खुशियों की दस्तक- भाग 2: क्या कौस्तुभ और प्रिया की खुशी वापस लौटी

‘‘इस बात को हुए 1 साल हो गया. लाखों खर्च हुए पर अभी भी तकलीफ नहीं गई. मांबाप कितना करेंगे, उन की तो सारी जमापूंजी खत्म हो गई है. अपने इलाज के लिए अब मैं स्वयं कमा  रही हूं. टिफिन तैयार कर मैं उसे औफिसों में सप्लाई करती हूं.’’

‘‘मैं आप का दर्द समझता हूं. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहा हूं. कितनी खूबसूरत थी मेरी जिंदगी और आज क्या हो गई,’’ कौस्तुभ ने कहा. एकदूसरे का दर्द बांटतेबांटते कौस्तुभ और प्रिया ने एकदूसरे का नंबर भी शेयर कर लिया. फिर अकसर दोनों के बीच बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आने लगा. वैसे भी दोनों की जिंदगी एक सी ही थी. एक ही दर्द से गुजर रहे थे दोनों. एक दिन घर वालों के सुझाव पर दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. कोर्ट में सादे समारोह में उन की शादी हो गई.कौस्तुभ को एक नाइट कालेज में नौकरी मिल गई. साथ ही वह शिक्षा से जुड़ी किताबें भी लिखने लगा और अनुवाद का काम भी करने लगा. 2 साल के अंदर उन के घर एक चांद सा बेटा हुआ. बच्चा पूर्ण स्वस्थ था और चेहरा बेहद खूबसूरत. दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा. बेटे को अच्छी शिक्षा दिला कर ऊंचे पद पर पहुंचाना ही अब उन का लक्ष्य बन गया था. बच्चा पिता की तरह तेज दिमाग का और मां की तरह आकर्षक निकला. मगर थोड़ा सा बड़ा होते ही वह मांबाप से कटाकटा सा रहने लगा. वह अपना अधिकांश वक्त दादादादी या रामू काका के पास ही गुजारता, जिसे उस की देखभाल के लिए रखा गया था.

कौस्तुभ समझ रहा था कि वह बच्चा है, इसलिए उन के जले हुए चेहरों को देख कर डर जाता है. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 8वीं कक्षा के फाइनल ऐग्जाम के बाद एक दिन उस ने अपने दादा से जिद की, ‘‘बाबा, मुझे होस्टल में रह कर पढ़ना है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों बेटे?’’ बाबा चौंक उठे थे.कौस्तुभ तो अपने बेटे को शहर के सब से अच्छे स्कूल में डालने वाला था. इस के लिए कितनी कठिनाई से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए थे. मगर बच्चे की बात ने सभी को हैरत में डाल दिया. दादी ने लाड़ लड़ाते हुए पूछा था, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा, भला यहां क्या प्रौब्लम है तुम्हें? हम इतना प्यार करते हैं तुम से, होस्टल क्यों जाना चाहते हो?’’ मोहित ने साफ शब्दों में कहा था, ‘‘मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हारे मांबाप कितने बदसूरत हैं. इसीलिए वे मेरे घर भी नहीं आते. मैं इन के साथ नहीं रहना चाहता.’’ मोहित की बात पर दादी एकदम से भड़क उठी थीं, ‘‘ये क्या कह रहे हो? तुम तो जानते हो कि मम्मीपापा कितनी मेहनत करते हैं तुम्हारे लिए, तभी तुम्हें नएनए कपड़े और किताबें ला कर देते हैं. और तुम्हें कितना प्यार करते हैं, यह भी जानते हो तुम. फिर भी ऐसी बातें कर रहे हो.’’ तभी कौस्तुभ ने मां का हाथ दबा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में बोला, ‘‘ये क्या कर रही हो मम्मी? बच्चा है, इस की गलती नहीं.’’

मगर कई दिनों तक मोहित इसी बात पर अड़ा रहा कि उसे होस्टल में रह कर पढ़ना है, यहां नहीं रहना. दादादादी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. आखिर पूरे घर में चहलपहल उसी की वजह से तो रहती थी. तब एक दिन कौस्तुभ ने अपनी मां को समझाया, ‘‘मां, मैं चाहता हूं, हमारा बच्चा न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहे और इस के लिए जरूरी है कि हम उसे अपने से दूर रखें. वह हमारे साथ रहेगा तो जाहिर है कभी भी खुश और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बन सकेगा. मेरी गुजारिश है कि वह जो चाहता है, उसे वैसा ही करने दो. मैं कल ही देहरादून के एक अच्छे स्कूल में इस के दाखिले का प्रयास करता हूं. भले ही वहां फीस ज्यादा है पर हमारे बच्चे की जिंदगी संवर जाएगी. उसे वह मिल जाएगा, जिस का वह हकदार है और जो मुझे नहीं मिल सका.’’

2 सप्ताह के अंदर ही कौस्तुभ ने प्रयास कर के मोहित का ऐडमिशन देहरादून के एक अच्छे स्कूल में करा दिया, जहां उसे 70 हजार डोनेशन के देने पड़े. पर बच्चे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. मोहित को विदा करने के बाद प्रिया बहुत रोई थी. उसे लग रहा था जैसे मोहित हमेशा के लिए उस से बहुत दूर जा चुका है. और वास्तव में ऐसा ही हुआ. छुट्टियों में भी मोहित आता तो बहुत कम समय के लिए और उखड़ाउखड़ा सा ही रहता. उधर उस के पढ़ाई के खर्चे बढ़ते जा रहे थे जिन्हें पूरा करने के लिए कौस्तुभ और प्रिया को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही थी. समय बीतते देर नहीं लगती. मोहित अब बड़ा हो चुका था. उस ने बीए के बाद एम.बी.ए. करने की जिद की. अबतक कौस्तुभ के मांबाप दिवंगत हो चुके थे. कौस्तुभ और प्रिया स्वयं ही एकदूसरे की देखभाल करते थे. उन्होंने एक कामवाली रखी थी, जो घर के साथ बाहर के काम भी कर देती थी. इस से उन्हें थोड़ा आराम मिल जाता था. मगर जब मोहित ने एम.बी.ए. की जिद की तो कौस्तुभ के लिए पैसे जुटाना एक कठिन सवाल बन कर खड़ा हो गया. कम से कम 3-4 लाख रुपए तो लगने ही थे. इतने रुपयों का वह एकसाथ इंतजाम कैसे करता?

तब प्रिया ने सुझाया, ‘‘क्यों न हम घर बेच दें? हमारा क्या है, एक छोटे से कमरे में भी गुजारा कर लेंगे. मगर जरूरी है कि मोहित ढंग से पढ़ाईलिखाई कर किसी मुकाम तक पहुंचे.’’ ‘‘शायद ठीक कह रही हो तुम. घर बेच देंगे तो काफी रकम मिल जाएगी,’’ कौस्तुभ ने कहा. अगले ही दिन से वह इस प्रयास में जुट गया. अंतत: घर बिक गया और उसे अच्छी रकम भी मिल गई. उन्होंने बेटे का ऐडमिशन करा दिया और स्वयं एक छोटा घर किराए पर ले लिया. बाकी बचे रुपए बैंक में जमा करा दिए ताकि उस के ब्याज से बुढ़ापा गुजर सके. 1 कमरे और किचन, बाथरूम के अलावा इस घर में एक छोटी सी बालकनी थी, जहां बैठ कर दोनों धूप सेंक सकते थे.

