैं लेडीज सैक्शन में घुस गई और देवेन पता नहीं किधर क्या देखने में लग गए.
मैं अपने लिए कुरतियां देख ही रही थी कि पीछे से जानीपहचानी आवाज सुन अकचका कर देखा, तो मोहन मुझे घूर रहा था. उसे देखते ही लगा जैसे किसी ने मेरे सीने में जोर का खंजर भोंक दिया हो. एकाएक वह दृश्य मेरी आंखों के सामने नाच गया.
उसे इग्नोर कर मैं झटके से आगे बढ़ने ही लगी कि मेरा रास्ता रोक वह खड़ा हो गया और
बोला, ‘‘अरे सुमन. मैं मोहन. पहचाना नहीं क्या मुझे?’’
‘‘हटो मेरे सामने से,’’ बोलते हुए मेरे होंठ कंपकंपाने लगे.
‘‘अरे, मैं तुम्हारा दोस्त हूं और कहती हो कि हटो मेरे सामने से. चलो न कहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’
उस की बात पर मैं ने दूसरी तरफ मुंह
फेर लिया.
‘‘ओह, शायद अभी भी गुस्सा हो मुझ से. वैसे तुम्हारे पति भी साथ आए हैं,’’ मोहन रहस्यमय तरीके से मुसकराया, तो मेरा दिल धक रह गया कि इस नीच इंसान का क्या भरोसा कि देवेन के सामने ही उलटासीधा बकने लगे. इसलिए मैं जल्द से जल्द मौल से बाहर निकल जाना चाहती थी.
‘‘लेकिन वह तो मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. आखिर क्या चाहता है अब यह. क्यों मेरे सूख चुके जख्मों को कुरेदकुरेद कर फिर से लहूलुहान कर देना चाहता है? क्यों मेरी बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ने पर तुला है? देवेन को अगर यह बात पता लग गई कि कभी मेरा बलात्कार हुआ था, तो क्या वे मुझे माफ करेंगे? निकाल नहीं देंगे अपनी जिंदगी से? मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर मोहन से विनती कि मुझे जाने दो प्लीज. लेकिन वह तो बदमीजी पर उतर आया और कहने लगा कि मैं ने पाप किया था उस का दिल दुखा कर और उसी की मुझे सजा मिली. मेरी वजह से वह अपने घर में नकारा साबित हुआ. मेरी वजह से उसे चूडि़यों की दुकान पर बैठना पड़ा, जो वह कभी नहीं चाहता था. अपनी हर नाकामी के लिए वह मुझे ही दोषी ठहरा रहा था.
‘‘तुम इसी लायक थे,’’ मैं ने भी गुस्से से बोल दिया, तो वह तिलमिला उठा और कहने लगा कि उस ने मेरा बलात्कार कर के बहुत सही किया. उसी लायक हूं मैं. बड़ी चली थी आईएएस बनने. बन गई आईएएस? वह बलात्कार का दोषी भी मुझे ही ठहरा रहा था, बल्कि उस का कहना था कि दुनिया में जितनी भी लड़कियों का बलात्कार होता है उस के लिए वही दोषी होती हैं. वही मर्दों को बलात्कार के लिए उकसाती हैं. वह देवेन से सारी सचाई बताने की धमकी देने लगा, तो मैं डर गई कि कहीं सच में यह देवेन से जा कर कुछ बोल न दे. एक तो उस ने मेरे साथ गलत किया और ऊपर से मुझे ही धमका रहा था.
‘‘कैसी सचाई? क्या बताने वाले हो तुम मुझे?’’ पीछे से देवेन की आवाज सुन मैं सन्न रह गई कि कहीं उन्होंने हमारी बातें सुन तो नहीं लीं.
‘‘और क्या कह रहे थे तुम अभी कि दुनिया में जितने भी बलात्कार होते हैं उस के लिए महिलाएं ही दोषी होती हैं. वही मर्दों को बलात्कार के लिए उकसाती हैं.’’
देवेन की बात पर पहले तो वह सकपका गया, फिर बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोलने ही जा रहा था कि देवेन बीच में ही बोल पड़े, ‘‘लगता है तुम ने सही से पढ़ाईलिखाई नहीं की, अगर की होती, तो पता होता कि रेप केस में औरत नहीं, मर्द सलाखों के पीछे होते हैं,’’ बोल कर देवेन ने मोहन को ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा तो वह सहम उठा.
