कर्तव्य पालन- भाग 2: क्या रामेंद्र को हुआ गलती का एहसास

घर पर ताला लगा देख उन्होंने लोगों से पूछताछ की तो पता लगा कि अविवाहित बेटी के गर्भवती होने की बदनामी के डर से उन्होंने हमेशा के लिए गांव छोड़ दिया. वे पागलों की भांति इधरउधर भटक कर उस की तलाश करने लगे परंतु कहीं कुछ पता न चला. उधर, उन के मातापिता ने जबरदस्ती उन का विवाह बिरादरी की एक लड़की अलका के साथ संपन्न कर दिया. तभी अलका ने करवट बदली. बिस्तर हिलने से इरा की तसवीर फिसल कर फिर से नीचे जा गिरी. ‘‘सोए नहीं अभी तक?’’ अलका आंखें खोल कर असमंजस से पूछने लगी, ‘‘तुम अभी तक राजेश की चिंता में जाग रहे हो? क्या वह आया नहीं अभी तक?’’ अलका चिंतित हो उठ कर बैठ गई.

‘‘वह आ चुका है और कमरे में सो रहा है.’’‘‘तुम भी सो जाओ, नहीं तो बीमार पड़ जाओगे,’’ अलका ने कहा और फिर अलमारी खोल कर नींद की एक गोली ला कर उन्हें थमा दी.

पानी के साथ गोली निगल कर वे सोने की कोशिश करने लगे. अलका कहती रही, ‘‘जब बाप के पैर का जूता बेटे के पैरों में सही बैठने लगे तो बाप को बेटे के कार्यों में मीनमेख न निकाल कर, उसे मित्रवत समझाना चाहिए.’’ पर रामेंद्र का ध्यान कहीं और अटका हुआ था. सुबह बिस्तर से उठ कर वे स्नान, नाश्ते से निबट कर फैक्टरी जाने हेतु कार की तरफ बढ़े तो पाया कि राजेश अभी भी सो रहा है. अलका ने कहा कि वह राजेश को फैक्टरी भेज देगी, ताकि उस को जिम्मेदारी निभाने की आदत पड़ जाए. रामेंद्र जैसे ही फैक्टरी के दफ्तर में प्रविष्ट हुए तो वहां पहले से उपस्थित एक अनजान लड़की को बैठा देख कर चकित रह गए.

लड़की ने उठ कर उन्हें नमस्ते किया.

‘‘कौन हो तुम? क्या चाहती हो?’’ वे रूखेपन से बोले.

‘‘मेरा नाम श्वेता है. नौकरी पाने की उम्मीद ले कर आई हूं.’’

‘‘हमारे यहां कोई रिक्त स्थान नहीं है. तुम जा सकती हो,’’ कह कर वे अंदर जा कर काम देखने लगे. कुछ देर बाद जब वे किसी कार्यवश बाहर निकले तो लड़की को उसी अवस्था में बैठी देख कर हतप्रभ रह गए, ‘‘तुम गईं नहीं?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मुझे राजेश ने भेजा है.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानती हो?’’

‘‘मैं आप की बेटी त्रिशाला की सहेली हूं,’’ कहतेकहते श्वेता का स्वर आर्द्र हो उठा, ‘‘मैं अपने सौतेले बाप व सौतेले भाइयों से बेहद परेशान हूं. आप मुझे नौकरी दे कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करेंगे. मैं व मेरी मां दोनों भूखों मरने से बच जाएंगी.’’

‘‘सौतेला बाप,’’ उन के मन में जिज्ञासा पनपी.

श्वेता ने कुछ झिझक के साथ कहा, ‘‘मेरी मां ने प्रेमी से धोखा खाने के पश्चात 2 बेटों के बाप, विधुर डेविड से शादी की थी. मैं मां के प्रेमी की निशानी हूं.’’

छि:छि:…रामेंद्र का मन घिन से भर उठा. कहीं अवैध संतान भी किसी की सगी होती है. जी चाहा अभी इस लड़की को धक्के दे कर फैक्टरी से बाहर निकाल दें पर श्वेता के चेहरे की दयनीयता देख उन की कठोरता बर्फ की भांति पिघल गई. उस का सूखा चेहरा बता रहा था कि उस ने कई दिनों से पेटभर कर भोजन नहीं किया है. सहानुभूतिवश उन्होंने श्वेता को थोड़े वेतन पर महिला श्रमिकों की देखरेख पर रख लिया. श्वेता उन के समक्ष नतमस्तक हो उठी व कुछ संकोच के साथ बोली, ‘‘सर, अपने बारे में मैं ने जो कुछ आप को बताया है उसे अपने तक ही सीमित रखें. राजेश व त्रिशाला को भी न बताएं.’’

‘‘नहीं बताऊंगा.’’श्वेता आश्वस्त हो कर घर चली गई और अगले दिन से नियमित काम पर आने लगी. पर रामेंद्र के मन में श्वेता व राजेश को ले कर उधेड़बुन शुरू हो चुकी थी. आखिर राजेश की श्वेता से किस प्रकार की जानपहचान है. श्वेता उस की सिफारिश ले कर नौकरी पाने क्यों आई? उन्होंने श्वेता के घर का संपूर्ण पता व उस की योग्यता के प्रमाणपत्रों की फोटोस्टेट की प्रतियां अपने पास संभाल कर रख लीं. राजेश पूरे दिन फैक्टरी में नहीं आया. शाम को रामेंद्र ने घर पहुंचते ही अलका से उस के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह बुखार के कारण पूरे दिन घर में ही पड़ा रहा. वे दनदनाते हुए राजेश के कमरे में दाखिल हो गए, ‘‘कैसी है तबीयत?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी,’’ अचकचा कर राजेश ने उठते हुए कहा.

‘‘लेटे रहो, स्वास्थ्य का खयाल न रखोगे तो यही होगा. क्या आवश्यकता है देर तक घूमनेफिरने की?’’

‘‘कल एक मित्र के यहां पार्टी थी,’’ राजेश सफाई पेश करने लगा.

‘‘फैक्टरी का काम देखना अधिक आवश्यक है. तुम अपनी इंजीनियरिंग व एमबीए की पढ़ाई पूरी कर चुके

हो. अब तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहिए.’’

‘‘जी, जी.’’

‘‘श्वेता को कब से जानते हो?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी, काफी अरसे से. वह एक दुखी व निराश्रित लड़की है, इसलिए मैं ने उसे फैक्टरी में नौकरी पाने के लिए भेजा था, पर आप को इस बारे में बताना याद नहीं रहा.’’

‘‘मैं ने उसे नौकरी दे दी है. लड़की परिश्रमी मालूम पड़ती है, पर तुम्हें इस प्रकार के छोटे स्तर के लोगों से मित्रता नहीं रखनी चाहिए.’’

‘‘जी, खयाल रखूंगा.’’

रामेंद्र के उपदेश चालू रहे. कई दिनों बाद आज उन्हें बेटे से बात करने का अवसर मिला था. सो, देर तक उसे जमाने की ऊंचनीच समझाते रहे.तभी त्रिशाला ने पुकारा, ‘‘पिताजी, चाय ठंडी हुई जा रही है. मैं ने नाश्ते में पनीर के पकौड़े बनाए हैं, आप खा कर बताइए कैसे बने हैं?’’ रामेंद्र आ कर चायनाश्ता करने लगे. त्रिशाला बताती रही कि आजकल वह बेकरी का कोर्स कर रही है, फिर दूसरा कोई कोर्स करेगी.

वे पकौड़ों की प्रशंसा करते रहे. अलका काफी देर से खामोश बैठी थी. अवसर मिलते ही उबल पड़ी, ‘‘तुम्हें बीमार बेटे से इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए. श्वेता को सिर्फ वही अकेला नहीं, बल्कि हम सभी जानते हैं. वह त्रिशाला की सखी है, इस नाते घर में आनाजाना होता रहता है. राजेश ने दयावश ही उसे अपनी फैक्टरी में नौकरी पाने हेतु आप के पास भेज दिया होगा.’’

‘‘पर मैं ने भी तो बुरा नहीं कहा. बस, यही कहा कि बच्चों को अपने स्तर के लोगों से ही मित्रता रखनी चाहिए.’’

‘‘बच्चों के मन में, छोटेबड़े का भेदभाव बैठाना उचित नहीं है.’’

