एक अधूरा लमहा- भाग 1: क्या पृथक और संपदा के रास्ते अलग हो गए?

जिंदगी ट्रेन के सफर की तरह है, जिस में न जाने कितने मुसाफिर मिलते हैं और फिर अपना स्टेशन आते ही उतर जाते हैं. बस हमारी यादों में उन का आना और जाना रहता है, उन का चेहरा नहीं. लेकिन कोई सहयात्री ऐसा भी होता है, जो अपने गंतव्य पर उतर तो जाता है, पर हम उस का चेहरा, उस की हर याद अपने मन में संजो लेते हैं और अपने गंतव्य की तरफ बढ़ते रहते हैं. वह साथ न हो कर भी साथ रहता है.

ऐसा ही एक हमराही मुझे भी मिला. उस का नाम है- संपदा. कल रात की फ्लाइट से न्यूयौर्क जा रही है. पता नहीं अब कब मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं. मैं नहीं चाहता कि वह जाए. मुझे पूरा यकीन है कि वह भी जाना नहीं चाहती. लेकिन अपनी बेटी की वजह से जाना ही है उसे. संपदा ने कहा था कि पृथक, अकेले अभिभावक की यही समस्या होती है. फिर टिनी तो मेरी इकलौती संतान है. हम एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते. हां, एक वक्त के बाद वह अकेले रहना सीख जाएगी. इधर वह कुछ ज्यादा ही असुरक्षित महसूस करने लगी है. पिछले 2-3 सालों में उस में बहुत बदलाव आया है. यह बदलाव उम्र का भी है. फिर भी मैं यह नहीं चाहती कि वह कुछ ऐसा सोचे या समझे, जो हम तीनों के लिए तकलीफदेह हो.

मैं उसे देखता रहा. पिछले 2 सालों से उस में बदलाव आया है यानी जब से मैं संपदा से मिला हूं. हो सकता है कि उस की बात का मतलब यह न हो, पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा, दुख हुआ.

संपदा ने मेरा चेहरा पढ़ लिया, ‘‘पृथक, तुम्हें छोड़ कर जाने से मैं बिलकुल अकेली हो जाऊंगी, इस का दुख मुझे भी है पर अब मेरे लिए टिनी का भविष्य ज्यादा जरूरी है.’’

‘‘टिनी होस्टल में भी रह सकती है… तुम्हारा जाना जरूरी है?’’ मैं ने संपदा का हाथ पकड़ते हुए कहा था. उस की भी आंखें देख कर मुझे खुद पर गुस्सा आ गया था. मनुष्य का मन चुंबक के समान है और वह अपनी इच्छित वस्तु को अपनी ओर आकर्षित कर उसे प्राप्त कर लेना चाहता है. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों.

मैं कितना स्वार्थी हो गया हूं. वैसे भी मैं उसे किस हक से रोक सकता हूं? सब कुछ होते हुए भी वह मेरी क्या है? आज समझ में आ रहा है. हमदोनों की एकदूसरे की जिंदगी में क्या जगह है? दोनों के रिश्ते का दुनिया की नजर में कोई नाम भी नहीं है. समाज को भी रिश्तों में खून का रंग ज्यादा भाता है. अनाम रिश्तों में प्रेम के छींटे समाज नहीं देख पाता. अगर मेरी बेटी को जाना होता पढ़ने, तो मैं क्या करता? मैं उसे आसपास के शहर में भी नहीं भेज पाता.

मुझे चुप देख कर संपदा ने नर्म स्वर में कहा, ‘‘हमें अच्छे और प्यारे दोस्तों की तरह अलग होना चाहिए. इन 2 सालों में तुम ने बहुत कुछ किया है मेरे लिए… तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता है. तुम समझ सकते हो मुझे कैसा लग रहा होगा… तुम भी ऐसे उदास हो जाओगे…’’ उस के चेहरे पर उदासी छा गई.

कितनी जल्दी रंग बदलती है उस के चेहरे की धूप… रंग ही बदलती है, साथ नहीं छोड़ती. अंधेरे को नहीं आने देती अपनी जगह.

मैं उसे उदास नहीं देख पाता. अत: मुसकराते हुए कहा, ‘‘दरअसल, बहुत प्यार करता हूं न तुम्हें… इसीलिए पजैसिव हो गया हूं और कुछ नहीं. तुम ने बिलकुल ठीक फैसला किया है. मैं तुम्हें जाने से रोक नहीं रहा. पर इस फैसले से खुश भी कैसे हो सकता हूं,’’ यह कह कर मैं एकदम से उठ कर अपने चैंबर में आ गया. अपने इस बरताव पर मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आया कि मुझे उसे दुखी नहीं करना चाहिए.

यह वही संपदा है, जिस ने अपनी प्रमोशन पिछली बार सिर्फ इसलिए छोड़ दी थी कि उसे मुझे से दूर दूसरे शहर में जाना पड़ रहा था और वह मुझे छोड़ कर नहीं जाना चाहती. तब मैं उसे जाने के लिए कहता रहा था. तब उस ने कहा था कि तुम्हें कहां पाऊंगी वहां?

जब मैं अपनी कंपनी की इस ब्रांच में आया था अच्छाभला था. अपने काम और परिवार में मस्त. घर में सारी सुखसुविधाएं, बीवी और 2 बच्चों का परिवार, जो अमूमन सुखी कहलाता है… सुखी ही था. मेरी कसबाई तौरतरीकों वाली बीवी, जो शादी के बाद से ही खुद को बदलने में लगी है, पता नहीं यह प्रक्रिया कब खत्म होगी? शायद कभी नहीं. बच्चे हर लिहाज से एक उच्च अधिकारी के बच्चे दिखते हैं. मानसिकता तो मेरी भी पूर्वाग्रहों से मुक्त न थी.

एक दिन आपस में लंच टाइम में बैठे न जाने क्यों एक लैक्चर सा दे दिया. स्त्रीपुरुष के विकास की चर्चा सुन कर मुझ से संपदा ने जो कहा उस ने मुझे काफी हद तक बदल दिया था.

उस ने कहा था, ‘‘विकास के नियम स्त्रीपुरुष दोनों के लिए अलग नहीं हैं. किंतु पुरुष अविकसित पत्नी के होते हुए भी अपना विकास कर लेता है. लेकिन अविकसित पति के संग रह कर स्त्री अपना विकास असंभव पाती है, क्योंकि वह उस की प्रतिभा को पहचान नहीं पाता और व्यर्थ की रोकटोक लगाता है, जिस से स्त्री का विकास बाधित होता है. कम विकसित व्यक्तित्व वाली स्त्री जब अधिक विकसित परिवार में जाती है, तो वह अनुकूल विवाह है यह व्यावहारिक है, क्योंकि वहां उस के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध नहीं होता. लेकिन ऐसा परिवार जो उस के व्यक्तित्व की अपेक्षा कम विकसित है, उस परिवेश में उस का व्यक्तिगत विकास अधिक संभव नहीं होता तो यह अनुकूल विवाह नहीं है. वहां स्त्री का दम घुट जाएगा. विकास से मेरा तात्पर्य बौद्धिक, मानसिक, आत्मिक विकास से है. यह आर्थिक विकास नहीं है. ज्यादातर आर्थिक समृद्धि के साथ आत्मिक पतन आता है. स्त्री शक्ति है. वह सृष्टि है, यदि उसे संचालित करने वाला व्यक्ति योग्य है. वह विनाश है, यदि उसे संचालित करने वाला व्यक्ति अयोग्य है. इसीलिए जो मनुष्य स्त्री से भय खाता है वह अयोग्य है या कायर और दोनों ही व्यक्ति पूर्ण नहीं हैं…’’

मैं उस का मुंह देखता रह गया. मैं ने तो बड़े जोर से उसे इंप्रैस करने के लिए बोलना शुरू किया था पर उस के अकाट्य तर्कसंगत सत्य ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था. वह बिलकुल ठीक थी. कितनी अलग लगी थी संपदा ऐसी बातें करते हुए? पहले मैं क्याक्या सोचता था उस के बारे में.

