सुलगते सवाल- भाग 3: क्या बेटी निम्मी के सवालों का जवाब दे पाई गार्गी

गार्गी भी ऊपर अपने कमरे में आराम करने चली गई. कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. सुबह की खटपट से उस की आंख खुली. बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे, निन्नी काम के लिए.

सुबह से शाम तक टैलीविजन देखना गार्गी की दिनचर्या में आ गया था. निन्नी कब घर वापस आई, कब गई, उसे पता ही नहीं चलता.

शाम को काम निबटा कर दोनों मांबेटी बैठी थीं. बच्चे स्कूल का काम कर रहे थे. गार्गी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘निन्नी, आज कमरे की खिड़कियां बंद करते समय मेरी निगाह पूरण की अलमारी पर पड़ी. बेटा, तुम क्यों नहीं उस का सामान समेट देतीं. सुनो, यह कुरसी भी हटा दो यहां से. इसे देख कर अकसर तुम उदास हो जाती हो.’’

इतना सुनते ही निन्नी तिलमिला उठी, ‘‘मां, बात यहीं समाप्त कर दीजिए. यह पूरण का घर है. हम उस की ही छत के नीचे खड़े हैं. उस की मिट्टी को मत कुरेदो. मर चुका है वह. नहीं आएगा अब वापस. कभी नहीं आएगा. बहुत कोस चुकी हैं आप उसे, अब बंद करो कोसना. मैं ने पति को और मेरे बच्चों ने पिता को खोया है. मां, आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, मुझे जबानदराजगी के लिए मजबूर मत करो. पूरण की चीजें आसपास होने से मुझे उस के होने का एहसास होता है. उस के कपड़ों में से उस की महक आती है. मेरे उदास, कमजोर क्षणों में उस की चीजें मरहम का काम करती हैं. मेरा यही तरीका है अपने दुख से निबटने का. कई बार तो ऐसा लगता है, अगर कहीं वह लौट आया तो उसे क्या उत्तर दूंगी,’’ इतना कहते ही वह फूटफूट कर रोने लगी.

रोतेरोते कहती रही, ‘‘बचपन से ही आप के मुख से यह सुनती आई थी, उस की नाक पकौड़ा है, चीनी लगता है, वह टुंडा है, उस के चुंदीचुंदी आंखें हैं. बड़ी अकड़ से आप ने उसे चुनौती दी थी. वह भी शतप्रतिशत खरा उतरा था आप की चुनौती पर. इतना बड़ा घर, रुतबा इज्जत सभी कुछ तो प्राप्त किया था उस ने.’’

कहतेकहते वह फिर सुबकसुबक कर रोने लगी.

‘‘गलत ही क्या कहा है मैं ने? 2 बेटों की जिम्मेदारी छोड़ गया है. मुझे यहां और नहीं रहना. टिकट कटा दे मेरा वापसी का,’’ गार्गी ने झुंझला कर कहा.

‘‘बस, यही औजार रह गया है आप के पास?’’

एकाएक कमरे में बोझिल सा सन्नाटा छा गया. निन्नी और गार्गी के बीच चुप्पी की दीवार खड़ी हो गई थी. गार्गी ने अपना मुंह बंद रखने की ठान ली. समय कब पतझड़ व गरमियों का घेरा पार कर सर्दी की गोद में सिमट गया, पता ही नहीं चला. सर्दी बढ़ती जा रही थी. बर्फ, कोहरा, सर्द हवाओं ने अपना काम शुरू कर दिया था.

सुबह के 9 बजने को थे. अभी तक कोहरे की धुंध नहीं छटी थी. सूरज उगा या नहीं इस का अनुमान लगाना कठिन था. प्रतिदिन घर से सब के चले जाने के बाद गार्गी टैलीविजन में लीन रहती.

स्कूल से घर आते ही आज दोनों नाती चिल्लाने लगे, ‘‘नानी, भूख लगी है.’’

‘‘थोड़ा सा इंतजार करो. अभी तुम्हारी मम्मी आ जाएंगी,’’ इतना कह कर गार्गी फिर टीवी सीरियल में लीन होे गई.

सड़कों पर बर्फ पड़ने के कारण निन्नी को घर पहुंचने में देर हो गई. घर पहुंचते ही बच्चे बोले, ‘‘मम्मी, देर से क्यों आई हैं आप? भूख के मारे दम निकल रहा है.’’

‘‘नानी से क्यों नहीं कहा?’’ निन्नी ने झुंझलाते हुए कहा.

‘‘कहा था, नानी ने कहा कि मम्मी आने वाली हैं.’’

निन्नी ने चायनाश्ता बना कर सब को परोसा. रात के खाने के बाद बच्चे अपने कमरे में चले गए.

‘‘निन्नी, जब से आई हूं तब से तुम से कह रही हूं कि अपने कमल चाचा को चाची के पूरे होने पर शोक प्रकट कर दो,’’ गार्गी ने कहा.

निन्नी बोली, ‘‘मां, मैं हर रोज देखती हूं कि जब मैं काम से घर आती हूं, आप टीवी में इतनी मगन होती हैं कि मेरी उपस्थिति का भी एहसास नहीं होता आप को, क्यों? क्योंकि मैं भैया नहीं हूं. यों कहूं तो ज्यादा ठीक होगा, लड़का जो नहीं हूं.

‘‘मुझे याद है, जब भी भैया के काम से घर आने का समय होता तो भाभी के होते हुए भी आप समय से पहले ही उन के लिए चायपकौड़े या समोसे मेज पर तैयार रखतीं और बच्चों से कहतीं, ‘पापा से दूर रहना, तुम्हारे पापा काम से हारेथके आए हैं.’ यही नहीं, उन के हाथमुंह धोने के लिए तौलियापानी सबकुछ तैयार रहता. अगर गरमी होती तो आप उन्हें पंखा भी झलतीं. ठीक कह रही हूं न? जवाब दो? यहां मैं भी तो नौकरी करती हूं. घर चला रही हूं. मां के कर्तव्यों के संग पिता की भूमिका भी निभा रही हूं. मुझे तो चाय का प्याला क्या देना, मुझी से सभी अपेक्षाएं करते हैं. आप एक औरत होते हुए भी आखिर क्यों औरत को उस की अहमियत से दूर कर रही हैं? क्यों उसे बारबार याद दिलाती हैं कि वह अस्तित्वहीन है? इतना भेदभाव क्यों, मां?

‘‘आप अपनी अहमियत जतलाने से कभी नहीं चूकतीं कि मैं मां हूं. यहां तक कि जब कोई पूरण का शोक प्रकट करने आता है, आप उस के सामने अपनी समस्याएं रख कर उसे अपने बखेड़ों में उलझा लेती हैं. आप क्यों भूल जाती हैं कि आप मेरे पति की मृत्यु पर शोक प्रकट करने व बेटी को सहारा देने आई हैं. छुट्टियां मनाने नहीं.’’

गार्गी ने बेटी के सवालों का उत्तर न देने की मंशा से गूंगेबहरे सी नीति अपना ली.
मांबेटी में परस्पर विरोधी विचारों का युद्ध चलता रहा. विचारों का अथाह समुद्र फैल गया जिस की तूफानी लहरों ने दोनों के दिलोदिमाग को अशांत कर दिया.
गार्गी अपने सोने के कमरे में चली गई. उस का सिर चकरा रहा था. कमरे में रात का धुंधलका चुपके से घिर आया था. मानो कनपटियों से धुएं की 2 लकीरें ऊपर उठती हुई सिर के बीचोंबीच मिलने की चेष्टा कर रही हों. उस के सीने में बेचैनी उतर आई थी. निन्नी ने उस की जंग लगी सोच का बटन दबा दिया था. उस के मस्तिष्क में उथलपुथल होने लगी, गार्गी नाराज नहीं थी. सोच रही थी, निन्नी ठीक कहती है. अपने ममत्व का गला घोंटते समय उसे यह एहसास क्यों नहीं हुआ. वह भी बहनभाइयों में पली है?

वह स्वयं के ही प्रश्नों में उलझ गई. क्या सचमुच अनपढ़ होने से मेरी सोच की सूई में विराम लग गया है? छिछिछि… शर्मिंदा थी वह अपने व्यवहार से, सोच से. माफी की सोचते ही उस का अहं आड़े आ जाता. सोचने लगती, क्या मां होने के नाते सभी अधिकार उसी के हैं. मां जो थी, गलत कैसे हो सकती थी? उस रात निन्नी की बातें उस के जेहन में उमड़तीघुमड़ती रहीं. एक शब्द ‘भेदभाव’ उस के जेहन में घर कर गया. गार्गी की वह रात बहुत भारी गुजरी. उसे ऐसा लगा, धरती से आकाश तक गहरी धुंध भर आई हो. गार्गी अपनी सोच का मातम मनाती रही.

सुलगते सवाल- भाग 2: क्या बेटी निम्मी के सवालों का जवाब दे पाई गार्गी

गार्गी शर्मिंदगी का घूंट पीते हुए बोली, ‘‘बेटा, मैं ने अभी बात पूरी ही कहां की है. जानती हूं, अलका भी मेरी बेटी है.’’

‘‘मां, केवल कहने के लिए. बहुत दकियानूस हो. अपनी ही संतानों में भेदभाव करती हो.’’

स्थिति को भांपते हुए गार्गी ने अपने मुंह को बंद रखना ही उचित समझा और व्यंग्य से बड़बड़ाने लगी, ‘आगे से ध्यान रखूंगी मेरी मां.’

घर पहुंच कर निन्नी का विशाल मकान देख कर गार्गी हक्कीबक्की रह गई. न इधर, न उधर, न दाएं, न बाएं कोई भी तो घर दिखाई नहीं दे रहा था. उसे ऐसा लगा, मानो विशाल उपवन में एक गुडि़या का घर ला कर रख दिया गया हो. अभी घर के भीतर जाना शेष था. दरवाजा खुलते ही नानी, नानी करते नाती नानी से लिपट गए.
कुछ समय बैठने के बाद निन्नी ने बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, नानी को उन का कमरा दिखाओ.’’

‘‘चलो नानी, सामान अंकल ऊपर ले जाएंगे.’’

‘‘मां, यहां नौकरोंचाकरों का चक्कर नहीं है. सबकुछ खुद ही करना पड़ता है.’’