‘‘ये दोनों अब बच्चे नहीं रहे, तभी तो कह रहा हूं,’’ रामेंद्र हार मानने को तैयार नहीं थे,  ‘‘देखो अलका, छोटी सी चिनगारी से आग का दरिया उमड़ पड़ता है. युवा बच्चों के कदम फिसलते देर नहीं लगती. तुम राजेश पर नजर रखा करो, उस का श्वेता जैसी लड़कियों के साथ उठनाबैठना उचित नहीं.’’ अलका पति रामेंद्र व इरा की प्रेम कहानी से भली प्रकार वाकिफ थी, इसलिए उस के मन में आया कि कह दे कि राजेश तुम्हारे जैसा नहीं है कि मछुआरिन जैसी लड़की के प्रेमपाश में बंध जाएगा. उस के लिए एक से एक बड़े घरों के रिश्ते आ रहे हैं. तुम्हें तो सिर्फ श्वेता से दोस्ती ही दिखाई दे रही है, उस के बड़े घरों के मित्र क्यों नहीं दिखाई देते? पर वह शांत बनी रही. इरा का नाम लेने से घर में फालतू का क्लेश ही उत्पन्न होता. श्वेता ने जिस खूबी से फैक्टरी का कार्य संभाला, उसे देख रामेंद्र दंग रह गए.

GHKKPM: विराट की हरकत पर भड़के फैंस, मेकर्स को सुनाई खरी खोटी

सीरियल गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसके चलते सीरियल की टीआरपी तो बढ़ रही है लेकिन मेकर्स को खरीखोटी भी सुननी पड़ रही है. इसी बीच लेटेस्ट ट्रैक के चलते विराट यानी एक्टर नील भट्ट  (Neil Bhatt) ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

पाखी और विराट के रिएक्शन से ट्रोल हुए मेकर्स

 

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हाल ही में सीरियल के अपकमिंग ट्रैक का प्रोमो सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें पाखी के घर से निकलने पर विराट का चेहरा फैंस को पसंद नहीं आ रहा है. दरअसल, सई (Ayesha Singh) के बच्चा खोने के बाद भवानी, पाखी को घर से निकलने के लिए कहती है, जिसके चलते वह घर से जाते हुए नजर आती है. वहीं विराट, सई को संभालते हुए पाखी की तरफ देखता हुआ नजर आता है, जिस पर पाखी समझती है कि विराट उसे सई के मिसकैरिज का जिम्मेदार नहीं मानता और वह फिर विराट के बारे में सोचने लगती है.

 

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फैंस को आया गुस्सा

जहां मेकर्स इस नए ट्रैक के कारण ट्रोलिंग के शिकार हो रहे हैं तो वहीं सोशलमीडिया पर गुम है किसी के प्यार में के फैंस विराट को खरी खोटी सुना रहे हैं.  दरअसल, विराट के रिएक्शन को देखकर एक यूजर ने लिखा, ‘विराट को ऐसा नहीं करना चाहिए. उसे इस वक्त सई को संभालना चाहिए.’ वहीं दूसरे यूजर्स ने विराट के फेशियल एक्सप्रेशन पर मेकर्स की क्लास लगाई है और शो को बर्बाद ना करने की बात कहते नजर आ रहे हैं.

बता दें, अपकमिंग ट्रैक की बात करें तो विराट और सई के बच्चे को जन्म देने के लिए पाखी मान जाएगी और वह सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार होगी. लेकिन इन सब के पीछे पाखी का प्लान होगा और वह मां बनने के बाद बच्चे को नहीं देगी. अब देखना है कि सई और विराट की जिंदगी में कौनसा नया मोड़ आएगा.

 

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Anupama: वनराज की हरकत पर काव्या को आया गुस्सा, इस तरह निकाली भड़ास

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा (Anupama) में जहां अनुज के परिवार की एंट्री हो चुकी है तो वहीं वनराज और काव्या के रिश्ते में दूरियां देखने को मिल रही है. इसी बीच सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो में वनराज (Sudhanshu Pandey) ने कुछ ऐसा काम कर दिया है, जिसके कारण उसे काव्या (Madalsha Sharma) की मार खानी पड़ रही है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

वनराज पर आया काव्या को गुस्सा

हाल ही में एक्ट्रेस काव्या के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस मदालसा शर्मा ने वनराज यानी सुधांशू पांडे के साथ वीडियो शेयर किया है. वीडियो में जहां वनराज बड़े ही प्यार से काव्या की तारीफ करना तो शुरू करता है. लेकिन अगले ही पल वह उसकी बेइज्जती करते हुए कहता है, ‘मैंने उसे दिल दिया हालांकि जरूरत उसे दिमाग की थी.’ वनराज की ये बात सुनते ही काव्या को गुस्सा आता है और वह उसे पीटने लगती है. फैंस को दोनों का ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है.

अनुपमा के परिवार के कारण परेशान हुई बरखा

 

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अब तक आपने देखा कि अनुज के परिवार के आने से अनुपमा बेहद खुश है.  हालांकि वह अनुज की भाभी बरखा और भाई के इरादों से अनजान है. वहीं अनुज की अनुपमा के परिवार के साथ बढ़ती नजदीकियों के कारण बरखा भाभी प्लानिंग में जुट गई हैं. ताकि वह अनुज को अनुपमा के परिवार से  दूर कर सके.

अनुज से घर और बिजनेस छीनेगी बरखा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंदे कि जहां अनुज और अनुपमा अपने नए घर में गृहप्रवेश के लिए बेहद खुश होंगे तो वहीं वनराज, बा को अनुपमा के परिवार से दूर रहने के लिए कहेगा. इसी के साथ बरखा भाभी अपने पति से कहेगी कि वह गृहप्रवेश से पहले अनुज-अनुपमा के घर पर एंट्री करेगी और फिर बिजनेस छीनेगी.

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रिश्तों का सच- भाग 3: क्या सुधर पाया ननद-भाभी का रिश्ता

‘‘रवि की तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ रसोईघर से आता दीदी का स्वर सुन रवि के कान चौकन्ने हो गए. पलभर की खामोशी के बाद चंद्रिका का स्वर उभरा, ‘‘नहीं तो, आजकल औफिस में काम अधिक होने से ज्यादा थक जाते हैं, इसलिए थोड़े खामोश हो गए हैं. आप को बुरा लगा क्या?’’

‘‘अरे नहीं, इस में बुरा मानने की क्या बात है? वैसे भी तुम्हारा साथ ज्यादा भला लग रहा है. पहली बार ऐसा लग रहा है कि अपने मायके आई हूं. मां तो थीं नहीं, जिन से यहां आने पर मायके का एहसास होता. पिताजी और भाई का मानदुलार था तो, पर असली मायके का एहसास तो मां या भौजाई के प्यार और मनुहार से ही होता है.’’

‘‘दीदी, मुझे माफ कर दीजिए,’’ चंद्रिका ने हौले से कहा, ‘‘मैं ने आप के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया…’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है, हम ने तुम्हें अवसर ही कहां दिया था कि तुम अपना अच्छा या बुरा व्यवहार सिद्ध कर सको. खैर छोड़ो, इस बार जैसा सुकून मुझे पहले कभी नहीं मिला,’’ दीदी का स्वर संतुष्टिभरा था.

टीवी के सामने बैठे रवि का मन भी दीदी की खुशी और संतुष्टि देख चंद्रिका के प्रति प्यार और गर्व से भर उठा था. सुबह उस के उठने से पहले ही दीदी और चंद्रिका उठ कर काम के साथसाथ बातों में व्यस्त थीं. रात भी रवि तो सो गया था, वे दोनों जाने कितनी देर तक एकसाथ जागती रही थीं. जाने उन के अंदर कितनी बातें दबी पड़ी थीं, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. रवि को एक बार फिर अपनी मूर्खता पर पछतावा हुआ. बिस्तर से उठ कर वह औफिस जाने की तैयारी में लग गया.

‘‘कहां जा रहे हो?’’ शीशे के सामने बाल संवार रहे रवि के हाथ अचानक चंद्रिका को देख रुक गए. ‘‘औफिस.’’