बेटे के ऐडमिशन के साथ खर्चे भी काफी बढ़ गए थे, अत: उन्होंने कामवाली भी हटा दी और दूसरे खर्चे भी कम कर दिए. अब उन्हें इंतजार था कि बेटे की पढ़ाई पूरी होते ही उस की अच्छी सी नौकरी लग जाए और वे उस के सपनों को पूरा होते अपनी आंखों से देखें.

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Summer Special: ब्रेकफास्ट में बनाएं ये हैल्दी परांठे

लंच हो या डिनर रोज ही हमारे घरों में बनाया जाता है चूंकि यह प्रतिदिन बनता है इसलिए हर गृहिणी के लिए यह सबसे बड़ी समस्या होती है कि ऐसा क्या बनाया जाए जो हैल्दी भी हो, आसानी से बन भी जाये और घर के सभी सदस्यों को पसन्द भी आ जाये. आज हम आपको ऐसे ही दो परांठे बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं. चूंकि इनकी स्टफिंग बहुत टेस्टी होती है इसलिए इनके साथ अतिरिक्त सब्जी बनाने के स्थान पर  आप इन्हें अचार, चटनी, दही आदि के साथ सर्व कर सकतीं हैं तो आइए देखते हैं इन्हें कैसे बनाते हैं-

-सोया परांठा

कितने लोगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय       20 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री(आटे के लिए)

गेहूं का आटा                     1 कप

नमक                               1/4 टीस्पून

तेल                                  1 टीस्पून

सामग्री(स्टफिंग के लिए)

सोया ग्रेन्यूल्स                    1कप

बारीक कटा प्याज              1

कटी हरी मिर्च                     3

कटा हरा धनिया                  1 लच्छी

नमक                                 स्वादानुसार

बारीक कटा लहसुन           6 कली

अमचूर पाउडर                  1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर              1/2 टीस्पून

सेंकने के लिए तेल            पर्याप्त मात्रा में

विधि

आटे को नमक और तेल डालकर पानी की सहायता से गूंथकर 20 मिनट के लिए ढककर रख दें. सोया ग्रेन्यूल्स को गर्म पानी में आधे घण्टे के लिए भिगोकर हाथों से निचोड़कर पानी निकाल दें. अब इन्हें बिना पानी के मिक्सी में दरदरा पीस लें. अब एक पैन में 1 टीस्पून तेल गरम करके प्याज, लहसुन और हरी मिर्च को सॉते कर लें. सोया  ग्रेन्यूल्स और सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलाएं. ठंडा होने पर 1 टेबलस्पून मिश्रण परांठे में  भरें. दोनों तरफ तेल लगाकर सुनहरा होने तक सेंके. टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

-हरा भरा सत्तू परांठा

कितने लोगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय       20 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री (परांठे के लिए)

गेहूं का आटा                    1 कप

मैदा                                 1/4 कप

नमक                               1/4 टीस्पून

पालक प्यूरी                     1/2 कप

अजवाइन                       1/4 टीस्पून

सामग्री(भरावन के लिए)

सत्तू                             1 कप

कटा प्याज                   1

कटी हरी धनिया            1 लच्छी

कटी हरी मिर्च                4

दरदरी कुटी लहसुन          6 कली

हींग                                1/4 टीस्पून

कुटी लाल मिर्च                1/4 टीस्पून

अमचूर पाउडर                1/4 टीस्पून

नमक                             1/4 टीस्पून

जीरा                              1/4 टीस्पून

चाट मसाला                    1/4 टीस्पून

हल्दी पाउडर                   1/4 टीस्पून

कसूरी मैथी                      1 टेबलस्पून

सेकने के लिए तेल अथवा घी

विधि

गेहूं के आटे में नमक, पालक प्यूरी, तेल और मैदा मिलाकर नरम आटा गूंथ लें. इसे आधे घण्टे के लिए ढककर रख दें.

भरावन बनाने के लिए एक पैन में तेल गरम करके प्याज, लहसुन, हरी मिर्च भूनकर, जीरा और हींग डालकर कसूरी मैथी, सभी मसाले और सत्तू डाल दें.अब इसमें 1 टीस्पून पानी डालकर चलाएं और गैस बंद कर दें. कटा हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें. तैयार आटे में से 1 छोटी लोई लेकर 1 टेबलस्पून भरावन भरकर चारों तरफ से बंद करें और दोनों तरफ घी लगाकर सुनहरा होने तक सेककर टमाटर की चटनी के साथ सर्व करें.

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45 साल की उम्र और एक Miscarriage के बाद प्रैग्नेंट होना

आर्थिक सुरक्षा और सेहतमंद माहौल उत्पन्न करने के लिये कई सारे दम्पति देरी से प्रेग्नेंसी का विकल्प चुन रहे हैं. वैसे, हमेशा ही हर चीज के फायदे और नुकसान होते हैं और नुकसान के बारे में जानकारी होने पर उन्हें सही तरीके से संभालना महत्वपूर्ण होता है.

आपको बता दें कि, 45 की उम्र वाली महिलाओं से जन्में बच्चे की हेल्दी होने की संभावना 1 फीसदी तक कम हो जाती है. साथ ही गर्भावस्था के समय महिलाओं में गेस्टेशनल डायबिटीज और हाइरपटेंशन का स्तर काफी हद तक बढ़ जाता है. अधिक उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं के लिए न सिर्फ कंसीव करना मुश्किल होता है बल्कि अगर महिला गर्भवती हो जाती है तब भी उसे हाई रिस्क ग्रुप में रखा जाता है. इसका कारण ये है कि 40 से 50 साल की उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कई खतरों का सामना करना पड़ता है.

गर्भ धारण से जुड़े जोखिम और सुझाव बात रहीं हैं वरिष्ठ परामर्शी प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, डॉ. मनीषा रंजन. जब आपकी उम्र बढ़ती जाती है तो आपको कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और इसलिये अतिरिक्त सावधान रहना और सबसे बेहतर संभावित परिणाम के लिये अतिरिक्त चीजें करना बेहद जरूरी है. बाँझपन की स्थिति में आप अपने एग्स को फ्रीज कर सकती हैं या फिर डॉक्टर्स या विशेषज्ञों की देखरेख में आईवीएफ जैसे अस्सिटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजिस (एआरटी) का सहारा ले सकती हैं. वैसे, प्रजनन की दवाओं या उपचार की मदद के बिना 45 साल की उम्र के बाद माँ बनने की संभावना थोड़ी कम होती है.

45 साल की उम्र में बच्चे के बारे में विचार करना

हाइपरटेंशन, डायबिटीज और प्रसव से जुड़ी समस्याएं 40 की उम्र के बाद आम होती हैं. ये समस्याएं बेहद ही आम हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आपको इनका सामना करना ही होगा. हालांकि, आपको 40 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने के खतरों के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिये.

35 की उम्र के बाद, महिलाओं का प्रजनन दर कम होना शुरू हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप, महिलाओं को निम्नलिखित जोखिमों के साथ प्रजनन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है :

गर्भावस्था जनित डायबिटीज

गर्भवास्थाजनित डायबिटीज (मधुमेह) गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है, जो अब काफी आम होता जा रहा है. 20 से 34-35 वर्ष के उम्र की महिलाओं की तुलना में 40 से अधिक उम्र की महिलाओं को गर्भावस्थाजनित डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है. इसकी वजह से गर्भावस्था में मुश्किलें पेश आ सकती हैं.

क्रोमोसोमल असामान्यताएं

चूँकि, बढ़ती उम्र की महिलाओं में अंडों की संख्या कम हो जाती है, बाकी अंडों की क्वालिटी कम होने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप डीएनए का स्तर कम होता जाता है. इसकी वजह से शिशुओं में क्रोमोसोमल असामान्यताएं हो सकती हैं, जिसकी वजह से वे डाउन सिंड्रोम जैसे मानसिक विकारों से ग्रसित हो सकते हैं.