सांझ के 4 बज चुके थे. पतझड़ का मौसम था. आसपास फैली हुई झाडि़यों की परछाइयां घर की दीवार पर सरकतीसरकती गायब हो चुकी थीं. रात का अंधकार उतर आया था. घर के पीछे चारों ओर बड़ेबड़े छायादार वृक्ष अंधकार में और भी काले लग रहे थे. ऐसा लगता था जैसे उन वृक्षों के पीछे एक दुनिया आबाद हो. वह हतप्रभ थी. चारों ओर धुंध उतर आई थी.

‘‘अमर बेटा, तुम्हें यहां डर नहीं लगता?’’ गार्गी ने प्यार से कहा.
‘‘नानी, डोंट वरी. यहां कोई नहीं आता,’’ 8 वर्ष के अमर ने नानी को आश्वासन देते हुए कहा.
‘‘नहीं नानी, आप को पता है, रात को यहां तरहतरह की आवाजें आती हैं,’’ नटखट अतुल ने शरारती लहजे में कहा जो अभी 5 वर्ष का ही था.
‘‘अतुल, प्लीज मत डराओ नानी को.’’

उस दिन आधी रात तक गार्गी डर के मारे जागती रही. उस ने जीवन में इतना भयावह सन्नाटा पहली बार महसूस किया था. उसे गली के चौकीदार के डंडे की ठकठक व आवारा कुत्तेबिल्लियों की आवाजें याद आने लगीं. घर में कोई पुरुष भी नहीं था. अब तक तो देवर भी अपने घर चले गए थे. फिर सोचती, मुझे यहां स्थायी रूप से थोड़े ही रहना है.

धीरेधीरे उस ने निन्नी के रहनसहन से समझौता कर लिया. घर में सभी सुविधाओं के होते हुए भी उस का मन नहीं टिक रहा था. अकेलापन व सूनापन उसे बहुत कचोटता. इंसान तो क्या, कोई परिंदा तक दिखाई नहीं देता था. डाकिया न जाने कब पत्र डाल जाता.

एक सप्ताह बाद निन्नी ने काम पर जाते समय मां को घर के तौरतरीके, गैस हीटिंग, टैलीफोन पर संदेश लेना, टैलीफोन करना व कुछ अंगरेजी के शब्द, थैंक्यू, प्लीज वगैरह सिखा दिए. रहीसही कसर अमर और अतुल ने पूरी कर दी.

काम पर जातेजाते निन्नी ने कहा, ‘‘मां, आप का मन करे तो घर का काम कर सकती हैं वरना कोई जरूरत नहीं.’’

गार्गी ने जीवन में पहली बार तनमन को जिम्मेदारियों के बोझ से मुक्त पाया था.

वह सारा दिन हिंदी के सीरियल देखती रहती. बच्चों के घर आ जाने पर उन के साथ अंगरेजी सीरियल देखती. अंगरेजी न आते हुए भी अंगरेजी रिश्तों के तानेबाने हावभाव से समझ जाती. किंतु उन सीरियलों के पतिपत्नी के संबंध दूसरे लोक के लगते. सोचती, ऐसा भी होता है क्या? उन के दृष्टिकोण, सोच बहुत अजीब लगते. काम पर जाने से पहले निन्नी मां को खाना परोस कर जाती थी. जब भूख लगती तो गार्गी माइक्रोवेव में खाना गरम कर के खा लेती. संपूर्ण स्वतंत्रता का एहसास उसे पहली बार हुआ था.

शाम को अमर व अतुल के बिस्तर में जाने के बाद मांबेटी दोनों बैठी रहतीं. अपने पति पूरण की खाली कुरसी को टुकरटुकर देखतेदेखते अकसर निन्नी की आंखें छलछला आतीं.

ऐसी स्थिति में गार्गी के लिए संयम रखना सहज न था. बस, भड़क उठती. ‘‘6 महीने हो गए हैं उसे गए, अगर मेरी बात मान लेती तो आज माथे पर विधवा का टीका न लगा होता.’’

‘‘हांहांहां, ऊपर से कोई अपनी लंबी उम्र का पट्टा लिखा कर थोड़े ही आता है. आप ने तो पूरा जोर लगा लिया था कि हमारी शादी न हो. मेरे जीवन में कितनी लक्ष्मणरेखाएं खींच दी थीं आप ने? जब तक उन पर चलती रही, ठीक था. जब नहीं मानी तो हर समय वही व्यंग्य, कटाक्षों की बरसात. पूरण के मांबाप पुराने विचारों के हैं. तू मन चाहे कपड़ेलत्ते नहीं पहन सकेगी. वगैरहवगैरह.’’

‘‘निन्नी, गरम जुराबें तो देना. बहुत सर्दी है,’’ गार्गी ने बात को दूसरा मोड़ देते हुए कहा.

‘‘यह लो मां, मेरी बात अभी समाप्त नहीं हुई. बलि चढ़ाना चाहती थीं मुझे, लड़की थी न? और भैया, जिस का नाम लिया उस से शादी कर दी, लड़का था न इसलिए,’’ निन्नी ने गुस्से में कहा.

अचानक वातावरण में एक घुटा सा सन्नाटा छा गया.

‘‘कैसे कैंची सी जबान चलाती है. मां हूं तेरी. आगे एक शब्द नहीं सुनूंगी.’’

कुछ क्षण दोनों के बीच नाराजगी व औपचारिकता में गुजरे. कुछ मिनट बाद गार्गी गुस्से में बड़बड़ाती हुई सोने के कमरे में चली गई.

गार्गी ने खिड़की से बाहर झांका. तेज हवा चल रही थी. चारों ओर व्यापक वीरान, चुप्पी से डर लग रहा था. हवा के झोंकों से परदों का हिलनाडुलना उसे और डराने लगा. डरतेडरते न जाने

कब उस की आंख लगी और सुबह भी हो गई. निन्नी की आज छुट्टी थी.

‘‘मां, शौपिंग करनी है तो आधे घंटे में तैयार हो जाइएगा,’’ निन्नी ने कहा.

बडे़बड़े शौपिंग मौल देख कर गार्गी की आंखें खुली की खुली रह गईं.

निन्नी ने गार्गी की सोच पर ब्रेक लगाते हुए कहा, ‘‘मां, लिस्ट निकालो अपनी.’’

एक ही सांस में गार्गी ने अपनी लिस्ट दोहरा दी.

‘‘तुम्हारे भाई के लिए डिजिटल कैमरा, भाभी के लिए चमड़े का पर्स, सुधांशु के लिए फुटबाल और टिसौट की घड़ी, विधि के लिए सुंदर सी फ्रौक और एक बढि़या सी घड़ी. कुछ तुम्हारी नई मामी के लिए.’’

‘‘नई मामी? अभी तो मामीजी की मृत्यु को 6 महीने भी नहीं हुए?’’

‘‘हां, मेरे आने से 1 महीना पहले ही उस की शादी उस की छोटी साली से हुई. अकेले बच्चे पालना बहुत कठिन है मर्दों के लिए.’’

‘‘हांहां, सब जानती हूं. मुझ से मर्दऔरतों की बातें मत किया करो. अब अलका की लिस्ट निकालो.’’

‘‘उस के लिए पैसे बचे तो लूंगी. उस का पति जो है, वही ले कर देगा.’’

निन्नी ने गार्गी की बात को सुनाअनसुना करते हुए कहा, ‘‘मां, अगर ऐसी बात है तो आप ने अर्णव भैया का ठेका क्यों लिया है? वे भी तो शादीशुदा हैं, कमाते हैं, क्या अलका को कूड़े के ढेर से उठा कर लाई थीं मेरी भांति?’’

गार्गी ने निन्नी की बातों को नजरअंदाज कर के पलक झपकते ही 200 पाउंड खर्च कर डाले. इतने पैसों की अहमियत से अनजान थी वह? शायद पहली बार उसे पैसे खर्च करने की छूट मिली थी.
‘‘निन्नी, तुम बेकार में अपने भाई के पीछे क्यों पड़ी रहती हो? शायद भूल रही हो, वंश उसी से चलने वाला है.’’

ऐसी बातें सुन कर निन्नी के होंठों पर फीकी मुसकान उभर आई. घर पहुंचते ही सब ने गरमागरम चाय पी, निन्नी सोफे पर आंखें मूंद आराम करने लगी.

सुलगते सवाल- भाग 1: क्या बेटी निम्मी के सवालों का जवाब दे पाई गार्गी

वह खिलखिलाता सन्नाटा आज भी उस की आंखों के सामने हंस रहा था. बच्चे तो बसेरा छोड़ चुके थे. पति 10 वर्ष पहले साथ छोड़ गए. धूप सेंकतेसेंकते वह न जाने सुधबुध कहां खो बैठी थी. बड़बड़ाए जा रही थी, ‘बड़ी कुत्ती चीज है. दबीदबी न जाने कब उभर आती है. चैन से जीने भी नहीं देती. जितना संभालो उतना और चिपटती जाती है. खून चूसती है. उस से बचने का एक ही विकल्प है. मार डालो या उम्रभर मरते रहो. मारना कौन सा आसान है. यह शै बंदूकचाकू से मरने वाली थोड़ी ही है. स्वयं को मार कर मारना पड़ता है उसे.

हर कोई मार भी नहीं सकता. शरीफों को बहुत सताती है. बदमाशों के पास फटकती नहीं. पीछे पड़ती है तो मधुमक्खियों जैसे. निरंतर डंक मारती रहती है. नींद भी उड़ा देती है. नींद की गोली भी काम नहीं करती है. वह जोंक की तरह खून चूसती है. चाम चिचड़ी की भांति चिपक जाती है.’

वह बहुत कोशिश करती है उसे दूर भगाने की पर वह रहरह कर उसे घेर लेती. वह क्या चीज है जो इतना परेशान करती रहती है उसे. मानो तो बहुत कुछ और न मानो तो कुछ भी नहीं.

वह सोचती है, मां हूं न, इसलिए तड़प रही हूं. भूल तो हुई थी मुझ से. सोच कुंद हो गई थी. समय का चक्र था. उसे पलटा भी नहीं जा सकता. देखो न, उस वक्त तो बड़ी आसानी से सोच लिया था, मां हूं. उस वक्त मुझे अपनी बच्ची की चिंता कम, बहुरुपिए समाज की चिंता अधिक थी. अपनी कोख की जायी का दुख चुपचाप देखती रही. बच्ची के दुख पर समाज हावी हो गया. अरसे से वही कांटा चुभ रहा है. मन ही मन हजारों माफियां मांग चुकी हूं. किंतु यह ‘ईगो’ कहो या ‘अहं’, नामुराद बारबार आड़े आ खड़ा हो गया. दोषी तो थी उस की. फिर भी दोष स्थिति पर मढ़ती आई. शुक्र है, कोई सुन नहीं रहा. खुद से ही बातें कर रही हूं.

