सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 2: नीलम का क्या था प्लान

रात को सिरदर्द का बहना बना जल्दी सोने का नाटक किया. सोचती रही उस के मातापिता बेचारे ऐसा योग्य नेक दामाद पा कर कितना खुश हैं. नहीं, नहीं मैं उन का यह भ्रम बनाए रखूंगी. राजेश को मैं ही सबक सिखाऊंगी.

कुल्लूमनाली में उस ने नोटिस किया कि बड़ेबड़े खर्चे उसी के ऐटीएम से रुपए निकाल कर हो रहे हैं. छोटेमोटे खर्च वह अपने क्रैडिट कार्ड से करता. घर वालों के लिए उपहार ले कर वह बहुत संतुष्ट था. उस ने भी बहाने से उस के पर्स से क्रैडिट कार्ड निकाल अपने मातापिता के लिए दुशाला व शाल ले ली. क्रैडिट कार्ड वापस राजेश के पर्र्स में रख दिया. बातोंबातों में राजेश बड़े ही प्यार से उस से उस की अभी तक की सेविंग्स, पीएफ, वेतन आदि की जानकारी लेता रहा. नीलम भी सावधान थी. उस ने कोई भी जानकारी सही नहीं दी.

घर लौट कर नीलम ने बड़ी होशियारी से सब के लिए लाए उपहार उन्हें दिए, साथ में मेरी ओर से, मेरी ओर से कहना नहीं भूली. राजेश चुप रह गया. वह जानता था कि सब नीलम के पैसों से खरीदा है. सभी नीलम से खुश हो गए.

अब जीवन की गाड़ी अपनी रोजमर्रा की पटरी पर आ गई. राजेश का औफिस

नीलम के स्कूल के आगे ही था. राजेश अगर थोड़ा जल्दी निकल जाए तो नीलम को समय पर स्कूल छोड़ आगे जा सकता. वह स्कूटर पर जाता था. नीलम ने जब उस के सामने यह प्रस्ताव रखा तो उस ने हामी भर दी.

राजेश दूसरेतीसरे दिन नीलम के कार्ड से पैट्रोल के बहाने मनमाने रुपए निकलवा लेता था पर ले जाने के समय सप्ताह में 3 या 4 दिन ही ले जा पाता. कोई न कोई बहाना बना देता.

नीलम ने यह भी नोटिस किया कि छोटे भाई या बहन को कुछ पैसों की जरूरत होती तो वे दोनों चुपके से उस से मांग लेते और कह देते किसी को मत कहना.

नीलम अभी नई थी. ज्यादा कुछ नहीं कह पाती. पर उस ने सोच लिया कि इस का भी कोई न कोई हल निकालना पड़ेगा. 1-2 महीने ऐसे ही गुजर गए. नीलम के ही वेतन से लगभग परिवार का खर्चा चल रहा था. सभी को बचत करने की पड़ी थी. पापा अपनी पैंशन से धेला भी खर्च नहीं करते. यही हाल राजेश का था. राशन, दूध, बाई, बिजलीपानी का बिल, फलसब्जियों सबका भुगतान नीलम करती. छोटेछोटे खर्च राजेश दिखावे के लिए करता.

एक दिन नीलम मायके गई तो उस ने अपने पापा को कुछ उदास पाया. बारबार पूछने पर उन्होंने बताया कि मकान बनाने पर अनुमान से बहुत ज्यादा पैसा लग चुका है. अब हालत यह है कि मकान में लकड़ी का काम करवाने के लिए पैसे कम पड़ गए हैं. बिल्डर ने काम रोक दिया है. नीलम को मन ही मन बहुत दुख हुआ कि जिन मातापिता ने शिक्षा दिलवाई, कमाने योग्य बनाया वही आज पैसों की तंगी सहन कर रहे हैं. वह उदास मन से वापस आई. महीने के खत्म होते ही छुट्टी के दिन जब सवेरे सब फुरसत चाय की चुसकियां ले रहे थे उस समय नीलम ने बड़ी शालीनता और अपनेपन की चाशनी पगी जबान में कहा, ‘‘देखिए, कायदे से हमारे घर 3 जनों की आमदनी आती है- मेरी और राजेशजी का वेतन और पापाजी की पैंशन पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है ऐसे कैसे चलेगा. मुझे तो बहुत चिंता होती है. सुरेश भैया की पढ़ाई के 2 साल बाकी हैं. मधु की शादी भी करनी है,’’ ऐसी अपनेपन और जिम्मेदारी वाली बातें कर उस ने सब का दिल जीत लिया.

‘‘आगे खर्च बढ़ेंगे. इसलिए हमें अभी से प्लानिंग कर के खर्च करना चाहिए.

आज हम यह देख लेते हैं कि इस महीने किस ने कम खर्च किया किस ने ज्यादा. सब अपने द्वारा किए हुए खर्च का ब्योरा दें. जिस का खर्च ज्यादा हुआ होगा उसे इस महीने राहत दी जाएगी.

‘‘नए महीने से सब बराबर खर्च करेंगे ताकि सब की थोड़ीबहुत बचत होती रहे जो भविष्य में होने वाले खर्च में सहायक बने.’’

एक कागज पर तीनों ने अपने द्वारा किए खर्च का ब्योरा लिखा. जब उस ब्योरे को जोरजोर से पढ़ा गया तो सब से ज्यादा रकम नीलम की ही खर्च हुई थी. राजेश के भाईबहन द्वारा लिया सारा खर्च भी सबके सामने स्पष्ट हो गया.

राजेश थोड़ा झेंप गया क्योंकि उस ने भी नीलम का बहुत पैसा निकाला था. अगले महीने के लिए सारे खर्च को बराबरबराबर बांट दिया गया. अब नीलम की अच्छीखासी बचत हो जाती थी. वह गुप्त रूप से माएके का मकान बनाने वाले बिल्डर से मिली. कुछ अग्रिम पैसा दे कर उस से कहा कि आप मकान का लकड़ी का

काम पूरा करिए. मैं समयसमय पर भुगतान करने आती रहूंगी. पापा को इस बात का पता नहीं लगना चाहिए.

1 महीने के अंदर घर का लकड़ी का

काम हो गया. नीलम ने मकान की सफाई वगैरह करवा कर सारा हिसाब चुकता कर दिया. उस

ने मकान की चाबी पापा को दे कर शिफ्ट होने

को कहा.

यह सब जान पापा चकित रह गए. बेचारे नीलम की इस मदद से शर्म से झके जा रहे थे. नीलम ने इस बात को गोपनीय रखने को कहते हुए पापा से कहा कि आप को इस मदद के लिए शर्म, लज्जा महसूस करने की आवश्यकता नहीं है. आप का हमारे ऊपर पूरा हक है क्योंकि आप ने ही हमें इस योग्य बनाया है.

राजेश भी कम न था. उस ने बिना दहेज के शादी की थी. मन ही मन नीलम से उस का मुआवजा चाहता था. एक दिन नीलम को उस के एक सहकर्मी से पता चला कि उस ने राजेश को कार के शोरूम में कार पसंद करते देखा. राजेश नीलम के सहकर्मी को पहचानता न था. नीलम को अंदाजा लग गया कि शीघ्र ही उस से रुपए ले कर राजेश कार खरीदने की योजना बना रहा है. नीलम ने भी एक योजना बना डाली.

अपने 2 बुजुर्ग सहकर्मियों को जो बहुत समझदार व अनुभवी थे अपने साथ ले कर एक नामी कार के शोरूम जा पहुंची. बहुत सोचसमझ कर उस ने एक कार पसंद की, डाउन पेमेंट कर आसान किश्ते बनवा लीं. कार उस ने अपने नाम से खरीदी. कार चलाना उसे कालेज के समय से आता था. 3-4 दिन उस ने सहकर्मी की पुरानी कार से अभ्यास किया. आत्मविश्वास आ जाने पर कार ले कर घर आई. पूरा परिवार देख कर चकित रह गया.

नीलम ने कहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा ने विवाह की पहली वर्षगांठ पर मुझे दी है.’’

राजेश और उस के परिवार को खुशी तो

थी पर कार की मालकिन तो आखिर नीमम ही थी. बिना नीलम की इजाजत के कोई स्वेच्छा से कार नहीं ले जा सकता.

सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 1: नीलम का क्या था प्लान

मेहमानों के जाते ही सब ने राहत की सांस ली. सभी थके हुए थे पर मन खुशी से उछल रहे थे. दरअसल, आज नीलम का रोकना हो गया था. गिरधारी लालजी के रिटायरमैंट में सिर्फ 6 महीने बाकी थे पर उन की तीसरी बेटी नीलम का रिश्ता कहीं पक्का ही नहीं हो पाया था. जहां देखो कैश और दहेज की लंबी लिस्ट पहले ही तैयार मिलती.

गिरधारी लालजी 3 बेटियां ही थीं. उन्हें बेटियां होने का कोई मलाल न था. उन्होंने तीनों बेटियों को उन की योग्यता के अनुसार शिक्षा दिलवाई थी. कभी कोई कमी न होने दी.

2 बड़ी बेटियों के विवाह में तो लड़के वालों की मांगों को पूरा करतेकरते उन की कमर सी टूट गई थी, फिर मकान भी बन रहा था. उस के लिए भी पैसे आवश्यक थे. नीलम की शादी में अब वे उतना खर्च करने की हालत में नहीं रहे थे.

नीलम केंद्रीय विद्यालय में नौकरी करने लगी थी. उस ने लड़के वालों के नखरे देख कर शादी न करने की घोषणा भी कर दी थी? परंतु परिवार में कोई भी उस की बात से सहमत न था. जब किसी रिश्ते की बात चलती वह कोई न कोई बहाना बना मना कर देती. बारबार ऐसा करने से घर में कलह का वातावरण हो जाता. पापा खाना छोड़ बाहर निकल जाते. देर रात तक न आते. मम्मी उसे कोसकोस कर रोतीं. कभीकभी बहनों को बीचबचाव के लिए भी बुलाया जाता. वे भी उसे डांट कर जातीं.