इस औफिस में पहले दिन संपदा को देखा तो आंखों में चमक आ गई थी. चलो रौनक तो है. तनमन दोनों की सेहत ठीक रहेगी. पहले दिन तो उस ने देखा तक नहीं. बुझ सा गया मैं. फिर ऐसी भी क्या जल्दी है सोच कर तसल्ली दी खुद को. उस के अगले दिन फौर्मल इंट्रोडक्शन के बीच हाथ मिलाते हुए बड़ी प्यारी मुसकान आई थी उस के होंठों पर. देखता रह गया मैं. कुल मिला कर इस नतीजे पर पहुंचा कि मस्ती करने के लिए बढि़या चीज है. औफिस में खासकर मर्दों में भी उस के लिए कोई बहुत अच्छी राय नहीं थी. वह उन्हें झटक जो देती थी अपने माथे पर आए हुए बालों की तरह. खैर, कभीकभी की हायहैलो गुड मौर्निंग में बदली.

भैया: 4 बहनों को मिला जब 1 भाई

कीर्ति ने निशा का चेहरा उतरा हुआ देखा और समझ गई कि अब फिर निशा कुछ दिनों तक यों ही गुमसुम रहने वाली है. ऐसा अकसर होता है. कीर्ति और निशा दोनों का मैडिकल कालेज में दाखिला एक ही दिन हुआ था और संयोग से होस्टल में भी दोनों को एक ही कमरा मिला. धीरेधीरे दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई.

कीर्ति बरेली से आई थी और निशा गोरखपुर से. कीर्ति के पिता बैंक में अधिकारी थे और निशा के पिता महाविद्यालय में प्राचार्य.

गंभीर स्वभाव की कीर्ति को निशा का हंसमुख और सब की मदद करने वाला स्वभाव बहुत अच्छा लगा था. लेकिन कीर्ति को निशा की एक ही बात समझ में नहीं आती थी कि कभीकभी वह एकदम ही उदास हो जाती और 2-3 दिन तक किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी.

आज रक्षाबंधन की छुट्टी थी. कुछ लड़कियां घर गई थीं और बाकी होस्टल में ही थीं क्योंकि टर्मिनल परीक्षाएं सिर पर थीं. कीर्ति ने निश्चय किया कि आज वह निशा से जरूर पूछेगी. होस्टल में घर की याद तो सभी को आती है पर इतनी उदासी…

नाश्ता करने के बाद कीर्ति ने निशा से कहा, ‘‘चल यार, बड़ी बोरियत हो रही है घर की याद भी बहुत आ रही है. वहां तो सब त्योहार मना रहे होंगे और यहां हमें पता नहीं कि उन्हें हमारी राखी भी मिली होगी या नहीं.’’

निशा ने भी प्रतिवाद नहीं किया. दोनों औटो से पार्क पहुंचीं. वहां का माहौल बहुत खुशनुमा था. कई परिवार त्योहार मनाने के बाद शायद पिकनिक मनाने वहां पहुंचे थे. दोनों एक कोने में नीम के पेड़ के नीचे पड़ी खाली बैंच पर बैठ गईं. निशा चुपचाप खेलते हुए बच्चों को देख रही थी. कीर्ति ने पूछा, ‘‘निशा, अब हम और तुम अच्छे दोस्त बन गए हैं. मुझे अपनी बहन जैसी ही समझो. मैं ने कई बार नोट किया कि तुम कभीकभी बहुत ज्यादा उदास हो जाती हो. आखिर बात क्या है?’’

निशा बोली, ‘‘कुछ खास बात नहीं. बस, घर की याद आ रही थी. आज हलके बादलों ने काली घटाओं का रूप ले लिया था और जब भी ऐसा माहौल बनता है तो मुझ पर बहुत उदासी छा जाती है.’’

‘‘इस के पीछे ऐसी क्या बात है?’’ कीर्ति ने पूछा.

‘‘बस, मेरे घर की कहानी बहुत ही अनोखी और उदास है,’’ निशा कहने लगी, ‘‘सुनोगी तुम?’’

कीर्ति बोली, ‘‘तुम सुनाओगी तो जरूरी सुनूंगी.’’

‘‘हम 4 बहनें हैं. हमारा कोई भाई नहीं था. बड़ी दीदी रेखा स्कूल में टीचर हैं. दूसरी सुमेधा, जो एलआईसी में काम कर रही हैं. तीसरी मैं और सब से छोटी बल्ली. मां और पापा को बेटे की बहुत इच्छा थी इसीलिए हम एक के बाद एक 4 बहनें हो गईं. मां व पापा को बेटे की चाहत के अलावा दादी को पोते को खिलाने की इच्छा हरदम सताती रहती थी.

‘‘रक्षाबंधन आने वाला होता. उस के कई दिन पहले से घर में एक अजीब सी उदासी पसर जाती थी. अपने मामा, चाचा और बूआ के बेटों को हम बहनें पहले ही राखियां भेज देती थीं. मां ऐसे में बहुत असहाय हो जातीं, जो हम से देखा नहीं जाता था पर दादी की कुढ़न उन के व्यंग्यबाणों से बाहर निकलती. पापा तो स्कूल से आ कर ट्यूशन के बच्चों से घिरे रहते. पढ़ाईलिखाई के इसी माहौल में हम लोग पढ़ने में अच्छे निकले.

‘‘एक बार राखी के दिन हमेशा की तरह सुबह पापा ने दरवाजा खोला और एकाएक उन के मुंह से चीख निकल गई. मम्मी किचन छोड़ कर बाहर की ओर दौड़ीं और वहां का नजारा देख कर वे भी हैरान रह गईं. दरवाजे के पास एक छोटा सा बच्चा लेटा हुआ हाथपैर मार रहा था.

‘‘‘अरे, यह कहां से आया?’ पापा बोले, ‘शायद कोई रख गया है,’ मम्मी अभी भी हैरान थीं.

‘‘इतनी देर में दादी और हम सब भी वहां पहुंच गए. थोड़ी ही देर में यह बात जंगल में आग की तरह पूरे महल्ले में फैल गई कि गुप्ताजी के दरवाजे पर कोई बच्चा रख गया है. बारिश के बावजूद बहुत से लोग इकट्ठा हो गए.

‘‘‘इसे अनाथाश्रम में दे दो,’ भीड़ से आवाज आई. ‘अरे, थोड़ी देर इंतजार करना चाहिए, शायद कोई इसे लेने आ जाए,’ नीरा आंटी बोलीं.

‘‘किसी ने कहा, ‘पुलिस में रिपोर्ट करानी चाहिए.’

‘‘धीरेधीरे सब लोग जाने लगे. त्योहार भी मनाना था.

‘‘‘वैसे आप की मरजी प्रो. साहब, पर मेरी राय में दोपहर तक इंतजार के बाद आप को इसे बालवाड़ी अनाथ आश्रम को सौंप देना चाहिए,’ कालोनी के सैके्रटरी ने कहा.

‘‘‘तुम चलो भी…उन के यहां का मामला है, वे चाहे जो भी करें,’ सैक्रेटरी की बीवी ने उन्हें कोहनी मारी.

‘‘‘कुछ भी हो मिसेज गुप्ता…रक्षाबंधन के दिन बेटा घर आया है…कुछ भी करने से पहले सोच लेना,’ जातेजाते भीड़ में से कोई बोला.

‘‘इस हैरानीपरेशानी में दोपहर हो गई. खाना भी नहीं बना. बारिश थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. लगता था जैसे किसी मजबूर के आंसू ही आसमान से बरस रहे हों. जाने किस मजबूरी में अपने कलेजे के टुकड़े को उस ने अपने से दूर किया होगा.

‘‘इधर लोग गए और उधर दादी और उन की ममता दोनों ही जैसे सोते से जागीं. उन्होंने उस नन्ही सी जान को गोद में ले कर पुचकारना और खिलाना शुरू कर दिया. उसे गरम पानी से नहलाया और जाने कहां से ढूंढ़ कर उसे हमारे पुराने धुले रखे कपड़े पहनाए. कटोरी में दूध ले कर उसे चम्मच से पिलाने लगीं.