नियति कब और कहां करवट बदलती है, कोई नहीं जानता. अब स्थिति यह है कि न तो वह निन्नी से अपने दुख कहती है, न वह ही अपने दुख बताती है. दोनों एकदूसरे की यातनाओं से घबराती हैं. वह अपने शहर में बताती है, ‘मैं आराम से हूं.’ और वह भी यही कहती है. वह आज तक भूमिका बांध रही है, ‘माफी मांगने की.’

बात 3 दशक पहले की है. अचानक यूके से उसे किसी डोरीन का फोन आया:
‘‘मिसेज पुरी, आप के दामाद मिस्टर भल्ला का अचानक हार्टफेल हो गया है.’’
सुनते ही परिवार को मानसिक आघात लगा. पति ने कहा, ‘‘गार्गी, तुम चलने की तैयारी करो.’’
बेटे अर्णव ने भी पिता का साथ देते कहा, ‘‘हां मां, दीदी वहां बच्चों के साथ अकेली हैं. आप के वहां होने से निन्नी दीदी को बहुत सहारा होगा. मैं पासपोर्ट, वीजा, टिकट व दूसरी औपचारिकताएं पूरी कराता हूं.’’

‘‘अर्णव, बेटा, तू क्यों नहीं चला जाता? मैं तो अनपढ़गंवार. एक शब्द अंगरेजी का नहीं आता. मेरा वहां जाने का क्या फायदा?’’

‘‘मां, मुझे कोई आपत्ति नहीं. आजकल प्राइवेट सैक्टर में छुट्टी का कोई सवाल ही नहीं उठता. आप का जाना ही ठीक रहेगा. आप तसल्ली से वहां 5-6 महीने बिता भी सकती हैं. पापा की चिंता मत करना,’’ अर्णव ने आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, जैसा तुम दोनों बापबेटे कहते हो, ठीक ही होगा,’’ गार्गी ने तैयारियां शुरू कर दीं. समय बीतता गया. ‘‘बेटा, 2 महीने होने को आए हैं. अब तक तो मुझे निन्नी के पास होना चाहिए था,’’ गार्गी ने विक्षुब्ध हो अर्णव से कहा.

‘‘मां, दूतावास के लोग भी फुजूल की औपचारिकताओं में उलझाए रखते हैं. बैंक का खाता, मकान के कागजात, एक मांग की पूर्ति नहीं होती कि दूसरी मांग खड़ी कर देते हैं.’’

आखिरकार 3 महीने बाद पासपोर्ट तैयार हो गया. उड़ान शनिवार की थी. गार्गी मन ही मन सोच रही थी, उसे तो निन्नी के पास 3 महीने पहले ही होना चाहिए था. गरमियां भी समाप्त हो चुकी थीं. टीवी पर यूके की बर्फ को देखदेख उस की हड्डियां जमने लगीं. भीतरभीतर उसे एक अज्ञात डर सताने लगा. उसे अपनी क्षमता पर शंका होने लगी, कैसे संभालेगी वह स्थिति को, पराए देश में अनजान लोगों के बीच.

गार्गी पहली बार विदेश के लिए अकेली सफर के लिए चल दी. लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर निन्नी के साथ गार्गी के रिश्ते के देवर भी लेने आने वाले थे. उसे इमीग्रेशन से निकलतेनिकलते 2 घंटे लग गए. सुबह के 8 बज चुके थे. बाहर पहुंचते ही चमचमाती नगरी की रोशनी से उस की आंखें चुंधिया गईं. उस रोशनी में उस की बेटी का दुख न जाने किस अंधियारे कोने में दुबक गया. उस की आंखें निन्नी व अपने देवर को ढूंढ़ने में नहीं बल्कि गोरीगोरी अप्सराओं पर टिकी की टिकी रह गईं.

अचानक ‘मां’ शब्द ने उस का ध्यान भंग किया. निन्नी आज मां के गले लग कर खूब रोना चाहती थी. मां ने दूर से ही उसे सांत्वना देते कहा, ‘‘बेटा, संभालो खुद को, तुम्हें बच्चे संभालने हैं,’’ एक बार फिर मां ने जिम्मेदारियों का वास्ता दिया जैसा कि बचपन से करती आई थीं.
मोटरवे पर पहुंचते ही देवर ने कहा, ‘‘भाभीजी, लिवरपूल पहुंचतेपहुंचते 5 घंटे लग जाएंगे. आप लंबा सफर तय कर के आई हैं. चाहें तो कार में आराम कर सकती हैं.’’

‘‘ठीक है, जब मन करेगा तो आंखें मूंद लूंगी,’’ गार्गी ने कहा. मोटरवे पर कार तेज रफ्तार से दौड़ रही थी. सड़क के दोनों ओर खेत नजर आ रहे थे. उन में पीलीपीली सरसों लहलहा रही थी. इतना खूबसूरत दृश्य देख कर गार्गी को यों लगा मानो अभीअभी सूरज की पहली किरण दिखाई दी हो. वह सोचने लगी, कितना अच्छा हो, अर्णव और उस का परिवार भी यहीं पर बस जाएं. घर चल कर निन्नी से बात करूंगी. मां, बच्ची का गम भूल कर अपने बेटे को बसाने की बात सोचने लगीं.

निन्नी टुकुरटुकुर मां की ओर देखती रही. गार्गी प्यार से निन्नी का सिर अपनी गोद में रख सहलाने लगी. सहलातेसहलाते उस का मन इंपोर्टेड चीजों की शौपिंग की ओर चला गया. मन ही मन खरीदारी की सूची तैयार करने लगी. वातावरण में कुछ देर के लिए चुप्पी सी छा गई.

‘‘मां, क्या सोच रही हो? अभी तो भैया से अलग हुए 24 घंटे भी नहीं हुए?’’ निन्नी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, कोई विशेष बात नहीं.’’

‘‘मां, विशेष नहीं तो अविशेष बता दीजिए?’’

बिना सोचेसमझे उत्सुकता से गार्गी ने शौपिंग की सूची दोहरा दी.

‘‘यह तेरे भाई अर्णव व बच्चों की सूची है. तुम मुझे 300 पाउंड दे देना. अर्णव हिसाब कर देगा.’’

निन्नी खामोश रही.

गार्गी को गलती का एहसास होते ही उस की ममता कच्ची सी पड़ गई. सोचने लगी, ‘यह मैं ने क्या कर दिया, कैसे भूल गई? मैं तो उस का दुख बांटने आई हूं. वह अपनी बचकाना हरकत पर शर्मिंदा सी हो गई.’

गार्गी की बात सुनते ही निन्नी हैरान हुई. कुछ क्षण के लिए दोनों में मौन का परदा गिर गया. वह गुस्से में बड़बड़ाते बोली, ‘‘मां, भैया व उस के परिवार के लिए ही क्यों, छोटी बहन अलका व उस का परिवार भी तो है दिल्ली में?’’

बिट्टू और उसका दोस्त- भाग 2: क्या यश को अपना पाई मानसी

यश ने बहुत आशाभरी नजरों से उसे देखते हुए कहा, ‘‘मानसी, बिट्टू और मुझ में एक बात एक सी है. हम दोनों को बचपन में कंपनी देने वाला कोई नहीं था. उस के साथ होने पर मैं अपने बचपन में चला जाता हूं. मुझे उस से दूर मत करना. अपनी और बिट्टू की दुनिया में मुझे भी हमेशा के लिए शामिल कर लो प्लीज.’’

मानसी पसीने से भीग गई. सालों बाद किसी पुरुष ने स्पर्श किया था. दिल तेजी से धड़क उठा. वह तेजी से अपने घर में चली गई.

अगले ही दिन मानसी को एक मीटिंग के लिए बाहर जाना पड़ा. 3 दिन बाद जब वह लौटी तो उसे घर में एक अजीब सा सन्नाटा महसूस हुआ. उस ने ड्राइंगरूम में चुपचाप बैठी अपनी मम्मी को देखा जो उसे बहुत उदास लगी.

मानसी ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘मम्मी, आप की तबीयत तो ठीक है? पापा और बिट्टू कहां हैं?’’

‘‘मेरी तबीयत ठीक है, तुम्हारे पापा कुलकर्णी साहब के घर पर हैं.’’

‘‘तुम्हारा टूर कैसा रहा? चलो हाथमुंह धो कर कुछ खापी लो.’’

‘‘मम्मी, बिट्टू कहां है?’’

इतने में मानसी के पापा, यश और उस के पापा सब लोग साथ चले आए. मानसी ने सब को नमस्ते की, फिर बेचैनी से पूछा, ‘‘बिट्टू कहां है?’’

मानसी के पापा ने बहुत ही थके स्वर में कहा, ‘‘कल मैं बाहर गया हुआ था, तुम्हारी मम्मी अकेली थी. सुधांशु आया हुआ है और वह जबरदस्ती बिट्टू को ले गया.’’

यह सुन कर मानसी के दिमाग में जैसे धमाका हुआ, जैसे किसी ने उस का दिल मुट्ठी में दबा लिया हो.

मानसी के पापा की आवाज भर्रा गई, ‘‘वह धोखेबाज आदमी जो शादी के फौरन बाद मेरी बेटी को छोड़ कर चला गया, जिस ने कभी बिट्टू की शक्ल नहीं देखी, अमेरिका में एक अंगरेज लड़की के साथ रहता है, उस के 2 बच्चे भी हैं, मुझे पता चला है बिट्टू के जरीए मेरी इकलौती बेटी के हिस्से की संपत्ति पर कब्जा जमाने आया है. अमेरिका में उस का धोखाधड़ी का व्यवसाय ठप हो चुका है.’’

मानसी का गला सूख गया. एक बोझ सा उसे अपने दिल पर महसूस हुआ.

तभी यश की गंभीर आवाज आई, ‘‘अंकल, धैर्य रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’

यश के पापा ने भी कहा, ‘‘मेरा दोस्त सैशन जज है, तुम टैंशन मत लो, मैं उस से सलाह करता हूं.’’

मानसी की मम्मी रोते हुए कहने लगीं, ‘‘वह कह रहा था बिट्टू मेरा भी

उतना ही बेटा है जितना मानसी का और वह उस के लिए कोर्ट तक जाएगा.’’