कहीं देवेन ने कुछ सुन तो नहीं लिया. डर के मारे मैं कांप उठी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं मोहन कुछ बोल न दे इसलिए देवेन का हाथ पकड़ते हुए मैं बाहर निकल आई. लेकिन देवेन के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था.
‘‘अफसोस होता है कहते हुए कि बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिस में अपराधी तो पुरुष होता है, लेकिन अपराधबोध का दंश उम्र भर महिलाओं को झेलना पड़ता है. आखिर क्यों? समाज में बदनामी के डर से महिलाएं चुप लगा जाती हैं. क्यों नहीं आवाज उठातीं ताकि बलात्कारियों को उन की करनी की सजा मिल सके? क्यों उन्हें आजाद घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है और महिलाएं खुद घुटघुट कर जीने को मजबूर होती हैं? बोलो सुमन, जवाब दो?’’
मेरा तो पूरा शरीर थर्रा उठा कि देवेन को आज क्या हो गया.
‘‘तुम्हें क्या लगता है मुझे कुछ नहीं पता? सब पता है मुझे. शादी के 1 दिन पहले ही तुम्हारे पापा ने मुझे सबकुछ बता दिया था. लेकिन दुख होता है कि तुम ने मुझे अपना नहीं समझा. क्या यही भरोसा था तुम्हारा मुझ पर? हम सुखदुख के साथी हैं सुमन,’’ कह मेरा हाथ अपने हाथों के बीच दबाते हुए देवेन भावुक हो उठे, ‘‘शादी के वक्त हम ने वादा किया था एकदूसरे से कि हम कभी एकदूसरे से कुछ नहीं छिपाएंगे. फिर भी तुम ने मुझे कुछ नहीं बताया और खुद ही अकेली इस दर्द से लड़ती रही क्योंकि तुम्हें लगा मैं तुम्हें छोड़ दूंगा या तुम्हें ही दोषी मानूंगा. ऐसा कैसे सोच लिया तुम ने सुमन?
‘‘पवित्रता और निष्ठा तो मन में होती है, जननांगों में नहीं, इसलिए यह मत सोचो कि वह तुम्हारा काला अतीत था,’’ मुझे अपनी बांहों में भरते हुए देवेन बोले तो मैं उन के सीने से लग सिसका पड़ी. आज मेरे मन का सारा गुब्बार आंखों के रास्ते निकल गया. मेरे मन में जो एक डर था कि कहीं किसी रोज देवेन को मेरे काले अतीत का पता चल गया तो क्या होगा, वह डर आज काफूर हो चुका था.
‘‘लेकिन अब मैं उस मोहन को उस की करनी की सजा दिलवाना चाहती हूं,’’ मैं ने कहा.
‘‘हां, बिलकुल और इस में मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ देवेन बोले.
‘‘लेकिन कैसे क्योंकि मेरे पास उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं है?’’
मेरी बात पर देवेन हंस पड़े और बोले कि है न, क्यों नहीं है. यह सुनो. इस से ज्यादा
और क्या सुबूत चाहिए तुम्हें?’’ कह कर देवेन ने अपना मोबाइल औन कर दिया.
मोहन ने खुद अपने मुंह से अपना सारा गुनाह कुबुल किया था. उस ने जोजो मेरे साथ किया वह सब बक चुका था और सारी बातें देवेन के मोबाइल में रिकौर्ड हो चुकी थीं. जब देवेन ने मोहन और मुझे बात करते देखा, तो छिप कर वहीं खड़े हो गए और हमारी सारी बातें अपने फोन में रिकौर्ड कर लीं.
देवेन का हाथ अपने हाथों में लेते हुए मैं ने एक गहरी सांस ली और खुद से ही कहा कि मुझे अब न तो समाज की परवाह है और न ही लोगों की कि वे क्या सोचेंगे क्योंकि अब मेरा पति मेरे साथ खड़ा है. यू वेट ऐंड वाच अब तुम अपना काला अतीत याद कर के रोओगे मोहन.
एक दिन उस ने ही चाय के लिए कहा. उसी के चैंबर में बैठे थे हम. मुझे बात बनती सी नजर आई. कई बातें हुईं पर मेरे मतलब की कोई नहीं हुई.