नीलम को शादी या लड़कों से नफरत नहीं थी. वे शादी के नाम पर लड़की वालों को लूटनेखसोटने यानी दहेज, कैश जैसी प्रथाओं से चिढ़ती थी. आखिर में उस ने कहा कि जो लड़का बिना दहेज के शादी करने को तैयार होगा, मेरे योग्य होगा उस से विवाह कर लूंगी. इत्तफाक से नीलम की इकलौती बूआजी ऐसा ही रिश्ता खोज कर ले आईं. लड़का प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. लड़के वालों को दानदहेज कुछ नहीं चाहिए था. केवल पढ़ीलिखी, नौकरी वाली लड़की की मांग थी. बस दोनों ओर से रजामंदी हो गई.

आज रोकना की रस्म में भी लड़के ने केवल नारियल और 101 रुपए का शगुन लिया. गिरधारी लालजी ने लड़के के मातापिता, भाईबहन को मिठाई के डब्बे दे कर विदा किया.

उन के जाते ही महफिल जुट गई. नीलम की दोनों बहनें आई हुए थीं. बूआजी थीं. बूआजी तो आज की विशेष मेहमान थी. सभी उन की तारीफ कर रहे थे. उन्होंने भाई की बड़ी समस्या सुलझ दी थी. लड़का व परिवार भी अच्छा लग रहा था. लड़का एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. स्मार्ट भी था. चाय पी रहे थे. सभी खुश थे परंतु नीलम की तर्कबुद्धि, यह मानने को तैयार नहीं थी कि आज के जमाने में ऐसे आदर्शवादी लोग भी मिलते हैं, जो दहेज के बिना भी शादी करने को तैयार हो जाते हैं.

2 महीने बाद का ही विवाह का मुहूर्त भी निकल आया था. विवाद भी सादगीपूर्ण हुआ. नीलम अपनी ससुराल जा पहुंची. ससुराल में भी कोई सजावट या दिखावा नहीं था. नीलम ने स्कूल से एक महीने की छुट्टियां ली थीं. उस के पति राकेश ने हनीमून के लिए कुल्लूमनाली जाने का प्रयोग बनाया. जाने से एक दिन पहले राजेश के कुछ दोस्त, जो शादी में शामिल नहीं हुए थे, घर आ गए. लिविंगरूम में हंसीमजाक चल रहा था.

नीलम चायनाश्ता ले कर जा रही थी कि अचानक उस के कानों में एक दोस्त की आवाज सुनाई पड़ी. वह कह रहा था कि यार राजेश तूने बिना दहेज के शादी कर के बड़ी दरियादिली दिखाई. यह सुन नीलम के कदम पीछे ही रुक गए. वह राजेश का जवाब सुनने को आतुर हो उठी. नीलम की आहट से अनजान राजेश जोर से ठहाका लगा कर बोला कि मेरा दिमाग अभी पागल नहीं हुआ है. मैं तुम सब जैसा नहीं हूं. तुम जैसों से बुद्धि में चार कदम आगे ही चलता हूं. तुम सब दहेज मांग कर ससुराल में अपनी इमेज खराब करते हो. वहीं मैं ससुराल में भी मानसम्मान बनाए रख सरकारी नौकरी वाली लड़की से विवाह कर के अपना भविष्य सुरक्षित करने की सोचता हूं. आगे समझने लगा. तुम सब महामूर्ख हो. एक बार ढेर सारा दहेज ले कर सोचते हो उम्र कट जाएगी. बचपन में पढ़ी, वह कहानी, जिस में हंस लड़के को एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी मिल जाती है.

उस मूर्ख ने सोचा रोजरोज कौन इंतजार करे एक ही बार इस मुरगी का पेट काट इस के सारे सोने के अंडे निकाल लूं और फिर उस ने वैसा ही किया. क्या हुआ मुरगी भी गई अंडा भी न मिला. तुम सब भी उस मूर्ख लड़के हंस से कम नहीं हो. कहानी याद आई कि नहीं? मैं तो मुरगी से रोज 1 सोने का अंडा लिया करूंगा. समझ लो मैं ने सोने का अंडा देने वाली मुरगी पाल ली है. तुम लोगों को यह पता ही है कि सहज पके सो मीठा होय. जहां तुम लोग बड़ेबड़े व्यवसायियों की लड़कियों से शादी कर दहेज और रकम के सपने पूरे करने के  पीछे पागल रहते. वहीं मैं कुछ और ही सोच रखता था. अब देखो मेरी पत्नी नीलम 3 बहनें ही हैं. मातापिता के बाद उन के पास जो भी है वह तीनों बहनों को ही मिलेगा, फिर नीलम नौकरी भी करती है.

सरकार स्कूल में पीजीटी अध्यापिका है. समझे कुछ? उसे 7वें पे कमीशन के अनुसार मोटा वेतन और तरहतरह की सुविधाए मिलती हैं. मैं ने तो नीलम से शादी कर के जीवन बीमा करवा लिया है जो जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी होगा. ऐसा सौदा किया है वरना दिमाग पागल नहीं हुआ था जो बिना दहेज की शादी करता.

दोस्त भी ठहाका लगा कर हंसने लगे. बोले कि जानते हैं, यार तू तो कालेज के जमाने से ही बनिया बुद्धि का था. हर जगह हिसाबकिताब, लाभहानि देखता था. फिर सभी का समवत ठहाका लगा.

यह सब सुन कर नीलम का मन खट्टा हो गया. उस की तार्किक बुद्धि आखिर जीत ही गई. वह समझ गई हाथी के खाने के दांत अलग हैं और दिखाने के अलग हैं. बेमन से चायनाश्ता देने अंदर गई. कुछ देर पास बैठ कर काम के बहाने बाहर निकल आई. वह सोचने लगी प्रेम, अपनापन, सहयोग के चलते हम दोनों मिल कर घर, बाहर का खर्च मिलबांट कर करते तो उसे कभी कोई एतराज न होता आखिर पढ़ीलिखी, नौकरी वाली बहू किसलिए आजकल मांग में है? पर इस प्रकार चालाकी से, रोब से या बेवकूफ बना कर कोई उस की कमाई पर हक जताएगा यह बात उसे कतई गवारा नहीं.

प्रोजैक्ट- भाग 3: कौन आया था शालिनी के घर

शालिनी और समीर दोनों कार में बैठे. बौस ने कार स्टार्ट कर आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘इन का तो अभी काम हो जाएगा, रही बात तुम्हारे प्रोजैक्ट की तो उस पर की गई तुम्हारी मेहनत मैं बेकार नहीं जाने दूंगा. उस के लिए मैं कंपनी से बात कर लूंगा. तुम थोड़ा धैर्य रखो. इन दोनों की तो शिकायत कर कंपनी से निकलवाऊंगा. साथ ही, इस प्रोजैक्ट के लिए अगले महीने की तारीख तय करने की कोशिश करूंगा.

‘और इस बार जाते वक्त शालिनी को भी साथ लेते जाना. यह भी घूम आएगी तुम्हारे साथ. वहां मीटिंग में बस 2-3 घंटे का ही काम होता है. फिर ऐश करना तुम लोग,‘ बौस ने यह कहा, तो शालिनी और समीर दोनों के चेहरे एक लंबी सी मुसकान ने दस्तक दे दी.

बौस ने गाड़ी को ब्रेक लगाया. पुलिस स्टेशन आ चुका था और पीछेपीछे पुलिस की वह जीप भी आ गई थी, जिस में वे दोनों अफसर मौजूद थे जो कि लाख मना करने के बावजूद शराब के नशे में ऊलजलूल बके जा रहे थे. उन की हरकत और मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें सलाखों के पीछे धकेल दिया गया.

‘फिलहाल तो ये दोनों अभी नशे में हैं. कल सुबह इन का नशा उतरते ही पूछताछ की जाएगी. उस के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी.

‘और हां.. इस दौरान अगर आप में से किसी की जरूरत पड़ी, तो आप को फोन कर दिया जाएगा. अभी आप लोग जा सकते हैं,‘ पुलिस ने शालिनी और समीर के बयान दर्ज कर के कहा. और फिर तीनों वहां से निकल गए.

बौस ने उन दोनों को घर छोड़ते हुए कहा, ‘पुलिस स्टेशन से फोन आए, तो मुझे भी इत्तिला कर देना. मैं भी साथ चलूंगा.‘

अगले दिन सुबह फोन की घंटी के साथ ही समीर की आंख खुली. फोन पुलिस स्टेशन से था. बात कर के समीर ने शालिनी को जगाते हुए कहा, ‘सुनो डियर, पुलिस स्टेशन से फोन आया है. पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ कर ली. सुबह साढे़ 10 बजे हमें पुलिस स्टेशन बुलाया है. तुम जल्दी से उठ कर तैयारी करो. मैं बौस को फोन मिलाता हूं,‘ शालिनी को जगा कर समीर ने अपने बौस को इस बारे में जानकारी दी. और फिर साढे़ 10 बजे तीनों पुलिस स्टेशन पहुंच गए.

उन तीनों को देख थानाधिकारी ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘आइए.. आइए.. बैठिए, आप लोग किसी रंजीत नाम के शख्स को जानते हैं, जो कि आप ही के औफिस में काम करता है.’

‘हां… हां, बिलकुल, औफिस में वह मेरा सीनियर है,‘ समीर बोला.‘लेकिन, रंजीत का इस केस से क्या ताल्लुक…?‘ बौस ने आश्चर्यमिश्रित भाव से कहा.

‘‘आप लोग मुझे उस का पूरा पता और मोबाइल नंबर दीजिए. अभी पता चल जाएगा कि इस केस से उस का क्या ताल्लुक है,’ थानाधिकारी ने प्रतिउत्तर में कहा. और फिर आवाज लगाई, ‘हवलदार, उन दोनों नशेड़ियों को बाहर लाओ जरा.’

अब दोनों अफसर अपनी झुकी गरदन के साथ उन सब के सामने थे. उन दोनों को अपनी आंखों के सामनेपा कर बौस ने कहा, ‘तुम जैसे अफसरों को पहचानने में मुझ से चूक कैसे हो गई. मैं ने अपने 22 साल के कैरियर में अब तक इतने बेशर्म और घटिया किस्म के अफसर नहीं देखे.‘‘इस में हमारी कोई गलती नहीं है, हमें माफ कर दीजिए,‘ एक अफसर बौस की बात काटते हुए बोला.