यश ने आंखों ही आंखों में उसे हिम्मत रखने को कहा तो मानसी ने अपनेआप को कुछ मजबूत महसूस किया. बोली, ‘‘तो ठीक है, मैं उस से कोर्ट में बात करने को तैयार हूं. मैं आज ही उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करवाती हूं,’’  और फिर उस ने फोन करने शुरू कर दिए. परिणाम यह  हुआ कि रात को बिट्टू उस के पास था. वह कुछ डराडरा, सहमासहमा सा था. फिर उसे वकील की तरफ से सुधांशु का दिया हुआ नोटिस मिला.

उस ने बैंक से छुट्टी ले थी. वह बहुत परेशान थी. सब से ज्यादा परेशानी उसे बिट्टू के व्यवहार से हो रह थी. वह 2 दिन बाप के पास रह कर आया था और सुधांशु ने पता नहीं उसे क्या मंत्र पढ़ाया कि वह काफी उखड़ाउखड़ा सा था. बातबात पर उस से लड़ रहा था. कह रहा था, ‘‘आप ने मुझे मेरे पापा के बारे में क्यों नहीं बताया? पापा कितने अच्छे लगे मुझे.’’

मानसी कुछ देर सोचती रही, फिर बोली,  ‘‘हम दोनों अलग हो गए थे और तुम्हारे पापा

ने कभी तुम्हारी शक्ल तक  देखने की कोशिश नहीं की.’’

मानसी कभी सोच भी नहीं सकती थी कि उसे जीवन में कभी अपने बेटे के कठघरे में खड़ा होना पड़ेगा.

बिट्टू उलझन भरी नजरों से उसे देखता रहा फिर कहने लगा, ‘‘जब आप ने घर बदल लिया तो हमें कहां ढूंढ़ते?’’

उस समय छोटा सा बिट्टू मानसी को नौजवान लग रहा था. लगा सुधांशु ने उस की खूब ब्रेनवाशिंग कर दी है.

मानसी मानसिक रूप से बहुत थक गई थी. सुधांशु ने बिट्टू को लेने के लिए उस पर केस कर दिया था और अदालत से केस के दौरान हफ्ते में 2-3 बार बिट्टू से 2-3 घंटे बात करने की अनुमति भी ले ली थी.

उस दिन के बाद सुबह यश से उस का पहली बार आमनासामना हुआ. वह स्वयं ही उस से बच रही थी. यश आया और मानसी की मम्मी आशा के कहने पर उस के साथ नाश्ता करने बैठ गया. उस ने मुसकराते हुए मानसी का हाथ थपथपा दिया और इतना ही कहा, ‘‘मैं हर मुश्किल में तुम्हारे साथ हूं.’’

मानसी की आंखें भर आईं तो यश ने उस के सिर पर प्यार से हाथ रख दिया, हिम्मत रखो मानी, हम मिल कर इस समस्या का समाधान निकाल लेंगे.’’

उसी समय बिट्टू उठ कर आ गया और यश उसे गोद में बैठा कर प्यार से बातें करने लगा. बिट्टू यश से बातें करता हुआ काफी खुश दिखने लगा, तो मानसी को थोड़ा चैन आया.

अदालत में मुकदमा शुरू हो गया. वह संतुष्ट थी. उस ने बहुत होशियार वकील किया. उस दिन वह पापा के बजाय यश के साथ वकील से मिलने आई, लेकिन वहां अपने वकील के साथ सुधांशु को देख कर बुरी तरह चौंकी.

सुधांशु भी उसे यश के साथ देख कर चौंक गया और धमकी दी, ‘‘इस भूल में मत रहना कि मैं बिट्टू को छोड़ जाऊंगा.’’ उस की आवाज बहुत सख्त थी और त्योरियां चढ़ी हुई थीं.

‘‘मैं जरूर बिट्टू को आप के हवाले कर देती यदि मुझे अनुमान न होता कि 9 साल बाद आप के दिल में उस के लिए प्यार क्यों जागा है. बिट्टू के माध्यम से आप मेरी या पापा की संपत्ति में से कुछ भी पाने में सफल नहीं हो पाएंगे.’’

‘‘जो मेरे बेटे का हक है वह तो मैं हासिल कर के ही रहूंगा.’’

यश से रहा नहीं गया तो बोलो, ‘‘आप को जो भी कहना है कोर्ट में कहना,’’ फिर वह मानसी से बोला, ‘‘चलो, मानी, अपना समय मत खराब करो.’’

सुधांशु आगबबूला हो गया, ‘‘मैं अदालत को बताऊंगा कि मुझे उस घर में मेरे बच्चे का चरित्र बिगड़ने का डर है. जो मां अपने जवान होते बच्चे के सामने रंगरलियां मनाती फिरती हो, मैं उस के पास अपने बेटे को नहीं छोड़ सकता.’’

मानसी का चेहरा अपमान से लाल पड़ गया.

सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 3: नीलम का क्या था प्लान

अब नीलम ने अपनी 4 सहअध्यापिकाओं को जो नीलम के आसपास रहती थीं को एकसाथ अपनी कार में स्कूल चलने को राजी कर लिया. उन के द्वारा दी गई धनराशि से वह पैट्रोल डलवा कर बचे हुए रुपयों में और रुपए मिला कर किस्त भरने लगी.

राजेश इन बातों से अनजान था. रोज नीलम से गाड़ी चलाने के लिए मिन्नत करता दिखाईर् देता. नीलम भी मन ही मन मुसकराती सौसौ एहितयात बरत कर गाड़ी चलाने का आदेश दे कर चाबी देती.

एक दिन नीलम की स्कूल की छुट्टी थी. उस ने नोटिस किया पूरे घर की कुछ

गुप्त मंत्रणा चल रही है. उस के रसोई में व्यस्त होने का लाभ उठाया जा रहा था. वह समझ गई कोई बड़ा फैसला ही है जो उस से गुप्त रखा जा रहा है. 2-3 बार उस ने वकील को भी घर में आते देखा.

वैसे तो उसे कोई चिंता नहीं थी पर वह अब राजेश की किसी चालाकी भरी योजना का शिकार नहीं बनना चाहती थी. वह ससुराल के प्रति अपने कर्तव्य से भली प्रकार परिचित थी और उन्हें पूरा कर भी रही थी. वह एकदम नौर्मल बातचीत करती रही.

राजेश ने कार की चाबी मांगी और मातापिता को कार में बैठा कर कहीं ले गया. दोपहर बाद सब लौटे. राजेश ने भी आज छुट्टी ली हुई थी. शाम को उस के सासससुर अपने रूटीन के अनुसार पार्क में घूमने चले गए.

नीलम ने राजेश को कुछ सामान लेने के बहाने भेजा. घर में इस समय कोई न था. उस ने झटपट सास के तकिए के नीचे रखीं अलमारी की चाबियां निकाल अलमारी खोल डाली. सामने वही लिफाफा पड़ा था जो उस ने ससुर  के हाथ में देखा था.

कागजात निकाल कर उस ने जल्दीजल्दी पढ़े, फिर उसी तरह कागजात लिफाफे में डाल, आलमारी में रख चाबी वहीं रख नौर्मल बन कर काम में लग गई.

दरअसल यह पुशतैनी मकान सासससुर ने अपनी दोनों की मृत्यु के बाद राजेश के छोटे भाई के नाम कर दिया था. उन्हें यह विश्वास था राजेश और नीलम समय आने पर नया प्लैट लेने में सक्षम रहेंगे.

कुछ दिनों बाद नीलम को सासससुर ने बड़े प्यार से बुला कर कहा, ‘‘बेटी, यह

पुशतैनी मकान पुराने तरीके से बना हुआ है. हमारा जमाना तो गुजर गया. अब राजेश, सुरेश और तुम लोगों को इस तरह के मकान में तंगी आएगी. हम सोच रहे हैं कि इसे नए तरीके के

घर में तब्दील कर लें. अगर तुम कुछ लोन ले लो तो यह काम आसान हो जाएगा. अभी तो तुम्हारे सिर पर कोई जिम्मेदारी नहीं है. नौकरी भी लंबी है. आसानी से किस्तें चुका सकती हो.’’

नीलम समझ गई उस पर जाल फेंक दिया गया है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है ममीपापा मैं स्कूल में जा कर पता करती हूं.’’

3-4 दिन बीत गए. उस ने अकाउंट विभाग और अनुभवी साथियों से विचारविमर्श कर नीलम ने घर आ कर बताया कि लोन तो मिल जाएगा

पर तभी मिलेगा जब मकान मेरे नाम पर होगा क्योंकि सिक्यूरिटी के लिए मुझे मेरे नाम के मकान के कागजात बैंक ने अपने पास रखने हैं ताकि किस्तें न चुका पाने की हालत पर वह मकान पर कब्जा कर सके… यह नियम तो आप को मालूम ही होगा.

मरते क्या न करते. मकान को नीलम के नाम किया गया. अब नीलम ने लोन ले कर अपने मनपसंद तरीके से मकान को रैनोवेट करवाना शुरू करवा दिया. 3-4 महीनों में ही पुराने मकान की जगह एक नया खूबसूरत घर तैयार हो गया, जिस की मालकिन नीलम थी.

मकान बनने के कुछ दिन बाद ही एक दिन नीलम की एक सहकर्मी अध्यापिका उसे जल्दी घर ले कर आ गई. उस ने घर में सब को बताया कि अभी नीलम को अस्पताल से ले कर आ रही है. इसे स्कूल में घबराहट और चक्कर आ रहे थे. वहीं से वे दोनों अस्पताल गई थीं. डाक्टर ने मुआयना कर बताया कि यह किसी बड़े तनाव को झेल रही है. कुछ दिन घर पर आराम करने की सलाह दी गई है. यह बता कर वह चली गई.

एक दिन बाद सभी ने नीलम से तनाव के बारे में पूछा. नीलम ने कहा, ‘‘उसे हर समय लोन का तनाव रहने लगा है. स्कूल में भी मैं छात्राओं को मन लगा कर नहीं पढ़ा पाती. मानसिक तनाव से हर समय सिरदर्द रहता है. प्रिंसिपल के पास मेरी शिकायत भी छात्राओं ने की है. मुझे प्रिंसिपल की ओर से वार्निंग भी मिल चुकी है. इस कारण मैं मानसिक रूप से बहुत चिंतित हूं और तनाव ग्रस्त रहने लगी हूं.

‘‘मुझे डर है यह लोन का तनाव मेरी

नौकरी को न ले डूबे. आजकल स्कूलकालेजों में बहुत सख्त नियम बन गए हैं. जो पढ़ाने में लापरवाही करे या मनमानी करे उसे संस्पैंड कर देते हैं या किसी दूरदराज की शाखा में स्थानांतरित कर देते हैं. जहां मूलभूत सुविधाएं भी कठिनाई से मिलती हैं. मजबूरी में कुछ लोग तो नौकरी छोड़ना बेहतर समझते है. जब वे इतने ज्यादा वेतन देते हैं तो काम भी एकदम बेहतरीन मांगते हैं,’’ यह सुन सभी घबरा गए.