आगे चल कर चायकौफी का दौर जब बढ़ गया तो वैभव ने कहा कि तुम्हारी बात सिर्फ चाय तक ही है या आगे भी बढ़ी? मैं ने एक टेढ़ी सी स्माइल दी और खुद को यकीन दिलाया कि मैं उसे कुछ ज्यादा ही पसंद हूं. कभी कोई कहता कि सिगरेटशराब पीती है, तो कोई कहता ढेरों मर्द हैं इस की मुट्ठी में, तो कोई कहता कि देखो साड़ी कहां बांधती है? सैंसर बोर्ड इसे नहीं देखता क्या? जवाब आता कि इसे जीएम देखता है न.
ऐसी बातें मुझे उत्तेजित कर जातीं. कब वह आएगी मेरे हाथ? और तो और अब तो मुझे अपनी बीवी के सारे दोष जिन्हें मैं भूल चुका था या अपना चुका था, शूल की भांति चुभने लगे. उसे देखता तो लगता कैक्टस पर पांव आ पड़ा है. क्यों कभीकभी लगता है जिसे हम सुकून समझे जा रहे थे वह तो हम खुद को भुलावा दे रहे थे. कभी अचानक सुकून खुद कीमत बन जाता है सुख की… हर चीज की एक कीमत जरूर होती है.
ये बीवियां ऐसी क्यों होती हैं? कितना फर्क है दोनों में? वह कितनी सख्त दिल और संपदा कितनी नर्म दिल. वह किसी शिकारी परिंदे सी चौकस और चौकन्नी… और संपदा नर्मनाजुक प्यारी मैना सी. कोई खबर रखने की कोशिश नहीं करती कि कहां क्या हो रहा है, कोई उस के बारे में क्या कह रहा है.
संपदा की फिगर कमाल की है. और पत्नी को लाख कहता हूं ऐक्सरसाइज करने को, पर नहीं. कैसी लगेगी वह नीची साड़ी में? उस की कमर तोबा? शरीर में कोई कर्व ही नहीं है, परंतु इस के बाद भी घर में मेरा व्यवहार ठीक रहा. कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया.
एक दिन संपदा ने पूछ ही लिया परिवार के बारे में. मैं ने बताया बीवी के अलावा 1 बेटा और 1 बेटी है. तब उस ने भी बताया कि उस की भी 1 बिटिया है, टिनी नाम है. पति के बारे में उस ने न तो कुछ बताया और न ही मैं ने कुछ पूछा. पूछ कर मूड नहीं खराब करना चाहता था. हो सकता है कह देती कि मैं आज जो कुछ हूं उन्हीं की वजह से हूं या बहुत प्यार करते हैं मुझे. उन के अलावा मैं कुछ सोच भी नहीं सकती. अमूमन बीवियां या पति भी यही कहते हैं. हां, अगर वह ऐसा कह देती तो यह जो थोड़ीबहुत नजदीकी बढ़ रही है वह भी खत्म हो जाती.
लेकिन उस से बात करने के बाद, उसे जानने के बाद एक बात हुई थी. वह मुझे कहीं से भी वैसी नहीं लग रही थी जैसा सब कहते थे. पहली बार लगा संपदा मेरे लिए जिस्म के अलावा कुछ और भी है. क्या मेरी राय बदल रही थी?
औफिस की ओर से न्यू ईयर पार्टी रखी गई थी. संपदा गजब की सुंदर लग रही थी. लो कट ब्लाउज के साथ गुलाबी शिफौन की साड़ी पहनी थी. उस ने जिन भी पी थी शायद. मेरी सोच फिर डगमगा सी गई. अजीब सी खुशी भी हो रही थी. एक उत्तेजना भी थी. यह तो बहुत बाद में जाना कि डांस करने, हंसने, पुरुषों से हाथ मिलाने से औरत बदचलन नहीं हो जाती, अगली सुबह संपदा फिर वैसी की वैसी. पहले जैसी थोड़ी सोबर, थोड़ी चंचल.
चाय पीते हुए मैं ने उस से कहा, ‘‘कल तुम बहुत खूबसूरत लग रही थीं. मैं ने पहली बार किसी औरत को इतना खुल कर हंसते व डांस करते देखा था. कुछ खास है तुम में.’’