‘‘पापा ने नहाधो कर जब बूआ की राखी हम लोगों से बंधवाई तब दादी बोलीं, ‘अब इस छोटे से भैया राजा को भी तुम लोग राखी बांध दो. रक्षाबंधन के दिन आया है. मैं तो कहती हूं तुम लोग इसे अपने पास ही रख लो.’

‘‘मम्मी को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ कि कहां छुआछूत को मानने वाली उन की रूढि़वादी सास और कहां न जाने किस जात का बच्चा है फिर भी उसे ऐसे सीने से चिपकाए थीं कि मानो उन का सगा पोता हो. मम्मीपापा पसोपेश में थे पर दादी की इस बात पर कुछ नहीं बोले.

‘‘दोपहर बाद भी लोग आते रहे, जाते रहे और तरहतरह की नसीहतें देते रहे पर दादी इन सब बातों से बेखबर उस की नैपी बदलने और उसे दूध पिलाने की कोशिश में लगी रहीं.

‘‘अगली सुबह सब चिंतित थे कि क्या होगा पर मम्मी के चेहरे पर दृढ़ निश्चय था.

‘‘‘मैं अनाथ आश्रम में जा कर बात करता हूं,’ पापा  के यह कहते ही मम्मी बोल उठीं, ‘नहीं, नन्हा यहीं रहेगा,’ पापा ने भी प्रतिवाद नहीं किया और दादी तो खुश थीं ही.

‘‘बस, उसी दिन से भैया हमारे घर और जिंदगी में आ गया. मैं भैया के प्रति शुरू से ही बहुत तटस्थ थी, जबकि दोनों बड़ी बहनें थोड़ी नाखुश थीं. उन की बात भी कुछ हद तक सही थी. उन का कहना था कि मांपापा के अच्छे व्यवहार और इस घर की अच्छी साख का किसी ने फायदा उठाया है और वह यह भी जानता है कि इस घर को एक बेटे की तीव्र चाह थी.

‘‘खैर, उस गोलमटोल और सुंदर सी जान ने धीरेधीरे सब को अपना बना लिया.

‘‘मां और दादी जतन से उसे पालने लगीं. वह बड़ा तो हो रहा था पर साल भर का हो जाने पर भी जब उस ने चलना तो दूर, बैठना और गर्दन उठाना भी नहीं सीखा तब सब को चिंता हुई. फिर उसे बच्चों के डाक्टर को दिखाया गया.

‘‘डाक्टर ने कई टैस्ट कराए और तब पता चला कि उसे सेरेब्रल पाल्सी, यानी एक ऐसी बीमारी है जिस में दिमाग का शरीर पर कंट्रोल नहीं होता है.

‘‘उस दिन जैसे फिर एक बार हमारे घर पर बिजली गिरी. मां, पापा, दादी के साथ हम सभी बहनों के चेहरे भी उतर गए. पापा के अभिन्न मित्र ने फिर समझाया कि उसे किसी अनाथ आश्रम को सौंप दें पर अब यह असंभव था क्योंकि पापा को थोड़ा समाज के उपहास का डर था और मां, दादी को उस से बहुत अधिक मोह.

‘‘वैसे भी यह कहां ठीक होता कि अच्छा है तो अपना और खराब है तो गैर. इसलिए भैया घर में ही है, अब करीब 6 साल का हो गया है पर लेटा ही रहता है. मां को उस का सब काम बिस्तर पर ही करना पड़ता है. दादी तो अब रही नहीं, कुछ समय पहले ही उन का देहांत हुआ.

‘‘मां कभीकभी बहुत उदास हो जाती हैं. कहां तो भैया के आने से उन्हें आशा बंधी थी कि शायद बुढ़ापे में बेटा सेवा करेगा पर अब तो जब तक जीवन है, उन्हें ही भैया की सेवा करनी है.’’

निशा फफकफफक कर रो पड़ी. कीर्ति की आंखें भी नम थीं. थोड़ी देर खामोशी रही फिर कीर्ति ने उसे ढाढ़स बंधाया.

‘‘इसलिए मैं डाक्टर बन कर ऐसे बच्चों के लिए कुछ करना चाहती हूं, पर सच कहूं तो भैया का आगमन हमारे घर न हुआ होता तो आज मेरे मांबाप ज्यादा सुखी होते. जीवन की संध्या समाज सेवा में बिताते पर बेटे के मोह ने उन से वह सुख भी छीन लिया.’’

कीर्ति चुपचाप उस की बातें सुनती रही फिर उदास कदमों से दोनों होस्टल की ओर चल पड़ीं.

भागीरथ की गंगा: सालों बाद क्या पूरी हुई प्रेम कहानी

सुबह 6 बजे का अलार्म पूरी ईमानदारी से बज कर बंद हो गया. वह एक सपने या थकान पर कोई असर नहीं छोड़ पाया. ठंडी हवाएं चल रही थीं. पक्षी अपने भोजन की तलाश में निकल पड़े थे. तभी मां गंगा के कमरे में घुसते ही बोलीं, ‘‘इसे देखो, 7 बजने को हैं और अभी तक सो रही है. रात को तो बड़ीबड़ी बातें करती है कि मैं अलार्म लगा कर सोती हूं. कल जरूर जल्दी उठ जाऊंगी, मगर रोज सुबह इस की बातें यों ही धरी की धरी रह जाती हैं,’’ मां बड़बड़ाए जा रही थीं.

अचानक मां की नजर गंगा के सोए हुए चेहरे पर पड़ी तो वे सोचने लगीं कि यह भी क्या करे बेचारी, सुबह 9 बजे निकलने के बाद औफिस से आतेआते शाम के 8 बज जाते हैं. कितना काम करती है. फिर गंगा को जगाने

लगी, ‘‘गंगा ओ गंगा, उठ जा, औफिस नहीं जाना क्या तुझे?’’

‘‘हूं… सोने दो न मां,’’ गंगा ने करवट बदलते हुए कहा.

‘‘अरे गंगा बेटा, उठ न. देख 7 बज चुके हैं,’’ मां ने फिर से उठाने का प्रयास किया.

‘‘क्या 7 बज गए?’’ यह कहती हुई वह जल्दी से उठी और आश्चर्य से पूछने लगी, ‘‘उस ने तो सुबह 6 बजे का अलार्म लगाया था?’’

‘‘अब ये सब छोड़ और जा कर तैयार हो ले,’’ मां ने गंगा का बिस्तर समेटते हुए जवाब दिया.

गंगा को आज भी औफिस पहुंचने में देर हो गई थी. सब की नजरों से बच कर वह अपनी डैस्क पर जा पहुंची, मगर सुजाता ने उसे देख ही लिया. 5 मिनट बाद वह उस के सामने आ धमकी. कहानियों से भरे उस पत्र को उस की डैस्क पर पटक कर कहने लगी, ‘‘ये ले, इन 5 लैटर्स के स्कैच बनाने हैं आज तुझे लंच तक. मैम ने मुझ से कहा था कि मैं तुझे बता दूं.’’

‘‘पर यार आधे दिन में 5 स्कैच कैसे कंप्लीट कर पाऊंगी मैं?’’

‘‘यह तेरी सिरदर्दी है, इस में मैं क्या कर सकती हूं और वैसे भी मैम का हुक्म है. इस में मैं क्या कर सकती हूं,’’ कह कर सुजाता अपनी डैस्क पर चली गई.

बचपन से ही अपनी आंखों में पेंटर बनने का सपना लिए गंगा अब जा कर उसे पूरा कर पाई है. जब वह स्कूल में थी, तब कापियों के पीछे के पन्नों पर ड्राइंग किया करती थी, मगर अब एक मैगजीन में हिंदी कहानियों के चित्रांकन का काम करती है. अपनी चेयर को आगे खिसका कर वह आराम से बैठी और बुझे मन से एक पत्र उठा कर पढ़ने लगी. वह जब भी चित्रांकन करती, उस के पहले कहानी को अच्छी तरह पढ़ती थी ताकि पात्रों में जान डाल सके.

2 कहानियां पढ़ने में ही घड़ी ने 1 बजा दिया. जब उस की नजर घड़ी पर पड़ी, तो वह थोड़ी परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि अरे, लंच होने में सिर्फ 1 घंटा ही बचा है और अभी तक सिर्फ दो ही कहानियां पूरी हुई हैं. कैसे भी

3 तो पूरी कर ही लेगी और वह फिर से अपने काम पर लग गई. लंच भी हो गया.