‘‘दीदी आई हैं, फिर भी?’’ चंद्रिका की हैरानी वाजिब थी. दीदी के लिए रवि पहले पूरे वर्ष की छुट्टियां बचा के रखता था. जितने भी दिन वह रहतीं, वे उन्हें घुमानेफिराने के लिए छुट्टियां ले कर घर बैठा रहता था. ‘‘छुट्टी क्यों नहीं ले लेते? हम सब घूमने चलेंगे,’’ चंद्रिका जोर देते हुए बोली.

‘‘नहीं, इस बार छुट्टियां बचा रहा हूं, शरारतभरी नजर चंद्रिका के चेहरे पर डालता हुआ रवि बोला.’’ ‘‘क्यों?’’ चंद्रिका के सवाल के जवाब में उस ने उसे अपने पास खींच लिया, ‘‘क्योंकि इस बार मैं तुम्हें मसूरी घुमाने ले जा रहा हूं. अभी छुट्टी ले लूंगा, तो बाद में नही मिलेंगी.’’

चंद्रिका की आंखें भीग उठी थीं, शायद वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि रवि की जिंदगी और दिल में उस के लिए भी इतना प्यार छिपा हुआ है. अपने को संभाल आंखें पोंछती वह लाड़भरे स्वर में बोली, ‘‘मसूरी जाना क्या दीदी से अधिक जरूरी है? मुझे कहीं नहीं जाना, तुम्हें छुट्टी लेनी ही पड़ेगी.’’

‘‘अच्छा, ऐसा करता हूं, सिर्फ आज की छुट्टी ले लेता हूं,’’ वह समझौते के अंदाज में बोला. ‘‘लेकिन इस के बाद जितने भी दिन दीदी रहेंगी, तुम्हीं उन के साथ रहोगी.’’

‘‘मैं, अकेले?’’ चंद्रिका घबरा रही थी, ‘‘मुझ से फिर कोई गलती हो गई तो?’’ ‘‘तो क्या, उसे सुधार लेना. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है,’’ मन ही मन सोचता जा रहा था रवि, ‘मैं भी तो अपनी गलती ही सुधार रहा हूं.’

वह रवि की प्यार और विश्वासभरी निगाहों को पलभर देखती रही, फिर हंस कर बोली, ‘‘अच्छा, अब छोड़ो, चल कर कम से कम आज की पिकनिक की तैयारी करूं.’’ दीदी पूरे 15 दिनों के लिए रुकी थीं, चंद्रिका और उन के बीच संबंध बहुत मधुर हो गए थे. इस बार पिताजी भी अधिक खुश नजर आ रहे थे. दीदी के जाने का दिन ज्योंज्यों नजदीक आ रहा था, चंद्रिका उदास होती जा रही थी.

आखिरकार, जीजाजी के बुलावे के पत्र ने उन के लौटने की तारीख तय कर दी. दौड़ीदौड़ी चंद्रिका बाजार जा कर दीदी के लिए साड़ी और जीजाजी के लिए कपड़े खरीद लाई थी. तरहतरह के पापड़ और अचार दीदी के मना करने के बावजूद उस ने बांध दिए थे. शाम की ट्रेन थी. चंद्रिका दीदी के साथ के लिए तरहतरह की चीजें बनाने में व्यस्त थी. रवि सामान पैक करती दीदी के पास आ बैठा. दीदी ने मुसकरा कर उस की तरफ देखा, ‘‘अब तुम कब आ रहे हो चंद्रिका को ले कर?’’

‘‘आऊंगा दीदी, जल्दी ही आऊंगा,’’ बैठी हुई दीदी की गोद में वह सिर रख लेट गया था, ‘‘तुम नाराज तो नहीं हो न?’’ ‘‘किसलिए?’’ उस के बालों में हाथ फेरती हुई दीदी एकाएक ही उस की बात सुन हैरत में पड़ गईं.

‘‘मैं तुम्हारे साथ पहले जितना समय नहीं बिता पाया न?’’ रवि बोला. ‘‘नहीं रे, बल्कि इस बार मैं यहां जितनी खुश रही हूं, उतनी पहले कभी नहीं रही. चंद्रिका के होते मुझे किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं हुई. एक बात बताऊं, मुझे बहुत डर लगता था. तेरे इतने प्यार जताने के बाद भी लगता था, मेरा भाई मुझ से अलग हो जाएगा. कभीकभी सोचती, शायद मेरे आने की वजह से ही चंद्रिका और तुम्हारे बीच झगड़ा होता है. तुझे देखने के लिए मन न तड़पता तो शायद यहां कभी आती ही नहीं.

‘‘चंद्रिका के इस बार के अच्छे व्यवहार ने मुझे एहसास दिलाया है कि भाई तो अपना होता ही है, पर भौजाई को अपना बनाना पड़ता है, क्योंकि वह अगर अपनी न बने तो धीरेधीरे भाई भी पराया हो जाता है. आज मैं सुकून महसूस कर रही हूं. चंद्रिका जैसी अच्छी भौजाई के होते मेरा भाई कभी पराया नहीं होगा. इस सब से भी बढ़ कर पता है, उस ने क्या दिया है मुझे?’’ ‘‘क्या?’’

‘‘मेरा मायका, जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था. चंद्रिका ने मुझे वह सब दे दिया है,’’ दीदी की आंखें बरस उठी थीं, ‘‘चंद्रिका ने यह जो एहसान मुझ पर किया है, इस का कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगी.’’ ‘‘खाना तैयार है,’’ चंद्रिका कब कमरे में आई, पता ही न चला. लेकिन उस की भीगीभीगी आंखें बता रही थीं कि वह बहुतकुछ सुन चुकी थी. गर्व से निहारती रवि की आंखों में झांक चंद्रिका बोली, ‘‘कैसे भाई हो, पता नहीं, आज सुबह से दीदी ने कुछ नहीं खाया. चलो, खाना ठंडा हो रहा है.’’

दीदी को ट्रेन में बिठा रवि उन का सामान व्यवस्थित करने में लगा हुआ था. चंद्रिका दीदी के साथ ही बैठी उन्हें दशहरे की छुट्टियों में आने के लिए मना रही थी. हमेशा उतरे मुंह से वापस होने वाली दीदी का चेहरा इस बार चमक रहा था. ट्रेन की सीटी की आवाज के साथ ही रवि ने कहा, ‘‘उतरो चंद्रिका, ट्रेन चलने वाली है.’’

चंद्रिका दीदी से लिपट गई, ‘‘जल्दी आना और जाते ही पत्र लिखना.’’ ‘‘अब पहले तुम दोनों मेरे घर आना,’’ भीगी आंखों के साथ दीदी मुसकरा रही थीं.

उन के नीचे उतरते ही ट्रेन ने सरकना शुरू कर दिया. ‘‘दीदी, पत्र जरूर लिखना,’’ दोनों अपनेअपने रूमाल हिला रही थीं. ट्रेन गति पकड़ स्टेशन से दूर होती जा रही थी. चंद्रिका ने पलट कर रवि की तरफ देखा. रवि की गर्वभरी आंखों को निहारती चंद्रिका की आंखें भी चमक उठी थीं.

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क्यों जरूरी है करियर काउंसलिंग

मीनू के पेरैंट्स उसे डाक्टर बनाना चाहते थे. पेरैंट्स के कहने पर उस ने मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी की, पर उस का स्कोर सही न होने की वजह से कहीं एडमिशन नहीं मिला. उस के पेरैंट्स उस से फिर मैडिकल प्रवेश की तैयारी करने को कहने लगे. लेकिन मीनू ने साफ मना कर दिया और अब वह बीएससी फाइनल में है और अच्छा स्कोर कर रही है. उस की साइंटिस्ट बनने की इच्छा है.

पेरैंट्स कुछ चाहते हैं, जबकि बच्चों की इच्छा कुछ और होती है. बिना मन के किसी भी विषय में बच्चा सफल नहीं होता है. इसलिए 12वीं कक्षा के बाद कैरियर काउंसलिंग करवा लेनी चाहिए ताकि बच्चे की इच्छा का पता चल सकें मगर कुछ हठी पेरैंट्स का जवाब बहुत अलग होता है. मसलन, कैरियर काउंसलिंग क्या है? उसे करवाना क्यों जरूरी है? पहले तो हम ने कभी नहीं करवाई? क्या हमारी बेटी पढ़ाई में कमजोर है? हम जानते हैं कि उसे क्या पढ़ना है आदि. ऐसे हठधर्मी पेरैंट्स को समझना बहुत मुश्किल होता है.