नीलम ने बड़े ही प्यार से आगे कहा, ‘‘कुछ महीने में लोन की रकम बढ़ा कर लोन जल्दी से जल्दी उतारने की कोशिश करती हूं, घर खर्चे की जिम्मेदारी आप दोनों उठा लें.’’

अगले महीने से सारा घर खर्च ससुर की पैंशन और राजेश के वेतन से चलने

लगा. नीलम ने बड़ी होशियारी से खुद को घर खर्च से आजाद कर लिया. नीलम मन ही मन हंसती रही. उस ने कार और मकान का लोन उतारने के लिए स्कूल में ही कुछ ट्यूशंस भी ले लीं, जिस से उस की आमदनी बढ़ गई और फिर वह लोन की किस्त की रकम बढ़ा कर लोन उतारने लगी.

राजेश ने भी रोज एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी के सपने देखने छोड़ दिए और घर खर्च में तालमेल बैठाने के लिए पार्टटाइम जौब करने लगा.

नीलम भी मन ही मन सोचती कि प्यारमुहब्बत सादगी से राजेश उस से सहयोग चाहता तो वह बड़ी खुशी से करने को तैयार थी पर जहां उस ने चालाकी, मक्कारी से उसे मूर्ख बनाने की कोशिश की वहां तो तू डालडाल मैं पातपात वाली कहावत ही लागू करनी पड़ी.

सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 2: नीलम का क्या था प्लान

रात को सिरदर्द का बहना बना जल्दी सोने का नाटक किया. सोचती रही उस के मातापिता बेचारे ऐसा योग्य नेक दामाद पा कर कितना खुश हैं. नहीं, नहीं मैं उन का यह भ्रम बनाए रखूंगी. राजेश को मैं ही सबक सिखाऊंगी.

कुल्लूमनाली में उस ने नोटिस किया कि बड़ेबड़े खर्चे उसी के ऐटीएम से रुपए निकाल कर हो रहे हैं. छोटेमोटे खर्च वह अपने क्रैडिट कार्ड से करता. घर वालों के लिए उपहार ले कर वह बहुत संतुष्ट था. उस ने भी बहाने से उस के पर्स से क्रैडिट कार्ड निकाल अपने मातापिता के लिए दुशाला व शाल ले ली. क्रैडिट कार्ड वापस राजेश के पर्र्स में रख दिया. बातोंबातों में राजेश बड़े ही प्यार से उस से उस की अभी तक की सेविंग्स, पीएफ, वेतन आदि की जानकारी लेता रहा. नीलम भी सावधान थी. उस ने कोई भी जानकारी सही नहीं दी.

घर लौट कर नीलम ने बड़ी होशियारी से सब के लिए लाए उपहार उन्हें दिए, साथ में मेरी ओर से, मेरी ओर से कहना नहीं भूली. राजेश चुप रह गया. वह जानता था कि सब नीलम के पैसों से खरीदा है. सभी नीलम से खुश हो गए.

अब जीवन की गाड़ी अपनी रोजमर्रा की पटरी पर आ गई. राजेश का औफिस

नीलम के स्कूल के आगे ही था. राजेश अगर थोड़ा जल्दी निकल जाए तो नीलम को समय पर स्कूल छोड़ आगे जा सकता. वह स्कूटर पर जाता था. नीलम ने जब उस के सामने यह प्रस्ताव रखा तो उस ने हामी भर दी.

राजेश दूसरेतीसरे दिन नीलम के कार्ड से पैट्रोल के बहाने मनमाने रुपए निकलवा लेता था पर ले जाने के समय सप्ताह में 3 या 4 दिन ही ले जा पाता. कोई न कोई बहाना बना देता.

नीलम ने यह भी नोटिस किया कि छोटे भाई या बहन को कुछ पैसों की जरूरत होती तो वे दोनों चुपके से उस से मांग लेते और कह देते किसी को मत कहना.

नीलम अभी नई थी. ज्यादा कुछ नहीं कह पाती. पर उस ने सोच लिया कि इस का भी कोई न कोई हल निकालना पड़ेगा. 1-2 महीने ऐसे ही गुजर गए. नीलम के ही वेतन से लगभग परिवार का खर्चा चल रहा था. सभी को बचत करने की पड़ी थी. पापा अपनी पैंशन से धेला भी खर्च नहीं करते. यही हाल राजेश का था. राशन, दूध, बाई, बिजलीपानी का बिल, फलसब्जियों सबका भुगतान नीलम करती. छोटेछोटे खर्च राजेश दिखावे के लिए करता.

एक दिन नीलम मायके गई तो उस ने अपने पापा को कुछ उदास पाया. बारबार पूछने पर उन्होंने बताया कि मकान बनाने पर अनुमान से बहुत ज्यादा पैसा लग चुका है. अब हालत यह है कि मकान में लकड़ी का काम करवाने के लिए पैसे कम पड़ गए हैं. बिल्डर ने काम रोक दिया है. नीलम को मन ही मन बहुत दुख हुआ कि जिन मातापिता ने शिक्षा दिलवाई, कमाने योग्य बनाया वही आज पैसों की तंगी सहन कर रहे हैं. वह उदास मन से वापस आई. महीने के खत्म होते ही छुट्टी के दिन जब सवेरे सब फुरसत चाय की चुसकियां ले रहे थे उस समय नीलम ने बड़ी शालीनता और अपनेपन की चाशनी पगी जबान में कहा, ‘‘देखिए, कायदे से हमारे घर 3 जनों की आमदनी आती है- मेरी और राजेशजी का वेतन और पापाजी की पैंशन पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है ऐसे कैसे चलेगा. मुझे तो बहुत चिंता होती है. सुरेश भैया की पढ़ाई के 2 साल बाकी हैं. मधु की शादी भी करनी है,’’ ऐसी अपनेपन और जिम्मेदारी वाली बातें कर उस ने सब का दिल जीत लिया.

‘‘आगे खर्च बढ़ेंगे. इसलिए हमें अभी से प्लानिंग कर के खर्च करना चाहिए.

आज हम यह देख लेते हैं कि इस महीने किस ने कम खर्च किया किस ने ज्यादा. सब अपने द्वारा किए हुए खर्च का ब्योरा दें. जिस का खर्च ज्यादा हुआ होगा उसे इस महीने राहत दी जाएगी.

‘‘नए महीने से सब बराबर खर्च करेंगे ताकि सब की थोड़ीबहुत बचत होती रहे जो भविष्य में होने वाले खर्च में सहायक बने.’’

एक कागज पर तीनों ने अपने द्वारा किए खर्च का ब्योरा लिखा. जब उस ब्योरे को जोरजोर से पढ़ा गया तो सब से ज्यादा रकम नीलम की ही खर्च हुई थी. राजेश के भाईबहन द्वारा लिया सारा खर्च भी सबके सामने स्पष्ट हो गया.

राजेश थोड़ा झेंप गया क्योंकि उस ने भी नीलम का बहुत पैसा निकाला था. अगले महीने के लिए सारे खर्च को बराबरबराबर बांट दिया गया. अब नीलम की अच्छीखासी बचत हो जाती थी. वह गुप्त रूप से माएके का मकान बनाने वाले बिल्डर से मिली. कुछ अग्रिम पैसा दे कर उस से कहा कि आप मकान का लकड़ी का

काम पूरा करिए. मैं समयसमय पर भुगतान करने आती रहूंगी. पापा को इस बात का पता नहीं लगना चाहिए.

1 महीने के अंदर घर का लकड़ी का

काम हो गया. नीलम ने मकान की सफाई वगैरह करवा कर सारा हिसाब चुकता कर दिया. उस

ने मकान की चाबी पापा को दे कर शिफ्ट होने

को कहा.

यह सब जान पापा चकित रह गए. बेचारे नीलम की इस मदद से शर्म से झके जा रहे थे. नीलम ने इस बात को गोपनीय रखने को कहते हुए पापा से कहा कि आप को इस मदद के लिए शर्म, लज्जा महसूस करने की आवश्यकता नहीं है. आप का हमारे ऊपर पूरा हक है क्योंकि आप ने ही हमें इस योग्य बनाया है.

राजेश भी कम न था. उस ने बिना दहेज के शादी की थी. मन ही मन नीलम से उस का मुआवजा चाहता था. एक दिन नीलम को उस के एक सहकर्मी से पता चला कि उस ने राजेश को कार के शोरूम में कार पसंद करते देखा. राजेश नीलम के सहकर्मी को पहचानता न था. नीलम को अंदाजा लग गया कि शीघ्र ही उस से रुपए ले कर राजेश कार खरीदने की योजना बना रहा है. नीलम ने भी एक योजना बना डाली.

अपने 2 बुजुर्ग सहकर्मियों को जो बहुत समझदार व अनुभवी थे अपने साथ ले कर एक नामी कार के शोरूम जा पहुंची. बहुत सोचसमझ कर उस ने एक कार पसंद की, डाउन पेमेंट कर आसान किश्ते बनवा लीं. कार उस ने अपने नाम से खरीदी. कार चलाना उसे कालेज के समय से आता था. 3-4 दिन उस ने सहकर्मी की पुरानी कार से अभ्यास किया. आत्मविश्वास आ जाने पर कार ले कर घर आई. पूरा परिवार देख कर चकित रह गया.

नीलम ने कहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा ने विवाह की पहली वर्षगांठ पर मुझे दी है.’’

राजेश और उस के परिवार को खुशी तो

थी पर कार की मालकिन तो आखिर नीमम ही थी. बिना नीलम की इजाजत के कोई स्वेच्छा से कार नहीं ले जा सकता.

सोने का अंडा देने वाली मुरगी- भाग 1: नीलम का क्या था प्लान

मेहमानों के जाते ही सब ने राहत की सांस ली. सभी थके हुए थे पर मन खुशी से उछल रहे थे. दरअसल, आज नीलम का रोकना हो गया था. गिरधारी लालजी के रिटायरमैंट में सिर्फ 6 महीने बाकी थे पर उन की तीसरी बेटी नीलम का रिश्ता कहीं पक्का ही नहीं हो पाया था. जहां देखो कैश और दहेज की लंबी लिस्ट पहले ही तैयार मिलती.

गिरधारी लालजी 3 बेटियां ही थीं. उन्हें बेटियां होने का कोई मलाल न था. उन्होंने तीनों बेटियों को उन की योग्यता के अनुसार शिक्षा दिलवाई थी. कभी कोई कमी न होने दी.