उस ने आंखें फैलाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें डांस करते हुए ग्रेसफुल लगी? वैरी स्ट्रेज, बट दिस इज ए नाइस कौंप्लिमैंट. मैं तो उम्मीद कर रही थी कि आज सुनने को मिलेगा जानेमन कल बहुत मस्त लग रही थी या क्या चीज है यार यह औरत भी?’’
उस की हंसी नहीं रुक रही थी. अब मैं कैसे कहूं कि मैं भी उन्हीं मर्दों में से एक था. चीज तो मैं भी कहता था उसे.
अगले हफ्ते उस ने टिनी के जन्मदिन पर बुलाया था.
‘‘सुनो, मैं ने सिर्फ तुम्हें ही बुलाया है. मेरा मतलब औफिस में से.’’
मेरी उत्सुकता चौकन्नी हो गई थी. उस की चमकती आंखों में क्या था, मेरे प्रति भरोसा या कुछ और? क्यों सिर्फ मुझे ही बुलाया है? उसे ले कर वैभव से झगड़ा भी कर लिया था.
‘‘क्यों, पटा लिया तितली को?’’ कितने गंदे तरीके से कहा था उस ने.
‘‘किस की और क्या बात कर रहे हो?’’
‘‘उस की, जिस से आजकल बड़ी छन रही है. वही जिस ने सिर्फ तुम्हें दावत दी है. गजब की चीज है न.’’
बस बात बढ़ी और अच्छेखासे झगड़े में बदल गई. मैं यह सब नहीं चाहता था न ही कभी मेरे साथ यह सब हुआ था. खुद पर ही शर्म आ रही थी मुझे. मैं सोचता रहा, हैरान होता रहा कि ये सब क्या हो गया? क्यों बुरा लगा मुझे? खैर, इन सारी बातों के बावजूद मैं गया था. उस ने बताया कि इस साल टिनी 15 साल की हो जाएगी. मेरी आंखों के सामने मेरी बेटी का चेहरा आ गया. वह भी तो इसी उम्र की है. मैं ने देखा टिनी की दोस्तों के अलावा मैं ही आमंत्रित था. अच्छा भी लगा और अजीब भी. थोड़ी देर बाद पूछा था मैं ने, ‘‘टिनी के पापा कहां हैं?’’
‘‘हम अलग हो चुके हैं. उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. मैं अपनी बिटिया के साथ रहती हूं.’’
कायदे से, अपनी मानसिकता के हिसाब से तो मुझे यह सोचना चाहिए था कि तलाकशुदा औरत और ऐसे रंगढंग? कहीं कोई दुखतकलीफ नजर नहीं आती. ऐसे रहा जाता है भला? जैसे कि तलाकशुदा या विधवा होना कोई कुसूर हो जाता है और ऐसी औरतों को रोतेबिसूरते ही रहना चाहिए. लेकिन यह जान कर पहली बात मेरे मन में आई थी कि तभी इतना आत्मविश्वास है. आज के वक्त में अकेले रह कर अपनी बच्ची की इतनी सही परवरिश करना वाकई सराहनीय बात है. वह मुझे और ज्यादा अच्छी लगने लगी, बल्कि इज्जत करने लगा मैं उस की. एक और बात आई मन में कि ऐसी खूबसूरत और अक्लमंद बीवी को छोड़ने की क्या वजह हो सकती है?
अब मैं उस के अंदर की संपदा तलाशने में लग गया. उस के जिस्म का आकर्षण खत्म तो नहीं हुआ था, पर मैं उस के मन से भी जुड़ने लगा था. मेरी आंखों की भूख, मेरे जिस्म की उत्तेजना पहले जैसी नहीं रही. हम काफी करीब आते गए थे. मैं कभीकभी उस के घर भी जाने लगा था. उस ने भी आना चाहा था पर मैं टालता रहा. अब उसे ले कर मैं पहले की तरह नहीं सोचता था. मैं उसे समझना चाहता था.
एक शाम टिनी का फोन मोबाइल पर आया, ‘‘अंकल, मां को बुखार है, आप आ सकते हैं क्या?’’
कई दिन लग गए थे उसे ठीक होने में. मैं ने उस की खूब देखभाल की थी और वह मना भी नहीं करती थी. हम दोनों को ही अच्छा लग रहा था. इस दौरान मैं ने कितनी बार उसे छुआ. दवा पिलाई, सहारा दे कर उठायाबैठाया पर मन बिलकुल शांत रहा.