अर्ली कैरियर काउंसलिंग है जरूरी

इस बारें में पिछले 30 सालों से छात्रों की काउंसलिंग कर रहे कैरियर काउंसलर एवं डाइरैक्टर डा. अजित वरवंडकर, जिन्हें इस काम के लिए राष्ट्रपति अवार्ड भी मिल चुका है. कहते हैं, ‘‘मैं बच्चों की काउंसलिंग 10वीं कक्षा से शुरू करता हूं क्योंकि कैरियर प्लानिंग का सही समय 10वीं कक्षा ही होती है.

‘‘इस कक्षा के बाद ही छात्र विषय का चुनाव करते हैं, जिस में ह्यूमिनिटीस, कौमर्स, साइंस आदि होते है. अगर कोई बच्चा डाक्टरी या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहता हो और उस ने कोई दूसरा विषय ले लिया तो उसे आगे चल कर मुश्किल होगी. इसलिए इस की प्लानिंग पहले से करने पर बच्चे को सही गाइडेंस मिलती है.’’

बच्चे के 12वीं कक्षा में आने पर यह समझ लेना चाहिए कि उस ने अपने स्ट्रीम का चुनाव कर लिया है. बड़ेबड़े कैरियर औप्शन 6-7 ही होते है, जिन में डाक्टर, इंजीनियर, चार्टेड अकाउंटैंट, मैडिसिन, ला आदि हैं, लेकिन आज इंडिया में

5 हजार से अधिक कैरियर औप्शन हैं, जिन्हें वे जानते नहीं हैं, इसलिए बच्चों को परेशान होने की जरूरत नहीं.

उन्हें केवल यह पता होना चाहिए कि उन के लिए कौन सा कैरियर औप्शन सही है, जिस में वे अधिक खुश रह सकते हैं. बच्चों का वैज्ञानिक रूप से 3 बातों को ध्यान में रखते हुए कैरियर औप्शन का चुनाव करना ठीक रहता है-व्यक्तित्व, कार्यकुशलता, व्यावसायिक रुचि.

नौकरियों की नहीं कमी

व्यावसायिक रुचि के बारे में 1958 में जौन हौलैंड सोशल साइकोलौजिस्ट ने सब से पहले परिचय करवाया था. उन के अनुसार व्यक्ति उस काम को चुनता है, जिस में उस के जैसे वातावरण और काम करने वाले हों, तो उन की योग्यता और क्षमता का विकास जल्दी होगा और वे अपनी किसी भी समस्या को खुल कर कोलिंग से कहने में समर्थ होते है.

डा. अजित वरवंडकर का कहना है कि इन 3 चीजों को मिला कर कैरियर चुनना सब से अच्छा होता है. इस के अलावा 12वीं कक्षा के बाद अपने हुनर को पहचानने और उस के अनुसार पढ़ाई या वोकेशनल ट्रेनिंग भी ली जा सकती है.

हर किसी को इंजीनियर बनने की जरूरत नहीं क्योंकि हर साल हमारे देश में 17% से भी ज्यादा इंजीनियर बन रहे हैं, जबकि केवल डेढ़ लाख बच्चों को ही उस में जौब मिलती है. बाकी या तो पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे हैं या फिर लाइन बदल कर कोई दूसरा काम कर रहे हैं. इसलिए बच्चा अपने हुनर को पहले से पहचान कर पायलट, एनिमेशन ऐक्सपर्ट, रिसर्च आदि कुछ भी अपनी इच्छा के अनुसार कर सकती है, लेकिन इस की जानकारी बहुत कम बच्चों और उन के पेरैंट्स को होती है, जो कैरियर काउंसलिंग से आसानी से मिल सकती है.

इनफौर्मैशन टैक्नोलौजी में बदलाव

डा. अजित कहते हैं कि कोविड के बाद इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी में जितना बदलाव पिछले 2 सालों में आया है, उतना कोविड न होने पर 10 सालों में भी नहीं आता. आईटी इंडस्ट्री में बच्चों को बहुत रोजगार मिला है. आगे की सारी जौब डिजिटल टैक्नोलौजी के साथ तेजी से ग्रो करेंगी. इस में जौब डिजिटल टैक्नोलौजी, डेटा ऐनालिटिक और आर्टिफिशियल इंटैलीजैंट एनेबल्ड होंगे.

अब डाक्टर्स को भी डिजिटल टैक्नोलौजी पर ही काम करना पड़ेगा. अभी 60 से 70% सर्जरी रोबोट्स कर रहे हैं, इसलिए 12वीं कक्षा पास करने वाले बच्चों के लिए मेरा सुझव है कि वे अपनी 2-3 तरीके की स्किल्स को तैयार करें, जिस में सब से जरूरी है, डाटा ऐनालिटिक्स औरबेसिक कोडिंग की स्किल्स का भी होना. मसलन, कार चलने वाले को टायर बदलना आना चाहिए.

इस के अलावा किसी भी क्षेत्र में जाने पर प्रोग्रामिंग आना चाहिए क्योंकि यही हमारा भविष्य होगा. कम्युनिकेशन भी अच्छा होना चाहिए ताकि आप की बातचीत को समझने में किसी को समस्या न हो. साथ ही बच्चे की अपने विषय पर कमांड होनी भी जरूरी है.

स्किल डैवलपमैंट है जरूरी

अजित कहते हैं कि ऐसे बहुत सारे बच्चे हमारे देश में हैं, जिन के पास वित्तीय क्षमता बहुत कम है. उन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से स्किल डैवलपमैंट की कई सुविधाए मिलती हैं. उस के अंदर भी बहुत सारे कोर्सेज चलते हैं और कोर्सेज करने की वजह से स्टाइपैंड भी मिलता है. इसलिए थोड़ा जागरूक हो कर सरकार के रोजगार विभाग में जाएं और पता लगाएं कहां क्या हो रहा है. इस में एक बात तय है कि बिना कुछ किए आप आगे नहीं बढ़ सकते. स्किल डैवलप तो करना ही पड़ेगा.

क्षेत्र के हिसाब से चुनें स्किल्स

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अलगअलग शहरों में अलगअलग तरीके के जौब पैटर्न होते है. ऐसे में बच्चे का अपने आसपास के वातावरण को देखते हुए स्किल डैवलपमैंट करना सही रहता है. गांव कृषि प्रधान हैं, इसलिए वहां के छात्रों को कृषि से संबंधित जानकारी, खदानों में काम करने के लिए उन से जुड़ी जानकारी होने की अधिक जरूरत होती है. छोटे शहरों में रिटेल नैटवर्किंग, डिस्ट्रीब्यूशन आदि होते हैं.

इस के अलावा यह भी देखना जरूरी है कि किस क्षेत्र में किस तरह के उद्योग का विकास हो रहा है. मसलन, खनिज, बिजली, मनोरंजन इंडस्ट्री आदि में नियुक्तियों को देखते हुए अपनी योग्यता को बढ़ाना चाहिए ताकि जौब मिलने में आसानी हो. इस के लिए बच्चों का अपने क्षेत्र के बारे में जानकारी लेते रहना जरूरी है और यह उन्हें अच्छी पत्रपत्रिकाएं पढ़ते रहने से मिलती रहेगी.

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महामारी के बाद छोटे बच्चों को स्कूल जाने और पढने की रूचि को बढ़ाएं कुछ ऐसे

कोविड के बाद रीना अपनी 5 साल के बेटे से बहुत परेशान है, क्योंकि उसका बेटा रेयान दिन भर खेलना चाहता है. स्कूल जाना नहीं चाहता, रोज कुछ न कुछ बहाने बनाता है, एक दिन उसकी माँ बहुत घबरा गयी, क्योंकि उसने माँ को बताया कि उसे पेटदर्द हो रहा है, माँ पहले उसे पेट दर्द की दवा दी और उसे लेकर डॉक्टर के पास जब जाने लगी तो उसने माँ से कहा कि उसका पेट दर्द ठीक हो गया है. फिर भी माँ नहीं मानी और डॉक्टर ने जाँच कर बताया कि कुछ सीरियस नहीं है, शायद मौसम की वजह से ऐसा हुआ है. उसे सादा खाना देना ठीक रहेगा.

