लोकतंत्र सुरक्षा की गारंटी नहीं

अमेरिका में आज भी अश्वेतों के साथ बराबरी और लोकतंत्र के ढिंढोरे के बावजूद भेदभाव किया जाता है. अगस्त में एक 18 साला निहत्थे अश्वेत को एक गोरे पुलिस वाले ने गोली मार दी, इसलिए कि उसे लगा लड़के के पास बंदूक है. अब सारे देश में विरोध हो रहा है. आप यह न समझें कि हम सुधरे हुए हैं. ऐसा ही हमारे यहां जाति, धर्म व देश के नाम पर होता है और अल्पसंख्यकों को बेवजह मारा जाता है. लोकतंत्र सुरक्षा की गारंटी नहीं, उलटे बहुसंख्यकों का मनमरजी करने का लाइसैंस बनता जा रहा है.

धर्म की मूल प्रवृत्ति है विवाद

धर्म के गुणगान करने वाले यह साबित करने के लिए कि धर्म प्रेम सिखाता है वैमनस्य नहीं, इस कहानी को बारबार दोहराएंगे कि दिल्ली के त्रिलोकपुरी में एक मसजिद के सामने एक भजन मंडली के लगातार जागरण करने पर गत अक्तूबर में हुए दंगे में खूब तोड़फोड़, हिंसा हुई और मरा तो कोई नहीं पर जख्मी कई हुए. तो इस दंगे के दौरान एक सिख हरबंस सिंह ने एक मुसलिम मुहम्मद कुरबान को अपने घर में पनाह दी. ये वही हरबंस सिंह हैं, जिन्हें उन के मुसलिम पड़ोसियों ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसियों के इशारों पर हुए सिख दंगों में पनाह दी थी. हरबंस सिंह का कहना है कि यह तो उस का मानवीय पक्ष है.

क्या यह धर्म का उज्ज्वल पक्ष है? नहीं. यह मानवता व सामाजिकता का उज्ज्वल पक्ष है, जो धर्म की फैलाई कटुता, दुश्मनी, वैमनस्यता, घृणा, आतंक के बावजूद जिंदा है. अगर धर्म नहीं होता तो हरबंस सिंह सिख नहीं होते, मुहम्मद कुरबान मुसलिम न होते. दोनों जो भी होते, पड़ोसी होते, साथ काम करने वाले होते, एकदूसरे को सहयोग देने वाले होते.

विज्ञान और तकनीक के बावजूद, तर्क, सोचविचार के बावजूद धर्म का असल रूप, खूंख्वार रूप आज भी दुनिया भर में कायम है और दुनिया का लगभग हर कोना धार्मिक आतंक के कारण भयभीत है. जिस धर्म को सुरक्षाकवच समझा जाता है, असल में वह तो उस चीनी के लेप का बना है, जिसे लपलपाने के लिए दूसरे धर्म के काले विषैले कीड़ों जैसे लोग हर समय बेचैन रहते हैं. हमारे देश की राजनीति कांग्रेस के जन्म के समय से ही धर्म पर आधारित रही है. पहले बाल गंगाधर तिलक व गोपाल कृष्ण गोखले ने कांग्रेस को धर्ममयी किया फिर महात्मा गांधी ने रघुपति राजा राममयी कर दिया. जिस का नतीजा यह हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस को ब्राह्मण पार्टी कह कर छोड़ दिया. अब कांग्रेसी धर्म का लबादा भारतीय जनता पार्टी ने लपक लिया है और उसे धोपोंछ कर आधुनिक डिजाइन में सिलवा लिया है पर धर्म तो धर्म ही है.

त्रिलोकपुरी का मामला न नया है, न भाजपा के खिलाफ साजिश, यह तो धर्म की मूल प्रवृत्ति है कि किसी भी तरह विवाद खड़ा रखो. फिर चाहे वह साईं बाबा को पूजने को ले कर हो या राम रहीम पंथ पर हमले को ले कर. धर्म के नाम पर देश में गृहयुद्ध तो नहीं हो रहा पर झारखंड के झरिया की कोयले की खानों की तरह लगातार आग उस जमीन के नीचे लगी है, जिस के ऊपर लोगों ने अपने घर बना रखे हैं.