मृत शिशु पैदा होने की आशंका

40 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में 35-39 साल की महिलाओं की अपेक्षा मृत शिशु के पैदा होने का खतरा अधिक होता है. अपने बच्चे के मूवमेंट पर नजर रखना बेहद जरूरी हो जाता है, खासकर यदि आप अपनी नियत तारीख को पार कर चुकी हैं. यदि आप महसूस करती हैं कि आपके बच्चे का मूवमेंट धीमा हो गया है, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर या प्रसूति इकाई से संपर्क करना चाहिये.

40 साल की उम्र के बाद, योनि मार्ग से प्रसव के दौरान मृत बच्चे के पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है. माँ और बच्चे दोनों को बचाने के लिये इस उम्र में सीजेरियन डिलीवरी तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

देरी से गर्भावस्था की अन्य समस्याओं में शामिल हैं :

  1. अस्वास्थ्यकर अंडे
  2. प्रीक्लेम्पसिया
  3. प्लेसेंटा के साथ जटिलता (जैसे कि प्लेसेंटा प्रिविया)
  4. समय से पहले प्रसव
  5. सी-सेक्शन की जरूरत
  6. नियत समय से पहले प्रसव पीड़ा होना
  7. जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे का जन्म
  8. एक्टोपिक गर्भाधान
  9. गर्भपात

45 साल की उम्र के बाद स्वस्थ गर्भधारण किस प्रकार हो सकता है?

किसी भी उम्र में एक सेहतमंद जीवनशैली बनाए से अच्छी प्रेग्ननेंसी सुनिश्चित हो सकती है. सही वजन बनाकर रखें, धूम्रपान और शराब का सेवन छोड़ दें, संतुलित आहार लें, प्रेग्नेंसी के पहले और उसके दौरान कैफीन लेने से बचें, प्रोसेस्ड फूड नहीं लें और रोजाना एक्सरसाइज करें.

जीवन, नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं से भरपूर है. कई सारी परेशानियों के बावजूद, 40 के बाद की उम्र में प्रेग्नेंट होना आम और सेहतमंद है. बड़ी उम्र में माँ बनना अच्छा और मुश्किल दोनों ही एक साथ हो सकता है. यदि आपने जीवन में देरी से बच्चा करने का फैसला किया है तो एक फर्टिलिटी डॉक्टर से बात करें, जो आपको कई सारी संभावनाओं के बारे में बता सकते हैं और सबसे सही विकल्प चुनने में आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं. प्रेग्नेंट होने से पहले अपने डॉक्टर से अपनी सेहत से जुड़ी कोई समस्या हो तो इसके बारे में अपनी आनुवंशिकी जाँच कराएं.

तो मम्मा आप तैयार हो जाइये, क्योंकि आप कर सकती हैं.

यदि गर्भावस्था के दौरान आपको बेहतरीन देखभाल मिलती है, अच्छा खाना खाती हैं और एक सेहतमंद जीवनशैली जीती हैं और नौ महीनों तक अपना पूरा ध्यान रखती हैं और अपनी प्रेग्नेंसी में सबसे बढ़िया स्वास्थ्य के साथ कदम रखती हैं तो आपकी प्रेग्नेंसी परेशानीमुक्त होगी और आप एक हेल्दी डिलीवरी कर पाएंगी.

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भारत में धर्म की दुकानें

भारत के गुरू, स्वामी, धर्माचार्य, महंत, पंडित, पुजारी इस मामलों में अपने अमेरिकी तरहतरह के चर्चों में पादरियों, प्रिस्टों, बिशपों, पेस्टरों से बेहतर हैं. भारत में शायद ही किसी पर सैक्सुअल एब्यूज करने का आरोप लगता है पर अमेरिका के दक्षिण में चर्च के एक संप्रदाय साउदर्न बापटिस्ट कनवेंशन के पास 2000 से 2019 तक के 700 चर्च के पादरियों पर लगाए गए आरोपों की लंबी लिस्ट है. वर्षों से साउदर्न बापटिस्ट कनवेंशन चर्च इस लिस्ट में नए नाम जरूर जोड़ता रहा है पर इसे पब्लिक होवे से रोकता रहा है.

मई 2022 में जब यह रिपोर्ट लीक हो गई और इस लिस्ट के चेहरे टीवी स्क्रीनों पर दिखने लगे तो चर्च ने माना कि इन लोगों ने सैंकड़ों लोगों की जिंदगियों से खेला है और साउदर्न बापटिस्ट कनवेंशन चर्च रूस चर्च के पादरियों के गुनाहों के शिकारों को कुछ न्याय दिलाने का वायदा करता है.

विदेशी चर्च को भारत में एक समझा जाता है जबकि विदेशों में चर्च सैंकड़ों टुकड़ों में बंटा है ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहां हर मंदिर, हर आश्रम, हर मठ अपने एक गुरू या संप्रदाय की निजी संपत्ति होता है. न चर्च, न गुरूद्वारों न बौंध मठ, न मंदिर किसी एक सत्ता के अंग है. वे सब अलगअलग अस्तिाव रखते हैं और सब के पास अपार संपत्ति है और धर्म की गाड़ी ईश्वर नहीं पैसा चलाता है जो भक्त दान करते हैं और चर्च या धर्म की हर दुकान में काम करने वालों को सेक्स सुख पाने का अक्सर खास मोटिव होता है. कैलीक्रोर्निया के इस चर्च में कम से कम 700 लोगों पर दोष लगाया जा चुका है और जब से यह भंडाफोड़ हुआ है, नए नाम जुड़ रहे हैं.

चर्च की चर्चा इसलिए की जा रही है कि भारत में धर्म की दुकानें आमतौर पर इन आरोपों से मुक्त रहती हैं. हमारे भक्त अमेरिकी भक्तों से ज्यादा भक्तिभाव रखते हैं और अपने पंडि़तों, स्वामियों गुरूओं के खिलाफ ज्यादा बोलते नहीं है. आसाराम बापू जैसे इक्केटुक्के मामलों में सजा हुई है पर आमतौर पर अगर मामला अदालत में चला जाता भी है तो जज या तो घबरा कर उसे टालते रहते है या मामले में पूरे सुबूत नहीं है कह कर बंद कर देते हैं.

सैक्सुअल एब्यूज पर हर तरह के धर्म लाखों डालर के समझौते हर साल आजकल कर रहे हैं. पीडि़तों को वे कहते हैं कि भगवान  के काम में ज्यादा दखलअंदाजी न करो, मरने के बाद ईश्वर को क्या जवाब दोगे. भक्त जो ईश्वर की काल्पनिक भक्ति में अगाध विश्वास रखता है आमतौर पर चुप रहता है. चर्चा के पादरियों के सैक्सुअल एब्यूज का उस के पास वही उत्तर होता है जो एक हिंदू के पास है. ईश्वर सब देखता है, ईश्वर सब पापों का दंड खुद देगा.

धर्म के हर तरह के दुकानदारों, भक्तों को इस तरह भ्रमित कर रखा है कि वे संतों, महंतों, पादरियों मुल्लाओं की हर ज्यादती को वरदान समझते हैं. वे तनमन और धन से की जाने वाली सेवा में तन में की जाने वाली सेवा का कोई अवसर नहीं छोडऩा चाहते. जिन गुनाहों पर सेक्यूलर सरकार और कानून गुनाहगार को जेल में डाल देता है, उसी को धर्म केवल पाप कहता है और या तो प्रायश्चित करवाता है या कह देता है कि चाय भरने के बाद ईश्वर की अदालत में होगा. जब गुनाहगार ईश्वर का अपना एजेंट हो तो कौन सा कानून उसे सजा देगा यह अमेरिका में स्पष्ट है, भारत में भी.