कोविड महामारी की वजह से ऑनलाइन पढाई कर रहे छोटे बच्चों कीसमस्या पेरेंट्स के लिए यह भी है कि अब ऑनलाइन नहीं है,लेकिन बच्चेमोबाइल के लिए जिद करते है, न देने पर अपनी मनमानी कुछ भी करते है. मोबाइल मिलने पर कार्टून देखना शुरू कर देते है. कल्पना की 6 साल की बेटी मायरा भी कुछ कम नहीं अपनी अपर केजी की क्लास में न जाकर नर्सरी में बैठी रहती है,उसकी भोली सूरत देखकर टीचर भी कुछ नहीं कहती. कल्पना के लिए बहुत समस्या है. उन्हें हर दूसरे दिन उसे दूसरे बच्चे से क्लास की पढाई का नोट्स लेना पड़ता है. पूछने पर मायरा कहती है कि आप तो पहले ऑनलाइन पढ़ाते समय सारे नोट्स लेती थी, अब भी ले लीजिये, मैं घर आकर आपसे पढ़ लेती हूँ. ऐसे व्यवहार केवल रीना और कल्पना ही फेस नहीं कर रही, बल्कि बाकी बच्चों की माएं भी परेशान है, उन्हें इस बात की फ़िक्र है कि पहले की तरह बच्चों में स्कूल के प्रति रुझान कैसे लाई जाय. हालाँकि बच्चे स्कूल जाकर खुश है, लेकिन उनके पुराने मित्र भी नए बन चुके है. वे चुपचाप एक कोने में बैठे रहते है और टीचर के कुछ कहने पर अनसुना कर देते है. दो साल का गैप छोटे बच्चों और उनके पेरेंट्स के लिए एक समस्या अवश्य है, लेकिन उसे ठीक करने के लिए कुछ उपाय निम्न है, जिसे टीचर्स और पेरेंट्स को धैर्य के साथ पालन करना है.

बच्चों के व्यवहार को समझे

देखा जाय, तो इसमें बच्चों का दोष भी नहीं, उन्हें क्लासरूम में सारेटीचर्स उन्हें नए लग रहे है,पिछले दो सालों में कई टीचर्स बदले गए या फिर छोड़कर चले गए, जिससे बच्चे उनसे बात करने या कुछ पूछने से डर रहे है. इस बारें में मुंबई की ओर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल की इंग्लिश अध्यापिका नेहा लोहाना कहती है कि छोटे बच्चों को एक रूटीन और अनुसाशन में लाना अब एक बड़ी चुनौती हो चुकी है, क्योंकि अभी इन बच्चों ने अधिकतर समय अपने पेरेंट्स के साथ इनडोर गेम्स खेलते हुए बिताया है. इसे ठीक करने के लिए पेरेंट्स और टीचर्स मिलकर कदम उठाने की जरुरत है, जिसमे उन्हें लर्निंग अनुभव और एक्टिविटीज के द्वारा एक प्लान बनाने की जरुरत होती है.पेरेंट्स अपने काम को थोड़ा रोककर बच्चे की सीखने या कुछ देखने की आदतों को सुधारें. अगर बच्चा रोज-रोज घर आकर टीचर्स के बारें में कुछ आरोप लगाता है, तो उसे धैर्य से समझने की कोशिश करें, डांटे नहीं. इसके बाद टीचर से कहकर उसके लिए कुछ दूसरे एक्टिविटीज को लागू करने की कोशिश करें, जो उसके लिए रुचिपूर्ण हो. इसके अलावा टीचर्स के साथ स्कूल के नए माहौल में बच्चे को सुरक्षा और सुरक्षित महसूस करें, ये सुनिश्चित करना बहुत जरुरी है. हालाँकि ये थोड़े दिनों में ठीक हो जायेगा, पर अभी के लिए ये बहुत चुनौतीपूर्ण है.

नए क्लास में उत्तीर्ण की चुनौती

कोविड के दौरान कुछ बच्चों ने शुरू के दो साल के क्लासेस पढ़े नहीं है और उन्हें अगले कक्षा में उत्तीर्ण कर दिया गया है,ऐसे में उन्हें नयी कक्षा में पढाई को समझ पाना मुश्किल हो रहा है. इस समस्या के बारें में पूछने पर इंग्लिश टीचर नेहा कहती है कि ये समस्या वाकई सभी स्कूलों के लिए एक बड़ी चुनौती है. लॉकडाउन के दौरान घर पर ऑनलाइन पढ़ाते हुएटीचर्स ने कई प्रकार के चैलेन्ज फेस किये है, मसलन पाठ को रिवाईज करवाना, कुछ नया सिखाना आदि, क्योंकि अधिकतर बच्चे ऑनलाइन समय पर नहीं आते थे, उनकी उपस्थिति बहुत अधिक अनियमितऔर अनुपस्थित रहना होता था, जिससे टीचर्स को एक पाठ को कई बार पढाना पड़ता था. कई बच्चों ने तो कलम और पेंसिल से लिखना बंद कर दिया और उन्हें लिखने से अधिक ओरल परीक्षा अच्छी लगने लगी थी. देखा जाय,तो ये पेरेंट्स और टीचर्स के लिए मुश्किल समय है, इसे लगातार मेहनत के साथ ही इम्प्रूव किया जा सकेगा.

मुश्किल है अनुसाशन में रखना

ये सही है कि दो साल बाद बड़े बच्चों को भी एडजस्ट करने में समस्या आ रही है, क्योंकि स्कूल के अनुसाशन, सहपाठी से खेलना, किसी चीज को शेयर करना आदि सब बच्चों से दूर चले गए है, क्योंकि उन्हें अब स्कूल में मास्क पहनना, बार-बार हाथ सेनिटाइज करना, डिस्टेंस बनाए रखना आदि सब स्कूल में करना पड़ता है, ऐसे में किसी से सहज तरीके से बात करने में भी बच्चे हिचकिचाते है. ओर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल में बच्चों की काउंसलिंग कर रही काउंसलर और एचओडी बेथशीबा सेठ कहती है कि इतने सालों बाद बच्चे ही नहीं, टीचर्स को भी बच्चों के साथ एडजस्ट करने में मुश्किल आ रही है. महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि जैसे-जैसे हम जीवन के नए तरीकों को अपनाना शुरू करते है. जीवन की नई शर्तों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है. बच्चों और उनके मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करना असंभव है.छोटे बच्चे स्वभाव से फ्लेक्सिबल दिमाग के होते है और वे अपनी समस्या को किसी के सामने कह नहीं पाते. वे शाय और डीनायल मूड में होते है,उनके हाँव-भाँव से उनकी समस्या को पकड़ना पड़ता है. इसके अलावा उन्हें खुद को और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सुरक्षित वातावरण देना पड़ता है, ताकि खुलकर वे अपनी बात रख सकें.

अपने एक अनुभव के बारें में काउंसलर बताती है कि एक बच्चे का एडमिशन क्लास वन में हुआ, उसने लोअर और अपर केजी नहीं पढ़ा है, जब वह अपनी माँ और बड़े भाई के साथ स्कूल आया, तो उसे स्कूल बहुत ही अजीब लग रहा था, जब उसने अपनी टीचर को देखा, तो भाई के पीछे छुप गया और कहने लगा कि ये टीवी वाली टीचर यहाँ क्यों आई है, फिर किसी दूसरे टीचर को बुलाकर उसे क्लास में भेजा गया. अगले दिन टीचर ऑनलाइन आकर बच्चे को समझाई कि वह अब उसके पेरेंट्स की तरह सामने दिखेगी और उन्हें पढ़ाएगी. तब जाकर बच्चे ने माना और उस टीचर की क्लास में बैठा. ये समय कठिन है, इसलिए अध्यापकों और पेरेंट्स को बहुत धैर्य के साथ बच्चों को पढाना है, ताकि उन्हें फिर से वही ख़ुशी मिले और स्कूल आने से परहेज न करें.

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हिस्टेरेक्टोमी के बाद मैं सो नहीं पाती, क्या करुं?