उस ने 3 कहानियों का चित्रांकन कर दिया था. वह खाना खाती जा रही थी और सोचती जा रही थी कि बाकी दोनों भी 4 बजे तक पूरा कर देगी साथ ही उस के मन में यह डर था कि कहीं मैम पांचों स्कैच अभी न मांग लें. खाना खा कर गंगा मैम को देखने उन के कैबिन की ओर गई, परंतु उसे मैम नहीं दिखीं.

सुजाता से पूछने पर पता चला कि मैम किसी जरूरी काम से अपने घर गई हैं. इतना सुनते ही उस की जान में जान आई. लंच समाप्त हो गया. गंगा अपनी डैस्क पर जा पहुंची. अगली कहानी छोटी होने की वजह से उस ने जल्द ही निबटा दी. अब आखिरी कहानी बची है, यह सोचते हुए उस ने 5वां पत्र उठाया और पढ़ने लगी, ‘‘भागीरथ,’’ इतना पढ़ते ही उस के मन से काम का बोझ मानो गायब हो गया. वह अपने हाथ की उंगलियों के पोर पत्र पर लिखे नाम पर घुमाने लगी. उस की आंखें, बस नाम पर ही टिकी रहीं. देखते ही देखते वह अतीत में खोने लगी…

तब उस की उम्र 15 साल रही होगी. 9वीं कक्षा में थी. घर से स्कूल जाते हुए वह

इतना खुश हो कर जाती थी जैसे आसमान में उड़़ने जा रही हो. मम्मीपापा की इकलौती बेटी थी वह, सो मुरादें पूरी होना लाजिम था. पढ़ने में होशियार होने के साथसाथ वह क्लास की प्रतिनिधि भी थी. दूसरी ओर भागीरथ था, नाम के एकदम विपरीत, कभी न शांत रहने वाला लड़का. क्लास में शोर होने का कारण और मुख्य जड़ वह ही था. पढ़ाई तो वह नाममात्र का ही करता था. क्या यह वही भागीरथ है. दिल की धड़कन जोरों से धड़कने लगी. तुरंत उस ने पत्र को पलटा और ध्यान से हैंडराइटिंग को देखने लगी. बस, चंद सैकंड में ही उस ने पता लगा लिया कि यह उस की ही हैंडराइटिंग है. वह फिर से अतीत में लौट गई…

सालभर पहले तो गुस्सा आता था उसे, पर न जाने क्यों धीरेधीरे वह गुस्सा कम होने लगा था उस के प्रति. जब भी वह इंटरवल में खाना खा कर उस की कापी ले भागता था. कभी मन करता था कि 2 घूंसे मुंह पर टिका दे, मगर हर बार वह मन मार कर रह जाती थी.

रोज की तरह एक दिन इंटरवल में वह चित्र बना रही थी, तभी क्लास के बाहर से भागता हुआ भागीरथ उस के पास आया. वह समझ गई कि कोई न कोई शरारत कर के भाग आया है तभी उस के पीछे पारस, जो उस की ही क्लास में पढ़ता था, वह भी वहां आ पहुंचा. उस ने लकड़ी वाला डस्टर उठा कर भागीरथ की ओर फेंकना चाहा. उस ने वह डस्टर भागीरथ को निशाना बना कर फेंका. उस ने आव देखा न ताव, भागीरथ को बचाने के लिए अपनी कापी सीधे डस्टर की दिशा में फेंकी, जो डस्टर से जा टकराई. भागीरथ को बचा कर वह पारस को पीटने गई, पर वह भाग गया.

‘‘अरे, आज तूने मुझे बचाया, मुझे….’’ भागीरथ आश्चर्य से बोला.

‘‘हां, तो क्या हो गया?’’ उस ने जवाब दिया.

अचानक भागीरथ मुड़ा और अपने बैग से एक नया विज्ञान का बड़ा रजिस्टर ला कर उसे देते हुए बोला, ‘‘यह ले, आज से तू चित्र इस में बनाना, वैसे भी, मुझे बचाते हुए तेरी कापी बेचारी घायल हो गई है,’’ उस ने रजिस्टर लेने से मना कर दिया.

‘‘अरे ले ले, पहले भी तो मैं तुझे कई बार परेशान कर चुका हूं, पर अब से नहीं करूंगा.’’

जब उस ने ज्यादा जोर दिया तो गंगा ने रजिस्टर ले लिया, जो आज भी उस के पास रखा है.

ऐसे ही एक दिन जब उसे स्कूल में

बुखार आ गया था, तो भागीरथ तुरंत टीचर के पास गया और उसे घर ले जाने की अनुमति मांग लाया.

टीचर के हामी भरते ही वह उस का बैग उठा कर घर तक छोड़ने गया. वहीं

शाम को वह उस का हाल जानने उस के घर फिर चला आया. उस की इतनी परवाह करता है वह, यह देख कर उस का उस से लगाव बढ़ गया, साथ ही वह यह भी समझ गई कि कहीं न कहीं वह भी उसे पसंद करता था. पर पिछले 10 सालों में वह एक बार भी उस से नहीं मिला. दिल्ली जैसे बड़े शहर में न जाने कहां खो गया.

इस की एक कापी कर के मेरे कैबिन में भिजवाओ जल्दी सुजाता, अचला मैम की आवाज कानों में पड़ने से उस की तंद्रा टूटी.

मैम आ गईर् थीं. अपने कैबिन में जातेजाते मैम ने उसे देखा और पूछ बैठीं, ‘‘हां, वे पांचों कहानियों के स्कैचेज तैयार कर लिए तुम ने?’’

‘‘बस 1 बाकी है, मैम,’’ उस ने चेयर से उठते हुए जवाब दिया.

‘‘गुड, वह भी जल्दी से तैयार कर के मेरे पास भिजवा देना, ओके.’’

‘‘ओके मैम,’’ कह कर गंगा चेयर पर बैठी और फटाफट भागीरथ की लिखी कहानी पढ़ने लगी. 10 मिनट पढ़ने के बाद जल्दी से उस ने स्कैच बनाया और मैम को दे आई. औफिस का टाइम भी लगभग पूरा हो चला था. शाम 6 बजे औफिस से निकल कर गंगा बस का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में बस भी आ गई. वह बस में चढ़ी, इधरउधर नजर घुमाई तो देखा कि बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी, गिनेचुने लोग ही थे. कंडक्टर से टिकट ले कर वह खिड़की वाली सीट पर जा बैठी और बाहर की ओर दुकानों को निहारने लगी. अचानक बस अगले स्टौप पर रुकी, फिर चल पड़ी.

बस के इंजन के नीचे दबी कंडक्टर की आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘करोल बाग एक,’’ पीछे से किसी ने जवाब दिया.

‘‘लगभग 1 घंटा तो लगेगा,’’ सोच कर वह पर्स से मोबाइल और इयरफोन निकालने लगी कि अचानक कोई आ कर उस की बगल में बैठ गया. उसे देखने के लिए उस ने अपनी गरदन घुमाई, तो बस देखती ही रह गई.

वह खुशी से चिल्लाती हुई बोली, ‘‘भागीरथ तुम?’’

भागीरथ ने घबरा कर उस की ओर देखा, ‘‘अरे गंगा, इतने सालों बाद… कैसी हो?’’ और वह सवाल पर सवाल करने लगा.

‘‘मैं अच्छी हूं, तुम कैसे हो?’’ गंगा ने जवाब दे कर प्रश्न किया. उसे इतनी खुशी हो रही थी कि वह सोचने लगी कि अब यह बस

2 घंटे भी ले ले, तो भी कोई बात नहीं.

‘‘मैं ठीक हूं और बताओ? क्या करती हो आजकल?’’

‘‘वही जो स्कूल के इंटरवल में करती थी.’’

‘‘अच्छा, वह चित्रों की दुनिया?’’

‘‘हां, चित्रों की दुनिया ही मेरा सपना और मैं ने अपना वही सपना अब पूरा कर लिया है.’’

‘‘सपना, कौन सा? अच्छी स्कैचिंग

करने का.’’