2 बड़ी बेटियों के विवाह में तो लड़के वालों की मांगों को पूरा करतेकरते उन की कमर सी टूट गई थी, फिर मकान भी बन रहा था. उस के लिए भी पैसे आवश्यक थे. नीलम की शादी में अब वे उतना खर्च करने की हालत में नहीं रहे थे.

नीलम केंद्रीय विद्यालय में नौकरी करने लगी थी. उस ने लड़के वालों के नखरे देख कर शादी न करने की घोषणा भी कर दी थी? परंतु परिवार में कोई भी उस की बात से सहमत न था. जब किसी रिश्ते की बात चलती वह कोई न कोई बहाना बना मना कर देती. बारबार ऐसा करने से घर में कलह का वातावरण हो जाता. पापा खाना छोड़ बाहर निकल जाते. देर रात तक न आते. मम्मी उसे कोसकोस कर रोतीं. कभीकभी बहनों को बीचबचाव के लिए भी बुलाया जाता. वे भी उसे डांट कर जातीं.

नीलम को शादी या लड़कों से नफरत नहीं थी. वे शादी के नाम पर लड़की वालों को लूटनेखसोटने यानी दहेज, कैश जैसी प्रथाओं से चिढ़ती थी. आखिर में उस ने कहा कि जो लड़का बिना दहेज के शादी करने को तैयार होगा, मेरे योग्य होगा उस से विवाह कर लूंगी. इत्तफाक से नीलम की इकलौती बूआजी ऐसा ही रिश्ता खोज कर ले आईं. लड़का प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. लड़के वालों को दानदहेज कुछ नहीं चाहिए था. केवल पढ़ीलिखी, नौकरी वाली लड़की की मांग थी. बस दोनों ओर से रजामंदी हो गई.

आज रोकना की रस्म में भी लड़के ने केवल नारियल और 101 रुपए का शगुन लिया. गिरधारी लालजी ने लड़के के मातापिता, भाईबहन को मिठाई के डब्बे दे कर विदा किया.

उन के जाते ही महफिल जुट गई. नीलम की दोनों बहनें आई हुए थीं. बूआजी थीं. बूआजी तो आज की विशेष मेहमान थी. सभी उन की तारीफ कर रहे थे. उन्होंने भाई की बड़ी समस्या सुलझ दी थी. लड़का व परिवार भी अच्छा लग रहा था. लड़का एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. स्मार्ट भी था. चाय पी रहे थे. सभी खुश थे परंतु नीलम की तर्कबुद्धि, यह मानने को तैयार नहीं थी कि आज के जमाने में ऐसे आदर्शवादी लोग भी मिलते हैं, जो दहेज के बिना भी शादी करने को तैयार हो जाते हैं.

2 महीने बाद का ही विवाह का मुहूर्त भी निकल आया था. विवाद भी सादगीपूर्ण हुआ. नीलम अपनी ससुराल जा पहुंची. ससुराल में भी कोई सजावट या दिखावा नहीं था. नीलम ने स्कूल से एक महीने की छुट्टियां ली थीं. उस के पति राकेश ने हनीमून के लिए कुल्लूमनाली जाने का प्रयोग बनाया. जाने से एक दिन पहले राजेश के कुछ दोस्त, जो शादी में शामिल नहीं हुए थे, घर आ गए. लिविंगरूम में हंसीमजाक चल रहा था.

नीलम चायनाश्ता ले कर जा रही थी कि अचानक उस के कानों में एक दोस्त की आवाज सुनाई पड़ी. वह कह रहा था कि यार राजेश तूने बिना दहेज के शादी कर के बड़ी दरियादिली दिखाई. यह सुन नीलम के कदम पीछे ही रुक गए. वह राजेश का जवाब सुनने को आतुर हो उठी. नीलम की आहट से अनजान राजेश जोर से ठहाका लगा कर बोला कि मेरा दिमाग अभी पागल नहीं हुआ है. मैं तुम सब जैसा नहीं हूं. तुम जैसों से बुद्धि में चार कदम आगे ही चलता हूं. तुम सब दहेज मांग कर ससुराल में अपनी इमेज खराब करते हो. वहीं मैं ससुराल में भी मानसम्मान बनाए रख सरकारी नौकरी वाली लड़की से विवाह कर के अपना भविष्य सुरक्षित करने की सोचता हूं. आगे समझने लगा. तुम सब महामूर्ख हो. एक बार ढेर सारा दहेज ले कर सोचते हो उम्र कट जाएगी. बचपन में पढ़ी, वह कहानी, जिस में हंस लड़के को एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी मिल जाती है.

उस मूर्ख ने सोचा रोजरोज कौन इंतजार करे एक ही बार इस मुरगी का पेट काट इस के सारे सोने के अंडे निकाल लूं और फिर उस ने वैसा ही किया. क्या हुआ मुरगी भी गई अंडा भी न मिला. तुम सब भी उस मूर्ख लड़के हंस से कम नहीं हो. कहानी याद आई कि नहीं? मैं तो मुरगी से रोज 1 सोने का अंडा लिया करूंगा. समझ लो मैं ने सोने का अंडा देने वाली मुरगी पाल ली है. तुम लोगों को यह पता ही है कि सहज पके सो मीठा होय. जहां तुम लोग बड़ेबड़े व्यवसायियों की लड़कियों से शादी कर दहेज और रकम के सपने पूरे करने के  पीछे पागल रहते. वहीं मैं कुछ और ही सोच रखता था. अब देखो मेरी पत्नी नीलम 3 बहनें ही हैं. मातापिता के बाद उन के पास जो भी है वह तीनों बहनों को ही मिलेगा, फिर नीलम नौकरी भी करती है.

सरकार स्कूल में पीजीटी अध्यापिका है. समझे कुछ? उसे 7वें पे कमीशन के अनुसार मोटा वेतन और तरहतरह की सुविधाए मिलती हैं. मैं ने तो नीलम से शादी कर के जीवन बीमा करवा लिया है जो जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी होगा. ऐसा सौदा किया है वरना दिमाग पागल नहीं हुआ था जो बिना दहेज की शादी करता.

दोस्त भी ठहाका लगा कर हंसने लगे. बोले कि जानते हैं, यार तू तो कालेज के जमाने से ही बनिया बुद्धि का था. हर जगह हिसाबकिताब, लाभहानि देखता था. फिर सभी का समवत ठहाका लगा.

यह सब सुन कर नीलम का मन खट्टा हो गया. उस की तार्किक बुद्धि आखिर जीत ही गई. वह समझ गई हाथी के खाने के दांत अलग हैं और दिखाने के अलग हैं. बेमन से चायनाश्ता देने अंदर गई. कुछ देर पास बैठ कर काम के बहाने बाहर निकल आई. वह सोचने लगी प्रेम, अपनापन, सहयोग के चलते हम दोनों मिल कर घर, बाहर का खर्च मिलबांट कर करते तो उसे कभी कोई एतराज न होता आखिर पढ़ीलिखी, नौकरी वाली बहू किसलिए आजकल मांग में है? पर इस प्रकार चालाकी से, रोब से या बेवकूफ बना कर कोई उस की कमाई पर हक जताएगा यह बात उसे कतई गवारा नहीं.

प्रोजैक्ट- भाग 3: कौन आया था शालिनी के घर

शालिनी और समीर दोनों कार में बैठे. बौस ने कार स्टार्ट कर आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘इन का तो अभी काम हो जाएगा, रही बात तुम्हारे प्रोजैक्ट की तो उस पर की गई तुम्हारी मेहनत मैं बेकार नहीं जाने दूंगा. उस के लिए मैं कंपनी से बात कर लूंगा. तुम थोड़ा धैर्य रखो. इन दोनों की तो शिकायत कर कंपनी से निकलवाऊंगा. साथ ही, इस प्रोजैक्ट के लिए अगले महीने की तारीख तय करने की कोशिश करूंगा.

‘और इस बार जाते वक्त शालिनी को भी साथ लेते जाना. यह भी घूम आएगी तुम्हारे साथ. वहां मीटिंग में बस 2-3 घंटे का ही काम होता है. फिर ऐश करना तुम लोग,‘ बौस ने यह कहा, तो शालिनी और समीर दोनों के चेहरे एक लंबी सी मुसकान ने दस्तक दे दी.

बौस ने गाड़ी को ब्रेक लगाया. पुलिस स्टेशन आ चुका था और पीछेपीछे पुलिस की वह जीप भी आ गई थी, जिस में वे दोनों अफसर मौजूद थे जो कि लाख मना करने के बावजूद शराब के नशे में ऊलजलूल बके जा रहे थे. उन की हरकत और मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें सलाखों के पीछे धकेल दिया गया.

‘फिलहाल तो ये दोनों अभी नशे में हैं. कल सुबह इन का नशा उतरते ही पूछताछ की जाएगी. उस के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी.

‘और हां.. इस दौरान अगर आप में से किसी की जरूरत पड़ी, तो आप को फोन कर दिया जाएगा. अभी आप लोग जा सकते हैं,‘ पुलिस ने शालिनी और समीर के बयान दर्ज कर के कहा. और फिर तीनों वहां से निकल गए.

बौस ने उन दोनों को घर छोड़ते हुए कहा, ‘पुलिस स्टेशन से फोन आए, तो मुझे भी इत्तिला कर देना. मैं भी साथ चलूंगा.‘

अगले दिन सुबह फोन की घंटी के साथ ही समीर की आंख खुली. फोन पुलिस स्टेशन से था. बात कर के समीर ने शालिनी को जगाते हुए कहा, ‘सुनो डियर, पुलिस स्टेशन से फोन आया है. पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ कर ली. सुबह साढे़ 10 बजे हमें पुलिस स्टेशन बुलाया है. तुम जल्दी से उठ कर तैयारी करो. मैं बौस को फोन मिलाता हूं,‘ शालिनी को जगा कर समीर ने अपने बौस को इस बारे में जानकारी दी. और फिर साढे़ 10 बजे तीनों पुलिस स्टेशन पहुंच गए.

उन तीनों को देख थानाधिकारी ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘आइए.. आइए.. बैठिए, आप लोग किसी रंजीत नाम के शख्स को जानते हैं, जो कि आप ही के औफिस में काम करता है.’

‘हां… हां, बिलकुल, औफिस में वह मेरा सीनियर है,‘ समीर बोला.‘लेकिन, रंजीत का इस केस से क्या ताल्लुक…?‘ बौस ने आश्चर्यमिश्रित भाव से कहा.