‘गलती तुम्हारी नहीं, गलती तो मेरी है, जो तुम्हें उस दिन फिल्म देख कर लौटते समय रास्ते में पड़ने वाले समीर के घर के बारे में बताया,‘ बौस ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

‘ऐसा बिलकुल नहीं है सर, दरअसल, उस दिन फिल्म देखने के बाद आप ने तो हमें होटल के गेट तक ही छोड़ा था, लेकिन जब हम अंदर गए तो आप के औफिस में काम करने वाला रंजीत रूम के आगे खड़ा हमारा इंतजार कर रहा था. रूम में जा कर हम ने कुछ देर बात की और फिर उस ने अपने बैग में से व्हिस्की की बोतल निकाल कर हमारी मानमनौव्वल की, तो हम ने भी हामी भर दी.

2-3 पैग पीने के बाद रंजीत ने कहा, ‘इस शहर में किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझे बताइएगा. आप की हर ख्वाहिश पूरी होगी. और फिर उसी ने हमें बताया कि समीर की पत्नी शालिनी का चालचलन कुछ ठीक नहीं है. काम के बोझ के चलते वह अपनी बीवी को पूरा वक्त नहीं दे पाता, औफिस में भी ओवरटाइम करता है. और उधर इस के घर में हर रोज नएनए लोगों का आनाजाना लगा रहता है. इस बारे में समीर को जरा भी खबर नहीं है. एकदो बार तो मैं भी जा चुका हूं. आप का भी अगर मूड हो तो बताइएगा.‘

फिर दूसरा अफसर अपनी सफाई में बोला, ‘हम उस की बातों में आ गए और अगले दिन औफिस में समीर का प्रोजैक्ट सलैक्ट करने के बाद जब हम अपने रूम में आए, तो हमारे पीछेपीछे रंजीत भी 2 व्हिस्की की बोतल ले कर रूम में आ गया. और जब हम पीने बैठे तो उस ने बातोंबातों में कहा, ‘समीर दोपहर 3 बजे की ट्रेन से नोएडा जा रहा है, इस से अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा, मैं तुम दोनों को उस के घर तक छोड़ दूंगा. और समीर के जाने के बाद शालिनी को भी तो अपने घर आने वाले खास मेहमानों का इंतजार रहेगा ही न,‘ कहते हुए उसी ने हमें समीर के घर तक अपनी गाड़ी से छोड़ा.

अब तक उन दोनों की बातों से सबकुछ स्पष्ट हो गया. उन की बातें सुन कर समीर का खून खौलने लगा था, तभी बौस बोले, ‘रंजीत ने समीर के साथ ऐसा क्यों किया? वह तो औफिस में इस का सीनियर है.‘

‘असली प्रोब्लम ही यही है सर कि वह मेरा सीनियर है, फिर भी पिछले 3 सालों से हर साल कंपनी से आने वाले अफसरों ने आज तक उस का कोई प्रोजैक्ट सलैक्ट नहीं किया. और इस बार आप ने यह काम मुझे सौंप दिया, तो उस ने इसे अपनी तौहीन समझते हुए मुझ से बदला लेने के लिए यह सब खेल खेला,‘ बौस की बात काटते हुए समीर ने अपना पक्ष रखा, तो बौस की आंखों के आगे जो भी धुंधला था सब साफ हो गया.

बौस ने पुलिस को रंजीत पर कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए और उन दोनों अफसरों की शिकायत कंपनी के हैड औफिस में कर दी, जिस के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

अपने आसपास के लोगों से भी हमें उतना ही सचेत रहने की आवश्यकता है, जितना अनजान अजनबियों से. शायद, यह बात अब शालिनी और समीर दोनों की समझ आ चुकी थी.

प्रोजैक्ट- भाग 1: कौन आया था शालिनी के घर

शनिवार को ओवर टाइम करने के बावजूद भी समीर का काम पूरा नहीं हो पाया था. रविवार को छुट्टी थी और सोमवार को औफिस की मीटिंग में किसी भी हाल में उसे प्रोजैक्ट पेश करना था, इसलिए वह औफिस का काम घर पर ले आया था, ताकि कैसे भी कर के प्रोजैक्ट समय पर पूरा हो जाए.

लेकिन, घर पहुंचते ही उसे याद आया कि रविवार को वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ फिल्म देखने जाने वाला है. और इस बार वह मना भी नहीं कर सकता था, क्योंकि अब की मैरिज एनिवर्सरी भी तो इसी रविवार को पड़ रही है.

पिछली बार की तरह इस बार वह अपने काम की वजह से शालिनी का मूड औफ नहीं करना चाहता था. रात के खाने के बाद वह शालिनी से यह कह कर अपने काम में जुट गया, ‘सौरी डियर.. आज थोड़ा काम निबटा लूं, कल पूरा दिन ऐंजौए करेंगे.‘

समीर के चेहरे पर काम का तनाव साफ झलक रहा था, जिसे चाह कर भी वह शालिनी से छुपा न सका. शालिनी उस की ओर करवट ले कर लेटी उसे देखती रही और लेटेलेटे कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

अगले दिन सुबह जब शालिनी तैयार हो कर समीर के सामने आई, तो वह उस की तारीफ किए बिना नही रह सका. अभी उस की तारीफ खत्म भी नहीं हुई थी कि शालिनी ने अपनी बंद मुट्ठी समीर की ओर बढ़ाई. समीर ने उस का हाथ थाम कर बंद मुट्ठी की एकएक कर उंगली खोली और मुट्ठी में बंद चमकीली सिंदूरदानी अपने हाथ में ले कर शालिनी की मांग भरी और उसे अपनी बांहों में भर लिया.

इस दौरान शालिनी को भी न जाने क्या शरारत सूझी, वह उस की पीठ पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, ‘बताओ, मैं ने क्या लिखा है?‘

‘तुम्हारा नाम,‘ शालिनी को अपनी बांहों में कसते हुए समीर ने कहा.‘बिलकुल गलत. अच्छा चलो, दोबारा लिखती हूं, अब ठीक से बताना.‘शालिनी  फिर से समीर की पीठ पर उंगली से कुछ लिखने लगी. अपनी पीठ पर घूमती शालिनी की उंगली के साथसाथ समीर ने अपना दिमाग भी घुमाना शुरू किया और फिर तपाक से बोला, ‘आई लव यू.‘

सही जवाब पा कर शालिनी के चेहरे पर मुसकान फैल गई, ‘आई लव यू टू मेरी जान, चलो, अब जल्दी से तैयार हो जाओ. याद है न, आज हम लोग फिल्म देखने जाने वाले थे,‘ समीर को याद दिला कर शालिनी अपने काम में बिजी हो गई.

शालिनी चाहती तो आज फिल्म देखने का प्रोग्राम कैंसिल भी कर सकती थी. उस की कोई खास इच्छा नहीं थी फिल्म देखने की और न ही थिएटर में उस के पसंद की कोई मूवी लगी थी. उसे तो बस कैसे भी कर के इस बार यह खास दिन समीर के साथ बिताना था.

हालांकि शालिनी अच्छी तरह से जानती थी कि इस बार समीर के लिए यह प्रोजैक्ट कितना माने रखता है. लेकिन फिर भी उस ने समीर की मरजी देखनी चाही और चुप रही.

शालिनी यह सब सोच ही रही थी कि समीर तैयार हो कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. वह समीर को अपलक देखती रही, समीर नीचे से ऊपर तक बिलकुल टिपटौप था. बस चेहरा थोड़ा उतरा हुआ था. तैयार होने बावजूद वह अपने चेहरे से काम का तनाव नहीं छुपा सका. अनमना सा समीर शालिनी को साथ ले कर चल पड़ा.

वहां थिएटर में पहुंच कर वे गाड़ी पार्क कर के अंदर की ओर जाने लगे कि वहां पार्किंग में पहले से खड़ी एक ब्लैक कार को देख कर समीर चैंक गया और बोला, ‘अरे, बौस की गाड़ी, मतलब, बौस भी फिल्म देखने आए हुए हैं.‘

‘इतना बड़ा शहर है, इस कंपनी और इस कलर की गाड़ी किसी और की भी तो हो सकती है, क्या नंबर याद है तुम्हें बौस की गाड़ी का?‘ शालिनी ने पूछा.

नंबर को सुनते ही समीर बोला, ‘खैर, छोड़ो जो होगा देखा जाएगा. दोनों आगे बढे़ और थिएटर में अपनी सीट पर जा कर बैठ गए. फिल्म शुरू हो चुकी थी. फिल्म का शुरुआती सीन ही इतना सस्पैंस भरा था कि समीर की उत्सुकता बढ़ गई और उस के चेहरे से काम का तनाव जाता रहा.

इंटरवल में जब वह स्नैक्स लेने कैंटीन पहुंचा, तो भीड़ में अपने कंधे पर अचानक किसी का हाथ पाया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वही हुआ जिस बात का अंदेशा था. उस का बौस सोमवार की मीटिंग में आने वाले उन दोनों अफसरों के साथ फिल्म देखने पहुंचा हुआ था.

‘क्या बात है समीर अकेलेअकेले, पहले पता होता तो तुम्हें भी साथ ले आते हम लोग,‘ बौस ने मुसकराते हुए कहा.‘नहीं सर, मैं अकेला नहीं शालिनी भी साथ में है, वह वहां बैठी है. वैसे, आज हमारी शादी की दूसरी सालगिरह है. बस इसीलिए फिल्म दिखाने ले आया.‘

‘ओहो… कांग्रेचुलेशन समीर. और हां, मैडम कहां है भई, आज तो उन्हें भी बधाई देनी बनती है,‘ बौस ने ठहाका लगाते हुए कहा.समीर अपने बौस और उस के साथ आए दोनों अफसरों को शालिनी के पास ले आया. सब ने शालिनी को बधाई दी.

‘क्या लेंगे सर आप लोग ठंडा या गरम?‘ समीर ने पूछा.‘भई, तुम्हारी शादी की सालगिरह है, सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला पूरी पार्टी देनी होगी.’समीर ने पार्टी के लिए हां भरी, तभी फिल्म शुरू हो गई, तो सभी अपनीअपनी सीटों पर जा कर बैठ गए.