सवाल-

मैं ने कुछ महीने पहले हिस्टेरेक्टोमी (गर्भाशय को काट कर निकाल देना) करवाई थी. इस के बाद मेरे सोने का चक्र बदल गया. मैं सो नहीं पाती. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

जिन महिलाओं के गर्भाशय को सर्जरी से निकाल दिया जाता है उन्हें  वर्चुअल रूप से रातोंरात मेनोपौज (रजोनिवृत्ति यानी माहवारी बंद होना) हो जाता है. इन मामलों में नींद में बाधा आना आम बात है. संभावित रूप से हौट फ्लशेज या रात में पसीना आने के अलावा यह मेनोपौज का सब से आम लक्षण है. मेनोपौज के बाद ज्यादा से ज्यादा आराम करें, सोने के दौरान साफसफाई का पूरा ध्यान रखें. कौफी कम से कम पीएं, सही खानपान लें, नियमित रूप से व्यायाम करें और सोने का एक निश्चित समय तय करें. सर्जरी के कारण होने वाले मेनोपौज में महिलाओं को नींद आने में काफी मुश्किल आती है और वे रात में ज्यादा बार जागती हैं. मेनोपौज के साइड इफैक्ट्स को कम करने के लिए हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी पर विचार करने की भी सलाह दी जाती है.

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गर्भाशय फाइब्रोइड्ससुसाध्य (गैरकैंसर) ट्यूमर है, जो गर्भाश्य की मांसपेशीय परत पर अथवा उसके भीतर विकसति होता है.इसमें तंतुमय टिश्यू और चिकने मांसपेशी सेल्स होते है, जिनका पोषण रक्तवाहिनी के सघन नेटवर्क से होता है. फाइब्रोइड्स महिलाओं में होने वाला बहुत ही सामान्य सुसाध्य ट्यूमर है. अनुमान है कि 30 से 50 वर्ष के बीच की महिलाओं में करीब 25 से 35 प्रतिशत में फाइब्रोइड्स का इलाज सापेक्ष हो गया है. सामान्यतया जिस महिला में गर्भाशय फाइब्रोइड्स की समस्या है, उनमें एक से अधिक फाइब्रोइड्स है और वे बडे़ आकार के हो सकते है. कुछ मटर से बडे़ नहीं होते है, जबकि अन्य बढ़कर खरबूजे के आकार का हो सकते है.

लक्षण

एक महिला मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव, दर्दभरा मासिकधर्म, मासिकधर्म के दौरान रक्तस्राव और पीठशूल या पीठदर्द जैसे लक्षणों से इसका अनुभव करती है. अधिकतर मरीजों में रक्तस्राव इतना अधिक होगा किउनमें यह खून की कमी का कारण बन जाता है. खून की कमी से थकान,सिरदर्द हो सकता है.जब फाइब्रोइड्स आकार में बड़ा होता है, तब यह अन्य पेल्विक अंगो पर दबाव बनाने लगता है. इसके फलस्वरूप पेट के नीचले हिस्से में भारीपन, बार-बार पेशाब लगना, पेशाब होने में कठिनाई और कब्ज महसूस हो सकता है. ये लक्षण किसी को हल्का, कम आकर्षक लग सकते है और चिड़चिड़ापन आगे चलकर कामेच्छा घटा सकती है और इसका असर लोगों की जिंदगी पर पड़ सकता है. ओबेस्ट्रिक्स एंड ग्यानकोलाजी जर्नल तथा वुमेन हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार गर्भाशय फाइब्रोइड से काफी भय एवं रूग्णता हो सकती है और वर्कप्लेस प्रदशर्न से समझौता करना पड़ सकता है.

एहसास- भाग 3: क्यों सास से नाराज थी निधि

एक हफ्ते बाद मालती जब वापस घर लौटी तो सुबह की ट्रेन लेट हो कर दिन में पहुंची. स्टेशन से औटो कर के घर पहुंची. एक चाबी उस के पास थी पर्स में. अंदर आ कर सामान वहीं नीचे रख कर वह सोफे पर थोड़ा सुस्ताने बैठी. उस ने सोचा, चाय बनाएगी पहले अपने लिए, फिर फ्रैश होगी. सिर दर्द कर रहा था सफर की थकावट से. एक सरसरी नजर घर पर डाली उस ने पर सफाई का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा था. उस के पैरों के पास कालीन पर दालभुजिया बिखरी पड़ी थी.  झाड़ू तक नहीं लगी  थी घर में लगता है उस के जाने के बाद.

वह बुदबुदाती हुई रसोई की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. अजय के दोस्त का फोन था, ‘‘हैलो बेटा,’’ मालती ने फोन रिसीव किया. दूसरी तरफ से जो उसे सुनाई दिया उसे सुन कर वह धम्म से सोफे पर गिर पड़ी. अजय के दोस्त ने उसे हौस्पिटल का नाम बता कर जल्द आने को कहा. अजय की बाइक को किसी गाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी थी.

आननफानन मालती ज्यों की त्यों हालत में हौस्पिटल के लिए निकल पड़ी. गेट पर ही उसे अजय का दोस्त यश मिल गया था. दोनों कालेज के गहरे दोस्त थे. अजय को आईसीयू में रखा गया था. उस के हाथपैरों में गहरी चोटें आई थीं. पर उस की हालत खतरे से बाहर थी. मालती ने अपनी रुलाई दबा कर बेटे की तरफ देखा. खून से अजय के कपड़े सने थे और न जाने कितनी पट्टियां उस के शरीर पर बंधी थीं.

‘‘आंटी आप बाहर बैठ जाइए,’’ मालती की हालत देख कर यश ने कहा और सहारा दे कर उस ने मालती को आईसीयू के बाहर बैंच पर बिठा दिया. यश ने उसे बताया कि कैसे ऐक्सिडैंट की जानकारी पुलिस से पहले उसे ही मिली थी. निधि अपनी एक सहेली के साथ मूवी देखने गई हुई थी. उस का फोन शायद इसीलिए नहीं मिल पाया. पास के वाटरकूलर से एक गिलास पानी ला कर उस ने मालती को दिया.

मालती ने होशोहवास दुरुस्त करने की कोशिश की. तभी उसे निधि बदहवास भागती आती दिखाई दी. मालती के पास पहुंच कर वह उस से लिपट कर रो पड़ी. मालती, जो बड़ी देर से अपने आंसू रोके बैठी थी, अब अपनी रुलाई नहीं रोक पाई. कुछ संयत हो कर निधि ने अजय को आईसीयू में देखा, बैड पर बेहोश ग्लूकोस और खून की पाइप्स से घिरा हुआ. निधि ने डाक्टर से अजय की हालत के बारे में पूछा और डाक्टर की पर्ची ले कर दवाइयां लेने चली गई. रात को मालती के लाख मना करने के बावजूद निधि ने उसे यश के साथ घर भेज दिया.

सुबह जल्दी उठ कर मालती कुछ जरूरी चीजें एक बैग में और एक थरमस में कौफी भर कर हौस्पिटल पहुंची. निधि की आंखें बता रही थीं कि सारी रात वह सोई नहीं. सो तो मालती भी नहीं पाई थी पूरी रात. निधि ने बैंच पर बैठे एक लंबी अंगड़ाई ली और थरमस से कौफी ले कर पीने लगी. मालती अजय के पास गई. वह होश में था. पर डाक्टर ने बातें करने से मना किया था. मालती को देख कर अजय ने धीरे से मुसकराने की कोशिश की. मालती ने उस का हाथ कोमलता से अपने हाथों में ले लिया और जवाब में मुसकरा दी.

करीब एक हफ्ते बाद अजय डिस्चार्ज हो कर घर आ गया. उस के पैर में अभी भी प्लास्टर लगा था. हड्डी की चोट थी, डाक्टर ने फुल रैस्ट के लिए बोला था. एक महीने के लिए उस ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. निधि और मालती दिनरात उस की तीमारदारी में जुट गए. एक महीने के बाद जब अजय के पैर का प्लास्टर उतरा तो उस ने हलकी चहलकदमी शुरू कर दी. मगर समय शायद ठीक नहीं चल रहा था. बाथरूम में फिसलने की वजह से उसे फिर से एक और प्लास्टर लगवाना पड़ा. प्राइवेट जौब में कितने दिन छुट्टी मिलती, तंग आ कर अजय ने रिजाइन दे दिया. निधि और मालती उसे इस हालत में अब बिस्तर से उठने तक नहीं देती थीं.

कहने को तो घर में कोई कमी नहीं थी पर अजय की नौकरी न रहने से मालती को तमाम बातों की चिंता सताने लगी. अजय ने शादी के वक्त नया घर बुक कराया था, जिस की हर महीने किस्त जाती थी. उस के अलावा, घर के खर्चे, अजय की गाड़ी की किस्तें, खुद मालती की दवाइयों का खर्च. हालांकि उसे अपने पति की पैंशन मिलती थी, पर उस के भरोसे सबकुछ नहीं चल सकता था.