‘‘हां, स्कैचिंग करतेकरते मैं 1 दिन अलंकार मैगजीन में इंटरव्यू दे आई थी. बस उन्होंने रख लिया मुझे.’’

‘‘बधाई हो, कोई तो सफल हुआ.’’

‘‘और तुम क्या करते हो? जौब लगी

या नहीं?’’

‘‘जौब तो नहीं लगी हां, एक प्राइवेट कंपनी में जाता हूं.’’

तभी भागीरथ को कुछ याद आया,

‘‘1 मिनट, क्या बताया तुम ने? अभी, कौन सी मैगजीन?’’

‘‘अलंकार मैगजीन,’’ गंगा ने बताया.

‘‘अरे, उस में तो…’’

गंगा उस की बात बीच में ही काटती हुई बोली, ‘‘कहानी भेजी थी और संयोग से वह कहानी मैं आज ही पढ़ कर आई हूं. स्कैच बनाने के साथसाथ.’’

‘‘पर तुम्हें कैसे पता चला कि वह

कहानी मैं ने ही भेजी थी? नाम तो कइयों के मिलते हैं.’’

‘‘सिंपल, तुम्हारी हैंडराइटिंग से.’’

‘‘तो क्या तुम्हें मेरी हैंडराइटिंग भी याद है अब तक?’’

‘‘हां भागीरथ.’’

‘‘ओह, फिर तो अब तुम पूरा दिन चित्र बनाती होगी और कोई डिस्टर्ब भी न करता होगा मेरी तरह, है न?’’

‘‘हां वह तो है.’’

‘‘देख ले सब जानता हूं न मैं?’’

‘‘लेकिन तुम एक बात नहीं जानते भागीरथ.’’

‘‘कौन सी बात?’’

बारबार मुझे स्कूल की बातें याद आ रही थी. मैं ने सोचा कि बता देती हूं क्या पता फिर कुदरत ऐसा मौका दे या न दे, यह सोच कर गंगा बोल पड़ी, ‘‘भागीरथ मैं तुम्हें पसंद

करती हूं.’’

‘‘क्या…’’ भागीरथ ऐसे चौंका जैसे उसे कुछ पता ही न हो.

‘‘तब से जब हम स्कूल में पढ़ते थे और मैं यह भी जानती हूं कि तुम भी मुझे पसंद करते हो, करते हो न?’’

भागीरथ ने शरमाते हुए हां में अपनी गरदन हिलाई. तभी बस एक स्टौप पर रुकी. खामोश हो कर वे एकदूसरे को देखने लगे.

‘‘तेरी शादी नहीं हुई अभी तक?’’ भागीरथ ने प्रश्न किया.

‘‘नहीं और तुम्हारी?’’

‘‘नहीं.’’

न जाने क्यों मेरा मन भर आया और मैं ने बोलना बंद कर दिया.

‘‘क्या हुआ गंगा तुम चुप क्यों हो गईं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ गंगा ने कहा.

‘‘बस चलती जा रही थी, लेकिन दोनों चुप बैठे थे. एकदूसरे के लिए,

स्कूल के समय की दोस्ती, जो एक परवाह थी एकदूसरे के लिए एक लंबा समय तय करती गई दोनों की जिंदगी में.’’

‘‘भागीरथ आज तुम इतने सालों बाद मिले हो… कितना इंतजार किया,’’ गंगा ने कहा.

इतना सुनते ही भागीरथ का गला भर आया, ‘‘हां,’’ इतना ही बोला और फिर दोनों एक ही झटके में चुप हो गए.

क्या कहें एकदूसरे से. कुछ देर खामोशी छाई रही. भागीरथ ने गंगा का हाथ पकड़ कर कस कर दबाया. कहा, ‘‘पता है प्यार का रंग कहीं न कहीं मौजूद रहता है हमेशा.’’

‘‘मतलब,’’ गंगा ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि हम साथ नहीं थे, फिर भी तुम्हारे चित्र और मेरे शब्द एकदूसरे से मिल ही गए,’’ भागीरथ ने प्यार से कहा.

‘‘मुझे पता नहीं था कि भागीरथ तुम इतने समझदार भी हो सकते हो.’’

तभी कंडक्टर की आवाज सुनाई दी, ‘‘पंजाबी बाग.’’

‘‘ओके भागीरथ, मेरा स्टौप आ गया है. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘नहीं, बहुत जल्दी भागीरथ अपनी गंगा को लेने आएगा क्योंकि भागीरथ की गंगा के बिना कोई पहचान नहीं होती.’’

वह बस से उतरने लगी. हाथ भागीरथ के हाथ में था. भागीरथ ने धीरे से हाथ छोड़ दिया. वह बस से उतरी और जब तक आखों से ओझल न हो गए, तब तक दोनों एकदूसरे को देखते रहे क्योंकि भागीरथ की तपस्या पूरी हो गई. उसे उस की गंगा मिल गई थी.

टैक्सों का मकड़जाल

स्टांप ड्यूटी किसी जमाने में संपत्ति के रजिस्ट्रेशन के खर्च के लिए हुआ करती थी. ब्रिटिश सरकार ने संपत्ति के मालिकों को एक दस्तावेज देने और लेनदेन को पक्का करने के लिए स्टांप ड्यूटी का प्रावधान बनाया था पर धीरेधीरे देशभर की सरकारें अब इसे टैक्स का एक रूप मानती हैं और मान न मान मैं तेरा मेहमान की तरह किसी भी खरीद में बीच में टपक पड़ती हैं और कीमत का

8% से 12% तक हड़प जाती हैं. कुछ राज्यों में घर में ही संपत्ति हस्तांतरण में भारी स्टांप ड्यूटी लगने लगी और इस से घबरा कर लोग पावर औफ ऊटौर्नी पर ब्रिकी करने लगे.

अब बहुत हल्ले के बाद कुछ राज्यों को यह समझ आया है कि यह माफियागीरी कुछ ज्यादा हो गई है. महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अब संपत्ति का हस्तांतरण अगर परिवार के सदस्यों में ही हो रहा हो तो नाममात्र का शुल्क रखा गया है ताकि पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा कागजों पर सही ढंग से हो सके और विवाद न खड़े हों.

संपत्ति की खरीदबेच असल में तो किसी भी सामान की खरीदबेच की तरह होनी चाहिए. हर लेनदेन पर मोटा टैक्स उलटा पड़ता है. लोग इस खर्च को तरहतरह से बचाने की कोशिश करते हैं. ब्लैक का चलन आय कर न देने की इच्छा से तो है ही, स्टांप ड्यूटी न देने की इच्छा भी इस में है क्योंकि लोग नहीं चाहते कि फालतू में पैसे दिए जाएं.

संपत्ति की ब्रिकी तो तभी होती है जब बेचने वाला संकट में हो और तब वह 1-1 पैसे को बचाना चाहता है. सरकार ने खुद ही कानूनों, नियमों और टैक्सों का ऐसा मकड़जाल बनाया हुआ है कि लोग पानी में पैर रखना भी नहीं चाहते जहां मगरमच्छ भरे हुए हैं.

सरकार का खजाना तभी बढ़ेगा जब लोग आसानी से संपत्ति को खरीदबेच सकें क्योंकि तब वे कपड़ों की तरह खरीदबेच करेंगे और अपनी जरूरत की संपत्ति रखेंगे और जरूरत की खरीदेंगे.

घरों में संपत्ति का बंटवारा बहुत मुश्किल होता है क्योंकि स्टांप ड्यूटी का निरर्थक खर्च सामने आ खड़ा होता है. बुजुर्ग अकसर अब चाहने लगे हैं कि वे जीतेजी अपने बच्चों में अचल संपत्ति बांट जाएं पर स्टांप ड्यूटी का पैसा न होने की वजह से टालते रहते हैं.

किसी के मरने के बाद पहले तो किस का कितना हिस्सा है, यह विवाद खड़ा होता है और हल होने पर किस के नाम कैसे करें, यह सवाल स्टांप ड्यूटी के मगरमच्छ की तरह खाने को दौड़ता है. अगर स्टांप ड्यूटी व्यावहारिक हो तो परिवारों में आपसी मतभेद में एक किरकिरी तो कम होगी.