फिल्म के खत्म होने पर समीर ने शालिनी को कुछ शौपिंग कराई. शहर की कई फेमस जगहों पर घुमाया, वहां सेल्फियां लीं और घर लौटते हुए खाना उसी होटल में खाया, जहां वे शादी से पहले कई बार एकसाथ गए थे.

रात गहराने लगी थी. घर पहुंच कर समीर सीधे अपने काम में जुट गया. फिर से उस के चेहरे पर वही काम का तनाव देख शालिनी समझ गई. कपड़े चेंज कर वह भी उस की मदद करने की मंशा से पास आ कर बैठ गई. उस ने भी कुछ हाथ बंटाया और देर रात तक समीर के उस महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट को अंजाम तक पहुंचा ही दिया.

समीर अब काफी हलका महसूस कर रह था. उसे उम्मीद नहीं थी कि दिनभर की मौजमस्ती के बाद देर रात तक प्रोजैक्ट तैयार हो जाएगा. वह खुशी से उछल पड़ा. मदद के लिए शालिनी का शुक्रिया अदा करते हुए उसे अपनी बांहों में भर लिया.

शालिनी भी तो यही चाहती थी. उसे मालूम था कि जब तक काम पूरा नहीं होगा, समीर उस के पास नहीं आने वाला इसीलिए उस ने साथ लग कर उस के काम को अंजाम तक पहुंचाया.

‘थैंक यू सो मच डियर, तुम न होती तो सुबह हो जाती,‘ कहते हुए समीर ने शालिनी के गले पर नौनस्टोप एक बाद एक किस करने लगा.

शालिनी की सांसों की रफ्तार बढ़ने लगी. वह भी उस का साथ देते हुए बोली, ‘अब सुबह एकदूसरे की बांहों में ही होगी.‘ और समीर को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया.

कसक- भाग 3: क्या प्रीति अलग दुनिया बसा पाई

मैं तो जैसे सलीब पर टंग गया. एक रात प्रीति को समझतेसमझते मैं थक गया. वह बराबर मम्मी पापा के लिए अनापशनाप कहे जा रही थी, उन्हें अपमानित कर रही थी. यह सब बरदाश्त के बाहर हो गया था.

वह अपना तकिया उठा कर बाहर जाने लगी और बोली, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा माई फुट.’’

उस की इस बदतमीजी से खीज कर स्वत: ही मेरा हाथ उस पर उठ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘सौरी बोलो प्रीति.’’

उस ने कहा, ‘‘किस बात के लिए बोलूं? तुम सौरी बोलो, तुम ने हाथ उठाया है.’’

उस ने माफी नहीं मांगी उलटी जोरजोर से चिल्लाने लगी. यहां से जाने का बहाना मिल गया था उसे. बस फिर क्या था, उस ने अपना सूटकेस उतारा और उस में अपना सामान पैक कर दिल्ली अपने पीहर चली गई. हां, वह दिल्ली की रहने वाली थी. ऐसा लगा जैसे वह किसी मौके की तलाश में ही थी.

मुझे खुद पर ग्लानी हो आई कि यह क्या कर दिया मैं ने. उसे मनातेमनाते ही उसे खो दिया. मैं ने उसे बहुत रोकना चाहा. अनजाने में घबरा कर कि कहीं उसे खो न दूं, मैं ने माफी भी मांगी, लेकिन फिर उस ने एक न सुनी. लगा उसे बहुत अभिमान हो गया था शायद. उस घमंड ने उसे

न झकने दिया न ही उस ने अपनी गलती की माफी मांगी.

तभी मेरे मन ने मुझे धिक्कारा कि गलती कर के भी माफी न मांगे और मांबाप का

सम्मान न कर सके, ऐसा खोखला व्यक्तित्व है उस का, जिस के पीछे तू दीवाना हो रहा है.

जाने दे उसे. चली जाने दे. उसी दिन खत्म हो गया. वह रिश्ता शोर सुन कर मम्मीपापा बाहर आ गए थे.

मम्मी पागलों की तरह ‘बहूबहू’ पुकारती रहीं. कभी मेरी तरफ हाथ पसारतीं तो कभी दरवाजे की तरफ उसे रोक लेने को दौड़तीं.

उस ने फिर किसी की नहीं सुनी न पीछे मुड़कर ही देखा.

पापा शांत अपनी कुरसी पर बैठे हुए यह तमाशा देखते रहे. कुछ नहीं बोले. उन के चेहरे पर एक अजीब सा दर्द साफ दिखाई दे रहा था. चुप न रहते तो क्या करते? और फिर इस तरह से सूने दिनों की शुरुआत हो गई और यह सूनेपन का सिलसिला जिंदगीभर चलता ही रहा. कभी न खत्म होने वाला सिलसिला.

एक घर 3 कोनों में बंट गया- मैं, पापा और मम्मी. खाने की टेबल पर कभीकभी साथ हो लेते. वे दोनों कभी साथ बैठते, बतियाते और जी हलका कर लेते, परंतु मेरे कोने का अंधेरा, मेरे मन की कसक बढ़ती ही गई. कुछ दिन बाद वे लोग भी चले गए.

इतने बड़े बंगले में समय गुजारना बहुत मुश्किल था. हर कोने में प्रीति की यादें बसी थीं. समय काटे नहीं कटता था. अकेले रहते हुए सूनापन मन में ऐसा रम गया था कि कोई जोर से बोलता तो मैं चौंक जाता. औफिस भी जाता था, सभी काम होते थे, लेकिन कहीं भी मन नहीं लगता था. किसी से हंसीमजाक करना बिलकुल न सुहाता था.

उस दिन भी क्लब में बैठा था. सभी ऐंजौय कर रहे थे. तभी किसी ने कहा, ‘‘यार विक्रम तूने मोहित को देखा?’’

उस ने हाथ का इशारा कर के कहा, ‘‘वहां उस कोने वाली टेबल पर. वह आजकल बहुत पीने लगा है. तुम तो पहले भी मिले हो. जानते हो न उसे.’’

‘‘हां बिलकुल अच्छी तरह से जानता हूं. बहुत हंसमुख हुआ करता था.’’

यह सुरेंद्र ही था जो विक्रम को मेरे बारे में बता रहा था. विक्रम इसी महीने यहां

ट्रांसफर हो कर आया था.

‘‘अब वह पहले वाला मोहित नहीं रहा…

न वह हंसता है न ही मजाक करता है,’’

सुरेंद्र बोला.

विक्रम ने अचंभित हो कर पूछा, ‘‘ऐसा क्या हो गया भाई?’’

उस ने विक्रम को बताया, ‘‘धोखा दे गई इस की पत्नी इसे. शायद किसी के साथ भाग गई. तभी से यह देवदास बना फिरता है.’’

मन हुआ जा कर उस का गला पकड़ लूं या जबान खींच लूं उस की पर यह सोच कर कि गलत भी तो नहीं कह रहा वह मैं चुपचाप वहां से उठ कर चला आया.

ऐसे जुमले अकसर महफिलों में, पार्टियों में मेरे बारे में सुनाई देने लगे थे. शुरू में बुरा लगता था, लेकिन धीरेधीरे यह सब सुनने की आदत सी हो गई.

एक दिन पापा का फोन आया. कहने लगे, ‘‘यहां आ जाओ कोई बात करनी है,’’ बहुत दिनों बाद उन्होंने मौन तोड़ा था और संयत हो कर मुझे अपना फैसला सुनाया, जिसे सुन कर मैं स्तब्ध

रह गया.

मुझे उसे तलाक के लिए स्वयं को तैयार करने में काफी समय लग गया. असल में उम्मीद लगाए बैठा था कि प्रीति एक न एक दिन जरूर लौट आएगी. वह भी मुझ से ज्यादा दिन अलग नहीं रह पाएगी, लेकिन मैं प्रति दिन उस का इंतजार करता ही रह गया. उसे नहीं आना था तो वह नहीं आई.

कोर्टकचहरियों के चक्कर इंसान को तोड़ कर रख देते हैं, यह मैं ने तभी जाना था. सम्मन आते थे, तारीखें पड़ती थीं, जिरह होती थी. वकीलों के वाकजाल से भला कौन बच सकता. कोर्ट में झठेसच्चे आरोप और उन्हें सिद्ध करने

के प्रयास.

इस सारी प्रक्रिया के दौरान मानसिक तनाव

के बीच में धीमी गति से गुजरता हुआ

जीवन… ऐसी कितनी ही भयानक रातें मुझे गुजारनी पड़ीं. एक रात वह भी थी जिस दिन प्रीति घर छोड़ कर गई थी. वह अमावस की

रात से भी ज्यादा काली रात थी. बाहर तो घना अंधेरा था, ही लेकिन मन के अंदर भी तूफान उठ रहा था.

हर बार चीखने का मन करता था.

मन यह पूछना चाहता था कि प्रीति मैं ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा जो तुम ने मेरे साथ धोखा किया? मैं ने तो तुम्हें पलकों पर बैठाया था, जी जान से प्यार किया था. मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी? तुम मुझ से कहती तो सही.’’

सोचता हूं कि अंतत: फैसला होगा ही और वह इस विवाह बंधन से मुक्त हो जाएगी. वह तो निर्मोही है, धोखेबाज है, न जाने किस मिट्टी की बनी है. लेकिन मैं ने तो उस से प्यार किया था, किया है और शायद जीवनपर्यंत करता रहूंगा. मैं आज भी स्वयं को इस तलाक के लिए राजी नहीं कर पाया जो परिवार और समाज चाहता था, वह उस ने हमारे बीच करवा दिया.

मगर मैं ने उसे दिल से नहीं माना. यह कैसा प्रेम संबंध था? यह कैसा विवाह संबंध था, जिसे मैं ने माना? लेकिन उस ने नहीं माना. यह कसक सदा मेरे मन में रहेगी कि क्यों प्रीति तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

कसक- भाग 2: क्या प्रीति अलग दुनिया बसा पाई

शुरूशुरू  में वह क्लब में डांस करने में हिचकिचाती थी. उस समय मैं ने ही उसे बहुत संबल दिया. मेरे प्रोत्साहित करने पर धीरेधीरे वह खुलने लगी और जल्द ही वह पार्टी में आकर्षण का केंद्र बनती चली गई. तब मुझे बुरा नहीं लगा था.