‘‘आप लोग मुझे उस का पूरा पता और मोबाइल नंबर दीजिए. अभी पता चल जाएगा कि इस केस से उस का क्या ताल्लुक है,’ थानाधिकारी ने प्रतिउत्तर में कहा. और फिर आवाज लगाई, ‘हवलदार, उन दोनों नशेड़ियों को बाहर लाओ जरा.’

अब दोनों अफसर अपनी झुकी गरदन के साथ उन सब के सामने थे. उन दोनों को अपनी आंखों के सामनेपा कर बौस ने कहा, ‘तुम जैसे अफसरों को पहचानने में मुझ से चूक कैसे हो गई. मैं ने अपने 22 साल के कैरियर में अब तक इतने बेशर्म और घटिया किस्म के अफसर नहीं देखे.‘‘इस में हमारी कोई गलती नहीं है, हमें माफ कर दीजिए,‘ एक अफसर बौस की बात काटते हुए बोला.

‘गलती तुम्हारी नहीं, गलती तो मेरी है, जो तुम्हें उस दिन फिल्म देख कर लौटते समय रास्ते में पड़ने वाले समीर के घर के बारे में बताया,‘ बौस ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

‘ऐसा बिलकुल नहीं है सर, दरअसल, उस दिन फिल्म देखने के बाद आप ने तो हमें होटल के गेट तक ही छोड़ा था, लेकिन जब हम अंदर गए तो आप के औफिस में काम करने वाला रंजीत रूम के आगे खड़ा हमारा इंतजार कर रहा था. रूम में जा कर हम ने कुछ देर बात की और फिर उस ने अपने बैग में से व्हिस्की की बोतल निकाल कर हमारी मानमनौव्वल की, तो हम ने भी हामी भर दी.

2-3 पैग पीने के बाद रंजीत ने कहा, ‘इस शहर में किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझे बताइएगा. आप की हर ख्वाहिश पूरी होगी. और फिर उसी ने हमें बताया कि समीर की पत्नी शालिनी का चालचलन कुछ ठीक नहीं है. काम के बोझ के चलते वह अपनी बीवी को पूरा वक्त नहीं दे पाता, औफिस में भी ओवरटाइम करता है. और उधर इस के घर में हर रोज नएनए लोगों का आनाजाना लगा रहता है. इस बारे में समीर को जरा भी खबर नहीं है. एकदो बार तो मैं भी जा चुका हूं. आप का भी अगर मूड हो तो बताइएगा.‘

फिर दूसरा अफसर अपनी सफाई में बोला, ‘हम उस की बातों में आ गए और अगले दिन औफिस में समीर का प्रोजैक्ट सलैक्ट करने के बाद जब हम अपने रूम में आए, तो हमारे पीछेपीछे रंजीत भी 2 व्हिस्की की बोतल ले कर रूम में आ गया. और जब हम पीने बैठे तो उस ने बातोंबातों में कहा, ‘समीर दोपहर 3 बजे की ट्रेन से नोएडा जा रहा है, इस से अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा, मैं तुम दोनों को उस के घर तक छोड़ दूंगा. और समीर के जाने के बाद शालिनी को भी तो अपने घर आने वाले खास मेहमानों का इंतजार रहेगा ही न,‘ कहते हुए उसी ने हमें समीर के घर तक अपनी गाड़ी से छोड़ा.

अब तक उन दोनों की बातों से सबकुछ स्पष्ट हो गया. उन की बातें सुन कर समीर का खून खौलने लगा था, तभी बौस बोले, ‘रंजीत ने समीर के साथ ऐसा क्यों किया? वह तो औफिस में इस का सीनियर है.‘

‘असली प्रोब्लम ही यही है सर कि वह मेरा सीनियर है, फिर भी पिछले 3 सालों से हर साल कंपनी से आने वाले अफसरों ने आज तक उस का कोई प्रोजैक्ट सलैक्ट नहीं किया. और इस बार आप ने यह काम मुझे सौंप दिया, तो उस ने इसे अपनी तौहीन समझते हुए मुझ से बदला लेने के लिए यह सब खेल खेला,‘ बौस की बात काटते हुए समीर ने अपना पक्ष रखा, तो बौस की आंखों के आगे जो भी धुंधला था सब साफ हो गया.

बौस ने पुलिस को रंजीत पर कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए और उन दोनों अफसरों की शिकायत कंपनी के हैड औफिस में कर दी, जिस के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

अपने आसपास के लोगों से भी हमें उतना ही सचेत रहने की आवश्यकता है, जितना अनजान अजनबियों से. शायद, यह बात अब शालिनी और समीर दोनों की समझ आ चुकी थी.

प्रोजैक्ट- भाग 1: कौन आया था शालिनी के घर

शनिवार को ओवर टाइम करने के बावजूद भी समीर का काम पूरा नहीं हो पाया था. रविवार को छुट्टी थी और सोमवार को औफिस की मीटिंग में किसी भी हाल में उसे प्रोजैक्ट पेश करना था, इसलिए वह औफिस का काम घर पर ले आया था, ताकि कैसे भी कर के प्रोजैक्ट समय पर पूरा हो जाए.

लेकिन, घर पहुंचते ही उसे याद आया कि रविवार को वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ फिल्म देखने जाने वाला है. और इस बार वह मना भी नहीं कर सकता था, क्योंकि अब की मैरिज एनिवर्सरी भी तो इसी रविवार को पड़ रही है.

पिछली बार की तरह इस बार वह अपने काम की वजह से शालिनी का मूड औफ नहीं करना चाहता था. रात के खाने के बाद वह शालिनी से यह कह कर अपने काम में जुट गया, ‘सौरी डियर.. आज थोड़ा काम निबटा लूं, कल पूरा दिन ऐंजौए करेंगे.‘

समीर के चेहरे पर काम का तनाव साफ झलक रहा था, जिसे चाह कर भी वह शालिनी से छुपा न सका. शालिनी उस की ओर करवट ले कर लेटी उसे देखती रही और लेटेलेटे कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

अगले दिन सुबह जब शालिनी तैयार हो कर समीर के सामने आई, तो वह उस की तारीफ किए बिना नही रह सका. अभी उस की तारीफ खत्म भी नहीं हुई थी कि शालिनी ने अपनी बंद मुट्ठी समीर की ओर बढ़ाई. समीर ने उस का हाथ थाम कर बंद मुट्ठी की एकएक कर उंगली खोली और मुट्ठी में बंद चमकीली सिंदूरदानी अपने हाथ में ले कर शालिनी की मांग भरी और उसे अपनी बांहों में भर लिया.

इस दौरान शालिनी को भी न जाने क्या शरारत सूझी, वह उस की पीठ पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, ‘बताओ, मैं ने क्या लिखा है?‘

‘तुम्हारा नाम,‘ शालिनी को अपनी बांहों में कसते हुए समीर ने कहा.‘बिलकुल गलत. अच्छा चलो, दोबारा लिखती हूं, अब ठीक से बताना.‘शालिनी  फिर से समीर की पीठ पर उंगली से कुछ लिखने लगी. अपनी पीठ पर घूमती शालिनी की उंगली के साथसाथ समीर ने अपना दिमाग भी घुमाना शुरू किया और फिर तपाक से बोला, ‘आई लव यू.‘

सही जवाब पा कर शालिनी के चेहरे पर मुसकान फैल गई, ‘आई लव यू टू मेरी जान, चलो, अब जल्दी से तैयार हो जाओ. याद है न, आज हम लोग फिल्म देखने जाने वाले थे,‘ समीर को याद दिला कर शालिनी अपने काम में बिजी हो गई.

शालिनी चाहती तो आज फिल्म देखने का प्रोग्राम कैंसिल भी कर सकती थी. उस की कोई खास इच्छा नहीं थी फिल्म देखने की और न ही थिएटर में उस के पसंद की कोई मूवी लगी थी. उसे तो बस कैसे भी कर के इस बार यह खास दिन समीर के साथ बिताना था.

हालांकि शालिनी अच्छी तरह से जानती थी कि इस बार समीर के लिए यह प्रोजैक्ट कितना माने रखता है. लेकिन फिर भी उस ने समीर की मरजी देखनी चाही और चुप रही.

शालिनी यह सब सोच ही रही थी कि समीर तैयार हो कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. वह समीर को अपलक देखती रही, समीर नीचे से ऊपर तक बिलकुल टिपटौप था. बस चेहरा थोड़ा उतरा हुआ था. तैयार होने बावजूद वह अपने चेहरे से काम का तनाव नहीं छुपा सका. अनमना सा समीर शालिनी को साथ ले कर चल पड़ा.

वहां थिएटर में पहुंच कर वे गाड़ी पार्क कर के अंदर की ओर जाने लगे कि वहां पार्किंग में पहले से खड़ी एक ब्लैक कार को देख कर समीर चैंक गया और बोला, ‘अरे, बौस की गाड़ी, मतलब, बौस भी फिल्म देखने आए हुए हैं.‘

‘इतना बड़ा शहर है, इस कंपनी और इस कलर की गाड़ी किसी और की भी तो हो सकती है, क्या नंबर याद है तुम्हें बौस की गाड़ी का?‘ शालिनी ने पूछा.

नंबर को सुनते ही समीर बोला, ‘खैर, छोड़ो जो होगा देखा जाएगा. दोनों आगे बढे़ और थिएटर में अपनी सीट पर जा कर बैठ गए. फिल्म शुरू हो चुकी थी. फिल्म का शुरुआती सीन ही इतना सस्पैंस भरा था कि समीर की उत्सुकता बढ़ गई और उस के चेहरे से काम का तनाव जाता रहा.

इंटरवल में जब वह स्नैक्स लेने कैंटीन पहुंचा, तो भीड़ में अपने कंधे पर अचानक किसी का हाथ पाया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वही हुआ जिस बात का अंदेशा था. उस का बौस सोमवार की मीटिंग में आने वाले उन दोनों अफसरों के साथ फिल्म देखने पहुंचा हुआ था.

‘क्या बात है समीर अकेलेअकेले, पहले पता होता तो तुम्हें भी साथ ले आते हम लोग,‘ बौस ने मुसकराते हुए कहा.‘नहीं सर, मैं अकेला नहीं शालिनी भी साथ में है, वह वहां बैठी है. वैसे, आज हमारी शादी की दूसरी सालगिरह है. बस इसीलिए फिल्म दिखाने ले आया.‘

‘ओहो… कांग्रेचुलेशन समीर. और हां, मैडम कहां है भई, आज तो उन्हें भी बधाई देनी बनती है,‘ बौस ने ठहाका लगाते हुए कहा.समीर अपने बौस और उस के साथ आए दोनों अफसरों को शालिनी के पास ले आया. सब ने शालिनी को बधाई दी.