निधि ने अपने काम पर जाना शुरू कर दिया था. वह एक लैंग्वेज टीचर थी और पास के एक इंस्टिट्यूट में जौब करती थी. एक दिन उसे घर लौटने में बहुत देर हो गई, तो मालती की त्योरियां चढ़ गईं.

अजय की इस हालत में इतनी देर निधि का यों बाहर रहना मालती को अच्छा नहीं लगा. उस ने सोचा कि अजय भी इस बात पर नाराज होगा. लेकिन उन दोनों को आराम से बातें करते देख उसे लगा नहीं कि अजय को कुछ फर्क पड़ा. हुहूं, बीवी का गुलाम है, बहुत छूट दे रखी है निधि को इस ने, एक बार पूछा तक नहीं, यह सब सोच कर मालती कुढ़ गई थी.

किचन में अजय के लिए थाली लगाती मालती के कंधे पर हाथ रखते हुए निधि बोली, ‘‘मां, आप बैठो अजय के पास, आप दोनों की थाली मैं लगा देती हूं.’’

‘‘रहने दो, तुम दोनों खाओ साथ में, वैसे भी दिनभर अजय अकेला बोर हो जाता है तुम्हारे बिना,’’ मालती कुछ रुखाई से बोली.

‘‘सौरी मां, अब से मु झे आते देर हो जाया करेगी, मैं ने एक और जगह जौइन कर लिया है. तो कुछ घंटे वहां भी लग जाएंगे,’’ निधि ने उस के हाथ से प्लेट लेते हुए बताया.

‘‘तुम ने अजय को बताया क्या?’’

‘‘मां, मैं ने अजय से पहले ही पूछ लिया था और वैसे भी, कुछ ही घंटों की बात है, तो मैं मैनेज कर लूंगी.’’

‘‘ठीक है, अगर तुम दोनों को सही लगता है तो, लेकिन देख लो, थक तो नहीं जाओगी? तुम्हें आदत नहीं इतनी मेहनत करने की,’’ मालती ने अपनी तरफ से जिम्मेदारी निभाई.

‘‘आप चिंता मत करो मां. बस, कुछ दिनों की तो बात है.’’

मालती ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की घर के फालतू खर्चे कम करने की. वह अब थोड़ी कंजूसी से भी चलने लगी थी. सब्जी और फल लेते समय भरसक मोलभाव करती थी. उसे लगा निधि अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगा पाएगी. पर जब से अजय का ऐक्सिडैंट हुआ था, निधि की आदतों में फर्क साफ नजर आता था. जो लड़की फर्स्ट डे फर्स्ट शो मूवी देखती थी, तकरीबन रोज ही शौपिंग, आएदिन अजय के साथ बाहर डिनर करना जिस के शौक थे, वह अब बड़े हिसाबकिताब से चलने लगी थी. और तो और, घर के कामों को भी वह मालती के तरीके से ही करने की कोशिश करती थी.

Father’s Day 2022: अथ से इति तक- बेटी के विद्रोह ने हिला दी माता- पिता की दुनिया

‘‘चल न शांता, बड़ी अच्छी फिल्म लगी है ‘संगीत’ में. कितने दिन से घर से बाहर गए भी तो नहीं हैं…इन के पास तो कभी समय ही नहीं रहता है,’’ पति के कार्यालय तथा बच्चों के स्कूल, कालेज जाते ही शुभ्रा अपनी सहेली शांता के घर चली आई.

‘‘आज नहीं शुभ्रा, आज बहुत काम है. फिर मैं ने राजेश्वर को बताया भी नहीं है. अचानक ही बिना बताए चली गई तो न जाने क्या समझ बैठें,’’ शांता ने टालने का प्रयत्न किया.

‘‘लो सुनो, अरे, शादी को 20 वर्ष बीत गए, अब भी और कुछ समझने की गुंजाइश है? ले, फोन उठा और बता दे भाईसाहब को कि तू आज मेरे साथ फिल्म देखने जा रही है.’’

‘‘तू नहीं मानने वाली…चल, आज तेरी बात मान ही लेती हूं, तू भी क्या याद करेगी,’’ शांता निर्णयात्मक स्वर में बोली.

निर्णय लेने भर की देर थी, फिर तो शांता ने झटपट पति को फोन किया. बेटी प्रांजलि के नाम पत्र लिख कर खाने की मेज पर फूलदान के नीचे दबा दिया और आननफानन में तैयार हो कर घर की चाबी पड़ोस में देते हुए दोनों सहेलियां बाहर सड़क पर आ गईं.

‘‘अकेले घूमनेफिरने का मजा ही कुछ और है. पति व बच्चों के साथ तो सदा ही जाते हैं, पर यह सब बड़ा रूढि़वादी लगता है. अब देखो, केवल हम दोनों और यह स्वतंत्रता का एहसास, मानो हर आनेजाने वाले की निगाह हमें सहला रही हो,’’ शुभ्रा चहकते हुए बोली.

‘‘पता नहीं, मेरी तो इतनी उलटीसीधी बातें सोचने की आदत ही नहीं है,’’ शांता ने मुसकरा कर टालने का प्रयत्न किया.

‘‘अच्छा शांता, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ समय के लिए हमारी किशोरावस्था हमें वापस मिल जाए. फिर वही पंखों पर उड़ते से हलकेफुलके दिन, सपनीली पलकें लिए झुकीझुकी आंखें…’’ शुभ्रा, अपनी ही रौ में बोलती चली गई.

‘‘शुभ्रा, हम सड़क पर हैं. माना कि तुझे कविता कहने का बड़ा शौक है, पर कुछ तो शर्म किया कर…अब हम किशोरियां नहीं, अब हम किशोरियों की माताएं हैं. कोई ऐसी बातें सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’ शांता ने उसे चुप कराने के लिए कहा.

‘‘तू बड़ी मूर्ख है शांता, तू तो किशोरा- वस्था में भी दादीअम्मां की तरह उपदेश झाड़ा करती थी, अब तो फिर भी आयु हो गई, पर एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कोई कह नहीं सकता कि तेरी 17-18 वर्ष की बेटी है,’’ शुभ्रा मुसकराई.

‘‘शुभ्रा, तू कभी बड़ी नहीं होगी, यह हमारी आयु है, ऐसी बातें करने की?’’

‘‘लो भला, हमारी आयु को क्या हुआ है…विदेशों में तो हमारे बराबर की स्त्रियां रास रचाती घूमती हैं,’’ शुभ्रा ने शरारत भरा उत्तर दिया.

इस से पहले कि शांता कोई उत्तर दे पाती, आटोरिकशा एक झटके के साथ रुका और दोनों सहेलियां वास्तविकता की धरती पर लौट आईं.

टिकट खरीदने के लिए लंबी कतार लगी थी. शुभ्रा लपक कर वहां खड़ी हो गई और शांता कुछ दूर खड़ी हो कर उस की प्रतीक्षा करने लगी. रंगबिरंगे कपड़े पहने युवकयुवतियों और स्त्रीपुरुषों को शांता बड़े ध्यान से देख रही थी. ऐसे अवसरों पर ही तो नए फैशन, परिधानों आदि का जायजा लिया जा सकता है.

फिल्म का शो खत्म हुआ. शांता भीड़ से बचने के लिए एक ओर हटी ही थी कि तभी भीड़ में जाते एक जोड़े को देख कर मानो उसे सांप सूंघ गया. क्या 2 व्यक्तियों की शक्ल, आकार, चालढाल इतनी अधिक मेल खा सकती है? युवती बिलकुल उस की बेटी प्रांजलि जैसी लग रही थी. ‘कहीं यह प्रांजलि ही तो नहीं?’ एक क्षण को यह विचार मस्तिष्क में कौंधा, पर दूसरे ही क्षण उस ने उसे झटक दिया. प्रांजलि भला इस समय यहां क्या कर रही होगी? वह तो कालेज में होगी. वह युवती कुछ दूर चली गई थी और अपने पुरुष मित्र की किसी बात पर खिलखिला कर हंस रही थी. शांता कुछ देर के लिए उसे घूर कर देखती रही, ‘नहीं, उस की निगाहें इतना धोखा नहीं खा सकतीं, क्या वह अपनी बेटी को नहीं पहचान सकती?’