मैं अपने सहकर्मियों के बीच गर्व महसूस करने लगा था, यह सोच कर कि सब की बीवियों में मेरी बीवी ही इतनी सुंदर और आकर्षक है.

अब सोचता हू कि शायद मैं ने वहीं गलती कर दी. यदि मैं उसे वहीं रोक देता, मैं उसे वहीं समझ जाता, तो शायद इतनी बात नहीं बढ़ती. परंतु नहीं मुझे बाद में समझ आया कि प्रीति बंध कर रहने वाली इंसान नहीं थी, वह तो स्वतंत्र आकाश में उड़ान भरने वाला परिंदा थी. उस ने घर की परिधि में रहना नहीं सीखा था. यहां आ कर उसे उड़ने के लिए खुला आसमान मिल गया था.

उसे सजनासंवरना, मौजमस्ती करना, सैरसपाटे, होटलों में खाना और शौपिंग करना बहुत पसंद था. शुरूशुरू में उस के मोह में यह सब मुझे भी गलत नहीं लगता था. लेकिन हर बात की जब अति हो जाती है तब वही बात बुरी लगने लगती है.

यहां आए अभी कुछ दिन ही हुए थे. एक दिन उस ने कहा, ‘‘जानू हम शादी के बाद कहीं हनीमून पर नहीं गए.’’

‘‘चलो न कहीं चलते हैं,’’ मैं भी उसे मना नहीं कर सका, ‘‘तुम बताओ कहां चलना है.’’

‘‘जहां तुम कहो, चलते हैं,’’ और उस के कहने पर हम दोनों ने कश्मीर का ट्रिप प्लान किया.

फिरदौस ने सच ही कहा है कि कश्मीर धरती का स्वर्ग है. यह वहां जा कर ही जाना. हरीभरी वादियां, कलकल बहती नदियां, बर्फ से ढके पर्वत मन मोह लेते. श्रीनगर में डलझल, शिकारे और गुलमर्ग, सोनमर्ग के बर्फीले पहाड़, फूलों से लदे बगीचे, देवदार के ऊंचेऊंचे वृक्ष आदि सभी कुछ बहुत ही मनमोहक. वह उन नजारों में खो कर रह गई. जगहजगह घूमना, फोटो खिंचाना उस का शौक था.

मैं ने भी उसे बहुत घुमाया, ढेरों तोहफे दिए, जी भर कर प्यार किया. उस के प्रेम में डूबा हुआ था मैं.

तभी फिर अचानक मुझे उस के व्यवहार पर संदेह होने लगा. मैं जब भी औफिस से घर लौट कर आता तो वह कभीकभी घर पर नहीं मिलती थी. पूछने पर बहाने बना देती थी. धीरेधीरे वह मुझे इग्नोर करने लगी. फिर कई बार उसे किसी और के साथ हाथ में हाथ डाले हंसतेबतियाते देख संदेह गहराने लगा था.

जब मैं उस से पूछता कि वह कौन था तो जवाब में कहती कि तुम बेकार ही शक करते हो. वह तो मेरा दोस्त था.

इस बात से मैं क्षुब्ध रहने लगा. वह मुझे धोखा दे रही थी. मैं उस के प्रेम में इतना पागल था कि उस के द्वारा दिए जा रहे धोखे को धोखा मानने को तैयार ही नहीं था. मेरा प्यार मुझ से दूर होता जा रहा था. उस के व्यवहार में, मैं बदलाव महसूस कर रहा था. ऐसा लगता कि वह मुझ से बोर हो चुकी है और अब कोई दूसरा तलाश रही है.

कई बार मन करता कि पूंछूं कि प्रीति मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी? तुम किस बात का मुझ से बदला ले रही हो? अब मुझ से पहले जैसा प्यार नहीं रहा तुम्हें. आखिर क्यों?

उस की तरफ से किसी भी क्यों का कोई जवाब नहीं था. मेरा मन बहुत दुखी था और सांत्वना देने वाला कोई नहीं था.

कई बार घर में अकेले बैठे सोचता रहता था कि मुझ से कहां गनती हो गई? क्या प्रीति को चुनने में मुझ से कोई भूल हुई? कभीकभी बहुत गुस्सा भी आता. आखिर मैं एक मर्द हूं, प्रीति का मुझे अनदेखा करना, उस का बेगानापन, पराए लोगों के साथ उस का घूमना, कईकई घंटे घर से गायब रहना अब सहन नहीं हो रहा था. मेरा दिल टूट चुका था. फिर भी मैं ने सब्र किया यह सोच कर कि सब ठीक हो जाए.

एक रात क्लब में पार्टी थी. उस समय प्रीति बहुत खूबसूरसूत लग रही थी. थोड़ी देर

में मैं ने देखा वह अपने होश में नहीं थी. उस ने शायद ज्यादा पी ली थी. यह मैं ने पहली बार देखा, उस के हाथ में सिगरेट भी थी और वह अफसरों के बीच में बेतरह पश्चिमी संगीत पर नाच रही थी. मेरी सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी.

मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘प्रीति चलो घर चलते हैं.’’

उस ने मेरा हाथ झटक दिया. मैं ने फिर कोशिश की, परंतु नाकामयाब रहा. मैं वहां कोई तमाशा नहीं करना चाहता था, पर जब पानी सिर से ऊपर निकलने लगा तब अंत में मैं उसे घसीटता हुआ घर ले आया.

उसी दिन से वह मुझ से नाराज रहने लगी क्योंकि पार्टी में मैं ने उस का अपमान जो कर दिया था. घर आते ही वह मुझ पर बरस पड़ी, ‘‘तुम होते कौन हो मुझे रोकने वाले? हर किसी को अपना जीवन अपने तरीके से जीने का हक है. तुम मुझ से यह हक नहीं छीन सकते.’’

यहां कोई फिल्म का दृश्य नहीं फिल्माया जा रहा था, यहां हकीकत में मेरी जिंदगी पर बन आई थी. स्थिति मेरे हाथ से निकलती जा रही थी.

इसी बीच मम्मीपापा का फोन आया, ‘‘बहुत दिन हो गये तुम लोगों से मिले. बड़ी याद आ रही है, सो हम कल आ रहे हैं.’’

सुन कर मुझेे बेहद खुशी हुई. मैं ने उन के आने की खबर जब प्रीति को सुनाई तो उस ने कोई खुशी जाहिर नहीं की. उस के माथे की त्योरियां चढ़ गईं क्योंकि उस की स्वतंत्रता में खलल पड़ने वाला था. यह वही प्रीति थी जो अपने सासससुर का बहुत आदर करती थी और वे भी उसे बेहद चाहते थे. उस का ऐसा मन देख कर मुझे बहुत दुख पहुंचा.

मैं ने उसे बहुत समझया, ‘‘वे तो कुछ ही दिनों के लिए आ रहे हैं. तुम उन से प्यार से मिलोगी तो उन्हें अच्छा लगेगा.’’

मगर वह नहीं मानी. उस ने न उन से निभाया न ही उन का मानसम्मान किया. मैं ने सोचा था कि मम्मी आ कर उसे समझ लेंगी और पापा के सामने शर्म से प्रीति भी सही राह पर आ जाएगी, परंतु उस का व्यवहार देख कर मुझे बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी.

मम्मी उसे हर तरह से समझने की कोशिश कर रही थीं. विवाह के बंधन, पतिपत्नी के

बीच के अटूट संबंध, समाज का डर, रिश्तेनाते उसे कुछ न बांध सका. मम्मी उसे व्रत, तीजत्योहार, रीतिरिवाज समझने के प्रयत्न करतीं, तो वह उलटीसीधी बातें कर के उन का अपमान करती, तर्कवितर्क करती. मम्मी ने भी हथियार डाल दिए.

दिनप्रतिदिन झगड़े बढ़ते चले गए. सासससुर उसे बोझ लग रहे थे. इस स्थिति में जीना दूभर हो गया था. मेरे गले में जैसे फंदा सा कसता जा रहा था. मम्मीपापा से मेरी हालत देखी नहीं जा रही थी. उन का प्रीति के साथ रहना भी मुश्किल हो रहा था और वे मुझे इस हालत में छोड़ कर भी जाना नहीं चाहते थे.

सीलन- भाग 4: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

दुबई जा कर मोहित ने एक घर किराए पर ले लिया था. मोहित को घर का खाना पसंद है. मोहित घर के काम नहीं कर सकता है. मगर, नवेली प्यार के कारण सारे काम बिना किसी शिकायत के करती रही थी. नवेली को लगता था, ऐसा करने से वह अपने प्यार को सीमेंट की  दीवार की तरह मजबूत बना रही है. वक्त के थपेड़े उस दीवार को चाह कर भी गिरा नही पाएंगे.

रात को सैक्स करते समय मोहित ने प्रोटेक्शन इस्तेमाल करने से मना कर दिया.

“क्या तुम मुझ पर शक करती हो?” मोहित गुस्से से बोला.

नवेली बोली नहीं, मगर मैं अभी मां नहीं बनना चाहती हूं.

मोहित बोला, “विश्वास रखो, मैं तुम्हें किसी मुसीबत में नहीं डालूंगा.”

मगर जब नवेली के यूरिन में इंफेक्शन हो गया, तो डाक्टर ने कंडोम यूज करने की सलाह दी थी, मगर डाक्टर की सलाह के बावजूद भी मोहित प्रोटेक्शन यूज करने को तैयार न था.

“मैं तुम्हारे और अपने मध्य किसी तीसरे को बरदाश्त नहीं कर सकता.”

नवेली को लगता कि क्या प्यार ये ही होता है?

जब नवेली ने ये बात मोहित के दोस्त की पत्नी अनुकृति को बताई, तो उस ने कहा, “अरे, मोहित पागल है क्या?

वह बस तुम्हें दबा रहा है.”

जब रात में नवेली ने मोहित से बात करनी चाही, तो मोहित बोला, “अगर तुम मुझ पर शक करती हो, तो मैं आज से तुम्हें छुऊंगा भी नहीं.”

एक हफ्ता हो गया था. मोहित नवेली से दूरदूर रहता. वह ऐसे जताता जैसे नवेली ने कोई अपराध कर दिया हो.