औरतों के लिए भी करो कुछ

नई सरकार एकएक कर के पिछली सरकारों के लगाए धंधों और व्यवसायों पर से जाले हटाने में लगी है. आजकल हर रोज एक नया फैसला आ जाता है, जो देश को सरकारी नौकरों से छुटकारा दिलाता है और काम करने में एक नई छूट दे रहा है. कोयला खानों के ठेकों में जो घपले किए गए थे और जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला लेते हुए जिन्हें 1993 से ही रद्द कर दिया था, उन्हें दोबारा लेने के इच्छुक लोगों के लिए तुरंत फैसले ले लिए गए हैं और इंटरनैट पर बोली की स्कीम जारी कर दी गई है ताकि भेदभाव न के बराबर रहे.

डीजल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया है और उस की कालाबाजारी का मौका समाप्त कर दिया गया है. विश्व बाजार में तेल के दाम घटने के कारण डीजल के दाम घटने लगे हैं. तेल के कुंओं में कम लोगों की दिलचस्पी होती है, फिर भी यह बताना जरूरी है कि उस पर से भी लालफीताशाही हटा दी गई है. धंधों और व्यवसायों को चलाने वालों को इंस्पैक्टर राज से छुटकारा दिलाने वाली घोषणा हो गई है.

सरकार को ऐसे ही काम करना चाहिए. पिछली कई सरकारें हर समय मौका ढूंढ़ती थीं कि कैसे आम आदमी पर नियमोंकानूनों का बोझ लादा जाए ताकि वे घुटघुट कर मर जाएं. ऐसे फैसलों का असर हर किसी पर पड़ता है. धंधा अच्छा चलता है तो व्यापारी मुनाफा कम ले कर ज्यादा सामान बेच कर अपनी आमदनी बढ़ाते हैं तो लोगों को ज्यादा चीजें सस्ती मिलने लगती हैं.

आज भवन निर्माण में भारी तेजी आ गई है और रहने की जगह क भारी किल्लत है. इस में सरकारी हाथ बहुत जिम्मेदार है जिस ने सांप की तरह जमीन पर कुंडली मार रखी है. पिछली सरकार ने किसानों के हितों के नाम पर एक ऐसा अव्यावहारिक कानून बना डाला था जिस से किसान अपनी जमीन अपनी मनमरजी के दामों पर नहीं बेच पाते. मोदी सरकार इसे ढीला कर के मकानों को आसानी से उपलब्ध कराने की योजना को लागू करने वाली है.

पिछली सरकारों के साथ कठिनाई यह थी कि वे फैसले सरकारी लाभ के लिए लेती थीं. लोगों के, खासतौर पर औरतों के, बारे में तो सोचा ही नहीं जाता था. हर नियम औरतों को परेशान करता है क्योंकि वे साफगोई से कही बातें ही समझती हैं. वे 2+2+2 तो समझ सकती हैं पर यदि 2×2×(8+5)× (5/8)भ22 के 12% का हिसाब लगाना हो तो क्या कर पाएंगी? सरकारी कानूनी किताबें इसी तरह की हैं. एक नियम पर दूसरा, दूसरे पर तीसरा. एक ऐक्सपर्ट की राय के बाद दूसरी, दूसरे के बाद तीसरी.

क्या नई सरकार इस जाले को साफ कर पाएगी? क्या औरतों को सरकारी शिकंजों से मुक्ति मिलेगी? एक जमाना था जब औरतों को केवल ताकत के नाम पर दबाया गया था जबकि प्रकृति नर और मादा में बहुत ज्यादा अंतर नहीं करती. समाज ने पहले धर्म के सहारे फिर कानून के सहारे और बाद में तकनीक के सहारे औरतों को गुलामी तोहफे में दी और उन्हें लुंजपुंज कर दिया. क्या नई सरकार वाकई अलग है? जो भी बदलाव लाए जा रहे हैं वे पुरुषों को तो चाहे लाभ दें, औरतों को नहीं देंगे.

अच्छा होगा कि लगे हाथ नरेंद्र मोदी सरकार हर नियम में औरतों को विशेष छूट देना शुरू कर दे ताकि जैसे संपत्ति हस्तांतरण में स्टैंप ड्यूटी में जब से 2% की छूट औरतों को मिली है, पंजीकरण कार्यालयों में औरतें ही औरतें दिखने लगी हैं, उसी तरह लाइसैंस कार्यालयों, कारखानों आवेदन के दफ्तरों में और खासतौर पर मकान खरीदारों की भीड़ में औरतें खूब दिखें.