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Travel Special: पर्यटकों को लुभाता रंगीलो राजस्थान

मैं अपने परिवार के साथ अपनी कार से राजस्थान यात्रा पर गया था. लगभग तीनचौथाई राजस्थान की यात्रा कर के घर लौटा. यात्रा के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरा राजस्थान अपने गौरवशाली अतीत की ऐतिहासिक गाथाओं, वैभवशाली महलों, ऐतिहासिक किलों के साथ ही अपनी आकर्षक लोककला, संगीत, नृत्य एवं रोचक आश्चर्यजनक रीतिरिवाजों तथा संस्कृति से पर्यटकोंको लुभाता है.

इस के साथ ही राजस्थान पर्यटन विभाग, होटल, रैस्टोरैंट एवं पर्यटकों की पसंद की सामग्री के व्यवसायी तथा पर्यटन से जुड़े लोग गाइड आदि भी पर्यटकों विशेषतौर पर विदेशी पर्यटकों को रिझाने में पूरी तरह से जागरूक हैं. राजस्थान में विदेशी पर्यटक भी बड़ी तादाद में आते हैं.

हम लोगों ने राजस्थान में प्रवेश सवाई माधोपुर से किया. सवाई माधोपुर में प्रवेश करते ही रेगीस्तान का जहाज ऊंट हमें दिखाई देने लगे. विचित्र बात यह थी कि ऊंट के बालों की कटिंग इस तरह की गई थी कि उन के पीठ एवं पेट पर जलते दिए एवं अन्य कलाकृतियां उभर आई थीं. पहले तो हमें लगा कि संभवत: काले पेंट से ये कलाकृतियां बनाई गई हैं, लेकिन पूछने पर पता चला कि ये कलाकृतियां ऊंट के बालों को काट कर बनाई गई हैं. ऊंट तो हम ने पहले भी देखे थे, लेकिन यह ऊंट पेंटिंग पहली बार देखी.

आकर्षण का केंद्र

रणथंभौर किले के पास पहुंचतेपहुंचते राजस्थान लोकसंस्कृति, ढांणी (राजस्थायनी ग्राम) की जीवनशैली आदि को उजागर करते तथा किले के आकार के होटल एवं रैस्टोरैंट नजर आए जोकि यकीनन पर्यटकों को लुभाने के लिए ही बने हैं. रणथंभौर किला एवं रिजर्व फौरैस्ट पर्यटन, जंगल सफारी हेतु हरे रंग से रंगी खुली छत वाले वाहन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे जबकि रणथंभौर किले तक जाने वाली सड़क बेहद खस्ता हालत में थी. यह जंगल के असली लुक के मद्देनजर था या फिर सवाई माधोपुर के फौरैस्ट डिपार्टमैंट की लापरवाही की वजह से समझ नहीं पाए.

जब हम लोग प्रसिद्ध स्थल पुष्कर पहुंचे तो उस वक्त वहां विश्व प्रसिद्ध कार्तिक मास में लगने वाला मेला समापन की ओर था. तब भी वहां देशविदेश के सैलानियों का सैलाब उमड़ रहा था. मेला अभी भी अपने पूरे शबाब पर था. लगभग

3-4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले मेले में सर्कस, जादू, मौत का कुआं के साथ ही राजस्थानी परिधानों, कलाकृतियों, विभिन्न खाद्यपदार्थों के स्टाल्स के साथ ही पशु मेले में ऊंटदौड़ देशीविदेशी पर्यटकों को समान रूप से लुभा रही थी.

राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा वहां नित नए सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं रोचक प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही थीं. प्रतियोगिताएं सिर्फ राजस्थान के अंचल के लोगों के लिए ही आयोजित थीं, लेकिन वे प्रतियोगिताएं राजस्थानी संस्कृति के तहत ही थीं. मसलन, विदेशी पर्यटकों के लिए पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता आयोजित की गई जोकि यकीनन उन्हें लुभाने के लिए ही आयोजित की गई थी जबकि लंबी मूंछों की प्रतियोगिता में प्रतियोगियों की डेढ़ 2 फिट लंबी मूंछें देशीविदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रही थीं.

ऐतिहासिक धरोहरों की भूमि

विदेशी पर्यटक, राजस्थान में सब से अधिक पुष्कर में ही निश्चिंत एवं स्वच्छंद हो कर विचरते नजर आए. बड़े होटलों के अलावा बहुतायत में वहां के स्थानीय लोगों ने भी अपने मकानों के कुछ हिस्से को गैस्टहाउस के रूप में परिवर्तित कर दिया था जिस में सिर्फ देशी पर्यटक ही नहीं, अपितु विदेशी पर्यटक भी रुक कर स्थानीय लोगों के परिवारों के साथ घुलमिल कर रह रहे थे.

जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर के आलीशान महल अपनी भव्यता की वजह से देशीविदेशी दोनों ही किस्म के पर्यटकों को लुभाते हैं तो अधिकांश महलों, किलों एवं हवेलियों पर स्वामित्व अभी भी राज परिवारों एवं हवेलियों के भूतपूर्व स्वामियों के वंशजों का ही है. वे वंशज भी अपने पूर्वजों की इन धरोहरों को सिर्फ भलीभांति संभालने में ही जागरूक नहीं हैं बल्कि पर्यटकों विशेषतौर पर विदेशी पर्यटकों को उन की आकर्षक प्रस्तुति कर लुभाने में भी पूरी तरह सक्रिय हैं.

साफसुथरे राजमहलों के कक्षों में अपने पूर्वजों के हथियार, वस्त्र, वाहन, दर्पण, कटलरी, बड़ेबड़े पात्र, सुरा पात्र, गंगाजल पात्र, उन के भव्य चित्र, विभिन्न अवसरों के एवं शिकार करते, पोलो खेलते हुए उन के चित्र उन के शयनकक्ष, उन के राज दरबार में उन के भव्य राजसिंहासन, दीवाने आम, दीवाने खास आदि की भव्य प्रस्तुति इस भांति प्रदर्शित की गई है कि देशीविदेशी दोनों ही किस्म के पर्यटकों को वह लुभाती है जबकि हवेलियों की भव्यता अतीत के साहूकारों, महाजनों के वैभव को दर्शाती है.

उन के बहीखाते, कमलदान तक हवेलियों में सुरक्षित हैं. विभिन्न महलों में राजपरिवार द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले हमाम एवं शौचालय तक पूरी तरह से ठीक हालत में पर्यटकों हेतु प्रदर्शित हैं.

राजसी ठाटबाट का अनुभव

प्राचीन राज वैभव तथा राज परिवार के पहनावे की एक झलक प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही संभवत: लगभग हर प्रसिद्ध महल एवं किले की देखरेख में राज परिवार के वंशजों द्वारा नियुक्त कर्मचारी राजसी ड्रैस चूड़ीदार पाजामा, बंद गले का कोट तथा केसरिया पगड़ी में विदेशी पर्यटकों को विशेषतौर पर लुभाते हैं.