नवेली को लगता, जैसे उस ने कुछ गलत कर दिया हो और फिर नवेली ने ही माफी मांगी. मोहित ने कुछ नहीं

कहा. बस उस रात फिर से बिना प्रोटेक्शन के ही

सैक्स किया. नवेली बस अपने शरीर को प्यार के नाम पर कुरबान करती रही.

नवेली अपना प्यार साबित करने के लिए सब करती, मगर मोहित और अधिक की दरकार करता. नवेली

अपने प्यार की दीवार से एक ईंट निकाल कर

मोहित के प्यार की दीवार को पूरा करती रही, मगर अंदर से वो खोखला होती चली गई थी.

मोहित का प्यार सीलन की तरह उस के अंदर पनप रहा था और उस के पूरे वजूद को फफूंदी की तरह गला रहा था. जैसे फफूंदी सड़ेगले पदार्थों से अपना पोषण लेती है, वैसा ही कार्य मोहित का प्यार नवेली के लिए कर रहा था.

आज मोहित ने बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया था. नवेली जैसे ही तैयार हो कर बाहर आई, तो मोहित ने चिल्ला कर कहा, “ये टौप अभी के अभी बदल कर आओ. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हारे जिस्म को देखें.”

मोहित का दोस्त अंकित और उस की पत्नी अनुकृति भी वहीं थे. मोहित ने इस बात का भी लिहाज नहीं किया.

आंखों में आंसू भरे हुए नवेली सूट पहन कर बाहर आई, तो मोहित फिर से बोला, “ये मुंह पर 12 क्यों बजा रखे हैं?”

ना जाने क्यों औरतों को सब को रिझाने में क्या मजा आता है?

रात में भी मोहित नवेली को कुछकुछ सुनाता रहा था, “तुम्हारी गलती नहीं है. तुम तो अच्छी लड़की हो, मगर तुम्हारे परिवार के संस्कार कुछ अलग हैं.”

नवेली मोहित के प्यार में ऐसी अंधभक्त हो चुकी थी कि उसे सही और गलत के बीच का फर्क ही समझ नहीं आ रहा था.

आज फिर से नवेली के पेट मे बहुत दर्द हो रहा था. डाक्टर ने आज उसे बहुत डांटा. पढ़ीलिखी हो कर भी तुम्हें क्यों समझ नहीं आ रहा है? तुम्हारा एरिया सेंसिटिव है. बारबार इंफेक्शन होना सही संकेत नहीं है.

रात में जब मोहित ने यह बात सुनी, तो उस ने फिर से अबोला कर लिया. सुबह नवेली की आंखें थोड़ी देर से खुली, तो मोहित बिना नाश्ता करे ही दफ्तर चला गया.

रात में नवेली ने बिरयानी और्डर कर दी थी, तो मोहित फिर से चिल्लाने लगा, “कैसी पत्नी हो? पति सुबह से भूखा अब घर आया है. और तुम ने बाहर से खाना मंगवा लिया. तुम्हें तो इतना भी नहीं पता कि मुझे चावल पसंद नहीं हैं.

“मगर, तुम्हारे घर में तो ऐसा ही चलता है.”

मोहित ने बेहद मानमनोव्वल के बाद भी खाना नहीं खाया था. नवेली भी उस रात भूखी ही सो गई थी.

सुबह उठ कर नवेली ने मोहित की पसंद के पोहे और हलवा बनाया. मोहित ने नवेली को खुशी से चूम लिया.

मोहित ने अच्छे से नाश्ता किया और गुनगुनाते हुए काम पर चला गया. एक बार भी मोहित ने ये नहीं पूछा कि नवेली ने नाश्ता किया है या नहीं.

रात में जब नवेली ने ये बात मोहित से कही, तो मोहित बोला, “तुम तो क्लेश करती रहती हो. अरे, तुम्हारा घर

है. मैं कौन होता हूं पूछने वाला?

“तुम्हें क्या समझ में आएगा, तुम्हारी परवरिश ही ऐसी हुई है.”

नवेली से रहा नहीं गया और बोल उठी, “तुम्हारी परवरिश  कैसी हुई है? बातबात पर दूसरों को नीचे दिखाना, बस अपने बारे में सोचना.”

मोहित ये सुनते ही आगबबूला हो उठा और गुस्से में तकिए को पटकने लगा. नवेली को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मोहित तकिए को नहीं उसे पटक रहा है.

नवेली रातभर सोचती रही, क्या सब शादियों में ऐसा ही होता है? क्या उस के परिवार में ही कुछ अलग तरीका है, जैसे मोहित कहता है. क्या वाकई में उस की मम्मी पापा की

कद्र नहीं करती हैं? क्या उस के परिवार में प्यार की परिभाषा ही गलत है? क्या प्यार में सांस लेने की भी जगह नहीं होती है?

नवेली बारबार अतीत में झांकने लगी, क्या हर बात पर पापा का मम्मी से सलाह लेना उन का दब्बूपन

दर्शाता है या उन का प्यार दर्शाता है? मम्मी को या उसे कभी भी किसी बात पर ना टोकना, क्या दर्शाता है? उन्हें बस सलाह दे कर फैसला उन पर छोड़ देना, इन सारी बातों में क्या मम्मीपापा के बीच प्यार की मजबूती नहीं झलकती है, जो उन के प्यार को सीमेंट की तरह मजबूत करता है?

क्यों मोहित का प्यार बस लेना जानता है? मोहित का प्यार तभी तक नवेली के लिए बरकरार रहता है, जब

तक नवेली मोहित के अनुसार काम करती है. जैसे ही नवेली थोड़ा सा इधरउधर होती है, मोहित नवेली को उस की गलत परवरिश और उस के स्वार्थी होने की दुहाई देना आरंभ कर देता है.

काफी सोचसमझ कर नवेली ने खुद को इस सीलन भरे प्यार से छुटकारा लेने का फैसला ले लिया था. नवेली ने अपनी मम्मी को फोन किया, “मम्मी, मैं घर आ रही हूं.”

राशि को नवेली की आवाज से समझ आ गया था कि नवेली खुश नहीं है. राशि ने बस इतना कहा, “तुम्हारा ही

घर है. जब मरजी तब आ जाओ.”

नवेली ने पैकिंग आरंभ कर दी थी. मोहित जब शाम को घर आया, तो नवेली को सामान बांधते देख कर

बोला, “तुम्हारे मम्मीपापा से मुझे ये ही उम्मीद थी. अपनी मरजी से जा रही हो और अपनी मरजी से ही आना.”

नवेली आंखों में आंसू भरते हुए बोली, “क्या तुम्हें मेरा दर्द समझ नहीं आता है? हां, मैं ने तुम्हें अपना समझ कर कुछ बातें बताई थीं, मगर इस का ये मतलब नहीं है कि तुम उन बातों को पकड़ कर मुझे रातदिन जलील करते रहो.”

मोहित जोरजोर से रोने लगा, “अरे नवी, यह क्यों नहीं बोलती कि तुम्हें आजादी पसंद है. तुम्हारा मन भर गया है मेरे प्यार से. तुम्हें तो डालडाल पर फुदकने की आदत पड़ गई है.”

नवेली ने चिल्लाते हुए कहा, “चुप. अब बस एक शब्द और नहीं. तुम्हारे इस सीलन भरे प्यार से मैं अपने वजूद को फफूंदी नहीं बनने दूंगी. मैं तुम्हारे इस खोखले इश्क के ताजमहल को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं.”

बाहर अचानक से बादलों को चीरते हुए तेज सूरज की किरणें जगमगा रही थीं. ये किरणें शायद कुछ सालों

तक नवेली के वजूद को तपा जरूर सकती हैं, मगर इस सीलन से छुटकारा अवश्य दिलाएंगी.

सीलन- भाग 3: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

मोहित ने गिफ्ट लिया और कहा कि मैं ने तो तुम्हारे लिए कुछ नहीं लिया है. मुझे ये चोंचलेबाजी पसंद नहीं है.

नवेली कुछ नहीं बोली. मगर उस रात मोहित ने नवेली को जी भर कर प्यार किया. नवेली का तनमन प्यार से भीग गया था.

अगली सुबह मोहित नवेली को बांहों में भरते हुए बोला, “ये गिफ्ट तो वो मर्द देते हैं, जो दब्बू होते हैं. मैं तो तुम्हें अपने बच्चों का तोहफा दूंगा, वह भी एक नहीं पूरे तीन. घर भराभरा सा लगना चाहिए.”

नवेली इस से पहले कुछ बोलती, मोहित ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, “परिवार के निर्णय मैं लूंगा, तुम क्यों दिमाग पर जोर देती हो. तुम बस घर का और अपना ध्यान रखो.”

नवेली को मोहित का ये रवैया पसंद भी था और नापसंद भी.

बचपन से नवेली ने अपने पापा को मम्मी से हर छोटीबड़ी बात पर दबते देखा था, इसलिए उसे मोहित का ये रूखापन ना जाने क्यों आकर्षित करता था. नवेली को लगता था कि अब उस की जिंदगी मोहित के प्यार के साए में महफूज है.

शाम को नवेली के मम्मीपापा का फोन आया था. नवेली की मम्मी राशि बोली, “बेटा, हनीमून के लिए कहां जा रहे हो?”

नवेली बोली, “मम्मी, मोहित ने अभी निर्णय नहीं लिया है.”

राशि बोली, “तुम्हारी कोई इच्छा नही है?”

नवेली बोली, “अरे मम्मी, मैं तो बड़े आराम से हूं. मैं आप के और पापा द्वारा दिए गए स्पेस से बहुत बोर हो गई हूं.”

राशि ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया था.

अगले दिन मोहित ने नवेली से कहा, “नवेली, मुझे बिजनैस के सिलसिले में जरूरी काम से दुबई जाना होगा.”

नवेली बोली, “मैं भी साथ चलूंगी ना.”

मोहित कुछ सोचता हुआ बोला, “अरे, अगर तुम चलोगी, तो परिवार के साथ समय कैसे बिताओगी?मौसी, मामी, बूआ, नानी सब यहीं हैं, ऐसे में तुम्हें साथ ले कर जाना ठीक रहेगा क्या?”

नवेली बेचैन होते हुए बोली, “हम बिजनैस ट्रिप और हनीमून एकसाथ नहीं कर सकते क्या?”