पर तभी उसे खयाल आया कि प्रांजलि आज स्कर्टब्लाउज पहन कर गई थी और यह युवती तो नीले रंग के चूड़ीदार पाजामेकुरते में थी. शांता ने राहत की सांस ली, पर दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि ऐसा ही चूड़ीदार पाजामाकुरता प्रांजलि के पास भी है. संशय दूर करने के लिए उस ने उस युवती को पुकारने के लिए मुंह खोला ही था कि शुभ्रा के वहां होने के एहसास ने उस के मुंह पर मानो ताला जड़ दिया. शुभ्रा लाख उस की सहेली थी पर अपनी बेटी के संबंध में शांता किसी तरह का खतरा नहीं उठा सकती थी. प्रांजलि के संबंध में कोई ऐसीवैसी बात शुभ्रा को पता चले और फिर यह आम चर्चा का विषय बन जाए, यह वह कभी सहन नहीं कर सकती थी. अत: वह चुपचाप खड़ी रह गई.

‘‘क्या बात है शांता, तबीयत खराब है क्या?’’ तभी शुभ्रा टिकट ले कर आ गई.

‘‘पता नहीं शुभ्रा, कुछ अजीब सा लग रहा है. चक्कर आ रहा है. लगता है, अब मैं अधिक समय खड़ी नहीं रह सकूंगी,’’ शांता किसी प्रकार बोली. सचमुच उस का गला सूख रहा था तथा नेत्रों के सम्मुख अंधेरा छा रहा था.

‘‘गरमी भी तो कैसी पड़ रही है…चल, कुछ ठंडा पीते हैं…’’ कहती शुभ्रा उसे शीतल पेय की दुकान की ओर खींच ले गई.

शीतल पेय पी कर शांता को कुछ राहत अवश्य मिली किंतु मन अब भी ठिकाने पर नहीं था. कुछ देर पहले के हंसीठहाके उदासी में बदल गए थे. फिल्म देखते हुए भी उस की निगाह में प्रांजलि ही घूम रही थी. किसी प्रकार फिल्म समाप्त हुई तो उस ने राहत की सांस ली.

अब उसे घर पहुंचने की जल्दी थी लेकिन शुभ्रा तो बाहर ही खाने का निश्चय कर के आई थी. पर शांता की दशा देख कर शुभ्रा ने भी अपना विचार बदल दिया और दोनों सहेलियां घर पहुंच गईं.

शांता घर पहुंची तो देखा, प्रांजलि अभी घर नहीं लौटी थी. उस की घबराहट की तो कोई सीमा ही नहीं थी. सोचने लगी, ‘लगभग 3 घंटे पहले प्रांजलि को देखा था, न जाने किस आवारा के साथ घूम रही थी? लगता है, यह लड़की तो हमें कहीं का न छोड़ेगी,’ सोचते हुए शांता तो रोने को हो आई.

जब और कुछ न सूझा तो शांता पति का फोन नंबर मिलाने लगी, लेकिन तभी द्वार की घंटी बज उठी. वह लपक कर द्वार तक पहुंची. घबराहट से उस का हृदय तेजी से धड़क रहा था. दरवाजा खोला तो सामने खड़ी प्रांजलि को देख कर उस की जान में जान आई, पर इस बात पर तो वह हैरान रह गई कि प्रांजलि तो वही स्कर्टब्लाउज पहने थी जो वह सुबह पहन कर गई थी. फिर वह नीले चूड़ीदार पाजामेकुरते वाली लड़की? क्या यह संभव नहीं कि उस ने प्रांजलि जैसी शक्लसूरत की किसी अन्य लड़की को देखा हो.

‘‘क्या बात है, मां? इस तरह रास्ता रोक कर क्यों खड़ी हो? मुझे अंदर तो आने दो.’’

‘‘अंदर? हांहां, आओ, तुम्हारा ही तो घर है,’’ शांता वहां से हटते हुए बोली, पर प्रांजलि के अंदर आते ही उस ने शीघ्रता से बेटी के कंधे पर लटकता बैग उतारा और सारा सामान उलट दिया.

नीला चूड़ीदार पाजामाकुरता बैग से बाहर पड़ा शांता को मुंह चिढ़ा रहा था. प्रांजलि भी मां के इस व्यवहार पर स्तब्ध खड़ी थी.

‘‘इस तरह छिपा कर ये कपड़े ले जाने की क्या आवश्यकता थी?’’ शांता का स्वर आवश्यकता से अधिक तीखा था.

‘‘मैं क्यों छिपा कर ले जाने लगी?’’ प्रांजलि अब तक संभल चुकी थी, ‘‘पहले से ही रखा होगा.’’

‘‘तुम अब भी झूठ बोले जा रही हो, प्रांजलि. कालेज छोड़ कर किस के साथ फिल्म देख रही थीं, ‘संगीत’ में? वह तो शुभ्रा मेरे साथ थी और मैं नहीं चाहती थी कि उस के सामने कोई तमाशा खड़ा हो, नहीं तो यह प्रश्न मैं तुम से वहीं करती,’’ शांता गुस्से से चीखी.

‘‘वहीं पूछ लेना था, मां. शुभ्रा चाची तो बिलकुल घर जैसी हैं. फिर एक दिन तो सब को पता चलना ही है.’’

‘‘अपनी मां से इस तरह बेशर्मी से बातें करते तुम्हें शर्म नहीं आती?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है, मां? सुबोध और मैं एकदूसरे को प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं…साथसाथ फिल्म देखने चले गए तो क्या हो गया?’’

‘‘शर्म नहीं आती, ऐसा कहते? तुम क्या समझती हो कि तुम मनमानी करती रहोगी और हम चुपचाप देखते रहेंगे? आज से तुम्हारा घर से निकलना बंद…बंद करो यह कालेज जाना भी, बहुत हो गई पढ़ाई,’’ शांता ने मानो अपना आज्ञापत्र जारी कर दिया.

प्रांजलि पैर पटकती अपने कमरे में चली गई और स्तंभित शांता वहीं बैठ कर फूटफूट कर रो पड़ी.

Deepika के कांस लुक को कौपी करती दिखीं Taarak Mehta की ‘रीटा रिपोर्टर’, देखें फोटोज

पौपुलर टीवी शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) के किरदार फैंस के बीच छाए रहते हैं. शो से जाने के बावजूद एक्टर की जिंदगी के बारे में फैंस जानना चाहते हैं. इसी बीच रीटा रिपोर्टर के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस प्रिया आहूजा (Priya Ahuja) इन दिनों अपने लुक को लेकर सोशलमीडिया पर छा गई हैं. दरअसल, बौलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के कांस लुक (Deepika Padukone Cannes 2022 Look) को एक्ट्रेस ने रिक्रिएट किया है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

दीपिका के लुक को किया कॉपी

रीटा रिपोर्टर यानी एक्ट्रेस प्रिया आहूजा ने हाल ही में कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिनमें वह दीपिका पादुकोण के कांस फेस्टिवल 2022 के लुक को कॉपी करती नजर आ रही हैं. फैंस को एक्ट्रेस का ये लुक काफी पसंद आ रहा है, जिसके चलते वह सोशलमीडिया पर छा गई हैं.

 

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फैंस को पसंद आया लुक

दरअसल, बीते दिनों कांस में स्टाइलिश पैंट, शर्ट और स्कार्फ लुक में दीपिका पादुकोण नजर आईं थीं. एक्ट्रेस प्रिया आहूजा ने दीपिका पादुकोण के इसी लुक को हूबहू कॉपी किया है, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. मैचिंग कपड़ों से लेकर हेयर स्टाइल और ज्वैलरी तक एक्ट्रेस ने पूरा लुक कॉपी किया है, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

 मां बनने के बाद भी फैंशन नहीं हुआ है कम

एक्ट्रेस प्रिया आहूजा एक बच्चे की मां हैं, जिसके बावजूद उन्होंने अपनी फिगर और फैशन को मेंटेन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. वहीं सोशलमीडिया पर वह अपने नए-नए फोटोशूट की झलक फैंस को दिखाती हुई नजर आती हैं. वहीं इन फोटोज में वह इंडियन से लेकर वेस्टर्स तक, हर तरह का फैशन कैरी करते हुए नजर आती है. फैंस को एक्ट्रेस का ये अंदाज काफी पसंद आता है, जिसके कारण वह सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं.

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