कई विदेशी पर्यटक इन राजसी डै्रसों से सुसज्जित कर्मचारियों के साथ फोटो खिंचवा रहे थे तो कई विदेशी पर्यटक इन से अपनेआप को सैल्यूट करवाते हुए छवि को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे. लगभग हर महल, हवेली एवं किले में देशीविदेशी पर्यटकों से प्रवेश शुल्क लिया जाता है जिस से अर्जित आय राज परिवार के वंशजों के पास तो जाती ही है इस के अतिरिक्त लगभग हर प्रतिष्ठित किले, महल का एक हिस्सा राज परिवार के वंशजों ने फाइव स्टार होटलों एवं रैस्टोरैंटों के रूप में परिवर्तित कर दिया है जिस से होने वाली अच्छीखासी आमदानी से वे अभी भी राजसी ठाटबाट के साथ अपना जीवन गुजार रहे हैं.

शानदार महल

उदयपुर के शानदार महलों को देखने के दौरान गाइड ने बताया कि उदयपुर राज परिवार के वंशजों के पूरे राजस्थान में लगभग 12 फाइवस्टार होटल हैं, जबकि विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए राजस्थान के कई स्थलों पर किलेमहलों के स्वरूप में नवर्निमित होटल भी दिखाई पड़े.

यह भी देखने में आया कि कई किलों, महलों के सामने कठपुतली वाले कठपुतली नचा कर, लोक गायक राजस्थानी लोकगीत गा कर तथा सपेरे बीन की धुन पर डोलते हुए सांप दिखा कर विदेशी पर्यटकों को लुभा रहे थे.

देश के अन्य प्रांतो में वन्य जीव संरक्षण कानून के चलते भले ही बंदर, भालू नचाते मदारी, बीन की धुन पर डोलते सांप यहां तक कि सर्कस में भी वन्य जीव दिखने बंद हो गए हैं, लेकिन राजस्थान के किलों के सामने विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए सपेरों को बीन की धुन पर डोलते सांप दिखाई की संभवतया विशेष छूट दी गई है.

जैसलमेर में किलों एवं हवेलियों के साथ ही पर्यटकों को जो दृश्य सब से अधिक आकर्षित करता है वह है रेगिस्तान के टीले, दूरदूर तक फैली रेत तथा उन में हवा से अंकित लहरें. उस विशाल रेगिस्तान में ऊंट एवं ऊंट गाड़ी से घूमना एक रोमांचकारी अनुभव होता है.

विशाल रेगिस्तान में ऊंट की सवारी

जैसलमेर शहर से लगभग 20-25 किलोमीटर दूरी पर विशाल रेगिस्तान स्थित है तथा उसी रेगिस्तान पर लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर भारतपाकिस्तान का बौर्डर है. रेगिस्तान को वहां के लोग ‘सम’ कहते हैं तथा  ‘कैमल सफारी’ के बुकिंग सैंटर एवं एजेंट्स के माध्यम से बुकिंग कर ऊंट एवं ऊंट गाड़ी द्वारा रेगिस्तान भ्रमण तथा रेगिस्तान के समीप ही टैंट में संचालित होटल्स में कैंप फायर तथा लोक गायकों के लोकगीत एवं लोक नर्तकियों के नृत्य, देशीविदेशी दोनों ही तरह के पर्यटकों को बेहद लुभाते हैं.

उन टैंट्स में संचालित होटल एवं खुले मंच पर लोकगीत एवं नृत्य के कार्यक्रम में नर्तकियां अतिथि पर्यटकों का स्वागत बाकायदा तिलक लगा कर एवं आरती उतार कर करती हैं, जिस से देशीविदेशी पर्यटक अभिभूत हो उठते हैं.

वैसे लगभग पूरे राजस्थान में ही पर्यटन स्थलोें पर पर्यटकों का स्वागत पूरे सम्मान के साथ किया जाता है. राजस्थानी लोग पर्यटकों को आदर से ‘साब जी’ कह कर संबोधित करते हैं. यहां तक कि राहगीरों से भी कुछ पूछने पर वे बड़े प्रेम एवं आदर के साथ पर्यटकों को जानकारी उपलब्ध कराते हैं.

पधारो म्हारे देश

एक जगह राह भटक जाने पर एक ग्रामीण मोटरसाइकिल सवार हमे सही रोड तक पहुंचाने हेतु लगभग 2-3 किलोमीटर तक मोटरसाइकिल चल कर हमें सही रोड पर पहुंचा कर लौटा तो हमें लगा कि वास्तव में राजस्थानी ‘पधारो म्हारे देश…’ गा कर ही पर्यटकों का स्वागत नहीं करते बल्कि उसे चरितार्थ भी पूरी आत्मीयता से करते हैं.

विदेशी पर्यटकों द्वारा ग्रामीण अंचल के अनपढ़ लोगों की फोटोग्राफी करने पर वे अनपढ़ लोग भी अब उन्हें ‘थैक्यू’ कहना सीख गए हैं, साथ ही ‘टैन रूपीज’ की मांग भी फोटोग्राफी के बदले में करने से वे नहीं चूकते. मजे कि बात तो यह हुई कि जब एक विदेशी महिला को राजस्थानी पगड़ी पहन कर घूमते हुए मैं ने देखा तो उस का फोटो अपने कैमरे में कैद करने का लोभ नहीं छोड़ सका. बदले में उस विदेशी महिला ने हंसते हुए कुछ व्यंग्य से कहा कि गिव मी टैन रूपीज.

मीणा सरकार ‘बूंदा’ के नाम पर नामांकित ‘बूंदी’ शहर में किला, नवल सागर, चित्रशाला, रानी की बाबड़ी, सुखमहल आदि पर्यटन स्थल हैं पर सभी स्थल शासकीय उपेक्षा से ग्रस्त प्रतीत हुए. नवल सागर झील का पानी पूरी तरह से काई से आच्छादित था तथा घाट जीर्णशीर्ण नजर आए. किला एवं चित्रशाला की दीवारों में विश्वप्रसिद्ध भीति चित्र चित्रितत हैं जिन में किले की अपेक्षा चित्रशाला के भीति चित्र पर्यटकों को अधिक आकर्षित करते हैं.

18वीं शताब्दी के राजस्थान की संस्कृति, धार्मिक, गाथाएं, राजारानी के जीवन के विभिन्न पहलुओं, युद्ध आदि के आकर्षक रंगीन चित्र चित्रशाला की दीवारों एवं छतों पर चित्रित हैं. लगभग 200 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बावजूद उन चित्रों के रंग पूरी तरह से धूमिल नहीं हुए हैं.

उम्दा खरीदारी

जैसलमेर शहर में किले के रास्ते पर विदेशी पर्यटकों को भरमाती हुई कामशक्ति वर्धक चादरें बेची जा रही थीं. बकायदा उन चादरों पर इस आशय की स्लिप भी टंकित की गई थी

जिस में लिखा हुआ था ‘नो नीड फौर वियाग्रा मैजिक बैडशीट.’ बैडशीट का साइज बताने का भी उन का रोचक तरीका था कुछ बैडशीट पर टंकित स्लिप पर लिखा था ‘बेडशीट साइज वन वाइफ ओके.’

टूरिस्ट गाइड भी अपने विचित्र अंदाज में किलों, महलों का इतिहास तो बताते ही साथ ही देशी पर्यटकों को यह बतलाने से भी नहीं चूकते कि कब किस फिल्म की शूटिंग कहां हुई, कब कौन सा हीरोहीरोइन यहां आए, यहां आ कर क्या किया, क्या कहा आदि. लेकिन लगभग हर गाइड देशीविदेशी दोनों ही तरह के पर्यटकों को ‘राजस्थान टैक्सटाइल्स एंपोरियम’ एवं अन्य टूरिस्ट इंटरैस्ट की सामग्री के विक्रेताओं के पास अवश्य ले जाते हैं जहां से टूरिस्ट द्वारा खरीद पर उन्हें अच्छाखासा कमीशन मिलता है.