मोहित बोला, “तुम को और मुझे हमेशा एकसाथ ही रहना है, फिर इतनी बेचैनी क्यों?

“यहां रुको और सब से रिश्ते बनाओ, ताकि तुम इस परिवार का हिस्सा बन पाओ.

“तुम्हारी मम्मी की तरह नहीं बस मैं और मेरे हस्बैंड.”

नवेली के चेहरे का रंग उतर गया. वह धीमे से बोली, “तुम हर बात पर मेरे मम्मीपापा को बीच में क्यों लाते हो?”

मोहित प्यार से बोला, “क्योंकि, मैं नहीं चाहता कि तुम किसी भी टेस्ट में फेल हो जाओ. मैं तुम्हें एक सफल पत्नी और बहू के रूप में देखना चाहता हूं. यह एक पति के रूप में मेरी जिम्मेदारी भी है. तुम्हें क्या पता होगा, क्योंकि तुम्हारे घर से तो रिश्तों से अधिक दोस्ती को महत्व दिया जाता है.”

उस रात नवेली ने मोहित के सामान की पैकिंग कर दी. ढेर सारी हिदायतें दे कर मोहित चला गया था.

दिनभर नवेली महिलाओं में घिरी रहती, पर रात होते ही उसे मोहित की याद आ जाती थी. मोहित रात में एक बार ही फोन करता था, जहां वो सब से बात करने के पश्चात ही उस से 2-3 मिनट बात कर के फोन रख देता था.

नवेली के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल देता, ऐसे ही रोमांस बरकरार रहेगा.

सारी बातें अभी कर लोगी, तो बाद में क्या करोगी?

नवेली कुछ बोल नहीं पाती थी, मगर उसे मोहित की बात समझ नहीं आती थी.

मोहित चार दिन की बोल कर गया था, मगर एक हफ्ता हो गया था.

नवेली जब भी पूछती, एक ही उत्तर आता कि परिवार के साथ समय बिताओ, पूरे 22 साल अकेली रही हो.

नवेली के सासससुर और बाकी परिवार उस के साथ ठीकठाक ही थे, मगर नवेली के सारे शौक मन ही मन में रह गए थे.

कितने शान से वह सभी सहेलियों से कहती थी कि हनीमून के लिए तो यूरोप ट्रिप ही प्लान करेंगे. पर, यहां वह शादी के 5 दिन बाद से ही अकेली रह रही है.

नवेली को आज पहली बार रसोई में कुछ बनाना था. नवेली को तो बस थोड़ाबहुत ही कुछ बनाना आता था. सास ने कहा, “नवी, हलवा बना दो.”

नवेली ने कोशिश की, मगर हलवे में ना मीठा ठीक था और ना ही वो ठीक से भुना हुआ था.

सास ने कड़वा सा मुंह

बनाते हुए कहा, “अरे, कम से कम हलवा तो सीख लेती.”

शिप्रा मुसकराते हुए बोली, “भाभी, आप तो मुझ से भी कम जानती हो.”

नवेली बोली, “हमारे घर में कुक हैं ना.”

तभी सास बोली, “हमारे घर में खाना घर की लक्ष्मी ही बनाती है.”

नवेली बोली, “मैं धीरेधीरे सीख लूंगी.”

रात में नवेली की मम्मी राशि का फोन आया और वह शिकायत करते हुए बोली, “तुम अपनी फ्रैंड्स को फोन क्यों नहीं करती हो?”

“बेटा, शादी का मतलब ये नहीं कि तुम पुराने रिश्ते तोड़ दो.”

नवेली झुंझलाते हुए बोली, “मम्मी, नई जगह रिश्ते बनाने में थोड़ा समय तो लगता है.”

नवेली फोन रखते हुए सोच रही थी कि उस की मम्मी परिवार के लिए कभी कुछ नहीं करती हैं. उन्हें तो हमेशा अपने दोस्त, अपनी जिंदगी प्यारी लगती है.

आज अगर नवेली अपने नए परिवार के लिए कुछ करना चाहती है, तो उन्हें इस में भी दिक्कत है.

रात को नवेली ने सब के लिए खाना बनाया. मोहित को कल आना था. नवेली सोच रही थी कि क्या मोहित भी उसे मिस करता होगा.

देर रात मोहित आया और आते ही पहले अपने मम्मीपापा के कमरे में चला गया. नवेली प्रतीक्षा करती रही और जब मोहित कमरे में आया तो सो गया.

पूरी रात नवेली तकिए को आंसुओं से भिगोती रही थी.

सुबह जब वह सो कर उठी, तो सूरज सिर पर आ गया था. मोहित बिस्तर पर नहीं था. नीचे देखा तो मोहित अपनी मम्मी के साथ चाय पी रहा था.

मोहित नवेली को देख कर बोला, “तुम्हारे होते हुए मम्मी को काम करना पड़े, ये ठीक नहीं है.”

नवेली बिना कुछ बोले नहाने चली गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मोहित क्यों उसे प्यार के लिए तरसा रहा है?

दोपहर खाने के बाद मोहित ने अपनी जिस्म की भूख भी मिटाई और फिर सो गया. रात को भी वही प्रक्रिया दोहराई गई. जब नवेली कुछ बोलती, तो मोहित कहता, “अरे, तुम्हारे साथ तो हमेशा रहूंगा, मगर

परिवार के साथ भी तो समय बिताना जरूरी है. जिस प्यार में परिवार नहीं होता, वो सीलन की तरह पूरी जिंदगी को खोखला कर देता है.

“परिवार का प्यार ही तो सीमेंट की तरह हर रिश्ते को मजबूती देता है.”

एक हफ्ते बाद नवेली को मोहित के साथ दुबई जाना था. वह बेहद खुश थी. जब नवेली पैकिंग कर रही थी, तो मोहित बोला, “ये शॉर्ट्स, क्रौप टौप सब घर पर ही पहनना. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे शरीर पर किसी और की नजर पड़े.”

नवेली ऐसी बातें सुन कर रोमांचित हो उठती थी. कितना प्यार करता है मोहित उस को.

सीलन- भाग 2: दकियानूसी सोच से छटपटाती नवेली

मोहित लड़कियों की पवित्रता को ले कर बहुत बातें करता था. नवेली को

लगता कि वह मोहित से धोखा कर रही है. नवेली ने अपने फोन नंबर को बदल लिया और अपने सारे सोशल मीडिया एकाउंट्स डिलीट कर दिए थे.

मोहित का प्यार धीरेधीरे नवेली के अंदर सीलन की तरह पनप रहा था. नवेली ने अपने सारे छोटे कपड़े इधरउधर बांट दिए थे. नवेली को लगने लगा था कि मोहित के प्यार में इतना तो वो कर सकती है.

मोहित अकसर फोन पर  नवेली को बताता था कि कैसे वो उस के लिए रातदिन मेहनत कर रहा है, ताकि वो लोग यूरोप के लिए हनीमून जा पाएं. तुम्हें मैं जमीन पर पैर नहीं रखने दूंगा, पर बस मेरे घर और दिल की रानी बन कर रहना.

नवेली मोहित की ऐसी बात सुन कर रोमांचित हो उठती थी. उस की जिंदगी में कभी ऐसा कोई नहीं आया था, जो उस पर इतनी रोकटोक करे.

नवेली ने एक बार फोन पर कह भी दिया था, “मोहित, तुम्हारे जितनी रोकटोक तो मेरे अपने पापा ने भी नहीं की है.”

मोहित बोला, “मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूं, इसलिए किसी और के साथ बांट नहीं सकता हूं.”

नवेली को मोहित का व्यवहार रोमांचित भी करता, पर साथ ही साथ डराता भी था.

नवेली एक अजीब सी दुविधा में फंस गई थी. मोहित अच्छा कमाता था, देखने में बेहद अच्छा था. बस, उस के विचार कुछ अलग थे. नवेली को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने अंदर की दुविधा किसे समझाए.

मोहित कभी भी विवाह से पहले नवेली से मिलने नहीं आया था. मोहित के शब्दों में अगर पास रहना है, तो थोड़ी दूरी भी जरूरी है. अगर सबकुछ जान जाओगी, तो शादी का मजा चला जाएगा.

मोहित की इन्हीं बातों ने नवेली को एक सूत्र में बांध रखा था. नवेली को यह तो समझ आ गया था कि इस रिश्ते का गणित और रिश्तों से कुछ अलग ही होगा.

नवेली कभीकभी सोचती, ‘क्या वह इस सवाल को सुलझा पाएगी?’

विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया था, मगर नवेली को वह लाड़दुलार नहीं मिला, जिस की वह प्रतीक्षा कर रही थी.

फेरों के समय मोहित ने वधू पक्ष के देवताओं की पूजा करने को मना कर दिया था. दोनों परिवार में इस बात को ले कर थोड़ी कहासुनी हो गई थी.

विदाई के बाद जब नवेली ससुराल पहुंची, तो उसे एक कमरे में बैठा दिया था. उस ने तो सुना था कि ससुराल में नईनवेली दुलहन को एक मिनट के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते हैं. करीब आधे घंटे बाद नवेली की सास कमरे में आईं और उस के बराबर में आ कर बैठ गईं. उस के कड़े को देख कर

बोलीं, “पापा के पैसों से सोने के कड़े लिए हैं और मोहित के पैसे होते तो हीरे के खरीदती. मेरा मोहित थोड़ा स्वभाव का सख्त है, मगर दिल से मोम है.

“बारबार उसे मैसेज मत करो. जब तक हमारी कुलदेवी की पूजा नहीं होगी, वह तुम्हारे पास नहीं आएगा.”

फिर तेज कदमों से नवेली की सास कमरे से चली गईं.

नवेली का मुंह अपमान से लाल हो गया था. क्या मोहित अपनी हर बात अपनी मां के साथ शेयर करता है?

तभी मोहित की मौसी आई और खाने की थाली रखते हुए रूखे स्वर में बोली, “खाने के बाद ये लहंगा उठाकर रख देना. इतना महंगा लहंगा है. हर साल करवाचौथ पर पहन लेना.” फिर वह भी दन से चली गई.