‘क्या लेंगे सर आप लोग ठंडा या गरम?‘ समीर ने पूछा.‘भई, तुम्हारी शादी की सालगिरह है, सिर्फ इतने से काम नहीं चलने वाला पूरी पार्टी देनी होगी.’समीर ने पार्टी के लिए हां भरी, तभी फिल्म शुरू हो गई, तो सभी अपनीअपनी सीटों पर जा कर बैठ गए.

फिल्म के खत्म होने पर समीर ने शालिनी को कुछ शौपिंग कराई. शहर की कई फेमस जगहों पर घुमाया, वहां सेल्फियां लीं और घर लौटते हुए खाना उसी होटल में खाया, जहां वे शादी से पहले कई बार एकसाथ गए थे.

रात गहराने लगी थी. घर पहुंच कर समीर सीधे अपने काम में जुट गया. फिर से उस के चेहरे पर वही काम का तनाव देख शालिनी समझ गई. कपड़े चेंज कर वह भी उस की मदद करने की मंशा से पास आ कर बैठ गई. उस ने भी कुछ हाथ बंटाया और देर रात तक समीर के उस महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट को अंजाम तक पहुंचा ही दिया.

समीर अब काफी हलका महसूस कर रह था. उसे उम्मीद नहीं थी कि दिनभर की मौजमस्ती के बाद देर रात तक प्रोजैक्ट तैयार हो जाएगा. वह खुशी से उछल पड़ा. मदद के लिए शालिनी का शुक्रिया अदा करते हुए उसे अपनी बांहों में भर लिया.

शालिनी भी तो यही चाहती थी. उसे मालूम था कि जब तक काम पूरा नहीं होगा, समीर उस के पास नहीं आने वाला इसीलिए उस ने साथ लग कर उस के काम को अंजाम तक पहुंचाया.

‘थैंक यू सो मच डियर, तुम न होती तो सुबह हो जाती,‘ कहते हुए समीर ने शालिनी के गले पर नौनस्टोप एक बाद एक किस करने लगा.

शालिनी की सांसों की रफ्तार बढ़ने लगी. वह भी उस का साथ देते हुए बोली, ‘अब सुबह एकदूसरे की बांहों में ही होगी.‘ और समीर को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया.

कसक- भाग 3: क्या प्रीति अलग दुनिया बसा पाई

मैं तो जैसे सलीब पर टंग गया. एक रात प्रीति को समझतेसमझते मैं थक गया. वह बराबर मम्मी पापा के लिए अनापशनाप कहे जा रही थी, उन्हें अपमानित कर रही थी. यह सब बरदाश्त के बाहर हो गया था.

वह अपना तकिया उठा कर बाहर जाने लगी और बोली, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा माई फुट.’’

उस की इस बदतमीजी से खीज कर स्वत: ही मेरा हाथ उस पर उठ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘सौरी बोलो प्रीति.’’

उस ने कहा, ‘‘किस बात के लिए बोलूं? तुम सौरी बोलो, तुम ने हाथ उठाया है.’’

उस ने माफी नहीं मांगी उलटी जोरजोर से चिल्लाने लगी. यहां से जाने का बहाना मिल गया था उसे. बस फिर क्या था, उस ने अपना सूटकेस उतारा और उस में अपना सामान पैक कर दिल्ली अपने पीहर चली गई. हां, वह दिल्ली की रहने वाली थी. ऐसा लगा जैसे वह किसी मौके की तलाश में ही थी.

मुझे खुद पर ग्लानी हो आई कि यह क्या कर दिया मैं ने. उसे मनातेमनाते ही उसे खो दिया. मैं ने उसे बहुत रोकना चाहा. अनजाने में घबरा कर कि कहीं उसे खो न दूं, मैं ने माफी भी मांगी, लेकिन फिर उस ने एक न सुनी. लगा उसे बहुत अभिमान हो गया था शायद. उस घमंड ने उसे

न झकने दिया न ही उस ने अपनी गलती की माफी मांगी.

तभी मेरे मन ने मुझे धिक्कारा कि गलती कर के भी माफी न मांगे और मांबाप का

सम्मान न कर सके, ऐसा खोखला व्यक्तित्व है उस का, जिस के पीछे तू दीवाना हो रहा है.

जाने दे उसे. चली जाने दे. उसी दिन खत्म हो गया. वह रिश्ता शोर सुन कर मम्मीपापा बाहर आ गए थे.

मम्मी पागलों की तरह ‘बहूबहू’ पुकारती रहीं. कभी मेरी तरफ हाथ पसारतीं तो कभी दरवाजे की तरफ उसे रोक लेने को दौड़तीं.

उस ने फिर किसी की नहीं सुनी न पीछे मुड़कर ही देखा.

पापा शांत अपनी कुरसी पर बैठे हुए यह तमाशा देखते रहे. कुछ नहीं बोले. उन के चेहरे पर एक अजीब सा दर्द साफ दिखाई दे रहा था. चुप न रहते तो क्या करते? और फिर इस तरह से सूने दिनों की शुरुआत हो गई और यह सूनेपन का सिलसिला जिंदगीभर चलता ही रहा. कभी न खत्म होने वाला सिलसिला.

एक घर 3 कोनों में बंट गया- मैं, पापा और मम्मी. खाने की टेबल पर कभीकभी साथ हो लेते. वे दोनों कभी साथ बैठते, बतियाते और जी हलका कर लेते, परंतु मेरे कोने का अंधेरा, मेरे मन की कसक बढ़ती ही गई. कुछ दिन बाद वे लोग भी चले गए.

इतने बड़े बंगले में समय गुजारना बहुत मुश्किल था. हर कोने में प्रीति की यादें बसी थीं. समय काटे नहीं कटता था. अकेले रहते हुए सूनापन मन में ऐसा रम गया था कि कोई जोर से बोलता तो मैं चौंक जाता. औफिस भी जाता था, सभी काम होते थे, लेकिन कहीं भी मन नहीं लगता था. किसी से हंसीमजाक करना बिलकुल न सुहाता था.

उस दिन भी क्लब में बैठा था. सभी ऐंजौय कर रहे थे. तभी किसी ने कहा, ‘‘यार विक्रम तूने मोहित को देखा?’’

उस ने हाथ का इशारा कर के कहा, ‘‘वहां उस कोने वाली टेबल पर. वह आजकल बहुत पीने लगा है. तुम तो पहले भी मिले हो. जानते हो न उसे.’’

‘‘हां बिलकुल अच्छी तरह से जानता हूं. बहुत हंसमुख हुआ करता था.’’

यह सुरेंद्र ही था जो विक्रम को मेरे बारे में बता रहा था. विक्रम इसी महीने यहां

ट्रांसफर हो कर आया था.

‘‘अब वह पहले वाला मोहित नहीं रहा…

न वह हंसता है न ही मजाक करता है,’’

सुरेंद्र बोला.

विक्रम ने अचंभित हो कर पूछा, ‘‘ऐसा क्या हो गया भाई?’’

उस ने विक्रम को बताया, ‘‘धोखा दे गई इस की पत्नी इसे. शायद किसी के साथ भाग गई. तभी से यह देवदास बना फिरता है.’’

मन हुआ जा कर उस का गला पकड़ लूं या जबान खींच लूं उस की पर यह सोच कर कि गलत भी तो नहीं कह रहा वह मैं चुपचाप वहां से उठ कर चला आया.

ऐसे जुमले अकसर महफिलों में, पार्टियों में मेरे बारे में सुनाई देने लगे थे. शुरू में बुरा लगता था, लेकिन धीरेधीरे यह सब सुनने की आदत सी हो गई.

एक दिन पापा का फोन आया. कहने लगे, ‘‘यहां आ जाओ कोई बात करनी है,’’ बहुत दिनों बाद उन्होंने मौन तोड़ा था और संयत हो कर मुझे अपना फैसला सुनाया, जिसे सुन कर मैं स्तब्ध

रह गया.

मुझे उसे तलाक के लिए स्वयं को तैयार करने में काफी समय लग गया. असल में उम्मीद लगाए बैठा था कि प्रीति एक न एक दिन जरूर लौट आएगी. वह भी मुझ से ज्यादा दिन अलग नहीं रह पाएगी, लेकिन मैं प्रति दिन उस का इंतजार करता ही रह गया. उसे नहीं आना था तो वह नहीं आई.

कोर्टकचहरियों के चक्कर इंसान को तोड़ कर रख देते हैं, यह मैं ने तभी जाना था. सम्मन आते थे, तारीखें पड़ती थीं, जिरह होती थी. वकीलों के वाकजाल से भला कौन बच सकता. कोर्ट में झठेसच्चे आरोप और उन्हें सिद्ध करने

के प्रयास.

इस सारी प्रक्रिया के दौरान मानसिक तनाव

के बीच में धीमी गति से गुजरता हुआ

जीवन… ऐसी कितनी ही भयानक रातें मुझे गुजारनी पड़ीं. एक रात वह भी थी जिस दिन प्रीति घर छोड़ कर गई थी. वह अमावस की

रात से भी ज्यादा काली रात थी. बाहर तो घना अंधेरा था, ही लेकिन मन के अंदर भी तूफान उठ रहा था.

हर बार चीखने का मन करता था.

मन यह पूछना चाहता था कि प्रीति मैं ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा जो तुम ने मेरे साथ धोखा किया? मैं ने तो तुम्हें पलकों पर बैठाया था, जी जान से प्यार किया था. मेरे प्यार में क्या कमी रह गई थी? तुम मुझ से कहती तो सही.’’

सोचता हूं कि अंतत: फैसला होगा ही और वह इस विवाह बंधन से मुक्त हो जाएगी. वह तो निर्मोही है, धोखेबाज है, न जाने किस मिट्टी की बनी है. लेकिन मैं ने तो उस से प्यार किया था, किया है और शायद जीवनपर्यंत करता रहूंगा. मैं आज भी स्वयं को इस तलाक के लिए राजी नहीं कर पाया जो परिवार और समाज चाहता था, वह उस ने हमारे बीच करवा दिया.

मगर मैं ने उसे दिल से नहीं माना. यह कैसा प्रेम संबंध था? यह कैसा विवाह संबंध था, जिसे मैं ने माना? लेकिन उस ने नहीं माना. यह कसक सदा मेरे मन में रहेगी कि क्यों प्रीति तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

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