जयपुर ही नहीं राजस्थान के अन्य स्थलों

पर भी गाइड्स पर्यटकों को कपड़ों एवं अन्य सामग्री की दुकानों पर अवश्य ले जाते हैं जहां दुकानदार भी मार्केट रेट से अधिक रेट पर सामग्री बेचते हैं.

चित्तौड़गढ़ के टैक्सटाइल्स ऐंपोरियम में यह कह कर हम लोगों को साड़ी बेची गईर् कि इस साड़ी को फिटकरी के घोल में डाल कर सुखाने के बाद साड़ी से चंदन की महक आती है, लेकिन कई बार फिटकरी के घोल में डाल कर सुखाने के बाद भी उस में से चंदन की महक नहीं आई.

इन बातों को दरकिनार कर दें तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि राजस्थान देश के अन्य पर्यटन स्थल की अपेक्षा एक अलग ही अनूठे अंदाज से पर्यटकों को लुभाता है तो उस के पर्यटन स्थलों के गाइड्स एवं दुकानदारों का भरमाने, छलने का अंदाज भी अनूठा है.

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यदि मुझे पीसीओएस है तो मुझे Pregnant होने में कितना समय लगेगा?

सवाल-

यदि मुझे पीसीओएस है तो मुझे गर्भवती होने में कितना समय लगेगा?

जवाब-

यदि आपको पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) है और आप गर्भधारण करना चाहती हैं तो आप की गर्भावस्था कई चीजों से प्रभावित हो सकती है. इस में आप के अपने स्वास्थ्य के साथसाथ आप के पार्टनर की उम्र और सामान्य स्वास्थ्य का भी हाथ होता है. यदि आप की उम्र 35 साल से कम है और आप नियमित रूप से अंडोत्सर्ग कर रही हैं और यदि आप को एवं आप के पार्टनर को आप के प्रजनन को प्रभावित करने वाली कोई दूसरी चिकित्सा संबंधी परेशानियां नहीं हैं तो इस बात की संभावना अधिक है कि 1 साल के अंदर या उस से भी जल्दी आप गर्भधारण कर सकती हैं. यदि आप के पार्टनर को चिकित्सा संबंधी कोई परेशानी है जैसेकि शुक्राणु की संख्या कम होना या यदि आप को ऐंडोमिट्रिओसिस या फाइब्रौयड्स जैसी स्त्रीरोग संबंधी कोई दूसरी समस्या है तो आप को गर्भवती होने में 1 साल से ज्यादा का समय लग सकता है. ज्यादातर महिलाओं में 32 साल की उम्र के बाद प्राकृतिक प्रजनन की क्षमता घटने लगती है और 37 की उम्र तक आतेआते इस में और गिरावट आ जाती है. यदि आप का मासिकधर्म यानी माहवारी नियमित नहीं हैं या फिर प्रजनन संबंधी ऐंडोमिट्रिओसिस जैसी कोई और समस्या है तो रिप्रोडक्टिव ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट और गाइनोकोलौजिस्ट के पास जाएं.

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पीसीओएस यानी पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक सामान्य हारमोन में अस्थिरता से जुड़ी समस्या है जो महिलाओं की प्रजनन आयु में उन के गर्भधारण में समस्या उत्पन्न करती है. यह देश में करीब 10% महिलाओं को प्रभावित करती है. पीसीओएस बीमारी में ओवरी में कई तरह के सिस्ट्स और थैलीनुमा कोष उभर जाते हैं जिन में तरल पदार्थ भरा होता है. ये शरीर के हारमोनल मार्ग को बाधित कर देते हैं जो अंडों को पैदा कर गर्भाशय को गर्भाधान के लिए तैयार करते हैं. पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं के शरीर में अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन होता है. इस की अधिक मात्रा के चलते उन के शरीर में पुरुष हारमोन और ऐंड्रोजेंस के उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है. अत्यधिक पुरुष हारमोन इन महिलाओं में अंडे पैदा करने की प्रक्रिया को शिथिल कर देते हैं. इस का परिणाम यह होता है कि महिलाएं जिन की ओवरी में पौलीसिस्टिक सिंड्रोम होता है उन के शरीर में अंडे पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है और वे गर्भधारण नहीं कर पातीं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीसीओएस से ग्रस्त हौसला न करें पस्त

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

घर और औफिस में यों बनाएं तालमेल

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.

ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.

औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें.

औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

फिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें.

जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

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एक साथी की तलाश- भाग 3: कैसी जिंदगी जी रही थी श्यामला

उन्होंने चौंक कर बिरुवा का चेहरा देखा. इस बार बिरुवा रुकने वाला नहीं है, वह जाने के लिए कटिबद्ध है. देरसवेर बिरुवा अब अवश्य चला जाएगा. कैसे और किस के सहारे काटेंगे वे अब बाकी की जिंदगी. एक विराट प्रश्नचिह्न उन के सामने जैसे सलीब पर टंगा था. सामने मरुस्थल की सी शून्यता थी, जिस में दूरदूर तक छांव का नामोनिशान नहीं था. आखिर ऐसी मरुस्थल सी जिंदगी में वे प्यासे कब तक और कहां तक भटकेंगे अकेले.

2 दिन इसी सोच में डूबे रहे. दिल कहता कि श्यामला को मना लाए. पर कदम थे कि उठने से पहले ही थम जाते थे. क्या करें और क्या न करें, इसी ऊहापोह में अगले कई दिन गुजर गए. सोचते रहते, क्या उन्हें श्यामला को मनाने जाना चाहिए, क्या एक बार फिर प्रयत्न करना चाहिए. अपने अहं को दरकिनार कर इतने वर्षों के बाद जाते भी हैं और अगर श्यामला न मानी तो… क्या मुंह ले कर वापस आएंगे.

किस से कहें वे अपने दिल की बात और किस से मांगें सलाह. बिरुवा उन के दिल में कौंधा. और किसी से तो उन का अधिक संपर्क रहा नहीं. वैसे भी और किसी से कहेंगे तो वह उन की बात पर हंसेगा कि अब याद आई. आखिर बिरुवा से पूछ ही बैठे एक दिन, ‘‘बिरुवा, क्या तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे एक बार उन्हें मना लाने की कोशिश करनी चाहिए?’’ उन के स्वर में काफी बेचारगी थी अपने स्वाभिमान के सिंहासन से नीचे उतरने की.

बिरुवा चौंक गया उन का इस कदर लाचार स्वर सुन कर. उन की कुरसी के पास बैठता हुआ बोला, ‘‘दोबारा मत सोचिए साहब, कुछ बातों में दिमाग की नहीं, दिल की सुननी पड़ती है. मालकिन आ जाएंगी तो यह घर फिर से खुशियों से भर जाएगा. माना कि कोशिश करने में आप ने बहुत देर कर दी पर आप के दिमाग पर यह बोझ तो नहीं रहेगा कि आप ने कोशिश नहीं की थी. बाकी सब नियति पर छोड़ दीजिए.’’

बिरुवा की बातों में दम था. वे सोचने लगे, आखिर एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है, जो भी होगा, देखा जाएगा, उन्होंने खुद को समझाया. खुद को तैयार किया. अपना छोटा सा बैग उठाया और जयपुर के लिए चल दिए. आजकल श्यामला जयपुर में थी.

बिरुवा बहुत खुश था. एक तो वह उन का भला चाहता था, दूसरा वह अपने परिवार के पास लौट जाना चाहता था. दिल्ली से जयपुर तक का सफर जैसे सात समुंदर पार का सफर महसूस हो रहा था उन्हें. जयपुर पहुंच कर अपना छोटा सा बैग उठा कर वे सीधे घर पर पहुंच गए. अपने आने की खबर भी उन्होंने इस डर से नहीं दी कि कहीं श्यामला घर से कहीं चली न जाए.