फिल्म कलाकार बन रहे सिंगर

बौलीवुड के कलाकार सालों से खुद को हर क्षेत्र में आजमाते आ रहे हैं. दर्शकों ने उन के इस हुनर को स्वीकार भी किया है. 1950 के बाद से पार्श्वगायन को अधिक महत्त्व दिया गया, जिस में अभिनेता या अभिनेत्री गाना न गा कर केवल होंठ हिलाते थे. दरअसल, पार्श्वगायक बढि़या गाना तो गा सकते थे, पर अभिनय नहीं कर पाते थे और फिर न ही वे देखने में सुंदर होते थे. फिल्म निर्माता, निर्देशकों ने इस विधि से काफी फिल्में बनाईं, जो जबरदस्त हिट रहीं.

उस समय के कुछ खास कलाकारों जैसे किशोर कुमार, के.एल. सहगल, सुरैया और नूरजहां आदि ने गायकी के साथसाथ अभिनय में भी नाम कमाया.

इस के बाद एक दौर ऐसा आया जब गाने पूरे न गा कर केवल कुछ शब्दों को हीरो या हीरोइनें गाया करती थीं. इन में वैजयंती माला की फिल्म ‘संगम’ का गाना ‘बोल राधा बोल संगम…’ और श्रीदेवी की फिल्म और ‘चांदनी’ का गाना ‘ओ मेरी चांदनी…’ आदि शामिल थे.

इस तरह हर समय सितारों ने नएनए प्रयोग किए और अपनी आवाज में गाने गाए. इन में अभय देओल, अजय देवगन, अमिताभ बच्चन, आमिर खान, अभिषेक बच्चन, अमरीशपुरी, फरहान अख्तर, रितिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, शाहरुख खान, सलमान खान आदि हैं.

क्रैडिट तकनीक को

ऐसा माना जाता है कि अगर कलाकार फिल्म में अपनी आवाज में गाना गाता है तो दर्शकों को उस का मजा अधिक आता है, क्योंकि फिल्म में उस के डायलौग और गाना दोनों ही एकजैसे होते हैं. इस बारे में संगीत निर्देशक विवेक प्रकाश कहते हैं, ‘‘पहले के और अब के गानों में अंतर आ चुका है. पहले गाना सिचुएशन के हिसाब से लिखा जाता था और फिर ट्यून दी जाती थी. फिर गाना प्लेबैक सिंगर गाता था. अब पहले सुर दे दिया जाता है. फिर गीतकार अपनी पंक्तियां सुर को ध्यान में रख कर लिखता है. बाद में उसे सिचुएशन के हिसाब से फिट कर दिया जाता है.

‘‘अभी गाना बंधा हुआ होता है और उसे कोई भी गा सकता है. इस का क्रैडिट तकनीक को दिया जाना चाहिए. पहले एक गाना 15 दिन में बनता था जबकि अब 15 मिनट में बनता है. फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री द्वारा गाया गीत मार्केटिंग के नजरिए से काफी अच्छा होता है.’’

‘किक’ फिल्म के गाने को पहले सोनू निगम ने गाया, फिर सलमान ने. यहां पैसे की रिकवरी के नजरिए से सलमान ठीक हैं पर संगीत के नजरिए से सोनू निगम. किशोर कुमार जैसा सिंगर और ऐक्टर आज मिलना मुश्किल है. सिंगर बनने के लिए सालों रियाज करना पड़ता है.

गायक कलाकार सुरेश वाडेकर कहते हैं, ‘‘जो दिखता है वही बिकता है. आजकल सभी ऐक्टर या ऐक्ट्रैस अभिनय, सिंगिंग, कौमेडी सब कर रहे हैं. यह निर्मातानिर्देशक भी चाहते हैं. यह आजकल ट्रैंड बन चुका है. मगर यह अधिक दिनों तक नहीं चलेगा. पिछले दिनों मैं ने ‘बोल बच्चन’ फिल्म का एक गाना गाया. बाद में हिमेश रेशमिया ने अमिताभ बच्चन से गवाया. लेकिन यह बात मुझे तब पता चली, जब फिल्म रिलीज हुई. इस के पहले हिमेश ने गीत बदलने की बात नहीं बताई.