बेबी की पोषण से जुुड़ी जरुरतों के लिए मां के दूध की मात्रा कैसे बढ़ाएं?

मां के लिए अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराना दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है. जो मां तथा बेबी दोनों के लिए ही आपार स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के रूप में जाना गया है. आपके बेबी के लिए मां का दूध जीवन के पहले छह महीनों में आवश्यक माना जाता है क्यूंकि इसमें सभी महत्वपूर्ण पोषण होते हैं. साथ ही इसमें बीमारियों से लड़ने के लिए कई आवश्यक तत्व होते हैं जो आपके बेबी के स्वास्थ्य को समस्याओं से बचने में मदद करते हैं. इसके आलावा इसमें एंटीबाॅडिज भी होते हैं जो आपके बच्चे को वायरस तथा बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं.

बेबी स्वास्थ्य के लिए मां का दूध है सर्वोत्तम आहार-

बेबी के जीवन के पहले छह महीनों के लिए उसकी समस्त पोषण आवश्यकताओं के लिए मां का दूध सर्वोत्तम होता है. आपका बेबी ज्यादा से ज्यादा पोषण प्राप्त करें, इसके लिए यह आवश्यक है कि जन्म के तुरंत बाद से लेकर कम से कम छह महीने तक जबतक कि बेबी को अन्य आहार देना न शुरू कर दिया जाए, केवल मां का दूध ही दिया जाए.

डॉ अरुणा कालरा, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ बता रही हैं स्तन दूध की मात्रा बढ़ाने के खास उपाय.

बहुत सी महिलाओं को कई बार ऐसा लगता है की वे स्तन दूध का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पा रही हैं. एक नयी माँ के लिए ऐसा महसूस करना बहुत ही आम बात है. हालाँकि ऐसी बहुत ही काम महिलाएं होती हैं जो ज़्यादा स्तन दूध का उत्पादन नहीं कर पाती परन्तु यदि आपको लगता है की आप भी उनमे से एक हैं तो आप घबरायें नहीं. ऐसे कुछ बहुत ही आसान तरीकें हैं जिनसे आप अपने स्तन दूध की मात्रा बढ़ा सकती हैं.

आपके स्तन के दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कुछ तरीके हैं जो आप अपना सकती हैं.

आपके दूध की आपूर्ति को बढ़ाने में कितना समय लगेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी आपूर्ति की शुरुआत कितनी कम है और आपके कम स्तन दूध के उत्पादन की क्या वजह है. यदि ये तरीके आपके लिए काम करते हैं तो आप स्तन दूध कुछ ही दिनों में बढ़ने लगेगा.

1. बेबी को एक दिन में थोड़ा अधिक बार ब्रैस्टफीडिंग कराएं-

जब आप अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तब आपके शरीर में स्तन दूध बढ़ाने वाले होर्मोनेस रिलीज़ होते हैं. आप जितना अधिक ब्रैस्टफीडिंग करवाएंगी उतने अधिक आपके शरीर में ये होर्मोनेस रिलीज़ होंगे और आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ाएंगे.

2. पंप का इस्तेमाल-

ब्रैस्टफीडिंग करने के बीच के समय में पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाले. ऐसा जाना जाता है कि ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से स्तन दूध निकालने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है. जब भी आपको लगे की ब्रैस्टफीडिंग करवाने के बाद भी आपके स्तन में दूध बचा है या बेबी किसी कारणवश ब्रैस्टफीडिंग नहीं कर पाया है तब आप पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाल लें.

3. दोनों स्तन से बेबी को ब्रैस्टफीडिंग करवाएं-

बेबी को पहले एक स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं और जब वह दूध पीना काम कर दे  या रुक जाये तो उसे दूसरे स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं. दोनों स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है.

4. दूध की मात्रा बढ़ाने वाला खाना खाएं-

निम्नलिखित कुछ ऐसे खाने कि चीज़ें हैं जिससे आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ सकती है. जैसे की-

–  मेथी

– लहसुन

– अदरक

– सौंफ

– ओट्स

– जीरा

– धनिया

– छुआरा

– पपीता, आदि.

जब भी आपको लगे कि इन् सब तरीकों से आपका स्तन दूध नहीं बढ़ पा रहा है तो आप अपने चिकित्सक की सलाह लीजिये.

Raksha bandhan Special: यूं बनाएं हेल्दी पनीर मंचूरियन

चाइनीज का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है बच्चे हो या बड़े चायनीज फूड सभी को पसंद आता है. पनीर मंचूरियन एक बहुत ही पॉपुलर इंडो चायनीज डिश है.

पनीर मंचूरियन का फ्राइड राइस के साथ परफेक्ट कॉम्बो माना जाता है. मंचूरियन को अलग-अलग तरह की सामाग्रियों से बनाकर तैयार करते है जैसे – मिक्स वेज मंचूरियन, एग मंचूरियन, गोभी मंचूरियन, बंदगोभी मंचूरियन, सोया मंचूरियन आदि. आज हम आसान और जल्द ही बनने वाली डिश पनीर मंचूरियन बनाने की विधि बताएंगे.

सामग्री

पनीर पीस को फ्राई करने के लिए

1. ढाई सौ ग्राम चौकोर टुकड़ो में कटे हुए पनीर

2. चौथाई कप कॉर्न फ्लोर

3. आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर

4. दो चम्मच दही

5. नमक स्वादानुसार

6. पनीर फ्राई करनें के लिए तेल

मंचूरियन की ग्रेवी के लिए

7. चार-पांच चम्मच टोमेटो सॉस

8. एक चम्मच सफेद सिरका

9. दो-तीन चम्मच सोया सॉस

10. आधा कप बारीक कटी हुई हरी प्याज

11. आठ-दस बारीक कटा हुआ लहसुन

12. दो बारीक काटा हुआ प्याज

13. दो चम्मच कॉर्न फ्लोर

14. आधा चम्मच अजिनोमोटो पाउडर

15. नमक स्वादानुसार

16. तीन-चार चम्मच तेल

यू बनाएं पनीर मंचूरियन

– पनीर मंचूरियन बनाने के लिए सबसे पहले हम पनीर के पीस को डीप फ्राई करेंगें.

– पनीर के टुकड़ो को तैयार करने के लिए सबसे पहले अब एक कढ़ाही में तेल डालकर गरम करने के लिए गैस पर रखें.

– और अब कटे हुए पनीर के टुकड़ो को एक प्लेट में निकालकर करीब 10 मिनट के लिये मेरिनेट करेंगें.

– मेरिनेट करने के लिये पनीर के टुकड़ो के ऊपर लाल मिर्च पाउडर, नमक और दही डालकर के लिये रख दें.

– 10 मिनट के बाद पनीर टुकड़ो को अच्छी तरह से मिक्स करके एक एक टुकड़े को सूखे कॉर्न फ्लोर में लपेट लें, जब तेल अच्छी तरह से गरम हो जाये तब 2-3 पनीर के टुकड़ो को गरम तेल में डालकर गोल्डन ब्राउन होने तक डीप फ्राई करके निकाल लें, इसी तरह से सभी पनीर के टुकड़ो को तलकर तैयार कर लें.

– अब हम मंचूरियन के लिए ग्रेवी बनाएगें, मंचूरियन की ग्रेवी बनाने के लिए एक कढ़ाही में तेल डालकर गरम करने के लिए गैस पर रखें, जब तेल अच्छी तरह से गरम हो जाये तब गरम तेल में कटा हुआ लहसुन डालकर थोड़ी देर के लिये भून लें और अब इसमें कटी हुई प्याज डालकर हल्का गुलाबी होने तक भून लें.

– इसके बाद भुनी हुई प्याज में कटी हुई हरी प्याज डालकर 1 मिनट के तक भून लें. इसके बाद इसमें सोया सॉस, टोमेटो सॉस को डालकर अच्छी तरह से मिक्स करते हुये 1 मिनट के लिए फ्राई कर लें.

– इसके बाद ग्रेवी में कॉर्न फ्लोर का घोल डालकर अच्छी तरह से मसाले में मिक्स कर लें और अब इसमें नमक अजिनोमोटो पाउडर डालकर मिक्स करके गैस बंद कर दें.