दिल में अजीब सी दुविधा थी. पैरों की शक्ति जैसे निचुड़ रही थी. वर्षों बाद अपने ही बेटे के घर में अपनी ही पत्नी से साक्षात्कार होते हुए उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अपनी जिंदगी की कितनी कठिन घडि़यों से गुजर रहे हों. धड़कते दिल से उन्होंने घंटी बजा दी. उन्हें पता था इस समय बेटा औफिस में होगा और बच्चे स्कूल. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुल गया. बहू ने उन को बहुत समय बाद देखा था, इसलिए एकाएक पहचान का चिह्न न उभरा उस के चेहरे पर. फिर पहचान कर चौंक गई, ‘‘पापा, आप? ऐसे अचानक…’’ वह पैर छूते हुए बोली, ‘‘आइए.’’ और उस ने दरवाजा पूरा खोल दिया.

वे अंदर आ कर बैठ गए, ‘‘अचानक कैसे आ गए पापा. आने की कोई खबर भी नहीं दी आप ने.’’ बहू का आश्चर्य अभी भी कम न हो रहा था. उन्हें एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा, ‘‘जरा पानी पिला दो और एक कप चाय.’’

‘‘जी पापा, अभी लाती हूं,’’ बहू चली गई. उन्हें लगा अंदर का परदा कुछ हिला. शायद श्यामला रही होगी. पर श्यामला बाहर नहीं आई. वे निरर्थक उम्मीद में उस दिशा में ताकते रहे. तब तक बहू चाय ले कर आ गई.

‘‘श्यामला कहां है?’’ चाय का घूंट भरते हुए वे धीरे से बोले.

‘‘अंदर हैं,’’ बहू भी उतने ही धीरे से बोल कर अंदर चली गई.

थोड़ी देर बाद बहू बाहर आई, ‘‘पापा, मैं जरा काम से जा रही हूं. फिर, बंटी को स्कूल से लेती हुई आऊंगी,’’ फिर अंदर की तरफ नजर डालती हुई बोली, ‘‘आप तब तक आराम कीजिए. लंच पर लक्ष्य भी घर आते हैं,’’ कह कर वह चली गई.

वे जानते थे बहू जानबूझ कर इस समय चली गई घर से. लेकिन अब वे क्या करें. श्यामला तो बाहर भी नहीं आ रही. बात भी करें तो कैसे. इतने वर्षों बाद अकेले घर में उन का दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था. थोड़ी देर वे वैसे ही बैठे रहे. अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयत्न करते रहे. फिर उठे और अंदर चले गए. अंदर एक कमरे में श्यामला चुपचाप खिड़की के सामने बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी.

‘‘श्यामला,’’ उसे ऐसे बैठे देख कर उन्होंने धीरे से पुकारा. सुन कर श्यामला ने पलट कर देखा. इतने वर्षों बाद मधुप को अपने सामने देख कर श्यामला जैसे जड़ हो गई. समय जैसे पलभर के लिए स्थिर हो गया. आंखों में प्रश्न सलीब की तरह टंगा हुआ था, क्या करने आए हो अब.

‘‘आप…’’ वह प्रत्यक्ष बोली.

‘‘हां श्यामला, मैं… इतने वर्षों बाद,’’ उसे देख कर वे एकाएक कातर हो गए थे, ‘‘तुम्हें लेने आया हूं,’’ वे बिना किसी भूमिका के बोले, ‘‘वापस चलो, मुझ से जो गलती हुई है उस के लिए मुझे क्षमा कर दो. मैं समझ नहीं पाया तुम्हें, तुम्हारी परेशानियों को, तुम्हारे अंतर्द्वंद्व को.’’

श्यामला अपलक उन्हें निहारती रह गई. शब्द मानो चुक गए थे. बहुतकुछ कहना चाहती थी. पर समझ नहीं पा रही थी कि कहां से शुरू करे. किसी तरह खुद को संयत किया. थोड़ी देर बाद बोली, ‘‘इतने वर्षों बाद गलती महसूस हुई आप को जब खुद को जरूरत हुई पत्नी की. लेकिन जब तक पत्नी को जरूरत थी? आखिर मैं सही थी न, कि आप ने हमेशा खुद से प्यार किया. लेकिन मेरे अंदर अब आप के लिए कुछ नहीं बचा, अब मेरे दिल को किसी साथी की तलाश नहीं है.

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रिश्तों का सच- भाग 1: क्या सुधर पाया ननद-भाभी का रिश्ता

घर में घुसते ही चंद्रिका के बिगड़ेबिगड़े से तेवर देख रवि भांपने लगा था कि आज कुछ हुआ है, वरना रोज मुसकरा कर स्वागत करने वाली चंद्रिका का चेहरा यों उतरा हुआ न होता. ‘‘लो, दीदी का पत्र आया है,’’ चंद्रिका के बढ़े हुए हाथों पर सरसरी सी नजर डाल रवि बोला, ‘‘रख दो, जरा कपड़ेवपड़े तो बदल लूं, पत्र कहीं भागा जा रहा है क्या?’’

चंद्रिका की हैरतभरी नजरों का मुसकराहट से जवाब देता हुआ रवि बाथरूम में घुस गया. चंद्रिका के उतरे हुए चेहरे का राज भी उस पर खुल गया था. रवि मन ही मन सोच कर मुसकरा उठा, ‘सोच रही होगी कि आज मुझे हुआ क्या है, दीदी का पत्र हर बार की तरह झपट कर जो नहीं लिया.’ हर साल गरमी की छुट्टियों में दीदी के आने का सिलसिला बहुत पुराना था. परंतु विवाह के 5 वर्षों में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो जब उन के आने को ले कर चंद्रिका से उस की जोरदार तकरार न हुई हो. बेचारी दीदी, जो इतनी आस और प्यार के साथ अपने एकलौते, छोटे भाई के घर थोड़े से मान और सम्मान की आशा ले कर आती थीं, चंद्रिका के रूखे बरताव व उन दोनों के बीच होती तकरार से अब चंद दिनों में ही लौट जाती थीं.

दीदी से रवि का लगाव कम होता भी, तो कैसे? दीदी 10 वर्ष की ही थीं, जब मां रवि को जन्म देते समय ही उसे छोड़ दूसरी दुनिया की ओर चल दी थीं. ‘दीदी न होतीं तो मेरा क्या होता?’ यह सोच कर ही उस की आंखें भर उठतीं. दीदी उस की बड़ी बहन बाद में थी, मां जैसी पहले थीं. कैसे भूल जाता रवि बचपन से ले कर जवानी तक के उन दिनों को, जब कदमकदम पर दीदी ममता और प्यार की छाया ले उस के साथ चलती रही थीं.

दीदी तो विवाह भी न करतीं, परंतु रिश्तेदारों के तानों और बेटी की बढ़ती उम्र से चिंतित पिताजी के चेहरे पर बढ़ती झुर्रियों को देखने के बाद रवि ने अपनी कसम दे कर दीदी को विवाह के लिए मजबूर कर दिया था. उन के विवाह के समय वह बीए में आया ही था. विवाह के बाद भी बेटे की तरह पाले भाई की तड़प दीदी के अंदर से गई नहीं थी, उस की जरा सी खबर पाते ही दौड़ी चली आतीं. वह भी उन के जाने के बाद कितना अकेला हो गया था. यह तो अच्छा हुआ कि जीजाजी अच्छे स्वभाव के थे. दीदी की तड़प समझते थे, भाईबहन के प्यार के बीच कभी बाधा नहीं बने थे.