‘‘यह गलत हो रहा है. प्लेबैक सिंगर का मान घट रहा है. कुछ बड़े गायकों से तो गाने गवा कर उन्हें पैसा भी नहीं दिया गया. यह सही है कि पहले कुछ नामचीन गायक कलाकार ही फिल्म इंडस्ट्री पर राज करते थे. फिर दौर बदला और कुछ नए कलाकारों को आगे आने में मदद मिली. अब तो हर दिन एक नया गायक जन्म लेता है. गंदे लिरिक्स और बेमतलब के सुर का आलम है. इस का परिणाम प्रतिभावान कलाकार भुगतता है. उसे मौका नहीं मिल पाता. आज हर बड़ा प्लेबैक सिंगर भी गाना गा कर डरता है कि फिल्म रिलीज होने तक पता नहीं उस का गाना रहेगा या नहीं.’’

जो हिट वही फिट

प्लेबैकसिंगर मधुश्री कहती हैं, ‘‘मुझे खुशी हो रही है कि आजकल ऐक्टरऐक्ट्रैस गाना गा रहे हैं, क्योंकि इस से औडियंस को नई आवाज सुनने का मौका मिल रहा है. आज कोई भी गा रहा है. चाहे सुर हो या न हो, लेकिन अभिनेता और अभिनेत्री अच्छा गाने की कोशिश कर रहे हैं. यह अच्छी बात है. परिवर्तन का दौर है. जब तक दर्शक चाहेंगे वे गाएंगे. जब दर्शक नकार देंगे तो फिर कुछ और होगा. दरअसल, आजकल तकनीक काफी हावी हो रही है. आवाज ठीक न होने पर भी उसे मशीन से ठीक कर लिया जाता है. मुझे कोई डर नहीं. मैं बांग्ला और तमिल गाने भी गा रही हूं.’’

पार्श्वगायिका साधना सरगम मानती हैं एक सिंगर बनने में सालों की मेहनत लगती है. पर हीरोहीरोइन के गाए गीत अगर दर्शक चाहते हैं तो कोई गलत बात नहीं. संगीत का क्षेत्र बहुत बड़ा है. अगर कोई अच्छा नहीं गाएगा तो वह निकल जाएगा. अच्छे सिंगर के लिए गाने का अवसर हमेशा मिलेगा.

बात कुछ भी हो पर आज हीरो या हीरोइन जो भी गाने गा रहे हैं, वे हिट हो रहे हैं. फिर चाहे श्रद्धा कपूर का गाना ‘गलियां…’ हो या फिर सलमान खान का ‘हैंगओवर…’

रिलेशनशिप में रहना बुरी बात नहीं : परिणीति चोपड़ा

अपने फिल्मी कैरियर की पहली फिल्म ‘लेडीज वर्सेस रिकी बहल’ से शुरुआत करने वाली परिणीति चोपड़ा ने ‘इशकजादे’, ‘शुद्ध देशी रोमांस’ और ‘हंसी तो फंसी’ जैसी सुपरहिट फिल्में कर बौलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है. परिणीति फिल्म इंडस्ट्री में हौट और बिंदास अभिनेत्री के रूप में जानी जाती हैं.

24 वर्षीय परिणीति ने कई बड़े स्टार्स वाली फिल्मों में इसलिए काम करने से मना कर दिया, क्योंकि वे फिल्मों में केवल नाचगाना नहीं करना चाहतीं. वे बौलीवुड में सब से अलग इमेज बनाने में विश्वास रखती हैं, इसीलिए हर किरदार को सोचसमझ कर चुनती हैं. हंसमुख स्वभाव की परिणीति हमेशा अपने काम पर फोकस्ड रहती हैं. बात चाहे विज्ञापन की हो या फिर फिल्म की वे सोचसमझ कर ही उस में शामिल होती हैं.

इन दिनों परिणीति सैनेटरी ब्रैंड व्हिस्पर की टच द पिकल मूवमैंट की मासिकधर्म से संबंधित टैबूज से महिलाओं को मुक्त कराने वाली कैंपेन से जुड़ी हुई हैं. उन से बात करना रोचक रहा. पेश हैं कुछ अहम अंश:

इस कैंपेन से जुड़ने की वजह क्या है?