– पनीर मंचूरियन के लिए ग्रेवी बनकर तैयार हो गयी है. अब मंचूरियन ग्रेवी में फ्राई किये हुये पनीर के टुकड़ो को डालकर धीमी आँच पर अच्छी तरह से मिक्स कर लें जिससे मंचूरियन ग्रेवी की कोटिंग पनीर के टुकड़ो पर अच्छी तरह से आ जाये.

– स्वादिष्ट पनीर मंचूरियन बनकर तैयार हो गया है, गरमा गर्म पनीर मंचूरियन को सर्विंग बाउल में निकाल कर कटी हुई हरी प्याज के पत्ती और कद्दूकस किये हुए पनीर से गार्निश करके नूडल्स या फिर अपनी पसंद फ्राइड राइस के साथ सर्व करें.

हर रंग कुछ कहता है

रंगों ने हमारी सोच, भावनाओं और बौद्धिकता को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है. अत्यधिक आकर्षक, आसानी से नजर आने वाले और विविधता भरे रंगों में कुछ खास प्रकार की ऊर्जा उत्सर्जित करने की ताकत होती है. ये रंग हमारे दिलोदिमाग को प्रभावित कर सकते हैं. यदि इन्हें सही अनुपात में शामिल किया जाए, तो कुछ खास तरह के रंग और उन के मिश्रित रूप काफी जीवंतता ला सकते हैं.

सजावट की अलगअलग चीजों जैसे पेंटिंग, लैंप, फूलदान, वालपेपर, फूल, पौधे, लाइट, कलाकृतियां, मूर्तियां, फर्नीचर आदि को शामिल कर के विभिन्न रंगों को शामिल किया जा सकता है. इस के साथ ही घर की खूबसूरती को बढ़ाने वाले सजावटी सामान, मोमबत्तियों से ले कर सौफ्ट फर्निशिंग जैसे परदे, ड्रैप, साजोसामान, कुशन, ट्यूब पिलो, बैड और बाथरूम लिनेन, डाइनिंग टेबल सैट, मैट और रनर से भी रंगों को जोड़ा जा सकता है. साथ ही किचन वेयर जैसे सर्व वेयर, क्रौकरी, बेक वेयर, मग, ट्रे आदि भी रंगों को शामिल करने का अच्छा तरीका हो सकते हैं. पूरी दुनिया कला के बेहतरीन नमूनों से भरी है, जिन्हें घर में सजा कर उसे बहुआयामी, सुंदर और आकर्षक बनाया जा सकता है.

ट्रैंडी शेड्स, पैटर्न और प्रिंट में उपलब्ध ये इंटीरियर फैब्रिक वेयर घर की सजावट में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और वह भी किफायती दाम में और बिना ज्यादा देखभाल के.

कला के रंग थोड़े पेचीदा होते हैं, इसलिए सही चीज का और सही मात्रा में चुनाव करें. ऐक्सपर्ट की राय भी ली जा सकती है. रंग को समझना कि उस के लिए क्या सही और क्या गलत है, उस की ऊर्जा और उस का प्रभाव क्या है, ये सारी चीजें एक नया बालगेम हैं. ये रंग आप के व्यक्तित्व को समझने में मदद करेंगे.

लाल

यह गतिशीलता, उत्साह और दृढ़संकल्प का रंग है. यह रंग बहुत ही तेज है और आधुनिक संदर्भों में इस का अर्थ शक्तिशाली और प्रभावी हो गया है. यह रंग तानाशाही, तुरंत क्रोधित हो जाने वाले और निडर होने का प्रतीक है. लाल रंग जितना सुंदर होता है इसे पसंद करने वाले भी उतने ही उत्साही, आत्मविश्वासी और मुखर होते हैं.

नीला

यह रंग विश्वास, ईमानदारी, निष्ठा, सुव्यवस्था, शांति और धैर्य का प्रतीक है. जिन लोगों को नीला रंग पसंद आता है, वे दयालु, आशावादी, अनुमानित, अकेले और माफ न करने वाले होते हैं.

हरा

जिन लोगों को हरा रंग पसंद आता है उन में दिल और दिमाग का सही संतुलन होता है. वे प्रकृति प्रेमी, संवेदनशील, अनुकरणीय, व्यवहारकुशल, परिवार के लिए समर्पित होते हैं.

पीला

पीला भी सकारात्मकता और नकारात्मकता का मिश्रित रंग होता है. यह रंग आशावादी, उत्साह, बुद्धिमत्ता और तार्किकता को दर्शाता है. साथ ही यह व्यक्ति को विश्लेषी, डरपोक और अहंकारी बनाता है.

सफेद

यह पूर्णता का रंग है, जो प्रेरणा और गहराई प्रदान करता है. स्वतंत्रता और पवित्रता का प्रतीक माना जाने वाला यह रंग एकता, सद्भाव, समानता और पूर्णता प्रदान करता है.

बैगनी

जो लोग बैगनी रंग पसंद करते हैं वे सौम्य, उत्साही और करिश्माई व्यक्तित्व वाले होते हैं. वे दूसरों पर निर्भर रहने वाले होते हैं, इसलिए रोजमर्रा की जिम्मेदारियों को लेने से बचते हैं. ये लोगों को आसानी से पहचान लेते हैं. इन्हें सत्ता पसंद आती है.

धूसर

यह सब से अधिक ग्लैमरस रंग है, जो निराशाजनक होने के बावजूद सुंदर है, बोरिंग हो कर भी परिपक्व है, उदासीन होने पर भी क्लासिक है. यह शेड स्थिरता एवं शालीन तरंगों के साथ गरिमामयी महिमा का वर्णन करता है. यह अनिश्चितता और अलगाव को भी दर्शाता है.

भूरा

इस रंग को पसंद करने वाले गंभीर, जमीन से जुड़े होने के बावजूद भव्यता की झलक देते हैं. ये लोग सहज, सरल, निर्भर होने के बावजूद कई बार कंजूस और भौतिकवादी होते हैं.

काला

दृढ़, सीमित, सुंदर, आकर्षक और ठंडक देने वाला काला रंग काफी गहरा होता है, जिसे कई लोग अशुभ करार दे सकते हैं. यह रंग रहस्य, नकारात्मकता, निराशा और रूढिवादिता को दर्शाता है.

नारंगी

अत्यंत चटकीला रंग नारंगी मुखर और रोमांच चाहने वालों का रंग है. आशावादी, खुशमिजाज, सहृदयी और स्वीकार्य होने के साथसाथ यह रंग सतही, असामाजिक और उन लोगों का प्रतीक है, जो अत्यधिक अहंकारी होते हैं.

कभी न बताएं 9 बैडरूम सीक्रेट्स

रोमी की नइ नई शादी हुई थी. सैक्स जो अब तक उस के लिए अनजाना विषय था अब विवाह के बाद एकाएक रोमांचक हो उठा था. रोमी अपनी जिंदगी में होने वाले इन परिवर्तनों को किसी के साथ शेयर करना चाहती थी. वह जानना चाहती थी कि जैसा उसे महसूस होता है वैसा ही क्या सब को होता हैं?

रोमी ने खुशी और रोमांच के कारण अपने सारे बैडरूम सीक्रेट अपनी सहेलियों के साथ शेयर कर लिए थे. जब रोमी और उस का पति जय उस की सहेली श्वेता के यहां खाने के लिए गए तो श्वेता ने जय के सामने ही ऐसी बातें करनी शुरू कर दीं थी जो अश्लीलता की परिधि में आती थीं. जय को समझ आ गया था कि रोमी ने उन के मध्य की बेहद निजी बातें सार्वजनिक कर दी हैं. इस बात के लिए वो आज तक रोमी को माफ नहीं कर पाया है. उधर श्वेता जब भी मौका मिलता रोमी से उस के बैडरूम सीक्रेट पूछती और चटकारे लेले कर पूरे गु्रप में बता देती.