नवेली को समझ नहीं आ रहा था कि ये कौन सा तरीका है नई बहू के स्वागत करने का. हर कोई क्यों उसे सुना रहा है? और मोहित, जिस के साथ उस ने सात फेरे लिए हैं, वह कहां छिप कर बैठ गया है?

न मोहित की बहन शिप्रा नवेली के पास आई और न ही मोहित. नवेली के पास मम्मीपापा का फोन आया था, पर वह क्या बोलती. ये शादी की जिद भी उस की अपनी ही थी. मोहित पर नवेली इतनी अधिक मोहित हो गई थी कि नवेली ने झटपट शादी का निर्णय ले लिया था.

हालांकि नवेली की मम्मी ने कहा भी था कि नवी, ये कोई शादी की उम्र नहीं है.

मगर वह अपनी जिद पर अड़ गई थी. मेरे पास कोई कंपैनियन नहीं है. मुझे एक नई फैमिली चाहिए.

नवेली एक पब्लिशिंग हाउस में काम कर रही थी. आगे पढ़ने की उस की कोई इच्छा नहीं थी. इन्हीं सब बातों को मद्देनजर रखते हुए नवेली का प्रोफाइल भिन्नभिन्न मैरिज की साइट्स पर डाल दिया गया था. इस तरह से नवेली को यह परिवार मिला था.

आज कंगना खुलने की रस्म थी. नवेली ने सी ग्रीन रंग की साड़ी पहनी थी. मोहित ने बड़े अनमने ढंग से कंगना खेला और फिर उठ कर चला गया.

रात में जब मोहित नवेली के पास आया, तो नवेली शिकायती लहजे में बोली, “कल से तो तुम ने मुझे इग्नोर कर दिया है. शादी होते ही बदल गए हो.”

मोहित गुस्से में बोला, “शादी हो गई है ना. अब पूरी उम्र साथ ही रहना है ना.”

यह सुन कर नवेली एकाएक हक्कीबक्की रह गई थी. तभी मोहित रंग बदलते हुए बोला, “नवेली, तुम ही तो बोलती थी कि तुम्हें अपने पापा जैसा पप्पी हसबैंड नहीं चाहिए.”

नवेली इस बात का कुछ जवाब नहीं दे पाई थी.

एक बार कुछ अंतरंग पलों में नवेली ने मोहित को अपने पापा के दब्बूपन और मम्मी के दबंग व्यक्तिव के

बारे में जिक्र किया था, पर उस ने कभी नहीं सोचा था कि मोहित इस बात को उस के खिलाफ ऐसे इस्तेमाल करेगा.

मधुयामिनी में भी मोहित अपने मन की करता रहा, जैसे ही नवेली ने अपनी इच्छा जताई, तो मोहित उस के जिस्म को रौंदते हुए बोला, “पहले कितनी बार ये अनुभव कर चुकी हो?”

ऐसा सुनते ही नवेली सकपका गई थी. एकाएक उस का जिस्म ठंडा पड़ गया.

“यार, तुम तो बर्फ हो एकदम, मर्द भी तो तभी सुख दे सकता है, जब औरत में दम हो,” फिर मुसकराते हुए मोहित बोला, “नवी,, तुम्हारे पापा की तरह मैं दब्बू नहीं हूं.”

सुबह मुंहदिखाई की रस्म थी. कोई नवेली के बालों की तारीफ करता, तो कोई उस की आंखों की.

अभी नवेली इन तारीफों को पचा ही रही थी कि नवेली की सास हंसते हुए बोलीं, “अरे, मोहित की दादी तो

बोल रही हैं कि नवेली की नाक मोटी है.”

नवेली भीड़ में कट कर रह गई थी.

रात को नवेली को उम्मीद थी कि शायद मोहित उसे कोई गिफ्ट देगा. वह खुद भी उस के लिए एक महंगी घड़ी लाई थी.

फेस्टिवल्स पर आई मेकअप से दिखें ग्लैमरस 

त्योहारों का सीजन हो और सजना सवारना न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि त्योहार जहां मन में उमंग लाते हैं , वहीं त्योहार सजने सवरने का भी मौका देते हैं. खासकर महिलाओं को, क्योंकि मेकअप महिलाओं की खूबसूरती को बढ़ाने का काम जो करता है. ऐसे में त्योहारों पर मेकअप की बात हो और आई मेकअप न किया जाए तो सारे मेकअप पर पानी फिर जाता है. इसलिए इन त्योहारों मेकअप से अपनी आंखों को खूबसूरत बनाकर करें त्योहारों को एंजोय.

कैसे करें अलगअलग तरह के आई मेकअप 

–  सिंपल आई मेकअप 

अगर आपको सिंपल लुक ज्यादा पसंद है और आप अपनी आंखों को ज्यादा तड़कभड़क लुक नहीं देना चाहतीं तो सिर्फ अपनी आंखों को दो चीजों से निखारें. काजल और दूसरा आई लाइनर.  बस आपको अपनी आंखों के नीचे काजल लगाकर अपनी पसंद के अनुसार आंखों के ऊपर पतला या मोटा लाइनर अप्लाई करना होगा. यकीन मानिए मिनटों में आपका लुक चेंज हो जाएगा.

आप चाहें तो इसके लिए मल्टी पर्पस पेंसिल काजल या लाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर जैल फोर्म में भी यूज़ कर सकती हैं . जिसे आप काजल के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती हैं , लाइनर के रूप में भी और बिंदी के लिए भी.  आपको मार्केट में अलगअलग वैरायटी के साथ साथ डिफरेंट कलर्स के लाइनर व काजल मिल जाएंगे, जिन्हें आप अपनी पसंद के अनुसार खरीद कर बढ़ाएं अपनी खूबसूरती को.

2. कैट आई लुक 

कैट आई लुक काफी डिमांड में है, जो न सिर्फ आंखों को खूबसूरत बनाता है बल्कि आपके कोन्फिडेन्स को भी कई गुणा बढ़ाने का काम करता है. वैसे इस लुक को खुद से करना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन एक दो बार प्रैक्टिस करके आप खुद से अपनी आंखों को कैट आई लुक दे सकती हैं.  बस इसके लिए आपको  जैल आई लाइनर, पेंसिल आई लाइनर या वाटरप्रूफ लिक्विड आई लाइनर के साथ  ब्रश की जरूरत होगी, जिससे आप अपनी आंखों को क्लासिक लुक ले पाएंगी.

जब भी आप अपनी आंखों को कैट लुक दें,. तो सबसे पहले ध्यान रखने वाली बात है कि आप ऊपर से व नीचे से विंग की तरह बाहर की तरफ बराबर एक डोट लगा लें, ताकि आपको कैट लुक देने में आसानी हो. फिर ऊपर से बीचोबीच से मोटी लाइन बनाते हुए बाहर की और मिलाएं , फिर नीचे से उसे जोड़े , फिर खाली भाग को डार्क करके बाकी खाली बचे भाग की ओर लाइनर से पतली लाइन बनाएं .  बस आपको स्टेप्स का ध्यान रखना है, मिनटों में  आपको  कैट आई लुक मिल जाएगा. जो आपको खूबसूरत बनाने का काम करेगा.

3. शिमरी आइज़

अगर आप अपने मेकअप को सिंपल रख रही हैं तो आप अपनी आंखों को शिमरी टच देकर ग्लैमरस लुक पा सकती हैं.  क्योंकि ये आपके मेकअप को उभारने का काम करता है. इसके लिए आप सबसे पहले अपनी आंखों के ऊपर तीन एरिया यानि लिड एरिया, क्रीज़ एरिया और ब्रो बोन पर फोकस करके उस पर कंसीलर या फाउंडेशन अप्लाई करें . उसके बाद आप स्किन टोन से मैच करता बेस कोड ब्रश की मदद से लगाएं, ताकि अच्छे से वो ब्लेंड हो सके . अब आप कोई भी मिडटोन लेकर उसे क्रीज़ एरिया पर अच्छे से लगाते हुए फिर लिड एरिया में अच्छे से ब्लेंड करें. अब अपनी आंखों के लोअर लिड एरिया पर कंटूर अप्लाई करें.  फिर इस एरिया पर ग्लिटर ग्लू अप्लाई करें. आखिर में डार्क ग्लिटर लेकर उसे लिड पर आराम से अप्लाई करें.  फिर ब्रश से फिनिशिंग दें. ये आई मेकअप आपकी आंखों के साथसाथ आपके पूरे लुक को मस्त बना देगा.

4. ग्रेडिएंट आइज़ 

इन दिनों ग्रेडिएंट आइज़ काफी चलन में है. तो जब बात फेस्टिवल्स की है तो आप भी इस लुक को अप्लाई कर सकती हैं. इसमें पहले अच्छे से आंखों के ऊपर प्राइमर अप्लाई करके उसे स्पोंज की मदद से ब्लेंड करें. इसके लिए आंखों के शुरू वाले एरिया में लाइट कलर के आईशैडो का इस्तेमाल किया जाता है, उसके बाद बचे एरिया से किनारे तक डार्क आईशैडो का इस्तेमाल करके आंखों को आसानी से  ग्रेडिएंट लुक दिया जा सकता है. इस तरह का लुक पार्टीज में व नाईट मेकअप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.

5. गोल्ड फेस्टिव आइज़ 

ये लुक ब्राउन आंखों वाली लड़कियों व महिलाओं पर खूब जंचता है. साथ ही उन्हें ये यंग लुक देने का काम करता है. इसके लिए आप सबसे पहले ब्राउन आईलाइनर पेंसिल लेकर उससे आंखों के ऊपर क्रीज़ एरिया पर सेमीसर्किल बनाएं. फिर सिर्फ आउटर कार्नर को ही फिल करें. फिर फ्लैट ब्रश की मदद से उसे ब्लेंड करें, ताकि कोई भी हार्श लाइन्स न दिखें. इसके बाद बीच में गोल्डन आईशैडो अप्लाई करके उसे अच्छे से ब्लेंड करें. फिर ऊपर लैशलाइन पर ब्लैक लिक्विड लाइनर से सिंपल विंगड लाइन बनाएं. आखिर में बेहतर रिजल्ट के लिए पलकों पर मस्कारा अप्लाई करें. यकीन मानिए ये लुक आप पर से लोगों की नजरों को हटने नहीं देगा.

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