एक सर्वेक्षण में पता चला है कि 86% महिलाएं मासिकधर्म पर खुल कर बात नहीं कर पातीं. ऐसे में यह आंदोलन उन्हें इस वर्जना को तोड़ने और अपने आत्मविश्वास को बनाए रखने में सहयोग देगा. मैं कई बार टीनएज में ऐसी टैबूज को देख कर दंग रह जाती थी. मेरे घर में ऐसा नहीं था पर मेरी कई सहेलियां मासिकधर्म के बारे में खुल कर बात करने से हिचकिचाती थीं. यहां तक कि दुकान में सैनेटरी नैपकिन खरीदते वक्त के दुकानदार से धीरे से कहतीं. तब दुकानदार कागज में लपेट कर काले पैकेट में देता था. मुझे याद नहीं कि किसी ने सैनेटरी नैपकिन का पैकेट सब के सामने खोला हो. मैं कभी समझ नहीं पाई कि ऐसा क्यों होता है. मैं चाहती हूं कि भाई, पिता, बौयफ्रैंड, हसबैंड सभी के सामने महिला सहज हो. इस में छिपाने वाली कोई बात नहीं है.

पर्सनल हाइजीन में सैनेटरी नैपकिन कितना सहयोग देता है? गांवों और कसबों में आज भी महिलाएं होममेड नैपकिन प्रयोग करती हैं, जिस से कई बीमारियां हो जाती हैं. अंदरूनी सफाई में सैनेटरी नैपकिन कितना जरूरी है?

पर्सनल हाइजीन के लिए सैनेटरी नैपकिन बहुत आवश्यक है. गांवों और कसबों में महिलाएं इसे इसलिए नहीं खरीदतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह उत्पाद महंगा है. मगर इस के प्रयोग से होने वाले लाभ के बारे में वे नहीं जानतीं. ऐसे में मीडिया कैंपेन से उन में जागरूकता लाई जा सकती है. मासिकधर्म होने से पहले ही लड़कियों को सैनेटरी नैपकिन की जानकारी होनी चाहिए. यह अफोर्डेबल है, यह भी उन्हें पता होना चाहिए. इस के प्रयोग से इन्फैक्शन नहीं होता, इस के प्रयोग से कई प्रकार की अंदरूनी बीमारियों से बचा जा सकता है, इस के बारे में बताने के लिए डाक्टरों को कैंपेन से जुड़ कर गांवगांव जाना पड़ेगा. तभी इस का असर देखने को मिलेगा.

आप की नजर में वूमन ऐंपावरमैंट क्या है? आप ने अपनी मां और दीदी प्रियंका चोपड़ा से क्या सीख ली है?

अब महिलाएं शिक्षित हो रही हैं. ऐसे में वे सहीगलत का फैसला खुद कर लेती हैं. जब आप अपने मनमुताबिक काम कर सकें और सफल रहें तो सशक्तीकरण की उदाहरण बन सकती हैं. यह आजादी व्यक्ति खुद के अनुभव से पाता है. मैं ने अपनी मां और दीदी से कभी सीख नहीं ली. मैं जानती हूं कि क्या सही है और क्या गलत. मैं शिक्षित हूं और अपनी समझ के अनुसार ही निर्णय लेती हूं. इतना जरूर है कि मेरे हर काम में परिवार का पूरापूरा सहयोग रहता है.

आजकल फिल्मों में अभिनत्रियों की छवि काफी बोल्ड हो चुकी है, जो 10-15 साल पहले नहीं थी. इस की क्या वजह है? क्या यह कहानी की डिमांड होती है? आप ऐसे किसी बोल्ड सीन में कितनी सहज होती हैं?

फिल्में दर्शकों की मांग पर ही बनती हैं. पहले हीरोइन को दर्शक उसी रूप में स्वीकार करते थे. अब हीरो और हीरोइन का स्तर समान हो चुका है. केवल 4 गानों के लिए हीरोइनें आएं, इस का कोई अर्थ नहीं होता. और अगर लव सीन हैं या रिलेशनशिप पर फिल्म है, तो बोल्ड सीन अवश्य आएंगे. उन्हें छिपा कर दिखाया जाए यह भी सही नहीं, क्योंकि अब हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. स्क्रिप्ट के अनुसार काम करने में मुझे कोई परेशानी नहीं.