भूमिका का जब विवाह हुआ तो उस की विवाहित दोस्त एकता उस की सैक्स गुरु बनी हुई. भूमिका भोलेपन में अपनी हर छोटीबड़ी बात एकता को बता देती थी. एकता जो अपने पति से संतुष्ट नहीं थी, भूमिका के बैडरूम सीक्रेट सुन कर उस के पति की ओर आकर्षित हो गई. मौका मिलते ही एकता ने भूमिका के पति को अपनी और खींच लिया था. भूमिका उस दिन को कोस रही है जब उस ने एकता के साथ अपनी बैडरूम लाइफ शेयर करनी शुरू की थी.

आज भी बहुत सारे नवविवाहित जोड़े विवाह से पहले सैक्स से अछूते रहते हैं. इसलिए जब विवाह के पश्चात वे इस नई दुनिया में कदम रखते हैं तो उन्हें समझ नहीं आता है कि वे अपनी बातें किस से शेयर करें. बहुत सारे अनजाने डर होते हैं, कुछ अछूती बातें होती हैं, कुछ रहस्य होते हैं तब समझ नहीं आता कि किस के साथ साझ करें. ऐसे में अपने दोस्तों के सिवा और कोई नहीं सूझता है. अपने दोस्तों के साथ बैडरूम सीक्रेट शेयर करना कई बार आप के लिए फायदेमंद भी हो सकता है.

जैसेकि मोहनी को अपने परफौर्मैंस को ले कर बेहद स्ट्रैस रहता था. मगर जब एक दिन बातों ही बातों में उस ने अपनी दोस्त वर्षा से इस बारे में बात करी तो मोहनी को समझ आ गया कि वह बेकार में ही स्ट्रैस्ड महसूस कर रही थी.

लड़कियां शादी के बाद सैक्स से संबंधित बातों को अपनी सहेलियों के साथ ही शेयर करने में कंफर्टेबल रहती हैं. मगर अपने बैडरूम सीक्रेट अपनी सहेलियों से आप किस हद तक साझ कर सकती हैं, यह अवश्य तय कर लें. अपने बैडरूम सीके्रट शेयर करने से पहले यह बात अवश्य ध्यान कर लें कि अगर आप के पति भी अपनी बैडरूम लाइफ अपने दोस्तों के साथ साझ करेंगे तो आप को कैसा लगेगा?

कोशिश करें वही बातें शेयर करें जिन से आप के पार्टनर की छवि धूमिल न हो और न ही वे हंसी के पात्र बनें.

ये बातें भूल कर शेयर न करें

सैक्सुअल फैंटेसी:

आप के पार्टनर की कोई वाइल्ड सैक्सुअल फैंटेसी हो सकती है. आप का पार्टनर आप पर ट्रस्ट कर के ही वह फैंटेसी आप के साथ शेयर करता है, मगर अगर आप ये बातें अपनी फ्रैंड्स से शेयर करती हैं और पार्टनर को पता चल जाता है तो वे ताउम्र आप के सामने कभी खुल नही पाएंगे. उन्हें हमेशा यह डर बना रहेगा कि न जाने आप कब सब के सामने उन्हें बेपरदा कर दें.

साइज डिस्कशन:

अपने पार्टनर का पेनिस साइज डिस्कस करना एक बेहद बुरा आइडिया है. थोड़ा सा सोच कर देखें अगर आप के पार्टनर आप के स्तन या किसी और अंग के साइज का जिक्र अपने दोस्तों के सामने करेंगे तो आप को कैसा लगेगा? आप के पार्टनर की ऐसी डिस्कशन उन्हें आप की सहेलियों के मध्य डेजीराबल भी बना सकती है. फिर बाद में अगर कोई बात हो जाती है तो ये पूरी तरह से आप की जिम्मेदारी है.

इरैक्शन प्रौब्लम:

पार्टनर की इरैक्शन प्रौब्लम को उजागर करना एक बेहद संवेदनशील विषय है. अगर आप को मदद चाहिए तो सहेली के बजाय डाक्टर की मदद लीजिए. ऐसी बातें हर फ्रैंड के साथ डिस्कस नहीं कर सकते हैं. आप की फ्रैंड्स आप की बैडरूम लाइफ को पब्लिक भी कर सकती है और ऐसी बातों का कुछ लोग गलत फायदा भी उठा सकते हैं जो आप के विवाहित जीवन के लिए ठीक नहीं होगा.

सैक्सुअल वोकैबुलरी है बेहद निजी:

पार्टनर की सैक्सुअल वोकेबुलरी को सहेलियों के साथ साझ करना भी एक खराब आइडिया है. याद रखें आप की बैडरूम लाइफ आप और आप के पार्टनर के बेहद निजी पल हैं. इन्हें आप अपनी सभी फ्रैंड्स के साथ नहीं बांट सकती हैं. ऐसा न हो कि आप अपनी बैडरूम लाइफ डिस्कस करतेकरते अपनी सहेलियों के सामने एक ऐसी पिक्चर पेंट करती हैं जिस पेंटिंग का वे अनजाने में हिस्सा बन जाती हैं.

मगर जरूरी नहीं बैडरूम सीक्रेट्स शेयर करने के हमेशा नुकसान ही होते हैं. अगर आप सोचसमझ कर और भरोसेमंद सहेलियों के साथ अपने सीके्रट शेयर करती हैं तो इस के निम्न फायदे भी होते हैं:

बैडरूम लाइफ को स्पाइसी बनाने में सहायक:

बहुत बार सहेलियों के साथ बातों ही बातों में आप को कुछ ऐसी बातें पता चल जाती हैं जो आप की बैडरूम लाइफ को स्पाइसी बना सकती हैं. किस तरह की लौंजरी पार्टनर को अट्रैक्ट करती है या किस तरह के परफ्यूम बैडरूम लाइफ को और अधिक रोमांचक बनाते हैं ये सब आप आराम से अपनी फ्रैंड्स के साथ डिस्कस कर सकती हैं.

फोरप्ले के नए तरीके:

फोरप्ले सैक्स ड्राइव को बेहतर बनाता है. इस का कोई सैट मेथड नहीं होता है. हर किसी का फोरप्ले का तरीका अलग होता है. यह जानकारी आप एकदूसरे के साथ शेयर कर सकती हैं परंतु याद रखें जानकारी बेहद जनरल तरीके से साझ की जाए. इसे स्पैसिफिक मत करिए.

और्गेज्म से परिचय:

और्गेज्म पर बस पुरुषों का ही हक नहीं होता है, महिलाओं का भी यह मौलिक अधिकार होता है. नईनई शादी में अधिकतर महिलाएं इस से अछूती ही रहती हैं. अगर आप की सहेली किसी खास पोजीशन के बारे में बताती है जिस से उसे और्गेज्म प्राप्त होता है तो आप भी उस पोजीशन को अगली बार अपना सकती हैं.

कन्फ्यूजन से मिल सकता है छुटकारा:

बहुत सारे रहस्य होते हैं या बहुत सारी ऐसी बातें होती हैं जो बेहद नौर्मल होती हैं, मगर नईनई शादी में ये बेहद अजीब लगती हैं. पर्सनल हाइजीन से ले कर सैक्स टौयज तक बहुत सारे कन्फ्यूजन होते हैं जो आपस मे बात कर के सौल्व हो सकते हैं.

सैक्स लाइफ की बेहतर समझ:

सैक्स लाइफ की बेहतर समझ के लिए बहुत बार सहेलियों के साथ आप खुल कर बात कर सकती हैं पर 2 बातों का ध्यान हमेशा रखें पहला किसी भी महफिल में बैठ कर अपनी सैक्स गाथा आरंभ मत कीजिए नहीं तो आप की स्थिति हास्यस्पद हो जाएगी और दूसरी बात सैक्स से जुड़ी बातें शेयर करते हुए अपने पार्टनर का जिक्र न करें.

अधूरी मौत- भाग 3: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी.

रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

अधूरी मौत- भाग 2: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए.

तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल ने कहा.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दे कर इंसपेक्टरको वीर का नंबर दे दिया.

इंसपेक्टर ने वीर को फोन कर थाने आने को कहा.

‘‘सर, लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर थाने पहुंच गया. इंसपेक्टर ने पूरी जानकारी उसे देते हुए पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए,’’ वीर बोला.

एक दिन वीर ने शीतल से कहा, ‘‘करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी, जिस में अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’

‘‘वीर भाई साहब, आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे.

इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी.

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

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