चंद्रिका को भी तो वह ही ढूंढ़ कर लाई थीं. उन दिनों की याद से रवि मुसकरा उठा. दीदी उस के विवाह की तैयारी में बावरी हो उठी थीं. ऐसा भी नहीं था कि चंद्रिका को इन बातों की जानकारी न हो, विवाह के शुरुआती दिनों में ही सारी रामकहानी उस ने सुना दी थी. विवाह के बाद जब पहली बार दीदी आईर् थीं तो चंद्रिका भी उन से मिलने के लिए बड़ी उत्साहित थी और स्वयं रवि तो पगला सा गया था. आखिर उस के विवाह के बाद वह पहली बार आ रही थीं. वह चाहता था भाई की सुखी गृहस्थी देख वह खिल उठें.

पति के ढेरों आदेशनिर्देश पा कर चंद्रिका का उत्साह कुछ कम हो गया था, वह कुछ सहम सी भी गई थी. परंतु रवि तो अपनी ही धुन में था, चाहे कुछ हो जाए, दीदी को इतना सम्मान और प्यार मिलना चाहिए कि उन की ममता का जरा सा कर्ज तो वह उतार सके.

दीदी के आने के बाद उन दोनों के बीच चंद्रिका कहीं खो सी गई थी. उन दोनों को अपने में ही मस्त पा उन के साथ बैठ कर स्वयं भी उन की बातों में शामिल होने की कोशिश करती, पर रवि ऐसा मौका ही न देता. तब वह खीज कर रसोई में घुस खाना बनाने की कोशिश में लग जाती. मेहनत से बनाया गया खाना देख कर भी रवि उस पर नाराज हो उठता, ‘यह क्या बना दिया? पता नहीं है, दीदी को पालकपनीर की सब्जी अच्छी लगती है, शाही पनीर नहीं.’ फिर रसोई में काम करती चंद्रिका का हाथ पकड़ कर बाहर ला खड़ा करता और कहता, ‘आज तो दीदी के हाथ का बना हुआ ही खाऊंगा. वे कितना अच्छा बनाती हैं.’

तब भाईबहन चुहलबाजी करते हुए रसोई में मशगूल हो जाते और चंद्रिका बिना अपराध के ही अपराधी सी रसोई के बाहर खड़ी उन्हें देखती रहती. दीदी जरूर कभीकभी चंद्रिका को भी साथ लेने की कोशिश करतीं, लेकिन रवि अनजाने ही उन के बीच एक ऐसी दीवार बन गया था कि दोनों औपचारिकता से आगे कभी बढ़ ही न पाई थीं. उस समय तो किसी तरह चंद्रिका ने हालात से समझौता कर लिया था, लेकिन उस के बाद जब भी दीदी आतीं, वह कुछ तीखी हो उठती. सीधे दीदी से कभी कुछ नहीं कहा था, लेकिन रवि के साथ उस के झगड़े शुरू हो गए थे. दीदी भी शायद भांप गई थीं, इसीलिए धीरेधीरे उन का आना कम होता जा रहा था. इस बार तो पूरे एक वर्ष बाद आ रही थीं, पिछली बार उन के सामने ही चंद्रिका ने रवि से इतना झगड़ा किया कि वे बेचारी 4 दिनों में ही वापस चली गई थीं. जितने भी दिन वे रहीं, चंद्रिका ने बिस्तर से नीचे कदम न रखा, हमेशा सिरदर्द का बहाना बना अपने कमरे में ही पड़ी रहती.

एक दोपहर दीदी को अकेले काम में लगा देख भनभनाता हुआ रवि, चंद्रिका से लड़ पड़ा था. तब वह तीखी आवाज में बोली थी, ‘तुम क्या समझते हो, मैं बहाना कर रही हूं? वैसे भी तुम्हें और तुम्हारी दीदी को मेरा कोई काम पसंद ही कब आता है, तुम दोनों तो बातों में मशगूल हो जाओगे, फिर मैं वहां क्या करूंगी?’ बढ़तेबढ़ते बात तेज झगड़े का रूप ले चुकी थी. दीदी कुछ बोलीं नहीं, पर दूसरे ही दिन सुबह रवि द्वारा मिन्नतें करने के बाद भी चली गई थीं. उन के चले जाने के बाद भी बहुत दिनों तक उन दोनों के संबंध सामान्य न हो पाए थे, दीदी के इस तरह चले जाने के कारण वह चंद्रिका को माफ नहीं कर पाया था.

दोनों के बीच बढ़ते तनाव को देख अभी तक खामोशी से सबकुछ देख रहे पिताजी ने आखिरकार एक दिन रात को खाने के बाद टहलने के लिए निकलते समय उसे भी साथ ले लिया था. वे उसे समझाते हुए बोले थे, ‘पतिपत्नी के संबंध का अजीब ही कायदा होता है, इस रिश्ते के बीच किसी तीसरे की उपस्थिति बरदाश्त नहीं होती है…’ ‘लेकिन दीदी कोई गैर नहीं हैं,’ बीच में ही बात काटते हुए, रवि का स्वर रोष से भर उठा था.

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विक्की कौशल ने दोबारा रचाई शादी! जानें क्या है मामला

बौलीवुड एक्टर विक्की कौशल ने साल 2021 में एक्ट्रेस कटरीना कैफ संग शादी रचाई थी, जिसकी फोटोज और वीडियो आज भी सोशलमीडिया पर वायरल होती रहती हैं. इसी बीच एक्टर विक्की कौशल की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें वह दोबारा घोड़ी पर चढे हुए नजर आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ऐसे हुई विक्की कौशल की दोबारा शादी

 

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हाल ही में शादी के बाद पहले अवौर्ड शो आईफा 2022 में पहुंचे विक्की कौशल की शो के होस्ट रितेश देशमुख और मनीष पॉल ने टांग खींची. दरअसल, शो में अकेले आए विक्की कौशल की टांग खींचते हुए होस्ट ने उन्हें घोड़ी चढाई और फिर  कैटरीना कैफ का बड़ा सा पोस्टर लेकर उन्हें वरमाला पहनाई. एक्टर की इस वीडियो पर फैंस के मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं.

 

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शादी के बाद लाइफ के बारे में कही ये बाद

 

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आईफा अवॉर्ड 2022 में फिल्म ‘सरदार उधम सिंह’ के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड जीत चुके विक्की कौशल ने हाल ही में शादी के बाद अपनी लाइफ के बारे में चुप्पी तोड़ते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि  ‘कैटरीना कैफ के साथ मैरिड लाइफ बहुत अच्छी चल रही है… सुकून भरी है. मैं कैटरीना कैफ को अवॉर्ड शो में मिस कर रहा हूं. उम्मीद है कि अगले साल हम आईफा में एक साथ आएंगे.’

 

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बता दें, ‘सरदार उधम सिंह’ के बाद एक्टर विक्की कौशल ‘गोविंदा नाम मेरा’ और आनंद तिवारी और लक्ष्मण उतरेकर की अनटाइटल्ड फिल्म का हिस्सा हैं. वहीं ‘सूर्यवंशी’ के बाद एक्ट्रेस कैटरीना कैफ फिल्म ‘टाइगर 3’, फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ और फिल्म ‘फोनभूत’ जैसी फिल्मों की शूटिंग में बिजी हैं, जिसके कारण दोनों एक दूसरे से दूर हैं. हालांकि वह कई बार एयरपोर्ट पर साथ नजर आ चुके हैं.

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