आप ने एक फिल्म में लिव इन रिलेशनशिप में रहने की भूमिका निभाई है. क्या आप असल जिंदगी में ऐसा सोच पाएंगी?

किसी भी रिलेशनशिप में आपस में दोस्ती का होना जरूरी है और अगर दोस्ती अच्छी है, तो मैं रिलेशनशिप में अवश्य रहना चाहूंगी. इस में कोई बुराई नहीं है. अगर आप शादी कर के खुश नहीं हैं, तो पूरी जिंदगी भी रिलेशनशिप में रह सकते हैं. मैं ने शादी के बारे में अभी सोचा नहीं है. काम में बहुत व्यस्त हूं.

करीना का ज्ञान कौन है मंगल यान

लगता है देश और दुनिया की जानकारी का अभाव बौलीवुड की सभी अभिनेत्रियों में है. तभी तो आलिया की जीके नौलेज के बाद नवाब खानदान की बहू करीना की जनरल नौलेज का पता जब औडियंस को लगा तो वे सब के सामने शर्मसार हो गईं. एक कार्यक्रम के दौरान एक पत्रकार ने जब करीना से पूछा, ‘‘आज का दिन हमारे देश के लिए बहुत अहम दिन है, क्योंकि आज हम ने स्पेस टैक्नोलौजी में अपना एक यान मंगल ग्रह पर भेजा है. आप का इस के बारे में…’’

इस से आगे पत्रकार कुछ कहता, उस से पहले ही करीना सकपका कर बोल पड़ीं, ‘‘क्या? क्या? फिर से कहिए, मुझे समझ नहीं आया. अब मुझे एक ट्रांसलेटर की जरूरत है, नहीं तो जो कुछ कहना है इंगलिश में कहिए.’’ तब थकहार कर माइक पर कोऔर्डिनेटर और प्रोग्राम और्गेनाइजर को उन की मदद के लिए आना पड़ा.

छोटे परदे पर आने को बेकरार

कई वर्षों तक फिल्मों में अपना जादू दिखाने वाली सिने तारिकाएं छोटे परदे पर आने को बेकरार हैं. ताजा जानकारी के अनुसार टीवी के एक फिक्शन शो के लिए श्रीदेवी से संपर्क किया गया है. सूत्रों की मानें तो टीवी के जानेमाने प्रोड्यूसर्स शशि और सुमित ‘मैं लक्ष्मी तेरे आंगन की’ की दूसरी सीरीज लाने जा रहे हैं.

इस के लिए इन्होंने श्रीदेवी सहित उर्मिला मातोंडकर और ईशा कोप्पिकर जैसी ऐक्ट्रैसेज को ऐप्रोच किया है. हालांकि प्रोड्यूसर्स की इस शो के लिए पहली पसंद श्रीदेवी हैं, लेकिन श्रीदेवी ने इस संबंध में अभी तक कुछ नहीं कहा है.

चिली पनीर

सामग्री

300 ग्राम पनीर टुकड़ों में कटा, 1/2 कप मैदा, 1/2 कप कौर्नफ्लोर, 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च, 1/2 छोटा चम्मच अदरक, 1/2 छोटा चम्मच लहसुन, 1/2 कप टोमैटो कैचप, 1 प्याज, 1 हरी शिमलामिर्च, 1 हरीमिर्च, 1 पत्ते वाला प्याज, 3 छोटे चम्मच सोया सौस, 3 छोटे चम्मच सिरका, थोड़ा सा पानी, नमक स्वादानुसार, तलने के लिए तेल.

विधि

पनीर, मैदा, नमक, कालीमिर्च, अदरक, लहसुन और पानी को मिला कर गाढ़ा घोल बना लें. अब डीप फ्राई कर इसे एक तरफ रख लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम करें और उस में अदरक, लहसुन, प्याज, शिमलामिर्च, पत्ते वाला प्याज व हरीमिर्च मिला कर 4 मिनट पकाएं. अब इस में सोया सौस, सिरका और टोमैटो कैचप मिलाएं. फिर इस में तला हुआ पनीर मिला कर 2 मिनट पकाएं और गरमगरम परोसें.

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